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रविवार, 10 जुलाई 2022

10 जुलाई,2022 देवशयनी एकादशी है

*10 जुलाई,2022  देवशयनी एकादशी है ।*
 आज से देवता चार माह तक विश्राम करेंगे  इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि देवता सो जायेंगे।
धर्म प्रधान समाज होने के कारण भारत में विज्ञान को भी धर्म के आधार पर ही समझाया गया है। यह विज्ञान से जुड़ा हुआ ही तथ्य है।वास्तव में तो पंचतत्व (पृथ्वी, अग्नि,जल ,वायु और आकाश) में ही सम्पूर्ण देवता निहित है।वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही ये पाँचों तत्व अपना स्वभाव बदल लेते हैं।पृथ्वी पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां उग आती है।जगह-जगह पानी भर जाने से मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।विभिन्न प्रकार के रेंगने वाले जहरीले जीव बिलों में पानी भर जाने से सतह पर आ जाते हैं।अग्नि मन्द पड़ जाती है। खुले में हवन आदि शुभ धार्मिक कार्य करना कठिन हो जाता है।वर्षा जल मिल जाने से अधिकांश जल दूषित हो जाता है तथा हवा में भी लगभग चालीस प्रतिशत पानी की मात्रा हो जाती है।आकाश में बादल छाये रहने के कारण धूप धरती तक नहीं पहुँच पाती है।अर्थात पाँचों प्रमुख देवता अपना स्वभाव बदल लेते हैं।
      अतः ऐसे समय कोई सामजिक (विवाह आदि) अथवा मांगलिक कार्य करने में अनेक संकटों का सामना करना पड़ेगा और हमारा शरीर भी तो इन पाँच तत्वों से मिलकर ही बना है इसलिये जो प्रभाव बाहर है वही हमारे शरीर के अंदर होंगे।अगर बाहर मन्दाग्नि है तो हमारे शरीर की भी अग्नि (पाचन क्षमता) कमजोर पड़ जाती है।
      इन सब बातों का ध्यान करके हमारे पूर्वजों ने देवशयनी ग्यारस से लेकर देवउठनी ग्यारस (शरद ऋतु) तक को चातुर्मास का रूप देते हुए देवता विश्राम काल मानते हुए लम्बी यात्राओं, सामाजिक तथा विशेष मांगलिक कार्यक्रमों पर धार्मिक रोक लगा दी।
      समुद्र में इस समय मछलियाँ पकड़ने पर भी रोक रहती है,क्योंकि यह जलीय जीवों का प्रजनन काल रहता है।धर्मप्रधान समाज होने से उसने यह मन से स्वीकार कर लिया और एक स्थान पर रहते हुए अपना व्यावसायिक कर्म के साथ व्यक्तिगत धार्मिक उपासना को प्राथमिकता दी।गाँव-गाँव में मंदिरों-चौपालों पर सावन-भादौ में रामचरित मानस या अन्य धार्मिक ग्रंथों का वाचन होता है । इसलिये आईये हम सब अपने धर्म का पालन करें । यही विज्ञान है।.    
       इन सोये हुए देवताओं की रखवाली करना हम सब का सामाजिक और नैतिक दायित्व है।. किन्तु आज पहले जैसी परिस्थिति नहीं हैं।लोगों के व्यवसाय भी ऐसे हो गये हैं कि यात्राएँ करना ही पड़ती है।किन्तु फिर भी जितना हो सके हम इन पंचतत्वों की रक्षा का इस समय कोई न कोई संकल्प लें।पौधे लगायें, पानी रोकें, नदियों,पहाड़ों, जलस्रोतों,जंगल की रक्षा करें।धरती,जल,आकाश, वायु को प्रदूषित होनें से बचायें।
    यही सोये हुए देवताओं की रक्षा करना है ।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

संस्कृत भाषा से ही विश्व की सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है

*🚩आज विश्व की सबसे पवित्र, दिव्य, वैज्ञानिक, रहस्यमय, गौरवशाली भाषा संस्कृत के, आज के आधुनिक परिपेक्ष्य में उपयोगिता को समझेंगे।

*🚩 देववाणी संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, संस्कृत भाषा से ही विश्व की सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है, लेकिन भारतवासी भूल गए क्योंकि ये सब इतिहास में पढ़ाया नहीं जाता है।*

*🚩 भारतीय हिंदू देवी-देवताओं की आराधना करके और संस्कृत भाषा का प्रयोग करके जापान संसार में तकनीक के मामले में नंबर 1 पर है, लेकिन भारत में ऐसी विडंबना है कि भारतवासी पाश्चात्य संस्कृति से आकर्षित होकर हिंदू देवी-देवताओं और अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं।*
*🚩 सृष्टि के अस्तित्व से ही संस्कृत भाषा बोली जाती थी। ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने संसार का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत में था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।*

*🚩 संस्कृत, विश्व की सबसे प्राचीनतम ग्रंथ (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।*

*🚩 संस्कृत की सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।*

*🚩 संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।*

*🚩 संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।*

*🚩 संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है और एक संस्कार है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है और वसुधैव कुटुम्बकम की सर्वोच्च भावना है।*

*🚩 अब तो नासा ने भी माना कि संस्कृत भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसका प्रयोग करके कंप्यूटर पर काम करना अत्यंत सरल है। नासा का कहना है कि 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।*

*🚩 संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियाँ (Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियाँ हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।*

*🚩 कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।*

*🚩 संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य (official state language) भाषा है।*

*🚩 अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।*

*🚩 कर्नाटक के मट्टुर (Mattur) ग्राम में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।*

*🚩 जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी माँग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा माँग होने के कारण वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।*
*🚩 हिन्दू विश्वविद्यालय के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाता है।*

*🚩 संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।*

*🚩 यूनेस्को (UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को (UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।*

*🚩 शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरणशक्ति (याददाश्त) बढ़ती है। एक अमेरिकी शोध में सिद्ध हुआ है कि वैदिक मंत्रों को याद करने से दिमाग के उस हिस्से में बढोतरी होती है जिसका काम संज्ञान लेना है, यानी कि चीजों को याद करना है ।*

*-डॉ. जेम्स हार्टजेल, न्यूरो साइंटिस्ट*

*🚩 संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।*

*🚩 नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।*

*🚩 संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है। जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।*

*🚩 संसार का सबसे सम्पन्न और प्रचुरतम साहित्य संस्कृत भाषा ने ही प्रदान किया है।*

*🚩 आप सभी संस्कृत भाषा को अपने दैनिक दिनचर्या का अनिवार्य भाग बनायें। बच्चों को भी संस्कृत भाषा में देवताओं की पौराणिक स्तुति, गीता पाठ व उपनिष्दों की नीतियाँ कंठस्थ करायें। उन्हें निरन्तर प्रोत्साहन दें। देवभाषा का उपहास करने वाले अज्ञानियों, नकारात्मक पूर्वाग्रह से ग्रस्त, नास्तिक, मूर्खों को भी शिक्षित करने का प्रयास करें।* 

*🚩 संस्कृत सम्भाषण के कुछ शब्द आप आज से ही अपने नित्यचर्या में लागू करें।*
*Welcome नहीं "स्वागतम्" कहें।*
*Sorry नहीं "क्षम्यताम्" कहें।*
*Sir नहीं "श्रीमान्" कहें।*
*Good night नहीं "शुभरात्रि" कहें।*
*See you नहीं "पुनः मिलामः" कहें।*
*My name is नहीं "मम् नाम" कहें।*
*All is well नहीं "सर्वं कुशलम्" कहें।*
*At what time नहीं "कस्मिन् समये" कहें।*
*Please sit down नहीं "उपविशन्तु" कहें।*
*I am a teacher (fem) नहीं "अहम् एक अध्यापिका अस्मि" कहें।*

*🚩 संस्कृत कोई प्राक्षेपास्त्र विज्ञान (rocket science) नहीं है और न ही History channel के परगृही (aliens) की भाषा है। यह मिथ्या तर्क देकर अंग्रेजों ने भारतीयों को संस्कृत भाषा के उपयोग से होनेवाले लाभों से वंचित कर दिया है। उनकी कूटनीति की चालों और मैकाले के दासत्व बनाने वाले मायाजाल का भेदन कीजिए।*

*🚩 अंग्रेजी को बोलने की अपेक्षा संस्कृत बोलने में वास्तविक स्वाभिमान को स्वीकार कीजिए। स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था जिस दिन भारत के काश्मीर (प्राचीन कश्मीर का पौराणिक नाम) से लेकर कन्याकुमारी के सागर तट तक निवास करने वाली आर्य जाति संस्कृत में सम्भाषण करेगी तो उसके उच्चारण से ही वह दिव्य ऊर्जा से सम्पन्न हो जायेगी। संसार में फिर उसे कोई परास्त नहीं कर सकेगा।*

*🚩 हमारी केन्द्र सरकार से यह सविनय प्रार्थना है कि सभी विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन अनिवार्य किया जाए।*


जोधपुर में शुरू हुई शुद्ध सात्विक भोजन की व्यवस्था - नाम है "The सात्विक Diet"

जोधपुर और ज़ायका दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसे में जोधपुर वालों को शुद्ध स्वादिष्ट खाना घर से बाहर कहीं मिल जाए तो कहना ही क्या।
ऐसे ही शुद्ध सात्विक भोजन की व्यवस्था शुरू हुई है पावटा सी रोड आर्य समाज भवन के बिल्कुल पास। 

देशी ढाबे का नाम है "The सात्विक Diet"

यहाँ आपको मिलेगा देशी तंदूर में बनी हुई मल्टी ग्रेन आटे की रोटी, मिट्टी की हांडी में बनी पंचमेल की दाल और स्पेशल चटनी। ये देशी खाना आपको परोसा हुआ मिलेगा पत्तल में वो भी मात्र 60 रुपए में। चाहें तो अलग से गौशाला का बिलौने का घी और घर के बिलोने की छाछ भी ले सकते हैं। 

जोधपुर में इसकी शुरुआत हुई है एक आम आदमी द्वारा, जिसका सहयोग किया जा रहा है आर्य समाज, महामंदिर और गौ-सेवक राकेश जी निहाल द्वारा। 

निवेदन है एक बार परिवार सहित ज़रूर ज़रूर इस स्वाद का आनंद लें।

रविवार, 3 जुलाई 2022

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान जो एक दिवस में सिद्ध होती है

 नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान जो एक दिवस में सिद्ध होती है

नाभि दर्शना अप्सरा साधना बेहद आसान है. इसलिए इसे करने के लिए अधिकतर लोग लालायित रहते हैं. आपने कई ऐसी नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र सिद्धि के बारे सुना होगा जो आसानी से सिद्ध हो जाती है और साधक की हर इच्छा को पूरा करती है.

मुख्य रूप से इस तरह की साधना का उदेश्य समृद्धि और यश पाना होता है.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि काफी आसान भी होती है और लम्बे समय तक चलने वाली साधना भी ये आप पर निर्भर है की आप कौनसी साधना करना चाहते है. अप्सरा सिद्धि के बाद कभी भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देती है. ये आपको अपने होने का अहसास करवाती है.

आप नाभि दर्शना अप्सरा की साधना के पूर्ण होने के बाद अप्सरा का अहसास अपने आसपास कर सकते है क्यों की ये जहाँ भी होती है वहां का माहौल सुगंधमय हो जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के दौरान सबसे बड़ी मुश्किल होती है नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र की स्थापना की अगर नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र आपके पास ना हो तो आप अष्टदल पद्म के ऊपर चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर सुपारी रखकर उस शक्ति का आवाहन कर सकते हैं.


नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र में 21 माला का विधान है. एक दिवसीय साधना होने की वजह से ये साधना जितनी आसान लगती है उससे कही ज्यादा खतरनाक इसके दुष्प्रभाव है. अप्सरा साधना के बाद साधक को जो अलौकिक रहस्यों की समझ होती है वो उसके Third eye activation की वजह से होती है.

पारलौकिक जगत के रहस्य को देखने के बाद साधक मानसिक संतुलन रख पाता है या नहीं ये उसके मस्तिष्क की स्थिरता पर निर्भर करता है. अगर आप इस तरह की साधना कर रहे है तो सावधान रहे क्यों की आसान दिखने वाली साधनाओ के अपने खतरे होते है.


नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

एक शब्द में कहे तो ये एक दिवसीय साधना है और जो साधक ये साधना कर लेता है उसे सुख, यौवन की प्राप्ति हो जाती है. जब कोई साधक शुरुआती स्तर पर होता है और उसे अप्सरा सिद्धि हो जाती है तो वो अपना जीवन खुशियों से भर सकता है.

अप्सरा साधना सिद्धि बेहद आसान है लेकिन, ये साधक के स्थिर चित पर निर्भर करती है की उसे अप्सरा की प्राप्ति होती है या नहीं.


ऐसा माना जाता है की अप्सरा साधना करने के बाद साधक का जीवन वासना से परे हो जाता है और वो भोग से ऊपर उठकर साधना में आगे बढ़ना शुरू कर देता है. यहाँ शेयर किया गया नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र एक दिवसीय साधना का भाग है.

अगर आप अप्सरा साधना विधि विधान के साथ पूरा करना चाहते है तो इस साधना से शरूआत करे. आपको अलौकिक रहस्यों के अनुभव भी होंगे और साधना मार्ग में आगे बढ़ने का मौका भी मिलेगा.

कौन हैं अप्सरा?

अप्सराओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह निश्‍चित तथ्य है कि समुद्र-मंथन में पहले रम्भा अप्सरा की उत्पत्ति हुई, और उसके पश्‍चात् अमृत घट और तत्काल पश्‍चात् भगवती लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसलिए अप्सराओं का महत्व अन्य रत्नों की अपेक्षा अत्यधिक है.


रूप, रस और जल तत्व प्रधान होने के कारण ही इनका नाम अप्सरा पड़ा और इनके गुण देवताओं के गुणों के समान ही पूर्ण रूप से प्रभावशाली हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना को पूरा करने वाले साधक में अलौकिक रहस्यों को समझने की समझ आ जाती है.

ये भी कहा जाता है कि इन्द्र ने 108 ॠचाओं की रचना करके इन अप्सराओं को प्रकट किया. रम्भा के अलावा जिन अन्य अप्सराओं का वेदों और पुराणों में जिक्र आता है, उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, और तिलोत्तमा. नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की उत्पति भी इसी समय हुई थी.

साधना-पथ में साधक अपने मन पर नियंत्रण चाहता है जिससे कि वह अपने अंतर्मन में उतर कर मनन कर सके, पर मन में तो कामनाएं बसती हैं और वे मूलतः प्रेम-जनित होती हैं. अब हृदय अर्थात् उर में जो बस जाती है, उसे उर्वशी कहते हैं और उर्वशी तो हम सबके मन में है.

उर्वशी-जनित भाव के कारण ही तो प्रेम की तरंगें मन में उठती हैं और प्रीत में किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती.

शरद पूर्णिमा की रात जब आसमान से चांदनी की शीतल किरणें भी प्रेम में संतप्त युगलों को दग्ध कर देती हैं, उस रात्रि में नाभि दर्शना अप्सरा साधकों के आह्वान पर सुरपुर से धरती पर आती है.

ब्रह्म साधना से भी आवश्यक और उसे करने से पूर्व अप्सरा साधना साधक को करनी चाहिए.


नाभि दर्शना अप्सरा की साधना

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र को सिद्ध करने के पीछे कई रहस्य है. सौन्दर्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति, वय में षोडशी और कोमलता से लबालब कमनीय शरीर जो अपने यौवन से इतराया और प्रेम से सिंचित है. प्रतिपल भीनी खुशबू में नहाया तन नाभि-दर्शना के आने की सूचना देता है.

इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह मुस्कुराता हुआ चेहरा, कमल नाल की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है.

इन्हें इन्द्र का वरदान प्राप्त है कि जो इसके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है, उनके शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली बन जाता है.


नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना विधान

  • इस साधना को आप शरद पूर्णिमा, रमा एकादशी, रूप चतुर्दशी अथवा किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न करें.
  • यह रात्रिकालीन साधना है, इस साधना को रात्रि में 10 बजे के पश्‍चात् सम्पन्न करना चाहिये.
  • नाभिअप्सरा साधना साधक अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर एकांत में सम्पन्न कर सकता है.
  • इस साधना में बैठने से पूर्व साधक स्नान कर सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनें एवं अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें.
  • साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठें.
  • इस साधना में सुगन्धित पुष्पों का प्रयोग करना चाहिये. साधक साधना से पहले ही दो सुगन्धित पुष्पों की माला की व्यवस्था कर लें.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की शुरुआत में सर्वप्रथम अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरुचित्र स्थापित कर, पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करें. गुरुदेव से साधना में सफलता का आशीर्वाद प्राप्त कर, मूल साधना सम्पन्न करें

बाजोट पर एक ताम्र पात्र में अद्वितीय ‘नाभि दर्शना महायंत्र’ को स्थापित करें. केशर से यंत्र पर तिलक कर यंत्र का सुगन्धित पुष्पों, इत्र, कुंकुम इत्यादि से पूजन करें. यंत्र के सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगावें.

इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक नाम, अमुक पिता का पुत्र, अमुक गौत्र का साधक नाभि दर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह सुख आनन्द एवं ऐश्‍वर्य प्रदान करे.

इसके बाद ‘नाभि दर्शना अप्सरा माला’ से नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप सम्पन्न करें, इसमें 21 माला नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए.

॥ ॐ ऐं श्रीं नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्षं श्रीं ऐं फट्॥

अगर बीच में घुंघरूओं की आवाज आवे या किसी का स्पर्श हो, तो साधक विचलित न हों और अपना ध्यान न हटावें, अपितु 21 माला मंत्र जप एकाग्रचित्त होकर सम्पन्न करें, इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के 21 माला मंत्र जप पूरी एकाग्रता के साथ सम्पन्न करने के पश्‍चात् अप्सरा माला को साधक स्वयं के गले में डाल दें. तथा सुगन्धित पुष्पों की एक माला को यंत्र पर चढ़ा दे तथा दूसरी माला भी स्वयं के गले में डाल दें.


साधना में सिद्धि के संकेत

मंत्र जप की पूर्णता पर साधक को यह आभास या प्रत्य होने लगता है कि अप्सरा घुटने से घुटना सटाकर बैठी है. जब साधक को यह आभास या प्रत्य हो जाएं तो साधक नाभि दर्शना अप्सरा से वचन ले लें कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने उपस्थित होना है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के दौरान मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए, पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा का उल्लंघन न हो.

तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी. तब इस साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद अपने साधना स्थल से उठ खड़ा हो.

साधक को चाहिए कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट न करें, क्योंकि साधना ग्रन्थों में ऐसा ही स्पष्ट उल्लेख आया है.

साधना सम्पन्न होने पर नाभि दर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने घर में किसी गोपनीय स्थान पर रख दें, जो गले में अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें, जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके.

apsara sadhna ke nuksan

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र में सफलता के बाद जब भी नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने की इच्छा हो, तब इस महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला जप कर लें. अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही प्रत्य प्रकट हो जाती हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना मंत्र को स्त्रियां भी सिद्ध कर सकती हैं, नाभि दर्शना अप्सरा के रूप में उन्हें अभिन्न सखी प्राप्त हो जाती है, और उस सखी के साहचर्य से साधिका के शरीर का भी कायाकल्प हो जाता है, और ऐसी साधिका अत्यन्त सुन्दर, यौवनमय और सम्मोहक बन जाती हैं.

वास्तव में ही यह साधना बालक या वृद्ध किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति या स्त्री सम्पन्न कर सकते हैं, और यदि विश्‍वास एवं श्रद्धा के साथ इस साधना को सम्पन्न करें, तो अवश्य ही पूर्ण सफलता मिलती है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान अंतिम शब्द

अगर आप अप्सरा साधना में रूचि रखते है तो आपको सबसे आसान और एक दिवसीय नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के विधान को जरुर पूरा करना चाहिए. कलयुग में जहाँ सात्विक साधना को सिद्ध करना बेहद मुश्किल है वही अप्सरा और यक्षिणी साधना को सिद्ध करना बेहद आसान है.


ये दोनों ही शक्तियां पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे करीब है. अगर आप नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि को फॉलो करे तो आपको अप्सरा सिद्धि हो सकती है. ध्यान रहे की गुरु के बगैर ये साधना कर रहे है तो अपने विवेक और चित को स्थिर रखे.

कई बार हम जोश जोश में साधना की शुरुआत तो कर लेते है लेकिन, आगे बढ़ने पर जैसे ही हमें अलौकिक रहस्यों के दर्शन होने लगते है हम अपना विवेक खो देते है. ऐसे में ये साधना खतरनाक हो सकती है.

आप इन छोटे बच्चों को 1 सेकंड के लिए अकेला छोड़ दीजिये और यही सब है जो वे करेंगे ??

ओके यह देखिये ...

आप इन छोटे बच्चों को 1 सेकंड के लिए अकेला छोड़ दीजिये और यही सब है जो वे करेंगे ??

आखिर ये हुआ कैसे ??

यह प्रेरणा इसे कहाँ से मिली और यह कैसे गया ?

बेहतर है कोई बात करना शुरू करे !!

शर्त। 18 तक कोई पॉकेट मनी नहीं!

शरारती छोटे बच्चे ।

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