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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

गुरुकुल पद्धति एवं आधुनिक शिक्षा – एक समाज-वैज्ञानिक विमर्श

गुरुकुल पद्धति एवं आधुनिक शिक्षा – एक समाज-वैज्ञानिक विमर्श
प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति – एक परिचय  

सीखना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है । मनुष्य समाज के विकास के साथ-साथ पीढ़ियों से अर्जित श्रुतज्ञान को लिपिबद्ध करने और फिर ज्ञान-विज्ञान को अपनी अगली पीढ़ियों में हस्तांतरित करने की आवश्यकता के क्रम में ज्ञान को संस्थाबद्ध किये जाने की आवश्यकता का अनुभव मनुष्य को हजारों वर्ष पूर्व हो चुका था । ज्ञान हस्तांतरण को संस्था का व्यवस्थित रूप देना एक कठिन कार्य था जिसे सबसे पहले भारतीयों ने वैदिक काल मे सफलतापूर्वक सुस्थापित किया । प्राचीन भारत में शिक्षा के आदान-प्रदान और शोध कार्यों के लिये आश्रमों, गुरुकुलों, परिषदों, सम्मेलनों और विश्वविद्यालयों का विकास तत्कालीन सत्ताओं और समाज के सहयोग से किया जाता रहा है । कालांतर में शिक्षा के इन केन्द्रों ने विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित की और विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में पाटलिपुत्र, नालन्दा, ओदंतपुरी, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा, जगद्दला, वल्लभी आदि की स्थापना ने भारत को शिक्षा के क्षेत्र में शीर्ष पर स्थापित कर दिया ।
बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ (1193) में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण के साथ भारतीय विश्वविद्यालयों को नष्ट करने, जलाने और सामूहिक हत्याओं की जो वीभत्स परम्परा प्रारम्भ हुयी उसके कारण बारहवीं शताब्दी के अंत तक भारत की गौरवमयी शिक्षा व्यवस्था का पूरी तरह अंत हो गया । तेरहवीं शताब्दी से लेकर अट्ठारहवीं शताब्दी के अंत तक भारतीय शिक्षा तत्कालीन राजाओं, दानदाताओं और स्वयंसेवी आश्रमों की कृपा पर निर्भर रही । ब्रिटिश काल में शिक्षा पूरी तरह उपेक्षित रही किंतु अठारहवीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिशर्स ने अपनी सत्ता संचालन के लिये देशज लोगों को तैयार करने के उद्देश्य से एक शोषणमूलक शिक्षा व्यवस्था को जन्म दिया । पश्चिमी षड्यंत्रों के फलस्वरूप उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के साथ ही आश्रम एवं गुरुकुल पद्धति पूर्णतः समाप्त कर दी गयी जिसके बाद भारत में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था अपने अस्तित्व में आयी । स्वाधीन भारत ने ब्रिटिश परम्पराओं का अनुकरण करते हुये नयी शिक्षा नीति का निर्माण अवश्य किया किंतु वह किसी भी दृष्टि से भारत के लोगों की आवश्यकताओं और परम्पराओं की पोषक व्यवस्था नहीं बन सकी । स्वातंत्र्योत्तर भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अविवेकपूर्ण प्रयोगों की अदूरदर्शी परम्परा स्थापित हुयी जिसने उच्च उपाधिधारी विद्यार्थियों के ऐसे समूह तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जो मानवीय गुणों से शून्य एवं आत्मविश्वासहीन होने के कारण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अव्यावहारिक सिद्ध हो रहे हैं । विद्यार्थियों में पनपती जा रही उग्रता, मनः अवसाद एवं आत्महत्या की प्रवृत्तियों ने शिक्षा के औचित्य पर गम्भीर प्रश्न खड़े कर दिये हैं । आज भारत में शिक्षा के स्तर में आयी भारी गिरावट के कारण निराशा और दिशाहीनता की स्थिति निर्मित हुयी है । पतन की स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि आज विश्व के श्रेष्ठ 200 विश्वविद्यालयों में भारत के एक भी विश्वविद्यालय का नाम नहीं है । 
भारत में, आज जबकि शिक्षा में नित नये प्रयोगों की एक श्रृंखला ही प्रारम्भ हो चुकी है और बुद्धिजीवी शैक्षणिक पतन से चिंतित हो रहे हैं, हमें एक बार पलट कर अपने गौरवशाली अतीत पर भी चिंतन करना चाहिये । यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो निम्न बिन्दुओं के आधार पर विमर्श का एक युक्तियुक्त धरातल निर्मित होता है –

1- शिक्षा का उद्देश्य :- प्राचीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य आत्मिक उन्नति, व्यक्ति निर्माण और गुणात्मक विकास हुआ करता था । उस समय की शिक्षा आज की तरह आजीविका मूलक नहीं थी । तब लोग आजीविका के लिये पारम्परिक कार्यों एवं कुटीर उद्योगों आदि पर निर्भर हुआ करते थे जिससे धीरे-धीरे उनमें पारम्परिक दक्षता और निपुणता आती गयी । आजीविका के लिये यह एक अच्छा और स्वाभाविक समाधान था । भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में शैक्षणिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण शिक्षा का उद्देश्य आजीविकामूलक हो जाना है । शिक्षा पूरी होने के बाद आजीविका न मिलने पर अवसाद होने और अपराध की प्रवृत्ति पनपने के दुष्परिणामों से भारतीय समाज को जूझना पड़ रहा है।
2- शिक्षा के विषय :- गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा के विषय और उनकी संख्या विद्यार्थी की रुचि और क्षमता पर निर्भर हुआ करती थी, आज ऐसा नहीं है । प्रारम्भिक कक्षाओं में हर विद्यार्थी को एक समान विषय पढ़ने की बाध्यता ने विद्यार्थियों में अध्ययन के प्रति अरुचि उत्पन्न कर दी है जिसके कारण वे उन्हें जैसे-तैसे बोझ की तरह ढोने के लिये बाध्य होते हैं । शिक्षा, मूलतः मनुष्य की उत्सुकता, उत्कंठा और आनन्द का विषय है । आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने शिक्षा को एक नीरस क्षेत्र बना दिया है । यहाँ आधुनिक शिक्षा के विषयों पर चिंतन करना एक महत्वपूर्ण बिन्दु है । गुरुकुल पद्धति के समय शिक्षा गुणाधान का माध्यम हुआ करती थी, विद्यार्थी का गुणात्मक विकास और नैतिक उत्थान महत्वपूर्ण था जिससे विद्यार्थी एक सभ्य और सुसंस्कृत नागरिक बन कर देश और समाज के कार्यों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित किया करता था । दुर्भाग्य से आज शिक्षा के क्षेत्र में हर प्रकार का नैतिक पतन आता जा रहा है जिसका एक बहुत बड़ा कारण अव्यावहारिक विषयों का अध्यापन किया जाना है । आधुनिक शिक्षा लोकहितकारी नहीं रही प्रत्युत वह औद्योगिक और शोषण मूलक होती जा रही है । यही कारण है कि उच्च शिक्षित और उच्च पदों पर बैठे लोग भी अनैतिक कार्यों में लिप्त पाये जा रहे हैं । वास्तव में शिक्षा के विषयों के चयन की प्रक्रिया एक जटिल किंतु देशज परम्पराओं व आवश्यकताओं पर आधारित सूझ-बूझ की अपेक्षा करती है जिसकी आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में उपेक्षा की जा रही है । यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि ‘सीखना’ जिज्ञासा शांत होने पर उत्पन्न संतुष्टि एवं आनन्द का एक मार्ग है । विद्यार्थी के लिये यह बोझ का कारण एवं अरुचिकर नहीं होना चाहिये । समाज और देश के लिये क्या उपयोगी एवं आवश्यक है इसका विचार किये बिना विषयों एवं पाठों का चयन शैक्षणिक पाखण्ड ही माना जायेगा जिसका व्यक्तिनिर्माण और सभ्य समाज की स्थापना में कोई योगदान नहीं है ।       
3- शिक्षा का माध्यम :- भारत में शिक्षा का भाषायी माध्यम भी एक बड़ी समस्या है । मनुष्य के सीखने की मूल प्रवृत्ति सहज साधनों, उपकरणों और मातृभाषा में ही सुगम हो पाती है । दुर्भाग्य से भारत में मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन की रुचि एक षड्यंत्र के फलस्वरूप समाप्त की जा रही है। नितांत अपरिचित भाषा में अध्यापन के कारण सीखने में बाधा, आत्मगौरव का अभाव और हीनभावना जैसे अवांछनीय दोषों से विद्यार्थियों को जूझना पड़ रहा है । गुरुकुल पद्धति में लोकभाषाओं, भारतीय भाषाओं एवं सुपरिचित सुसंस्कृत भाषा के अतिरिक्त किसी नितांत अपरिचित भाषा को माध्यम बनाये जाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था । शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षा के स्तर और भारतीयता के गौरव के लिये विदेशी भाषा के स्थान पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग बोधगम्यता और भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी युक्तियुक्त है ।
4- शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और पात्रता के मापदण्ड :- गुरुकुल प्रणाली में ज्ञान के लोककल्याणकारी उपयोगों के साथ-साथ दुरुपयोगजन्य संकटों पर भी दूरदर्शी चिंतन किया गया था । कोई विद्या किसी कुपात्र के पास न चली जाय जिससे पूरा समाज या राष्ट्र किसी संकट में पड़ जाय इस चिंता को ध्यान में रखते हुये गुरुकुल में प्रवेश की पात्रता-परीक्षा के कड़े नियम बनाये गये थे जो आज पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं । आधुनिक शिक्षा में पात्रता के मापदण्ड आज विद्यार्थी की प्रवृत्ति, क्षमता, स्वभाव, चरित्र, नैतिक मूल्य आदि न होकर पूरी तरह उसकी स्मरणशक्ति को आधार बनाकर निर्धारित किये जा रहे हैं । बौद्धिक आरक्षण ने शिक्षा को और भी पतन के गर्त में ढकेलने का काम किया है । अपात्र को दी हुयी विद्या निश्चित फलदायी नहीं हो सकती – यह एक समाज-वैज्ञानिक तथ्य है जिसकी आज पूरी तरह उपेक्षा की जा रही है । यह ध्यातव्य है कि गुरुकुल प्रणाली में शिष्य को भी अपना गुरु चुनने और उसकी पात्रता परीक्षा की अद्भुत व्यवस्था की गयी थी ।  
5- गुरु-शिष्य परम्परा :- गुरुकुल प्रणाली में गुरु-शिष्य सम्बंधों की अद्भुत गौरवमयी परम्परा विकसित की गयी थी । विश्वास, योग्यता, सम्मान, मानवीय और सामाजिक सम्बन्ध एवं निष्ठा के निर्मल धरातल पर स्थापित इस परम्परा में गुरु को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त था जो आज कहीं भी दिखायी नहीं देता । यह आधुनिक शिक्षा प्रणाली की ही देन है कि आज के शिष्यगण अपने गुरु को न केवल अपमानित करने को उद्धत रहते हैं अपितु उनके साथ हिंसक कृत्य करने में भी संकोच नहीं करते । गुरु आज अपने ही शिष्यों से सुरक्षित नहीं रह गये हैं जो निश्चित ही नैतिक पतन का स्पष्ट प्रमाण है ।
6- मूल्यांकन प्रणाली :- बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक भारतीय गुरुकुलों में विद्यार्थी की शिक्षा के मूल्यांकन की पद्धति व्यावहारिक और शिक्षा के विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखकर की जाती थी । सीखी हुयी विद्या के साथ-साथ विद्यार्थी का भी मूल्यांकन किये जाने की पद्धति प्रचलित थी । गुरु द्वारा पूरे अध्ययन काल तक विद्यार्थी का सतत मूल्यांकन किया जाता था जिसका उद्देश्य विद्यार्थी की सीखने की क्षमता, त्वरिता, अनुकरण, व्यावहारिक दक्षता, विद्या के उपयोग की योजना क्षमता एवं व्यक्तित्व परिवर्तन आदि हुआ करता था । आधुनिक शिक्षा में विद्यार्थी और उसमें आये व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन नहीं किया जाता जिसके कारण व्यक्ति निर्माण का उद्देश्य लगभग समाप्त सा हो गया है । आधुनिक शिक्षा में परीक्षा प्रणाली का आधार सीखना एवं व्यावहारिक पक्ष न होकर विद्यार्थी की स्मरण शक्ति है जिसे निश्चित ही किसी विद्यार्थी के सम्यक मूल्यांकन का वैज्ञानिक आधार नहीं माना जा सकता । वह बात अलग है कि निजी संस्थानों/उपक्रमों में सेवा हेतु दी जाने वाली परीक्षाओं में आज aptitude test को भी सम्मिलित किया गया है किंतु यह नियमित शिक्षा का आवश्यक भाग नहीं है । आधुनिक परीक्षा प्रणाली विद्यार्थी के निर्दुष्ट मूल्यांकन में पूरी तरह असफल सिद्ध हुयी है ।  
7- उपाधि की प्रामाणिकता :- संस्थागत् शिक्षा की पूर्णावधि एवं योग्यता मूल्यांकन के आधार पर विद्यार्थी की औपाधिक उपलब्धता के लिये गुरुकुल प्रणाली में नैतिक मापदण्ड विकसित किये गये थे । गुरु के द्वारा मात्र इतना कह देना ही कि – “तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुयी, अब तुम व्यावहारिक जीवन में लोककल्याण के लिये अपनी विद्या का सदुपयोग करने की दक्षता प्राप्त कर चुके हो” पर्याप्त माना जाता था । विद्यार्थी को दी गयी वाचिक उपाधि उच्च नैतिक मूल्यों एवं प्रतिष्ठा का प्रमाण थी जो आधुनिक शिक्षा में पूरी तरह समाप्त हो गयी है । गुरुकुल, आश्रम या विश्वविद्यालय की विशिष्ट प्रतिष्ठा ही विद्यार्थी की उपाधि की प्रतिष्ठा व स्तर निर्धारित किया करती थी ।  
8- सामाजिक दायित्व की भूमिका :- वैदिक एवं उत्तरवैदिक काल में शिक्षा को धार्मिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व माना जाता था जिसके कारण आश्रमों, गुरुकुलों, परिषदों और सम्मेलनों में समाज ने स्वस्फूर्त दायित्व सुनिश्चित किये हुये थे । शिक्षा को आत्मज्ञान का माध्यम स्वीकार किये जाने के कारण समाज का सहज दायित्व तत्कालीन समाज की जागरूकता का प्रमाण है जो आज कहीं दिखायी नहीं देती । समाज के दायित्व को शिक्षा के व्यापारियों ने बड़ी चालाकी से हथिया लिया है । आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा अब एक व्यापार के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुकी है । शिक्षा की मूल अवधारणा इस व्यापार के विरुद्ध है । शिक्षा-उद्योग शिक्षा को लोककल्याणकारी न बनाकर शोषण एवं उत्पादनमूलक बनाता है । विद्या का पवित्र भाव अब समाप्त हो चुका है जिसके कारण निर्धन विद्यार्थियों के लिये उच्च शिक्षा एक स्वप्न बनकर रह गयी है ।  
9- शैक्षणिक संस्थाओं की संचालन व्यवस्था :- उत्तरवैदिक काल में शिक्षा का स्वैच्छिक दायित्व यद्यपि समाज के अधीन था तथापि आश्रमों एवं गुरुकुलों आदि की आंतरिक व्यवस्था पूर्णतः संस्थागत(Autonomous body) हुआ करती थी । सत्ता एवं समाज का कोई हस्तक्षेप न होने के कारण शिक्षा सभी प्रकार के दोषों एवं भ्रष्टाचारों से मुक्त थी । भारतीय समाज मान्यताओं में विद्या को उपासना स्वीकार किया गया है । आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने विद्या के इस स्वरूप को समाप्त कर दिया है जिसके कारण सामाजिक पतन और मनुष्यजन्य दुःखों से हम सभी जूझने के लिये बाध्य हुये हैं ।

निष्कर्ष :-
1- आधुनिक शिक्षा “शिक्षा” के मूल उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल सिद्ध हो रही है ।
2- शिक्षा के औद्योगीकरण ने शिक्षा की पवित्रता को नष्ट कर दिया है ।
3- शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे प्रयोग एक तरह से स्वीकारोक्ति है कि अभी हमें शिक्षा के स्वरूप और उसकी व्यवस्था पर बहुत चिंतन एवं सुधार करने की आवश्यकता है ।
4- चिंतन के विषय और सुधारों की दिशा क्या हो, इसका मार्गदर्शन हमें प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के गौरवशाली इतिहास से मिल सकता है ।
5- वास्तविक सुधार की राजनैतिक दृढ़ इच्छाशक्ति एवं समाज के संकल्प के सहयोग से शिक्षा को न केवल पूर्ववत् प्रतिष्ठा दिलायी जा सकती है अपितु इसके लोककल्याणकारी स्वरूप को भी पुनः स्थापित किया जा सकता है ।     

१. प्राचीन भारत का शिक्षा-दर्शन

ब्रह्मचर्य आश्रम, परा एवं अपरा विद्या, अध्यात्म विद्या, व्यक्ति-केन्द्रित शिक्षा, विश्‍व-बंधुत्व की भावना, धर्माधारित ज्ञान-विज्ञान एवं कला की शिक्षा

२. प्राचीन भारत की शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधार

मनुष्य की मूल प्रकृति आध्यात्मिक, समस्त ज्ञान मनुष्य के अन्तर में, अन्त:करण-चतुष्टय, ज्ञान-प्रक्रिया, एकाग्रता, ब्रह्मचर्य, संस्कार-सिद्धान्त, योग-विज्ञान

३. प्राचीन भारतीय शिक्षा में पाठ्य विषय

वेद-वेदांगादि की शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, औद्योगिक शिक्षा, चिकित्साशास्त्र की शिक्षा, पशु-चिकित्साशास्त्र की शिक्षा, कृषि-विज्ञान एवं पशुपालन की शिक्षा, सैनिक शिक्षा

४. प्राचीन शिक्षा में चौसठ कलाएँ

संगीत, नृत्य एवं वाद्य कला, अलंकार एवं वेशधारण, शल्य-क्रिया एवं रसायन-मिश्रण, नियुद्ध एवं मल्ल-युद्ध, मुद्राएँ बनाना, वास्तु कला, वस्त्र रंगना, यंत्रों का निर्माण, रत्नों की पहचान, वस्त्र-सीवन, लेखन-कला, वैमानिक कला

५. प्राचीन भारत में सामान्यजन की शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, सभी वर्णों के लिए शिक्षा, लोक-शिक्षण, षोडश संस्कार

६. प्राचीन भारतीय शिक्षा में गुरु-शिष्य सम्बन्ध

उपनयन संस्कार, ब्रह्मचारी का तपयुक्त जीवन, समावर्तन, गुरु-दक्षिणा, गुरु की महत्ता

७. प्राचीन भारत में प्रयुक्त कुछ आदर्श शिक्षण-विधियॉं

श्रुतज्ञान, ब्राह्मण-संघ/परिषदें, विभिन्न शिक्षण-विधियॉं, बालकेन्द्रित शिक्षण

८. प्राचीन भारत में परीक्षा एवं मूल्यांकन

वर्तमान भारतीय शिक्षा एवं मूल्यांकन, प्राचीन भारतीय शिक्षा एवं मूल्यांकन- प्रवेश परीक्षा, सतत एं सर्वांगपूर्ण मूल्यांकन, समावर्तन के अवसर पर परीक्षा

९. चीनी यात्रियों के अनुसार भारतीय शिक्षा

फाहियान का विवरण, हुएन-त्सांग का विवरण, ईत्सिंग का विवरण

१०. भारत के प्राचीन विद्या-केन्द्र एवं विश्‍वविद्यालय

तक्षशिला, काशी, नालन्दा, वलभी, विक्रमशिला, जगद्दला, ओदन्तपुरी, मिथिला, नदिया, कांची

११. प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक

चरक, भरद्वाज, कपिल, कणाद, पतंजलि, सुश्रुत, नागार्जुन, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, जीवक

१२. संस्कृत वाङ्मय में शिक्षा-सूत्र

वेदों में, उपनिषदों में, हितोपदेश में, श्रीमद्भगवद् गीता में, चाणक्य-नीति, शुक्रनीति, कालिदास के ग्रन्थों में, चरक संहिता एवं अन्य ग्रन्थों में

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान

अफगानिस्तान की गुफा में मौजूद है 5000 साल पुराना विमान
अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान.....

महाभारत कल्पना नहीं, एक हकीकत
लंबे समय से रामायण, महाभारत काल को केवल एक काल्पनिक गाथा के रुप में माना जा रहा था। परंतु यह सत्य नहीं है। जो लोग इस काल को काल्पनिक मान रहे हैं, उन्हें अब यह स्वीकार करना होगा कि महाभारत और रामायण काल भारत का गौरवमयी इतिहास था। जिसे कोरी कल्पना मानना एक भूल थी। अफगानिस्तान की विशाल गुफा में टाइम वेल में 5000 साल पुरान महाभारत कालीन विमान के फंसे होने की पुष्टि हुई है। इस विमान के मिलने का खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है।

अफगानिस्तान में सदियों पहले था आर्यों का राज
मौजूदा अफगानिस्तानन में हिंदू कुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है ।जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन देश हैं। ईसा के 700 साल पूर्व तक यहां पर आर्यों का साम्राज्य था। इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था। जिसके बारे में महाभारत के अलावा कई अन्य ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। अफगानिस्तान की सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला का नाम आर्याना था। इतना ही नहीं हवाई कंपनी भी आर्याना के नाम से जानी जाती थी। इस्लाम धर्म से पहले मौजूदा अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह नामों से पुकारा जाता था। वहीं पारसी मत के प्रवर्तक जरथ्रुष्ट द्वारा रचित ग्रंथ जिंदावेस्ता में इस भूखंड को ऐरीन-वीजो या आर्यानुम्र वीजो कहा गया है। सबसे खास बात यह है कि मौजूदा अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद हैं। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि यहां पर कभी आर्यों का राज था

अफगानिस्तान की गुफा में मौजूद है 5000 साल पुराना विमान

मौजूदा अफगानिस्तान में 5000 साल पुराने महाभारत कालीन एक विमान मिला है। यह विमान महाभारत काल का माना जा रहा है। इसका खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है। अफगानिस्तान की एक प्राचीन गुफा में महाभारत काल का यह विमान टाइम वेल में फंसा हुआ है। इसी कारण यह आज तक सुरक्षित बना हुआ है। जो विमान मिला है, इसके आकार प्रकार का पूर्ण विवरण महाभारत व अन्य प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है। वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किए गए खुलासे अनुसार प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने इस विमान को बाहर निकालने की सभी कोशिशें नकाम हो चुकी है। अमेरिका नेवी के आठ कमांडो इस विमान के पास पहुंचने में कामयाब भी हुए। परंतु टाइम वेल सक्रिय होने पर यह सभी गायब हो गए। अमेरिकी, रुस राष्ट्रपति सहित ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर इस साइट का अतिगोपनीय दौरा भी किया जा चुका है।

क्या होता है टाइम वेल
टाइम वेल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है। इस कारण इस क्षेत्र में मौजूद सामान सुरक्षित रहता है। यही कारण है कि इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता ह

विमान की क्या है खासियत
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज की रिपोर्ट अनुसार इस 5000 साल पुराने विमान का जब इंजन शुरू होता है। जिसमें से बहुत तेज रोशनी ‍निकलती है। इस विमान के चार पहिए है। इसमें कई तरह के हथियार भी लगे हुए हैं। यह सभी हथियार प्रज्जवलन शील है। इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टाइम वेल सर्पाकार है। इसके संपर्क में आते ही सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इस सर्पाकार टाइम वेल की थ्योरी समझने के लिए वैज्ञानित प्रयासरत हैं। फिलहाल तक इस टाइम वेल का समाधान नहीं निकाला जा सका है।
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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

हिन्दू नववर्ष पर वर्षो बाद दुर्लभ योग: जानें किस राशि के लिए अनुकूल-किसके लिए प्रतिकूल

*⛩️🦁हिन्दू नववर्ष पर 1500 वर्षो बाद दुर्लभ योग: जानें किस राशि के लिए अनुकूल-किसके लिए प्रतिकूल🦁⛩️*
*🎊आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🙏*

☝️नवसंवस्तर यानी हिंदू नववर्ष, वैदिक पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होता है, जो इस वर्ष 2 अप्रैल, 2022 को है। साल 2022 का यह नवसंवत्सर अर्थात् नया साल प्रचलित रूप से विक्रम संवत 2079 के नाम से भी जाना जाएगा। यह विक्रम संवत नल नाम का संवत है और यह इंद्राग्नि युग का अंतिम वर्ष है। एक युग में पांच वर्ष होते हैं। इस वर्ष के राजा शनि ग्रह हैं और इस वर्ष के मंत्री गुरु ग्रह हैं। 

☝️विक्रम संवत 2079
नवसंवत्सर के पहले दिन के स्वामी को उस पूरे वर्ष में राजा का दर्जा दिया जाता है। चूँकि इस बार नवसंवत्सर 2079, 2 अप्रैल शनिवार के दिन से शुरू हो रहा है तो इस वर्ष ग्रहों के मंत्रिमंडल के राजा कर्मफलों के दाता और न्यायधीश माने जाने वाले शनिदेव रहेंगे। साल 2022 में शुरू होने वाला यह नवसंवत्सर शनिदेव के प्रभाव के कारण कई मामलों में खास रहने वाला है।
 *इस नववर्ष में जहाँ एक ओर शनि राजा के सिंहासन पर विराजमान है, तो वहीं दूसरी ओर देव गुरु बृहस्पति मंत्री के स्थान* पर रहेंगे। 

☝️शनि और गुरु का मंत्रिमंडल को संभालना जातकों के जीवन को कई मायनों में प्रभावित करेगा। जिसमें एक संयोग यह है कि शनि और बृहस्पति जो धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं, अप्रैल के महीने के दौरान राशि बदलने जा रहे हैं। दोनों ही ग्रह बहुत आरामदायक स्थिति में होंगे अर्थात शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में चले जाएंगे और बृहस्पति अपनी ही राशि मीन में गोचर करेंगे। इसलिए इस गोचर के कारण ये ग्रह अपना अधिकतम फल देने में सक्षम होंगे। न्यायधीश शनि जातकों के जीवन में कर्म फलों को प्रदान करने वाले रहेंगे तो वही गुरु बृहस्पति नकारात्मकता के अंधकार में ज्ञान की सकारात्मकता प्रदान करेंगे। 

* इस बार ग्रहों का मंत्रालय राजा और मंत्री के अतिरिक्त 5 पाप ग्रहों और 5 शुभ ग्रहों के अधीन रहेगा। जिसमें शनि-राजा, बृहस्पति-मंत्री, सूर्य-सस्येश, बुध-दुर्गेश, शनि-धनेश, मंगल-रसेश, शुक्र-धान्येश, शनि-नीरसेश, बुध-फलेष, बुध-मेघेश रहेंगे। विक्रम संवत 2079 का निवास स्थान कुम्हार का घर और समय का वाहन अश्व रहेगा, चूँकि घोड़ा तेज़ गति को दिखाता है इसलिए इस साल तूफ़ान, भूकंप, चक्रवात, भूस्खलन आदि कारणों से जान-माल को भारी क्षति होने की संभावनाएं है*

☝️सनातन धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार ब्रम्हा जी द्वारा सृष्टि की रचना इसी दिन की गई थी, इसलिए प्राचीन काल से ही हिन्दू नव वर्ष का प्रारंभ इस दिन से माना जाता है। कई जगहों पर लोक प्रसिद्ध कहावतें यह भी है राजा विक्रमादित्य के समय में कुछ भारतीय वैज्ञानिकों ने पंचांग का प्रयोग करके हिन्दू कैलेंडर का निर्माण किया था, इसलिए नव वर्ष की शुरुआत को उनके नाम पर विक्रम संवत की तरह जाना जाता है। विक्रम संवत को सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास जैसे पांच भागों का समावेश होता है। 

*💖1500 वर्षों बाद हिन्दू नववर्ष पर बना दुर्लभ योग💛*

☝️वर्ष 2022 में, 1500 साल बाद रेवती नक्षत्र और तीन राजयोगों के अत्यंत दुर्लभ संयोगों में हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ हो रहा है। ज्योतिष के जानकारों की माने तो नवसंवत्सर में बनने वाली ग्रह नक्षत्रों की यह स्थितियां कई मायनों में खास है। विक्रम संवत 2079 के आरम्भ में ही मंगल अपनी उच्च राशि मकर में, राहू अपनी उच्च राशि वृषभ में तथा केतु अपनी उच्च राशि वृश्चिक में रहेंगे। ग्रहों के राजा के रूप में शनि भी अपनी ही राशि मकर में गोचर करेंगे। इसलिए इस बार हिन्दू नववर्ष की शुरुआत शुभ संयोगों में 1500 साल बाद शनि-मंगल की युति में हो रही है। विक्रम संवत 2079 में बनने वाले इन शुभ योगों का फायदा मिथुन, तुला और धनु राशि के जातकों को मिलेगा। ये संयोग इन जातकों के जीवन में धन-समृद्धि, सफलता और सौभाग्य लेकर आएंगे। यह वर्ष लोगों के जीवन में कई बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आएगा।

*💖शनि-गुरु की अधीनता वाले इस वर्ष का भारत पर सकारात्मक/नकारात्मक प्रभाव💛*

☝️विकासशील देशों जैसे भारत आदि में व्यापार के नए आयाम मिलेंगे। जिनसे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

भारत की कूट नीति की विश्व स्तर पर प्रशंसा की जाएगी।

देश के कुछ हिस्सों में अच्छी फसल होने के बाद भी अकाल की स्थिति बन सकती है।

आम जनता पर महंगाई की मार पड़ेगी।

‘नवसंवत्सर’ को देश के अलग-अलग भागों में कई अलग नामों से जाना जाता है, जैसे:-
असम- रोंगली, बिहू

महाराष्ट्र- गुड़ी पड़वा

पंजाब- वैशाखी

जम्मू कश्मीर- नवरेह

आंध्र प्रदेश- उगादि

केरल- विशु

सिंधी समुदाय- चेतिचंद

*💖विक्रम संवत 2079 भारत और विश्व के लिए कैसा रहेगा💛*

☝️कई देशों की सरकार या उच्च अधिकारियों को नागरिकों द्वारा आंदोलनों का सामना करना पड़ता है।

प्राकृतिक आपदाओं की संभावना रहेगी और कम वर्षा एक समस्या पैदा कर सकती है।

इतने उतार-चढ़ाव के बावजूद सरकार मजबूत स्थिति में होगी और सभी समस्याओं को नियंत्रित करने में सक्षम होगी।

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होगा, पिछले दो वर्षों में हमें कोविड के कारण जो भी नुकसान हुआ है, उसे इस वर्ष ठीक कर दिया जाएगा।

अराजक तत्वों के कारण पश्चिमी देशों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

☝️किसान, सेवा वर्ग के लोगों और श्रमिक वर्ग के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

इस वर्ष के दौरान शिक्षक, परामर्शदाता, संरक्षक लाभान्वित होंगे।

लोगों का झुकाव धार्मिकता की ओर होगा।

सरकारी क्षेत्र से लोगों को फायदा हो सकता है।

विद्यार्थियों को लाभ होगा।

महिलाओं को सशक्त किया जाएगा।

*💖राशि अनुसार प्रभाव💛*

☝️सामान्य तौर पर यह गोचर वृष, तुला, मकर, कुम्भ, धनु और मीन राशि के जातकों के लिए अच्छा रहेगा। वे इस साल भाग्य का साथ पाएंगे। इन राशि के जातक पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से विकसित होंगे।

☝️सिंह, कर्क, वृश्चिक और मेष राशि के जातकों को इस वर्ष सचेत और सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि उनका अहंकारी, आक्रामक और आधिकारिक व्यवहार आपको समस्याओं की ओर ले जा सकता है जिससे कार्यस्थल और व्यक्तिगत संबंधों में आपकी छवि खराब होगी, आपको अपने बारे में सतर्क रहने की भी आवश्यकता है। स्वास्थ्य अज्ञानता के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं या दुर्घटनाएं हो सकती हैं।

☝️कन्या और मिथुन राशि के लिए यह एक औसत वर्ष होगा उन्हें अपने कर्मों का फल मिलेगा।

*💖इस वर्ष शनि और गुरु की विशेष कृपा के लिए ज़रूर करें ये उपाय

प्रतिदिन भगवान हनुमान की पूजा करें। जब आप भगवान हनुमान की पूजा करते हैं और खुद को उन्हें पूरी तरह से समर्पण कर देते हैं तो यह आपके लिए शनि की सकारात्मक ऊर्जा लेकर आएगा।

विकलांग लोगों की सहायता करें और उन्हें अपनी सेवा प्रदान करें।

अपने जीवन से अव्यवस्था को दूर करें और संगठित रहें। भौतिक वस्तुओं में अव्यवस्था या मन में अव्यवस्था शनि को पसंद नहीं है।

शनिवार के दिन गरीबों को भोजन कराएं।

गुरुवार को मंदिर में बृहस्पति ग्रह की पूजा करें।

बृहस्पति बीज मंत्र का प्रतिदिन 21 बार जाप करें।

गुरुवार के दिन बृहस्पति को पीले फूल चढ़ाएं।

गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें और जल चढ़ाएं।

शनिवार के दिन गरीबों को केले बांटें।

गुरुवार के दिन गायों को चना दाल और गुड़ के आटे की लोई खिलाएं।

*☝️इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा हमारे साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं

  
*🛕🕉जय श्री महाकाल प्रभु नम:🌿🙏*

*⛩️🛕आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🙏⚜️⛩️*

रविवार, 3 अप्रैल 2022

अपने लिये *"राष्ट्रीय हिन्दू बोर्ड"* बनाने की मांग कीजिए

*एक सुझाव* 

जब कभी कोई सनातनी आधुनिक Social मिडिया के युग में, हिन्दूत्व की लड़ाई लड़ते हुए किसी मुसीबत में फँस जाता है, किसी कानूनी पचड़े में फँस जाता है या अधर्मियों के हाथों शिकार हो जाता है तो वह सहायता के लिये किसे पुकारे? क्या कोई ऐसी संस्था है या कोई हेल्पलाइन है जिसे वह अपनी रक्षा के लिये गुहार लगाये, या फिर वह बंगाल के हिन्दुओं की तरह चुपचाप मरता कटता रहे!

आज़ हर हिन्दू Social मीडिया पर हिंदूवादी पोस्ट डालते हुए कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना रखता है, कहीं वह या उसका परिवार किसी भयंकर आपदा में फँस गया तो कौन सहायता करेगा? 

अपने अपने स्तर पर सभी हिन्दू धर्म के युद्ध में अकेले लड़ाई लड़ रहें हैं,
क्या उनकी सुरक्षा की गारंटी कोई State गवर्नमेंट या सेंट्रल गवर्नमेंट लेती है?

क्या बंगाल के हिन्दुओं के परिवारों के साथ जो हिंसा और बलात्कार हुए, उन्हें बचाने के लिये कोई संगठन सामने आया... ?

जबकि दूसरे धर्मों में उनका *"ईसाई मिशनरी, वक्फ बोर्ड अथवा गुरुद्वारा कमेटी"* अपने समुदायो के लोगों के लिये संगठित होकर आगे आते हैं और ऐसा आन्दोलन छेड़ते हैं कि प्रसाशन एवं मिडिया के कान के परदे तक हिल जायें, उदाहरण के लिये देश भर में प्रतिदिन सैकड़ों लड़कियों को जिहादियों द्वारा उठा लिया जाता हैं, उनका बलात्कार किया जाता हैं, उनका धर्म परिवर्तन किया जाता है और हम Social मिडिया पर कुछेक पोस्ट डालकर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं और भूल जाते हैं,
मगर पंजाब में 2 सिख लड़कियों के मामले को लीजिये, देशभर के सभी सिक्खों ने एकत्र होकर एक ऐसा आन्दोलन छेड़ दिया कि जिहादियों द्वारा उन लड़कियों को छोड़ना पड़ा जबकि निकाह भी हो गया था, जिहादी न तो कोर्ट का सहारा ले पाये और न थाने पुलिस का!

जानते हो ऐसा कैसे संभव हो सका, कैसे सारे सिख एक साथ एक मंच पर अपने सभी काम धंधों को छोड़कर एक हो गये??? 🤔

क्योंकि सभी सिक्खों को एकत्र करने और संचालन करने वाली उनकी *"गुरुद्वारा कमेटी"* है, जिसका चुनाव स्वयं सिक्ख समुदाय अपने वोट देकर करता है, उसी प्रकार जिहादिओं का बचाव उनका *"मुस्लिम वक्फ बोर्ड"* करता है, यहाँ तक कि उनके दोषी होने पर भी उनका साथ देता है, उसी तरह ईसाई पादरियों पर बलात्कार का चार्ज तक होने पर भी उन्हें उनकी ईसाई मिशनरी बचा ले जाती है!
और दूसरी तरफ हम बेचारे हिन्दू...?

क्या हिन्दुओं में इतना विवेक नहीं है कि वो भी अपने लिये एक *"राष्ट्रीय हिन्दू बोर्ड"* जैसी संस्था का गठन कर सके, जो सभी सनातनियों के लिये एक ढाल का काम कर सके, उन्हें जिहादियों, प्रशासन और दूसरी बाह्य शक्तियों से लड़ने की शक्ति दें सके....?
बिलकुल बना सकते हैं, *"किन्तु समस्या यह है कि हममें से कुछ बुद्धिजीवी जो अपने आपको वयस्क एवं समझदार समझने लगते हैं, वे लोग किसी न किसी राजनैतिक विचारधाराओं से जुड़े होते हैं, फलस्वरूप वे न तो इस विषय में खुद कुछ सोचते हैं और न किसी और के विचारों को सुनने की क्षमता रखते हैं, उन्हें ऐसा लगता हैं कि इस तरह किसी और कि बातें सुनने और मानने लगे तो उनकी क्या हैसियत रह जाएगी* 

अब सोचना किसको है, सोचना हमें और आपको है, सिर्फ़ सोचना ही नहीं करके दिखाना है....!

तो आइये एक साथ आगे बढिये और अपने लिये *"राष्ट्रीय हिन्दू बोर्ड"* बनाने की मांग कीजिए जिसके मेंबर्स का चुनाव प्रत्येक 2 वर्षों के लिये प्रत्येक साधारण हिन्दू जो 18+ का हो अपने वोट डालकर करें!

इस बोर्ड के गठन के लिये प्रधानमंत्री द्वारा किसी अध्यादेश लाने की आवश्यकता नहीं होगी, और न संसद के किसी सदन में कोई बिल पारित करना होगा, बल्कि प्रधानमंत्री महोदय अपने सरकारी गजट में इसे छपवा देंगे और हो गया काम!
किन्तु प्रधानमंत्री इसे करेंगे तभी जब देश के करीब 40 करोड़ हिन्दू अपने पत्र द्वारा उन्हें ऐसा करने के लिये बाध्य करें...!

यदि एक बार यह लागू हो गया तो देश के सभी प्रमुख मंदिरों की धन-संपत्तियों और करोड़ों अरबों रूपए के चंदे से सरकार का अधिपत्य हट कर हिन्दु-बोर्ड के हाथों में आ जायें, जिसे वे अपने धर्म के लोगों की भलाई के लिये खर्च कर सकेंगे, नाकि किसी जिहादी समुदायो को फ्री की सब्सिडी और उनके मौलवीओ की तनख्वाह पर खर्च करेंगे!
इससे समस्त हिंदू समाज एक सूत्र में बंध जायेगा और अन्य सम्प्र्दायों की तरह जाति पाती को भुलाकर स्वयं को सिर्फ़ हिन्दू कहलाना पसंद करेगा!

हिन्दू एक सशक्त वोट बैंक होगा, उसे अपने हित के लिये किसी राजनैतिक दल पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, बल्कि सभी राजनैतिक दल कोर्ट पर जनेऊ डालें हिन्दुओं के तलवे चाटते नज़र आयेंगे...

इसे क्रियान्वयन में लाने के लिये क्या करना है... यह जानने के लिये कृपया अपना सहयोग दीजिए ताकि आपको अगला कदम के बारे में बताया जा सके!
सविनय निवेदन
           ............
🚩🚩🚩जय श्रीराम 🚩🚩🚩

*क्या हिन्दू होने के नाते आप इसे आगे फारवर्ड करेंगे ?*

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फिल्मों का मोदीकरण

फिल्मों का मोदीकरण...
यह एक फिल्म "आरआरआर" का पोस्टर है... इस फिल्म ने परसों अपनी रीलीज के पहले दिन 257 करोड़ रुपए कमायें हैं जो किसी भी भारतीय फिल्म के लिए सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। इस फिल्म के निर्देशक एसएस राजामौली हैं जिनकी पिछ्ली दो फिल्मों "बाहुबली" ने सबसे अधिक कमाई का रिकॉर्ड बनाया था जो स्वयं राजामौली ने ही तोड़ दिया है...

इस बीच किसी करण जौहर या आदित्य चौपड़ा की कोई लिजलिजी फिल्म या शाहरुख सलमान आमिर सैफ अख्तर की कोई भी फिल्म 2016 के दिसम्बर के बाद से हिट नहीं हुई है... सारी कैटरिनायें, दीपिकायें, प्रियंकायें, आलियाएं अपने मोमजामे में वापस लौट गई हैं... पाकिस्तान के किसी सिंगर का कोई गाना या वहां के किसी जावेद फरहाद को भारत में पहले की तरह "सैटल्ड दीवानगी" नहीं मिल रही... इस बीच साउथ की "पुष्पा" ने भी भारत के दिल में फायर जगाई है... और 65 पार के साउथ वाले रजनीकांत आज भी "थलाइवा" बने हुए हैं उत्तर भारत में भी...

यह बात देश के सेक्युलर्स और बुद्धिजीवियों को खाए जा रही है कि "कहीं राजनेता नरेंद्र मोदी के वोटर अब फिल्मों का भी मोदीकरण तो नहीं कर रहे..." मेरा मानना है कि "हां ऐसा ही हो रहा है..." जो राजनेता दर्शकों की इस नब्ज को समझेंगे... उन्हें वोट मिलेंगे और जो फिल्मवाले इस फार्मूले को अपनाएंगे उन्हें दर्शक मिलेंगे करोड़ों-अरबों की कमाई मिलेगी... हाल ही आई बिना सितारों वाली एक छोटी सी मामूली सी फिल्म "कश्मीर फाइल्स" ने पूरे देश को बांध लिया अपने प्रेमपाश में...

भारत में अगली 10 हिट फिल्में केवल उन विषयों पर बनी हुई होगी, जिन विषयों पर मोदी देश से बात करते हैं... वे अगर कहते हैं कि राजा सुहेलदेव की जय हो... तो आप देख लेना आने वाली फिल्म "सुहेलदेव" 500 करोड़ रुपए कमायेगी... और दो साल बाद इन्हीं गर्मियों में मोदी के नाम पर ही देश 300 से अधिक करीब 350 राजनेताओं को अपनी मंजूरी देगा कि जाओ संसद में...

संभवतः दुनिया में समकालीन राजनीति में मोदी पहले राजनेता होंगे जो 140 करोड़ लोगों के बहु विविधता वाले देश में निरंतर 15 बरस राजसेवा करेंगे वो भी लोगों से वोटप्रेम पाकर... इस बीच फिल्म, त्योहार, पुस्तक, साहित्य, अखबार, टीवी, विज्ञापन, क्रिकेट, बाजार सब का मोदीकरण होगा... बिल्कुल होगा और यही देश हित में भी है।

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