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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर बदल कर राष्ट्र ध्वज 'तिरंगे' की तस्वीर लगा

 पीएम मोदी ने प्रोफाइल पिक्चर पर लगाई तिरंगे की तस्वीर, मोदी ने सभी से की यह अपील



Har Ghar Tiranga: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर बदल कर राष्ट्र ध्वज 'तिरंगे' की तस्वीर लगा दी है। उन्होंने देश के लोगों से भी तिरंगा महोत्सव मनाने के लिए एक आंदोलन के रूप में ऐसा ही करने की अपील की है। रविवार 31 जुलाई को प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा था कि 'आजादी का अमृत महोत्सव' एक जनांदोलन के रूप में तब्दील हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने जनता से अपील की थी कि 2 से 15 अगस्त के बीच अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर के रूप में 'तिरंगे' की तस्वीर लगाएं। अमित शाह ने भी बदली डीपीपीएम मोदी के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने सोशल मीडिया खातों की डीपी बदल दी। देश हर घर तिरंगा अभियान के लिए तैयार : मोदीपीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया खातों की प्रोफाइल पिक्चर बदलने के साथ ट्वीट किया, 'आज 2 अगस्त विशेष दिन है! ऐसे समय में जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, हमारा देश हर घर तिरंगा अभियान के लिए पूरी तरह तैयार है। तिरंगा महोत्सव एक सामूहिक आंदोलन है। मैंने अपने सोशल मीडिया पेजों पर डीपी बदल दी है और आप सभी से भी ऐसा ही करने का आग्रह करता हूं।'तिरंगे की डिजाइन बनाने वाले पिंगली वेंकैया का किया याद पीएम मोदी ने इस मौके पर पिंगली वेंकैया को भी श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने राष्ट्र ध्वज की डिजाइन तैयारी की थी। आज यानी 2 अगस्त को वेंकैया की जयंती है। पीएम ने कहा, 'हमें तिरंगा देने के उनके प्रयासों के लिए हमारा देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा, जिस पर हमें बहुत गर्व है। तिरंगे से ताकत और प्रेरणा लेते हुए, हम राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करते रहें।'बता दें, देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर हर घर तिरंगा योजना की शुरुआत की गई है। हर नागरिक को अपने घर पर 13 अगस्त से 15 अगस्त तक तिरंगा लगाने की अपील की गई है। आंध्र के थे पिंगली वेंकैया, गांधीजी के सुझाव पर जोड़ी सफेद पट्टीपिंगली वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम भाटलापेनुमरु में हुआ था। वे ब्रिटिश फौज में सैनिक थे। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के कई रूप बनाए थे। 1921 में विजयवाड़ा में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उनकी एक डिजाइन को मंजूरी दी गई थी। वैंकैया ने जो डिजाइन गांधीजी को बताई थी उसमें हरी और लाल दो धारियां और बीच में चरखा था। गांधीजी ने उन्हें एक सफेद पट्टी जोड़ने को कहा था।पहली बार 1921 से कांग्रेस की सभी बैठकों में वेंकैया द्वारा तैयार झंडे को अनौपचारिक रूप से मंजूरी दी गई थी। इसके बाद 1931 में मौजूदा तिरंगे को औपचारिक रूप से मंजूर किया गया। यही तिरंगा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन और अब देश की शान बना हुआ है।

हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस अवसर पर देश भर में 20 करोड़ से अधिक घरों पर तिरंगा झंडा फहराया जाएगा

 इस अभियान के तहत प्रत्येक नागरिकों को अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने के लिए सरकार प्रोत्साहित करेगी।

हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस अवसर पर अगले महीने तक तीनों दिन तक ( 13 अगस्त से 15 अगस्त तक) देश भर में 20 करोड़ से अधिक घरों पर इस अभियान के तहत तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के सभी मुख्यमंत्री एवं केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासकों के साथ आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इस अभियान की तैयारी को लेकर समीक्षा की है। इस अभियान के अंतर्गत 13 से 15 अगस्त तक जनभागीदारी से सभी घरों में तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। जिसमें सभी सरकारी एवं निजी प्रतिष्ठान शामिल होंगे। इसके साथ सभी नागरिकों को अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम टि्वटर और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट पर तिरंगा प्रदर्शित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा।


हर घर तिरंगा फहराने का उद्देश्य | Purpose of Har Ghar Tiranga

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आजादी के 75 वें वर्षगांठ पर आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने के दौरान देश के प्रत्येक नागरिक को अपने घरों में तिरंगा लगाने और इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर घर तिरंगा अभियान शुरू किया  है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इस अभियान के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जागृत करना एवं जनभागीदारी की भावना से देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के वर्षगांठ के अवसर पर आजादी के अमृत महोत्सव को मनाना है। 13 से 15 अगस्त के बीच प्रत्येक नागरिक द्वारी अपने घरों में तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। इस अभियान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जुलाई को ट्वीट करते हुए कहा है कि इस साल देश के प्रत्येक नागरिक आजादी के अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं जिसमें हर घर 13 से 15 अगस्त के बीच भारत के प्रत्येक व्यक्ति अपने घरों में  तिरंगा को लहराएंगे। जिससे देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जुड़ाव और लगाव अधिक गहरा होगा।

हर घर तिरंगा अभियान के तहत झंडा फहराने का नियम | Rule Of Har Ghar Tiranga

केंद्र सरकार ने 15 अगस्त को 20 करोड़ घरों में जनभागीदारी से तिरंगा झंडा फहराने के लिए राष्ट्रीय अभियान हर घर तिरंगा अभियान पहल शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कुछ नियम निकाले हैं। आइए जानते हैं उन नियमों के बारे में – अगर कोई भी व्यक्ति इस नियम के अनुसार तिरंगा झंडा नहीं फहराता है, तब उन पर सख्त से सख्त कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा जारी फ्लैग कोड 2002 तैयार किया गया है। यह कोड राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग, फहराने और प्रदर्शन से जुड़ी गाइडलाइन को बताता है और इस गाइडलाइन को 26 जनवरी 2002 में लागू किया था। इस अभियान के तहत हर घर तिरंगा अभियान में जनभागीदारी से तिरंगा झंडा फहराए जाना है।

1.हर घर तिरंगा अभियान में झंडे का प्रयोग किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
2. किसी व्यक्ति या वस्तु को सलामी देने के लिए भी झंडे को नहीं झुकाया जाएगा।
3. झंडे का प्रयोग किसी भी पोशाक, वर्दी के रूप में नहीं किया जाएगा, साथ ही झंडे को किसी भी रुमाल, तकिए या अन्य कपड़े पर नहीं छापा जाएगा।
4. झंडे का प्रयोग किसी भी भवन में पर्दा लगाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
5. किसी भी प्रकार के अधिसूचना, विज्ञापन, अभिलेख ध्वज पर नहीं लिखा जाना चाहिए।

6. इसके साथ-साथ झंडे को वाहन, रेलगाड़ी, वायुयान की छत को ढकने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

7. इसके साथ-साथ किसी दूसरे झंडे को भारतीय झंडे के बराबर या उसके ऊंचाई पर नहीं फहराया जाएगा।

इस अभियान का उद्देश्य | Main Objective of This Mission

इसका मुख्य लक्ष्य नागरिकों के दिलों में देशभक्ति की भावना पैदा करना और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। भारत में राष्ट्रीय ध्वज को कैसे नियंत्रित किया जाता है यह भारत के ध्वज संहिता 2002 भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया है। यह राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग, प्रदर्शनी और फहराने पर गाइडलाइन प्रोवाइड करता है। भारत का ध्वज संहिता 26 जनवरी 2002 को लागू किया गया था। जो कि प्राइवेट पब्लिक और गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन द्वारा ध्वज के प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।

फ्लैग के साथ सेल्फी क्या है और संस्कृति मंत्रालय ने हर घर तिरंगा योजना के लिए वेबसाइट क्यों लॉन्च की है?

 केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने हर घर तिरंगा योजना के लिए लोगों को और अधिक उत्साहित एवं जागरूक करने के लिए एक वेबसाइट लॉन्च की है। जिसमें देश का कोई भी नागरिक झंडा लगा सकता है और अपने देशभक्ति को दिखाने के लिए तिरंगा झंडा के साथ सेल्फी लेकर इस वेबसाइट पर पोस्ट कर सकता है। इस साल स्वतंत्रता दिवस के 75 साल पूरा होने पर देश में आजादी का अमृत महोत्सव का पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया है। भारत के आजादी के 75 गौरवशाली सालों को मनाने के लिए इस महोत्सव की शुरुआत की गई है। जिसमें देश के 28 राज्यों, 8 केंद्र शासित प्रदेशों और 150 से अधिक देशों में 50,000 से अधिक इस आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत सफलतापूर्वक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। जो कि अब तक का सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है।

केंद्र सरकार हर घर तिरंगा अभियान पर कितना और कैसे खर्च कर रही है

 केंद्र सरकार ने इस साल आजादी के अमृत महोत्सव अभियान के तहत देश के 20 करोड़ घरों में झंडा फहराने का लक्ष्य तय किया है। कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स सीएआईटी के अनुसार भारत में फिलहाल 4 करोड़ झंडे उपलब्ध है और बाकी के झंडों का आर्डर राज्य एवं केंद्र सरकार को अपने स्तर पर निर्माण कर बिक्री के जगह पहुंचाना होगा। केंद्र सरकार के अनुसार झंडे 3 साइज में उपलब्ध होंगे और तीनों की कीमत भी अलग-अलग तय की जाएगी। इन तीनों झंडों के साइज के अनुसार इनका कीमत ₹9, ₹18 और ₹25 रुपये केंद्र सरकार ने तय किया है।

झंडा बनाने वाली कंपनियां शुरुआत में केंद्र और राज्य सरकार को झंडा उधार पर उपलब्ध करवाएंगे। देश के उन सभी नागरिकों को अपने पैसे से झंडा खरीदना होगा। जो आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अपने घरों में झंडा फहराएंगे। 1 अगस्त से डाक घरों पर भी झंडा उपलब्ध होगा। केंद्र सरकार के 20 करोड़ घरों पर झंडा फहराने के लक्ष्य में अगर झंडे का न्यूनतम कीमत ₹10 भी होता है। तो इस अभियान में कुल 200 करोड़ रुपए खर्च होने की उम्मीद है और यह 200 करोड़ उन्हीं लोगों के जेब से आएंगे जो झंडे खरीदेंगे और झंडा बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह छोटे और मध्यम उद्योग जैसे से जुड़े व्यापारी और बिजनेस हाउस को झंडा बनाने के लिए टेंडर दिया गया है। ताकि ज्यादा से ज्यादा मात्रा में लोगों को झंडा उपलब्ध हो सके।

बुधवार, 3 अगस्त 2022

माहेश्वरीयों का इतिहास क्या है ? क्यों माहेश्वरीयों में विवाह परंपरा को बहुत महत्वपूर्ण विधि माना जाता है ? क्यों विवाह की विधि में लड़का मोड़ और कट्यार धारण करता है?


मेरे कई राजपूत भाईओ और बहनों ने मुझे पूछा की माहेश्वरी मतलब राजपूत या कोन ? और तो और
माहेश्वरी समाज में बहुत से लोग है, जो नहीं जानते की माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई ? माहेश्वरीयों का इतिहास क्या है ? क्यों माहेश्वरीयों में विवाह परंपरा को बहुत महत्वपूर्ण विधि माना जाता है ? क्यों विवाह की विधि में लड़का मोड़ और कट्यार धारण करता है? जानने के लिए पढ़िए-  माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास (Origin & History of Maheshwari) :
खंडेलपुर (इसे खंडेलानगर और खंडिल्ल के नाम से भी उल्लेखित किया जाता है) नामक राज्य में सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा खड्गलसेन राज्य करता था l इसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी l राजा धर्मावतार और प्रजाप्रेमी था, परन्तु राजा का कोई पुत्र नहीं था l खड्गलसेन इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। खड्गलसेन की चिंता को जानकर मत्स्यराज ने परामर्श दिया कि आप पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं, इससे पुत्र की प्राप्ति होगी। राजा खड्गलसेन ने मंत्रियों से मंत्रणा कर के धोसीगिरी से ऋषियों को ससम्मान आमंत्रित कर पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया l पुत्रेष्टि यज्ञ के विधिपूर्वक पूर्ण होने पर यज्ञ से प्राप्त हवि को राजा खड्गलसेन और महारानी को प्रसादस्वरूप में भक्षण करने के लिए देते हुए ऋषियों ने आशीवाद दिया और साथ-साथ यह भी कहा की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर न जाने देना, अन्यथा आपकी अकाल मृत्यु होगी l कुछ समयोपरांत महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया l राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया, उसका नाम सुजानसेन रखा l यथासमय उसकी शिक्षा प्रारम्भ की गई l थोड़े ही समय में वह राजकाज विद्या और शस्त्र विद्या में आगे बढ़ने लगा l तथासमय सुजानसेन का विवाह चन्द्रावती के साथ हुवा l दैवयोग से एक जैन मुनि खंडेलपुर आए l कुवर सुजान उनसे बहुत प्रभावित हुवा l उसने अनेको जैन मंदिर बनवाएं और जैन धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया l जैनमत के प्रचार-प्रसार की धुन में वह भगवान विष्णु, भगवान शिव और देवी भगवती को माननेवाले, इनकी आराधना-उपासना करनेवाले आम प्रजाजनों को ही नहीं बल्कि ऋषि-मुनियों को भी प्रताड़ित करने लगा, उनपर अत्याचार करने लगा l

ऋषियों द्वारा कही बात के कारन सुजानसेन को उत्तर दिशा में जाने नहीं दिया जाता था लेकिन एक दिन राजकुवर सुजानसेन 72 उमरावो को लेकर हठपूर्वक जंगल में उत्तर दिशा की और ही गया l उत्तर दिशामें सूर्य कुंड के पास जाकर देखा की वहाँ महर्षि पराशर की अगुवाई में सारस्‍वत, ग्‍वाला, गौतम, श्रृंगी और दाधीच ऋषि यज्ञ कर रहे है, वेद ध्वनि बोल रहे है, यह देख वह आगबबुला हो गया और क्रोधित होकर बोला इस दिशा में ऋषि-मुनि शिव की भक्ति करते है, यज्ञ करते है इसलिए पिताजी मुझे इधर आने से रोकते थे l उसने क्रोध में आकर उमरावों को आदेश दिया की इसी समय यज्ञ का विध्वंस कर दो, यज्ञ सामग्री नष्ट कर दो और ऋषि-मुनियों के आश्रम नष्ट कर दो l राजकुमार की आज्ञा पालन के लिए आगे बढे उमरावों को देखकर ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया की सब निष्प्राण बन जाओ l श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव निष्प्राण, पत्थरवत बन गए l जब यह समाचार राजा खड्गलसेन ने सुना तो अपने प्राण तज दिए l राजा के साथ उनकी 8 रानिया सती हुई l 

राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती 72 उमरावों की पत्नियों के सहित रुदन करती हुई उन्ही ऋषियो की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को श्राप दिया था l ये उन ऋषियो के चरणों में गिर पड़ी और और क्षमायाचना करते हुए श्राप वापस लेने की विनती की तब ऋषियो ने उषाप दिया की- जब देवी पार्वती के कहने पर भगवान महेश्वर इनमें प्राणशक्ति प्रवाहित करेंगे तब ये पुनः जीवित व शुद्ध बुद्धि हो जायेंगे l महेश-पार्वती के शीघ्र प्रसन्नता का उपाय पूछने पर ऋषियों ने कहा की- यहाँ निकट ही एक गुफा है, वहाँ जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र "ॐ नमो महेश्वराय" का जाप करो l राजकुवरानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और मंत्र तपस्या में लीन हो गई l उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महेशजी देवी पार्वती के साथ वहा आये l पार्वती ने इन जडत्व मूर्तियों को देखा और अपनी अंतर्दृष्टि से इसके बारे में जान लिया l महेश-पार्वती ने मंत्रजाप में लीन राजकुवरानी एवं सभी उमराओं की स्त्रियों के सम्मुख आकर कहा की- तुम्हारी तपस्या देखकर हम अति प्रसन्न है और तुम्हें वरदान देने के लिए आयें हैं, वर मांगो। इस पर राजकुवरानी ने देवी पार्वती से वर मांगा की- हम सभी के पति ऋषियों के श्राप से निष्प्राण हो गए है अतः आप आप भगवान महेशजी कहकर इनका श्रापमोचन करवायें l पार्वती ने 'तथास्तु' कहा और भगवान महेशजी से प्रार्थना की और फिर भगवान महेशजी ने सुजानसेन और सभी 72 उमरावों में प्राणशक्ति प्रवाहित करके उन्हें चेतन (जीवित) कर दिया l 

चेतन अवस्था में आते ही सभीने महेश-पार्वती का वंदन किया और अपने अपराध पर क्षमा याचना की l इसपर भगवान महेश ने कहा की- अपने क्षत्रियत्व के मद में तुमने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है l तुमसे यज्ञ में बाधा डालने का पाप हुवा है, इसके प्रायश्चित के लिए अपने-अपने हथियारों को लेकर सूर्यकुंड में स्नान करो l ऐसा करते ही सभी उमरावों के हथियार पानी में गल गए l स्नान करने के उपरान्त सभी भगवान महेश-पार्वती की जयजयकार करने लगे l फिर भगवान महेशजी ने कहा की- सूर्यकुंड में स्नान करने से तुम्हारे सभी पापों का प्रायश्चित हो गया है तथा तुम्हारा क्षत्रितत्व एवं पूर्व कर्म भी नष्ट हो गये है l यह तुम्हारा नया जीवन है इसलिए अब तुम्हारा नया वंश चलेगा l तुम्हारे वंशपर हमारी छाप रहेगी l देवी माहेश्वरी (पार्वती) के द्वारा तुम्हारी पत्नियों को दिए वरदान के कारन तुम्हे नया जीवन मिला है इसलिए तुम्हे 'माहेश्वरी' के नाम से जाना जायेगा l तुम हमारी (महेश-पार्वती) संतान की तरह माने जाओगे l तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे l द्यूत, मद्यपान और परस्त्रीगमन इन त्रिदोषों से मुक्त होंगे l अब तुम्हारे लिए युद्धकर्म (जीवनयापन/उदरनिर्वाह के लिए योद्धा/सैनिक का कार्य करना) निषिद्ध (वर्जित) है l अब तुम अपने परिवार के जीवनयापन/उदरनिर्वाह के लिए वाणिज्य कर्म करोगे, तुम इसमें खूब फुलोगे-फलोगे l जगत में धन-सम्पदा के धनि के रूप में तुम्हारी पहचान होगी l धनि और दानी के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी। श्रेष्ठ कहलावोगे (*आगे चलकर श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर 'सेठ' कहा जाने लगा) l तुम जो धन-अन्न-धान्य दान करेंगे उसे माताभाग (माता का भाग) कहा जायेगा, इससे तुम्हे बरकत रहेगी l 

अब राजकुवर और उमरावों में स्त्रियों (पत्नियोंको) को स्वीकार करने को लेकर असमंजस दिखाई दिया l उन्होंने कहा की- हमारा नया जन्म हुवा है, हम तो “माहेश्वरी’’ बन गए है पर ये अभी क्षत्रानिया है l हम इन्हें कैसे स्वीकार करे l तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री-पुरुष हमारी (महेश-पार्वती) चार बार परिक्रमा करो, जो जिसकी पत्नी है अपने आप गठबंधन हो जायेगा l इसपर राजकुवरानी ने पार्वती से कहा की- माते, पहले तो हमारे पति क्षत्रिय थे, हथियारबन्द थे तो हमारी और हमारे मान की रक्षा करते थे अब हमारी और हमारे मान की रक्षा ये कैसे करेंगे तब पार्वती ने सभी को दिव्य कट्यार (कटार) दी और कहाँ की अब तुम्हारा कर्म युद्ध करना नहीं बल्कि वाणिज्य कार्य (व्यापार-उद्यम) करना है लेकिन अपने स्त्रियों की और मान की रक्षा के लिए सदैव 'कट्यार' (कटार) को धारण करेंगे l मे शक्ति स्वयं इसमे बिराजमान रहूंगी l तब सब ने महेश-पार्वति की चार बार परिक्रमा की तो जो जिसकी पत्नी है उनका अपनेआप गठबंधन हो गया (एक-दो जगह पर, 13 स्त्रियों ने भी कट्यार धारण करके गठबंधन की परिक्रमा करने का उल्लेख मिलता है) l 

इसके बाद सभी ने सपत्नीक महेश-पार्वती को प्रणाम किया l अपने नए जीवन के प्रति चिंतित, आशंकित माहेश्वरीयों को देखकर पार्वती उन्हें भयमुक्त करने के लिए यह कहकर की- “सर्वं खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम् l” ‘समस्त जगत मैं ही हूँ l इस सृष्टि में कुछ भी नहीं था तब भी मैं थीं। मैं ही इस सृष्टि का आदि स्रोत हूँ। मैं सनातन हूँ l मैं ही परब्रह्म, परम-ज्योति, प्रणव-रूपिणी तथा युगल रूप धारिणी हूं। मैं नित्य स्वरूपा एवं कार्य कारण रूपिणी हूं। मैं ही सब कुछ हूं। मुझ से अलग किसी का वजूद ही नहीं है। मेरे किये से ही सबकुछ होता है इसलिए तुम सब अपने मन को आशंकाओं से मुक्त कर दो’ ऐसा कहकर देवी पार्वती नें सभी को दिव्यदृष्टि दी और अपने आदिशक्ति स्वरुप का दर्शन कराया l दिखाया की शिव ही शक्ति है और शक्ति ही शिव है l ‘शिवस्याभ्यन्तरे शक्तिः शक्तेरभ्यन्तरेशिवः।’ शक्ति शिव में निहित है, शिव शक्ति में निहित हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव और शक्ति अर्थात महाकाल और महाकाली, महेश्वर और माहेश्वरी, महादेव और महादेवी, महेश और पार्वती तो एक ही है, जो दो अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करते है। महेश-पार्वती के सामरस्य से ही यह सृष्टि संभव हुई। आदिशक्ति ने पलभर में अगणित (जिसको गिनना असंभव हो) ब्रह्मांडों का दर्शन करा दिया जिसमें वह समस्त दिखा जो मनुष्य नें देखा या सुना हुवा है और वह भी दिखा जिसे मानव ने ना सुना है, ना देखा है, न ही कभी देख पाएगा और ना उनका वर्णन ही कर पाएगा । तत्पश्चात अर्धनरनारीश्वर स्वरुप में शरीर के आधे भाग में महेश (शिव) और आधे भाग में पार्वती (शक्ति) का रूप दिखाकर सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति (पालन), परिवर्तन और लय (संहार); महेश (शिव) एवं पार्वती (शक्ति) अर्थात (संकल्पशक्ति और क्रियाशक्ति) के अधीन होनेका बोध कराया l चामुण्डा स्वरुप का दर्शन कराया जिसमें दिखाया की- “महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी” देवी पार्वती की ही तीन शक्तियां है जो बलशक्ति, ज्ञानशक्ति और ऐश्वर्यशक्ति (धनशक्ति) के रूप में अर्थात इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति के रूप में कार्य करती है जिसके फलस्वरूप सृष्टि के सञ्चालन का कार्य संपन्न हो रहा है l महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी इन्ही त्रयीशक्तियों का सम्मिलित/एकत्रित रूप है चामुण्डा जो स्वयं आदिशक्ति देवी पार्वती ही है l आगे महाकाली के अंशशक्तियों नवदुर्गा और दसमहाविद्या तथा महालक्ष्मी की अंशशक्तियों अष्टलक्ष्मियों का दर्शन कराया l अंततः यह सभी शक्तियां मूल शक्ति (आदिशक्ति) देवी पार्वती में समाहित हो गई l तब आश्चर्यचकित, रोमांचित, भावविभोर होकर सभी ने सिर नवाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहा की- हे माते, आप ही जगतजननी हो, जगतमाता हो l आपकी महिमा अनंत है l आपके इस आदिशक्ति रूप को देखकर हमारा मन सभी चिन्ताओं, आशंकाओं से मुक्त हो गया है l हम अपने भीतर दिव्य चेतना, दिव्य ऊर्जा और प्रसन्नता का अनुभव कर रहे है l हे माते, आपकी जय हो। हमपर आपकी कृपा निरंतर बरसती रहे l देवी ने कहा, मेरा जो आदिशक्ति रूप तुमने देखा है उसे देख पाना अत्यंत दुर्लभ है l केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही मेरे इस आदिशक्ति रूप का साक्षात दर्शन किया जा सकता है l जो मनुष्य अपने सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को, मनोकामनाओं से मुक्त रहकर केवल मेरे प्रति समर्पित करता है, मेरे भक्ति में स्थित रहता है वह मनुष्य निश्चित रूप से मेरी कृपा को प्राप्त करता है l वह मनुष्य निश्चित रूप से परम आनंद को, परम सुख को प्राप्त करता है l 

फिर भगवान महेशजी ने सुजानसेन को कहा की अब तुम इनकी वंशावली रखने का कार्य करोगे, तुम्हे 'जागा' कहा जायेगा l तुम माहेश्वरीयों के वंश की जानकारी रखोंगे, विवाह-संबन्ध जोड़ने में मदत करोगे और ये हर समय, यथा शक्ति द्रव्य देकर तुम्हारी मदत करेंगे l तत्पश्चात ऋषियों ने महेश-पार्वती को हाथ जोड़कर वंदन किया और भगवान महेशजी से कहा की- प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप मोचन (श्राप से मुक्त) कर दिया l इस पर भगवान महेशजी ने ऋषियो से कहा- आपको इनका (माहेश्वरीयों का) गुरुपद देता हूँ l आजसे आप माहेश्वरीयोंके गुरु हो l आपको 'गुरुमहाराज' के नाम से जाना जायेगा l आपका दायित्व है की आप इन सबको धर्म के मार्गपर चलनेका मार्गदर्शन करते रहेंगे l भगवान महेशजी ने सभी माहेश्वरीयों को उपदेश दिया कि आज से यह ऋषि तुम्हारे गुरु है l आप इनके द्वारा अनुशाषित होंगे l एक बार देवी पार्वती के जिज्ञासापूर्ण अनुरोध पर मैंने पार्वती को जो बताया था वह पुनः तुम्हे बताता हूँ- 
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः l गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ll 
अर्थात "गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है | गुरु से अधिक और कुछ नहीं है यह मैं तीन बार कहता हूँ l गुरु और गुरुतत्व को बताते हुए महेशजी ने कहा की, गुरु मात्र कोई व्यक्ति नहीं है अपितु गुरुत्व (गुरु-तत्व) तो व्यक्ति के ज्ञान में समाहित है। उसे वैभव, ऐश्वर्य, सौंदर्य अथवा आयु से नापा नहीं जा सकता। गुरु अंगुली पकड़कर नहीं चलाता, गुरु अपने ज्ञान से शिष्य का मार्ग प्रकाशित करता है। चलना शिष्य को ही पड़ता है। जैसे मै और पार्वती अभिन्न है वैसे ही मै और गुरुत्व (गुरु-तत्व) अभिन्न है l इस तरह से गुरु व गुरुतत्व के बारे में बताने के पश्चात महेश भगवान पार्वतीजी सहित वहां से अंतर्ध्यान हो गये l 

उमरावों के चेतन होने के शुभ समाचार को जानकर उनके सन्तानादि परिजन भी वहां पर आ गए l पूरा वृतांत सुनने के बाद ऋषियों के कहने पर उन सभी ने सूर्यकुंड में स्नान किया l ऋषियों ने, 
“स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु, विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु l 
ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु, वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु ll” 
(अर्थ - आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें | विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें l ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे l आपका वंश सदैव तेजस्वी एवं दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे।) इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सभी के हाथों में रक्षासूत्र (कलावा) बांधा और उज्वल भविष्य और कल्याण की कामना करते हुए आशीर्वाद दिए l

आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l
सूर्यस्थाने महेशकृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः ll
अर्थ- जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे, युधिष्ठिर राजा शासन करता था l सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल- जहाँ सूर्य अपनी पत्नी छाया के साथ निवास करते है, वह स्थान जो की माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है), भगवान महेशजी की कृपा (वरदान) से l कृपया - कृपा से, माहेश्वरी उत्पत्ति हुई (यह दिन युधिष्टिर संवत 9 जेष्ट शुक्ल नवमी का दिन था l तभी से माहेश्वरी समाज 'जेष्ट शुक्ल नवमी' को “महेश नवमी’’ के नाम से, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन (माहेश्वरी स्थापना दिन) के रूप में बहुत धूम धाम से मनाता है l “महेश नवमी” माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा त्योंहार है, सबसे बड़ा पर्व है) l  

(योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक- "माहेश्वरी, वंशोत्पत्ति एवं इतिहास" से साभार)।।

रक्षा बंधन के दिन ही खुलता है ये श्री वंशी नारायण मंदिर, #श्री_वंशी_नारायण_मंदिर_उत्तराखंड


#श्री_वंशी_नारायण_मंदिर_उत्तराखंड 
रक्षा बंधन के दिन ही खुलता है ये श्री वंशी नारायण मंदिर, इस वजह से पूरे साल यहां नहीं होती पूजा-अर्चना,

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षा बंधन को रक्षा का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन सिर्फ भाई और बहन को ही नहीं बल्कि भगवान, मंदिर और वाहनों को भी राखी बांधी जाती है। इस दिन कई मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो सिर्फ रक्षा बंधन के मौके पर ही खुलता है।
बदरीनाथ क्षेत्र की उर्गम घाटी में मौजूद श्री वंशी नारायण मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है। रक्षा बंधन के दिन ही इस मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं। इस पूरे दिन भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती हैं और शाम ढलने से पहले इस मंदिर के कपाट बंद भी कर दिए जाते हैं। यह वंशीनारायण मंदिर उर्गम घाटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग सात किमी तक पैदल चलना होता है। रास्ता बहुत ही खराब होने की वजह से इस मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। रक्षा बंधन के दिन यहां महिलाओं की बहुत भीड़ रहती हैं क्योंकि, महिलाएं इस दिन भगवान विष्णु को राखी बांधने यहां पहुंचती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। कहते हैं इस मंदिर में देवऋषि नारद ने साल के 364 दिन भगवान विष्णु की भक्ति की थी। इस वजह से साल के एक ही दिन आम इंसान भगवान विष्णु की आराधना कर सकता है। कहते हैं कि एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया था कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए।
भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने के कारण माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुई और नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान विष्णु पाताल लोक में हैं और राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। इस पर नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को कहा कि भगवान विष्णु को वापस पाने के लिए आपको श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक जाना होगा। वहां पहुंचकर आपको राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भेंट में भगवान नारायण को वापस मांगना होगा। माता लक्ष्मी को पाताल लोक तक पहुंचाने में नाराद मुनि ने उनकी मदद की। इसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने नारायण भगवान की पूजा की तब से यह परंपरा चली आ रही है।

जानिए कैसे हुई गरुड़ और नागों की उत्पत्ति और कैसे बने गरुड़ विष्णु के वाहन ?

जानिए कैसे हुई गरुड़ और नागों की उत्पत्ति और कैसे बने गरुड़ विष्णु के वाहन ?
 आज हम आपको एक पौराणिक कथा बता रहे है जिसका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। यह कथा बताती है की इस धरती पर गरुड़ और नागों की उत्पत्ति कैसे हुई, क्यों गरुड़ नाग के दुशमन हुए, क्यों नागो की जीभ आगे से दो हिस्सों में बटी हुई है और कैसे गरुड़, भगवान विष्णु के वाहन बने ?

महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी। लेकिन विनता और कद्रू नामक अपनी दो पत्नियों से वे विशेष प्रेम करते थे। एक दिन महर्षि जब आनंद भाव में बैठे थे तो उनकी दोनों पत्नियां उनके समीप पहुंची और पति के पांव दबाने लगी।  प्रसन्न होकर महर्षि ने बारी-बारी से दोनों को सम्बोधित किया- “तुम दोनों ही मुझे विशेष प्रिय हो। तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ।”

कद्रू बोली- “स्वामी ! मेरी इच्छा है कि मैं हजार पुत्रो की माँ बनूं।”

फिर महर्षि ने विनता से पूछा। विनता ने कहा- “मैं भी माँ बनना चाहती हूं स्वामी ! किन्तु हजार पुत्रो की नहीं, बल्कि सिर्फ एक ही पुत्र की। लेकिन मेरा पुत्र इतना बलवान हो कि कद्रू के हजार पुत्र भी उसकी बराबरी न कर सके।”

महर्षि बोले- “शीघ्र ही मैं एक यज्ञ करने वाला हूं। यज्ञोपरांत तुम दोनों की माँ बनने की इच्छाएं अवश्य पूरी होगी।”

महर्षि कश्यप ने यज्ञ किया। देवता और ऋषि-मुनियों ने सहर्ष यज्ञ में हिस्सा लिया। यज्ञ सम्पूर्ण करके महर्षि कश्यप पुनः तपस्या करने चले गए। कुछ माह पश्चात विनता ने दो तथा कद्रु ने एक हजार अंडे दिए। कुछ काल के पश्चात कद्रु ने अपने अंडे फोड़े तो उनमे से काले नागों के बच्चे निकल पड़े। कद्रु ने ख़ुशी से चहकते हुए विनता को पुकारा- विनता ! देखो तो मेरे अन्डो से कितने प्यारे बच्चे बाहर निकले है।
 
विनता बोली- “सचमुच बहुत खूबसूरत है कद्रू ! बधाई हो, अब मैं भी अपने दोनों अंडो को फोड़कर देखती हूं।”

यह कहकर विनता अपने दोनों अंडो के पास गई। उसने एक अंडा फोड़ दिया, लेकिन अंडे के अंदर से एक बच्चे का आधा बना शरीर देखकर वह सहम गई। बोली- “हे भगवान ! जल्दीबाजी में मैने ये क्या कर डाला। यह बच्चा तो अभी अपूर्ण है।”

तभी फूटे हुए अंडे के अंदर से बालक बोल पड़ा- “जल्दबाजी में अंडा फोड़कर तुमने बहुत बड़ा अपराध कर डाला है। फलस्वरूप तुम्हे कुछ समय तक दासता करनी होगी।”

विनता बोली- “अपराध तो मुझसे हो ही गया। लेकिन इसका निराकरण कैसे होगा पुत्र ?”

अपूर्ण बालक बोला-“दूसरे अंडे को फोड़ने में जल्दबाजी मत करना। यदि तुमने ऐसा किया तो जीवन भर दासता से मुक्त नहीं हो पाओगी। क्योंकि उसी अंडे से पैदा होने वाला तुम्हारा पुत्र तुम्हे दासता से मुक्ति दिलाएगा।”

इतना कहकर अंडे से उत्पन्न अपूर्ण बालक आकाश में उड़ गया और विनता दूसरे अंडे के पकने तक इंतजार करने लगी। समय पाकर अंडा फूटा और उसमे से एक महान तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गरुड़ रखा गया। गरुड़ दिन-प्रतिदिन बड़ा होने लगा और कद्रू के हजार पुत्रों पर भारी पड़ने लगा। परिणामस्वरूप विनता और कद्रू के संबंध दिन-प्रतिदिन कटु से कटुतर होते गए।

फिर एक दिन जब विनता और कद्रू भृमण कर रही थी। कद्रू ने सागर के किनारे दूर खड़े सफेद घोड़े को देखकर विनता से कहा- “बता सकती हो विनता ! दूर खड़ा वह घोडा किस रंग का है ?”

विनता बोली- “सफेद रंग का।”

कद्रू बोली- “शर्त लगाकर कह सकती हो कि घोडा सफेद रंग का ही है। मुझे तो इसकी पूंछ काले रंग की नजर आ रही है।”

विनता बोली- “तुम्हारा विचार गलत है। घोडा पूंछ समेत सफेद रंग का है।”

दोनों में काफी देर तक यही बहस छिड़ी रही। आखिर में कद्रू ने कहा- “तो फिर हम दोनों में शर्त हो गई। कल घोड़े को चलकर देखते है। यदि वह सम्पूर्ण सफेद रंग का हुआ तो मैं हारी, और यदि उसकी पूंछ काली निकली तो मैं जीत जाऊंगी। उस हालत में जो भी हम दोनों में से जीतेगी, तो हारने वाली को जितने वाली की दासी बनना पड़ेगा। बोलो तुम्हे मंजूर है ?”

विनता बोली- “मुझे मंजूर है।”

रात को ही कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों को बुलाकर कहा- “आज रात को तुम सब उच्चेः श्रवा घोड़े की पूंछ से जाकर लिपट जाना। ताकि सुबह जब विनता देखे तो उसे घोड़े की पूंछ काली नजर आए।”

योजनानुसार नाग उच्चेः श्रवा घोड़े की पूंछ से जाकर लिपट गए। परिणामस्वरूप सुबह जब कद्रू ने विनता को घोड़े की पूंछ काले रंग की दिखाई तो वह हैरान रह गई। बोली- “ऐसा कैसे हो गया। कल तो इसकी पूंछ बिलकुल सफेद थी।”

कद्रू बोली- “खूब तसल्ली से देख लो। घोड़े की पूंछ आरम्भ से ही काली है। शर्त के मुताबित तुम हार चुकी हो। इसलिए अब तुम्हे मेरी दासी बनकर रहना पड़ेगा।”

विवशतापूर्वक विनता को कद्रू की दासता स्वीकार करनी पड़ी। माता को उदास देखकर गरुड़ ने पूछा- “क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे आप कद्रू की दासता से मुक्त हो जाए ?”

विनता बोली- “यह तो कद्रू से ही पूछना पड़ेगा। यदि वह प्रसन्न हो जाती है तो मुझे दासता से मुक्त कर देगी।”

गरुड़ अपनी माता विनता को लेकर कद्रू के पास पहुंचा और कहा- “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप मेरी माता को अपनी दासता से मुक्त कर दे।”

कद्रू बोली- “हो सकता है। बशर्ते कि तुम मेरे पुत्रों को अमृत लाकर दे दो।”

यह सुनकर गरुड़ सोच में पड़ गया। उसने अपनी माता से पूछा- “माँ ! अमृत कहा मिलेगा जिसे लेकर मैं तुम्हे दासी जीवन से मुक्त कर संकू।”

विनता ने कहा- “अमृत का पता तुम्हारे पिता बता सकते है पुत्र ! तुम उन्हीं के पास जाकर पूछो।”

गरुड़ महर्षि कश्यप के पास पहुंचा। कश्यप अपने पुत्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। गरुड़ ने उनसे पूछा- “पिताश्री ! मैं अमृत लेकर अपनी माता को दासता से मुक्ति दिलाना चाहता हूं। कृपया मुझे बताइये कि अमृत कहा मिलेगा।”

महर्षि बोले- “पुत्र ! देवराज इंद्र ने अमृत की सुरक्षा के लिए बहुत व्यापक प्रबंध कर रखा है। वहां तक पहुचना कठिन है।”

गरुड़ बोला- “इंद्र ने कितनी ही कड़ी सुरक्षा प्रबंध क्यों न कर रखे हो। मगर मैं अमृत ले आऊंगा। आप मुझे सिर्फ उस स्थान का पता बता दीजिये।”

महर्षि कश्यप ने गरुड़ को इंद्र का पता बता दिया। गरुड़ ने फिर पूछा- “पिताजी ! मुझे भूख बहुत लगती है। कृपया मुझे यह भी बता दीजिये कि इस लम्बे मार्ग में क्या खाकर अपना पेट भरु।”

महर्षि बोले- “अमृत जिस स्थान पर रखा है उस सरोवर तक पहुंचने में तुम्हे वक्त लग जाएगा। इस बीच समुद्र के किनारे तुम्हे निषादों की अनेक बस्तिया मिलेगी। ये निषाद बहुत पतित है और इनके आचरण असुरो जैसे है। तुम इन्हे खाकर अपनी भूख मिटा लेना।”

गरुड़ बोला- “और उसके बाद भी मेरा पेट न भरा तो ?”

महर्षि बोले- “सरोवर के अंदर एक विशाल कछुआ रहता है और उसके साथ ही वन में एक महा भयंकर हाथी भी रहता है। दोनों ही बहुत क्रूर और आसुरी प्रवृति के है। तुम उन्हें भी खा सकते हो।”

पिता का आदेश पाते ही गरुड़ अमृत सरोवर की ओर बढ़ चला। मार्ग में उसने निषादों को खाकर अपनी भूख मिटाई। फिर अमृत सरोवर पर पहुंचकर कच्छप और हाथी को अपने पंजो में दबाया और दोनों को खाने के लिए किसी उचित जगह की तलाश में उड़ चला।”

सोमगिरि पर्वत पर लहलहाते ऊंचे वृक्षों को देखकर जैसे ही उसने एक वृक्ष पर बैठना चाहा तो उनके भार से वृक्ष की शाखा टूटकर नीचे गिरने लगी। यह देख गरुड़ तुरंत उड़ा और दूसरे वृक्ष पर जा बैठा। जिस शाखा पर वह बैठा उस शाखा पर उसने उलटे लटके कुछ ऋषियों को तपस्या करते देखा। लेकिन वह शाखा उनके भार से टूटकर नीचे गिरने लगी। यह देख गरुड़ ने शाखा को चोंच में दबाया और हाथी तथा कच्छप को पंजे में दबाए हुए वह अपने पिता के आश्रम की ओर उड चला।

कश्यप के आश्रम में गरुड़ ने उड़ते-उड़ते अपने पिता से पूछा- “पिताजी ! मेरे भार से उस पेड़ की शाखा टूट गई है जिस पर कुछ ऋषि उलटे लटके तपस्या कर रहे थे। मुझे बताइये अब मैं इस शाखा को कहां छोडूं ?”

महर्षि कश्यप बोले- “तुमने बहुत अच्छा किया पुत्र ! जो सीधे यहां चले आए। शाखा, से उलटे लटके हुए ये बालखिल्य ऋषिगण है। अगर इन्हे कष्ट पहुंचा तो ये शाप देकर तुम्हे भस्म कर देंगे।”

गरुड़ बोले- “तो फिर बताइये अब मैं क्या करूं ?”

महर्षि बोले- “ठहरो, मैं ऋषिगण से प्रार्थना करता हूं कि वे अपना स्थान छोड़कर नीचे आ जाए।”

महर्षि कश्यप ने ऋषि गणो से प्रार्थना की। बालखिल्य ऋषियों ने कश्यप की प्रार्थना स्वीकार कर शाखा छोड़ दी और वे हिमालय में तपस्या करने चले गए। चोंच में दबी शाखा को नीचे फेंककर गरुड़ ने भी आनंद से कछुए और हाथी का आहार किया और तृप्त होकर पुनः अमृत लाने के लिए उड़ चला। गरुड़ अमृत सरोवर के पास पहुंचा तो अमृत की रक्षा करते हुए महाकाय देवो और अमृत कलश के चारो ओर घूमते हुए चक्र को देखकर वह हैरान हो गया। उसने सोचा कि ये देव और चक्र देवराज इंद्र ने अमृत कलश की सुरक्षा के लिए लगाए हुए है। चक्र में फंसकर मेरे पंख कट सकते है। इसलिए मैं अत्यंत छोटा रूप धारण कर इसके मध्य में प्रवेश करूंगा।

गरुड़ को देखकर एक देव ने कहा- “यह कोई असुर है जो वेश बदलकर अमृत चुकाने यहां तक पहुंचा है। हमे इसे खत्म कर देना चाहिए।”

दोनों देव विद्युत गति से गरुड़ पर टूट पड़े। लेकिन गरुड़ ने अपने पैने पंजो और तीखी चोंच से इन्हे इतना घायल कर दिया कि शीघ्र ही वे दोनों बेहोश होकर गिर पड़े। गरुड़ ने अमृत कलश पंजो में दबाया और वापस उड़ गया।

होश में आते ही दोनों रक्षक देव घबराए हुए इंद्र के पास पहुंचे और गरुड़ द्वारा अमृत कलश ले उड़ने की घटना बता दी।

यह सुनके इंद्र चकित होकर बोला- “ऐसा कैसे हो गया। सरोवर में रहने वाले विशाल कच्छप और तट पर रहने वाले महाकाय हाथी का क्या हुआ ?”

“उन दोनों को भी उस विशाल गरुड़ ने अपना भोजन बना लिया।”

यह सुनकर इंद्र अपनी देव सेवा की एक टुकड़ी के साथ वज्र उठाए इन्द्रपुरी से निकला और गरुड़ की खोज में बढ़ चला। आकाश मार्ग में उड़ते हुए शीघ्र ही उसने गरुड़ को देख लिया और अपना वज्र चला दिया। इंद्र के वज्र का गरुड़ पर कोई असर न हुआ। उसके डैनों से सिर्फ एक पंख वज्र से टकराकर नीचे आ गिरा। देव गरुड़ पर टूट पड़े लेकिन कुछ ही समय में गरुड़ ने उन्हें अपनी पैनी चोंच की मार से अधमरा कर दिया।

यह देख इंद्र सोचने लगा- “यह तो महान पराक्रमी है। मेरे वज्र का इस पर जरा भी असर नहीं हुआ। जबकि मेरे वज्र के प्रहार से पहाड़ तक टूट के चूर्ण बन जाते है। ऐसे पराक्रमी को शत्रुता से नहीं मित्रता से काबू में करना चाहिए।” यह सोचकर इंद्र ने गरुड़ से कहा- “पक्षीराज ! मैं तुम्हारी वीरता से बहुत प्रभावित हुआ हूं। इस अमृत कलश को मुझे सौंप दो और बदले में जो भी वर मांगना चाहते हो मांग लो।”

गरुड़ बोला- “यह अमृत मैं अपने लिए नही, अपनी माता को दासता से मुक्त कराने के लिए नाग माता को देने के लिए ले जा रहा हूं। इसलिए यह कलश मैं तुम्हे नहीं दूंगा।”

इंद्र बोला- “ठीक है, इस समय तुम कलश ले जाकर नाग माता को सौंप दो किन्तु उन्हें इसे प्रयोग मत करने देना। उचित मौका देखकर मैं वहां से यह कलश गायब कर दूंगा।”

गरुड़ बोला- “अगर मैं तुम्हारी बात को मान लूं तो मुझे बदले में क्या मिलेगा ?”

इंद्र बोला- “तुम्हारा मनपसंद भरपेट भोजन। तब मैं तुम्हे इन्ही नागो को खाने की इजाजत दे दूंगा।”

गरुड़ बोला- “यही तो मैं चाहता हूं। नाग मेरे स्वादिष्ट भोजन है किन्तु एक ही पिता की संतान होने के कारण मैं इन्हे कहते हुए हिचकता हूं। अब मेरी हिचक दूर हो गई। अब मैं आपके कथानुसार ही कार्य करूंगा।”

यह कहकर गरुड़ अमृत कलश लेकर कद्रु के पास पहुंचा और उससे बोला- “माते ! अपनी प्रतिज्ञानुसार मैं अमृत कलश ले आया हूं। अब आप अपने वचन से मेरी माता को मुक्त कर दे।”

कद्रु ने उसी क्षण विनता को वचन से मुक्त कर दिया और अगली सुबह अमृत नागो को पिलाने का निश्चय कर वहां से चली गई। रात को उचित मौका देखकर इंद्र ने अमृत कलश उठा लिया और पुनः उसी स्थान पर पहुंचा दिया।

दूसरे दिन सुबह नाग जब वहां पहुंचे तो अमृत कलश गायब देखकर दुखी हुए। उन्होंने उस कुशा को ही जिस पर अमृत कलश रखा था चाटना आरम्भ कर दिया जिसके कारण उनकी जीभ दो हिस्सों में फट गई।

गरुड़ की मातृभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु गरुड़ के सम्मुख प्रकट हो गए और बोले- “मैं तुम्हारी मातृभक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हूं पक्षीराज ! मैं चाहता हूं कि अब से तुम मेरे वाहन के रूप में मेरे साथ रहा करो।”

गरुड़ बोला- “मैं बहुत भाग्यशाली हूं प्रभु जो स्वयं आपने मुझे अपना वाहन बनाना स्वीकार किया। आज से मैं हर क्षण आपकी सेवा में रहूंगा और आपको छोड़कर कही नहीं जाऊंगा।”

इस तरह उसी दिन से पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन के रूप में प्रयुक्त होने लगे। गरुड़ के भगवान विष्णु की सेवा में जाते ही देवता भयमुक्त हो गए।

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