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गुरुवार, 26 मई 2022

सर्जरी के आविष्कारक - महर्षि सुश्रुत

 

महर्षि सुश्रुत सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं...

आज से 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।

आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता है।

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर- इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर

दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं। कभी कटोरी लेकर पड़ोसी के यहां पर भागते हैं तो कभी थोड़ा सा दही बाजार से ले आते हैं, सोचते है की थोड़े से दही को दूध में डालकर खूब सारा दही जमा ले। लेकिन राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव को अभी तक जामन की जरूरत ही नहीं पड़ी, ऐसा नहीं है कि यहां पर लोग दही नहीं खाते, छाछ नहीं पीते। बल्कि उनके पास लाखों बरस पुराना जादुई पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध, दही बन जाता है। आइए जानते हैं उस गांव के पास विशेष पत्थर के साथ दही बनाने की अनूठी विधि कौनसी है ? और उस पत्थर का रहस्य क्या है?

हाबूर गांव - जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है हाबूर गांव। ये वहीं गांव है जहां पर दही जमाने वाला रहस्यमयी पत्थर पाया जाता है। इस गांव को स्वर्णगिरी के नाम से जाना जाता है। हाबूर गांव का वर्तमान नाम पूनमनगर है। हाबूर पत्थर को स्थानीय भाषा में हाबूरिया भाटा कहा जाता है। ये गांव अनोखे पत्थर की वजह से देश- विदेश में प्रसिद्ध है।


दही जामने वाला हाबूर पत्थर: जैसलमेर पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है, यहां के पीले पत्थर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। लेकिन हाबूर गांव का जादुई पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है। हाबूर पत्थर दिखने में बहुत खूबसूरत होता है। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। हाबूर पत्थर का कमाल ऐसा है कि इस पत्थर में दूध को दही बनाने की कला है। हाबूर पत्थर के संपर्क में आते ही दूध एक रात में दही बन जाता है। जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है। इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है। इस गांव में मिलने वाले स्टोन से यहां के लोग बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाते हैं जो अपनी विशेष खूबी के चलते देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। इस पत्थर से गिलास, प्लेट, कटोरी, प्याले, ट्रे, मालाएं, फूलदान, कप, थाली, और मूर्तियां बनाए जाते हैं।

पत्थर से दही जमने की वजह : अब सवाल उठता है कि एक पत्थर से कैसे दही जम सकता है। वो भी रात को दूध उस पत्थर से बने बर्तन में डाला और सुबह उठकर दही खा लो। जब ऐसा होने लगा तो रिसर्च भी होने लगी, जिसमें ये सामने आया है की हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे केमिकल्स मौजूद है। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं। ये केमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है जो इसे चमत्कारी बनाते हैं।

क्या है इतिहास: कहा जाता है कि जैसलमेर में पहले समुद्र हुआ करता था। जिसका का नाम तेती सागर था। कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए और पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है।

हाबूर पत्थर से बने बर्तनों की डिमांड: हाबूर पत्थर से बने बर्तनों कि डिमांड देश के साथ-साथ विदेशों में भी है। इस पत्थर से बने बर्तनों की बिक्री ऑनलाइन भी होती है। कई ऐसे ऑनलाइन आउटलेट है जहां पर आपको इस पत्थर से बने बर्तन अलग- अलग Rate पर मिल जाएंगे। उदाहरण के तौर पर अगर आपको हाबूर पत्थर से बनी एक प्याली खरीदनी है तो आपको 1500 से 2000 रुपये चुकाने होंगे। वहीं कटोरी की कीमत 2500 के आसपास हो सकती है। वहीं एक गिलास की कीमत 650 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक होती है।

हाबूर पत्थर में औषधीय गुण: हाबूर पत्थर चमत्कारी जीवाश्म पत्थर बताया जाता है जिसका गठन 180 मिलियन साल पहले समुद्र के खोल से जैसलमेर में हुआ था। इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं, जैसे मधुमेह तथा रक्त दबाव नियंत्रित करता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर से बने गिलास में रात को सोते समय पानी भरकर रख दो और सुबह खाली पेट पी लो। अगर आप एक से डेढ़ महीने तक लगातार इसका पानी पीते है, तो आपके शरीर में एक चेंज नजर आएगा। आपके शरीर में होने वाला जोड़ों का दर्द कम होगा साथ ही पाइल्स की बीमारी कंट्रोल होगी।

हाबूर गांव कैसे जाएं : अगर आप दिल्ली से हाबूर गांव आना चाहते हैं तो आपको 810 किलोमीटर का सफर तय करना होगा। आप यहां पर बस, कार, जीप में आ सकते हैं।

25 मई से प्रारंभ होकर 2 जून तक रहेगा नौतपा

!!  *सूर्यनारायणाय नमः* !!

*🌞🔥25 मई से प्रारंभ होकर   2 जून तक रहेगा नौतपा*


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*🌞🔥नौतपा यानी वे 9 दिन जब सूर्य धरती के ज्यादा करीब आ जाते हैं, जिससे गर्मी अधिक पड़ती है। नौतपा 25 मई शुरू हो रहा है और 2 जून तक रहेगा। नौतपा के दौरान प्रचंड गर्मी होती है, जिससे मानसून बनता है।*

 *🌞🔥अगर इन 9 दिनों में बारिश होने लगे तो नौतपा का गलना कहा जाएगा। ऐसा होने पर अच्छी बारिश की संभावना नहीं होती। माना जाता है कि नौतपा  खूब तपा तो उस साल अच्छी बारिश होती है। क्योंकि तपन की वजह से समुद्र के जल का तेजी से वाष्पीकरण होता है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश करते हैं।*

*🌞सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर*
*परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर*

*🌞🔥घाघ के इस दोहे का अर्थ है… रोहिणी नक्षत्र में भरपूर गर्मी हो, मूल भी पूरा तपे और जेठ की प्रतिपदा पर भी भीषण गर्मी हो तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।* 

*🔥🌞मौसम और खेती के लिहाज से इस साल यह दोहा एकदम सटीक साबित हो सकता है।* 

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, जेठ के इन नौ दिनों में गर्मी का प्रकोप बढ़ता जाएगा। इसके साथ धूल भरी आंधी भी चलने के आसार हैं। नौतपा में भीषण गर्मी पड़ने से इस साल अच्छी बरसात होगी। इससे खाद्यान्न उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।*

*🌞🔥ऐसे शुरू होता है नौतपा*

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर यानी 25 मई को सूर्य कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। दोपहर 02 बजकर 52 मिनट पर सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ नौतपा शुरू हो जाएगा और वहां वह 8 जून को सुबह 06 बजकर 40 मिनट तक रहेंगे। इसके बाद 15 दिनों तक सूर्य की किरणें धरती पर लंबवत पड़ेंगी।* 

*🌞🔥इसके शुरुआती नौ दिनों को नौतपा कहते हैं। इन नौ दिनों को गर्मी का चरम माना जाता है।*

*🌞🔥ग्रह-नक्षत्रों की चाल*

*🌞🔥मौजूदा समय में सूर्य शुक्र की राशि वृषभ राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही शुक्र नौतपा से पहले मेष में आ गए हैं और मंगल व गुरु एक ही नक्षत्र में विराजमान रहेंगे। पूरे नौतपा के दौरान मेष, वृषभ और मीन राशि में तीन ग्रहों की युति रहेगी अर्थात नौतपा के दौरान हर दिन त्रिग्रही योग बनेगा, जिससे मौसम में बदलाव आएगा*

*🌞🔥अच्छी बारिश की मान्यता*

*🌞🔥ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, चंद्रमा जब ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो और तीव्र गर्मी पड़े तो वह नौतपा है। रोहिणी के दौरान बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है। इस बार मॉनसून में अच्छी बारिश के अनुकूल योग हैं। इस वर्ष मेघेश बुध हैं और वह सूर्य के नक्षत्र में स्थित हैं। इससे वर्षा समयानुकूल होने के योग बन रहे हैं।*
*🌞🔥यह है नौतपा का विज्ञान*

*🌞🔥नौतपा के दौरान सूर्य घूमते हुए मध्य भारत के ऊपर आ जाता है। जब यह कर्क रेखा के पास पहुंच जाता है, तब 90 डिग्री की स्थिति में होता है। इससे सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं। इससे तापमान बढ़ जाता है।*

*🌞🔥नौतपा के दौरान बरतें ये सावधानी*

*🌞🔥नौतपा के समय कुछ भी खाए-पिए घर से नहीं निकलना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में नौतपा के दौरान जल की कमी नहीं रहती।*

*🌞🔥नौतपा के समय हमेशा टोपी पहने, कानों को ढ़ककर रखें और आंखों पर चश्मा लगाएं। हर दिन सत्तू पिएं और मौसमी फल, फलों का रस, दही, मट्ठा, छाछ आदि का सेवन करें।*

*🌞🔥नौतपा के समय तैलीय और मसालेदार भोजन से दूरी बनाकर रखें। साथ ही हल्का व शीघ्र पचने वाला भोजन करें, इससे पेट खराब नहीं होता है।*

*🌞🔥नौतपा के समय गर्मी अधिक होती है इसलिए लू से बचकर रहें और घर में रहें। पंखा, एसी और कूलर से निकलने के बाद एकदम गर्मी में न जाएं।*
 संकलित ...
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बुधवार, 25 मई 2022

तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा

 भगवान बचाएगा


          एक समय की बात है किसी गाँव  में  एक  साधु रहता  था, वह  भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे  बैठ  कर  तपस्या  किया करता  था |  उसका  भागवान पर  अटूट   विश्वास   था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|
         एक बार गाँव  में बहुत भीषण बाढ़  आ  गई |  चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप  रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-
 ” तुम लोग अपनी  जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”
         धीरे-धीरे पानी  का  स्तर बढ़ता गया, और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव  गुजरी | मल्लाह ने कहा-” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”
“ नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया. नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.
          कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल  ने एक रस्सी लटकाई  और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

       पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”
         उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |
         कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |
          मरने  के  बाद  साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान  से बोले  -. ” हे  प्रभु  मैंने  तुम्हारी  पूरी  लगन   के  साथ  आराधना की… तपस्या  की पर जब  मै पानी में डूब कर मर  रहा  था  तब  तुम मुझे  बचाने  नहीं  आये, ऐसा क्यों प्रभु ?
        भगवान बोले , ”  हे साधु महात्मा  मै तुम्हारी रक्षा करने एक  नहीं बल्कि तीन  बार  आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा  नाव  वाले  के   रूप में , और तीसरा, हेलीकाप्टर  बचाव दल  के  रूप   में. किन्तु तुम मेरे  इन अवसरों को पहचान नहीं पाए | ”

        💐💐शिक्षा💐💐
 मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती  है कि वे  किसी  की प्रतीक्षा  नहीं  करते है , वे  एक  दौड़ते  हुआ  घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं  , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते  है  तो  वे  हमें   हमारी  मंजिल   तक  पंहुचा  देते  है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

शिवलिंग पर पैर लगाते एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मिडिया पर क्यों वायरल हो रही है?

 शिवलिंग पर पैर लगाते एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मिडिया पर क्यों वायरल हो रही है?









जैसे ही खबर आई कि कोर्ट के आदेश पर बनी एक कमेटी की जांच में ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में एक बड़ा शिवलिंग मिला है, सोशल मीड़िया पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं। कई नेताओं ने भी शिवलिंग का मजाक उड़ाया, एक प्रोफेसर ने भी ऐसा ही किया, पुलिस ने भी कई लोगों को इस मामले में जेल भेज दिया।


लेकिन एक ऐसी तस्वीर कई लोगों ने शिवलिंग की शेयर की, जो देखने में बेहद आपत्तिजनक लगती है। जिस भी शिव भक्त ने उसे देखा उसे गुस्सा आ रहा है, लेकिन चूंकि वो तस्वीर एडिट करके नहीं बनाई गई है, बल्कि मूर्ति रूप की भी तस्वीर है, सो लोग समझ नहीं पा रहे कि आखिर वो कौन होगा जिसने ये मूर्ति बनाई होगी। कोई ऐसा कैसे कर सकता है कि शिवलिंग पर पैर लगाते हुए व्यक्ति की मूर्ति बना सके?
 
ये तस्वीर शेयर करने वालों में सबसे प्रमुख नाम है देवदत्त पटनायक का, हिंदू पौराणिक ग्रंथों में ढूंढ़-ढूंढकर वो बातें निकालना, जो राष्ट्रवादियों की आस्था को चोट पहुंचाती हैं, ये देवदत्त को काफी पसंद आता है, अपने इस अभियान में वह कई बार गलत बातें भी शेयर कर देते हैं और फिर उनकी फजीहत भी होती है, लेकिन रुकते नहीं है। पहले देवदत्त पटनायक का ट्वीट पढ़िए...

उन्होंने लिखा है कि, ‘’Remember Kanappa today... this Nayamnar saint of South India loved Shiva in his own way.... full of love... considered superior to the Brahmin ritual performance of devotion’’। इस ट्वीट में जो उन्होंने लिखा है, उससे संदेश मिलता है कि दक्षिण भारत के ये संत शिव को इसी तरह यानी लिंग पर पैर रखकर सम्मान देते थे। आदत के मुताबिक ब्राह्मणों की आलोचना करते हुए उन्होंने ये भी लिखा है कि इसे ब्राह्मणों की पूजा से बेहतर समझा जाता था।

लेकिन उनके ट्वीट पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि वह आपको पूरा सच नहीं बता रहे हैं। एक तरह से आधा सच गुमराह ही करता है। संदेश उनकी ट्वीट से ये जा रहा है संत कनप्पा इसी तरह से अपने आराध्य महादेव की पूजा करते थे, लिंग पर पैर लगाकर. जबकि ये बिलकुल भी सच नहीं है।



अकेले देवदत्त नहीं सोशल मीडिया खासतौर पर ट्विटर व फेसबुक पर बहुत से लोगों ने इस तस्वीर को शेयर किया है, किसी में इसी मुद्रा में बनी मूर्तियों की फोटो है, तो कहीं किसी चित्रकार ने पेंटिंग की तरह बनाया है। इससे ये तो पता चलता है कि कई जगह कनप्पा की शिव लिंग को पैर लगाते हुए मूर्तियां भी हैं, अगर वाकई में ऐसा है तो आज तक कोई हंगामा क्यों नहीं हुआ? कोई नाराज क्यों नहीं होता? भगवा दल वाले क्यों इस पर ऐतराज नहीं करते?

इसका मतलब साफ है कि उनको पता है कि इसमें कुछ भी विवादित नहीं है। जबकि देवदत्त जैसे तमाम लोग हैं, जो इसे गलत ना बताते हुए भी भ्रम में डालने वाला टैक्स्ट उसके साथ लिख रहे हैं। जैसे एआईएमआईएम से जुड़े मुबासिर किसी और की ऐसी ही पोस्ट शेयर करते हुए लिखते हैं कि, ‘’मुझे नहीं पता कि उत्तर भारतीयों को भक्त कनप्पा के बारे में पता भी है कि नहीं, अगर ये आज के दौर में होता तो कनप्पा के खिलाफ शिवलिंग पर पैर रखने के चलते ना जाने कितने केस हो गए होते।’’

सभी लोग कनप्पा को शिवभक्त ही बता रहे हैं, ये नहीं बता रहे कि वो अपमान कर रहे हैं, यानी कहना चाहते हैं कि ये भी एक तरीका है शिवलिंग की पूजा करने का। ये सारी कवायद इसलिए है ताकि इतने सालों तक ज्ञानवापी के वजू खाने में शिवलिंग के साथ जो भी हुआ, उसको जायज ठहराया जा सके।
 

संत कनप्पा उन 63 नयनार संतों में गिने जाते हैं, जो शिव के उपासक थे, व तीसरी से आठवीं शताब्दी के बीच हुए थे। जबकि अलवार संत विष्णु के उपासक थे। कनप्पा पेशे से शिकारी थे, जो बाद में संत बन गए। उनके भक्त मानते हैं कि वो पिछले जन्म में पांडवों में से एक अर्जुन थे। कनप्पा नयनार के कई नाम चलन में हैं, जैसे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन आदि। माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था। आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में उनका जन्म हुआ था।

उनके पिता बड़े शिकारी थे और शिवभक्त थे, शिव के पुत्र कार्तिकेय को पूजते थे। कनप्पा श्रीकलहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करते थे, शिकार के दौरान उन्हें ये मंदिर मिला था। पांचवी सदी में बना इस मंदिर का बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था, बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने उसका जीर्णोद्धार करवाया।

लेकिन थिन्ना को पता नहीं था कि शिव भक्ति और पूजा के विधि विधान क्या है। किन नियमों का पालन करना है, लेकिन उनकी श्रद्धा अगाध थी। कहा ये तक जाता है कि वह पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, चूंकि शिकारी थे, सो जो भी उन्हें मिलता था, एक हिस्सा शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार सुअर का मांस भी।      


लेकिन शिव अपने इस भक्त की आस्था को देखकर खुश थे, उनको पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है, ना मंत्र पता हैं ना किसी तरह के विधि विधान। सैकड़ों सालों से ये कथा कनप्पा के भक्तों में प्रचलित है कि एक दिन महादेव ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और उन्होंने उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के झटके दिए, जब मंदिर में बाकी साथियों, भक्तों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे।


जैसे ही भूकंप के झटके आए, लगा कि मानो मंदिर की छत गिरने वाली है, तो डर के मारे सभी भाग गए, भागे नहीं तो बस कनप्पा। उन्होंने ये किया कि अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि कोई पत्थर अगर गिरे तो शिवलिंग के ऊपर ना गिरे बल्कि उनके ऊपर गिरे। इससे वह पूरी तरह सुरक्षित रहा।

शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं। जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा थमे, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे थे। उनकी समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी की एक आंख घायल हो गई है। आव देखा ना ताव, कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख अपने एक वाण से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी और उसे निकालकर शिवलिंग की आंख पर लगा दिया, जिससे उसमें से खून निकलना बंद हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त और आंसुओं का निकलना शुरू हो गया।

तब कनप्पा ने जैसे ही दूसरी आंख निकालने की प्रक्रिया शुरू की, उनके दिमाग में आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा तो बिलकुल अंधा हो जा जाऊंगा, ऐसे में मुझे कैसे दिखेगा कि उस आंख को शिवलिंग में कैसे लगाना है।

ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा, उन्होंने फौरन अपना एक पैर उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस आंख के पास लगा दिया, ताकि अंधा होने के बावजूद वो शिवजी की दूसरी आंख की जगह अपनी आंख लगा सके। उसी वक्त भगवान शिव प्रकट हुए और उससे खुश होकर उसकी आंखें एकदम ठीक कर दीं। यही वो घटना थी, जिसके चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला था।

इसी मौके की वो तस्वीर या मूर्तियां हैं, कि कैसे वह एक हाथ में वाण से आंख निकालेंगे, दूसरे हाथ से उसे पकड़ेंगे तो जहां से आंख निकालनी है, उस जगह को कैसे चिन्हित करेंगे, तो पैर का अंगूठा उस मासूम भक्त ने शिवलिंग पर रखा, इस काम के लिए था। लेकिन जितने भी लोग शेयर करे रहे हैं, चाहे वो देवदत्त पटनायक ही क्यों ना हो, किसी को ये नहीं बता रहे कि शिव भगवान ने उनकी भक्ति की परीक्षा ली थी और ये बस एक पल का वाकया था, ना कि रोज कनप्पा ऐसा किया करते थे. लेकिन इससे सच्चाई बाहर आ जाती और उनमें से बहुत से लोग ये चाहते भी नहीं।

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