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रविवार, 29 मई 2022

भगवान कल्कि का अवतार कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता?

 भगवान कल्कि का अवतार कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता??????



धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी 'कल्कि अवतार' प्रकट होगा। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। भगवान का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार हैं।


भगवान श्री कल्कि की भक्ति इस समय एक ऐसे कवच के समान है जो हमारी हर प्रकार से रक्षा कर सकती है। भगवान श्री कल्कि की भक्ति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत है। जो भी व्यक्ति भगवान श्री कल्कि की भक्ति करता है, वह चाहता है कि भगवान शीघ्र अवतार धारण कर भूमि का भार हटाएं और दुष्टों का संहार करें।


कलियुग यानी कलह-क्लेश का युग, जिस युग में सभी के मन में असंतोष हो, सभी मानसिक रूप से दुखी हों, वह युग ही कलियुग है। हिंदू धर्म ग्रंथों में चार युग बताए गए हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। सतयुग में लोगों में छल, कपट और दंभ नहीं होता है।


 त्रेतायुग में एक अंश अधर्म अपना पैर जमा लेता है। द्वापर युग में धर्म आधा ही रह जाता है। कलियुग के आने पर तीन अंशों से इस जगत पर अधर्म का आक्रमण हो जाता है। इस युग में धर्म का सिर्फ एक चैथाई अंश ही रह जाता है। सतयुग के बाद जैसे-जैसे दूसरा युग आता-जाता है। वैसे-वैसे मनुष्यों की आयु, वीर्य, बुद्धि, बल और तेज का ह्रास होता जाता है।


माना जाता है और जैसा वर्तमान में चल रहा है कि कलियुग के अंत में संसार की ऐसी दशा होगी। लोग मछली-मांस ही खाएँगे और भेड़ व बकरियों का दूध पिएँगे। गाय तो दिखना भी बंद हो जाएगी। सभी एक-दूसरे को लूटने में रहेंगे। व्रत-नियमों का पालन नहीं करेंगे। उसके विपरित वेदों की निंदा करेंगे। स्त्रियाँ कठोर स्वभाव वाली व कड़वा बोलने वाली होंगी।


वे पति की आज्ञा नहीं मानेंगी। अमावस्या के बिना ही सूर्य ग्रहण लगेगा। अपने देश छोड़कर दूसरे देश में रहना अच्छा माना जाएगा। व्याभिचार बढ़ेगा। उस समय मनुष्य की औसत आयु सोलह साल होगी। सात-आठ वर्ष की उम्र में पुरुष व स्त्री समागम करके संतान उत्पन करेंगे।


 पति व पत्नी अपनी स्त्री व पुरुष से संतुष्ट नहीं रहेंगे। मंदिर कहीं नहीं होंगे। युग के अंत में प्राणियोें का अभाव हो जाएगा। तारों की चमक बहुत कम हो जाएगी। पृथ्वी पर गर्मी बहुत बढ़ जाएगी। इसके बाद सतयुग का आरंभ होगा। उस समय काल की प्रेरणा से भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा।

यह अवतार दशावतार परम्परा में अन्तिम माना गया। शास्त्रों के अनुसार यह अवतार  भविष्य में होने वाला है। कलियुग के अन्त में जब शासकों का अन्याय बढ़ जायेगा। चारों तरफ पाप बढ़ जायेंगे तथा अत्याचार का बोलबाला होगा तक इस जगत् का कल्याण करने के लिए भगवान् विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे।


 कल्कि अवतार का वर्णन कई पुराणों में हुआ है परन्तु इसे सर्वाधिक विस्तार कल्कि उपपुराण मे मिला है, उसमें यह कथा उन्नीस अध्यायों  में वर्णित है।


अभी  तो  कलियुग  का  प्रथम  चरण  है।  कलि  के  पाँच  सहस्र  से  कुछ अधिक समय बीता है। इस समय मानव जाति का मानसिक एवं नैतिक पतन हो  गया  है  लेकिन  जैसे-जैसे  समय  बीतता  जायेगा  वैसे-वैसे  धर्म  की  हानि होगी।


सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरण शक्ति सबका लोप होता जायेगा। अर्थहीन व्यक्ति असाधु माने जायेंगे। राजा दुष्ट, लोभी, निष्ठुर होंगे, उनमें व लुटेरों में कोई अन्तर नहीं होगा। प्रजा वनों व पर्वतों में छिपकर अपना जीवन बितायेगी। समय पर बारिश नहीं होगी, वृक्ष फल नहीं देंगे।


कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे।  मनुष्यों  का  स्वभाव  गधों  जैसा  दुस्सह,  केवल  गृहस्थी  का  भार  ढोने वाला  रह  जायेगा।  लोेग  विषयी  हो  जायेंगे।  धर्म-कर्म  का  लोप  हो  जायेगा। मनुष्य जपरहित नास्तिक व चोर हो जायेंगे।


पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा।
निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः।
हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।


पुत्र,  पिता  का  और  पिता  पुत्र  का  वध  करके  भी  उद्विग्न  नहीं  होंगे। अपनी  प्रशंसा  के  लिए  लोग  बड़ी-बड़ी  बातें  बनायेंगे  किन्तु  समाज  में  उनकी निन्दा  नहीं  होगी।


 उस  समय  सारा  जगत्  म्लेच्छ  हो  जायेगा-इसमें  संशयम नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा। सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा। अधर्म फैल जायेगा, पत्नियाँ अपने पति की बात नहीं मानेंगी। मांगने पर भी पतियों को अन्न, जल नहीं मिलेगा। चारों तरफ पाप फैल जायेगा। उस समय सम्भल ग्राम में विष्णुयशा नामक एक अत्यन्त पवित्र, सदाचारी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण अत्यन्त अनुरागी भक्त होंगे।


 वे सरल एवं उदार होंगे। उन्हीं अत्यन्त भाग्यशाली  ब्राह्मण  विष्णुयशा  के  यहाँ  समस्त  सद्गुणों  के  एकमात्र  आश्रय निलिख सृष्टि के सजर्क, पालक एवं संहारक परब्रह्म परमेश्वर भगवान् कल्कि के  रूप  में  अवतरित  होंगे।  वे  महान्  बुद्धि  एवं  पराक्रम  से  सम्पन्न  महात्मा, सदाचारी तथा सम्पूर्ण प्रजा के शुभैषी होंगे।


मनसा तस्य सर्वाणिक वाहनान्यायुधानि च।।
उपस्थास्यन्ति योधाश्च शस्त्राणि कवचानि च।
स धर्मविजयीराजा चक्रवर्ती भविष्यति।।
स चेमं सकुलं लोकं प्रसादमुपनेश्यति।
उत्थितो ब्राह्मणों दीप्तःक्षयान्तकृतदुदारधीः।।

चिन्तन करते ही उनके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित  जायेंगे। वह  धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा होगा। वह  उदारबुद्धि, तेजस्वी  ब्राह्मण  दुःख  से  व्याप्त हुए  इस  जगत्  को  आनन्द  प्रदान करेगा। कलियुग का अन्त करने के लिए उनका प्रादुर्भाव होगा।

भगवान्  शंकर  स्वयं  उनको  शस्त्रास्त्र  की  शिक्षा  देंगे  और  भगवान् परशुराम उनके वेदोपदेष्टा होंगे। वे देवदत्त नामक शीघ्रागमी अश्व पर आरुढ़ होकर राजा के वेश में छिपकर रहने वाले पृथ्वी पर सर्वत्र फैल हुए दस्युओं एवं  नीच  स्वभाव  वाले  सम्पूर्ण  म्लेच्छों  का  संहार  करेंगे।  

कल्कि  भगवान्  के करकमलों  सभी  दस्युओं  का  नाश  हो  जायेगा  फिर  धर्म  का  उत्थान  होगा। उनका  यश  तथा  कर्म  सभी  परम  पावन  होंगे।  वे  ब्रह्मा  जी  की  चलायी  हुई मंगलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके रमणीय वन में प्रवेश करेंगे।


इस  प्रकार  सर्वभूतात्मा  सर्वेश्वर  भगवान्  कल्कि  के  अवतरित  होने  पर  पृथ्वी पर पुनः सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा।


कहाँ होगा भगवान कल्कि का जन्म?

कल्कि भगवान उत्तर प्रदेश में गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में जन्म लेंगे। भगवान के जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्रा और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्रा में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा।


वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँंगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे, तब सतयुग शुरू होगा। वे धर्म के अनुसार विजय पाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे।


कौन होंगे इनके माता-पिता?

अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान होंगे। भगवान कल्कि के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, ऐसा व्यक्ति जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोकहितैषी है। सुमति का अर्थ है, अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली महिला।


कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से सम्पन्न। वे सफेद घोड़े पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, लेकिन गुस्से में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्रा धारण किए हैं।


प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वंय उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्राण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। कल्कि को माना गया है।

पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भगवान का ये अवतार दिशा धारा में बदलाव का बहुत बड़ा प्रतीक होगा। मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं।


इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण करेगें अर्थात भगवान धरती पर से सारे पापों का नाश करेगें।

श्रीमद्भागवत के अभिन्न अंग भगवान श्री कल्कि क्यों?

शुकदेव जी (वैशम्पायन, व्यास जी के पुत्र) पाण्डवों के एकमात्र वंशज अभिमन्यु पुत्र परीक्षित (विष्णुपुराण) को, जो उपदेश (कथा) सुना रहे थे वह अठारह (18) हजार श्लोकों  का समावेश था। महाराज परीक्षित का सात-दिन में निधन हो जाने से उन सारे श्लोकों का उपदेश न हो पाया था। अतः बाद में मार्कण्डेय ऋशि के आग्रह पर शुकदेव जी ने पुण्याश्रम में उसे पूरा किया था।


सूत जी (व्यास जी के शिष्य  हर्षण सूत के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिनकी धारणा शक्ति से संहितायें दे दी) का कहना है कि वे भी वहाँ उपस्थित थे और पुण्यप्रद कथाओं को सुना था। सूत जी ने उन ऋषियों  को, जो कथा सुनाई वही श्री कल्कि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है।

समाज के अविवाहित युवकों और युवतियों की आयु बढ़ती जा रही है।

 *कृपया ज़रूर पढ़ें*



          समाज में *कुंडली* मिलन के साथ साथ  *inquiry* भी एक वजह बनती जा रही है जिस कारण समाज के *अविवाहित युवकों और युवतियों* की *आयु* बढ़ती जा रही है।

     कुंडली मिलान पर कई बार चर्चाएं हुई पर inquiry पर कोई चर्चा सुनने में नहीं आती है।

  आजकल कई केसेस आ रहे हैं जहां  *समाज से inquiry गलत* मिलने पर बात आगे नहीं बढ़ पाती *मुलाकात* तक नहीं होती।

ध्यान देने की बात यह है कि आप जिस व्यक्ति से inquiry निकाल रहे हैं, वह किसी *तीसरे* व्यक्ति को कॉल करता है, तीसरा किसी *चौथे* व्यक्ति को कॉल करता है ... अगर पार्टी के *दोस्त* को कॉल लग गया तो inquiry अच्छी अगर *दुश्मन* को कॉल लगा तो inquiry गलत।

        इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति *ईर्ष्या* बहुत बढ़ गई है, ऐसे बहुत कम रिश्ते बचे हैं जिनमें खटास नहीं है।

          कुछ लोग इस *खुश फहमी* में रहते हैं कि उनकी  inquiry गलत नहीं निकल सकती.. तहकीकात करने पर पता चलता है कि इनके *प्रिय जन* और उनके *करीबी मित्र* ही इनके बारे में *गलत* बातें कहते हैं।

       यह वही *समाज* है जिसने किसी समय *प्रभु राम* , *मां सीता* से लेकर *कृष्ण* पर भी लांछन लगाए थे।

          याद रखें कि *राजा जनक* ने सीता माता को सूझबूझ कर हि प्रभु राम को सौंपा था।

   अच्छे-अच्छे घरों के पढ़े-लिखे लड़के लड़कियां 32 34 36 की उम्र तक बैठे हैं ... *कुंडली के साथ-साथ लोग inquiry में फंस रहे हैं,*

      याद रखें भगवान कृष्ण के *मामा* *कंस* थे और पांडवों के *चाचा* *धृतराष्ट्र* थे.... तो हम किस खेत की मूली है।

      *कई जगह inquiry सही मिलने के बावजूद कुछ हफ्तों में सगाई टूट रही है और कुछ महीनों में शादी टूट रहि है, इसकी वजह क्या है?...*

हमे सचेत रहने की आवश्यकता है..  *केवल बाहर की सजावट पर ध्यान ना दें  ..*

              *बच्चियों के अभिभावकों* को ज्यादा चिंता होती है क्यूकि समाज में कन्याओं की बदनामी बड़े आसानी से हो जाती है .. *कन्या* जवाब देती है तो *तेज* कहलाती है चुप रहती है तो उनको अधिक *प्रताड़ित* करते है।     
 
ध्यान रखें *फलों से लदे वृक्ष* को ही *पत्थर* मारे जाते हैं ...

       *अंततः सिर्फ और सिर्फ *मुलाकात* *करने पर ध्यान दें inquiry में ना फंसे** ...   

 इंटरेस्टेड परिवार से *मुलाकात करें* उनके घर पर जाए दुकान पर जाकर मिले और अपने *अनुभव* से जांच पड़ताल करें *अपनी बुद्धि* से डिसीजन ले .. किसी दूसरे या तीसरे की बुद्धि से डिसीजन ना लें

         *केवल मोबाइल पर व्हाट्सएप-व्हाट्सएप खेलने से कुछ नहीं होगा।*

    यदि आप 15 दिन में भी एक परिवार से *मुलाकात* करते हैं तो *साल में 26 परिवारों* से मिलना होगा और हमारे युवकों युवतियों के विवाह में शायद इतना कष्ट ना हो..

-- *एक सेवक*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ऊपर लिखी बातें किन्ही महानुभावो को असामयिक लग सकती है,फिर भी मेंरे विचार  में यथार्थ पूर्ण है, इसे केवल काॅपी पेस्ट न कर सामाजिक मंच पर विचार विमर्श कर तथ्य परक निर्णय लिया जाना चाहिए।🙏 जय महेश


शुक्रवार, 27 मई 2022

जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे| - #शबरीकीप्रतिक्षा

 #शबरीकीप्रतिक्षा
शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे ,तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी ...…



शबरी की उम्र दस वर्ष थी । वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी ...…

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे ।शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे यहां प्रतीक्षा करो" ...…

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा उसने फिर पूछा कब आएंगे?

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे ।वे भूत भविष्य सब जानते थे वे ब्रह्मर्षि थे । महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए। शबरी को नमन किया।

 आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए !!ये उलट कैसे हुआ गुरु यहां शिष्य को नमन करें ये कैसे हुआ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका ।
महर्षि मतंग बोले
- पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।
- अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ
- उनका कौशल्या से विवाह होगा फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी
-फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा फिर प्रतीक्षा..

- फिर उनका विवाह कैकई से होगा। फिर प्रतीक्षा..

-फिर वो जन्म लेंगे , फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये ।उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये आपका अभीष्ट सिद्ध होगा और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे ...…

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। अबोध शबरी इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई ।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???"

महर्षि मतंग बोले "वे ईश्वर हैं अवश्य ही आएंगे ।यह भावी निश्चित है ।  लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं लेकिन आएंगे अवश्य ...…

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे इसलिए प्रतीक्षा करना वे कभी भी आ सकते हैं तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे शायद यही मेरे तप का फल है"..…

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी ।वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता हैं वे कभी भी आ सकतें हैं ।

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है, हर क्षण प्रतीक्षा करती है...…

कभी भी आ सकतें हैं हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा शबरी बूढ़ी हो गई लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही ...…

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी ...…

गुरु का कथन सत्य हुआ भगवान उसके घर आ गए शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया ...…

ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम , दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो।जय हो।एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-

"कहो राम !  शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"

राम मुस्कुराए :-  "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"

"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे|   यह भी नहीं जानती थी, कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।

राम ने कहा :- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है”|

"एक बात बताऊँ प्रभु !   भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती हैं |   पहली  ‘वानरी भाव’,   और दूसरी  ‘मार्जारी भाव’|

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन रात उसकी आराधना करता है...” (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया|  ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी,   जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न,   वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है...   मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..." (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुरा कर रह गए |

भीलनी ने पुनः कहा :- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न...   “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम,   कहाँ घोर दक्षिण में मैं”|   तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य,   मैं वन की भीलनी...   यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”

राम गम्भीर हुए | कहा :-

भ्रम में न पड़ो मां !   “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?

रावण का वध तो,  लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर भी कर सकता है|

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है,   तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी,  जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे,   कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|

जब कोई  भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं !   यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ,   एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|

राम वन में बस इसलिए आया है,   ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय,   तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं  मां।
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा :-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है,   भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|

राम निकला है,   ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|

राम निकला है, कि ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”।

राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है”।

राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”।

और

राम आया है,   ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”।

शबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :-  "बेर खाओगे राम” ?

राम मुस्कुराए,   "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-
"बेर मीठे हैं न प्रभु” ?

"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ,  कि यही अमृत है”|

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"

अखंड भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन !

#इतिहासकीपोल_खोल - #मुगल काल के अय्याश राजकुमार शाहजहाँ

 #मुगलकालकेअय्यासराजकुमारशाहजहाँ...



इतिहासकार वी.स्मिथ ने लिखा है, ”शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।” (अकबर दी ग्रेट मुगल: वी स्मिथ, पृष्ठ 359) कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था, और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।


यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ”महल में बार- बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय- विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी। (टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्‍सफोर्ड, 1934) शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए, आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद- बानो- बेगम” था। और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी।

मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी। इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उसने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की? शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी। शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।

गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था।शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है। शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी। इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरु कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है।”

इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है कि एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया। दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगल खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी। कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी। जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।

शाहजहाँ को प्यार नहीं हैवानियत की हवस थी। उसने अपने अहंकार और शरीर में जलती हवस की ज्वाला को शांत करने के लिए मुमताज से विवाह किया था, ना कि उसकी सुंदरता से। जिसने कभी औरतों की इज्जत ना की हो, वो प्यार की ईबादत को क्या समझेगा। इसलिए ताजमहल को मुमताज की याद का मकबरा कहना गलत होगा।

दरअसल, ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गई है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपाई जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान शिव का मंदिर तेजो महालय है। इतिहासकार पीएन ओक ने पुरातात्विक साक्ष्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां (1627-1658) ने जो कारनामा तेजोमहल के साथ किया वही कारनामा लाल कोट के साथ। लाल किला पहले लाल कोट कहलाता था। दिल्ली का लाल किला शाहजहां के जन्म से सैकड़ों साल पहले 'महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय' द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था। असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे वामपंथी इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।

शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल की उम्र में आगरे के किले में हुई। ‘द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महान बताया जाता है।

#इतिहासकीपोल_खोल की श्रृंखला यूँ ही चलती रहेगी, अगली कड़ी मे "टोपियां सिलकर जीवन व्यतीत करने वाले उदार हृदय औरंगजेब" की बनी नैरेटिव की पोल खोली जाएगी।

राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ


 खेल में माध्यम से हिन्दू समाज मे जागृति के भाव को जगा कर एकजुटता लाने के उद्देश्य से होने वाली राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ पर शनिवार सुबह आप सभी सादर आमंत्रित है ।
Saturday  28 May- 2022
TIME : -  8.30 AM
VANUE- RAILWAY CRICKET GROUND



निवेदक - हिन्दू क्रिकेट प्रीमियर लीग आयोजन समिति जोधपुर ।
SUKHDEV SINGH DEWAL 

9828384442

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