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मंगलवार, 1 मार्च 2022

भगवान महेशजी प्रसन्न जिन पर... उनके साथ होती हैं ये 3 बातें


भगवान महेशजी प्रसन्न जिन पर... उनके साथ होती हैं ये 3 बातें
धर्मशास्त्रों में भगवान महेशजी को गुणातीत कहकर भी पुकारा गया है। यानी भगवान महेशजी अनगिनत गुण व शक्तियों के स्वामी है। इन शक्तियों की महिमा भी अपार है। भगवान महेशजी का ऐसा बेजोड़ चरित्र ही भगवान महेशजी को ईश्वरों का ईश्वर (देवों का देव) यानी महेश्वर या महेश बनाता है। शास्त्रों में उजागर भगवान महेशजी के बेजोड़ चरित्र पर सांसारिक और व्यावहारिक नजरिए से गौर करें तो पता चलता है कि भगवान महेशजी के देवताओं में सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे कुछ खूबियां खास अहमियत रखती हैं। जानिए, आख़िर भगवान महेशजी की ऐसी ही 3 अहम शक्तियां कौन सी हैं।

दरअसल, इंसानी जीवन की दिशा व दशा तय करने में दो बातों की अहम भूमिका होती हैं - पहली रचना, उत्पत्ति या सृजन और दूसरी आजीविका। ये दोनों ही लक्ष्य पाने और कायम रखने के लिए यहां बताए जा रहे तीन गुण अहम हैं या यूं कहें कि इनके बिना न सृजन करना, न ही जीवन को चलाना संभव है। भगवान महेशजी का चरित्र भी इन तीन बेजोड़ गुणों से संपन्न है। यहीं वजह है कि जिस भी व्यक्ति के जीवन में इन 3 गुणों से यश, धन व सुख नजर आता है, धार्मिक नजरिए से माना गया है कि ऐसा होना भगवान महेशजी की प्रसन्नता के ही संकेत हैं।

(1) पावनता व वैभव -
शुद्धता, पावनता या पवित्रता के अभाव में मानव जन्म हो या किसी वस्तु की रचना दोषपूर्ण हो जाती है। भगवान महेशजी का चरित्र व उनका निराकार स्वरूप शिवलिंग भी सृजन का ही प्रतीक होकर जीवन व व्यवहार में पावनता और संयम का संदेश देता है। भगवान महेशजी का संयम और वैराग्य दोनों ही तन-मन की पवित्रता की सीख है। यही वजह है कि अचानक दरिद्रता, तंगी, रोग या क्लेशों से घिरे महेशजी या किसी देव भक्त को इन परेशानियों से छुटकारा मिलने लगे, तो धार्मिक आस्था से इसे उस व्यक्ति के जीवन पर भगवान महेशजी कृपा का ही बड़ा संकेत माना गया है।

(2) ज्ञान -
ज्ञान या शिक्षा के अभाव में जीवनयापन संघर्ष और संकट भरा हो जाता है। ज्ञान व बुद्धि के मेलजोल से बेहतर आजीविका यानी जीवन के 4 पुरुषार्थों में एक 'अर्थ' प्राप्ति के रास्ते खुल जाते हैं। भगवान महेशजी भी जीवन के लिए जरूरी ज्ञान, कलाओं, गुण और शक्तियों के स्वामी होने से जगतगुरु भी पुकारे जाते हैं, जो धर्मशास्त्र, तंत्र-मंत्र और नृत्य के रूप में जगत को मिले है। कोई भी धर्म व ईश्वर को मानने वाला अगर ज्ञान के जरिए यश व सफलता की बुलंदियों को छूने लगे, तो धार्मिक नजरिए से यह भगवान महेशजी कृपा ही मानी गई है, जिसे कायम रखने के लिए अहंकार से परे रहकर व विवेक के साथ ज्ञान, कला या हुनर को बढ़ाने या तराशने के लिए संकल्पित हो जाना चाहिए।

(3) पुरुषार्थ -
जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए संकल्पों के साथ पूरी तरह डूबकर परिश्रम को अपनाना ही पुरुषार्थ का भाव है। इसे धर्म या अध्यात्म क्षेत्र में साधना या तप के रूप में जाना जाता है तो सांसारिक जगत में कर्म के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव भी महायोगी, तपस्वी माने गए हैं। भगवान महेशजी का योग व तप जीवन में सुख, सफलता व शांति के लिए पुरुषार्थ की अहमियत बताता है। मन व तन के आलस्य से परे श्रम के जरिए जीवन को साधना ही भगवान महेशजी के बेजोड़ तप और योग का संदेश है।

यही वजह है कि व्यावहारिक तौर पर जब भी किसी इंसान को नौकरी, कारोबार में या जीवनयापन के लिए किसी भी रूप में की गई भरसक कोशिशों के सुफल मिलते या सफलता हाथ लगती है, तो यह धर्म के नजरिए से भगवान महेशजी कृपा ही मानी जाती है।

इस तरह भगवान महेशजी के चरित्र की ये तीन खासियत इंसानी जीवन में गहरी अहमियत रखने से भक्तों के मन में श्रद्धा और आस्था पैदा कर भगवान महेशजी की भक्ति और उपासना को सर्वोपरि बनाती है। साथ ही महादेव के महेश स्वरूप को हृदय में बसाए रखती है।

Ψ जय महेश Ψ

आज महाशिवरात्रि है , आज के दिन रखे जाने वाले व्रत का अपना अलग ही महत्व् है ..

आज महाशिवरात्रि है , आज के दिन रखे जाने वाले व्रत का अपना अलग ही महत्व् है ..
महाशिवरात्रि व्रत कथा:-

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है । शिवरात्रि न केवल व्रत है, बल्कि त्यहार और उत्सव भी है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का कालेश्वर रूप प्रकट हुआ था. महाकालेश्वर शिव की वह शक्ति हैं जो सृष्टि के अंत के समय प्रदोष काल में अपनी तीसरी नेत्र की ज्वाला से सृष्टि का अंत करता हैं। महादेव चिता की भष्म लगाते हैं, गले में रूद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं. भूत, प्रेत, पिशाच शिव के अनुचर हैं. ऐसा अमंगल रूप धारण करने पर भी महादेव अत्यंत भोले और कृपालु हैं जिन्हें भक्ति सहित एक बार पुकारा जाय तो वह भक्त की हर संकट को दूर कर देते हैं. महाशिवरात्रि की कथा में शिव के इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का परिचय मिलता है.

एक शिकारी था. शिकारी शिकार करके अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था.एक दिन की बात है शिकारी पूरे दिन भूखा प्यासा शिकार की तलाश में भटकता रहा परंतु कोई शिकार हाथ न लगा. शाम होने को आई तो वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया. वह जिस पेड़ पर बैठा था उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था. रात्रि में व्याधा अपना धनुष वाण लिए शिकार की तलाश में बैठा था और उसे शिकार भी मिला परंतु निरीह जीव की बातें सुनकर वह उन्हें जाने देता. चिंतित अवस्था में वह बेल की पत्तियां तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकता जाता. जब सुबह होने को आई तभी शिव जी माता पार्वती के साथ उस शिवलिंग से प्रकट होकर शिकारी से बोले आज शिवरात्रि का व्रत था और तुमने पूरी रात जागकर विल्वपत्र अर्पण करते हुए व्रत का पालन किया है इसलिए आज तक तुमने जो भी शिकार किए हैं और निर्दोष जीवों की हत्या की है मैं उन पापों से तुम्हें मुक्त करता हूं और शिवलोक में तुम्हें स्थान देता हूं. इस तरह भगवान भोले नाथ की कृपा से उस व्याधा का परिवार सहित उद्धार हो गया.

महाशिवरात्रि महात्मय एवं व्रत विधान :-

शिवरात्रि की बड़ी ही अनुपम महिमा है. जो शिवभक्त इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें चाहिए कि फाल्गुन कष्ण पक्ष की चतुदर्शी यानी शिवरात्रि के दिन प्रात: उठकर स्नान करें फिर माथे पर भष्म अथवा श्रीखंड चंदन का तिलक लगाएं. हाथ में अक्षत, फूल, मु्द्रा और जल लेकर शिवरात्रि व्रत का संकल्प करें. गले में रूद्राक्ष धारण करके शिवलिंग के समीप ध्यान की मुद्रा में बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें। शांतचित्त होकर भोलेनाथ का गंगा जल से जलाभिषेक करें. महादेव को दुग्ध स्नान बहुत ही पसंद है अत: दूध से अभिषेक करें. महादेव को फूल, अक्षत, दुर्वा, धतूरा, बेलपत्र अर्पण करें। शिव जी को उक्त पदार्थ अर्पित करने के बाद हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें.

शिवरात्रि के दिन रूद्राष्टक और शिवपुराण का पाठ सुनें और सुनाएं. रात्रि में जागरण करके नीलकंठ कैलशपति का भजन और गुणगान करना चाहिए. अगले दिन भोले शंकर की पूजा करने के बाद पारण कर अन्न जल ग्रहण करना चाहिए. इस प्रकार महाशिवरात्रि का व्रत करने से शिव सानिघ्य प्राप्त होता है.

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।

महाशिवरात्री भगवान शंकर और भगवती पार्वती का महामिलन का महोत्सव है। यह हमें कल्याणकारी कार्य करने की ओर शिवत्व का बोध कराता है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शैव और वैष्णव, दोनों ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते है। वैष्ण्व इस तिथि को शिव चतुर्दशी कहते है। भगवान शिव को वेदों में रुद्र कहा गया है, क्...योंकि दुख को नष्ट कर देते है। इस प्रकार शिव और रुद्र एक परमेश्वर के ही पर्यायवाची शब्द हैं। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि चंद्र-दर्शन की आखिरी तिथि है, क्योंकि इसके बाद अमावस्या की रात्रि में चंद्र लुप्त हो जाता है। अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। शिव और शक्ति के पावन परिणय की तिथि होने के कारण इसे महाशिवरात्री का नाम दिया गया। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव-पार्वतीाâा विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते है। काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव-बारात तो विश्वविख्यात है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है।इस तिथि के मध्यरात्रिकालीन महानिशीथकाल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म-स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का आविर्भाव होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हो गई। शिवपुराण के अनुसार, शिव के दो रूप है- सगुण और निर्गुण। सगुण-रूप मूर्ति में साकार होता है, जबकि शिवलिंग निर्गुण-निराकार ब्रह्म है।
महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिविंलग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिविंलग बनाकर उसे पूजने का विधान है। इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

स्कंदपुराण महाशिवरात्रि को व्रतों में सर्वोपरि कहता है। इस व्रत के तीन प्रमुख अंग है- उपवास, शिवार्चन और रात्रि-जागरण। उपवास से तन शुद्ध होता है, अर्चना से मन पवित्र होता है तथा रात्रि-जागरण से आत्म-साक्षात्कार होता है। यही महाशिवरात्रि के व्रत का उद्देश्य है।

सही अर्थो में शिवचतुर्दशी का लक्ष्य है पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों तथ मन, अहंकार, और बुद्धि-इन चतुर्दश १४, का समुचित नियंत्रण। यही सच्ची शिव-पूजा है। वस्तुतः इसी से शिवत्व का बोध होता है। यही अनुभूति ही इस पर्व को सार्थक बनाती है और यह पर्व समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी बन जाता है ।

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव हर मंदिर में लिंग रूप में प्रत्यक्ष होते है l भक्तों का मानना है कि उस दिन शिव पूजा एवं लिंगाभेशक करने पर शिव प्रसन्न होंगे l उस दिन उपवास रहकर रात भर जागारण कर पूजा एवं भजन करते है l कहा जाता है कि उस दिन स्वामी को बिल्वपत्र और अभिषेक समर्पित करने से पुनर्जन्म नहीं रहेगा और और मुक्त प्राप्त होगी l इस पर्व दिन पर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप परिवर्तित होगा l कश्मीर में शिवरात्री उत्सव १५ दिनों तक मनाया जाता है l

शिवरात्री का व्रत फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी का होता है l कुछ लोग चतुर्दशी को भी इस व्रत को करते है l ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्रा के रूप में ,रात्री के मध्य में अवतरण हुआ था l प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान् शिव ताण्डव करते हुये ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते है l इसी लिए इसे महा शिवरात्री अथवा कालरात्री कहा गया है l

भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही; अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। भक्त से प्रसन्न हो जाएं तो अपना धाम उसे दे दें और यदि गुस्सा हो जाएं तो उससे उसका धाम छीन लें। शिव अनोखेपन और विचित्रताओं का भंडार हैं। शिव की तीसरी आंख भी ऐसी ही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं। 

दरअसल शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है।

यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है।

| शिव |

1 व्युत्पत्ति और अर्थ:
- शिव शब्द वश् शब्द से तैयार हुआ है। वश् का मतलब है प्रकाश देना, अर्थात जो प्रकाश देते है वह शिव। शिव यह स्वयंसिद्ध, स्वयंप्रकाशी है। वे स्वयं प्रकाशित रहकर विश्व को प्रकाशित करते है।

2 कुछ अन्य नाम...
- शंकर --
"शं करोति इति शंकर:।" 'शं' अर्थात कल्याण और 'करोति' अर्थात कार्य करनेवाला। जो कल्याण करते है वह शंकर।

- महाकालेश्वर --
अखिल ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता देव (क्षेत्रपाल देव)। वह कालपुरुष अर्थात महाकाल (महान् काल) है; अर्थात उन्हें महाकालेश्वर कहते है।

- महादेव --
'विश्वसर्जन' के एवं 'व्यवहार के विचार' के मुलत: तीन विचार होते है - परिपूर्ण पावित्र्य, परिपूर्ण ज्ञान और परिपूर्ण साधना। यह तीन जिनके अन्दर साथ में है, ऐसे देव एवं देवोके देव, अर्थात महादेव।

- भालचंद्र --
भाल के ऊपर अर्थात कपाल के ऊपर, जिन्होंने चन्द्र को धारण किया हुआ है वह भालचंद्र। शिव पुत्र गणपति जी का भी भालचंद्र, यह एक नाम है।

- कर्पूरगौर --
शिव का रंग कर्पूर जैसा (कपूर जैसा) सफ़ेद है; वस्तुत: उन्हें कर्पूरगौर ऐसा भी कहा जाता है।

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

विज्ञान की कुछ शानदार और मंत्रमुग्ध कर देने वाली घटनाएं क्या हैं?

 

1) मरक्यूरी और अलुमिनियम का आपस में रिएक्ट करना।

2) चुम्बकीय पुट्टी

3) बैक्टेरिया का शिकार करती मानव श्वेत रक्त कौशिका (white blood cell)

4) मोमबत्ती का उसी के धुएं से वापस आग पकड़ना

5) चुम्बकीय फिरकी का हवा में तैरना

6) काँच का टूटना

7) ऑक्टोपस का पानी में रंग ब रूप बदलना

8) ज्वेल वीड का अपना बीज फैलाना

9) पाइन कोन का भीतर बीज फैलाना

10) प्लाज्मा का सूर्य की सतह पर से फूटना

11) चंद्रमा का एक महीने चक्कर लगाना

12) साँप के जहर का इंसानी खून से मिलना

जानकारी स्त्रोत :

[1]

फुटनोट

[1] Rohit Virmani's answer to What are some cool and mesmerizing science phenomena's in pictures? in *˚˚*One World I One Life*˚˚*

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’

भगवान श्रीराम का विजय-मन्त्र!!!!!!!


भगवान श्रीराम का विजय-मन्त्र : ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’

भगवान के ‘नाम’ का महत्व भगवान से भी अधिक होता है । भगवान को भी अपने ‘नाम’ के आगे झुकना पड़ता है । यही कारण है कि भक्त ‘नाम’ जप के द्वारा भगवान को वश में कर लेते हैं ।

जब हनुमानजी संकट में थे, तब सबसे पहले ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ मन्त्र नारदजी ने हनुमानजी को दिया था । इसलिए संकट-नाश के लिए इस मन्त्र का जप मनुष्य को अवश्य करना चाहिए । यह मन्त्र ‘मन्त्रराज’ भी कहलाता है क्योंकि—

यह उच्चारण करने में बहुत सरल है।

इसमें देश, काल व पात्र का कोई बंधन नहीं है अर्थात् हर कहीं, हर समय व हर किसी के द्वारा यह मन्त्र जपा जा सकता है ।

इस मन्त्र का नाम विजय-मन्त्र क्यों ?

सत् गुण के रूप में (निष्काम भाव से) इस मन्त्र के जप से साधक अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है ।

रजोगुण के रूप में (कामनापूर्ति के लिए) इस महामन्त्र के जप से मनुष्य दरिद्रता, दु:खों और सभी आपत्तियों पर विजयप्राप्त कर लेता है ।

तमोगुण के रूप में (शत्रु बाधा, मुकदमें में जीत आदि के लिए) इस मन्त्र का जप साधक को संसार में विजयी बनाता है और अपने विजय-मन्त्र नाम को सार्थक करता है।

सच्चे साधक (गुणातीत जिसे गीता में स्थितप्रज्ञ कहा गया है) को यह विजय-मन्त्र परब्रह्म परमात्मा का दर्शन कराता है। इसी विजय-मन्त्र के कारण बजरंगबली हनुमान को श्रीराम का सांनिध्य और कृपा मिली । समर्थ गुरु रामदासजी ने इस मन्त्र का तेरह करोड़ जप किया और भगवान श्रीराम ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे ।

इस मन्त्र में तेरह (13) अक्षर हैं और तेरह लाख जप का एक पुरश्चरण माना गया है । इस मन्त्र का जप कर सकते हैं और कीर्तन के रूप में जोर से गा भी सकते हैं।

इस मन्त्र को सच्ची श्रद्धा से जीवन में उतारने पर यह साधक के जीवन का सहारा, रक्षक और सच्चा पथ-प्रदर्शक बन जाता है।

लंका-विजय के बाद एक बार अयोध्या में भगवान श्रीराम देवर्षि नारद, विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के साथ बैठे थे । उस समय नारदजी ने ऋषियों से कहा कि यह बताएं—‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’

इस पर सभी ऋषियों में वाद-विवाद होने लगा किन्तु कोई भी इस प्रश्न का सही निर्णय नहीं कर पाया । तब नारदजी ने कहा—‘निश्चय ही ‘भगवान का ‘नाम’ श्रेष्ठ है और इसको सिद्ध भी किया जा सकता है ।’

इस बात को सिद्ध करने के लिए नारदजी ने एक युक्ति निकाली । उन्होंने हनुमानजी से कहा कि तुम दरबार में जाकर सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम करना किन्तु विश्वामित्रजी को प्रणाम मत करना क्योंकि वे राजर्षि (राजा से ऋषि बने) हैं, अत: वे अन्य ऋषियों के समान सम्मान के योग्य नहीं हैं ।’

हनुमानजी ने दरबार में जाकर नारदजी के बताए अनुसार ही किया । विश्वामित्रजी हनुमानजी के इस व्यवहार से रुष्ट हो गए । तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘हनुमान कितना उद्दण्ड और घमण्डी हो गया है, आपको छोड़कर उसने सभी को प्रणाम किया ?’ यह सुन विश्वामित्रजी आगबबूला हो गए और श्रीराम के पास जाकर बोले—‘तुम्हारे सेवक हनुमान ने सभी ऋषियों के सामने मेरा घोर अपमान किया है, अत: कल सूर्यास्त से पहले उसे तुम्हारे हाथों मृत्युदण्ड मिलना चाहिए ।’

विश्वामित्रजी श्रीराम के गुरु थे अत: श्रीराम को उनकी आज्ञा का पालन करना ही था ।‘ श्रीराम हनुमान को कल मृत्युदण्ड देंगे’—यह बात सारे नगर में आग की तरह फैल गई । हनुमानजी नारदजी के पास जाकर बोले—‘देवर्षि ! मेरी रक्षा कीजिए, प्रभु कल मेरा वध कर देंगे । मैंने आपके कहने से ही यह सब किया है ।’

नारदजी ने हनुमानजी से कहा—‘तुम निराश मत होओ, मैं जैसा बताऊं, वैसा ही करो । ब्राह्ममुहुर्त में उठकर सरयू नदी में स्नान करो और फिर नदी-तट पर ही खड़े होकर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’—इस मन्त्र का जप करते रहना । तुम्हें कुछ नहीं होगा।

दूसरे दिन प्रात:काल हनुमानजी की कठिन परीक्षा देखने के लिए अयोध्यावासियों की भीड़ जमा हो गई । हनुमानजी सूर्योदय से पहले ही सरयू में स्नान कर बालुका तट पर हाथ जोड़कर जोर-जोर से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करने लगे।

भगवान श्रीराम हनुमानजी से थोड़ी दूर पर खड़े होकर अपने प्रिय सेवक पर अनिच्छापूर्वक बाणों की बौछार करने लगे। पूरे दिन श्रीराम बाणों की वर्षा करते रहे, पर हनुमानजी का बाल-बांका भी नहीं हुआ। अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र उठाया । हनुमानजी पूर्ण आत्मसमर्पण किए हुए जोर-जोर से मुस्कराते हुए ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करते रहे । सभी लोग आश्चर्य में डूब गए ।

तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘मुने ! आप अपने क्रोध को समाप्त कीजिए। श्रीराम थक चुके हैं, उन्हें हनुमान के वध की गुरु-आज्ञा से मुक्त कीजिए । आपने श्रीराम के ‘नाम’ की महत्ता को तो प्रत्यक्ष देख ही लिया है । विभिन्न प्रकार के बाण हनुमान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके । अब आप श्रीराम को हनुमान को ब्रह्मास्त्र से न मारने की आज्ञा दें ।’

विश्वामित्रजी ने वैसा ही किया । हनुमानजी आकर श्रीराम के चरणों पर गिर पड़े। विश्वामित्रजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकी श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति की प्रशंसा की।

राम से बड़ा राम का नाम!!!!!!!!!

गोस्वामी तुलसीदासजी का कहना है—‘राम-नाम’ राम से भी बड़ा है । राम ने तो केवल अहिल्या को तारा, किन्तु राम-नाम के जप ने करोड़ों दुर्जनों की बुद्धि सुधार दी । समुद्र पर सेतु बनाने के लिए राम को भालू-वानर इकट्ठे करने पड़े, बहुत परिश्रम करना पड़ा परन्तु राम-नाम से अपार भवसिन्धु ही सूख जाता है ।

कहेउँ नाम बड़ ब्रह्म राम तें ।
राम एक तापस तिय तारी ।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी ।।
राम भालु कपि कटकु बटोरा।
सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ।।
नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं ।
करहु विचार सुजन मन माहीं ।।

मन्त्र की व्याख्या,इस मन्त्र में—
‘श्रीराम’—यह भगवान राम के प्रति पुकार है ।
‘जय राम’—यह उनकी स्तुति है
‘जय जय राम’—यह उनके प्रति पूर्ण समर्पण है ।

संसार का मूल कारण सत्व, रज और तम—ये त्रिगुण हैं । ये तीनों ही भव-बंधन के कारण हैं । इन तीनों पर विजय पाने और संसार में सब कुछ ‘राम’ मानने की शिक्षा देने के लिए इस मन्त्र में तीन बार ‘राम’ और तीन ही बार ‘जय’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

मन्त्र का जप करते समय मन में यह भाव रहे—‘भगवान श्रीराम और सीताजी दोनों मिलकर पूर्ण ब्रह्म हैं । हे राम ! मैं आपकी स्तुति करता हूँ और आपके शरण हूँ ।’

हींग कैसे बनती है?

 

हींग कैसे बनती है, यह बात ज्यादातर लोग नहीं जानते , यहाँ तक कि जो अपने खाने में हींग का बहुतायत से प्रयोग करते हैं वह भी इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते।

हींग न केवल भारतीय खाने की शान है अपितु आयुर्वेद में हींग का बहुत महत्व है, यह कई बिमारियों के उपचार में भी काम आती है।

हींग कैसे बनती है?

जिस स्वरुप में में हम हींग का प्रयोग करते हैं वह उस स्वरुप में पैदा नहीं होती है। बाजार में मिलने वाला हींग का पाउडर शुद्ध हींग नहीं होता बल्कि हींग के साथ अन्य खाद्य पदार्थ मिला कर हींग का पाउडर बनाया जाता है।

हींग किसी भी फैक्ट्री में नहीं बनता बल्कि एक प्रकार के पौधे से प्राप्त होता है। हींग का पौधा एक बारहमासी शाक है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसनेवाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है।

हींग की खेती

इसकी खेती से जुड़े भी कई रोचक तथ्य है। वैसे तो हींग की खपत सबसे ज्यादा भारत में होती है लेकिन इसकी पैदावार भारत में न के बराबर होती है। इसकी खेती मुख्य रूप से अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान और बलूचिस्तान में होती है।

इन देशों में जहाँ इसकी खेती होती है उसके बीजों पर सरकारों की सख्त नज़र होती है और इसका बीज निर्यात करने पर पूरी तरह से पाबंदी है। यहाँ तक की चोरी-छुपे इसका बीज अन्य देशों में भेजने पर सख्त दंड का भी प्रावधान है।

इसके बारे में कहा जाता है कि 4 ईसा पूर्व अलेक्सेंडर इसे अपने साथ लाया था।

हींग के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसे “शैतान की लीद” (Devil’s Dung) भी कहा जाता है। इसकी तीक्ष्ण गंध के कारण इसे ऐसा कहा गया होगा।

भारत में हींग की खेती

भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है लेकिन इसकी पैदावार भारत में नहीं होने के कारण इसके आयत में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है।

अब भारत में भी इसकी खेती के प्रयास शुरू किये गए हैं। कश्मीर और हिमाचल में इसकी पैदावार करने की कोशिश की जा रही है जिसमें कुछ सफलता भी मिल रही है।

हींग के उपयोग

खाने में प्रयोग

विशेषकर हींग का प्रयोग मसलों के रूप में किया जाता है लेकिन आयुर्वेद

में इसे एक औषधि भी बताया है जिसकी सहायता से कई रोगों का इलाज भी किया जाता है।

हींग की तीक्ष्ण गंध के कारण इसे खाना बनाने में लहसुन की जगह भी प्रयोग किया जाता है और जो लोग लहसुन का सेवन नहीं करते हैं वह इसका ज्यादा उपयोग करते हैं।

औषधीय प्रयोग

पेट सम्बंधित रोगों में प्रयोग – आयुर्वेद दवाओं के साथ-साथ घरेलु उपचार हेतु भी पेट के रोग जैसे गैस, अम्लता , पेटदर्द आदि में हींग का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद दवा में हिंग्वाष्टक चूर्ण में हींग एक प्रमुख घटक होता है जिसे गैस और अम्लपित्त रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।

दांत दर्द में फायदेमंद – दांत में दर्द होने पर हींग का छोटा सा टुकड़ा दर्द वाली जगह रख कर दबा दें। इससे दांत दर्द में राहत मिलती है।

मासिकधर्म सम्बंधित परेशानियों में – 1 गिलास पानी में एक चुटकी हींग, आधा चम्मच मेथी पाउडर व काला नमक मिला कर दिन में 2 बार पूरे माह पीने से मासिक धर्म

सम्बंधित परेशानियाँ जैसे पेट दर्द, अनियमितता आदि से राहर मिलती है।

श्वास रोगो में – किसी वैद्य की देखरेख में इसका प्रयोग कर कई जटिल बिमारियों से निजात पायी जा सकती है।

कान दर्द में – तिल के तेल में हींग डाल कर उसे गर्म करें और ठंडा होने पर कान में डालने से कान दर्द में फायदा होता है।

हींग में एंटी बैक्टीरियल, एंटी वाइरल और दर्द निवारक गुण होने के कारण कई इलाज में इसका प्रयोग किया जाता है।

दवा के रूप में प्रयोग करने का आसान तरीका – निम्बू हींग का पानी रोज़ पियें

बनाने का तरीका –

सामग्री – दो छोटे चम्मच हींग का पाउडर (शुद्ध हींग नहीं), 1 छोटा चम्मच जीरा और 1 चम्मच निम्बू का रस

जीरे और हींग को लगभग 1 कप पानी में डाल कर उबालें। जब 3/4 कप तक बचे तो हल्का ठंडा कर निम्बू का रस मिला कर पियें। रोज इसका सेवन पेट सम्बंधित और अन्य जटिल बिमारियों को दूर करता है।

क्या आपने कभी 100 % शुद्ध हींग का उपयोग किया है? बाज़ार में ज्यादातर पाउडर के रूप में मिलने वाले हींग 100% शुद्ध नहीं होते। उन्हें पाउडर के रूप में रखने के लिए अन्य पदार्थ मिलाये जाते हैं। शुद्ध हींग हमेशा कठोर होता है। शुद्ध हींग आपके भोजन का जायका और बढ़ा देता है। शुद्ध हींग को पानी में घोल कर अपनी सब्जी या दाल में डालें और स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन का आनंद उठायें

मनुष्यों के जन्म के बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात

मनुष्यों के जन्म के बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात

लंबी उम्र हो शॉन कर्नन की जिन्होंने यह विचार साझा किया। शायद विश्व में सबसे आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य हमारे अपने बारे में ही है।

इस gif को देखकर क्या लगता है, इसमें क्या दिख रहा है?

शायद आपको लग रहा होगा कि यह किसी दूसरे ग्रह का जीव है। लेकिन,

यह सिर्फ एक मानवीय चेहरा है जो गर्भ में बन रहा है।

इस दुनिया में 770 करोड़ मनुष्य जीवित हैं, और सब ऐसे ही बने हैं।

तो, हम एक बहुकोशिकीय (मल्टीसेलुलर) जीव से जेलीफ़िश में बदल जाते हैं, और फिर 9 महीने के दौरान एक मानव में।

यही है सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात—गर्भ के अंदर मनुष्य अनेक रूप लेता है और एक समय पर एलियन जैसा भी दिखता है!

जानिए हनुमान जी को देवताओं से कौन-कौन मिले थे वरदान

 

श्री हनुमान जी को गदा कहाँ से और कैसे मिला था?



धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा। कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था

हनुमान जी की पूजा सबसे सरल मानी गई है। हनुमान जी चुटकी भर सिंदूर से प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता है कि हनुमानजी आज भी इस धरती पर भ्रमण कर भक्तों की मनोकानाए पूरी करते हैं। बजरंगबली बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इन्हें संकटमोचक कहा जाता है यानी अगर आप किसी भी बड़ी मुसीबत में है तो सिर्फ हनुमानजी का नाम लेने से संकट कट जाता है। हनुमान भक्तों के लिए हनुमान जयंती का पर्व सबसे बड़ा दिन है। 08 अप्रैल को हनुमान जयंती है। इस दिन हनुमान जी विशेष पूजा करने से सभी तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार रुद्रावतार भगवान हनुमान के पास कई तरह शक्तियां और वरदान प्राप्त है। हनुमान जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं कुछ खास बातें.....

सूर्य देव

सूर्य देव ने भगवान हनुमान को अपने तेज का सौवां अंश दिया था। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद हनुमान जी के सामने को अन्य वक्ता नहीं टिक सकता था।

धर्मराज यम

धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा।

कुबेर

कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था।

भगवान शंकर

भगवान शंकर ने अपने अंशावतार को किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान दिया था।

इंद्र

इंद्र के प्रहार से बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा था। इंद्र और हनुमान जी से युद्ध के बाद इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान किया था कि उनके व्रज से हनुमानजी पर भविष्य में कोई असर नहीं पड़ेगा।

विश्वकर्मा

देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने भी हनुमानजी को वरदान दिया था कि उनके द्वारा बनाए जितने भी शस्त्र हैं उन पर उसका कोई असर नहीं होगा।

वरुण देव

वरुण देव ने भगवान हनुमान को एक महत्वपूर्ण वरदान दिया था जिसमें दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी जल से मृत्यु नहीं हो सकेगी।

ब्रह्मा

हनुमानजी को ब्रह्माजी ने दीर्घायु होने का वरदान दिया था। हनुमान जी अपनी इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर कहीं भी जा सकते हैं।

हनुमान जी के आयुधों की व्याख्‍या में खड्ग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, पर्वत, अंकुश, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष हैं. हनुमान जी का बायां हाथ गदा से युक्त कहा गया है. 'वामहस्तगदायुक्तम्'. श्री लक्ष्‍मण और रावण के बीच युद्ध में हनुमान जी ने रावण के साथ युद्ध में गदा का प्रयोग किया था

खंजन पक्षी के बारे में रौचक जानकारी - जादुई खंजन पक्षी की मदद से पाए गायब (अदृश्य) होने की शक्ति

 ये दुनिया प्राणियों और पक्षियों की विविधता से भरी पड़ी हुई हे और हम एक ऐसे ही पक्षी के बारे में बात करने वाले जो अपनी दुम (पूंछ ) को लगातार ऊपर निचे हिलाता ही रहता हे जी हा दोस्तों में बात कर रहा हु खंजन पक्षी के बारे में जिनका अंग्रेजी नाम Wagtail Bird हे। तो दोस्तों चलो इस  पक्षी के बारे में अधिक जानकारी को पढ़ लेते हे।

खंजन पक्षी – Wagtail Bird Information In Hindi

     दोस्तों इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम बात करने वाले हे खंजन पक्षी के बारे में जिनको अंग्रेजी में Wagtail Bird कहते हे। खंजन पक्षी भारत में पाए जाने वाले प्रसिद्र पक्षियों में से एक हे। दिखने में ये एक छोटा पक्षी हे। जिनको खिंडरिच या ख़ंजरीड के नामों से भी जाना जाता हे। ये एक सुन्दर और चंचल पक्षी हे। तो चलो दोस्तों इस पक्षी के बारे में और भी रौचक जानकारी को देख लेते हे।
Wagtail Bird In Hindi

खंजन - लगातार दुम ऊपर-नीचे हिलाते रहने वाला पक्षी

खंजन - लगातार दुम ऊपर-नीचे हिलाते रहने वाला पक्षी

अंग्रेज़ी में नाम : White Wagtail

वैज्ञानिक नाम : Motacilla alba

{L. motacilla, a wagtail,-cilla, hair, alba : L. albus, white.}

स्थानीय नाम : हिंदी में इसे धोबन भी कहा जाता है। पंजाब में इसे बालकटारा, बांग्ला में खंजन, आसाम में बालीमाटी और तिपोसी और मलयालम में वेल्ला वलकुलुक्की कहते हैं।

विवरण व पहचान : बड़े प्यारे और सुंदर दिखने वाले इस पक्षी का आकार गोरैयों के बराबर, लगभग 8 इंच लंबा और रंग में चितकबरा होता है। ये पतली होती हैं। इन्हें खड़रिच भी कहा जाता है। नर और मादा रूपरंग में प्राय: एक से ही होते हैं। नर के शरीर ऊपरी हिस्सा राख के रंग का और नीचे का सफेद होता है। सिर के ऊपर का हिस्सा काला होता है। इसकी छाती पर एक काला चन्द्राकार चित्ता भी रहता है। डैने काले होते हैं, जिन पर सफेद धारियां बनी होती हैं। किन्तु उनके सिरों पर सफेदी रहती है। यह पक्षी साल में कई बार अपना रंग बदलता है। जाड़ों में इसके नर के सिर के पीछे एक काला चकत्ता रहता है जो गले के चारों ओर फैल जाता है। सिर का ऊपरी भाग और शरीर का निचला हिस्सा सफेद होता है जिसमें थोड़ी कंजई झलक रहती है। ऊपर का हिस्सा हल्का सिलेटी और डैने काले होते हैं। डैने के परों के किनारे सिलेटी और सफेद होते हैं ; दुम काली होती है जिसके दोनों बाहरी पंख सफेद रहते हैं। गरमी आते ही नर का सारा वक्षस्थल चमकीला काला हो जाता है और मादा का धूमिल होती हैं और शरीर पर की चित्तियां चटक नहीं होती। आंख की पुतलियां भूरी और चोंच और पांव काले होते हैं। भौंहें सफेद होती हैं। जाड़े में, जब इनका प्रजनन काल नहीं होता, आगे का वक्ष पर का काला भाग सफेद हो जाता है। ठोड़ी और गला भी नीचे की तरह सफेद हो जाता है।

व्याप्ति : जाड़े में समस्त भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के घास वाले मैदानी इलाक़ों में पाया जाता है। हमने इसकी तस्वीरें राजगीर, नालंदा और गंगासागर में ली थी।

अन्य प्रजातियां : भारत में पाई जाने वाली इसकी प्रमुख क़िस्में निम्नलिखित हैं –

1. Forest Wagtail – Dendronanthus indicus

2. चितकबरी – ख़ूबसूरती के लिए मशहूर – Large Pied Wagtail – M. maderaspatensis इसे ममोला और कालकंठ भी कहते हैं। यह सफेद खंजन से कुछ बड़ा और उससे अधिक चितकबरा होता है। यह भारतवर्ष का बारहमासी पक्षी है और अपना देश छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाता।

gray_wagtail3. भूरी – Grey Wagtail – M. cinerea इसे खैरैया भी कहते हैं। यह जाड़ों में उत्तर और पश्चिम की ओर से आता है और हिमालय से लेकर धुर दक्षिण तक फैल जाता है। यह अपनी लंबी दुम, निलछौंह स्लेटी पीठ और पीले पेट के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। गर्मियों में यह पक्षी स्वदेश लौट जाता है।

 

 

yellow wagtail4. पीली – Yellow Wagtail – Motacilla flava इसे पिल्किया भी कहते हैं। यह खंजनों में सबसे सुंदर कहा जाता है। इस जाति का खंजन जाड़ों में अगस्त महीने के आसपास उत्तर और पश्चिम से आते हैं और जाड़ा समाप्त होने पर अप्रैल तक उसी ओर लौट जाते हैं।

citrine wagtail (2)5. नीम्बू के रंग का - Citrine Wagtail – M. citreola

6. Eastern Yellow Wagtail – M. tschutchensis

 

आदत और वास : ये सितम्बर अक्तूबर में आ जाते हैं और मार्च-अप्रैल में वापस चले जाते है। काफ़ी चंचल होते हैं। घने जंगलों में ये शायद ही नज़र आएं। अधिकतर ये दिनभर जलाशयों के किनारे या खेत-खलिहानों, पगडंडियों पर या मानव-आवास के बीच, गोशाला, घर के आंगन में आदि स्थानों पर लगातार अपनी दुम ऊपर-नीचे हिलाते हुए इधर-उधर कीड़ों-मकोड़ों के लिए दौड़ लगाते रहते हैं। यह दौड़कर चलता है, अन्य पक्षियों की भाँति फुदकता नहीं। खतरे का आभास मिलने पर उड़ जाता है किंतु थोड़ी ही दूर के बाद पुन: जमीन पर उतर आता है। इसकी उड़ान लहराती हुई होती है और उड़ते समय ‘चिट् चिट्’ जैसी बोली बोलता रहता है। सामान्यत: यह पक्षी दो चार की ही टोली में देखा जाता है किंतु गरमी आते ही जब वे अपने स्थायी स्थानों पहाड़ों की ओर लौटते हैं तो इनका एक बड़ा समूह बन जाता है। गर्मी और बरसात ये पहाड़ों पर या हिमालय की घाटियों में बिताते हैं। वहीं अंडे देते है और शरद ऋतु में इनका फिर से मैदानों और आबादी वाले क्षेत्रों में आगमन होता है। इस प्रकार ऋतु के अनुसार इतनी इतनी दूरियों का स्थानांतरण प्रकृति का एक आश्चर्यजनक चमत्कार ही कहा जाएगा। इस पक्षी को धोबिन भी कहा जाता है। कपड़े धोती महिलाओं के बीच खुद भी मज़े से टहलता रहता है। यह अत्यंत मधुर तान छेड़ता है।

भोजन : यह छोटे-छोटे कीड़ों, मकोड़ों, मच्छरों और नम भूमि से इकट्ठा किए गए सूंड़ियों को अपना आहार बनाता है। कभी-कभी यह घास चरने वाले जानवरों द्वारा परेशान किए गए उड़ते कीड़े को भी पकड़ता है।

प्रजनन : वसंत के समाप्त होते ही ये पक्षी पहाड़ों की ओर चले जाते हैं। वहीं, हिमालय की गोद में पत्थरों के कोटरों में मई से जुलाई के बीच यह अपना प्यालानुमा घोंसला बनाता है। घोंसला सूखी घास, जड़ें, दूब, और इसी तरह के कर्कटों से बना होता है। प्रजनन काल में नर कई मिनटों तक सुरीले गीत गाता है। इसके अंडों की संख्या साधारणतः 4-6 होती है। अंडे चौड़े-अंडाकार होते हैं। छोटे किनारे की तरफ़ नुकीले होते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों की देखभाल करते हैं। चूजों को प्रायः कीड़े खिलाए जाते हैं। नर और मादा द्वारा संतानों को पाल-पोस कर यह इस लायक कर दिया जाता है कि वे वर्षा के समाप्त होते ही नीचे उतर आएं।

1 . खंजन पक्षी की रंग और स्वाभाव के आधारित चार जातीय जातियां पाइ जाती हे। इस पक्षी की और भी अनेक जातियां एशिया , यूरोप , और अफ्रीका में पाइ जाती हे। जिनमे सफ़ेद खंजन , शबल खंजन , भूरा खंजन और पीला खंजन शामिल हे।

2 . ये पक्षी भारत , पाकिस्तान और बाग्लादेश में पाए जाते हे।

3 . खंजन पक्षी का वैज्ञानिक नाम Motacilla हे।

4 . इस पक्षी के बारे में एक ख़ासियत ये हे की वो जब भी ज़मीन पे होता हे तब वो अपनी दुम ऊपर – निचे हिलाता ही रहता हे। Wagtail In Hindi

5 . खंजन पक्षी मोटासिलिडी कुल के मोटासीला परिवार से सबंध रखता हे।

6 . अगर हम इस छोटे पक्षी की लम्बाई की बात करे तो ये करिब 7 से लेकर 9 इंच तक की होती हे। जबकि इस पक्षी का वज़न करीब 20 ग्राम से लेकर 25 ग्राम के आसपास रहता हे। और उनका पूरा शरीर लम्बा एवम पतला होता हे। जबकि उनके पंख काले सफ़ेद रंग के होते हे।

7 . ज़्यादातर खंजन पक्षी झीलों , नदियों , तालाबों और सरोवरों के किनारे पे भोजन की तलाश में इधर – उधर फिरता रहता हे। 

8 . इस पक्षी का मुख्य खोराक छोटे छोटे कीड़े – मकोड़े होते हे।

9 . ये पक्षी अन्य पक्षी की तरह चलना नहीं बल्कि दौड़कर चलना पसंद करता हे।

10 . खंजन पक्षी को ख़तरा महसूस ही वो उड़ जाता हे और उनके उड़ते समय चिट्ट जैसा आवाज उत्पन होता हे। जबकि इस पक्षी की चोंच लाल और दुम हलकी काली झाई सफ़ेद और सुन्दर होती हे।

 

11 . आमतौर पर नर और मादा एकसमान ही दीखते हे। लेकिन नर की अपेक्षा में मादा धुमैली होती हे।

12 . ज्यादातर ये पक्षी अकेले रहना पसंद करते हे लेकिन शाम को ये पक्षी झुंड भी बना लेते हे।

13 . इस पक्षी के नेत्र हर समय चंचल रहते इस वज़ह से भारतीय कवियों नेत्रों की उपमा खंजन से दिया करते हे।

14 . नर और मादा साथ मिलकर अपने घोसले का निर्माण करते हे और फिर मादा करीब 4 से लेकर 7 तक अंडे देती हे। 

15 . नर और मादा दोनों साथ मिलकर अपने बच्चो का पालन पोषण करते हे।

16 . इस पक्षी के बारे में ऐसा माना जाता हे की इस पक्षी को पाला नहीं जा सकता। और जब इस पक्षी के सिर पर चोटी निकलती हे तब ये पक्षी कही छिप जाता हे यानिकि किसी को भी दिखाइ नहीं देता।

17 . कभी कभी बड़े पक्षी खंजन पक्षी का शिकार भी करते हे। 

18 . सफ़ेद खंजन का जीवनकाल करीब 12 साल के आसपास होता हे। Wagtail Bird Information In Hindi

तो दोस्तों अगर आपको ये आर्टिकल पसंद हे तो आप इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ भी सेर करे। ताकि वो भी इस पक्षी के बारे में जान सके।

खंजन पक्षी की किस प्रजाति से गायब होने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं
https://www.youtube.com/watch?v=oEJntOwR3bo

संदर्भ

1. The Book of Indian Birds – Salim Ali

2. Popular Handbook of Indian Birds – Hugh Whistler

3. Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carlos Inskipp, Tim Inskipp

4. Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande

5. Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, Biswajit Roychowdhury

6. हमारे पक्षी – असद आर. रहमानी

7. एन्साइक्लोपीडिया पक्षी जगत – राजेन्द्र कुमार राजीव

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

एक दर्द पैदा करती पोस्ट- हमें बदलना होगा पीढ़ियों के लिये तुरंत

*एक दर्द पैदा करती पोस्ट- हमें बदलना होगा पीढ़ियों के लिये तुरंत* 😔🤔
एक *मुस्लिम महिला की कलम से*......
(हिजाब के सम्बन्ध में)
*भगवा धोती तिलक कौन रोक रहा है सर*?
*आप ही लोग तो पीछा छुड़ाएं बैठे है इन चीजों से ! मुस्लिमों ने अपनी जड़ें न कल छोड़ी थीं न आज छोड़ने को राजी हैं*! 
*आप लोगों को तो खुद कुछ साल पहले तिलक, भगवा, शिखा, से शर्म आती थी, आप ही लोगों ने आधुनिकता के नाम पर सब कुछ त्याग दिया*! *आप नहीं त्यागते तो स्कूल में धोती कुर्ता पहनना नॉर्मल माना जाता!* *बीएचयू में डिग्री लेते वक्त बच्चों का भारतीय पारंपरिक पोशाक पहनना खबर बनता है, जबकि यह तो नॉर्मल होना चाहिए था न ?* *खबर तो यह होती न कि हिंदू छात्रों ने गाउन पहन कर डिग्री ली*!
*आपने खुद अपनी संस्कृति, अपने रीति रिवाज अपनी जड़ों को पिछड़ेपन के नाम पर त्यागा है*! *आज इतने साल बाद आप लोगों की नींद खुली है तो आप लोगो को उनकी जड़ों की तरफ लौटने के लिए कहते फिरते हैं*!
*अपनी नाकामी, अपनी लापरवाही का गुस्सा हमारी जड़ों को काट कर क्यों निकालना चाहते हैं आप?*
*आप के बच्चे कॉन्वेंट से पढ़ने के बाद पोएम सुनाते थे तो आपका सर ऊंचा होता था ! हमारे मुस्लिम घरों में बाप का सिर तब झुक जाता है जब बच्चा रिश्तेदार के सामने कोई दुआ न सुना पाए ! हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं कि सलाम करना सीखो बड़ों से, आप लोगों ने नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया तो यह हमारी गलती है ?*
*हमारे यहां बच्चा चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर मस्जिद जाता है! आप लोगो ने खुद मंदिरों की तरफ देखना छोड़ दिया तो बच्चे कैसे जानेंगे कि मंदिर के जाकर क्या करना है, यह हमारी गलती है?*
*आप लोगो ने नामकरण और मुंडन जैसे फंक्शन को बर्थ-डे और एनिवरसिरी से बदल दिया तो यह हमारी गलती है*?
*आप ने जब नया घर लिया तो पुराने घर से गीता लेकर नहीं आए तो यह भी हमारी गलती है?*
*आपके पास तो सब कुछ था- संस्कृति, इतिहास, परंपराएं*! *आपने उन सब को पिछड़पन की निशानी मान कर त्याग दिया, हम ने नहीं त्यागा बस इतना फर्क है! क्या सिखा रहे हैं आप अपनी पीढ़ी को?*
*आपको देखकर, आपके आचरण, आपके रहन सहन , आपकी आदतों से क्या सीखेगी आपकी आने वाली पीढ़ी*?
*तिलक तो घर से निकलने से पहले लगाते थे न आप लोग? क्यों छोड़ दिया? किसने रोका आपको?*
*आप का बच्चा कॉन्वेंट से पढ़ कर आता है और आप उसके बड़े होने पर अफसोस करते है कि देखो कॉन्वेंट हमारा कल्चर खा गया! पर कभी सोचा है कि बच्चा स्कूल से आकर तो आप ही के साथ आप के ही पास था? आपने क्या किया तब*?
*हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर उर्दू अरबी पढ़ने बैठ जाता है! आप को आज हिजाब के मामले पर याद आया कि यार हम भी तो भगवा गमछा ओढ़ सकते हैं*!
*पर इसके पहले आपने कोशिश क्यों नहीं की कभी? कल्चर तो बनाइए इसको पहले, तब बराबरी कीजिएगा कि हम भी पहनेंगे, ऐसा न हो कि जोश जोश में आप इजाजत ले लो, फिर आने वाली पीढ़ी खुद ही पहनना छोड़ दे*!

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मेरे विचार से हर व्यक्ति को इस पोस्ट पर ध्यान देना चाहिए और कम से कम एक बार तो परिवार मे सभी सदस्यो के साथ इस विषय पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए। सोसियल मीडिया पर दूसरे के धर्म को बुरा कहने से पहले हमें अवश्य ध्यान देना चाहिये कि हम अपने सनातन धर्म के प्रति कितने वफादार और समर्पित है।
*🌺जय जय श्री राधे🌺*

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