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मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

पगड़ी रिसोर्ट में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में अद्वितीय भक्ति संध्या का आयोजन

पगड़ी रिसोर्ट, पाली में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में भक्ति संध्या का आयोजन

 


 

पाली के जोधपुर रोड स्थित पगड़ी रिसोर्ट में सोमवार सिंघवी परिवार के धनपत राज सिंघवी, कुसुम सिंघवी मनीष सिंघवी प्रियंका सिंघवी द्वारा भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर में सुबह  8वी ध्वजा का कार्यक्रम का आयोजन किया गया

जिसमे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध गायक अशोक गेमावत ने अपने भजन और मंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया

शाम को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में भक्ति संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें प्रसिद्ध भजन गायक अशोक गेमावत मुम्बई, व प्रिया-प्रीति सिरोही ने भगवन पार्श्वनाथ व आदेश्वर नाथ की स्तुति में एक से बढ़कर एक मनमोहक भजनों की प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।


 भजन गायक अशोक गेमावत ने ढम-ढम ढोल नगाड़ा बाजे रे…, दर-दर भटकता हूं, मुझे राह बता देना… जैसे मनमोहक भजनों की प्रस्तुतियां दी तो वहां बैठे श्रोताओं ने तालियां बजाकर उनका हौंसला बढ़ाया। इसी क्रम में सिरोही की सिंगर प्रिया-प्रीति ने भगवान पार्श्वनाथ व आदेश्वर नाथ की स्तुति में भजनों की प्रस्तुतियां देकर खूब वाह-वाही लूटी। कार्यक्रम के दौरान मंच संचालन पारस भाटी अंजाना ने किया। भक्ति संध्या का आयोजन धनपतराज, कुसुम सिंघवी, मनीष सिंघवी, प्रियंका सिंघवी  परिवार की ओर से किया गया। कार्यक्रम में पाली के कई गणमान्य अतिथि पधारे और पाली के आलावा जोधपुर, जयपुर, मुंबई, हैदराबाद, गुजरात आदि कई स्थानों से मेहमानो ने भजन संध्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई| भक्ति संध्या में चंद्रराज सिंघवी, मुकुल सिंघवी जोधपुर, ओम सोनी, श्रीपाल लोढ़ा, हरीश संचेती, सुमित्रा जैन, सुनील तलवार, सुरेश ढड्ढा, मोंटू गुलेच्छा, नेमीचंद चौपड़ा सहित कई श्रद्धालु मौजूद रहे। कार्यक्रम में पाली के कई गणमान्य अतिथि पधारे और पाली के आलावा जोधपुर, जयपुर, मुंबई, हैदराबाद, गुजरात आदि कई स्थानों से मेहमानो ने भजन संध्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराइ

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

आधुनिक सच मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते

*आधुनिक सच* 

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
 तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं

सुबह आठ बजे नौकरियों 
 पर जाते हैं
 रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
 अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं

कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
 भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
 अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं

फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
 उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
 केवल आया'आंटी' को ही पहचानता है

दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है ?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
 टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है

यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
 छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
 जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है

उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
 कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
 देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है

वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
 संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
 वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है

कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
 आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
 मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है

धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
 मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
 जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है

माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
 बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
 जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं

क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
 घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
 दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं

कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
 वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं : 

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
 ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
 चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
 दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
 हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
 रूखी-सूखी में सुखी, 
अपना घर संसार

🙏🙏

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है, और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु! इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है।

मुझे लगता है महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है, और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु!


इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है। वह दण्ड, जिसे निर्धारित किया भगवान श्रीकृष्ण ने और किसी को नहीं छोड़ा... किसी को भी नहीं।
    दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दुशासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।
     भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखे... भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जबतक सब देख नहीं लिया, तबतक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।  
     धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।
     दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई। अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।
    युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा?
     दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके... 
     उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध मे उतरने से ही रोक दिया। लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ? यदि बर्बरीक का बध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण कृष्णा के अपराधियों को दण्ड दिलाने उतरे थे।
     कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। द्रौपदी के अपमान में किये गए सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि वह महानीच व्यक्ति था, और उसका वध ही धर्म था।
     स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दाव पर लगाया जाय। कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया। देवकी का बाल पकड़ा कंस ने, और द्रौपदी का बाल पकड़ा दुशासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड  अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो... यही न्याय है, यही धर्म है। और इस धर्म को स्थापित करने वाला भारत है, सनातन है...

विश्व के सर्वश्रेष्ठ, अद्भुत, अद्वितीय और अलौकिक
आध्यत्मिक समूह
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जय श्री कृष्णा सा
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कैलाश चन्द्र लढा
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भारतीय न्याय व्यवस्था के ऊपर इससे अच्छा सम सामयिक लेख नही मिलेगा।

बहुत ध्यान से पढ़िएगा।
भारतीय न्याय व्यवस्था के ऊपर इससे अच्छा सम सामयिक लेख नही मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट के जज मतलब राष्ट्रपति के बराबर का दर्जा।
सुप्रिप कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील याने दो दो कौड़ी के आतंकियों के लिए उनके आकाओं के निर्देश पर में रात भर भागदौड़ करने वाले कठपुतलियां।
फिर भी कहते है न कि ....
"दबी बिल्ली चूहें से....GAAAA& ????"
अब पढ़िए पूरा लेख।
कुछ महीने पहले एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम था उस कार्यक्रम में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई जो उस वक्त राज्यसभा सांसद बन चुके थे साथ में तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा और कई लोग थे।
एंकर ने जब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से भारत की न्याय व्यवस्था के बारे में सवाल पूछा तब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मैं चाह कर भी भारत की न्यायपालिका को सुधार नहीं सकता क्योंकि हमारा अदालती सिस्टम कुछ बड़े फिक्सरों (दलालो)  के कब्जे में है और यह बड़े फिक्सर जब चाहे जो चाहे जैसा चाहे उस तरह से हमारी न्याय व्यवस्था को चला देते हैं।
 इस कार्यक्रम में आगे जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायपालिका पर और भी बड़े सवाल उठाए जैसे कि यदि भारत को 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनना है तो जब तक भारत अपने न्याय व्यवस्था को नही बदलेगा तब तक वह 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता क्योकि भारत की न्याय व्यवस्था इतनी बर्बाद हो  गई है और वह घुन की तरह न सिर्फ इस देश को बल्कि इस देश की अर्थव्यवस्था और इस देश के ताने-बाने को छेद छेद कर कमजोर कर रही है।
उन्होंने आगे कहा कि एक मध्यम वर्ग जाए गरीब को भारत की न्याय व्यवस्था कभी भी न्याय नहीं दे सकती और यह एक कड़वा सच है यदि आप बहुत बड़े पैसे वाले हैं अरबपति हैं तब आप को न्याय मिलेगा और आपके वकील लोग ही हमारे जज लोगों को यह बताएंगे कि आपको क्या फैसला देना है और यह चंद बड़े वकील ही आज सुप्रीम कोर्ट के सबसे बड़े फिक्सर बन चुके हैं।
जस्टिस रंजन गोगोई के इस कथन पर सुप्रीम कोर्ट ने चाह कर भी कुछ नहीं किया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के हर एक जज को पता है कि वह बड़े-बड़े फिक्सरो (दलालो) जैसे दुष्यंत दवे कपिल सिब्बल अभिषेक मनु सिंघवी प्रशांत भूषण के चंगुल में फंसे हुए हैं और यह लोग जब चाहे जैसा चाहे उस तरह से भारत के सुप्रीम कोर्ट को चलाते हैं।

अब आप कुछ उदाहरण समझिए कि जस्टिस रंजन गोगोई ने कितनी कड़वी बात कही थी काश वह कुछ उदाहरण भी और कुछ नाम भी देते तो बहुत अच्छा होता।

दो मामले हैं  दोनो बिल्कुल एक जैसे हैं।

बीजेपी नेता किरीट सोमैया पर महाराष्ट्र सरकार ने यह आरोप लगाया कि उन्होंने आई एन एस विराट को बचाने के लिए लोगों से चंदा लिया और उस चंदे का कोई हिसाब सरकार को नहीं दिया और उनके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी कर दिए गए किरीट सोमैया निचली अदालत और फिर मुंबई हाई कोर्ट में सेशन कोर्ट में यानी तीन अदालतों में अग्रिम जमानत के लिए गए लेकिन उन्हें तीनों अदालत ने अग्रिम जमानत नहीं दिया।
अब आप दूसरा उदाहरण देखिए गुजरात दंगों पर अपनी रोटी सेकने वाली तीस्ता जावेद सीतलवाड़ ने खाड़ी के देशों अमेरिका ब्रिटेन सहित कई जगहों से लगभग 100 करोड़ रुपए डोनेशन लिया जांच में पता चला कि उसकी तमाम खरीदारी का बिल उसके ट्रस्ट के खाते से किया गया है यहां तक कि दुबई एयरपोर्ट पर सोने के गहने खरीदने का बिल या ब्रिटेन के एयरपोर्ट पर ड्यूटी फ्री लिकर यानी शराब खरीदने का बिल भी उसने ट्रस्ट के पैसे से किया था फिर उसी के ट्रस्ट सबरंग के एक दूसरे ट्रस्टी ने ही पुलिस में केस दर्ज करवाया।
पुलिस ने पहले 6 महीने जांच किया सारे सुबूत इकट्ठा किए उसके बाद तीस्ता जावेद को गिरफ्तार करने मुंबई गई।
तीस्ता जावेद ने अपने घर का दरवाजा नहीं खोला 10 मिनट में इलाके के एक पुलिस स्टेशन में सुप्रीम कोर्ट का फैसला मेल से  जाता है कि तीस्ता को गिरफ्तारी से रोक का आदेश दे दिया गया है।
 पता चला कि कपिल सिब्बल ने फोन पर सुप्रीम कोर्ट के एक जज को यह आदेश पारित करवा दिया मतलब भारत के इतिहास में यह पहली मौका है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने टेलीफोन पर सुनवाई किया था और सिर्फ 3 मिनट की टेलीफोनिक सुनवाई में आदेश दे दिया।
ठीक इसी तरह का काम राना अय्यूब ने किया उन्होंने भी गुजरात दंगों के नाम पर जो डोनेशन इकट्ठा किया उसका ऑडिट नहीं करवाया और उसमें से 5 करोड़ रुपये  अपने पिताजी के नाम फिक्स डिपाजिट कर दिए उनके खिलाफ भी सारे सबूत हैं वह जब विदेश जा रही थी और उन्हें विदेश जाने से रोका गया तब मुंबई हाईकोर्ट ने कहा कि 5 करोड़ की रकम कोई इतनी बड़ी रकम नहीं है कि इसे बड़ा फ्रॉड माना जाए। 
मुझे याद है एक बस कंडक्टर को 20 पैसे गबन करने के आरोप में 40 साल तक मुकदमा लड़ना पड़ा था तब हमारी अदालती सिस्टम ने यह नहीं कहा कि 20 पैसा कोई बड़ी रकम नहीं है।
अब कल जहांगीरपुरी का उदाहरण 
देखिए....
10:30 बजे जैसे ही बुलडोजर जहांगीरपुरी पहुंचे 10:31 पर जमाते उलेमा के वकील कपिल सिब्बल दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण सीधे सुप्रीम कोर्ट में गए आनन-फानन में सुनवाई हुई और ठीक 10 बज कर 45 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट अपना स्टे ऑर्डर दे दिया मैं तो आश्चर्यचकित हो गया कि ऐसे मामले मैं इतनी जल्दी सुनवाई और इतना जल्दी आदेश कैसे हो गया जबकि भारत की न्याय व्यवस्था का हायरकी यानी निचली अदालत में फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान नहीं रखा गया।
यानी जस्टिस रंजन गोगोई ने बिल्कुल ठीक कहा था भारत का न्याय व्यवस्था भारत का हर एक अदालत कोर्ट फिक्सरो यानी दलालों के चंगुल में है।
साभार:-

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