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सोमवार, 17 जनवरी 2022

कैराना के गुनाहगार को अपनी पार्टी का टिकट दे कर अपनी पार्टी का नाम नमाजवादी पार्टी सार्थक कर दिया

 एक धूल से सना हुआ उनींदा सा छोटा सा कस्बा जो कि देश की धड़कन दिल्ली से मात्र  90 किलोमीटर दूर है
कुछ सालो पहले यह टाउन तब मीडिया में खूब चर्चा में आया था जब दिल्ली में रिमोट कंट्रोल से चलने वाले प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह की दिल्ली में सरकार थी और उत्तर प्रदेश में  अखिलेश यादव का शासन था
तब कैराना में मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने के कारण और उनके आंतक से डरकर काफी सारे हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा था
बीजेपी को छोड़कर किसी भी अन्य राजनैतिक दलों ने इस पर कोई आवाज नहीं उठाई थी क्योंकि उन्हें लगता था कि हिन्दुओं का पलायन साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए  जरूरी  था बल्कि नमाजवादी पार्टी के नावेद हुसैन तो इस पूरे आयोजन के मुख्य कर्ताधर्ता थे
फिर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के योगी आदित्यनाथ की सरकार आई, और  उन्होंने कुछ हिंदू परिवारों का वापिस कैराना में पुनर्वास कराया गया था लेकिन इसके बावजूद अभी भी हजारों की संख्या में लोग वंहा से पलायन कर चुके हैं
एक बार कोई स्थान छोड़ देने के बाद वापिस उनका पुनर्वास बड़ा मुश्किल होता है
हिन्दुओं को अपनी जमीनों को कौडियों के भाव में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था
दिल्ली से केवल 90 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के एक कस्बे की यह हालत थी लेकिन सैकुलर के चैम्पियनो को कोई फर्क नहीं पड़ा
इसी कैराना से अब नमाजवादी पार्टी ने उसी नावेद हुसैन को एमएलए का टिकट दिया है
यानी हिन्दुओं को भगाओ और बदले में नमाजवादी पार्टी का टिकट पाओ
पता नहीं ये हिन्दू समुदाय के वे कौन लोग है जो कि नमाजवादी पार्टी को वोट देते हैं जबकि नमाजवादी पार्टी ने मुस्लिमों के वोट पाने के लिए  उनके लिए क्या क्या नहीं किया और हिन्दुओं को प्रताडित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा
राम भक्तों पर गोलियां चलाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मौलाना मुलायम सिंह यादव ने बड़ी बेशर्मी से और हिन्दुओं को चिढ़ाते हुए कहा था कि यदि जरूरत पड़ती तो वे सैंकड़ों कार सेवकों पर गोली चलाने के लिए तैयार थे
मुख्यमंत्री के रूप में वो केवल यह कह देते कि कानून व्यवस्था को कायम रखने के लिए उन्होंने गोलीबारी का आदेश दिया था, तो भी एक  कुछ हद तक उचित कहा जा सकता है लेकिन उन्होंने तो मुस्लिमों के वोट लेने के लिए ऐसा शर्मनाक बयान दिया था
अब बाप का असर उसके बेटे पर तो आएगा ही ना
ऑस्ट्रेलिया से कथित रूप से पढ़कर आने वाले  अखिलेश तो मुस्लिमों को रिझाने में अपने बाप से भी एक कदम आगे निकल गए
मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने पहला काम यह किया था कि उन्होंने अंग्रेजो के ज़माने से चल रही पुलिस स्टेशन में भगवान कृष्ण की पूजा को बंद करा दिया
मतलब जिस काम को अंग्रेज नहीं कर सके उस काम को अखिलेश जैसे काले अंग्रेज ने कर दिया
अब उन्होंने कैराना के गुनाहगार को अपनी पार्टी का टिकट दे कर अपनी पार्टी का नाम नमाजवादी पार्टी सार्थक कर दिया
अब जो हिन्दू अपने को हिन्दू ना समझकर दलित, यादव या और कोई जाति समझते हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनके साथ भी बीस वाले वही हाल करने वाले है जो कि वे अन्य हिन्दूओ के साथ करेंगे
उनके साथ कोई अलग से स्पेशल व्यवहार इसलिए नहीं होने वाला है कि वे नमाजवादी पार्टी या कॉंग्रेस के समर्थक है
यदि उनकी यादाश्त तेज है तो उन्हें सिर्फ पांच साल पहले की घटनाओं को याद कर लेना चाहिए, जब राज्य में नमाजवादी पार्टी का जंगलराज था और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता था
फिर भी यदि आपको बीजेपी और योगी से शिकायत है तो आपको तुरन्त किसी मनोचिकित्सक से उपचार कराने की जरूरत है

आपको क्या लगता है, ये उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी-योगी Vs सपा-अखिलेश होने जा रहा है?

 आपको क्या लगता है,.... ये उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी-योगी Vs सपा-अखिलेश होने जा रहा है?
 
No.

अभी तो चुनावों की घोषणा हो चुकी है लेकिन युद्ध शुरु हो चुका है।

आज नहीं, काफी पहले से शुरु हो चुका है।

और ये युद्ध बीजेपी / योगी Vs किसी राजनीतिक पार्टी के बीच नहीं होना,......ये चुनाव रुपी युद्ध योगी Vs राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय हिंदु विरोधी ताकतों के बीच होगा।

अखिलेश तो केवल निमित्त बनेगा क्योंकि कोई तो राजनीतिक दल चाहिये मैदान में।
 
अखिलेश कुछ न भी करे,....उसके चेहरे को सामने रख युद्ध लडेंगी सभी वो लेफ्टिस्ट / इस्लामी ताकतें और सोनिया गांधी जिनको हर कीमत पर योगी को दोबारा आने से रोकना ही रोकना है, चाहे कुछ भी दाँव पर लगाना पड़े।

और दाँव पर इतना कुछ लगाया जाने वाला है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में आजतक ऐसा नहीं हुआ होगा।
 
ये जो 200 करोड़ नकद और सोना चांदी पकड़े गये हैं रेड में,...ये तो कुछ भी नहीं।

हजारों करोड़ दांव पर लगाया जाने वाला है।

उसका कारण है....बड़ा ठोस कारण है।

कारण ये है कि सभी हिंदु विरोधी शक्तियां मान चुकी हैं कि बिना उत्तर प्रदेश जीते 2024 नहीं जीता जा सकता।

और ये ताकतें आज सर पर कफन बांध कर यूपी का चुनाव लड़ने जा रही हैं क्योंकि अगर वो 2022 और 2024 दोनों हार जाते हैं तो इस सब ताकतों का हमेशा के लिये भारत की धरती से अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
 
ये आरपार का युद्ध होने जा रहा है।

ये करो या मरो होने जा रहा है।

Either perform or perish होने जा रहा है।

ये चुनाव नहीं होने हैं, कुछ और होना है।

 ये उन गजवा ए हिंद की ताकतों और सोनिया गांधी के अस्तित्व की आखिरी लड़ाई है।

 वो हर कीमत पर इसे यानि उत्तर प्रदेश को 2022 में जीतना चाहते हैं,...वरना वो खत्म।
 
इसलिये किसी भ्रम में मत रहना,...ये आसान चुनाव नहीं होने हैं।

 ये एक भयंकर युद्ध होना है।

अगर हिंदु इस बार कुछ भी चूक कर गये तो हिंदु गये और अगर इस भयंकर षडयंत्र को समझकर एक हुए रहते हैं तो वो सब गये।
 
ये है समीकरण। Watch out! Beware!
 
बहुत संभलकर, बहुत सावधान होकर, आँख-कान-नाक-दिमाग सतत सक्रिय रखकर लड़ना है ये युद्ध।

दाँव पर अस्तित्व है,.......

🙏🚩🙏जय श्री राम ⚔️🚩⚔️🙏

रविवार, 16 जनवरी 2022

वो हिन्दू जो मोदी, योगी या भाजपा से नफरत करते हैं वो लोग 2 मिनट का समय निकाल कर ध्यान से पढ़ें.

इस क्षत्राणी की दर्द भरी गुहार सुनो मर्दों।

*वो हिन्दू जो मोदी, योगी या भाजपा से नफरत करते हैं वो लोग 2 मिनट का समय निकाल कर ध्यान से पढ़ें.....और आत्ममंथन करें ।।*

 1. *जैसे ही UP में दुकाने सील होने लगी और जिहादीओ की संपत्तिया जब्त होने लगी UP पूरी तरह शान्त दिख रही* है.... *लातो के भूत बातों से नही सिर्फ लातो* से ही मानते.....

2. आपको ये *Proof नही करना है कि हिंदुस्तान आपके बाप का है* आपको *Proof ये करना है कि आपका बाप हिंदुस्तानी* है....

3. पाकिस्तान *ज़िन्दाबाद के नारे लगाने वाले पाकिस्तान जाने के नाम पर बिदक क्यों जाते हैं वहां जाते क्यों नहीं*❓और अगर पाकिस्तान *इतना ही बुरा है तो फिर उसके पक्ष में नारे क्यों लगाते हैं* ... #indiasupportscaa

4. *कभी सुना है कि कांग्रेस से नाराज होकर मुसलमानों ने BJP प्रत्याशी जिता दिया हो..*,❓ ये *कीड़ा सिर्फ हिन्दुओं को ही काटता* है !

5. वास्तव मे तुम *"हिंदू" तभी कहलाओगे, जब "हिंदू" शब्द सुनकर तुम्हारी रगों मे "विद्युत तरंग" दौड़ जायेगा.# -स्वामी विवेकानंद* #UnitedHindu

6. इतिहास ये जरूर याद रखेगा कि - *जो मामला 40 दिनों मे हल‌ हो सकता था उसे कांग्रेस 70 साल तक लटकाए रखा।*    
*👉 #राममंदिर*


जो मामला *2 महीने के अंदर हल हो सकता था उस धारा को 70 साल जीवित रखा।*
*👉 #धारा370*


जो पहचानपत्र *6 महीने के अंदर घुसपैठियों की पहचान करा दे* उसे *35 साल लागू नही किया।*
*👉#NRC*

7. भारत और अमेरिका के विपक्ष के बीच का अंतर देखो - अमेरिका ने 48 घण्टो में 2 एयर स्ट्राइक कर दिया मगर -- वहां का विपक्ष और मीडिया किसी ने सबूत नहीँ मांगे.. लेकिन भारत का गद्दार विपक्ष अपने मुस्लिम वोटरों को खुश करने के चक्कर में देश से गद्दारी करते हुए सेना से बार-बार सबूत मांगता है....

8. *"काफिरों भारत छोड़ो" लाउड-स्पीकर पर ये आवाज सुनने से पहले तय कर लो - "जागना है या भागना है"।।*

9. *57 मुस्लिम देशो में से एक भी ईरान के पक्ष में नही बोला लेकिन यहाँ हिंदुस्तान में कुछ लोगों का सुलेमानी कीड़ा जाग गया....*

10. *असलम शेख कांग्रेस विद्यायक याकूब मेमन की फाँसी पर दया याचिका मांगने वाले ने ली उद्धव सरकार में मंत्री पद की  शपथ....*

11. *भारतीय नागरिकता क्या होती है ये 72 साल बाद मोदी युग में पता चला, पहले लोग अमेरिकी नागरिकता के लिये तरसते थे....*

12. *कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा: सत्ता में आने पर मुस्लिम घुसपैठियों को भी नागरिकता देगी कांग्रेस.. अब खुलकर आई कांग्रेस मैदान में!!!!*

13. मोदी जी भी जानते है कि जितने भी काम बाकी है अबकी बार निपटा दो वरना दोगले हिन्दू का क्या भरोसा अगली बार वो उन्हें वोट ही ना दें!

14. ओवैसी ने सरकार को सीधी धमकी दी अगर 26 जनवरी तक CAB वापस ना लिया तो उसके बाद जो होगा उसकी जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी....

15. विरोध बता रहा है कि नागरिकता कानून कितना जरूरी था और विरोध का तरीका बता रहा कि इसके बाद NRC कितना जरूरी है।

 ☝🏼एक कड़वा और नग्न सत्य जो खोल देगा सारे देश वासियों की आंँखे...🔔🔔🔔❗👇🏾
☝🏼चुनाव रिज़ल्ट से सीख:❗❗👇🏾

1. ग़रीबों के लिए कुछ भी कर लो... उनके  लिये घर बनवा दो,  गैस सिलेंडर दे दो, शौचालय बनवा दो, मेडिकल इन्श्योरेंस दे दो, क़र्ज़ा माफ़ कर दो, फिर भी ये भिखारी के भिखारी ही रहेंगे और चुनाव के वक़्त जो इनको शराब पिला दे, ये उन्ही को वोट देंगे।

2. देश के दुकानदार, व्यापारियों को ईमानदारी से टैक्स भर के काम करना मंँज़ूर नहीं, पर रिश्वत दे कर काम करवाना मंँज़ूर है

पैसे तो दोनो ही जगह देने पड़ते है, पर ख़ून में जो मूर्खों वाला अहंँकार और चोरी का डी॰एन॰ए॰ है उसका कोई इलाज नहीं है ?

3. निष्कर्ष साफ़ है:

a. सारा देश पहले रोता रहा इस बात को लेकर, कि भ्रष्टाचार हटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ। जब भ्रष्टाचार हटाने वाला आ गया, तो अब रो रहे हैं कि भ्रष्टाचार ही जीवन और धंँधे-रोज़गार के लिए अच्छा था।

b. सारे निचली जाति के लोग रोते रहेंगे कि हमें ऊपर उठाओ ऊपर उठाओ। जैसे ही उनको ऊपर उठाने वाला आ गया, तो फिर रोने लगे कि नहीं-नहीं हमें निचली जाति का ही रहने दो, क्योंकि हमें ऊपर उठने लिये मेहनत नहीं करनी, हमें मुफ़्त में सारी सुविधा देते रहो।

c. सारा देश आतंँकवादी हमलों से घबराया पड़ा था। एक ईमानदार देशभक्त पी॰एम॰ ने आकर हमें सुरक्षा प्रदान की, ये उन्होंने बड़ी ग़लती कर दी।

d. मतलब हमारा देश बेहद ही भ्रष्ट, छोटी सोच, अहंँकारी, मतलबी, खुदगर्जियों और नमकहरामियों का देश है।  एक बार फिर से भार


अंग्रेजों ने कब और कैसे गौहत्या शुरू की थी और ये आज तक क्यों बंद नहीं हुई?

*🚩अंग्रेजों ने कब और कैसे गौहत्या शुरू की थी और ये आज तक क्यों बंद नहीं हुई?*

*🚩भारत में गौहत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई। जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था। हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे। अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की क़ुर्बानी हराम है इसलिए उन्हें गाय की क़ुर्बानी करनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए। इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया। नतीजतन 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी। अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देशभर में कसाईखाने बनवाए।  जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ती गई वैसे-वैसे गौहत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई।*

*🚩गौहत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया। इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौहत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी। नामधारी सिखों के कूका आंदोलन की नींव गौरक्षा के विचार से ही जुड़ी थी।*

*🚩यह आंदोलन भी एक ऐसा इतिहास है जो समय के पन्नों के नीचे जानबूझ कर दबाया गया। एक गहरी व सोची समझी साजिश थी इसके पीछे क्योंकि यहां संबंध गाय से था और गाय शब्द आते ही स्वघोषित इतिहासकारों की भृकुटियां तन जाती है क्योंकि उसमें से तो कुछ गाय खाते हुए सेल्फी तक डालते हैं।*

*🚩गाय शब्द आते ही बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग में बेचैनी आ जाती है क्योंकि गाय की रक्षा को उन्होंने एक बेहद नए व आयातित शब्द से जोड़ रखा है जिसका नाम मॉब लिंचिंग है। गाय शब्द आते ही सत्ता में भी हलचल मचती है क्योंकि संसद में गौ-रक्षकों को सज़ा दिलाने के लिए कुछ लोग अपनी सीट तक छोड़ देते हैं और संसद तक नहीं चलने देते हैं। उसी गौमाता की रक्षा हेतु उनके रक्षकों का 17 जनवरी को बलिदान दिवस है जो परम् गौभक्त रामसिंह कूका के नेतृत्व में थे।*

*🚩17 जनवरी, 1872 की प्रातः ग्राम जमालपुर (मालेरकोटला, पंजाब) के मैदान में भारी भीड़ एकत्र थी। एक-एक कर 50 गौभक्त सिख वीर वहाँ लाये गये। उनके हाथ पीछे बँधे थे। इन्हें मृत्युदण्ड दिया जाना था। ये सब सद्गुरु रामसिंह कूका के शिष्य थे। अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने इनके मुह पर काला कपड़ा बाँधकर पीठ पर गोली मारने का आदेश दिया पर इन वीरों ने साफ कह दिया कि वे न तो कपड़ा बँधवाएंगे और न ही पीठ पर गोली खायेंगे। तब मैदान में एक बड़ी तोप लायी गयी।  अनेक समूहों में इन वीरों को तोप के सामने खड़ा कर गोला दाग दिया जाता। गोले के दगते ही गरम मानव खून के छींटे और मांस के लोथड़े हवा में उड़ते। जनता में अंग्रेज शासन की दहशत बैठ रही थी। कोवन का उद्देश्य पूरा हो रहा था। उसकी पत्नी भी इस दृश्य का आनन्द उठा रही थी।*

*🚩इस प्रकार 49 वीरों ने मृत्यु का वरण किया पर 50वें को देखकर जनता चीख पड़ी। वह तो केवल 12 वर्ष का एक छोटा बालक बिशनसिंह था। अभी तो उसके चेहरे पर मूँछें भी नहीं आयी थीं । उसे देखकर कोवन की पत्नी का दिल भी पसीज गया। उसने अपने पति से उसे माफ कर देने को कहा। कोवन ने बिशनसिंह के सामने रामसिंह को गाली देते हुए कहा कि यदि तुम उस धूर्त का साथ छोड़ दो, तो तुम्हें माफ किया जा सकता है। यह सुनकर बिशनसिंह क्रोध से जल उठा। उसने उछलकर कोवन की दाढ़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे बुरी तरह खींचने लगा। कोवन ने बहुत प्रयत्न किया; पर वह उस तेजस्वी बालक की पकड़ से अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा सका। इसके बाद बालक ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला दबाने लगा। यह देखकर सैनिक दौड़े और उन्होंने तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिये। इसके बाद उसे वहीं गोली मार दी गयी। इस प्रकार 50 कूका वीर उस दिन बलिपथ पर चल दिये।*

*🚩गुरु रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई0 की वसन्त पंचमी को लुधियाना के भैणी ग्राम में जस्सासिंह बढ़ई के घर में हुआ था। वे शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। कुछ वर्ष वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे। फिर अपने गाँव में खेती करने लगे। वे सबसे अंग्रेजों का विरोध करने तथा समाज की कुरीतियों को मिटाने को कहते थे। उन्होंने सामूहिक, अन्तरजातीय और विधवा विवाह की प्रथा चलाई। उनके शिष्य ही ‘कूका’ कहलाते थे।  कूका आन्दोलन का प्रारम्भ 1857 में पंजाब के विख्यात बैसाखी पर्व (13 अप्रैल) पर भैणी साहब में हुआ। गुरु रामसिंहजी गोसंरक्षण, स्वदेशी के उपयोग पर बहुत बल देते थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतन्त्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी।*

*🚩मकर संक्रान्ति मेले में मलेरकोटला से भैणी आ रहे गुरुमुख सिंह नामक एक कूका के सामने मुसलमानों ने जानबूझ कर गौहत्या की।  यह जानकर कूका वीर बदला लेने को चल पड़े।  उन्होंने उन गौहत्यारों पर हमला बोल दिया; पर उनकी शक्ति बहुत कम थी। दूसरी ओर से अंग्रेज पुलिस एवं फौज भी आ गयी। अनेक कूका मारे गये और 68 पकड़े गये। इनमें से 50 को 17 जनवरी को तथा शेष को अगले दिन मृत्युदण्ड दिया गया।*

*🚩अंग्रेज जानते थे कि इन सबके पीछे गुरु रामसिंह कूका की ही प्रेरणा है। अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में भेज दिया। 14 साल तक वहाँ काल कोठरी में कठोर अत्याचार सहकर 1885 में सदगुरु रामसिंह कूका ने अपना शरीर त्याग दिया।  उन सभी गौभक्तों को उनके बलिदान पर नमन 🙏*

*🚩भारतीय इतिहास में गौहत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं। लेकिन अभी तक गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका है। इसका सबसे बड़ा कारण राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी होना है। आप कल्पना कीजिये- हर रोज जब आप सोकर उठते हैं तब तक हज़ारों गायों के गलों पर छूरी चल चुकी होती है। गौहत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है। इनके दबाव के कारण ही सरकार गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है। वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो वहां सरकार गौहत्या रोकने में नाकाम है। आज हमारे देश की जनता ने नरेन्द्र मोदीजी की सरकार चुनी है। सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है। उसीके प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है। इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं की शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा की मांग को पूरा करे और गौहत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाए।*

जिहाले मस्ती माकुंबरंजिश बहारे हिजरा बेचारा दिल हैं - इस वाक्य का क्या अर्थ हैं

 

"जिहाले मस्ती माकुंबरंजिश बहारे हिजरा बेचारा दिल हैं" इस वाक्य का क्या अर्थ हैं और यह किस भाषा में हैं?


पंक्तियां मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म गुलामी के एक गाने की शुरुआत में कहीं गई हैं। दरअसल ये फारसी भाषा के शब्द हैं। ये पूरी लाइन इस प्रकार है

जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बा रंजिश,
बहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन,
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।

इसका अर्थ है मुझ गरीब(मिस्कीन) को रंजिश से भरी इन निगाहों से ना देखो, क्योंकि मेरा बेचारा दिल जुदाई(हिजरा) के मारे यूँ ही बेहाल है। जिस दिल कि धड़कन तुम सुन रहे हो वो तुम्हारा या मेरा ही दिल है।

इस गीत की पंक्तियों को अमीर खुसरो की शायरी से लिया गया है जो इस प्रकार है

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां।
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां। ।

यह शायरी फारसी और ब्रज के अनोखे सम्मेलन से बनाई गई है। इसमें खुसरो ने दो भाषाओं की विविधता द्वारा यह शायरी तैयार की थी इसका अर्थ है

मुझ गरीब को यूं आंखे इधर उधर दौड़ाकर और बातें बनाकर नजरअंदाज(तगाफुल) ना करो। मैं अब और जुदाई नहीं सह सकता तुमसे अय जान तुम क्यों नहीं आके मुझे सीने से लगा लेती हो।

आज उप्र की विकास दर चीन की विकास दर से ज़्यादा है

जो सोने की चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुए.... वह एक बार फिर पिछड़े के रूप में सत्ता हथियाने के इच्छुक हैं.... अंतहीन षड्यंत्र रच रहे हैं... हिंदुओं का विखंडन करने के लिए कोई कुचेष्ठा छोड़ नहीं रहे हैं....
                नीचे बालक रूप में... योगी आदित्यनाथ का बड़ा प्रसिद्ध चित्र है... ज़रा फटी पैंट देखिये... अपने पैरों से छोटी किसी और की पहनी चप्पलें देखिये... बचपन की गरीबी और मुफलिसी देखिये.... यही बच्चा आगे चलकर Bsc में प्रथम श्रेणी में पास होता है, गणित और भौतिकी में विशेष योग्यता पाता है.... 
           पिता की मृत्यु होती है,योगी आदित्यनाथ सन्यास की शपथ में बंधे थे, पिता के अंतिम दर्शन तक नहीं करते ! भाई ,भारतीय सेना में मामूली सैनिक हैं,कश्मीर मोर्चे पर तैनात हैं... कर्तव्यबोध , शपथ की प्रतिष्ठा में भाइयों से कभी सांकेतिक भेंट तक नहीं की !.... बहन और बहनोई... चाय की दुकान लगाते हैं... योगी भगवा पहनते हैं,बड़ा सस्ता और अक्सर बदरंग भी !... ज़मीन पर सोना... कोई AC... कूलर...हीटर नहीं... कड़कड़ाते जाड़े में सिर्फ एक मामूली चादर तन पर... नंगा सिर ! सुबह सुबह गौसेवा और पूजा !
            कोई और देश होता तो ऐसे राज्यसेवक पर गर्व करता... उस जमीन के चुम्बन करता, जिस पर इस योगी के चरण पड़े.... 
              इस योगी को एक चरित्रहीन लम्पट शख्स अपमानजनक तरीके से 'बाबा मुख्यमंत्री' कहकर अपमान करता है... आज उप्र की विकास दर... चीन की विकास दर से ज़्यादा है... उप्र बीमारू प्रदेश नहीं रहा... भारत के सभी प्रदेशों में उप्र दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था बन चुका है... प्रदेश सुरक्षित है... 24 घण्टे बिजली !... ला एंड ऑर्डर चाक चौबंद ! मग़र जातिवादी भेड़िए... फिर से UP को नरक प्रदेश बनाना चाहते हैं...
           हे राम... हे कृष्ण.... हे शंकर ... तुम्हारा यह भक्त... कभी फटी पैंट... आज भी सस्ता-बदरंग भगवा पहनने वाला यह योगी.... एक खुशबू की तरह हम लोगों की ज़िंदगी मे आया था, हमें पहली बार ऐसा शासक मिला था जो रंक था,मग़र उसने हमारे अंदर.... सनातन-हिंदू होने का अभिमान जगाया था ! ईश्वर हमे वरदान दो कि योगी की छाया हम यूपी के हिंदुओं पर बनी रहे....

श्रीराम जयराम जयजय राम....🙏

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

Statue of Equality - आचार्य रामनुजाचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा

'Statue of Equality' समानता को समर्पित मिशन



100 करोड़ में तैयार हुई आचार्य रामनुजाचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा , पूरे प्रोजेक्ट की लागत 1400 करोड़ ।

हैदराबाद में स्थापित की गई आचार्य रामानुजाचार्य की यह प्रतिमा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बैठी हुई प्रतिमा है , जिसे बनाने में 9 महीने का वक़्त लग गया ।
स्वामी रामनुजाचार्य की विशालकाय प्रतिमा का लोकार्पण देश के पीएम नरेंद्र मोदी इसी साल फरवरी में करेंगे , इस स्टैचू के साथ 108 मंदिर का निर्माण किया गया है , इसी के साथ आचार्य रामनुजाचार्य की एक छोटी प्रतिमा भी बनाई गई है जिसमे 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है । इस जगह को स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी ( Statue of Equality ) नाम दिया गया है . इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 1400 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं ।

स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को शास्त्रों के तहत बनाया गया है स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को बनाने में 18 महीने का समय लगा है , इसके लिए मूर्तिकारों ने कई डिज़ाइन तैयार किए और उनकी स्कैनिंग करने के बाद सबसे बेस्ट मूर्ति को विशाल रूप दिया गया ।
 
इस प्रतिमा की ऊंचाई 108 फ़ीट है , जबकि प्रतिमा में लगे त्रिदण्डम की उंचाई 138 फ़ीट है । टोटल प्रतिमा की हाइट 216 फ़ीट है । आचार्य रामानुजाचार्य की प्रतिमा में 5 कमल पंखुडिया , 27 पद्म पीठम , 36 हाथी , और प्रतिमा तक पहुंचने के लिए 108 सीढिया बनाई गई हैं ।


जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?

एक बात  वह है दवा निर्माण में उपयुक्त कच्चे माल की गुणवत्ता
एक ही साल्ट 10 हजार रु से लेकर 1 लाख रु तक की थोक कीमत में मिल सकता है अर्थात दवाइयों के साल्ट के थोक मूल्य में बहुत अंतर पाया जाता है जिसमें कहीं न कहीं गुणवत्ता जरूर मायने रखती है।
उदाहरण के लिए इस समय
पैरासिटामोल पाउडर का थोक मूल्य रु200-1200 के बीच है.

सहज सामान्य सिद्धांत (बेसिक थंब रूल) से समझा जा सकता है कि कौन मंहगा और उच्च गुणवत्ता वाला साल्ट प्रयोग करते होंगे और क्यों - जबकि दूसरे लोग क्यों सस्ता साल्ट यूज करते होंगे। पहले को अपनी साख बचाए रखना मुख्य उद्देश्य है भले उत्पाद महंगा क्यों न हो जाए जबकि दूसरे को बाजार में अपनी जगह बनानी है जिसके कारण लागत को घटाया जाता है कि खुदरा व्यापारियों को ज्यादा कमीशन और उपभोक्ता को कम कीमत से लुभाया जा सके।

बाजार से आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वो बाजार की तरह व्यवहार न करके मानवीयता और ईमानदारी का पालन करे?
हर जगह उद्यमी और निवेशक तो एक आम इंसान ही है जिनकी औरों की तरह ही जरूरतें और ख्वाहिशें हैं।
सबसे पहले यह समझना होगा कि पेटेंटेड मेडिसिन व नॉन-पेटेंटेड (जेनेरिक) मेडिसिन और ब्रांडेड मेडिसिन व नॉन-ब्रांडेड मेडिसिन ये दो नहीं बल्कि तीन चीजें हैं। राजनीति ने इन्हें गोलमाल कर रखा है।

पेटेंटेड मेडिसिन बिना लाइसेंस के कोई अन्य कंपनी नहीं बना सकती लेकिन पेटेंट अवधि खत्म होने के बाद उसे (जेनेरिक) कोई भी बना सकता है मतलब ब्रांड या नॉन-ब्रांड सब। तो मुद्दा ही नहीं क्योंकि जब पेटेंटेड मेडिसिन बिना पेटेंटधारी की अनुमति के कोई अन्य बना ही नही सकता तो सस्ता या महंगा कैसे होगा? मुद्दा है ब्रांडेड और नॉन-ब्रांडेड का जिसमे गुणवत्ता मायने रखती है।

सॉल्ट के थोक मूल्य के अलावा अन्य कारक जैसे श्रम, संयंत्र और मशीनरी, पैकिंग मेटेरियल, हाइजीन, दवा निर्माण में प्रयुक्त अन्य सामग्री (बॉन्डिंग, थिकनिंग, कोटिंग एजेंट आदि), छपाई, अनुकूल भंडारण और सुरक्षित परिवहन आदि में भी खर्च को घटाया बढ़ाया जा सकता है।

बाकी बचा औषधियों की गुणवत्ता के ऊपर सरकारी नियंत्रण, तो उस पर लिखने की क्या जरूरत? सबको पता है कि सरकारी तंत्र कैसे काम करता है।

बाकी ये मैने नहीं लिखा कि नॉन-ब्रांडेड दवा असर नहीं करेगी। मेरा कहने का मतलब है कि राजनीति और बाजार के दांव-पेंचों में फंसे बगैर अपनी हैसियत के अनुसार अच्छे डॉक्टर की सलाह माने क्योंकि कोई भी डाक्टर आपका दुश्मन नहीं है, हां थोड़ा बहुत लालच सबमें होता है; बाकी जमीन जायदाद बेच कर कुछ हासिल नहीं होता।

मानव हृदय इतना प्रभावशाली अंग

 

ये हैं दिल के बारे में कुछ मजेदार तथ्य:

  1. आपन ऊपर के एनिमेशन में जो देख रहे हैं वह आपके जीवन के दौरान लगभग 2.5 बिलियन बार होता है।
  2. एक वयस्क व्यक्ति का दिल एक बंद मुट्ठी के आकार का होता है और इसका वजन सिर्फ 340 ग्राम होता है। इसे 4 भागों में बांटा गया है: 2 अटरिया और 2 निलय।
  3. यह प्रत्येक धड़कन के साथ 85 ग्राम रक्त पंप करता है, जो एक दिन में 9,000 लीटर से अधिक के बराबर है, एक मिनट में हृदय शरीर में 5 लीटर रक्त पंप करता है; एक घंटे में, यह 400 लीटर है।
  4. एक महिला का दिल पुरुषों की तुलना में थोड़ा तेज होता है। 1 मिनट में, यह औसतन 8 बीट अधिक होता है।
  5. मानव हृदय प्रतिदिन 30 किलोमीटर तक ट्रक की आपूर्ति करने में सक्षम ऊर्जा उत्पन्न करता है। यदि आप जीवन भर उत्पन्न ऊर्जा की गणना करते हैं, तो आप चंद्रमा तक और वापस पृथ्वी पर आ सकते हैं।

धन्यवाद🙏

यूनिकॉर्न किस जानवर को कहते हैं? ये किस देश में पाए जाते हैं?

 

यूनिकॉर्न एक एकसिंगा पशु है और वर्तमान में स्कॉटलैंड का राष्ट्र पशु है

"इकसिंगा एकमात्र ऐसा पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।" पहले इसे एक मनगढ़ंत पशु समझा जाता था मगर २०१६ में हुए शोध और अमेरिकन जर्नल ऑफ अप्लाइड साइंसेज में प्रकाशित लेख के हिसाब से वेस्टर्न सर्बिया, कजाकिस्तान आदि में ये पाए जाते थे जो कि विलुप्त होती प्रजाति हैं।


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