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शुक्रवार, 4 मार्च 2022

औषधीय तत्वों से भरपूर है - फिटकरी



फिटकरी से जुड़े इन उपायों से फौरन दूर होती हैं ऐसी समस्याएं,
होने लगता है धन लाभ


बिजनेस में प्रगति अगर धीमी है या फिर नौकरी में तरक्की नहीं मिल पा रही है तो लाल कपड़े में फिटकरी का टुकड़ा बांधकर उसे मुख्य दरवाजे पर लटका दें। फिटकरी के इस उपाय से आपको काफी लाभ मिलेगा।

हमारे घर और आस-पास सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की ऊर्जाएं होती हैं। वास्तु शास्त्र में वास्तुदोष को दूर करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इसके अलावा वास्तुशास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है। दिशाओं के अनुरूप घर में रखी हुई चीजों से ही घर में सकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवेश होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर और उसके आसपास सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह ऊर्जाएं रहती हैं। जिन घरों में किसी भी प्रकार का कोई वास्तु संबंधी दोष नहीं होता है वहां पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। वहीं दूसरी तरफ घर में वास्तुदोष होने पर तमाम तरह की बाधाएं और परेशानियां रहती हैं। वास्तुशास्त्र में वास्तुदोषों को दूर करने के लिए कई तरह के नियम और उपायों के बारे में बताया गया है। आप इन उपायों को अपनाकर घर से वास्तु दोष को दूर कर सकते हैं। हमारे घर के किचन में बहुत सारी ऐसी सामग्रियां होती हैं जिसका उपयोग वास्तु संबंधी दोषों के निवारण करने में सहायक होती हैं। आज हम आपको फिटकरी से जुड़े कुछ वास्तु उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका इस्तेमाल करके आप न सिर्फ घर से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रोक सकते बल्कि आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार, सेहत में सुधार और मानसिक शांति भी प्राप्ति कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि घर के वास्तु दोष को फिटकरी से कैसे दूर किया जा सकता है।

फिटकरी से जुड़े कुछ वास्तु उपाय

अगर आपके घर में रहने वाले सदस्यों की आय में लगातार गिरावट देखने को मिल रही हो या फिर आर्थिक उन्नति में कोई बाधा आ रही है तो धन लाभ और उन्नति के लिए नहाने के पानी में थोड़ा सा फिटकरी का टुकड़ा डालकर स्नान करें। ऐसा करने से आर्थिक उन्नति में आ रही बाधाएं दूर होंगी और धन लाभ भी होगा। इसके अलावा फिटकरी युक्ति पानी से स्नान करने पर त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा भी मिलेगा।

अगर आपके घर में छोटे बच्चे हैं और रात के समय वह अक्सर रोते हैं तो उनके ऊपर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो सकता है ऐसे में बच्चे के सोने के बिस्तर के नीचे फिटकरी का टुकड़ा रखना उपयुक्त होगा।

अगर आपके घर में कोई वास्तु संबंधी दोष है तो इस दोष के प्रभाव को खत्म करने के लिए घर के कोने में एक कटोरी में कुछ फिटकरी के टुकड़े लेकर रख दें। ध्यान रहें जहां पर भी फिटकरी से भरी कटोरी रखें उस स्थान पर लोगों की नजरें कम पड़ती हो। फिटकरी के इस उपाय से घर से वास्तु दोष और सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा थोड़े ही दिनों में भाग जाएगी। समय-समय पर फिटकरी से भरी कटोरी को बदलते भी रहना है।

अगर आपके घर में कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है तो यह आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा के होने की वजह से हो सकता है। इस दोष को दूर करने के लिए घर में पोंछा लगाते समय पानी में फिटकरी डाल लें। इस उपाय से घर के सदस्य कम बीमार पड़ेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी होने लगेगी।

बिजनेस में प्रगति अगर धीमी है या फिर नौकरी में तरक्की नहीं मिल पा रही है तो लाल कपड़े में फिटकरी का टुकड़ा बांधकर उसे मुख्य दरवाजे पर लटका दें। फिटकरी के इस उपाय से आपको काफी लाभ मिलेगा।

अगर आपके घर के सदस्यों के बीच अक्सर किस बात को लेकर लड़ाई-झगड़ा होता रहता है तो इस दोष को दूर करने के लिए खिड़की के पास शीशे की कटोरी में फिटकरी रख दें। ऐसा करने से निगेटिव ऊर्जा घर पर नहीं आएगी।

जिन लोगों पर कर्ज का बोझ ज्यादा है और समय पर इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो फिटकरी में सिंदूर डालकर उसके साथ एक पान का पत्ता लपेटकर बुधवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे रक्षासूत्र के साथ रख दें। फिटकरी के इस उपाय से जल्द ही आप कर्ज के बोझ से मुक्ति हो जाएंगे।

औषधीय तत्वों से भरपूर जानिए इसके और अन्य लाभ

आपने गले और सांस सम्बन्धी दिक्कतों को दूर करने के लिए लोगों को फिटकरी (Alum) के गरारे करने की सलाह देते हुए सुना होगा. तो कई लोगों को फिटकरी का इस्तेमाल करते हुए देखा भी होगा.लेकिन आपको बता दें कि फिटकरी का ये उपाय कोई नया नहीं है. ऐसी ही कई दिक्कतों को दूर करने के लिए फिटकरी का इस्तेमाल वर्षों से किया जा रहा है. दरअसल हमारे लिए फिटकरी कई तरह से फायदेमंद है. आज हम आपको फिटकरी के कई सारे फायदों के बारे में जानकारी देंगे.


दांत दर्द और मुंह की बदबु
दांत में दर्द से राहत पाने के लिए आप फिटकरी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
इसके लिए आप फिटकरी के पाउडर को एक गिलास पानी में मिलाकर इससे कुछ मिनट तक गरारे करें. अगर आपके मुंह से बदबू आती है तो इसको दूर करने के लिए भी इस तरीके का इस्तेमाल किया जा सकता है.

शारीरिक चोट व रक्त स्त्राव
शरीर के किसी हिस्से में चोट लगने पर खून का रिसाव रोकने के लिए फिटकरी का इस्तेमाल किया जा सकता है. फिटकरी के टुकड़े को चोट पर लगाने से खून का बहना बंद हो जाता है.

चेहरे की सुंदरता और झुर्रियां
चेहरे या हाथ-पैर की झुर्रियों को कम करने के लिए भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आप फिटकरी के टुकड़े से कुछ मिनट के लिए चेहरे और हाथ-पैर की मसाज करें फिर पानी से धो लें.

साफ और शुध्द पानी
बहुत लोग ऐसे होते हैं जो वाटर प्यूरीफायर का पानी इस्तेमाल न करके टैप वॉटर का इस्तेमाल करते हैं. इस पानी से गंदगी को निकालने के लिए फिटकरी का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए फिटकरी के बड़े टुकड़े को पानी में डुबोकर आधा मिनट तक घुमाइए फिर पानी को कुछ देर ढक कर रख दीजिये. कुछ देर में सारी गंदगी पानी के नीचे जम जाएगी.

पसीने की दुर्गंध
कुछ लोगों के पसीने में बहुत बदबू आती है. इसको दूर करने के लिए आप नहाने के पानी में दो चुटकी फिटकरी का पाउडर मिला दें. इससे पसीने की बदबू से छुटकारा मिल जायेगा.

सिर की गंदगी व जूं की समस्या
सिर की गंदगी और जूं को दूर करने के लिए भी आप फिटकरी की मदद ले सकते हैं. इसके लिए फिटकरी को पीस कर पानी में मिला दें फिर इस पानी से सिर और बालों को धोएं. इससे काफी राहत मिलेगी.

खून का थक्का जमना
गिर जाने या किसी वजह से चोट लग जाने पर जब चोट नज़र न आये, तो खून को जमने से रोकने के लिए भी फिटकरी का सहारा लिया जा सकता है. इसके लिए एक गिलास गुनगुने दूध के साथ आधा छोटा चम्मच फिटकरी पाउडर का सेवन कर सकते हैं. इससे बॉडी में ब्लड क्लॉटिंग होने का खतरा नहीं रहता है.

आफ्टर शेव लोशन
शेव करने के बाद फिटकरी के टुकड़े को शेव किये हुए हिस्से पर मलने से ये एंटीसेप्टिक का काम करती है. जिससे इंफेक्शन होने का खतरा नहीं रहता है. इसके साथ ही अगर शेव करते समय ब्लेड से चेहरे पर कहीं कट लग जाता है या खून निकल आता है तो इस पर भी फिटकरी का इस्तेमाल फायदा पहुंचाता है.

श्रीरामकिंकर वचनामृत

🌹🌷🚩 श्री राम जय राम जय जय राम🌹🌹🚩 जय जय विघ्न हरण हनुमान 🌹🌷🚩
...........!! *श्रीराम: शरणं मम* !!.........
         ।।श्रीरामकिंकर वचनामृत।।
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     *जब ईश्वर से राग हो जाता है तो*
     *बाकी सब से द्वेष नहीं हो जाता।*
   *भगवान्‌ से राग करने वाले में वैराग्य*
    *आ सकता है द्वेष नहीं आ सकता।* 
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      'मानस' में अरण्यकाण्ड के पात्रों में जितनी विचित्रता और विभिन्नता है वह किसी अन्य काण्ड में नहीं है। इस काण्ड में एक विचित्र पात्र सामने आता है जिसके विषय में यह सोचना पड़ता है कि 'उसे बुरा कहा जाय या भला कहा जाय ?' वह पात्र हैं -- मारीच। मारीच के विषय में जो प्रारम्भिक वर्णन आता है उसमें यह कहा जाता है कि वह मुनियों का यज्ञ नष्ट कर दिया करता था । पर एक बार जब भगवान्‌ राम के बाण के द्वारा उसे दूर समुद्र के किनारे फेंक दिया गया, वह सर्वत्र भगवान्‌ राम के दर्शन करने लगा। 
    रावण सीताजी के हरण की योजना में मारीच से जब सहायता माँगने आता है तो मारीच उसे समझाने की चेष्टा करता है। वह रावण से कहता है कि मैंने श्रीराम के बिना फल के बाण का प्रभाव देख लिया है, अतः उनसे बैर रखना ठीक नहीं होगा ! तुम क्यों ऐसा अनर्थकारी कार्य करते हो ? रावण उसकी बात नहीं मानता, उल्टे सहायता न देने की स्थिति में उसके सामने मृत्यु का भय उपस्थित कर देता है। मारीच यद्यपि नहीं चाहता, पर वह रावण के साथ मायामृग बनकर चल पड़ता है । वह सोचता है कि मेरी मृत्यु का समय तो आ ही गया है, अतः अच्छा है कि रावण के हाथों मरने के स्थान पर भगवान्‌ राम के हाथों मरूँ ! उसके हृदय में भगवान्‌ राम के प्रति प्रेम है पर वह रावण के पक्ष में और प्रभु के विरूद्ध कार्य करता हुआ दिखायी देता है। 
     गीता में अर्जुन ने भगवान्‌ कृष्ण से एक प्रश्न करते हुए कहा था कि प्रभु ! एक व्यक्ति तो ऐसा होता है कि जिसकी पाप में रूचि है, दूसरा व्यक्ति ऐसा है कि जिसकी पुण्य में रूचि है । पर ऐसा भी तो देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो पाप नहीं करना चाहते, बुराई नहीं करना चाहते पर - 
 *अथ  केन  प्रयुक्तोऽय॑  पाप॑  चरति  पूरूष:।*
 *अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।* गीता-3/36
     ऐसा लगता है कि बतपूर्वक उनको उस दिशा में प्रेरित किया जाता है। मारीच के जीवन में इस श्लोक का पूरी तरह से निर्वाह होता हुआ दिखायी देता है। मारीच अंत में प्रभु के हाथों मृत्यु को प्राप्त करता है। पर सबसे बड़ी विचित्रता खर-दूषण और त्रिशिरा आदि चौदह हजार राक्षसों की मृत्यु के रूप में दिखायी देती है। मन की भूमि दण्डकारण्य में ही ऐसी विचित्रता संभव है।
     ये सब राक्षस भगवान्‌ राम को देखकर सम्मोहित हो जाते हैं, भगवान्‌ के सौन्दर्य से अभिभूत हो जाते हैं। मन की भूमि में जब वासना का उदय हो जाता है, उस समय सौन्दर्य दिखायी दे यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लंका में रावण या किसी अन्य राक्षस को भगवान्‌ राम में न तो रूप-सौन्दर्य ही दिखायी देता है और न ही कोई गुण दिखायी देता है। इसका कारण यही है कि लंका अहंकार की भूमि है। मन की भूमि में तो दूसरे की सुंदरता दिखायी दे सकती है, पर *अहंकारी किसी को सुंदर, गुणी या अपने से श्रेष्ठ मान ले, यह तो संभव ही नहीं है।*
     वर्णन आता है कि भगवान्‌ राम उन चौदह हजार राक्षसों को अपना रूप प्रदान कर देते हैं। और वे राक्षसगण आपस में एक-दूसरे का सिर काटकर समाप्त हो जाते हैं। ये सब जानते थे कि हम सब परस्पर राम के द्वारा दृढ़ता से बँधे हुए हैं इसलिये आपस में न लडेंगे और न मरेंगे। पर यह मात्र एक भ्रान्ति ही सिद्ध होती है। इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि राग भी मारता है। इस संदर्भ में उपनिषद्‌ का एक बड़ा प्रसिद्ध वाक्य आता है जिसमें इस प्रश्न के उत्तर में कि “कौन रूलाता है ?” कहा गया है कि --        
             *'प्रिय: त्वां रौस्यसि'*
     तुम्हारा जो प्रिय है, वही तुम्हें रूलायेगा। यद्यपि साधारणतया यही माना जाता है कि विरोधी ही दुःख देता है पर यह पूरा सत्य नहीं आधा सत्य है। यह दिखायी भी देता है। संसार में ऐसा हो नहीं सकता कि कोई भी राग सर्वथा एक रस बना रहे, पर जहाँ एक रस राग हो सकता है वह तो एकमात्र ईश्वर ही है। 
      संसार में राग से जुड़ा हुआ एक दोष यह है कि जब किसी एक से राग हो जाता है तो दूसरे से द्वेष हो जाता है, पर *जब ईश्वर से राग हो जाता है तो बाकी सब से द्वेष नहीं हो जाता। भगवान्‌ से राग करने वाले में वैराग्य आ सकता है द्वेष नहीं आ सकता। और यदि द्वेष आ गया तो फिर वह भक्त नहीं है।*
      कहा जाता है कि ममता बड़ी दुःखदायी है। संतों को भी यही उलाहना रही कि -- 
     *ममता तू न गई मेरे मन से।*
     इस पर प्रभु ने बड़ी मीठी बात कहीं कि अगर ममता करनी ही है तो मुझसे करो। 
      “महाराज ! यदि ममता करना अच्छी बात नहीं है तो फिर आपसे क्यों करें ? आप ममता के स्थान पर भक्ति करने के लिये क्यों नहीं कह रहे हैं ? तो क्या हम संसार से जैसी ममता करते हैं, वैसी ममता आपसे भी कर लें ? 
    प्रभु ने कहा -- “संसार से ममता करने में और मुझसे ममता करने में एक अंतर है। संसार में जिससे तुम ममता करते हो, वह तुम्हें बाँघता है, पर जब मुझसे ममता करते हो तो मैं बँँध जाता हूँ। प्रभु विभीषणजी से कहते हैं कि मेरे चरणों को बाँध लेने का एक ही उपाय है कि -- 
     *जननी जनक बंधु सुत दारा।*
     *तनु धनु भवन सुहद परिवारा।।*
     *सब कै ममता ताग बटोरी।* 5/47/4, 5 
    और यह जो रस्सी बने उसे मेरे चरणों में बाँध दो -- 
    *मम पद मनहिं बाँध बरि डोरी।।* 5/47/5 
     संसार से ममता बाँधती है और भगवान्‌ से ममता हमें तो मुक्त करती है, पर भगवान्‌ बँध जाते हैं। भगवान्‌ से राग की विशेषता यही है कि --
     *जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी,*
     वह (संसार से ) वैराग्य प्रदान करता है। यही राग खरदूषणादि राक्षसों के विनाश का कारण बन जाता है। जहाँ राग नहीं होना चाहिये वहाँ वे राग किये हुए हैं और भगवान्‌ के प्रति द्वेष भाव रखते हैं। इसीलिये भगवान्‌ के द्वारा अपना रूप प्रदान करने पर भी वे आपस में लड़कर मर जाते हैं। यदि उनका भगवान्‌ में राग होता तो वे उन्हें सामने और सबमें एवं अपने में भी देखकर आनंदित हो जाते, फिर न तो विरोध शेष रहता और न ही विनाश की स्थिति आती । प्रभु में जिनका राग होता है उनकी वृत्ति क्या होती है, यह बताते हुए भगवान्‌ शंकर यही कहते हैं कि --
*उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध।*
*निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं विरोध।।* 7112 (ख)
     पर जीवन में जब ऐसी खरवृत्ति आ जाती है, दूषणवृत्ति आ जाती है तो व्यक्ति स्वयं अपना विनाश कर लेता है। इन चौदह हजार राक्षसों का वध भगवान्‌ राम को नहीं करना पड़ा, उन्होंने स्वयं अपना वध कर लिया, मानो आत्महत्या कर ली। गोस्वामीजी यही कहते हैं कि प्रभु तो बड़े कौतुकी हैं --
*सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर्‌यो।*
और इस खेल-खेल में ही -- 
*देखहिं परस्पर राम करि संग्राम रिपुदल लरि मर्‌यो।।* 3/16/छं. 
सारे राक्षसों का विनाश हो गया।.   
भगवान्‌ राक्षसों को अपना रूप देते हैं यह उनकी कृपा ही है। क्योंकि मुक्ति के जो चार प्रकार बताये गये हैं उनमें से एक मुक्ति *'सारूप्य मुक्ति'* है। प्रभु उन्हें यह दुर्लभ मुक्ति बड़ी सहजता से प्रदान कर देते हैं पर वे इसे पाकर भी अपने जीवन को धन्य नहीं बना पाते, सार्थक नहीं बना पाते। मनुष्य शरीर के विषय में भी ऐसी ही बात 'मानस' में कही गयी है। 
      भगवान्‌ राम अयोध्या के नागरिकों को उपदेश देते हुए कहते हैं कि 'व्यक्ति का यह सबसे बड़ा सौभाग्य है कि उसे मनुष्य का शरीर प्राप्त हुआ है। इससे बढ़कर कोई दूसरी वस्तु नहीं है -- 
    *बड़े भाग मानुष तन पावा।*
    *सुर दुर्लभ सद ग्रंथहि गावा।।* 7/42/7 
    व्यक्ति इस शरीर का सदुपयोग करके क्या नहीं पा सकता। लोगों को बहुधा जो वस्तु कठिनता से प्राप्त होती है, उसी का मूल्य लगाते हैं और जो सरलता से मिल जाय उसे मूल्यवान्‌ नहीं मानते। मनुष्य शरीर प्रदान कर ईश्वर ने उसे कितना बड़ा सौभाग्य प्रदान किया है, व्यक्ति का ध्यान इस ओर नहीं जाता। वस्तुतः --
    *कबहुँक करि करूना नर देही।*
    *देत   ईस   बिनु   हेतु  सनेही।।* 7/43/6 
    यह तो ईश्वर की अहैतुकी कृपा है। पर व्यक्ति इसे पाकर भी जब अपने आप को धन्य नहीं बना पाता, तो वह इस शरीर का दुरूपयोग करता है, मानो आत्महत्या करता है -- 
*सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।* 
                                         7/44
      व्यक्ति यदि अपने शरीर की रचना पर ध्यान दे, अंग-प्रत्यंग के कार्यों पर ध्यान दे तो वह चकित रह जायेगा। बाहर होने वाले आविष्कारों की कार्य-प्रणाली को देखकर आश्चर्यचकित होना भी स्वाभाविक है, पर व्यक्ति यदि अपने शरीर की ओर एक बार ध्यान से देख ले तो उसे यह सबसे बड़ा आश्चर्य प्रतीत होगा !
         👤 जय गुरुदेव जय सियाराम 🙏
🌹🌷🚩 श्री राम जय राम जय जय राम🌹🌷🚩 जय जय विघ्न हरण हनुमान 🌹🌷

सबसे आश्चर्यजनक छलावरण वाले जीव



सबसे आश्चर्यजनक छलावरण वाले जीव

जानवरों का एक पूरा झुंड है जो छलावरण का उपयोग करते हैं।

* रैटलस्नेक


रैटलस्नेक छलावरण में महान हैं। वे आमतौर पर रेगिस्तानी वातावरण में रहते हैं, इसलिए वे रेत की तरह दिखने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। यह न केवल साँप को खाने से रोकता है, बल्कि उसे अपने शिकार पर छींटाकशी करने की भी अनुमति देता है! अन्य सांप भी छलावरण का उपयोग कर सकते हैं, मैंने सिर्फ एक उदाहरण के रूप में रैटलस्नेक का उपयोग किया है!

* वोबबेगॉन्ग शार्क



वोब्बेगॉन्ग शार्क शार्क का प्रकार नहीं है जो शार्क का चित्र बनाते समय दिमाग में आता है, लेकिन वे शार्क का एक प्रकार हैं! वे अपने परिवेश में सम्मिश्रण के लिए कुख्यात हैं। वे मूंगा, चट्टानों और रेत की तरह दिख सकते हैं!

* लकड़ी का कीड़ा



लकड़ी का कीड़ा नाम इन कीड़ों को अच्छी तरह से सूट करता है, जैसा कि वे सिर्फ लाठी की तरह लगते हैं! वे कीट साम्राज्य में निश्चित रूप से सर्वश्रेष्ठ छलावरणों में से एक हैं!

आम पोटो

मानो या न मानो, इन तस्वीरों में से एक में एक पक्षी है। उनका छलावरण इतना शानदार है, कि वे पेड़ के तने / शाखा की तरह दिखते हैं।


हिम तेंदुए


नहीं, ये केवल चट्टानों की तस्वीरें नहीं हैं। प्रत्येक तस्वीर के भीतर, एक हिम तेंदुआ है।
यह आश्चर्यजनक है कि उनका छलावरण कितना अच्छा है। वे चट्टानों के बीच लगभग अदृश्य दिखते हैं! जैसा मैंने कहा, ऐसे कई और जानवर हैं जो छलावरण का उपयोग करने की क्षमता प्रदर्शित करते हैं। ये तो चंद उदाहरण थे!

गणेशजी को गजराज का सर लगाने के बाद, उनके असली कटे हुए सर का क्या हुआ?


इस गुफा में आज भी मौजूद है भगवान गणेश का कटा हुआ असली सिर
यहां और भी हैं कई रहस्य


भगवान का कटा सिर धरती पर एक गुफा में रखा है.
आइये आपको बताते हैं इस पवित्र गुफा के और भी कई रहस्य.


इस गुफा में रखा है भगवान का कटा सिर



ये जानकर आपको आश्चर्य जरूर होगा कि भगवान गणेश का असली सिर आज भी एक गुफा (Cleve) में मौजूद है. कहते हैं कि भगवान शिव ने गुस्से में आकर गणेश का सिर काट दिया था और उसे एक गुफा में रख दिया था. इस गुफा को 'पाताल भुवनेश्वर' के नाम से जाना जाता है. यहां गणेश भगवान को आदिगणेश भी कहते हैं. इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी. ये गुफा उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ के गंगोलीहाट (Gangolihat of Pithoragarh in Uttarakhand) से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

गणेश के सिर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं

यहां गुफा में मौजूद गणेश भगवान के सिर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं. भगवान गणेश के कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप में एक चट्टान है. इस ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है. कहते हैं कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था.

कटने के बाद कहां गिरा था भगवान गणेश का सिर?

देश-विदेश में भगवान गणेश के जितने भी मंदिर हैं उनमें उनकी हर मूर्ति के धड़ में हाथी का सिर लगा हुआ है. यही नहीं उनकी कोई भी तस्‍वीर, कैलेंडर या पेंटिंग भी ऐसी ही है. लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि गणेश जी का असली सिर एक गुफा में है. मान्‍यता है कि भगवान शिव ने गणेश जी का जो मस्‍तक शरीर से अलग कर दिया था उसे उन्‍होंने एक गुफा में रख दिया. इस गुफा को पाताल भुवनेश्‍वर के नाम से जाना जाता है. इस गुफा में विराजित गणेशजी की मूर्ति को आदि गणेश कहा जाता है. मान्‍यता के अनुसार कलयुग में इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी.

यह गुफा उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर दूर स्थित है. इसे पाताल भुवनेश्वर गुफा कहते हैं. मान्‍यता है कि इस गुफा में रखे गणेश के कटे हुए सिर की रक्षा स्‍वयं भगवान श‍िव करते हैं.


पाताल भुवनेश्वर की गुफा से जुड़ी जाने रोचक बातें

पाताल भुवनेश्वर की गुफा बहुत ही विशाल पहाड़ के अंदर है और ये गुफा जमीन से करीब 90 फीट गहरी है।

इस गुफा में कई अद्भुत करने वाले तथ्य नजर आते हैं। यहां पौराणिक कथाओं के अनुसार कई साक्ष्य मौजूद हैं, जो गणपति जी के सिर कटने से जुड़ी घटना की जानकारी देते हैं।

सर्वप्रथम पहली बार इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी और तब यह पता चला था कि गणपति जी का सिर यही कट कर गिरा था।

मान्यता है कि इस गुफा में पाया जाने वाले चार पत्थर चारों युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान्यता है कि चौथा पत्थर कलयुग का प्रतीक है।

दिनो दिन ये चौथा पत्थर बढ़ता रहता है। पौराणिक मान्यता है कि जिस दिन चौथा पत्थर गुफा की दीवार को छू लेगा, उस दिन कलयुग का अंद हो जाएगा।

गुफा के अंदर पाताल में माना जाता है कि बहुत से पौराणिक रहस्य छुपे हैं। यहां आने वाले भक्त इस पौराणिक साक्ष्यों का अपनी आंखों से देखते हैं।

गुफा के अंदर भगवान गणेशजी का कटा हुआ सिर ‍मूर्ति के रूप में स्थापित है। माना जाता है कि गणपति जी का सिर इसी पाताल में आ कर गिर गया था।

गणेशजी के सिर के ऊपर 108 पंखुड़ियों का ब्रह्मकमल भी नजर आता है और इस

ब्रह्म कमल से गणेशजी के कटे मस्तक पर जल की बूंदें सदा टपकी तरती हैं। इसे इस ब्रह्मकमल इसलिए कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी।

पाताल भुवनेश्वर गुफा में बद्रीनाथ, केदारनाथ और अमरनाथ की प्रतिमाएं भी विराजित हैं। यह पहला स्थान हैं जहां दिनों प्रतिमाएं एक साथ नजर आती हैं।

गुफा के अदंर शेषनाग और तक्षक नाग के प्रतीक भी नजर आते हैं। साथ ही बद्री पंचायत में लक्ष्मी-गणेश, यम-कुबेर, तथा वरुण-गरूड़ भी विराजित हैं।


गुफा में अमरनाथ की भी गुफा है, शिवजी की जटाएं पत्थर पर फैली नजर आती हैं वहीं इस गुफा के पास कालभैरव की जिह्वा के दर्शन भी किए जा सकते हैं।


मान्यता है कि कालभैरव जिह्वा नुमा गुफा से होते हुए यदि कोई मनुष्य उनके गर्भ के अंदर प्रवेश करते हुए पूंछ तक पहुंच जाता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आभार — शिव पुराण

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