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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

विज्ञान की कुछ शानदार और मंत्रमुग्ध कर देने वाली घटनाएं क्या हैं?

 

1) मरक्यूरी और अलुमिनियम का आपस में रिएक्ट करना।

2) चुम्बकीय पुट्टी

3) बैक्टेरिया का शिकार करती मानव श्वेत रक्त कौशिका (white blood cell)

4) मोमबत्ती का उसी के धुएं से वापस आग पकड़ना

5) चुम्बकीय फिरकी का हवा में तैरना

6) काँच का टूटना

7) ऑक्टोपस का पानी में रंग ब रूप बदलना

8) ज्वेल वीड का अपना बीज फैलाना

9) पाइन कोन का भीतर बीज फैलाना

10) प्लाज्मा का सूर्य की सतह पर से फूटना

11) चंद्रमा का एक महीने चक्कर लगाना

12) साँप के जहर का इंसानी खून से मिलना

जानकारी स्त्रोत :

[1]

फुटनोट

[1] Rohit Virmani's answer to What are some cool and mesmerizing science phenomena's in pictures? in *˚˚*One World I One Life*˚˚*

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’

भगवान श्रीराम का विजय-मन्त्र!!!!!!!


भगवान श्रीराम का विजय-मन्त्र : ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’

भगवान के ‘नाम’ का महत्व भगवान से भी अधिक होता है । भगवान को भी अपने ‘नाम’ के आगे झुकना पड़ता है । यही कारण है कि भक्त ‘नाम’ जप के द्वारा भगवान को वश में कर लेते हैं ।

जब हनुमानजी संकट में थे, तब सबसे पहले ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ मन्त्र नारदजी ने हनुमानजी को दिया था । इसलिए संकट-नाश के लिए इस मन्त्र का जप मनुष्य को अवश्य करना चाहिए । यह मन्त्र ‘मन्त्रराज’ भी कहलाता है क्योंकि—

यह उच्चारण करने में बहुत सरल है।

इसमें देश, काल व पात्र का कोई बंधन नहीं है अर्थात् हर कहीं, हर समय व हर किसी के द्वारा यह मन्त्र जपा जा सकता है ।

इस मन्त्र का नाम विजय-मन्त्र क्यों ?

सत् गुण के रूप में (निष्काम भाव से) इस मन्त्र के जप से साधक अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है ।

रजोगुण के रूप में (कामनापूर्ति के लिए) इस महामन्त्र के जप से मनुष्य दरिद्रता, दु:खों और सभी आपत्तियों पर विजयप्राप्त कर लेता है ।

तमोगुण के रूप में (शत्रु बाधा, मुकदमें में जीत आदि के लिए) इस मन्त्र का जप साधक को संसार में विजयी बनाता है और अपने विजय-मन्त्र नाम को सार्थक करता है।

सच्चे साधक (गुणातीत जिसे गीता में स्थितप्रज्ञ कहा गया है) को यह विजय-मन्त्र परब्रह्म परमात्मा का दर्शन कराता है। इसी विजय-मन्त्र के कारण बजरंगबली हनुमान को श्रीराम का सांनिध्य और कृपा मिली । समर्थ गुरु रामदासजी ने इस मन्त्र का तेरह करोड़ जप किया और भगवान श्रीराम ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे ।

इस मन्त्र में तेरह (13) अक्षर हैं और तेरह लाख जप का एक पुरश्चरण माना गया है । इस मन्त्र का जप कर सकते हैं और कीर्तन के रूप में जोर से गा भी सकते हैं।

इस मन्त्र को सच्ची श्रद्धा से जीवन में उतारने पर यह साधक के जीवन का सहारा, रक्षक और सच्चा पथ-प्रदर्शक बन जाता है।

लंका-विजय के बाद एक बार अयोध्या में भगवान श्रीराम देवर्षि नारद, विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के साथ बैठे थे । उस समय नारदजी ने ऋषियों से कहा कि यह बताएं—‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’

इस पर सभी ऋषियों में वाद-विवाद होने लगा किन्तु कोई भी इस प्रश्न का सही निर्णय नहीं कर पाया । तब नारदजी ने कहा—‘निश्चय ही ‘भगवान का ‘नाम’ श्रेष्ठ है और इसको सिद्ध भी किया जा सकता है ।’

इस बात को सिद्ध करने के लिए नारदजी ने एक युक्ति निकाली । उन्होंने हनुमानजी से कहा कि तुम दरबार में जाकर सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम करना किन्तु विश्वामित्रजी को प्रणाम मत करना क्योंकि वे राजर्षि (राजा से ऋषि बने) हैं, अत: वे अन्य ऋषियों के समान सम्मान के योग्य नहीं हैं ।’

हनुमानजी ने दरबार में जाकर नारदजी के बताए अनुसार ही किया । विश्वामित्रजी हनुमानजी के इस व्यवहार से रुष्ट हो गए । तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘हनुमान कितना उद्दण्ड और घमण्डी हो गया है, आपको छोड़कर उसने सभी को प्रणाम किया ?’ यह सुन विश्वामित्रजी आगबबूला हो गए और श्रीराम के पास जाकर बोले—‘तुम्हारे सेवक हनुमान ने सभी ऋषियों के सामने मेरा घोर अपमान किया है, अत: कल सूर्यास्त से पहले उसे तुम्हारे हाथों मृत्युदण्ड मिलना चाहिए ।’

विश्वामित्रजी श्रीराम के गुरु थे अत: श्रीराम को उनकी आज्ञा का पालन करना ही था ।‘ श्रीराम हनुमान को कल मृत्युदण्ड देंगे’—यह बात सारे नगर में आग की तरह फैल गई । हनुमानजी नारदजी के पास जाकर बोले—‘देवर्षि ! मेरी रक्षा कीजिए, प्रभु कल मेरा वध कर देंगे । मैंने आपके कहने से ही यह सब किया है ।’

नारदजी ने हनुमानजी से कहा—‘तुम निराश मत होओ, मैं जैसा बताऊं, वैसा ही करो । ब्राह्ममुहुर्त में उठकर सरयू नदी में स्नान करो और फिर नदी-तट पर ही खड़े होकर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’—इस मन्त्र का जप करते रहना । तुम्हें कुछ नहीं होगा।

दूसरे दिन प्रात:काल हनुमानजी की कठिन परीक्षा देखने के लिए अयोध्यावासियों की भीड़ जमा हो गई । हनुमानजी सूर्योदय से पहले ही सरयू में स्नान कर बालुका तट पर हाथ जोड़कर जोर-जोर से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करने लगे।

भगवान श्रीराम हनुमानजी से थोड़ी दूर पर खड़े होकर अपने प्रिय सेवक पर अनिच्छापूर्वक बाणों की बौछार करने लगे। पूरे दिन श्रीराम बाणों की वर्षा करते रहे, पर हनुमानजी का बाल-बांका भी नहीं हुआ। अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र उठाया । हनुमानजी पूर्ण आत्मसमर्पण किए हुए जोर-जोर से मुस्कराते हुए ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करते रहे । सभी लोग आश्चर्य में डूब गए ।

तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘मुने ! आप अपने क्रोध को समाप्त कीजिए। श्रीराम थक चुके हैं, उन्हें हनुमान के वध की गुरु-आज्ञा से मुक्त कीजिए । आपने श्रीराम के ‘नाम’ की महत्ता को तो प्रत्यक्ष देख ही लिया है । विभिन्न प्रकार के बाण हनुमान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके । अब आप श्रीराम को हनुमान को ब्रह्मास्त्र से न मारने की आज्ञा दें ।’

विश्वामित्रजी ने वैसा ही किया । हनुमानजी आकर श्रीराम के चरणों पर गिर पड़े। विश्वामित्रजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकी श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति की प्रशंसा की।

राम से बड़ा राम का नाम!!!!!!!!!

गोस्वामी तुलसीदासजी का कहना है—‘राम-नाम’ राम से भी बड़ा है । राम ने तो केवल अहिल्या को तारा, किन्तु राम-नाम के जप ने करोड़ों दुर्जनों की बुद्धि सुधार दी । समुद्र पर सेतु बनाने के लिए राम को भालू-वानर इकट्ठे करने पड़े, बहुत परिश्रम करना पड़ा परन्तु राम-नाम से अपार भवसिन्धु ही सूख जाता है ।

कहेउँ नाम बड़ ब्रह्म राम तें ।
राम एक तापस तिय तारी ।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी ।।
राम भालु कपि कटकु बटोरा।
सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ।।
नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं ।
करहु विचार सुजन मन माहीं ।।

मन्त्र की व्याख्या,इस मन्त्र में—
‘श्रीराम’—यह भगवान राम के प्रति पुकार है ।
‘जय राम’—यह उनकी स्तुति है
‘जय जय राम’—यह उनके प्रति पूर्ण समर्पण है ।

संसार का मूल कारण सत्व, रज और तम—ये त्रिगुण हैं । ये तीनों ही भव-बंधन के कारण हैं । इन तीनों पर विजय पाने और संसार में सब कुछ ‘राम’ मानने की शिक्षा देने के लिए इस मन्त्र में तीन बार ‘राम’ और तीन ही बार ‘जय’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

मन्त्र का जप करते समय मन में यह भाव रहे—‘भगवान श्रीराम और सीताजी दोनों मिलकर पूर्ण ब्रह्म हैं । हे राम ! मैं आपकी स्तुति करता हूँ और आपके शरण हूँ ।’

हींग कैसे बनती है?

 

हींग कैसे बनती है, यह बात ज्यादातर लोग नहीं जानते , यहाँ तक कि जो अपने खाने में हींग का बहुतायत से प्रयोग करते हैं वह भी इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते।

हींग न केवल भारतीय खाने की शान है अपितु आयुर्वेद में हींग का बहुत महत्व है, यह कई बिमारियों के उपचार में भी काम आती है।

हींग कैसे बनती है?

जिस स्वरुप में में हम हींग का प्रयोग करते हैं वह उस स्वरुप में पैदा नहीं होती है। बाजार में मिलने वाला हींग का पाउडर शुद्ध हींग नहीं होता बल्कि हींग के साथ अन्य खाद्य पदार्थ मिला कर हींग का पाउडर बनाया जाता है।

हींग किसी भी फैक्ट्री में नहीं बनता बल्कि एक प्रकार के पौधे से प्राप्त होता है। हींग का पौधा एक बारहमासी शाक है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसनेवाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है।

हींग की खेती

इसकी खेती से जुड़े भी कई रोचक तथ्य है। वैसे तो हींग की खपत सबसे ज्यादा भारत में होती है लेकिन इसकी पैदावार भारत में न के बराबर होती है। इसकी खेती मुख्य रूप से अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान और बलूचिस्तान में होती है।

इन देशों में जहाँ इसकी खेती होती है उसके बीजों पर सरकारों की सख्त नज़र होती है और इसका बीज निर्यात करने पर पूरी तरह से पाबंदी है। यहाँ तक की चोरी-छुपे इसका बीज अन्य देशों में भेजने पर सख्त दंड का भी प्रावधान है।

इसके बारे में कहा जाता है कि 4 ईसा पूर्व अलेक्सेंडर इसे अपने साथ लाया था।

हींग के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसे “शैतान की लीद” (Devil’s Dung) भी कहा जाता है। इसकी तीक्ष्ण गंध के कारण इसे ऐसा कहा गया होगा।

भारत में हींग की खेती

भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है लेकिन इसकी पैदावार भारत में नहीं होने के कारण इसके आयत में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है।

अब भारत में भी इसकी खेती के प्रयास शुरू किये गए हैं। कश्मीर और हिमाचल में इसकी पैदावार करने की कोशिश की जा रही है जिसमें कुछ सफलता भी मिल रही है।

हींग के उपयोग

खाने में प्रयोग

विशेषकर हींग का प्रयोग मसलों के रूप में किया जाता है लेकिन आयुर्वेद

में इसे एक औषधि भी बताया है जिसकी सहायता से कई रोगों का इलाज भी किया जाता है।

हींग की तीक्ष्ण गंध के कारण इसे खाना बनाने में लहसुन की जगह भी प्रयोग किया जाता है और जो लोग लहसुन का सेवन नहीं करते हैं वह इसका ज्यादा उपयोग करते हैं।

औषधीय प्रयोग

पेट सम्बंधित रोगों में प्रयोग – आयुर्वेद दवाओं के साथ-साथ घरेलु उपचार हेतु भी पेट के रोग जैसे गैस, अम्लता , पेटदर्द आदि में हींग का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद दवा में हिंग्वाष्टक चूर्ण में हींग एक प्रमुख घटक होता है जिसे गैस और अम्लपित्त रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।

दांत दर्द में फायदेमंद – दांत में दर्द होने पर हींग का छोटा सा टुकड़ा दर्द वाली जगह रख कर दबा दें। इससे दांत दर्द में राहत मिलती है।

मासिकधर्म सम्बंधित परेशानियों में – 1 गिलास पानी में एक चुटकी हींग, आधा चम्मच मेथी पाउडर व काला नमक मिला कर दिन में 2 बार पूरे माह पीने से मासिक धर्म

सम्बंधित परेशानियाँ जैसे पेट दर्द, अनियमितता आदि से राहर मिलती है।

श्वास रोगो में – किसी वैद्य की देखरेख में इसका प्रयोग कर कई जटिल बिमारियों से निजात पायी जा सकती है।

कान दर्द में – तिल के तेल में हींग डाल कर उसे गर्म करें और ठंडा होने पर कान में डालने से कान दर्द में फायदा होता है।

हींग में एंटी बैक्टीरियल, एंटी वाइरल और दर्द निवारक गुण होने के कारण कई इलाज में इसका प्रयोग किया जाता है।

दवा के रूप में प्रयोग करने का आसान तरीका – निम्बू हींग का पानी रोज़ पियें

बनाने का तरीका –

सामग्री – दो छोटे चम्मच हींग का पाउडर (शुद्ध हींग नहीं), 1 छोटा चम्मच जीरा और 1 चम्मच निम्बू का रस

जीरे और हींग को लगभग 1 कप पानी में डाल कर उबालें। जब 3/4 कप तक बचे तो हल्का ठंडा कर निम्बू का रस मिला कर पियें। रोज इसका सेवन पेट सम्बंधित और अन्य जटिल बिमारियों को दूर करता है।

क्या आपने कभी 100 % शुद्ध हींग का उपयोग किया है? बाज़ार में ज्यादातर पाउडर के रूप में मिलने वाले हींग 100% शुद्ध नहीं होते। उन्हें पाउडर के रूप में रखने के लिए अन्य पदार्थ मिलाये जाते हैं। शुद्ध हींग हमेशा कठोर होता है। शुद्ध हींग आपके भोजन का जायका और बढ़ा देता है। शुद्ध हींग को पानी में घोल कर अपनी सब्जी या दाल में डालें और स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन का आनंद उठायें

मनुष्यों के जन्म के बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात

मनुष्यों के जन्म के बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात

लंबी उम्र हो शॉन कर्नन की जिन्होंने यह विचार साझा किया। शायद विश्व में सबसे आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य हमारे अपने बारे में ही है।

इस gif को देखकर क्या लगता है, इसमें क्या दिख रहा है?

शायद आपको लग रहा होगा कि यह किसी दूसरे ग्रह का जीव है। लेकिन,

यह सिर्फ एक मानवीय चेहरा है जो गर्भ में बन रहा है।

इस दुनिया में 770 करोड़ मनुष्य जीवित हैं, और सब ऐसे ही बने हैं।

तो, हम एक बहुकोशिकीय (मल्टीसेलुलर) जीव से जेलीफ़िश में बदल जाते हैं, और फिर 9 महीने के दौरान एक मानव में।

यही है सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात—गर्भ के अंदर मनुष्य अनेक रूप लेता है और एक समय पर एलियन जैसा भी दिखता है!

जानिए हनुमान जी को देवताओं से कौन-कौन मिले थे वरदान

 

श्री हनुमान जी को गदा कहाँ से और कैसे मिला था?



धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा। कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था

हनुमान जी की पूजा सबसे सरल मानी गई है। हनुमान जी चुटकी भर सिंदूर से प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता है कि हनुमानजी आज भी इस धरती पर भ्रमण कर भक्तों की मनोकानाए पूरी करते हैं। बजरंगबली बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इन्हें संकटमोचक कहा जाता है यानी अगर आप किसी भी बड़ी मुसीबत में है तो सिर्फ हनुमानजी का नाम लेने से संकट कट जाता है। हनुमान भक्तों के लिए हनुमान जयंती का पर्व सबसे बड़ा दिन है। 08 अप्रैल को हनुमान जयंती है। इस दिन हनुमान जी विशेष पूजा करने से सभी तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार रुद्रावतार भगवान हनुमान के पास कई तरह शक्तियां और वरदान प्राप्त है। हनुमान जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं कुछ खास बातें.....

सूर्य देव

सूर्य देव ने भगवान हनुमान को अपने तेज का सौवां अंश दिया था। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद हनुमान जी के सामने को अन्य वक्ता नहीं टिक सकता था।

धर्मराज यम

धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा।

कुबेर

कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था।

भगवान शंकर

भगवान शंकर ने अपने अंशावतार को किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान दिया था।

इंद्र

इंद्र के प्रहार से बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा था। इंद्र और हनुमान जी से युद्ध के बाद इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान किया था कि उनके व्रज से हनुमानजी पर भविष्य में कोई असर नहीं पड़ेगा।

विश्वकर्मा

देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने भी हनुमानजी को वरदान दिया था कि उनके द्वारा बनाए जितने भी शस्त्र हैं उन पर उसका कोई असर नहीं होगा।

वरुण देव

वरुण देव ने भगवान हनुमान को एक महत्वपूर्ण वरदान दिया था जिसमें दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी जल से मृत्यु नहीं हो सकेगी।

ब्रह्मा

हनुमानजी को ब्रह्माजी ने दीर्घायु होने का वरदान दिया था। हनुमान जी अपनी इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर कहीं भी जा सकते हैं।

हनुमान जी के आयुधों की व्याख्‍या में खड्ग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, पर्वत, अंकुश, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष हैं. हनुमान जी का बायां हाथ गदा से युक्त कहा गया है. 'वामहस्तगदायुक्तम्'. श्री लक्ष्‍मण और रावण के बीच युद्ध में हनुमान जी ने रावण के साथ युद्ध में गदा का प्रयोग किया था

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