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गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

आँखों का चश्मा उतारना - निम्न सामग्री का उपयोग करे

 नेत्र ज्योतिवर्द्धक उपचार

आँखों का चश्मा उतारना
निम्न सामग्री का उपयोग करे
बादाम 200 ग्राम ,
अखरोट 100 ग्राम ,
काली मिर्च 100 ग्राम ,
बारीक सौंफ 100 ग्राम ,
छोटी इलायची 20 ग्राम,
मिश्री(धागे वाली) 600 ग्राम

बादाम को रात को जल में भिगोकर रख दें और प्रात: छिलके निकालकर धूप में अच्छी तरह सुखा लें। इसको व अन्य सामग्री को अलग-अलग कूट पीस कर महीन चुर्ण कर लें व अच्छे से मिलाकर किसी बर्तन में रख लें।

इस मिश्रण की बीस ग्राम मात्रा दूध के साथ (गाय का दूध मिले तो ज़्यादा बेहतर) प्रतिदिन रात को भोजन से एक घंटे बाद सेवन करें। बच्चों को इससे आधी मात्रा दें तथा इस नुस्खे को कम से कम छ: माह तक प्रयोग करें और नेत्र ज्योति में चमत्कारी लाभ अनुभव कर ले।

धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए एक चुनौती बना हुआ है - ‘राम-राम’ वृक्ष

सियाराम मय सब जाग जानि... की कल्पना पूरे रामनगरी के कण-कण में साकार होती है। यहां की रज में श्री सीताराम के प्रति अगाध निष्ठा बसी है।

रामनगरी में ही एक ऐसा वृक्ष है जिसके तने, टहनियों व पत्तियों पर राम-राम अंकित मिलता है, जो कि अमिट है। अयोध्या के दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष है, जो धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है। आसपास के लोगों की इस पेड़ से अगाध निष्ठा है।

यहां वर्ष में एक बार मेला भी लगता है। कदम प्रजाति के इस पेड़ की खासियत ये है कि इसकी जड़ और डालियों पर भगवान राम का नाम लिखा है और धीरे-धीरे इस पेड़ पर भगवान का नाम लिखे होने की संख्या बढ़ती जा रही है।

आस्था, धर्म और विज्ञान अलग-अलग क्षेत्र होते हुए भी कहीं न कहीं आपस में जुड़े हैं। धर्म और आस्था की सीमा रेखा जहां समाप्त होती है वहीं से विज्ञान का क्षेत्र शुरू होता है।

आस्था और धर्म को बहुधा: विज्ञान की कसौटी पर कभी भी पूर्ण रूपेण नहीं कसा जा सकता है। दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष अपनी दूसरी पीढ़ी का पौधा है।
पहली पीढ़ी का पौधा वर्तमान वृक्ष से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित था, जो आसपास के लोगों द्वारा वहां की मिट्टी खोद लेने के कारण सूख गया था।

‘राम-राम’ वृक्ष जहां वर्तमान में स्थित है, वह यद्यपि एक उपेक्षित पुराना बाग है लेकिन धार्मिक परिदृश्य में इसे देखें तो जनश्रुति के अनुसार ये वृक्ष हनुमान जी द्वारा हिमालय से संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर श्रीलंका जाने के मार्ग में अवस्थित है। इस ‘राम-राम’ वृक्ष के तने के ऊपर एक सिल्की छिलका है जो समय-समय पर सूखकर जब हटता है तो उसके नीचे तने पर ‘राम-राम’, ‘सीता’ तथा श्रीरामसीता शब्द लिखे मिलते हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। ये तीनों शब्द वृक्ष के पूरे तने पर मिलते हैं।

वनस्पति विज्ञान के आधार पर जब इस वृक्ष की बात होती है तो अभी तक ‘राम-राम’ वृक्ष के वानस्पतिक नाम का निर्धारण नहीं हो सका है। जिस खेत में पेड़ है उसके मालिक उदय प्रकाश वर्मा बताते हैं कि इस पेड़ पर दशकों पूर्व अचानक भगवान राम का नाम लिखा देखा गया।
जिसके बाद से पेड़ के हर दल पर भगवान का नाम अंकित होता है। इस चमत्कारी पेड़ की महिमा जब लोगों को पता चली तो इस पेड़ की पूजा शुरू हो गई। प्रतिदिन सुबह आठ बजे एक पुजारी इस पेड़ की पूजा करते हैं। वहीं साल में पितृ विसर्जन के दिन इस पेड़ के नीचे मेला भी लगता है।

शेयर मार्केट से एक करोड़ रुपये कैसे कमायें?

 

तो सुनिए

ऐसे सभी शेयर खरीद लीजिए जो औने पौने दामों में मिल रहे हो जैसे कि

  1. trident 7, (2020)
  2. वोडाफोन आइडिया 8, (2020)
  3. Pnb 27, (2020)
  4. fsl 71, (2020)
  5. आंध्र सीमेंट 4, (2020)
  6. Ujaas 3, (2020)
  7. BCG

इत्यादि वो भी कम से कम पांच सौ शेयर सभी के।

जरूरी नहीं कि एक बार में ही सब उठा ले, अपने टारगेट सेट करें जैसे सौ शेयर लेने पर यदि एक हजार प्लस में प्रॉफिट हुआ तो सौ और शेयर खरीदूंगा।

जब प्रॉफिट होने लगे तो बेच दो तुरंत, (यदि आपका नजरिया कम समय के लिए है।)

लेकिन

सब इतनी जल्दी से नहीं होता समय लगता है, सब्र रखना पड़ता है

और सात या दस साल बाद देखिए इन्हे, की वैल्यू इनकी ऊपर की ओर जा रही है कि नहीं, यदी भाव बड़ा हुआ, तो किस्मत आपकी।

मतलब यह की यदि आप छोटे समय के लिए प्रॉफिट कमाना चाहते है तो आज खरीदिए और थोड़ा प्रॉफिट दिखने पर बेच दीजिए, लेकिन यदि आपकी सोच लंबी है तो लंबा समय का सोचे।

  1. ध्यान देने वाली बात यह है कि जो भी शेयर खरीदे उसमे कोई भी share गिरवी न रखा हो, ex आईटीसी ITC, HINDUSTAN UNILEVER, TCS, HDFC AMC, …
  2. मार्केट कैपिटल कम से कम पांच हजार करोड़ रूपए के ऊपर हो, आप चाहे तो घटा भी सकते हैं लेकिन इतना ही ज्यादा आप को टाइम लगेगा, करोड़पति बनने में।
  3. प्रोमोटर ज्यादा हो उस share के।
  4. उस share कि कंपनी में mutual फंड की हिस्सेदारी ज्यादा हो।
  5. बाहरी कंपनियों का शेयर में हिस्सेदारी भी ज्यादा हो

नहीं तो वही उत्तर मिलेगा जो नीचे दो विद्वानों ने दिया है।

ज्यादा के चक्कर में न रहे, शेयर बाजार एक कुआ है जिसमें जितना भी पैसा या पत्थर डालो, वह कम ही है।

उत्तर अभी मेरा अधूरा है क्यूंकि अभी मेरा मूड नहीं है ज्यादा बताने में, क्योंकि आजकल मेरे साथी फंडामेंटली स्ट्रॉन्ग शेयर ढूंढते हैं जो कुछ भी हो जाए गिरेगा नहीं, और यदि गिरेगा तो दो तीन महीनों में बड़ जाएगा उससे ज्यादा। जैसे HUL, INFOSYS, SBI CARDS, HDFC BANK, HDFC, HDFC LIFE, HDFC AMC, MUTHOOT FINANCE..

मूड अब बन गया है ये लीजिए:

मार्केट में nse में टोटल 1600 कंपनियां हैं, जिनमें से केवल 1328 एक्टिव हैं, जबकि bse में 5000 कंपनियां लिस्टेड हैं।

इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं की सब खरीद लिया जाए।

जो पैसा आप खुद के लिए कभी फालतू में खर्च करते हैं उससे अच्छा आप शेयर खरीद लें। वो भी उतने ही दाम का।

फालतू के खर्च

  1. गुटखा प्रति दिन अंदाजन खर्च 20₹ (मुझे पता नहीं क्योंकि मैं खाता नहीं)
  2. सिगरेट प्रति दिन अंदाजन खर्च 20₹
  3. दारू या बीयर साप्ताहिक खर्च 250₹
  4. चाट, फुल्की इत्यादि नहीं जोड़ा है, ये सब आप खुद देख लेना, हालाकि खा सकते हैं और इसके बदले कोई शेयर नहीं खरीदना, कसम से अच्छा नहीं लगेगा मुझे।

कुल मिला कर दैनिक खर्च (20+20+250/7)= 75₹ के आसपास।

जो कि कोई काम का नहीं यदि आप इन्हे waste करते हैं।

75*4=300₹ मासिक खर्च ।

सालाना छत्तीस सौ रुपए।

अब यदि ट्राइडेंट कंपनी का शेयर खरीदते हैं जो कि 7 ₹ के आसपास चल रहा है, जिसकी कंपनी का मार्केट कैपिटल 5000 करोड़ ₹ है।

तो इसको लेने में क्या बुराई है।

आलोक इंडस्ट्रीज जो कि अभी रिलायंस ने खरीदा है, उसकी कंपनी का शेयर भी 20–22₹ के आसपास है, बताइए इसको लेने में क्या बुराई है।

टोटल 6600 कंपनी हैं इसका यह मतलब नहीं कि सब खरीद लो, आंखे बन्द कर के।

जब टीसीएस का शेयर 11–20₹ के आसपास था तब इसका मार्केट कैपिटल 5000 करोड़ ₹ के आसपास था।

और अब देख लीजिए कि अभी कितना चल रहा है 2000₹ + (दो हजार के ऊपर)

उस समय यदि 100 शेयर भी खरीदे होते तो उस समय केवल 2000₹ लगते और अभी यदि बेचते तो कम से कम 2000*100= 2,00,000₹ तो कमा ही लेते, साथ ही साथ डिविडेंड मिलता वो अलग।

जरूरी नहीं कि सब उठा लो, आंखे बन्द करके।

और हां, इसका यह मतलब भी नहीं है कि आप अभी रिलायंस के नाम के सब शेयर खरीद लो जैसे की rpower, reliance infra क्योंकि स्टार्टिंग के जो पांच पॉइंट्स हमने बताए है उनमें से एक भी सही नहीं बैठता।

पेनी स्टॉक में इन्वेस्ट करने से पहले रिसर्च जरूर करे।

ऊपर दी हुई तस्वीर का मतलब ऐसे स्टोक्स में निवेश करना हैं जिसके बारे में आप जानते हो और खरीदना चाहते हो न कि इसलिए क्योंकि आप उस स्टॉक के प्राइस वैल्यू ज्यादा चाहते हो।

जो भी शेयर खरीदे सोच समझ कर खरीदें। कम से कम पांच बार सोच कर खरीदें।

उन पैसों को इन्वेस्ट करें जो काम के नहीं है, और उसके डूब जाने के बाद भी आपको गम न हो क्योंकि आप पहले से ही फालतू में खर्च करते थे।

हाल ही में लिखा गया है 12 फरवरी 2022 (कृपया नीचे पढ़े)✓

आए दिन आप यूट्यूब पर वीडियो देखते हो तो आपको दिखेगा की ये शेयर अभी आपको मात्र 15 का मिला रहा है, और इसका टारगेट 1500 बन रहा है, मौका न चूको, इनसे खास तौर से दूर रहे, क्योंकि इन्होंने पहले से शेयर खरीद रखा था जब इस शेयर की वैल्यू 5 रूपए थी (<मान लीजिए) अब आपको 15 पर खरीदवाने के लिए कह रहा है,

अब आप ध्यान से देखिए की उस वीडियो को एक बार चला कर देखिए (आपको उस वीडियो को सुनना नहीं है) की कितने लोगों ने सिर्फ उस वीडियो को देखा है, अंदाजन मान लीजिए बहुत कम सिर्फ 2000 (2k) लोगों ने देखा है, अब जब इतने लोगों ने देखा हैं तो कल आप उसी शेयर को देखना वह शेयर एक दम से अपर सर्किट में चलेगा, और जब उस शेयर की वैल्यू 15 से 30 या 45 या मान लीजिए 60 भी हो गई या पहुंच गया अपर सर्किट में, तो समझ लीजिए वहीं से लोअर सर्किट लगना चालू हो जायेगा।

और जिन चालबाजो ने आपको कहा था की 15 में ले लो, अब वो उनका पैसा 60 का बनने पर उससे बाहर निकल गए, और उनका खुद का पैसा 12 गुना बना, और लखपति बन गए।

लेकिन जिन्होंने उसे अपर सर्किट पर खरीदा वो उनकी लुटिया डूब गई, इस शेयर बाजार के समंदर में, इसलिए कभी भी इन विडियोज पर ध्यान न दे।

एक बार अपने स्टॉक एडवाइजर से जरूर संपर्क करें या फिर किसी बड़े से इसके बारे में चर्चा करे।

जिसको और ज्यादा जानकारी चाहिए तो मुझे msg करे।

मानव चिड़ियाघर: पश्चिमी दुनिया का शर्मनाक रहस्य, 1900-1958

मानव चिड़ियाघर: पश्चिमी दुनिया का शर्मनाक रहस्य, 1900-1958

[1]

चित्र में :- एक युवा फिलिपिनो लड़की को एक अन्य भयानक 1906 190 प्रदर्शनी 'में कोनी द्वीप, न्यूयॉर्क में एक बाड़े में लकड़ी की बेंच पर बैठे हुए चित्रित किया गया है।

इन चौंकाने वाली दुर्लभ तस्वीरों से पता चलता है कि दुनिया भर में तथाकथित मानव चिड़ियाघरों ’को बाड़ों में आदिम मूल निवासी’ को रखा गया है, ताकि पश्चिमी लोग उन पर तंज कस सकें और उन पर हमला कर सकें। भयावह छवियां, जिनमें से कुछ को हाल ही में 1958 के रूप में लिया गया था, दिखाते हैं कि काले और एशियाई लोगों को क्रूरता से व्यवहार किया गया था, जो लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।

19वीं और 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, पश्चिमी दुनिया खोजकर्ता और साहसी लोगों द्वारा वर्णित औपनिवेशिक शोषण के लिए "साहसी", "आदिम" लोगों को देखने के लिए बेताब थी।

[2]

उन्माद को खिलाने के लिए, अफ्रीका, एशिया और अमेरिका से हजारों स्वदेशी व्यक्तियों को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में लाया गया था, जिन्हें अक्सर संदिग्ध परिस्थितियों में "मानव चिड़ियाघरों" में अर्ध-कैद जीवन में प्रदर्शन के लिए रखा जाता था।

मानव चिड़ियाघर पेरिस, हैम्बर्ग, एंटवर्प, बार्सिलोना, लंदन, मिलान और न्यूयॉर्क शहर में पाया जा सकता है।

कार्ल Hagenbeck, जंगली जानवरों में एक व्यापारी और यूरोप में कई चिड़ियाघरों के भविष्य के उद्यमी, ने 1874 में समोआ और सामी लोगों को "शुद्ध रूप से प्राकृतिक" आबादी के रूप में प्रदर्शित करने का फैसला किया। 1876 ​​में, उन्होंने मिस्र के सूडान में कुछ जंगली जानवरों और नूबियों को वापस लाने के लिए एक सहयोगी को भेजा। न्युबियन प्रदर्शनी यूरोप में बहुत सफल रही और उसने पेरिस, लंदन और बर्लिन का दौरा किया।

1878 और 1889 के पेरिस वर्ल्ड के फेयर दोनों में एक ब्लैक विलेज (ग्राम नगर) प्रस्तुत किया। 28 मिलियन लोगों ने देखा, 1889 के विश्व मेले ने 400 स्वदेशी लोगों को प्रमुख आकर्षण के रूप में प्रदर्शित किया।

[3]

1900 के विश्व मेले ने मेडागास्कर में रहने वाले प्रसिद्ध डायरमा को प्रस्तुत किया, जबकि मार्सिले (1906 और 1922) में औपनिवेशिक प्रदर्शनियों और पेरिस (1907 और 1931) में भी मनुष्यों को अक्सर नग्न या अर्ध-नग्न रूप में प्रदर्शित किया गया।

[4]

चित्र में :- 20 वीं सदी की शुरुआत में न्यूयॉर्क के कोनी द्वीप में एक सर्कल में एक साथ बैठे कपड़े में फिलीपीनों का चित्रण किया गया है, जबकि अमेरिकियों की भीड़ बाधाओं के पीछे से देखती है।

पेरिस में 1931 की प्रदर्शनी इतनी सफल रही कि छह महीने में 34 मिलियन लोगों ने इसमें भाग लिया, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित द ट्रूथ ऑन द कॉलोनीज़ नामक एक छोटी सी काउंटर-प्रदर्शनी ने बहुत कम आगंतुकों को आकर्षित किया। खानाबदोश सेनेगल गांवों को भी प्रस्तुत किया गया।

1904 में, एपाचेस और इगोरोट्स (फिलीपींस से) 1904 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के साथ सेंट लुइस वर्ल्ड फेयर में प्रदर्शित किए गए थे। अमेरिका ने स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध के बाद, गुआम, फिलीपींस और पर्टो रीको जैसे नए क्षेत्रों को अधिग्रहित कर लिया था, जिससे उन्हें कुछ मूल निवासियों को "प्रदर्शित" करने की अनुमति मिली।

ग्रांट के कहने पर चिड़ियाघर के निदेशक विलियम होर्नडे ने बेंगा को चिंपांज़ी के साथ एक पिंजरे में प्रदर्शित किया, फिर दोहांग नामक एक संतरे के साथ, और एक तोता, और उसे द मिसिंग लिंक का लेबल दिया, जिसमें कहा गया था कि विकासवादी शब्दों में बेंगा जैसे अफ्रीकी करीब थे। वानर यूरोपीय थे। इसने शहर के पादरी के विरोध का सामना किया, लेकिन जनता ने इसे देखने के लिए कथित तौर पर झुंड बनाया।

बेंगा ने धनुष और तीर से निशाना साधा, सुतली घुमाई और एक ओरंगुटान से कुश्ती लड़ी। हालांकि, द न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार, "कुछ लोगों ने बंदरों के साथ एक पिंजरे में एक इंसान के देखे जाने पर आपत्ति जताई,", शहर में काले पादरी के रूप में विवाद छिड़ गया।

[5]

20 वीं शताब्दी के आरंभ में मानव चिड़ियाघरों में, प्रदर्शन पर स्वदेशी लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अफ्रीकी आदिवासी सदस्यों को भूमध्यवर्ती गर्मी के लिए पारंपरिक कपड़े पहनने की आवश्यकता थी, यहां तक ​​कि दिसंबर के तापमान में भी ठंड थी, और फिलिपिनो ग्रामीणों को मौसमी कुत्ते के खाने की रस्म को दर्शकों के सामने करने के लिए बनाया गया था। पीने के पानी की कमी और सैनिटरी स्थितियों को भयावह करने से पेचिश और अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ा।

चित्र में :-जर्मन प्राणीविज्ञानी प्रोफेसर लुत्ज़ हेक को हाथी और एक परिवार के साथ चित्रित किया गया है, जिसे वे 1931 में जर्मनी के बर्लिन चिड़ियाघर में ले आए थे।

[6]

"अंत में, यह मनुष्यों के वशीकरण पर नाराजगी नहीं थी जो मानव चिड़ियाघरों को समाप्त कर देते थे। द्वितीय विश्व युद्ध और उसके बाद के वर्षों में, जनता का समय और ध्यान कठोरता से दूर और भूराजनीतिक संघर्ष और आर्थिक पतन की ओर आकर्षित हुआ। 20 वीं शताब्दी के मध्य तक, टेलीविजन ने सर्कस की जगह ले ली और "चिड़ियाघर" की यात्रा की - मानव या अन्यथा - मनोरंजन के पसंदीदा मोड के रूप में, और मनोरंजन के लिए स्वदेशी लोगों का प्रदर्शन फैशन से बाहर हो गया।"

(फोटो क्रेडिट: लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस / बुंडेसरचिव)।

फुटनोट

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

जरा याद करो कुर्बानी तिरंगे_के_लिए_दी_जान**तारापुर शहीद दिवस 15 फरवरी*

*जरा याद करो कुर्बानी तिरंगे_के_लिए_दी_जान*

*तारापुर शहीद दिवस 15 फरवरी*
 *प्रति वर्ष की भांति बीते 07 फरवरी से लेकर 14 फरवरी तक #पाश्चात्यकरण संस्कृति की अंधी #मैराथन दौड में सम्मिलित हुए "आभासी पटल के दीवाने" को दूर से देखने का अवसर प्राप्त हुआ । इस दौड में सम्मिलित युवाओं ने एक से बढकर एक ने बेहतरीन प्रदर्शन किया जिनका लाईव चित्रण भी कुछ युवाओं ने सोशियल मीडिया पर किया...बेस्ट प्राईज उस तस्वीर को मिला जिसमे कुछ युवा प्रकृति की ओट में पहाड़ियों के मध्य गुफाओं से दौड़ते नजर आए , उनके पीछे पुलिस थी.... आपाधापी की इस दौड़ में उनके ऊंची एड़ी के सैंडिलों ने साथ नही दिया.... इस सप्तदिवसीय इम्तहान का परिणाम आगामी नौ माह के भीतर आज के पाश्चात्य समाज में देखने को मिलने की उम्मीद है .....फिर भी अगर आप चाहे तो इंटरनेट पर गायनोकोलॉजिस्ट से सम्पर्क साध कर ..... भविष्य की मुसीबतों..... माफ कीजियेगा ..….खेर अपने को क्या, इतने सालों से लिख रहा अगले वर्ष फिर लिख दूंगा....*

*बहराल....14 फरवरी की काली रात को बीते समय बीत चुका है एवं आज 15 फरवरी के सूर्योदय के साथ नई प्रभात हुई... आज जब मैने इतिहास के जीवट पन्नों पर जमी रज को अनाच्छादित कर देखा तो इस दिन यानि 15 फरवरी का अर्थ समझ आया....वैसे इस घटना का जिक्र कम ही होता है आज के दौर में..*

*मित्रों, आज ही के दिन यानि 15 फरवरी को एक खुन की होली खेली गई थी .......आप सोच रहे होगें कि 14 फरवरी के अगले दिन खुन की होली कैसी ? यह क्या मजाक है ? खेर , सीधी बात कहने का प्रयास करता हूँ .....*

  *15 फरवरी 1932 की अपरान्ह में सैकड़ों आज़ादी के दीवाने #मुंगेर ज़िला के #तारापुरथाने पर #तिरंगा लहराने निकल पड़े । उन अमर सेनानियों ने अपने हाथों में राष्ट्रीय तिरंगा और होठों पर #वंदे मातरम्', #भारत माता की जय' , का नारा , अंग्रेज भला यह कब सुनते उन्होने तो उन पर ताबडतोड #गोलिया बरसानी शुरू कर दी रैली में मौजुद भारतीयों ने हँसते-हँसते गोलियाँ अपने सीने पर खाई । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह सबसे बडे गोलीकांड में से एक था । 50 से अधिक भारतीय वीर सपूतों की शहादत के पश्चात स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया गया । उन अंग्रेजो ने हमारे शहीदों के साथ जो बर्बरता की उसे भी आज आपको जानना होगा, “शहीदों के शवो को वाहनों में लाद कर #सुल्तानगंज की गंगा नदी में बहा दिया गया ।“*

*हे मेरे युवाओं, बहुत प्रसन्न होते हो ना तुम पाश्चात्यकरण की अंधी दौड में सम्मिलित होकर । बीते कल यानि 14 फरवरी को कुछ युवाओं ने दुसरो की देखा देखी करते हुए फेस बुक, वाटस एप्प को इतना भर दिया कि मानो हमारा जन्म 14 फरवरी के लिए ही हुआ हो .... हलाकि इनमें से बहुत से अपनो ने पुलवामा के शहीदों को भी याद किया ....*

 *दोस्तो, मैं यह नही कहता कि हमे दुसरे देश की संस्कृति से प्रेम नही करना चाहिए, दुसरे देश की संस्कृति को इज्जत दो परन्तु अपने राष्ट्र की संस्कृति को कभी भूलना भी तो समझदारी नही । खैर कोई बात नही आओ आज ही से हम अपने भारत राष्ट्र की संस्कृति को अपनाने का संकल्प लेते हुए 15 फरवरी 1932 को शहीद हुए भारतीय वीरो को नमन करे .....*.

*जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम*

*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*

माघ पूर्णिमा संत रविदास जी की जयंती पर विशेष

*माघ पूर्णिमा संत रविदास जी की जयंती पर विशेष*

*आज संत रविदास जी महाराज की प्रत्येक नगर व शहर में शोभायात्रा निकलेगी हिन्दू समाज की तरफ से उस यात्रा का स्वागत करें और कल जन्म जयंती पर परिवार में बैठकर मंगल चर्चा के निमित्त इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए* 

रविदाजी को पंजाब में रविदास कहा जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस वर्ष 16 फरवरी 2022 को उनकी जयंती मनाई जाएगी।
 
संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।

उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास जी की प्रसिद्धि निरन्तर बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक मुस्लिम 'सदना पीर' उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उन पर हर प्रकार से दबाव बनाया गया,उनको लालच दिखाया गया,उनको डराया व धमकाया भी गया लेकिन संत रविदास तो हिन्दू समाज के संत थे उन्हें किसी मुस्लिम से मतलब नहीं था। उन्होंने साफ साफ मना कर दिया
 
संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास जी ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और हिन्दु संस्कृति के जीवन मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि 
*'रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच'*
 यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित किए गए है।

स्वामी रामानंदाचार्य  हिन्दू समाज के उच्च कोटि के महान संत थे। ब्राह्मण कुल में उनका जन्म हुआ था। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने  *'संतन में रविदास'* कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान के मेड़ता की बेटी और मेवाड़ की बहुरानी व कृष्णभक्त  मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी।
वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। 
संत रामानंद जी महाराज ने तथाकथित ऊंच-नीच की कुरीति को तिलांजलि देकर संत रविदास जी महाराज को दीक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और हिन्दू समाज में ऊंच-नीच की व्याप्त बुराई को दूर करने का उपदेश दिया।
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए संत रविदास जी महाराज ने भी मेवाड़ घराने की बहुरानी मीराबाई को दीक्षित कर हिन्दू समाज को ऊंच-नीच से ऊपर उठाकर गुणपूजा को प्रतिष्ठित करने का संदेश दिया।
*संत रविदास जी महाराज भक्ति आन्दोलन के दैदीप्यमान नक्षत्र थे। हिन्दू समाज उनका चिरकाल तक ऋणी रहेगा*

सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

देश-विदेश में 14 फरवरी को छाया रहा मातृ-पितृ पूजन दिवस

*🚩देश-विदेश में 14 फरवरी को छाया रहा मातृ-पितृ पूजन दिवस*

*14 फरवरी 2022*
azaadbharat.org
*🚩जब भी 14 फरवरी निमित्त मातृ-पितृ पूजन की बात आती है तो सबकी जुबान पर एक ही नाम आता है- बापू आसारामजी का, जिन्होंने इस अद्भुत पर्व की सौगात संपूर्ण विश्व को दी, जिसे आज विश्वपटल पर देश-विदेश की गणमान्य हस्तियों द्वारा सराहा जा रहा है।*

*सन 2006 से शुरू हुए इस पर्व ने आज समाज में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। ये पर्व न सिर्फ हिन्दू, बल्कि मुसलमान और ईसाई धर्म को मानने वाले भी बड़े उत्साह से मनाते देखे जा रहे हैं।*

*🚩कौन से माता-पिता चाहेंगे कि उनकी संतान चरित्रहीन हो???*

*किसी भी देश का युवावर्ग उस देश की रीढ़ की हड्डी होता है। पाश्चात्य कल्चर का अन्धानुकरण कर भारत का युवा चारित्रिक पतन की खाई में गिरता चला जा रहा था पर बापू आसारामजी की इस अनूठी मुहिम ने युवाओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और समाज में बढ़ती माता-पिता और बच्चों के बीच की दूरी को दूर किया।*

*इसलिए बापू आसारामजी द्वारा शुरू की गई इस अनूठी पहल को हर धर्म, हर जाति द्वारा सराहा गया है।*

*विश्व के अमेरिका, दुबई, सऊदी अरब, कनाडा, पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल, इटली, इंग्लैंड आदि कई देशों में स्कूल, कॉलेज, वृद्धाश्रम, समाजसेवी संस्थाओं, घर, परिवार, मोहल्ले आदि में जगह-जगह पर मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया गया।*

*🚩माता-पिता अपने बच्चों सहित अपने-अपने क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये कार्यक्रम आयोजित किये गए वहाँ-वहाँ बड़ी संख्या में पधारे और एक नये उत्साह, नये संस्कार, एक नयी दिव्य अनुभूति और एक अनोखे हर्ष के साथ सबके मुखमंडल प्रफुल्लित हो उठे।*

*सच में जिन्होंने भी इस पर्व को मनाया, अपने माता-पिता की पूजा की, अपनी दिव्य संस्कृति को अपनाया, उनके जीवन में कुछ नया देखने को जरूर मिला।*

*पूजन में आये परिजनों का कहना था कि हम अपने बच्चों को इतने ऊँचे संस्कार देने का कभी सोच भी नहीं सकते थे, जिन महापुरुष ने इस संस्कारी दिवस की नींव रखी है, जो हमने यहाँ अनुभव किया, तो हमें नहीं लगता कि उन्होंने कुछ गलत किया होगा! यह सब देखकर तो अब हमारी भी तीव्र इच्छा होने लगी है बापूजी के दर्शन की। देशभर से कई युवा सेल्फी वीडियो बनाकर मातृ पितृ पूजन दिवस को अपना समर्थन दे रहे हैं।*

*🚩ग्राउंड लेवल से लेकर सोशल मीडिया तक बड़े जोरशोर से मातृ-पितृ पूजन दिवस की धूम मची है।*

*आज ट्विटर पर लाखों ट्वीट्स द्वारा लोग बापू आसारामजी की इस अनूठी पहल का स्वागत करते दिखे।*

*🚩देखा जाए तो वैलेंटाइन डे भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है; ये भी सच है कि वैलेंटाइन डे के पीछे बाजार की ताकत है। भारत की सभी समस्याओं का समाधान हिंदू धर्म की जड़ों में ही छिपा है; भारत जब पूरी तरह हिंदू राष्ट्र हो जाएगा तो फिर से महान हो जाएगा, इसके लिए सतयुग की तरफ देश को लौटाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए।*

*आज जहाँ एक ओर वैलेंटाइन डे का प्रभाव अंधाधुंध बढ़ता जा रहा है तथा इसके कुप्रभाव व दुष्परिणाम समाज के सामने प्रत्यक्ष हो रहे हैं- एड्स, नपुसंकता, दौर्बल्य जैसी गुप्त बीमारियों, छोटी उम्र में ही गर्भाधान (Teenage Pregnency), ऑपरेशन आदि  का सामना समाज को करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर बापू आसारामजी के करोड़ों समर्थकों द्वारा हर साल देशभर में सभी स्थानों पर ग्राउंड लेवल हो या सोशल मीडिया की सभी साइट्स, मातृ-पितृ पूजन दिवस का प्रचार जनवरी से ही शुरू हो जाता है।*

*🚩अनादिकाल से भारत के महान संत ही समाज की रक्षा करते आये हैं। समाज को संवारने का दैवीकार्य महान ब्रह्मवेत्ता तत्वज्ञ संतों द्वारा ही होता आया है।*

*जब-जब समाज कुकर्म और पाप की गहरी खाई में गर्क होने लगता है, अधर्म बढ़ने लगता है तो किसी न किसी महापुरुष को परमात्मा (ईश्वर) धरती पर प्रकटाते हैं या स्वयं भगवान् धरती पर अवतार लेते हैं और इस दिशाहीन समाज को एक नयी दिशा देकर, समाज को सुसंस्कारित कर, समाज में धर्म की स्थापना करते हैं जैसा कि भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है।*

*🚩महापुरुषों की गाथा सुज्ञ समाज अनंत काल तक गाता रहता है। ऐसे ही कई महापुरुष जैसे- संत कबीर, गुरु नानकजी, संत तुलसीदासजी, संत लीलाशाहजी महाराज, संत तुकारामजी, संत ज्ञानेश्वरजी, स्वामी विवेकानंदजी, स्वामी अखंडानन्दजी आदि महान संतों का यश आज भी जीवित है।*

*करोड़ों-अरबों लोग धरती पर आते हैं और यूँ ही चले जाते हैं लेकिन संतों का नाम, आदर, पूजन व यश अनंत काल तक मानवमात्र के हृदयों में अंकित रहता है।*

*ऐसे ही संत आज इस धरा पर हैं लेकिन बहिर्मुख व कृतघ्न समाज को दिखता कहाँ है!*
*कहाँ पहचान पाते हैं हम उन संतों को!!*

*गुरुनानक जैसे महान संतों को जेल डलवा दिया जाता है। दो बार तो गुरुनानकजी को भी जेल जाना पड़ा। संत कबीरजी जैसों को वेश्याओं द्वारा बदनाम करवाया जाता है। स्वामी नित्यानंदजी के ऊपर यौन शोषण का झूठा आरोप लगाया गया था। लेकिन उनकी पूजा आज भी होती है क्योंकि "धर्म की जय और अधर्म का नाश" ये प्राकृतिक सिद्धांत है।*

*🚩आज समाज को एक अद्भुत प्यारा सा पर्व देकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने सभी के दिलों पर राज किया है, सबको प्रेम दिया है, सभी को सन्मार्ग पर ले चलने का बड़ा महान कार्य किया है।*

*कई समाज के बुद्धिजीवी तो संत आसारामजी बापू के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं लेकिन भारत में ही विदेशी षड्यंत्र द्वारा ( क्रिश्चयन मिशनरीज, विदेशी कंपनियों के फंड से ) उन्हें जेल भिजवा दिया गया और समाज मूकदर्शक बनकर देखता रहा।*

*जहां आज का मानव बिना चमत्कार के किसी को नमस्कार नहीं करता, वहीं आज भी बापू आसारामजी के करोड़ों अनुयायी उनके लिए पलकें बिछाये बैठे हैं।*

*बिना सत्य के बल के कोई करोड़ों के जनसमूह को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता, इतना तो हर समझदार इंसान समझ सकता है।*
*उनकी सत्प्रेरणा से देश-विदेश में 14 फरवरी को माता-पिता का आदर-सत्कार, पूजन करके करोड़ों लोगों ने मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया।*

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Kiss Day (व्यंग्य) आनन्द जोशी, जोधपुर

*Kiss Day (व्यंग्य)*
बीते कल (12-02-22) की लेखनी के आगे...

*उन लड़कों के चले जाने के बाद ....श्रीमती जी  ने मुझे समझाया , क्यों व्यर्थ में इन युवाओं के पीछे तुम अपनी बीपी बढ़ाते हो ... मैं बोला, तुम ठीक ही बोल रही हो । इन युवाओं को भविष्य में जब ठोकर लगेगी तब  इनको  समझ आएगी...*

*श्रीमतीजी के साथ हुई बातो ही बातो में समय कैसे निकल गया पता ही नहीं चला ... अगले दिन सुबह रेडियो में आज के दिन के बारे में पता चला कि आज का दिन किस डे वाला है .... श्रीमती से किया वादा  मुझे याद आ गया  , आज  मुझे  इस  युवाओ के विषय पर कुछ नही बोलना लेकिन  मन में उठने वाले भाव को मैं  रोक नही  पाया  ... पास पड़ी अपनी  डॉयरी व कलम  उठाई व लिखना शुरू कर  दिया..*

*....वर्तमान परिपेक्ष्य  को देखकर मैं दंग हू, मै दंग हू इस बात पर हु  कि मैं किस - किस पर  क्या क्या  व्यंग्य करू,  मैं जानता हॅूं  कि भारत में हर किसी को अभिव्यक्ति की आजादी है ओर इस आजादी के माहोल में  नेता, अभिनेता ओर सन्त   #किस    के कारण न जाने किस -किस   जेल में बंद  है ..... मैं यह भी जानता हूँ कि ये  किस, किसी जमाने मे  पवित्र  हुवा करता था और  कई मायने में आज भी उतना ही पवित्र  है  जैसे कि  एक किस (चुम्बन)  मंगल, भगत,  राजगुरु,  सुखदेव,   खुदीराम, राजेन्द्र लाहिड़ी, बिशमिल, अशफाक , खुदीराम, तिलका माझी  व अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपने फाँसी के फंदे  को #किस  देकर देश के  लिए  फाँसी पर  झूल गए थे और एक किस आसाराम, रामपाल, रामरहीम  ने भी दिया नतीजन वो किसी जेल में बंद है ..इसी एक किस के कारण  शिल्पा शेटी दीदी  के पतिदेव राज कुंदा  भाईसाहब को कई तकलीफ झेलनी पडी..ओर  न जाने ऐसे कितने  गुमनाम लोग है  जिनके  किस के बहुत से  किस्से हुए .. .  आज भी  अनेक  किस्से सफेद पोश में   चांद के काले  धब्बे की तरह चोली दामन के साथ की तरह  साथ रहते है... ओर भी  किस  के  अनगिनत  किस्से है, ओर हमारे मारवाड़ की ये कहावत भी सही है,  हर कुवे में भांग गुली है .....*

*लेकिन  माँ    द्वारा अपनी संतान को   वात्सल्य, प्रेम, अपनापन व  निश्छल  भाव के साथ   दिया  जाने वाला किस,  जिसकी  पवित्रता की मिसाल संत दिया करते है  ।*

*मुझे  ये तो नही पता  किस के लिए आज का  युवा किस ड़े मना रहा है  लेकिन    मां की ममता को किस डे मनाने के लिए कैलेंडर में 13 फरवरी का इंतज़ार नही करना पड़ता ।*

*आज मैं  वास्तव में दंग हूँ कि    किस - किस पर  क्या क्या  क्या व्यंग्य करू ......* 

*....लिख ही रहा था, इतने में श्रीमती जी पास आई... ओर बोली....तुम नही सुधरोगे....बोलने का मना किया तो मन की बात लिख डाली ....  मैं बोला लिखी  तो अपने मन की बात है ना,  टेलीप्रॉम्पटर  पर देख कर बोली तो नही ना...... थोड़ा  मुस्कुरा कर रसोई में चली गई.... पीछे से मैंने  धीरे से चुटकी ली और  बोला.... आज डे ....किस का है, मोहतरमा.... इतने में रसोई से  बेलन घुमते हुवे  धड़ाम से मेरे पास  आकर  गिरी😊...... शुक्र है बाल बाल बच गया..... वरना किस डे के चक्कर मे सर के बचे केशो को किस किस जगह पर थे ढूंढना पड़ता😄*

(इस सीरीज का अंतिम व्यंग्य कल, अगर समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)

*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

हग डे (व्यंग्य) आनन्द जोशी, जोधपुर

हग डे (व्यंग्य)
बीते कल (11-02-22)की लेखनी से आगे.....

*.... उस बूढ़ी माँ के आँखो का तारा जिसे अपनी माँ को संभालने का भी उसके पास वक़्त ना था ओर सब कुछ जानते हुवे भी उसकी माँ के ममत्व का नीर उसके चक्षुओ से अवविरल छलकना .... यह सब सोच कर रात भर मुझे नींद नही आई......*.

*सुबह श्रीमती चाय के प्याला से मेरी आँख खुली, पास आकर वो बैठी गई, लग रहा था उसे मेरी ज्यादा चिंता है, वैसे भी उम्र के अंतिम पड़ाव में पति-पत्नी ही एक दूसरे का सहारा होते है.....हम बातें ही कर रहे थे कि इतने में घर की बेल (घण्टी) 2-3 बार बजी, दरवाजा खोला तो 2-3 युवा घर की अंदर आकर छुपने लगे.... हाथ जोड़कर मुझसे बोले अंकल हमे बचा लो, अब हम गलती नही करेगे..... माझरा समझ पाता इतने में पुलिस के दो सिपाही पीछा करते-2 आ गए ..... पूछा कि कुछ युवक आपके घर मे आये है ?.....पर्दे के पीछे छीपे युवा ....हाथ जोड़कर... इशारों में कहने लगे हमे पुलिस से बचा लो..... उन युवाओं की दयनीय स्थिति को देखकर पुलिस सिपाही के सम्मुख मैने झूठ बोला कि युवा नही आये...... पुलिस चली गई, युवक बाहर आये, कारण पूछा तो आँखें नीची कर बोले , रोज हम टीवी सीरियल देखते है, कल उसमे बताया कि आज हग डे , सीरियल में लड़को ने अपनी कॉलेज में हग डे मनाया.…...हमने भी आज ये करने का प्लान बनाया....सुबह सुबह ही कॉलेज में लड़की साथी से हम गले मिलकर हग डे मनाया ...इसकी भनक कॉलेज प्रशासन को लगी, उन्होंने पुलिस को सूचना दी, ओर हम भागते भागते यहां पहुच आए......*

*मैने उनको सुन कर पूछा तुम लोग ऐसा क्यों करते हो...वो बोले अब नही करेंगे । मैने पूछा तुम्हे कैसे पता चलता है कि आज रोज डे है , हग डे है आदि.... आदि.... वो बोले व्हाट्सप, फेसबुक, इंस्टा, टीवी, व सोशियल मीडिया के अन्य आयाम से हमे पता चल जाता है । मैंने उनसे कहा सावन के बाद रक्षा बंधन, कार्तिक मास में दीवाली, फाल्गुन में होली का त्योहार आता है इन सभी त्योहार का महत्व होता है ....एक संस्कृति, एक प्रेरक सीख मिलती है, हमारे त्योहार में.....अगर हम अपने धर्म के त्योहार मनाते हैं तो अपने राष्ट्र के सभ्य नागरिक कहलाते हैं, दूसरे राष्ट्र की संस्कृति जिससे हम अनजान हैं बिना सोचे समझे उनकी संस्कृति का अनुसरण करना हमें गर्त की ओर ढकेलता है , जैसे कि आज तुम्हारे पीछे पुलिस पड़ी है......हग करो, जरूर करो अपनी जननी, पिता , निर्धन से हग करो, सुदामा कृष्णा राम भरत की तरह हग करो उन युवाओं ने अपने कान पकड़े , माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने का वचन देकर अपने घर को गए.......*
(शेष कल, अगर सोचने का समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)

*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*

प्रोमीस डे ( व्यंग्य) - आनन्द जोशी, जोधपुर

*प्रोमीस डे ( व्यंग्य)*

बीते कल (10-02-22)की लेखनी से आगे.....

*...घर पहुचा तो चिन्ता की लकीरें मस्तक पर देख श्रीमती  पानी की गिलास दी, ओर बोली जमाना तुम्हारे अकेले से नही बदलेगा....तुम्हे कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ? सोचा है कभी तुमने ? ..... दुनिया की छोड़ो, वो चाहे  किसी का भी दिन मनाए ?  .... तुम अपना माथा क्यो खपाते हो..... उनकी डाट में प्रेम स्प्ष्ट झलक रहा था....अब थोड़ा आराम कर लो, मैं तुम्हारे  पैर दबा देती हूं..... ओर वो मेरे पैर दबाते हुवे बोली, कल शुक्रवार है माँ संतोषी माता के दर्शन व   मोर को चुगा डालने चलना है, कल  ।  ऑटो टेक्सी वाले से बात कर लेना । मैं मन मे सोचने लगा कि पत्नी के कितने रूप होते है लक्ष्मी  रूप धर कर वो ससुराल को स्वर्ग भी बना सकती है और  वो चाहे तो.....*

 *अगले दिन  अपरान्ह  में मै टेक्सी मे श्रीमतीजी के साथ संतोषी माता के दर्शन किये....मोर व अन्य पक्षियों को दाना- पानी- चुगा डाल पैदल ही  घर की ओर लौट  रहे थे कि....   राह में  पानी पीने की  इच्छा  हुई....... हलाकि सामने दुकान में  #बिसलेरी   बोतल उपलब्ध थी....... लेकिन सोचा जल को खरीदने की बजाय  किसी घर से मांग कर मुफ्त में  ही  पी लेते है ...... वैसे भी आजकल  मुफ्त के वादे  करने से  #सरकार तक बन जाती है ......  बाद में भलेही  किये वादे पर झाड़ू लगें या चल जाये साइकिल क्या फर्क पड़ता है....जिसको  खिलना होता खिल ही जाता है..... कुछ ही दूर विराने में एक भवन नजर आया । पानी की चाहत में, उस भवन के  समीप पहुचा ...  भवन के मुख्य  द्वार  पर एक #बुढी  माँ टकटकी लगाए हुए   बैठी  थी....मैं अपनी पत्नी के साथ   उसके  निकट  जा ही रहा था कि पहले तो दूर से देखकर वो  मुस्कराई ... समीप पहुचा तो  थोड़ी उदास हुई...... उसके चेहरे की झुरिया से    बूढ़ी माँ की उम्र 85-90 वर्ष नजर आ रही थी ....शायद उन्हें  किसी  अपनो का इन्तजार  था  ....  बूढ़ी आँखों ने मुझे व पत्नी को देख शायद धोखा खा लिया हो....इस बड़े   भवन में   बहुत से बुजर्ग महिलाए  एव पुरूष   थे ....  मैंने वृद्धा को..... माँ.....  से सम्बोधित कर  बोला..... , माई मुझे #पानी पीना है .. क्या  हमे पिलाओगी*   .

 *माँ शब्द सुनते ही  .... उस वृद्ध माई  मे  नई  जान आ गई हो....  ऐसा लग रहा था कि शायद  मरु भूमि  की तपती रज पर   अनन्त वषों के  बाद  मेघ की  कृपा हुई  हो....बूढ़ी माँ  अपनी  क्षमता से  अधिक .... दौडी ...  भवन से   पानी का लौटा छलकाते हुवे  मेरे समीप  ले आई ..... मै  यह नही समझ पा रहा था कि  मैं इसस माँ   के हाथ में पकड़े लोटे से  कंठ की प्यास बुझाऊ  या   माँ के आँखों से अविरल छलकते  प्रेम के  अश्रुधारा का पान करू ....*


*उस माँ के प्रेम, स्नेह के   नीर का पान कर मैने  पुछा, माई तुम दरवाजे पर किसकी राह  तक  रही हो ?.....ओर इस भवन में सभी  रहवासी  वृद्धजन क्यों है ? ...... माई बोली बेटा....यह #वृद्धाश्रम है  यहाँ हम सभी  वृद्धजनों को हमारे  ही अपने #रिश्तेदारो ने   रहने को मजबुर किया है ....  इतना बोली ही थी कि,  माई की  आंखों में फिर से  अश्रुधारा बह उठी..... माई से मैने फिर से सवाल किया....., माई   तुम दरवाजे पर किसका इन्तजार कर रही थी ? ..... वो बोली....... बेटे, आज से 15 वर्ष   पूर्व मेरे बेटे-बहु ने मुझे इस आश्रम में  छोड  दिया ...ओर मुझसे यह  बोल कर  चले गये थे  कि ...... हम एक महीने के लिए  पोते की आगे की  पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे है, जब  वापस आयेगें तो तुम्हे  घर लेकर जायेगें ..... तब तक तुम यही रहना.....*.  

*....माई  अपने  आंखो से अश्रुधारा पुछते हुए  बोली ,  बेटे उस बात को महीने ,...  वर्ष  बीत गए पर  आज तक  वो मुझे  लेने  नही आए ....... पर  आज सुबह इस आश्रम में लगी  टीवी पर  मैने  देखा ...  आज #प्रोमीस डे  है तो.. मैने सोचा कि  आज  मेरे    बेटा   बहुँ जरूर आएंगे क्यो कि उन्होंने   प्रोमीस(वादा)   किया था........ ओर आज #प्रॉमिसडे है  मैं  उनकी राह तक रही हूँ ....बेटे..... मैने दूर से तुझे व तेरी पत्नी को देखा तो एकबार  लगा कि मेरे बेटे बहु मुझे लेने आ गए......लेकिन तुम वो नही हो..... उस माँ ने मुझसे कहा बेटे, क्या ऐसा होता है प्रोमिस.....* 

 *मेरे पास  उस माई को प्रतिउत्तर देने हेतु सिवाय शीश झुकाने के अलावा कोई शब्द ना था ....मैने माई को नम आंखों से  हाथ जोड़ निकल आया  ....ओर प्रॉमिस किया  आपस मे कि हम पति- पत्नी जीवन के अंतिम पड़ाव तक हम जुदा ना होंगे... भलेही संताने अपने अपने अलग अलग घर बना ले....हम 15 - 15 दिन में विभक्त ना होंगे......*

(शेष कल, अगर सोचने का  समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)

*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*

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