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शुक्रवार, 24 जून 2022

रामायण काल का पात्र जामवन्त जो उस समय बूढ़े हो गए थे, जवानी में वो कितने बलशाली थे?

 

चित्र स्रोत: गूगल

जामवंत रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिनके विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उनके विषय में केवल एक-दो चीजें ऐसी बताई गयी है जिनसे आप उनके बल के बारे में अनुमान लगा सकते हैं। आइये उन्हें देखते हैं।

  • पहली बात तो जामवंत सतयुग के व्यक्ति थे। अब सतयुग में निःसंदेह योद्धा अन्य युगों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिशाली होते थे। उनकी उत्पत्ति सीधे ब्रह्माजी से बताई गयी है। अब परमपिता ब्रह्मा से जो जन्मा हो उसकी शक्ति के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
  • रामचरितमानस में उनके पराक्रम के बारे में दो घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन दोनों स्थानों पर जामवंत का युद्ध रावण और मेघनाद के साथ हुआ था जिसमें दोनों को जामवंत ने अपने पाद प्रहार से मूर्छित कर दिया था। मेघनाद की शक्ति तो उन्होंने अपने हाथों से ही पकड़ कर पलट दी थी। अत्यंत वृद्धावस्था में भी जो रावण और मेघनाद जैसे योद्धाओं को अपने घात से मूर्छित कर दे, जरा सोचिये युवावस्था में उसका बल क्या होगा।
  • जब द्वापर आया और जामवंत और अधिक बूढ़े हो गए, उस समय उनका युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। जनमवंत को परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण को उनसे एक-दो नहीं बल्कि 28 दिनों तक युद्ध करना पड़ा। स्वयं परमेश्वर कृष्ण को जिसे परास्त करने में अट्ठाइस दिन लग गए हों, वो भी वृद्धावस्था में, जवानी में उनके बल के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।
  • जब सीता माता को खोजने के लिए समुद्र लांघने की बात चल रही थी उस समय जामवंत कहते हैं कि "मैं तो अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, फिर भी इस समुद्र में मैं 90 योजन तक जा सकता हूँ।" हनुमान जी अपनी युवावस्था में 100 योजन छलांग गए, जामवंत की आयु उस समय 6 मन्वन्तर की बताई गयी है। एक मन्वन्तर तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का होता है, फिर भी वे 90 योजन तक जाने की क्षमता रखते थे, इसी से उनके बल का पता चलता है।
  • इस वार्तालाप के दौरान उन्होंने युवावस्था में अपने बल के बारे में दो बातें बताई जिसे ध्यान से सुनना आवश्यक है। इससे आपको जामवंत की वास्तविक शक्ति का पता चलेगा।
    • पहली घटना तब की है जब समुद्र मंथन चल रहा था जिसे देवता और दैत्य मिलकर बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे। उस समय जामवंत ने अपनी जवानी के जोश में एक बार अकेले ही सम्पूर्ण मंदराचल पर्वत को घुमा दिया था। मंदराचल को अकेले घुमाने के लिए कितनी शक्ति चाहिए होगी, क्या आपको अंदाजा है?
    • दूसरी घटना भगवान विष्णु के वामन अवतार की है। जब श्रीहरि ने विराट स्वरुप लिया और एक पैर से स्वर्ग को नाप लिया। फिर जब उन्होंने अपना पैर पृथ्वी को नापने के लिए उठाया, उस दौरान जामवंत ने केवल 7 पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। जरा सोचिये महावीर हनुमान एक ही रात में लंका से सैकड़ों योजन दूर से पर्वत शिखर उखाड़ कर ले आये लेकिन जामवंत ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। एक पल लगभग 24 सेकंड का होता है। क्या आप उनकी गति का अनुमान लगा सकते हैं?
  • उस उनके बल का ऐसा वर्णन सुनकर जब अंगद उनसे पूछते हैं कि उनका बल क्षीण कैसे हुआ? तब वे बताते हैं कि जब वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे तो अंतिम परिक्रमा के समय उनके पैर के अंगूठे का नाख़ून महामेरु पर्वत से छू गया, जिससे उसका शिखर खंडित हो गया। इसे अपना अपमान मानते हुए मेरु ने जामवंत को ये श्राप दे दिया कि वो सदा के लिए बूढ़ा हो जाएगा और उसका बल क्षीण हो जाएगा।

आशा है आपको जामवंत की शक्ति का कुछ अंदाजा हो गया होगा। किन्तु इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उनमें लेश मात्र भी घमंड नहीं था। जय श्रीराम।

इस गांव के सभी लोग अंधे हैं यहां तक इस गांव के जानवर भी अंधे हैं।

 

इस गांव के सभी लोग अंधे हैं यहां तक इस गांव के जानवर भी अंधे हैं।

आज हम बात करेंगे कि इस गांव के लोगों के अंधेपन की वजह क्या है?

तो आइए इस गांव के विषय में विस्तार से जानकारी लेते हैं।

क्यों खास है टिल्टेपक गांव?

मेक्सिको देश में बसा है यह गांव, यह गांव काफी छोटा है इस गांव में केवल 70 झोपड़ी है जिसमें कुल मिलाकर 300 के आसपास लोग रहा करते हैं इस गांव में जोपोटेक नाम की जनजाति रहती है।

टिल्टेपक गाँव के सभी लोग अंधे हैं यहां तक कि जीव- जंतु पशु -पक्षी भी अंधे हैं ।ऐसा नहीं है कि यह सभी लोग जन्मजात अंधे होते हैं जब यहां के बच्चे का जन्म होता है तब बच्चा कुछ दिनों तक सामान्य रहता है फिर उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है।

यहां के पक्षी भी अंधे हैं जिसकी वजह से वह उड़ नहीं पाते अगर कोई पक्षी उड़ने का प्रयास भी करता है तो वह पेड़ों से टकरा जाता है और उसकी मौत हो जाती है।

गांव के किसी भी झोपड़ी में खिड़की नहीं है क्योंकि उन्हें उजाले से कोई मतलब नहीं है सभी लोग लाठियों के सहारे अपना सभी काम करते हैं

क्या श्रापित पेड़ की वजह से इस गांव के लोग अंधे हैं?

गांव के लोगों के अनुसार उनके अंधेपन की वजह एक श्रापित पेड़ है उसे देखने के बाद लोगों की आंखें चली जाती है हालांकि इस बात को वैज्ञानिकों ने सिरे से नकार दिया वैज्ञानिकों ने गांव के लोगों को अंधेपन की कुछ अलग वजह बताई।

तो क्या है गांव के लोगों की अंधेपन की असली वजह?

वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि क्या गांव के लोगों के अंधेपन की वजह कोई श्रापित पेड़ नहीं है, बल्कि एक मक्खी है।

जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा गांव के आस पास पाए जाने वाली जहरीली मक्खी के काटने से वहां के लोग अंधे हो जाते हैं।

जिस मक्खी का जहर आंखों के द्वारा दिमाग को भेजे गए सिग्नल को रोक देता है जिससे व्यक्ति देख नहीं पाता है।

यही वजह है कि गांव के नए जन्मजात बच्चे देख पाते हैं और कुछ ही दिनों बाद उन्हें वह मक्खी काटने की वजह से उनकी दृष्टि चली जाती है।

ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी” श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।

ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी”
श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।


भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक शूद्रों को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है और वह है भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है "ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”

इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी जो नेत्रहीन होने के बावजूद संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, में 5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें हैं।

महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।

उनका कथन है कि तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,आप स्वयं विचार करें यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या रामचरित्र मानस की 10902 चौपाईयों में से वो मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?


यदि ऐसा ही होता तो भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते।यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते।

स्वामी जी के अनुसार ये चौपाई सही रूप में

- ढोल,गवार, शूद्र,पशु,नारी नहीं है
बल्कि यह "ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी” है।

ढोल = बेसुरा ढोलक

गवार = गवांर व्यक्ति

क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं

रार = कलह करने वाले लोग

चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले (अर्थात क्षुब्ध, दुखी करने वाले) पशु और रार अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं उसी तरह मैं भी तीन दिन से आपका मार्ग अवरुद्ध करने के कारण दण्ड दिये जाने योग्य हूँ।

स्वामी राम भद्राचार्य जी जो के अनुसार श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें ‘क्षुब्ध' के स्थान पर 'शूद्र' कर दिया और 'रारी' के स्थान पर 'नारी' कर दिया गया है।

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दूध में एक टुकड़ा गुड़ मिलाकर पीने के जबरदस्त फायदे

 दूध में एक टुकड़ा गुड़ मिलाकर पीने के जबरदस्त फायदे


आप फिटनेस आपके लाइफस्टाइल पर ही नहीं बल्कि आपके ब्रेकफास्ट पर भी निर्भर करती है।आप अगर दिन की शुरूआत हेल्दी ब्रेकफास्ट से करते हैं, तो इससे चांसेस काफी बढ़ जाते हैं कि आपका वजन नहीं बढ़ेगा। हेल्दी रहने के लिए कई लोग सुबह गुनगुने पानी का सेवन करते हैं। कुछ आंवला जूस भी पीते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुबह उठकर गर्म दूध के साथ गुड़ का सेवन भी फायदेमंद है-


दूध और गुड़ में मौजूद तत्व

दूध में अधिक मात्रा में विटामिन ए, विटामिन बी और डी के अलावा कैल्शियम, प्रोटीन और लैक्टिक एसिड पाया जाता है। वही दूसरी ओर गुड़ में अधिक मात्रा में सुक्रोज, ग्लूकोज, खनिज तरल और पानी कुछ मात्रा में पाई जाती है। इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और कई तत्व पाएंं जातेे हैंं।


नेचुरल ब्लड प्यूरीफायर

गुड़ में ऐसे गुण पाए जाते हैं, जो आपके शरीर में मौजूद अशुद्धियों को साफ कर देता है इसलिए रोजाना गर्म दूध और गुड़ का सेवन करने से आपके शरीर से ऐसी अशुद्धियां निकल जाती है। जिससे आपको कोई बीमारी नहीं होगी।

मोटापा को करें कंट्रोल

माना जाता है कि अगर आप दूध के साथ चीनी का इस्तेमाल करते है, तो इसकी जगह आप गुड़ का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से आपका वजन कंट्रोल में रहेगा। जिससे आप मोटापा का शिकार नहीं होंगे।

पेट संबंधी समस्या को रखें ठीक

अगर आपको पाचन संबधी कोई भी समस्या है, तो गर्म-गर्म दूध और गुड़ का सेवन करने से आपको पेट संबंधी हर समस्या से निजात मिल जाती है।

जोड़ों के दर्द को करें दूर

गुड़ खाने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है, अगर रोजाना गुड़ का एक छोटा पीस अदरक के साथ मिला कर खाया जाए, तो जोड़ों में मजबूती आएगी और दर्द दूर होगा। आपकी खूबसूरती को बढ़ाएं। गर्म दूध और गुड़ का सेवन करने से आपकी त्वचा मुलायम होने के साथ-साथ त्वचा संबंधी समस्या न होगी। साथ ही इसका सेवन करने से आपके बाल भी हेल्दी रहेंगे।

पीरियड्स में दर्द को करें ठीक

कहा जाता है कि अगर आपको कही दर्द हो,तो गर्म दूध पीने से तुरंत आराम मिल जाता है और महिलाओं को पीरियड के समय का दर्द हो रहा हो तो गर्म दूध के साथ गुड़ का सेवन करने से आपको इससे निजात मिल सकता है। आप फिर पीरियड शुरु होने के 1 हफ्ते पहले 1 चम्मच गुड़ का सेवन रोजाना करें। इससे आपको दर्द से निजात मिलेगी।

जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

भारत की जल संस्कृति-12

“जलवैज्ञानिक वराहमिहिर और उनका मानसून वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धांत”

लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी
वैदिक संहिताओं के काल में ‘सिन्धुद्वीप’ जैसे वैदिक कालीन मंत्रद्रष्टा ऋषियों के द्वारा जलविज्ञान और जलप्रबन्धन सम्बन्धी मूल अवधारणाओं का आविष्कार कर लिए जाने के बाद वैदिक कालीन जलविज्ञान सम्बन्धी ज्ञान साधना का उपयोग करते हुए कौटिल्य ने एक महान अर्थशास्त्री और जलप्रबंधक के रूप में राज्य के जल संसाधनों को कृषि की उत्पादकता से जोड़कर घोर अकाल और सूखे जैसे संकटकाल से निपटने के लिए अनेक शासकीय उपाय भी किए. भारतीय जलविज्ञान की इसी परंपरागत पृष्ठभूमि में छठी शताब्दी ई. में एक महान खगोलशास्त्री तथा जल वैज्ञानिक वराहमिहिर का आविर्भाव हुआ.

वराहमिहिर ने अपने युग में प्रचलित जलविज्ञान की मान्यताओं का संग्रहण करते हुए अपने ग्रन्थ ‘बृहत्संहिता’ में जलविज्ञान का सुव्यवस्थित विवेचन दो भागों में विभाजित करके किया. इनमें से एक प्रकार का जल अन्तरिक्षगत जल है जो समुद्र आदि से वाष्पीभूत होकर आकाश में बादलों के रूप में संचयित होता है और दूसरे प्रकार का जल बादलों से बरस कर भूमिगत जल बन जाता है. आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से अन्तरिक्षगत जल का विवेचन ‘मौसमविज्ञान’ के अन्तर्गत किया जाता है तो भूमिगत जल का विवेचन ‘जलविज्ञान’ के धरातल पर होता है. वराहमिहिर ने भी जल प्राप्ति के इन दो आयामों का विवेचन दो अलग अलग शाखाओं के अन्तर्गत किया है. बृहत्संहिता के 21वें‚ 22वें और 23वें अध्यायों में वराहमिहिर ने मेघों से प्राप्त होने वाले अन्तरिक्ष जल की चर्चा की है और 54वें अध्याय में ‘दकार्गलम्’के नाम से भूमिगत जल का शास्त्रीय विवेचन किया है.
वराहमिहिर का जलविज्ञान एकांगी रूप से केवल भूस्तरीय जल अथवा भूगर्भीय जल पर आधारित सैद्धान्तिक विज्ञान ही नहीं बल्कि वर्षाकालीन अन्तरिक्षगत मेघों के पर्यवेक्षण और मौसमविज्ञान सम्बन्धी जलवायु परीक्षण पर आधारित प्रायोगिक विज्ञान भी है.

वराहमिहिर का जलवैज्ञानिक सिद्धान्त
वराहमिहिर का जलविज्ञान एकांगी रूप से केवल भूस्तरीय जल अथवा भूगर्भीय जल पर आधारित सैद्धान्तिक विज्ञान ही नहीं बल्कि वर्षाकालीन अन्तरिक्षगत मेघों के पर्यवेक्षण और मौसमविज्ञान सम्बन्धी जलवायु परीक्षण पर आधारित प्रायोगिक विज्ञान भी है. वराहमिहिर का स्पष्ट कथन है कि बलदेव आदि प्राचीन ऋतुवैज्ञानिकों के मतानुसार मौसम वैज्ञानिकों द्वारा आगामी मानसूनों के आने की भविष्यवाणी ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद होने वाली ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति तथा जलवायु परीक्षण के आधार पर की जानी चाहिए-
“मेघोद्भवं प्रथममेव मया प्रदिष्टं
ज्येष्ठामतीत्य बलदेवमतादि दृष्ट्वा.
भौमं दकार्गलमिदं कथितं द्वितीयं
सम्यग्वराहमिहिरेण मुनिप्रसादात्..”
              -बृहत्संहिता‚ 54.125

वराहमिहिर का ‘वृष्टिगर्भ’ सिद्धान्त
वर्षा से प्राप्त होने वाले अन्तरिक्ष जल को ही वराहमिहिर ने भूस्तरीय तथा भूगर्भीय जल का मूल कारण माना है. इसलिए एक जलवैज्ञानिक के रूप में वराहमिहिर अन्तरिक्ष जल की तीन अवस्थाओं का विवेचन करते हैं. ये तीन अवस्थाएं हैं-
1- मेघों का गर्भलक्षण‚
2- मेघों का गर्भधारण
3- मेघों का प्रवर्षण.

मानसूनी वर्षा के बारे में वराहमिहिर की मान्यता है कि बादलों के ‘वृष्टिगर्भ’ को धारण करने की अवधि साढ़े छह महीने यानी 195 दिनों की होती है. बादल चन्द्रमा के जिस नक्षत्र में गर्भ धारण करते हैं ठीक 195 दिनों के बाद उसी नक्षत्र में वर्षा के रूप में बादलों का प्रसव होता है-
“यन्नक्षत्रमुपगते गर्भश्चन्द्रे भवेत् स चन्द्रवशात्.
पंचनवते दिनशते तत्रैव प्रसवमायाति…”
                      -बृहत्संहिता‚ 21.7

वराहमिहिर का मानना है कि कृष्णपक्ष में दिखाई देने वाला बादलों का गर्भ शुक्ल पक्ष में‚ दिन का गर्भ रात्रि में और रात्रि गर्भ दिन में वर्षा उत्पन्न करता है (बृहत्संहिता‚21.8). किन्तु समय पर वर्षा न होना तथा बादलों का फटना इस स्थिति का द्योतक है कि बादलों का समय से पहले ही गर्भस्राव हो गया है. वराहमिहिर के अनुसार यदि बादलों के गर्भ धारण के बाद आंधी‚ चक्रवाती तूफान, उल्कापात, दिग्दाह‚ भूकम्प आदि प्राकृतिक उत्पात के लक्षण प्रकट हों तो निश्चित कालावधि में मानसूनी वर्षा की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए तथा मान लेना चाहिए कि मेघों का गर्भस्राव हो चुका है (बृ.सं.21.25)
मानवीय सृष्टिविज्ञान के संदर्भ में जैसे स्त्री में गर्भधारण होने के पश्चात् नौ माह के उपरांत बच्चे का प्रसव होता है उसी प्रकार सूर्य द्वारा मेघों में वृष्टिका गर्भ धारण होने के लगभग 195 दिनों के उपरांत पर्जन्यवृष्टि होती है. तब तक वृष्टिगर्भ की अन्तरिक्ष में पालन पोषण और वृद्धि होती रहती है. मानवीय गर्भ का जिस प्रकार प्रसव काल सुनिश्चित है  उसी प्रकार आचार्य वराहमिहिर ने ‘वृष्टिगर्भ’ से वर्षा के प्रसव का काल 195 दिन के बाद निर्धारित किया है. अर्थात् वराहमिहिर के अनुसार ‘वृष्टिगर्भ’ धारण होने के आरंभ से वृष्टिप्रसव होने तक की प्रक्रिया एक सजीव प्रकृति वैज्ञानिक प्रक्रिया है.

‘वृष्टिगर्भ’:आर्यों का वैज्ञानिक आविष्कार
वस्तुत: बहुत कम लोगों को ही मालूम होगा कि भातीय ऋतुविज्ञान में ‘वृष्टिगर्भ’ की अवधारणा सूर्य के संवत्सर चक्र से जुड़ी एक वैज्ञानिक अवधारणा है. जैसे कि स्त्री और पुरुष के शारीरिक यौन सम्बन्ध से स्त्री में गर्भ निषेचन की प्रक्रिया होती है तभी दसवें महीने प्रसव सम्भव हो पाता है.उसी प्रकार   वेदकालीन ऋतु वैज्ञानिकों की भी मान्यता थी कि ब्रह्मांड में भी वार्षिक मानसूनों सृष्टि वृष्टिगर्भ की प्रक्रिया से सम्पादित होती है.
इस सम्बंध में ऋग्वेद के पांचवे मंडल के 78वें सूक्त के तीन मंत्र,जो ‘गर्भस्रावणी उपनिषद्’ के रूप में प्रसिद्ध हैं,विशेष रूप से अवलोकनीय हैं-
“यथा वातः पुष्करिणीं समिङ्गयति सर्वतः.
एवा ते गर्भ एजतु निरैतु दशमास्यः॥
यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति.
एवा त्वं दशमास्य सहावेहि जरायुणा॥
दश मासाञ्छशयानः कुमारो अधि मातरि.
निरैतु जीवो अक्षतो जीवो जीवन्त्या अधि॥”
                        – ऋग्वेद,5.78.7-9

वैदिक साहित्य में प्रजावर्ग का भरण पोषण करने के कारण सूर्य को ‘भरत’ कहा गया है.सूर्य की ‘भरत’ संज्ञा होने के कारण ही इस देश के सूर्योपासक लोगों का देश ‘भारतवर्ष’ कहलाया इसलिए सूर्य संक्रान्ति के विविध पर्वों मकर संक्रान्ति और छठ पर्व के साथ वृष्टि विज्ञान के भी गूढ़ सिद्धान्त जुड़े हुए हैं.

कृषि प्रधान भारतवासियों के लिए वर्षा उनके जीविकोपार्जन का मुख्य आधार है और वैज्ञानिक दृष्टि से यह प्रक्रिया सूर्य के द्वारा जल में प्रवेश करने से सम्पन्न होती है.यह भारतवंशी सूर्योपासक आर्यों का ही वैज्ञानिक आविष्कार है,जिसके अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन से ही आगामी साढ़े छह महीनों यानी 195 दिनों तक तक मेघ सूर्य के वाष्पीकरण की प्रक्रिया से ‘वृष्टिगर्भ’ को धारण करते हैं तथा वर्षा ऋतु में दक्षिण पश्चिमी मानसूनी वर्षा इसी सफल ‘वृष्टिगर्भ’ का परिणाम मानी जाती है.

मकर संक्रान्ति और ‘वृष्टिगर्भ’
हमें अपने देश के राष्ट्रीय लोक पर्वों का भी विशेष आभारी रहना चाहिए कि ये पर्व धार्मिक महोत्सव होने के साथ साथ पर्यावरण संचेतना के प्रति भी लोगों को जागरूक रखते हैं. वैज्ञानिक धरातल पर मकर राशि में सूर्य के प्रवेश होने का तात्पर्य है वाष्पीकरण की सतत प्रक्रिया द्वारा मानसूनों का गर्भाधान होना,जिसे भारतीय ऋतुवैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’ कहते हैं. मकर संक्रान्ति की प्रभात वेला में भारतवर्ष का कृषक वर्ग इसी वृष्टिकारक सूर्य को ‘वृष्टिगर्भ’ के सफल निष्पादन हेतु प्रणाम करता है तथा आने वाले समय में सुख-समृद्धि और फसल के अनुकूल मानसूनी वर्षा की कामना करता है.
जलवायु परिवर्तन और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के इस दौर में छठ पर्व भी महज एक धार्मिक आस्था का पर्व नहीं रह जाता है बल्कि भूमिगत जलस्तर को सुधारने हेतु परम्परागत जल-स्रोतों जैसे तालाब, सरोवर, नदियों आदि जलाशयों के संरक्षण, संवर्धन और उनकी साफ-सफाई का पर्यावरण वैज्ञानिक अभियान भी है ताकि ‘वाटर हारवेस्टिंग’ जैसे परम्परागत वृष्टिविज्ञान और जलविज्ञान को पुनर्जीवित किया जा सके. कार्तिक मास में छठ पूजा के बाद देव प्रबोधिनी एकादशी से पुरुष और प्रकृति के मिलन की ऋतु आती है.

छठ पर्व मेघों के गर्भधारण का पर्व
जलवायु परिवर्तन और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के इस दौर में छठ पर्व भी महज एक धार्मिक आस्था का पर्व नहीं रह जाता है बल्कि भूमिगत जलस्तर को सुधारने हेतु परम्परागत जल-स्रोतों जैसे तालाब, सरोवर, नदियों आदि जलाशयों के संरक्षण, संवर्धन और उनकी साफ-सफाई का पर्यावरण वैज्ञानिक अभियान भी है ताकि ‘वाटर हारवेस्टिंग’ जैसे परम्परागत वृष्टिविज्ञान और जलविज्ञान को पुनर्जीवित किया जा सके. कार्तिक मास में छठ पूजा के बाद देव प्रबोधिनी एकादशी से पुरुष और प्रकृति के मिलन की ऋतु आती है. जब सूर्य ‘हस्तिशुण्डविधि’ से तालाब, सरोवर आदि प्राकृतिक जलाशयों से वाष्पीकरण करते हैं तथा अन्तरिक्ष में मेघों का गर्भधारण होता है.यही मेघ चान्द्रमास के बारह पक्षों यानी छह महीनों के बाद चातुर्मास में मानसूनों की वर्षा द्वारा धरती को धन-धान्य से समृद्ध करते हैं. छठ पूजा के अवसर पर मिट्टी के हाथी भी बनाए जाते हैं जो प्रतीक हैं हाथी के सूंड के आकार वाले जल स्तम्भों के. इसे ही भारतीय ऋतुविज्ञान में ‘हस्तिशुण्डविधि’ कहते हैं, जिनसे मानसून बनने की प्रक्रिया सक्रिय रहती है.पूजा में गन्ने के बारह पेड़ उसके नीचे मिट्टी का एक घड़ा और छह दिए जलाकर रखे जाते हैं ताकि यथाकाल छह महीने का वृष्टिगर्भ सफल हो सके.छठ पर्व के अवसर पर भारतवर्ष का कृषक वर्ग प्रतिवर्ष अस्त होते और उगते वृष्टिकारक सूर्य से यही कामना करता है कि नियत समय पर मानसूनों की वर्षा हो ताकि उसका राष्ट्र खुशहाल हो सके –
“निकामे निकामे वर्षन्तु मेघाः”

आगामी लेख में पढिए- “वर्षा के पूर्वानुमान की ऋतुवैज्ञानिक मान्यताएं” 
✍🏻मोहन चंद तिवारी, हिमान्तर में प्रकाशित आलेख
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)

वराहमिहिर के अनुसार वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही से भूमिगत जल की खोज

भारत की जल संस्कृति-16

“वराहमिहिर के अनुसार वृक्ष-वनस्पतियों की निशानदेही से भूमिगत जल की खोज”

लेखक:-डॉ. मोहन चंद तिवारी
प्राचीन काल के कुएं, बावड़ियां, नौले, तालाब, सरोवर आदि जो आज भी सार्वजनिक महत्त्व के जलसंसाधन उपलब्ध हैं, उनमें बारह महीने निरंतर रूप से शुद्ध और स्वादिष्ट जल पाए जाने का मुख्य कारण यह है कि इन जलप्राप्ति के संसाधनों का निर्माण हमारे पूर्वजों ने वराहमिहिर द्वारा अन्वेषित जलान्वेषण की पद्धतियों के अनुसार किया था. वराहमिहिर का पर्यावरणमूलक जलान्वेषण विज्ञान भूगर्भस्थ जल की प्राप्ति हेतु न केवल भारत अपितु विश्वभर में कहीं भी उपयोगी हो सकता है. जैसा कि मैने अपनी पिछली पोस्टों में स्पष्ट किया है कि भारतीय जलविज्ञान, अन्तरिक्षगत मेघविज्ञान वृष्टिविज्ञान के स्वरूप को समझे बिना अधूरा ही है. भारतीय जलवैज्ञानिक वराहमिहिर ने भूमिगत जलस्रोतों को खोजने और वहां कुएं, जलाशय आदि निर्माण करने के लिए वनस्पतियों और भूमिगत जीव-जंतुओं की निशानदेही से जुड़े अनेक सिद्धान्तों और फार्मूलों का भी निरूपण किया है.
वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ के ‘दकार्गल’ अध्याय में 86 प्रकार के वृक्षों,विविध प्रकार की वनस्पतियों,नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं और अनेक तरह के शिलाखण्डों की निशानदेही करते हुए भूमिगत जलस्रोतों को खोजने के वैज्ञानिक फार्मूले बताए गए हैं. उदाहरण के लिए वराहमिहिर कहते हैं कि यदि जलविहीन प्रदेश में बेंत का वृक्ष दिखाई दे तो उस वृक्ष के पश्चिम दिशा में तीन हाथ पर डेढ पुरुष प्रमाण यानी साढे सात क्यूबिट्स गहराई तक खोदने पर जल प्राप्त होता है. खोदे गए गड्ढे में पीले रंग का मेंढक, पीले रंग की मिट्टी और परतदार पत्थर का निकलना इस जलप्राप्ति के पूर्व संकेत हैं. ये सब लक्षण यह भी प्रमाणित करते हैं कि उस भूखण्ड के गर्भ में पश्चिम दिशा की जलनाड़ी सक्रिय है–
“यदि वेतसोऽम्बुरहिते देशे हस्तैस्त्रिभिस्ततः पश्चात्.

सार्धे पुरुषे तोयं वहति शिरा पश्चिमा तत्र..
चिह्नमपि सार्धपुरुषे मण्डूकः पण्डुरोऽथ मृत्पीता.
पुटभेदकश्च तस्मिन् पाषाणो भवति तोयमधः..”
                         – बृहत्संहिता, 54.6-7

जामुन के वृक्ष की पूर्व दिशा में यदि दीमक की बांबी (वल्मीक) दिखाई दे तो उसके समीप दक्षिण दिशा में दो पुरुष यानी दस क्यूबिट्स के माप का गड्ढा खोदने से स्वादिष्ट जल की प्राप्ति होती है.आधे पुरुष (ढाई क्यूबिट्स) तक गहरा खोदने पर मछली, कबूतर के रंग का काला पत्थर और नीले रंग की मिट्टी मिलेगी. ये पदार्थ वहां भूमिगत जलप्राप्ति के पूर्व लक्षण हैं –

“जम्बूवृक्षस्य प्राग्वल्मीको यदि भवेत्समीपस्थः.
तस्माद्दक्षिणपार्श्वे सलिलं पुरुषद्वये स्वादु..
अर्धपुरुषे च मत्स्यः पारावतसन्निभश्च पाषाणः.
मृद्भवति चात्र नीला दीर्घंकालं बहु च तोयम्..”
                   – बृहत्संहिता, 54.9-10

वराहमिहिर का यह भी मत है कि जिस वृक्ष की शाखा नीचे की ओर झुकी हो और पीली पड़ गई हो तो उस शाखा के नीचे तीन पुरुष यानी 15 क्यूबिट्स खुदाई करने पर जल की प्राप्ति अवश्य होती है –
“वृक्षस्यैका शाखा यदि विनता
भवति पाण्डुरा वा स्यात्.
विज्ञातव्यं शाखातले
जलं त्रिपुरुषं खात्वा..”- बृहत्संहिता,54.55
भूमिगत जल की शिरा किस दिशा में सक्रिय है, यह जानने के लिए भी वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में वृक्षों द्वारा की गई निशानदेही से जुड़े निम्नलिखित फार्मुले आज भी बहुत उपयोगी माने जाते हैं –

1.  आकगूलर के पास दीमक की बांबी (वल्मीक) हो तो बांबी के नीचे सवा तीन पुरुष (सवा सोलह क्यूबिट्स) खोदने पर पश्चिमवाहिनी शिरा निकलती है –
“अर्कोदुम्बरिकायां वल्मीको दृश्यते शिरा तस्मिन्.
पुरुषत्रये सपादे पश्चिमदिक्स्था वहति सा च..”
                       – बृहत्संहिता, 54.19

2. जलरहित क्षेत्र में कपिल वृक्ष से तीन हाथ पूर्व में दक्षिण शिरा बहती है –
“जलपरिहीने देशे वृक्षः कम्पिल्लको यदा दृश्यः..
प्राच्यां हस्तत्रितये वहति शिरा दक्षिणा प्रथमम्..”
                    –बृहत्संहिता,54.21

3. बेल व गूलर के पेड़ जहां इकट्ठे हों तो उनके दक्षिण में तीन हाथ दूर तीन पुरुष (15 क्यूबिट्स ) नीचे जल होता है. और आधा पुरुष (ढाई क्यूबिट्स) खोदने पर काला मेंढक निकलता है –
“बिल्वोदुम्बरयोगे विहायहस्तत्रयं तु याम्येन.
पुरुषैस्त्रिभिरम्बु भवेत् कृष्णोSर्धनरे च मण्डूकः..”
                       -बृहत्संहिता, 54.18

4. जहां पहले नीलकमल सी, फिर कबूतर वर्ण की मिट्टी दिखाई देती है. एक हाथ नीचे मछली निकलती है. उसमें चकोर जैसी दुर्गन्ध होती है तथा वहां पानी थोड़ा और खारा निकलता है –
“मृन्नीलोत्पलवर्णा कापोता चैव दृश्यते तस्मिन्.
हस्तेSजगन्धिमत्स्यो भवति पयोSल्पं च सक्षारम्..”
                      -बृहत्संहिता,54.22
5. बहेड़े (विभीतक) के पेड़ की निशानदेही करते हुए वराहमिहिर का कथन है कि इसके आस-पास ही कहीं दीमक की बांबी (वल्मीक) हो तो उस पेड़ के दो हाथ पूर्व में डेढ़ पुरुष(साढे सात क्यूबिट्स) नीचे जलशिरा होती है –
“आसन्नो वल्मीको दक्षिणपार्श्वे विभीतकस्य यदि.
अध्यर्धे तस्य शिरा पुरुषे ज्ञेया दिशि प्राच्याम्..”
                       -बृहत्संहिता,54.24
6. बहेड़े पेड़ के पश्चिम में बांबी (वल्मीक) हो तो वृक्ष से एक हाथ उत्तर में साढ़े चार पुरुष (साढे बाइस क्यूबिट्स) नीचे जलशिरा होती है –
“तस्यैव पश्चिमायां दिशि वल्मीको यदा भवेद्धस्ते.
तत्रोदग्भवति शिरा चतुर्भिरर्धाधिकैःपुरुषैः..”
-बृहत्संहिता,54.25

आगामी लेख में पढिए- “वराहमिहिर के अनुसार दीमक की बांबी (वल्मीक) से भूमिगत जलान्वेषण”
✍🏻डॉ मोहन चंद तिवारी, हिमान्तर में प्रकाशित आलेख
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

गुरुवार, 23 जून 2022

अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे।

94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। 
बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया। 
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं। 
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है?
पत्रकार ने कहा, नहीं। 
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, *”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”।* खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था। 
टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। 
मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया। 
अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया। 
*जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के किसी मंत्री तो क्या , किसी पार्षद परिवार से ही कर लें !!* 
पुण्यात्मा को सादर नमन्।।

मंगलवार, 21 जून 2022

जोधपुर वुशु टीम ने जीते राज्य स्तरीय वुशु प्रतियोगिता में 11 पदक


 जोधपुर वुशु  टीम ने जीते  राज्य स्तरीय वुशु प्रतियोगिता में 11 पदक
 जोधपुर 20 जून हनुमानगढ़ में आयोजित 16 राज्य स्तरीय सब जूनियर वुशुब प्रतियोगिता में जोधपुर के खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 11 पदक जीते जानकारी देते हुए जोधपुर वुशु  संघ के संयुक्त सचिव रामकिशोर शर्मा ने बताया कि जोधपुर के खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीन स्वर्ण पदक दो रजत पदक एवं आठ कांस्य पदक प्राप्त किए स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी इस प्रकार रहे अलमास अली ,मनीषा भाटी ,पार्थ सेन 

रजत पदक विजेता इस प्रकार रहे गर्विता बाड़ोलिया कनिष्का बडोलिया,
 कांस्य पदक विजेता इस प्रकार रहे 

चित्रांशी चौहान ,अक्षिता शर्मा, वंशिका गोस्वामी, श्वेता सोलंकी ,गायत्री शर्मा, लव ,भागीरथ राम, लव सांखला,
 टीम मैनेजर नक्षत्र जांगिड़ एवं टीम कोच विक्रम सिंह तकनीकी अधिकारी रूप  में रामकिशोर शर्मा ने प्रतियोगिता में सेवाएं दी पदक अर्जित कर जोधपुर आने पर जिला वुशु  संघ के अध्यक्ष सुरेश डोसी,
कोषाध्यक्ष जय किशन जसमतिया, ने खिलाड़ियों का स्वागत किया सभी खिलाड़ी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय केंद्र पर विनोद आचार्य के नियमित प्रशिक्षु हैं
 

सोमवार, 20 जून 2022

भारत में कुल 36,000 बड़े कत्लखाने हैं जिनके पास सरकार द्वारा जीवों को काटने की अनुज्ञा प्राप्त है।

🚩                *Voice Of Hinduism🔥* 
 
*🚩 चौंकाने वाली रिपोर्ट जिसमें आप जानेंगे कि गोमांस को, रक्त को, हड्डियों को, त्वचा (चमड़े) को, आँत को किन-किन वस्तुओं में प्रयोग किया जाता है।*

*🚩 भारत में कुल 36,000 बड़े कत्लखाने हैं जिनके पास सरकार द्वारा जीवों को काटने की अनुज्ञा प्राप्त है। इसके अलावा 36,000 से अधिक छोटे-मोटे कत्लखाने हैं जो गैर कानूनी ढंग से चल रहे हैं! कोई कुछ पूछने वाला नहीं। हर साल 5 करोड़ निर्दोष जीवों का कत्ल किया जाता है! जिसमें गौ, भैंस, सूअर, बकरा, बकरी, ऊँट आदि शामिल हैं। मुर्गियाँ कितनी काटी जाती हैं इसका तो कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।*

*🚩 गाय का कत्ल होने के बाद मांस उत्पन्न होता है और मांसाहारी लोग उसे भरपूर खाते हैं। भारत के 40% लोग मांसाहारी हैं जो रोज मांस खाते हैं और सब तरह का मांस खाते हैं। मांस के अलावा दूसरी जो चीज प्राप्त की जाती है वो है तेल। उसे tellow कहते हैं। जैसे गाय के मांस से जो तेल निकलता है उसे beef tellow और सूअर की मांस से जो तेल निकलता है उसे pork tellow कहते हैं।*

*🚩 इस तेल का सबसे अधिक उपयोग चेहरे में लगाने वाली क्रीम बनाने में होता है जैसे Fair & Lovely, Ponds, Emami इत्यादि। ये तेल क्रीम बनाने वाली कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है। जैसा कि आप जानते हैं मद्रास उच्च न्यायालय में राजीव दीक्षितजी ने विदेशी कंपनी फेयर एंड लवली के विरूद्ध केस जीता था। जिसके बाद कंपनी ने स्वीकारा था कि हम इस फेयर एंड लवली में सूअर की चर्बी का तेल व गाय की चर्बी का तेल भी मिलाते हैं।*

*🚩 इस प्रकार कत्लखानों में मांस और तेल के बाद जीवों का खून निकाला जाता है। कसाई गाय को पहले उल्टा रस्सी से टांग देते हैं फिर तेज धार वाले चाकू से उनकी गर्दन पर वार किया जाता है और एक दम से खून बहने लगता है। उनके नीचे एक ड्रम रखा होता है जिसमें खून इकट्ठा किया जाता है।*

*🚩 खून का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है अँग्रेजी दवा (एलोपेथी दवा)को बनाने में। गाय के शरीर से निकाला हुआ खून, बैल, बछड़ा, बछड़ी के शरीर से निकाला हुआ खून, मछ्ली के शरीर से निकाला हुआ खून से जो एक दवा बनाई जाती है उसका नाम है dexorange । यह बहुत ही प्रसिद्ध दवा है और डाक्टर इसको खून की कमी के लिए महिलाओं को लिखते हैं खासकर जब वो गर्भावस्था में होती हैं क्योंकि तब महिलाओं में खून की कमी आ जाती है। डाॅक्टर उनको गाय के खून से बनी दवा लिखते हैं क्योंकि उनको दवा कंपनियों से बहुत भारी कमीशन की कमाई जो करनी होती है।*

*🚩 इसके अलावा रक्त का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर लिपस्टिक बनाने मे होता है। रक्त का प्रयोग चाय बनाने में बहुत सी कंपनियाँ करती हैं। अब चाय तो पोधे से प्राप्त होती है और चाय के पोधे का आकार उतना ही होता है जितना गेहूँ के पोधे का होता है। उसमें पत्तियां होती है, उनको तोड़ा जाता है और फिर उसे सुखाते हैं तो पत्तियों को सुखाकर पैकेट मे बंद कर विदेशों में भेजा जाता है।*

*🚩 पत्तियों का भाग जो नीचे टूट कर गिरता है उसे डेंटरल कहते हैं। वह उसका अन्तिम हिस्सा होता है। लेकिन ये चाय नहीं है। चाय तो वो ऊपर की पत्ती है। तो फिर क्या करते हैं इसको चाय जैसा बनाया जाता है। अगर हम उस निचले हिस्से को सुखा कर पानी में डालें तो चाय जैसा रंग नहीं आता। तो ये विदेशी कपनियां brookbond, lipton, आदि क्या करती हैं गाय के शरीर से निकला हुआ खून को इसमें मिलाकर सुखाकर डिब्बे में बंद कर बेचती हैं। तकनीकी भाषा मे इसे tea dust कहते हैं। तो tea dust को जो चाय बनाकर बेचने के लिए काॅफी कंपनियाँ गोवंश के खून का प्रयोग करती हैं। इसके अलावा कुछ कंपनियाँ nail polish बनाने में प्रयोग करती हैं।*

*🚩 मांस, तेल ,खून के बाद कत्लखानों मे जीवों की हड्डियाँ निकलती हैं और इसका प्रयोग toothpaste बनाने वाली कंपनियाँ करती हैं। Colgate, Close up, Pepsodent, आदि। सबसे पहले जीवों की हड्डियों को इकट्ठा किया जाता है। उसे सुखाया जाता है फिर एक मशीन है bone crusher, इसमें हड्डियों को डालकर इसका पाउडर बनाया जाता है और कंपनियों को बेचा जाता है। shaving cream बनाने वाली कई कंपनियाँ भी इसका प्रयोग करती हैं।*

*🚩 इन हड्डियों का talcum powder बनाने में भी प्रयोग होता है। क्योंकि ये काफी सस्ता पड़ता है। वैसे टेल्कम powder पत्थर से बनता है और 60 से 70 रुपए किलो मिलता है और गाय की हड्डियों का चूर्ण (powder) 25 से 30 रुपए मिल जाता है। इसलिए कंपनियाँ धड़ल्ले से हड्डियों का प्रयोग करती हैं।* 

*🚩 गाय की जो त्वचा (चमड़ी) है उसका सबसे अधिक प्रयोग cricket ball व football बनाने में किया जाता है। लाल रंग की गेंद होती है। आजकल सफ़ेद रंग में भी आती है। जो गाय की चमड़ी से बनाई जाती है। गाय के बछड़े की चमड़ी का प्रयोग गेंदों के निर्माण में अधिक होता है।*

*🚩 जूते और चप्पल बनाने में इस चमड़े का बहुत प्रयोग हो रहा है। अगर आप बाजार से कोई ऐसा जूता-चप्पल खरीदते हैं, जो चमड़े का है और बहुत ही कोमल (soft) है तो वो 100% गाय के बछड़े के चमड़े का बना है। अगर कठोर (hard) है तो ऊंट और घोड़े के चमड़े का है। इसके अलावा चमड़े के प्रयोग जैकेट, पर्स, वाॅलेट और बेल्ट में भी होता है। इसके अलावा आजकल सजावट के समान में इन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार गाय और अन्य जीवों आदि का कत्ल होता है तो 5 वस्तुएँ निकलती हैं।*

*1) माँस निकला:- जो माँसाहारी लोग खाते हैं।*

*2) चर्बी का तेल:- जो काॅस्मेटिक्स बनाने मे प्रयोग होता है।*

*3) खून निकाला:- जो अँग्रेजी एलोपेथी दवाईयाँ, चाय, नेल पाॅलिश, लिपस्टिक बनाने में प्रयोग होता है।*

*4)हड्डियाँ निकली:-  इसका प्रयोग टूथपेस्ट, टूथ पाऊडर, टैलकम पाऊडर, शेविंग क्रीम में होता है।*

*5) चमड़ा निकला:-  इसका प्रयोग क्रिकेट बाॅल, फुट बाॅल, जूते, चप्पल, बैग, बेल्ट, जैकेट, वाॅलेट में होता है।* 

*🚩 इसके अलावा गाय के शरीर के अंदर के कुछ भाग हैं, उनका भी बहुत प्रयोग होता है। जैसे गाय में बड़ी आँत होती है, जैसे हमारे शरीर मे होती है। तो जब गाय को काटा जाता है तो बड़ी आँत अलग से निकाली जाती है और इसको पीस कर के जिलेटिन (gelatin) बनाई जाती है।*

*🚩 इस जिलेटिन का अधिक प्रयोग आइसक्रीम, चाॅकलेट आदि इसके अलावा मैगी, पीज़ा, बर्गर, हाॅट डाॅग, चाऊमीन के base material बनाने में भरपूर होता है। एक जैली (jelly) आती लाल, नारंगी रंग की, उसमें जिलेटिन का बहुत प्रयोग होता है। chewing gum तो जिलेटिन के बिना बन ही नहीं सकती। जिलेटिन बनाने के गूगल पर आप काफी लिंक देख सकते हैं। मैगी, चाॅकलेट वाली कंपनियाँ सबसे ज्यादा धोखा दे रही हैं। आजकल जिलेटिन का ऊपयोग साबूदाना में होने लगा है जो हम उपवास में खाते हैं।*

*🚩 यदि जो भी इन वस्तुओं को प्रयोग करते हैं, जिनके कारण गौवंश को काटा जाता है तो वे भी उतने ही पाप के भागीदार माने जाएंगे जितना कि उनको मारने वाला कसाई। अगली बार इन पापमयी वस्तुओं को खरीदने से पहले इनके निर्दोष विकल्प का चयन अवश्य करेंगे।*


अग्निवीर योजना मोदी का मास्टर स्ट्रोक नही, महा मास्टर स्ट्रोक है।

*अग्निवीर योजना*

*ये मोदी का मास्टर स्ट्रोक नही, महा मास्टर स्ट्रोक है।*
अभी वामपंथी और देश विरोधी ताकते इसको समझ ही नही पाए जब समझ जायेंगे तो इसका विरोध भी करेंगे।
एक तरफ विरोध होगा तो दूसरी तरफ इसमें 100% हिन्दू इस योजना के समर्थन में भी हो जाएंगे और भारत और भारत का हिन्दू 2035 तक आंतरिक और बाहरी दोनों मोर्चो पर ताकतवर हो जाएगा।

*शायद कुछ लोग अब भी नही समझे होंगे कि ये महा मास्टरस्ट्रोक कैसे है*👇👇
समझिए......
2023-2035 तक अग्निवीरो के अनेक जत्थे सेना से वापस अपने स्थानीय जगहों पर अपनी चार-चार साल की सेवा देकर आ जायेंगे, मतलब लगभग 10 लाख रिटायर अग्निवीर पूरे भारत मे फैल जायेंगे जिससे उनके परिजन ही नही अपितु पड़ोसी स्वजनों में भी उत्साहित गौरांवित होंगे उन सभी में एक अनोखे उत्साह और ऊर्जा का संचरण होगा उनके हौसले बुलंद होंगे हिंदुओ में नई ताकत पैदा होगी । अग्निवीर सेना से अस्त्र,सस्त्र में पारंगत है अतः उनको निजी हतियारो का लाइसेंस आसानी से मिल जाएगा। 
अब इसमें हिन्दुओ के काम की क्या बात है 👇👇
मान लो आपके मोहहले में अचानक जेहादियों की भीड़ आ गयी और आपके मोहहले में 2-4 रिटायर अग्निवीर है तो जाहिर है उनके पास लाइसेंससुदा निजी हतियार भी होंगे,आत्म रक्षा में वो उनको चलाएंगे भी, इस प्रकार इन अग्निवीरो से पूरा हिन्दू मोहहला सुरक्षित हो जाएगा।
हिन्दुओ मोदी ने आपके लिए वो सोचा है जिसकी आपको कल्पना भी नही थी। इस प्रकार भारत मे इन जेहादियों का मंसूबा गजवाये हिन्द कभी पूरा नही होगा। 

अग्निवीर योजना से भारत और सनातन अजेय बनेगा।

कृपया सभी हिन्दू इसका पुरजोर समर्थन करे और युवाओं को आगे लाये। 17 साल से 21, तक जोशीले युवा इसके भागीदार बने वैसे भी आजकल आप जानते ही है नॉर्मल सरकारी नौकरी लगने में 25-30 साल की उम्र हो जाती ही है, 21 साल बाद आकर भी आप दूसरी सरकारी नौकरी कर सकते हो।

## *अग्निवीर-जोशीला,जांबाज़*


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वंदे मातरम

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