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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस

 11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस



लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस)

भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया ।

 उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।

जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया।

 उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

 ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया।

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह



 ( हिंदू संवाद पौष शुक्ल पक्ष नवमी तिथि ११/०१ इतिहास स्मृति )

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह

भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर ही रहे थे; पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे। वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे। ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे।

सेवासिंह थे तो मूलतः पंजाब के, पर वे अपने अनेक मित्र एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे। उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी। प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।

मिस्टर हॉप्सिन नामक एक अधिकारी ने एक देशद्रोही बेलासिंह को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागासिंह और वतनसिंह की गुरुद्वारे में हत्या करा दी। इससे सेवासिंह की आँखों में खून उतर आया। उसने सोचा यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएँ कराता रहेगा।

सेवासिंह ने सोचा कि हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फँसाकर मारा जाये। इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये। हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्तसिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जायेगी। सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया। हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये। सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा।

अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया। जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुँचा। उनके वहाँ आने पर कोई रोक नहीं थी। चौकीदार उन्हें पहचानता ही था। सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी।

यह देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया। सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया; पर फिर संभल कर बोला, ‘‘ये पिस्तौल आप रख लें। इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं।’’ इस पर हॉप्सिन ने क्षमा माँगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी।

अगले दिन न्यायालय में वतनसिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी। हॉप्सिन भी वहाँ मौजूद था। जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतनसिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे। सेवासिंह ने हाँ कहा। जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है। उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला - इस तरह। हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया।

न्यायालय में खलबली मच गयी। सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले सँभाल अपनी पिस्तौल। अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ।’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया। उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया; क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है। यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है। जो गालियाँ भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है। जय हिन्द।’’

उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देेने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फाँसी दे दी गयी।

हमें कौन सा उत्तर प्रदेश पसंद है.

 इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता, पर अपने कॉन्सेप्ट क्लीयर होने चाहिए.
2017 में UP वासी होते हुवे केवल यह इच्छा थी कि थोड़ा लॉ ऑर्डर हो जाए, गुंडागर्दी कम हो जाए, शांति रहे. दंगे बंद हों, टोपी वालों का आतंक और अपीजमेंट समाप्त हो जाए, और चूँकि हिंदू वादी थे तो यह भी आकाँक्षा थी कि राम मंदिर बन जाए.
2022 पाँच वर्ष बाद जब देखता हूँ तो लगता ही नहीं कि यह वही UP है. दंगे छोड़िए कोशिश करने वालों की भी रूह काँपती है. गुंडागर्दी कम छोड़िए करने वालों के घर बुल डोजर चल जाते हैं. राम मंदिर तो कब का फ़ाइनल हो गया, काशी का भव्य कारिडोर बन गया, विंध्य्वासिनी माता समेत ढेरों मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है और अब मथुरा की बारी है. क़ायदे से 2017 की अपेक्षाएँ देखते हुवे इतना मात्र 10/10 वाला है.
पर बोनस में इधर योगी बाबा हैं. बिजली व्यवस्था इतनी चौकस हुई कि धीमे धीमे जेनरेटर उद्योग समापन की कगार पर है. प्रदेश में पहले जितने अच्छे बस अड्डे होते थे उससे ज़्यादा हवाई अड्डे बना दिए. इक्स्प्रेस वे / रोड नेट्वर्क का जाल बिछ गया. बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र जो कभी बदनाम थे अकाल ग्रस्त थे, वहाँ डिफ़ेंस कारिडोर बन रहा है. कोविड वैक्सीन में रेकर्ड क़ायम किए गए. कोई भी क्षेत्र हो सबमें उत्तर प्रदेश ने प्रगति में नए नए झंडे गाड़े. पाँच वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश गाँवों में यदि जाना होता था रात को तो मैं गनर के साथ ही जाता था. आज अपनी रिवॉल्वर भी लाकर में रखी है ध्यान ही नहीं पिछली बार कब निकाली थी. पहले जहां उत्तर प्रदेश की पहचान केवल ताज थी, आज दसियों ऐतिहासिक स्थल हैं.
व्यक्तिगत कुंठा में कोई कुछ भी कहे मुझे यह कहने में एक प्रतिशत डाउट नहीं कि बीते पाँच वर्षों में उत्तर प्रदेश ने जो अचीव किया वह अकल्पनीय था सोंच भी नहीं सकते थे 2017 में.
सरकार ने जो करना था किया, अब यह हमारे ऊपर है कि हमें कौन सा उत्तर प्रदेश पसंद है. वह वाला जहां सरकार के ख़िलाफ़ पोस्ट करने वालों तक को ज़िंदा जला देते थे या वह वाला उत्तर प्रदेश जहां ऐसा करने वालों की जगह या तो जेल है या भगवान का घर.
निर्णय आपका

36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है!

 36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है!

6000 बार – बार खाते में में आ रहे हैं,माता पिता पैन्शन ले रहे हैं,आये गये साल कर्जे माफ करा लेते हैं !

फिर कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी। किसी रिक्शा वाले की,किसी ऑटो वाले की,किसी नाई की,किसी दर्जी की,किसी लुहार की,किसी साइकिल पन्चर लगाने वाले की,किसी रेहड़ी वाले की,ऐसे न जाने कितने छोटे रोजगारों की कोई सबसिडी आई है आज तक?
किसी का कर्जा माफ हुआ है आज तक? क्या ये लोग इस देश के वासी नही हैं?
कल को ये भी आन्दोलन करके कहेंगे देश के पालनहार हम ही हैं।

रही बात MSP की 😀😀 कल हलवाई कहेंगे सरकार हमारे समोसे की एम एस पी 50 रुपये निश्चित करो।चाहे उसमें सड़े हुए आलु भरें।हमारे सब बिकने चाहियें।नहीं बिके तो सरकार खरीदे,चाहे सूअरों को खिलाये।हमें समोसे की कीमत मिलनी चाहिए ।

परसों बिरयानी वाले कहेंगे एक प्लेट बिरयानी 90 रुपये एम एस पी रखो चाहे सब बिकनी चाहिये।

जो नहीं बिके उसे खट्टर और दुष्यंत खरीदें और पैसे सीधे हमारे खाते में जमा हों।

यह सब तमाशा नहीं तो क्या हो रहा हैं ! दिल्ली में जो त्राहि त्राहि हो रही है,ना दूध पहुंच रहा है,ना सब्जी पहुंच रही है,ना कर्मचारी समय पर पहुंच पा रहे हैं उनकी यह दशा बनाने का क्या अधिकार है इन तथाकथित किसानों का? आज इन कथित किसानों की मांग की तीनों कानूनों के वापस लेने तक हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे अब कानून वापस ले लिए गए है तो अब जब तक हमारी अन्य मांगे न मानी जाएगी तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा । इनका ये आंदोलन किसी किसान के हित को लेकर ना पहले था ना आने वाले दिनों में दिखेगा इनका एक मात्र स्पष्ट इरादा है राष्ट्रवादी सरकार को गिराना घेरना जिनसे इन्हे मिल रहे राजनैतिक दलों की मंशा पूर्ण हो और विदेशो से देश को अस्थिर कर विदेशी फंड हासिल कर देश में अराजक माहोल बनाना है जिससे भारत की बढ़ती साख को गिराया जा सके और इनके इस आंदोलन में वर्तमान विपक्ष कांग्रेस वामी और आपिए जैसे छुटपुट दल पूर्ण सहयोग कर रहे है जो देश के लिए घातक सिद्ध होगी !

डॉ. सुनील जोगी की सबसे लोक प्रिय कविता I माँ तेरी बहुत याद आती है

 संक्षिप्त परिचय
नाम : डॉ. सुनील जोगी
जन्म : १ जनवरी १९७१ को कानपुर में।
शिक्षा : एम. ए., पी-एच. डी. हिंदी में।



कार्यक्षेत्र :
विभिन्न विधाओं में ४० पुस्तकें तथा गीत, ग़ज़ल व भजन के २५ कैसेट प्रकाशित। देश विदेश के अनेक मंचों व चैनलों से काव्य पाठ। फ़िल्मों के लिए गीत लेखन। पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। अनेक धारावाहिकों के शीर्षक गीत व स्क्रिप्ट लेखन। लोक सभा के अपर निजी सचिव के रूप में संसद भवन में कार्य। इंडिया मीडिया एंड इंटरटेनमेंट एकेडमी के निदेशक तथा अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति, भारत के राष्ट्रीय महासचिव।

मातृ दिवस के सुअवसर पर उनकी एक बेहद ही भावपूर्ण रचना आप सबके नज़र है. आशा है आपको पसंद आएगी.. 

Dr. Sunil Jogi की सबसे लोक प्रिय कविता 

जब आँख खुली तो अम्‍मा की गोदी का एक सहारा था
उसका नन्‍हा-सा आँचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों-सा खिलता था
उसके स्‍तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया
मैं उसका राजा बेटा था वो आँख का तारा कहती थी
मैं बनूँ बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी
उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काँटे चुन वो ख़ुद ग़ुलाब बन जाती थी
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्‍यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया
शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्‍तों में झूल गया
अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गए वो ख़ुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्‍तर देकर ख़ुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही होठों को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गाई थी
हम भूल गए हर ग़लती पर उसने डाँटा-समझाया था
बच जाऊँ बुरी नज़र से काला टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बन्‍धन तोड़ आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए
उसके सपनों का महल गिरा कर कंकर-कंकर बीन लिए
ख़ुदग़र्ज़ी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए
हम माँ को घर के बँटवारे की अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए
माँ की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी माँ क्‍या पाती है
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्‍य भले कर लें इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणों को छूकर पानी गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है
माँ के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी गहराई है
दुनिया में जितनी ख़ुशबू है माँ के आँचल से आई है
माँ कबिरा की साखी जैसी, माँ तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली ख़ुसरो की अमर रुबाई है
माँ आंगन की तुलसी जैसी पावन बरगद की छाया है
माँ वेद ऋचाओं की गरिमा, माँ महाकाव्‍य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का, माँ गोमुख की ऊँचाई है
माँ परिवारों का संगम है, माँ रिश्‍तों की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की, माँ केसर वाली क्‍यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है वो प्रसाद बन जाती है
माँ हँसती है तो धरती का ज़र्रा-ज़र्रा मुस्‍काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में चन्‍दा-सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में बस केवल माँ की मूरत है
माँ सरस्‍वती, लक्ष्‍मी, दुर्गा, अनुसूया, मरियम, सीता है
माँ पावनता में रामचरितमानस् है भगवद्गीता है
अम्‍मा तेरी हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्‍य जहाँ, मैं उन चरणों में लेटा हूँ
जिनके कोई सन्‍तान नहीं, मैं उन माँओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्‍प उठाता हूँ
मैं दुनिया की हर माँ के चरणों में ये शीश झुकाता हूँ

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