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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

'रत्ती' क्या है? ये कहाँ से प्राप्त होता है और इसकी क्या उपयोगिता है?

जब हमें किसी पर बहुत गुस्सा आता है तो हम कह बैठते हैं तुम्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं है?

हममें से अधिकतर लोग रत्ती का यही अर्थ निकालते हैं कि "जरा सी भी"।बोलने वाला भी यही सोच कर बोलता है और सुनने वाला भी इसी अर्थ में लेता है। पर असल में इसका कुछ और ही अर्थ तथा उपयोगिता है।

आपको यह जानकर बहुत ही हैरानी होगी कि यह एक प्रकार का पौधा है । रत्ती एक पौधा है, और रत्ती के दाने काले और लाल रंग के होते हैं। यह बहुत आश्चर्य का विषय सबके लिए है। जब आप इसे छूने की कोशिश करेंगे तो यह आपको मोतियों की तरह कड़ा प्रतीत होगा, यह पक जाने के बाद पेड़ों से गिर जाता है।

इस पौधे को ज्यादातर आप पहाड़ों में ही पाएंगे। रत्ती के पौधे को आम भाषा में ‘गूंजा ‘ कहा जाता है। अगर आप इसके अंदर देखेंगे तो इसमें मटर जैसी फली में दाने होते हैं।
गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी

के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।

रत्ती एक बहुत ज़हरीला पौधा है. दवाई के रूप में इसकी पत्तिया, जड़ और बीज का प्रयोग किया जाता है. पत्तियां और जड़ में कम विष होता है. अजीब बात हैं की इसके बीज बहुत विषाक्त होते हैं. इसका प्रयोग केवल लगाने की दवाई के रूप में किया जाता है. लेकिन भूलकर भी ये जड़ी बूटी खुले घाव वाले स्थान पर न लगायी जाय. और इसका प्रयोग केवल काबिल हकीम और वैद्य की निगरानी में ही किया जाए.
किसी खाने की दवा में अगर रत्ती का इस्तेमाल लिखा हो तो ऐसे नुस्खे का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि रत्ती या गुंजा खतरनाक ज़हर है.

चित्र गूगल से प्राप्त

सोना को मापने के लिए होता था इस्तेमाल

जब लोगों ने इसमें रुचि दिखाइ, और इसकी जांच पड़ताल शुरू की तो सामने आया कि प्राचीन काल में या पुराने जमाने में कोई मापने का सही पैमाना नहीं था। इसी वजह से रत्ती का इस्तेमाल सोने या किसी जेवरात के भार को मापने के लिए किया जाता था। वहीं सात रत्ती सोना या मोती माप के चलन की शुरुआत मानी जाती है।

आपको बता दें कि यह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप में होता आ रहा था। अभी की भी बात करें तो यह विधि, या कहें तो इस मापन की विधि को किसी भी आधुनिक यंत्र से ज्यादा विश्वासनीय और बढ़िया माना जाता है। आप इसका पता अपने आसपास के सुनार या जौहरी से भी लगा सकते हैं।

मुंह के छालों को भी करता है ठीक

ऐसा माना जाता है कि अगर आप रत्ती के पत्ते को चबाना शुरू करें तो मुंह में होने वाले सारे छाले ठीक हो जाते हैं। साथ ही साथ इस के जड़ को भी सेहत के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। आपने कई लोगों को’ रत्ती’, ‘ गूंजा’ पहनते हुए भी देखा होगा। कुछ लोग अंगूठी बनवा देते हैं तो कुछ लोग माला बनाकर इसे पहनते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह एक सकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करता है जो की बहुत ही अच्छी बात है।

हमेशा एक जैसा होता है इसका भार

आपको यह जानकर बहुत ही आश्चर्य होगा कि इसकी फली की आयु कितनी भी क्यों ना हो, लेकिन जब आप इसके अंदर के उपस्थित बीजों को लेंगे और उनका वजन करेंगे, तब आपको हमेशा यह एक समान ही दिखेगा। इसमें 1 मिलीग्राम का भी फर्क कभी नहीं पड़ता है।

इंसानों की बनाई गई मशीन पर तो कभी-कभी भरोसा उठ भी जाए और यंत्र से गलती हो भी जाए लेकिन इस पर आप आंख बंद करके विश्वास कर सकते हैं। प्रकृति द्वारा दिए गए इस ‘गूंजा ‘ नामक पौधे के बीज की रत्ती का वजन कभी इधर से उधर नहीं होता है।

अगर वजन मापने की आधुनिक मशीन को देखा जाए तो एक रत्ती लगभग — 0.121497 ग्राम की हो जाती है।

गूंजा के बीज तंत्र मंत्र में भी उपयोग किए जाते हैं।ये तांत्रिकों के बीच जितने मशहूर हैं उतने ही आयुर्वेद चिकित्सा में भी इनका प्रयोग किया जाता है।श्वेत गूंज का आयुर्वेद में सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। कुछ गूंजे विषैले भी होते हैं इसलिए बिना जांच पड़ताल के इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

धन्यवाद 🙏

ई-श्रम कार्ड बनवाइए 2 लाख रुपये का मुफ्त बीमा पाइये



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2 लाख रुपये का मुफ्त बीमा पाइये

अपने घर की कामवाली बाई / नौकर, आपकी दुक़ान और आसपास के दुकानों में काम करने वाले नौकर/सेल्सगर्ल/सेल्सबॉय, रिक्शा चालक आदि सभी को  2 लाख रुपये का मुफ्त बीमा है तथा 5 लाख तक का मुफ्त इलाज है।

कौन पात्र है
वे सभी व्यक्ति जिनकी उम्र 16 से 59 साल के बीच है

कौन पात्र नहीं है
जो इनकम टैक्स जमा करता है
जो CPS/NPS/EPFO/ESIC का सदस्य है

कैसे करें आवेदन
पंजीयन आपके आसपास के किसी भी चॉइस सेंटर / लोक सेवा केंद्र (LSK)/CSC/ पोस्ट ऑफिस  में हो सकता है।  eshram.gov.in साइट से खुद भी पंजीयन कर सकते हैं




आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेज
केवल आधार नंबर, मोबाईल नंबर और बैंक का खाता नंबर चाहिए

क्या फायदा होगा
- 2 लाख रुपये का मुफ्त बीमा
- श्रम विभाग की सभी योजनाओं का लाभ जैसे बच्चों को छात्रवृत्ति, मुफ्त सायकल , मुफ्त सिलाई मशीन, अपने  काम के लिए  मुफ्त उपकरण आदि
- भविष्य में राशन कार्ड को इससे लिंक किया जायेगा जिससे देश के किसी भी राशन दुक़ान से राशन मिल जायेगा  

वास्तव में आपके आसपास दिखने वाले प्रत्येक कामगार का यह कार्ड बन सकता है।  विभिन्न प्रकार के मजदूरों / कामगारों का उदाहरण,  जिनका ई-श्रम कार्ड बन सकता है  निम्नानुसार हैं : -

घर का नौकर - नौकरानी (काम वाली बाई), खाना बनाने वाली बाई (कुक), सफाई कर्मचारी, गार्ड,  रेजा, कुली, रिक्शा चालक, ठेला में किसी भी प्रकार का सामान बेचने वाला (वेंडर), चाट ठेला वाला, भेल वाला, चाय वाला, होटल के नौकर/वेटर, रिसेप्शनिस्ट, पूछताछ वाले क्लर्क, ऑपरेटर,   हर दुकान का नौकर / सेल्समैन / हेल्पर, ऑटो चालक, ड्राइवर, पंचर बनाने वाला,  ब्यूटी पार्लर की वर्कर, नाई, मोची, दर्ज़ी ,बढ़ई , प्लम्बर, बिजली वाला (इलेक्ट्रीशियन), पोताई वाला (पेंटर), टाइल्स वाला, वेल्डिंग वाला, खेती वाले मज़दूर, नरेगा मज़दूर, ईंट भट्ठा के मज़दूर, पत्थर तोड़ने वाले, खदान मज़दूर, फाल्स सीलिंग वाला, मूर्ती बनाने वाले, मछुवारा, चरवाहा, डेयरी वाले, सभी पशुपालक, पेपर का हॉकर,  जोमैटो स्विगी के डिलीवरी बॉय, अमेज़न फ्लिपकार्ट के डिलीवरी बॉय  (कूरियर वाले), नर्स, वार्डबॉय, आया,  मंदिर के पुजारी,  विभिन्न सरकारी ऑफिस के दैनिक वेतन भोगी, कलेक्टर  रेट वाले कर्मचारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता सहायिका, मितानिन, आशा वर्कर  आदि आदि अर्थात  सभी तरह के व्यक्ति का पंजीयन हो सकता है।

इस मैसेज को पढ़ने वाले व्यक्ति से निवेदन है कि कम से कम इस मैसेज को अपने Contact/Groups में शेयर कर दीजिये, ताकि जरूरतमंद व्यक्ति / मज़दूर का पंजीयन हो सके.

#हनुमद्ध्यानम्

#हनुमद्ध्यानम्




 नमस्ते देवदेवेश नमस्ते राक्षसान्तक ।
नमस्ते वानराधीश नमस्ते वायुनन्दन ॥ १॥
नमस्त्रिमूर्तिवपुषे वेदवेद्याय ते नमः ।
रेवानदी विहाराय सहस्रभुजधारिणे ॥ २॥
सहस्रवनितालोल कपिरूपाय ते नमः ।
दशाननवधार्थाय पञ्चाननधराय च ॥ ३॥
सुवर्चलाकलत्राय तस्मै हनुमते नमः ।
कर्कटीवधवेलायां षडाननधराय च ॥ ४॥
सर्वलोकहितार्थाय वायुपुत्राय ते नमः ।
रामाङ्कमुद्राधराय ब्रह्मलोकनिवासिने ॥ ५॥
विंशद्भुजसमेताय तस्मै रुद्रात्मने नमः ।
सर्वस्वतन्त्रदेवाय नानायुधधराय च ॥ ६॥
दिव्यमङ्गलरूपाय हनूमद्ब्रह्मणे नमः ।
दुर्दण्डिबन्धमोक्षाय कालनेमिहराय च ॥ ७॥
मैरावणविनाशाय वज्रदेहाय ते नमः ।
सर्वलोकप्रपूर्णाय भक्तानां हृन्निवासिने ॥ ८॥
आर्तानां रक्षणार्थाय वेदवेद्याय ते नमः ।
सर्वमन्त्रस्वरूपाय सृष्टिस्थित्यन्तहेतवे ॥ ९॥
नानावर्णधरायास्तु पापनाशय ते नमः ।
गङ्गातीरे विप्रमुख कपिलानुग्रहेच्छया ॥ १०॥
चतुर्भुजावताराय भविष्यद्ब्रह्मणे नमः ।
कौपीनकटिसूत्राय दिव्ययज्ञोपवीतिने ॥ ११॥

पीताम्बरधरायास्तु कालरूपाय ते नमः ।
यज्ञकर्त्रे यज्ञभोक्त्रे नानाविद्याविहारिणे ॥ १२॥
त्रिमूर्तितेजोवपुषे दिव्यरूपाय ते नमः ।
कदलीफलहस्ताय हेमरम्भाविहारिणे ॥ १३॥
भक्तध्यानावसन्ताय सर्वभूतात्मने नमः ।
वल्लरीधार्ययुक्ताय सहस्राश्वरथाय च ॥ १४॥
गुण्डक्रियागीतगानचतुराय नमो नमः ।
पञ्चाशद्वर्णरूपाय सूक्ष्मरूपाय विष्णवे ॥ १५॥
नरवानरवेषाय बहुरूपाय ते नमः ।
लङ्किणीवशवेलायामष्टादशभुजात्मने ॥ १६॥
ध्वजदत्तप्रपन्नाय अग्निगर्भाय ते नमः ।
उष्ट्रारोहविराराय पार्वतीनन्दनाय च ॥ १७॥
वज्रप्रहारचिह्नाय तस्मै सर्वात्मने नमः ।
पम्पातीरविहाराय केसरीनन्दनाय च ।
तप्तकाञ्चनवर्णाय वीररूपाय ते नमः ॥ १८॥

शक्तिं पाशं च कुन्तं परशुमपि हलं तोमरं खेटकं च
शङ्खं चक्रं त्रिशूलं मुसलमपि गदां पट्टसं मुद्गरं च ।
गाण्डीवं चारुपद्मं द्विनवभुजवरे खड्गमप्याददानं
वन्देऽहं वायुसूनुं सुररिपुमथनं भक्तरक्षाधुरीणम् ॥ १९॥
इति श्रीहनुमद्ध्यानं समाप्तम् ।

11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस

 11 जनवरी 1966 लाल बहादुर शास्त्री बलिदान दिवस



लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस)

भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया ।

 उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।

जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया।

 उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

 ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया।

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह



 ( हिंदू संवाद पौष शुक्ल पक्ष नवमी तिथि ११/०१ इतिहास स्मृति )

11 जनवरी 1915 बलिदान-दिवस देशभक्त सरदार सेवासिंह

भारत की आजादी के लिए भारत में हर ओर लोग प्रयत्न कर ही रहे थे; पर अनेक वीर ऐसे थे, जो विदेशों में आजादी की अलख जगा रहे थे। वे भारत के क्रान्तिकारियों को अस्त्र-शस्त्र भेजते थे। ऐसे ही एक क्रान्तिवीर थे सरदार सेवासिंह, जो कनाडा में रहकर यह काम कर रहे थे।

सेवासिंह थे तो मूलतः पंजाब के, पर वे अपने अनेक मित्र एवं सम्बन्धियों की तरह काम की खोज में कनाडा चले गये थे। उनके दिल में देश को स्वतन्त्र कराने की आग जल रही थी। प्रवासी सिक्खों को अंग्रेज अधिकारी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।

मिस्टर हॉप्सिन नामक एक अधिकारी ने एक देशद्रोही बेलासिंह को अपने साथ मिलाकर दो सगे भाइयों भागासिंह और वतनसिंह की गुरुद्वारे में हत्या करा दी। इससे सेवासिंह की आँखों में खून उतर आया। उसने सोचा यदि हॉप्सिन को सजा नहीं दी गयी, तो वह इसी तरह अन्य भारतीयों की भी हत्याएँ कराता रहेगा।

सेवासिंह ने सोचा कि हॉप्सिन को दोस्ती के जाल में फँसाकर मारा जाये। इसलिए उसने हॉप्सिन से अच्छे सम्बन्ध बना लिये। हॉप्सिन ने सेवासिंह को लालच दिया कि यदि वह बलवन्तसिंह को मार दे, तो उसे अच्छी नौकरी दिला दी जायेगी। सेवासिंह इसके लिए तैयार हो गया। हॉप्सिन ने उसे इसके लिए एक पिस्तौल और सैकड़ों कारतूस दिये। सेवासिंह ने उसे वचन दिया कि शिकार कर उसे पिस्तौल वापस दे देगा।

अब सेवासिंह ने अपना पैसा खर्च कर सैकड़ों अन्य कारतूस भी खरीदे और निशानेबाजी का खूब अभ्यास किया। जब उनका हाथ सध गया, तो वह हॉप्सिन की कोठी पर जा पहुँचा। उनके वहाँ आने पर कोई रोक नहीं थी। चौकीदार उन्हें पहचानता ही था। सेवासिंह के हाथ में पिस्तौल थी।

यह देखकर हॉप्सिन ने ओट में होकर उसका हाथ पकड़ लिया। सेवासिंह एक बार तो हतप्रभ रह गया; पर फिर संभल कर बोला, ‘‘ये पिस्तौल आप रख लें। इसके कारण लोग मुझे अंग्रेजों का मुखबिर समझने लगे हैं।’’ इस पर हॉप्सिन ने क्षमा माँगते हुए उसे फिर से पिस्तौल सौंप दी।

अगले दिन न्यायालय में वतनसिंह हत्याकांड में गवाह के रूप में सेवासिंह की पेशी थी। हॉप्सिन भी वहाँ मौजूद था। जज ने सेवासिंह से पूछा, जब वतनसिंह की हत्या हुई, तो क्या तुम वहीं थे। सेवासिंह ने हाँ कहा। जज ने फिर पूछा, हत्या कैसे हुई ? सेवासिंह ने देखा कि हॉप्सिन उसके बिल्कुल पास ही है। उसने जेब से भरी हुई पिस्तौल निकाली और हॉप्सिन पर खाली करते हुए बोला - इस तरह। हॉप्सिन का वहीं प्राणान्त हो गया।

न्यायालय में खलबली मच गयी। सेवासिंह ने पिस्तौल हॉप्सिन के ऊपर फेंकी और कहा, ‘‘ले सँभाल अपनी पिस्तौल। अपने वचन के अनुसार मैं शिकार कर इसे लौटा रहा हूँ।’’ सेवासिंह को पकड़ लिया गया। उन्होंने भागने या बचने का कोई प्रयास नहीं किया; क्योंकि वह तो बलिदानी बाना पहन चुके थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हॉप्सिन को जानबूझ कर मारा है। यह दो देशभक्तों की हत्या का बदला है। जो गालियाँ भारतीयों को दी जाती है, उनकी कीमत मैंने वसूल ली है। जय हिन्द।’’

उस दिन के बाद पूरे कनाडा में भारतीयों को गाली देेने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। 11 जनवरी, 1915 को इस वीर को बैंकूवर की जेल में फाँसी दे दी गयी।

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