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बुधवार, 1 जून 2022

अनिल जी धुत का सर्वसम्मति से जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संघठन के अध्यक्ष पद पर चयन

दिनांक 31 मई , 

मंगलवार को पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन के अंतर्गत आने वाले जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन की बैठक जोधपुर में आयोजित हुई 
जोधपुर जिला युवा संघठन की बैठक 31-5-2022 को जोधपुर में आयोजित हुई जिसके अंतर्गत अनिल जी धुत का सर्वसम्मति से जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संघठन के अध्यक्ष पद पर चयन किया गया ।

जिसमें प्रदेश संघठन मंत्री वरुण जी बंग की देखरेख में जिला अध्यक्ष पद पर सर्व सहमती से अनिल जी धूत का चयन किया गया । 
दिनेश राठी 
अध्यक्ष 
पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन

सोमवार, 30 मई 2022

क्या भारत में जातिवाद है...? या बेवकूफ बनाया जा रहा है 70 साल से ?

 जातिवाद सत्य है, या एक कल्पना ?

क्या भारत में जातिवाद है...?

या बेवकूफ बनाया जा रहा है 70 साल से ? 🤣

कहाँ है जातिवाद..?
स्कूल में है ? नहीं है।
कॉलेज में है ? नहीं है।
ट्यूशन में है ? नहीं है।
हॉस्पिटल में है ? नहीं है।
प्राइवेट जॉब में है ? नहीं है।
मोबाईल खरीदने में है ? नहीं है।
सिमकार्ड खरीदने में है ? नहीं है।
ऐमज़ॉन, फ्लिपकार्ट पे है ? नहीं है।
बैंक में है ? नहीं है।
किसी भी Business में है ? नहीं है।
राशन की दुकान में है ? नहीं है।
मॉल में है ? नहीं है।
मूवी थियेटर में है ? नहीं है।
रेस्टोरेंट में है ? नहीं है।
होटल्स में है ? नहीं है।
Bus, Train, Plain में है ? नहीं है।
स्कूटर लेने जाओगे वहाँ है ? नहीं है।
श्मशान में है ? नहीं है।
सब्जी मंडी में पूछते हो ? नहीं है।
पार्टी में पूछते हो ? नहीं।
त्योहार मनाते वक़्त पूछते हो ? नहीं।

तो कहाँ है ये जातिवाद ??????
सरकारी नौकरियों में ? हाँ 🤓 है।
सरकारी पढ़ाई ? हाँ 😝 है।
सरकारी लाभ में ? हाँ है 😍 आरक्षण

अगर वो ख़ुद को हरिजन कहे..तो उसे नौकरी मिलेगी..
लेक़िन अग़र आप उसे हरिजन कहोगे तो आपको सज़ा मिलेगी..
ये है वास्तविक जातिवाद

अब समझे ! जातिवाद कहाँ है ? ! 😆🙏

चुनौती है...चार सवर्ण का नाम बता देना,
जिन्होंने दलितों का शोषण किया हो जाती के नाम पे ?
रामायण लिखने वाले वाल्मिकी दलित थे...
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास दलित थे..
शबरी के जूठे बेर खाये थे श्री राम ने..
सुदामा सबसे प्रिय मित्र थे कृष्ण के..
विश्व के सबसे बड़े मंदिर तिरुपति में दलित पुजारी है...
पटना, हनुमान मंदिर में है दलित पुजारी..
तिरुवनंतपुरम के त्रावणकोर मंदिर में दलित पुजारी है..
के आर नारायण दलित राष्ट्रपति रह चुके  हैं...

और तुम लोग जातिवाद की बकवास चला रहे हो 70 साल से 😠
बेवकूफ बना रहे हो 70 साल से एक ही गाना गा के ! 😠

आरक्षण की तारीफ करने वालों से सिर्फ एक सवाल
क्या किया, 70 साल आरक्षण लेकर..?

70 सालों में बने सिर्फ़ 70 डॉक्टर बताओ जिन्होंने 70 नई दवाई ढूंढकर विश्व में भारत का नाम रोशन किया हो..

70 सालों में आरक्षण से बने 70 इंजीनियर बताओ जिन्होंने 70 विश्वप्रसिद्ध इमारतें बनाके विश्व में भारत को गर्व दिलाया हो..

70 सालों में आरक्षण से बने 70 टेक्नोलॉजी के एक्सपर्ट बताओ..जिन्होंने 70 टेक्नोलॉजी बनाई हो...
70 सालों में आरक्षण से बने 70 अर्थशास्त्री के नाम बताओ जिन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था सुधारी हो..

70 साल में आरक्षण से बने वैपन्स के एक्सपर्ट बता दो जिन्होंने वैसे 70 हाईटेक हथियार बनाके देश की आर्मी में मदद की हो...!

70 सालों में आरक्षण से बने 70 CEO बताओ जिन्होंने विश्व में भारत को सम्मान दिलाया हो..

70 नहीं मिल रहे ?
चलो सबके 7-7 नाम ही तो बता दो ! 😆

कहाँ से मिलेंगे 🤣 सोचो 50% पढ़ाई से आरक्षण के ज़रिए पढ़ा हुआ क्या नाम रोशन करेगा देश का ?
कैसे टिकेगा वो दुनिया के 95% टेलेंटेड लोगों के सामने ? !

आरक्षण सिर्फ देश का क्षत्रु है।
औऱ कुछ नहीं..
इस से हमारा देश दुनिया के सामने घुटने टेक रहा है क्योंकि...
हम 50% वाले को डॉक्टर बनाते हैं जबकि विश्व 95% वालों को हमारे 50% ज्ञानी के सामने खड़ी करती है..

जाती का प्रमाणपत्र हटाके,
भारतीय का प्रमाणपत्र होना चाहिए सब जगह..
 जय हिन्द 🙏🏻🇮🇳🙏🏻
वंदे मातरम् 🙏🏻🇮🇳🙏🏻
जय सियारा







रविवार, 29 मई 2022

आँखों के चश्मे का "पावर" बढ़ता जा रहा है, इसे रोकने के लिए प्रभावी उपाय- नेत्र क्रिया कल्प थैरेपी

 

आज इस लेख में आँखों के रोग विशेषज्ञ आयुर्वेदिक डॉक्टर संतोष कुमार गुप्ता द्वारा बतायी गयी चिकित्सा विधि की जानकारी आपके साथ शेयर करुँगी। डॉक्टर के अनुसार नेत्र क्रिया कल्प थैरेपी लेने से चश्मे का पॉवर बढ़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त आँखों की रौशनी में सुधार भी होने की सम्भावना रहती है। आइये जाने इलाज से सम्बंधित जानकारी।

आँखों के चश्मे का पॉवर बढ़ने से रोकने के लिए उपचार की अवधि

  • रोगी के आँखों की स्थिति और रोग के प्रकार के आधार पर उपचार में समय लगता है। एक अनुमान के अनुसार आँखों की रोशिनी से सम्बंधित रोगों के उपचार में न्यूनतम 7 दिन और अधिकतम 21 दिन का वक्त लगता है। उपचार के दौरान प्रतिदिन एक बार थैरेपी लेना होता है।
  • उपचार की अवधि के दौरान प्रतिदिन बीमारी की गंभीरता के आधार पर न्यूनतम 45 मिनट से अधिकतम 3 घंटे तक थेरेपी दी जाती है।
  • उपचार की प्रक्रिया पूरी होने तक हल्का सुपाच्य आहार लेना होता है।

आँखों के चश्मे का पॉवर बढ़ने से रोकने के उपचार की प्रक्रिया

Netradhara Therapy नेत्रधारा थेरेपी

प्रत्येक आंख या प्रभावित आंख में 2-3minutes की एक निर्धारित अवधि के लिए 5-6 इंच की ऊँचाई से लगातार नाक के कैन्थस पर लगातार औषधीय की पतली धारा डाली जाती है। यह प्रक्रिया आंख के चैनल (श्रोत) को साफ करने में मदद करती है और सेलुलर स्तर पर डिटॉक्सिफिकेशन करती है।

Anjana Therapy अंजना थेरेपी

इस थेरेपी में इस्तेमाल की जाने वाली दवा धातुओं, खनिजों और जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार की जाती है। इस औषधि को पेस्ट के रूप में उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।

Aschyotana Therapy अश्योतन थैरेपी

इस थेरेपी में जड़ी -बूटियों से तैयार की गयी तरल औषधि की 8-10 बूँद नाक के कैंथस पर टपकाई जाती है।

Tharpana Therapy तर्पण थेरेपी

इस उपचार थेरेपी में आँखों के चारों ओर आटे से गहरा आकार बनाते हैं। फिर इसके अन्दर जड़ी -बूटियों से तैयार औषधि डालकर छोड़ा जाता है। इस थेरेपी से आँखों की कोशिकाओं को पोषण प्राप्त होती हैं।

Shirodhara Therapy सिरोधारा थेरेपी

रोगी को टेबल पर लेटना होता है। इसके बाद औषधीय तेल माथे पर लगभग 45 मिनट की अवधि के लिए लगातार डाला जाता है। यह प्रक्रिया तंत्रिका तंत्र को ताकत देती है और ऑप्टिक नसों के रक्त परिसंचरण को बढ़ाती है। यह मस्तिष्क के कई अपक्षयी रोगों /degenerative diseases में भी प्रभावी है, जैसे कि लकवा, मस्तिष्क शोष, पार्किंसंस रोग और तंत्रिका तंत्र के अपक्षयी रोग। इस थेरेपी में रोग के आधार पर औषधीय तेलों/ दूध/ छाछ के साथ औषधीय काढ़े का प्रयोग किया जाता है।

Sirovasty Therapy सिरोवस्ती थेरेपी

इस थेरेपी में सहनीय तापमान में तरल औषधि को चमड़े के बैग को सिर के चारो तरफ फिट करके वस्ति दी जाती है। ये थेरेपी निष्क्रिय कोशिकाओं को पुनः सक्रीय करने में बहुत प्रभावी होती है।

Nasya Therapy नस्य थेरेपी

इस थेरेपी में जड़ी -बूटियों से तैयार तेल को नाक के दोनों छिद्रों में डाला जाता है। नस्य थेरेपी खाली पेट यानी खाना खाने से पहले प्रदान की जाती है। इस प्रक्रिया में गर्दन से ऊपर के भाग का शोधन किया जाता है।

आँखों से सम्बंधित रोग के आयुर्वेदिक उपचार के लिए नीचे दिए पते पर संपर्क किया जा सकता है :

Veda Panchakarma Hospital & Research Institute

148, Medical College Road,

Basaratpur, Gorakhpur,

Uttar Pradesh 273004

सोम रस किसे कहते हैं ?

 

सोम रस किसे कहते हैं ?

चित्र स्रोत: गूगल

आपने कई जगह सोमरस के विषय में पढ़ा या सुना होगा। अधिकतर लोग ये समझते हैं कि सोमरस का अर्थ मदिरा या शराब होता है जो कि बिलकुल गलत है। कई लोगों का ये भी मानना है कि अमृत का ही दूसरा नाम सोमरस है। ऐसा लोग इस लिए भी सोचते हैं क्यूंकि हमारे विभिन्न ग्रंथों में कई जगह देवताओं को सोमरस का पान करते हुए दर्शाया गया है। आम तौर पर देवता अमृत पान करते हैं और इसी कारण लोग सोमरस को अमृत समझ लेते हैं जो कि गलत है।

अब प्रश्न ये है कि सोमरस आखिरकार है क्या? सोमरस के विषय में ऋग्वेद में विस्तार से लिखा गया है। ऋग्वेद में वर्णित है कि "ये निचोड़ा हुआ दुग्ध मिश्रित सोमरस देवराज इंद्र को प्राप्त हो।" एक अन्य ऋचा में कहा गया है - "हे पवनदेव! ये सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलकर तैयार किया गया है।"

इस प्रकार हम यहाँ देख सकते हैं कि सोमरस के निर्माण में दुग्ध का उपयोग हुआ है इसी कारण ये मदिरा नहीं हो सकता क्यूंकि उसके निर्माण में दुग्ध का उपयोग नहीं होता।

साथ ही साथ मदिरा का अर्थ है जो "मद" अर्थात नशा उत्पन्न करे। वही सोमरस में शब्द "सोम" शीतलता का प्रतीक है। ऋग्वेद में ये कहा गया है कि सोमरस का प्रयोग मुख्यतः यज्ञों में किया जाता था और मुख्यतः देवता ही इसके अधिकारी होते थे। सोमरस का पान मनुष्यों के लिए वर्जित बताया गया है।

अश्विनीकुमार के विषय में भी एक कथा है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें सोमरस का अधिकारी होने का वरदान दिया। अर्थात जो भी देवत्व को प्राप्त करता था वो ही सोमरस का पान कर सकता था।

सोमरस का एक रूप औषधि के रूप में भी जाना जाता था। कहा जाता है कि सोम दरअसल एक विशेष पौधा होता था जो गांधार (आज के अफगानिस्तान) में ही मिलता था। इसे पीने के बाद हल्का नशा छा जाता था। महाभारत में ऐसा वर्णित है कि जब भीष्म धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ मांगने गांधार गए तब गांधारी के पिता ने उनका स्वागत सोमरस से किया। वहाँ इस बात का भी वर्णन है कि गान्धार राज भीष्म को ये बताते हैं कि ये दुर्लभ पेय गांधार के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता।

ऋग्वेद में सोमरस बनाने की विधि भी बताई गयी है:

उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज।नि धेहि गोरधि त्वचि।।

औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।

अर्थात: मूसल से कुचली हुई सोम को बर्तन से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और छानने के लिए पवित्र चरम पर रखें। सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं।

सोमरस निर्माण की तीन अवस्थाएं बताई गयी हैं:

  1. पेरना: सोम के पत्तों का रस मूसल द्वारा निकाल लेना।
  2. छानना: वस्त्र द्वारा रस से अपशिष्ट को अलग करना।
  3. मिलाना: छाने हुए रस को दुग्ध, घी अथवा शहद के साथ मिलकर सेवन करना।

सोम को गाय के दूध में मिलाने पर गवशिरम् तथा दही में मिलाने पर दध्यशिरम् बनता है। इसके अतिरिक्त शहद या घी के साथ भी इसका मिश्रण किया जाता था। यज्ञ की समाप्ति पर ऋषि मुनि पहले इसे देवताओं को समर्पित करते थे और फिर स्वयं भी इसका पान करते थे। किन्तु बाद में लोगों ने इस ज्ञान को गुप्त रखना आरम्भ कर दिया जिससे सोम की पहचान असंभव हो गयी और इस पेय का ज्ञान लुप्त हो गया।

ऋग्वेद में सोमरस की तुलना संजीवनी से की गयी है और कहा गया है कि नित्य सोमरस पान करने से शरीर में अतुलित बल आता है। कदाचित यही कारण था कि सोमरस के पान के कारण देवता इतने शक्तिशाली होते थे। अगर आधुनिक काल की बात करें तो समय के साथ साथ सोमरस का स्थान पंचामृत ने ले लिया है। पंचामृत को भी दुग्ध, दही, घी, शक्कर एवं शहद से बनाया जाता है। इसे भी प्रथम देवताओं को अर्पित किया जाता है और इसका पान करने से भी शक्ति प्राप्त होती है। अतः पंचामृत को आधुनिक काल का सोमरस कहा जा सकता है।

पूरे कुंए का पानी मीठा,साफ और औषधि युक्त कर दिया जाता था।

आपने जिन भी कुंओ का पानी पिया होगा आपको साधारण पानी की अपेक्षा ठंडा और मीठा लगा होगा। इस पानी को पीने से सिर्फ प्यास नही बुझती बल्कि तृप्ति होती है।

 

मैं कभी गांव में नही रहा इसलिए इसका कारण मुझे आज पता चला। इसके लिए प्राकृतिक उपाय अपनाए जाते हैं।

कुंओ का आधार जामुन की लकड़ी का बनाया जाता है, जामुन की लकड़ी हज़ारों साल पानी मे रहने पर भी नही सड़ती।इसको नेवार बोलते हैं।

अंगूठी के आकार के इस छल्ले को जो आंवले की लकड़ी से बनी होती है को कुएं के सबसे निचले हिस्से में डूबा कर रखते है,क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार आंवले की लकड़ी उत्कृष्ट वाटर प्यूरिफायर है। ये कुएं के पानी को मीठा भी बनाता है ।

जब हम आंवला खाकर पानी पीते हैं तो पानी मीठा लगता है ,इसी आधार पर पूरे कुंए का पानी मीठा,साफ और औषधि युक्त कर दिया जाता था।

अब कुएं विलुप्त हो रहे हैं तो शायद यह विधा भी खत्म हो जाए । पर आंवले की लकड़ी के इन गुणों को ग्रहण करना या समझना आवश्यक है ।

कोई आश्चर्य नही की पिछली पीढ़ी के लोग सुखी रोटी और सादा पानी पीकर इतने स्वस्थ रहते थे ।



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