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बुधवार, 17 अगस्त 2022

दुनिया का सबसे ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)

#सहजन
   दुनिया का सबसे ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)। इसकी जड़ से लेकर फूल, पत्ती, फल्ली, तना, गोंद हर चीज उपयोगी होती है। 
           आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है। सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना :- 
*विटामिन सी- संतरे से सात गुना अधिक। विटामिन ए- गाजर से चार गुना अधिक। कैलशियम- दूध से चार गुना अधिक। पोटेशियम- केले से तीन गुना अधिक। प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना अधिक।*
            स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम #मोरिगा_ओलिफेरा है। लैटिन में #moringa_ptarygosbeema, गोंडी में #मुंगना, मराठी में #शेवगा, संस्कृत में #शोभांजन, अंग्रेजी में #Drumstic तथा हिंदी में इसे #सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं, जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं। 

 ★         सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटिका, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठिया, लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं। 
★          सहजन की पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है।
 ★           सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द, वायु संचय, वात रोगों में लाभ होता है। इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हींग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। 
 ★         सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है। ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है। इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम मिलता है। 
★            सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है, इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं। 
 ★         सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है, बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।
★            कैंसर तथा शरीर के किसी हिस्से में बनी गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में भी लाभकारी है |
★            सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द तथा दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग, जैसे चेचक आदि के होने का खतरा टल जाता है। 
 ★          सहजन में अधिक मात्रा में ओलिक एसिड होता है, जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है। यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो, सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होती है। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है, इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है।
★           सहजन के फली की हरी सब्जी को खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है। सहजन को सूप के रूप में भी पी सकते हैं,  इससे शरीर का खून साफ होता है। 
★            सहजन का सूप पीना सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी के अलावा यह बीटा कैरोटीन, प्रोटीन और कई प्रकार के लवणों से भरपूर होता है, यह मैगनीज, मैग्नीशियम, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होते हैं। यह सभी तत्व शरीर के पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। 
       ● कैसे बनाएं सहजन का सूप ? ● 
सहजन की फली को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। दो कप पानी लेकर इसे धीमी आंच पर उबलने के लिए रख देते हैं, जब पानी उबलने लगे तो इसमें कटे हुए सहजन की फली के टुकड़े डाल देते हैं, इसमें सहजन की पत्त‍ियां भी मिलाई जा सकती हैं, जब पानी आधा बचे तो सहजन की फलियों के बीच का गूदा निकालकर ऊपरी हिस्सा अलग कर लेते हैं, इसमें थोड़ा सा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीना चाहिए। 
           १. सहजन के सूप के नियमित सेवन से सेक्सुअल हेल्थ बेहतर होती है. सहजन महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फायदेमंद है। 
          २. सहजन में एंटी-बैक्टीरियल 
गुण पाया जाता है जो कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने में मददगार है. इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन सी इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करता है। 
          ३. सहजन का सूप पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाने का काम करता है, इसमें मौजूद फाइबर्स कब्ज की समस्या नहीं होने देते हैं। 
          ४. अस्थमा की शिकायत होने पर भी सहजन का सूप पीना फायदेमंद होता है. सर्दी-खांसी और बलगम से छुटकारा पाने के लिए इसका इस्तेमाल घरेलू औषधि के रूप में किया जाता है। 
          ५. सहजन का सूप खून की सफाई करने में भी मददगार है, खून साफ होने की वजह से चेहरे पर भी निखार आता है। 
          ६. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए भी सहजन के सेवन की सलाह दी जाती है।
(संकलित)
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शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

हिंदी के तीन बहुत बड़े साहित्यकार थे अभी पिछली पीढ़ी में, जिनके भाषण अद्वितीय होते थे:-

नई पीढ़ी के लगभग सभी लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा ।
हिंदी के तीन बहुत बड़े साहित्यकार थे अभी पिछली पीढ़ी में, जिनके भाषण अद्वितीय होते  थे:-
महादेवी वर्मा ,माखनलाल चतुर्वेदी और हजारी प्रसाद द्विवेदी ।

उनके भाषणों का स्तर इतना ऊंचा होता,भाषा ऐसी धारा प्रवाह प्रांजल ।
अद्भुत प्रभाव छोड़ती भाषा।
तत्सम शब्दों वाली  संस्कृत सी लगती हिन्दी।पर सभी समझते।
राजनीतिज्ञों के अनपढ़ धड़े ने अपनी हीनता और विधर्म परस्ती में आसान हिंदी के नाम पर उर्दू बना डाला है हिन्दी को।अब हर दल के नेता वही भाषा बोलते हैं।
अस्तु;
मुख्य बात यह कि व्याख्यान की भाषा के उस स्तर की आजकी पीढ़ी कल्पना नहीं कर सकती। 
और ऐसे भी वक्ता होते हैं, यह बिना देखे सुने अकल्पनीय है।  
महादेवी जी बोलतीं तो लगता कितना बड़ा दार्शनिक बोल रहा है।
माखनलाल चतुर्वेदी जी बोलते तो मानो कोई ऐसा महापुरुष जिसके वश में हैं शब्द और संकेत से थिरकते नाचते हैं शब्द ।स्वरों में संगीत और विद्वत्ता का अनूठा संगम सा।

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी बोलते तो लगता फूल झड़ रहे हैं।
इन्हें सुनना जीवन को धन्य कर देता था।
वह भाषा 1968 के बाद मार डाली गई।
✍️ रामेश्वर मिश्र पंकज

संस्कृत सीखने हेतु दुनिया भर में होगी भाषा क्रान्ति

लेखक:- डॉ. जीतराम भट्ट,
(निदेशक, डॉ. गो.गि.ला.शा. प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान)


कुछ लोगों का कहना है कि संस्कृत केवल पूजा-पाठ की ही भाषा है। किन्तु यह सत्य नहीं है। संस्कृत-साहित्य के केवल पॉच प्रतिशत में धर्म की चर्चा है। बाकी में तो दर्शन, न्याय, विज्ञान, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों का प्रतिपादन हुआ है। संस्कृत पूर्ण रूप से समृद्ध भाषा है। ग्रीक और लेटिन दोनों प्राचीन भाषाओं की पुस्तकें एकत्र की जायें तो संस्कृत-साहित्य की तुलना नहीं कर सकती। संस्कृत का वैदिक साहित्य ज्ञान-विज्ञान का खजाना है। ललित कलाओं का मौलिक ज्ञान भी संस्कृत की पुस्तकों से प्राप्त हुआ है। संस्कृत-साहित्य की खोज ने ही तुलनात्मक भाषा-विज्ञान को जन्म दिया। संस्कृत के अध्ययन से भाषा-शास्त्र को पहचान मिली। अध्यात्म और दर्शन तो मूल रूप से संस्कृत भाषा की ही देन हैं। लोकोपयोगी समस्त ज्ञान-विज्ञान के विषय संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं। चिकित्सा, औषधि, गणित, खगोल, भूगोल, भूगर्भ, विमान-शास्त्र, अभियान्त्रिकी, रसायन, भौतिकी, वनस्पतिशास्त्र, कृषि-विज्ञान, ज्योतिष, स्वर-विज्ञान, संगीत, योग, धर्म, इतिहास, व्याकरण, मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान, ललित कलाएं आदि सभी विषय संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं। भारत के तक्षशिला, नालन्दा, ओदान्तपुरी, विक्रमशिला, काशी आदि विश्वविद्यालयों में विश्व के अनेक देशों के विद्यार्थी इन विद्याओं के अध्ययन के लिए आते थे। यह हमारा दुर्भाग्य रहा है कि बाहरी आक्रमणकारियों ने सर्वप्रथम हमारे विश्वविद्यालयों को ध्वस्त किया, बुद्धिजीवियों व आचार्यों पर आक्रमण किये और इनके पुस्तकालयों को जलाया। वर्तमान में संस्कृत भाषा की जो प्राचीन पुस्तकें उपलब्ध हैं, वे कुल साहित्य की दस प्रतिशत हैं। अनेक आचार्यों, गुरुओं, ऋषियों और ब्राह्मणों ने आक्रान्ताओं से किसी तरह बच कर, भूमिगत हो कर अथवा जंगलों में कन्द-मूल खा कर वंश-परम्परा से अथवा गुरु-शिष्य-परम्परा से श्रुति-स्मृति-माध्यम (सुनाना और याद करना)से संस्कृत-शास्त्रों की रक्षा की।

ठ्ठ             पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम जब ग्रीस गये, तब वहाँ के माननीय राष्ट्रपति कार्लोस पाम्पाडलीस ने उनका स्वागत संस्कृत भाषा में ‘राष्ट्रपतिमहाभागा: सुस्वागतम् यवनदेशेÓ कह कर किया था।

ठ्ठ             सेंट स्टीफन कॉलेज के प्रिन्सिपल एक बार विदेश-यात्रा पर थे, उन्हें वहाँ के बुद्धिजीवियों ने संस्कृत में गीता के श्लोक सुनाने के लिए कहा, किन्तु उन्हें वह कंठस्थ नहीं थे। बाद में जब वह गीता पढ़ कर दोबारा वहाँ गये तो उन्होंने गीता के श्लोक सुनाए।

ठ्ठ             प्रतिष्ठित पत्रकार शहीद लाला जगतनारायण रूस गये। उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है कि ‘वे वहाँ एक पुस्तकालय देखने भी गये। वहाँ द्वार पर संस्कृत भाषा में स्वागत और परिचय हुआ। रशियन संस्कृत में पूछते थे और हम अंग्रेजी में उत्तर देते थे। हमें बड़ी शर्म महसूस हुई। ये सभी प्रसंग हमें याद दिलाते हैं कि भारत की पहचान संस्कृत भाषा और उसके साहित्य से है। विदेशों में भारत के विषय में बातचीत होती है तो वेद, गीता, गंगा, पतंजलि, आर्यभट्ट, कालिदास आदि के बारे में उनकी जिज्ञासा होती है।

विश्व की ज्ञात भाषाओं में संस्कृत सबसे पुरानी है। भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से ही निकली हैं। भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त फारसी, लैटिन, अंग्रेजी, श्रीलंका की भाषा, नेपाली, अफ्रीका के मूल निवासियों की भाषा, इण्डोनेशिया, मलेशिया एवं सिंगापुर की भाषाओं पर भी संस्कृत का प्रभाव है। उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी भाग मैक्सिको और पनामा राज्य की सीमा पर एक प्रान्त में संस्कृत से मिलती-जुलती भाषा बोली जाती है। इसलिए भाषा-विशेषज्ञों ने उनकी भाषा का नाम ब्रोन-संस्कृत और उन लोगों का नाम ह्वाइट-इण्डियन रखा। बाली द्वीप में संस्कृत मातृभाषा रही है। इससे सिद्ध होता है कि समस्त विश्व में संस्कृत का साम्राज्य था। आक्रमणों के कारण बाद में वह भारत तक ही सिमट कर रह गयी। और, भारत पर भी ई.पू. दूसरी शती से लगातार हुए आक्रमणों, युद्धों, विदेशी शासनों के कारण वह हाशिए पर चली गयी।

संस्कृत साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए विद्वानों ने उसे धार्मिक संस्कारों, कर्मकाण्ड आदि में अनिवार्य और कठोर अनुशासन के साथ जोड़ा। शास्त्रों को पढऩे के लिए कडे नियम  बनाये गये, ताकि आक्रान्ताओं और शासकों तक बात पहँँुचाने वालों से बचा जा सके।

सैकड़ों -हजारों वर्षों तक जो भाषा विदेशी आक्रमण-कारियों का दंश झेल चुकी हो। स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद उसकी तुलना अंग्रेजी से होने लगी और प्रश्न उठाये जाने लगे कि यदि संस्कृत में ज्ञान-विज्ञान है तो भारत में विज्ञान पश्चिम से क्यों आयातित हो रहा है? संस्कृत के आधार पर विज्ञान के आविष्कार क्यों नहीं हो रहे हैं? संस्कृत-शास्त्रों के द्वारा केवल पूजा-पाठ ही क्यों होती है? स्वतन्त्रता से पहले भारत की मजबूरी थी कि भारत को अंग्रेजों के ही ज्ञान-विज्ञान का अनुकरण करना था। संस्कृत-शास्त्रों पर आधारित ज्ञान-विज्ञान पर शोध और आविष्कार तो आजादी के बाद होना था। किन्तु शोध और आविष्कार कहां से होते? संस्कृत को केवल एक भाषा मान कर उसे अन्य भारतीय भाषाओं के साथ जोड़ दिया गया। इसलिए वर्तमान शिक्षा-पद्धति के कारण भारत में विज्ञान, तकनीक, गणित पढऩे वाले संस्कृत नहीं जानते और संस्कृत पढऩे वाले विज्ञान आदि विषयों को नहीं जानते हैं।

सन् 1783 में अंग्रेजों के शासन में कलकत्ता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बन कर सर विलियम्स जोन्स भारत आये। वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़े थे। उन्होंने ग्रीक, लैटिन, परसियन, अरबी, हिब्रू आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। यहां आ कर उन्हें संस्कृत के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने बंगाली ब्राह्मण रामलोयन कवि भूषण से संस्कृत को सीखा और संस्कृत में दक्षता प्राप्त की। फिर उन्होंने ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम को पढ़ा और अध्ययन के मध्य में ही उन्होंने अपने पिताजी को पत्र लिखा कि ‘मैं दो हजार वर्ष पुराने एक संस्कृत नाटक को पढ़ रहा हूं, इसकी रचना हमारे महान लेखक शेक्सपीयर के इतने समीप है कि लगता है कि शेक्सपीयर ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अध्ययन तो नहीं किया था? बाद में उन्होंने शाकुन्तलम् का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। संस्कृत में अन्य पुस्तकें भी लिखीं। बाद में  मैक्समूलर ने सेक्रेड बुक ऑफ ईस्ट नामक पुस्तक में संस्कृत और इसके साहित्य की बड़ी प्रशंसा की। जिससे समस्त यूरोप में संस्कृत-ज्ञान के लिए नई दृष्टि विकसित हुई। सन् 1845 में जर्मन विद्वान् मैक्समूलर ने सर्वप्रथम हितोपदेश कथा-संग्रह का अनुवाद किया। तत्पश्चात् भारतीय ज्ञान-विज्ञान से बहुत प्रभावित हुए और सन् 1846 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सम्पर्क कर ब्रह्मो समाज में सम्मिलित हो कर संस्कृत का अध्ययन प्रारम्भ किया। बाद में उन्होंने ऋग्वेद का जर्मन भाषा और अंग्रेजी में अनुवाद किया। मैक्समूलर ने चाल्र्स डार्विन की जीव-उत्पत्ति की थ्योरी को नहीं स्वीकारा, अपितु भारतीय विचारधारा के आधार पर सृष्टि के रहस्य को माना। मैक्समूलर के अनुवाद के बाद यूरोपवासियों में तो वेदों के प्रति जिज्ञासा बढ़ी। किन्तु,भारत में अंग्रेजी शासन ने संस्कृत को पनपने नहीं दिया।

यह हास्यास्पद है कि संस्कृत को आधुनिक भाषा नहीं माना जाता है और न ही इसे विकास की भाषा माना जाता रहा है। भारत में संस्कृत को पूजा-पाठ की भाषा या कठिन भाषा बताने का एक फैशन सा चल पड़ा है, जिसके कारण युगों-युगों से ऋषियों के द्वारा किये गये त्याग, तप, स्वाध्याय, अनुसन्धान से भारतीय समाज आज भी वंचित  है। अत: मैं पाठकों से निवेदन करता हूं कि संस्कृत-ज्ञान-विज्ञान के विषय में सही जानकारी प्राप्त करें और भारत की इस प्राचीन धरोहर को उपेक्षित होने से बचायें।

इनके अतिरिक्त भी अनेक तथ्य हैं, जो संस्कृत की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करते हैं। भारतीय भाषाओं के विकास के लिए संस्कृत का आधार आवश्यक है, क्योंकि सभी भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली संस्कृत की सहायता से ही विकसित की जा सकती है। भारतीय संविधान की धारा 343, धारा 348(2) तथा 351 का सारांश यह है कि ‘देवनागरी लिपि में लिखी मूलत: संस्कृत में अपनी पारिभाषिक शब्दावली को लेने वाली हिन्दी भारत की राजभाषा है। इसी प्रकार अन्य भारतीय भाषाओं के लिए संस्कृत की अनिवार्यता समझी जा सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढऩे से गणित, विज्ञान, प्रौद्योगिकी की शिक्षा में आसानी होती है। इसकी वर्णमाला पूरी तरह से वैज्ञानिक होने के कारण उच्चारणसे गले और मॅुंह की पूरी मांसपेशियों की कसरत करवाती है। इससे स्मरण-शक्ति भी बढ़ती है। विदेशों में स्पीच थैरेपी के लिए संस्कृत प्रयोग होने लगा है। वर्तमान में भारतीय शिक्षा-तन्त्र में संस्कृत का अध्ययन केवल भाषा के रूप में होता है और उसके लिए भी योग्य छात्र आगे नहीं आते। संस्कृत के विषय में फैलाये गये मिथ्या भ्रम के कारण विज्ञान और तकनीकी विषयों के छात्र इसको नहीं पढ़ते हैं, जिससे संस्कृत-शास्त्रों में स्थित ज्ञान-विज्ञान के लिए छात्रों में कोई रुचि पैदा नहीं होती है। कुछ लोग अभी भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं। वे संस्कृत को केवल ब्राह्मणों या हिन्दुओं की भाषा के रूप में प्रचारित करने पर आमादा हैं। उन्हें शायद ज्ञात नहीं है कि छटीं शताब्दी में शाह खुसरो नौशे खां ने पंचतन्त्र का फारसी में अनुवाद किया था। रहीम खानखाना स्वयं संस्कृत के विद्वान् थे और मूल संस्कृत में अनेक रचनाएं कीं। सन् 1420-70 में कश्मीर का शासक जैनुल आबदीन संस्कृत बोलता था और संस्कृत ग्रन्थों को पढ़ता था।

‘लेखपद्धतिÓ नामक ग्रन्थ के अनुसार गुजरात का प्राचीन सुल्तान बहुत समय तक राजभाषा के रूप में संस्कृत का ही व्यवहार करता था। भारतवर्ष में अनेक ऐसी मुस्लिम कब्रें भी मिली हैं, जिन पर संस्कृत में शिलालेख उत्कीर्ण हैं। अब्दुल रहमान नामक प्रसिद्ध साहित्यकार संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश का मर्मज्ञ विद्वान् था। सम्राट अकबर संस्कृत के महत्त्व को समझते थे और संस्कृत-विद्वानों को विशेष आदर देते थे। अबुल फजल के भाई फैजी संस्कृत के बहुत अच्छे विद्वान् थे। उन्होंने हिन्दी तथा संस्कृत की सम्मिश्रित भाषा में रहीमकाव्य की रचना की तथा खेटकौतुकम नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना भी की। शाहजहां ने भी संस्कृत की वैज्ञानिकता को स्वीकार किया था। राजकुमार दाराशिकोह संस्कृत का पारंगत विद्वान् था, जिसकी प्रेरणा से उपनिषदों, भगवद्गीता, योगवाशिष्ठ आदि का अनुवाद फारसी में हुआ। मुस्लिम राजपरिवार की विदुषी महिलाएं भी संस्कृत के महत्त्व को समझती थी। शाहजहाँ की बेगम रूपराशि विद्वान् मुनीश्वर, नित्यानन्द और वंशीधर की रचनाओं से अत्यन्त प्रभावित होती थी।

भारत के कई विद्यालयों और महाविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाने वाले ब्राह्मणों और हिन्दुओं से इतर मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख, जैन शिक्षक-शिक्षिकाएं भी हैं। गुजरात के सन्तरामपुर में आट्र्स एण्ड कामर्स कालेज में संस्कृत पढ़ाने वाले अध्यापक मुसलमान हैं। इसी कालेज की छात्रा यास्मीन बानो ने सन् 2013 में स्नातक में संस्कृत विषय से सर्वोच्च अंक प्राप्त कर कहा था कि ‘मैं इसी भाषा से मास्टर डिग्री करूगी, क्योंकि  मुझे बचपन से ही संस्कृत पढऩे का शौक था, इसलिए मैंने यह भाषा चुनी। यह समृद्ध भाषा है इसलिए संस्कृत पढऩे से भी अच्छी नौकरी मिल सकती है।Ó वर्तमान में पुणे से श्री गुलाम दस्तगीर जो अपने नाम के आगे पण्डित उपाधि का प्रयोग करते हैं, वे कहते हैं कि संस्कृत पढऩे-पढ़ाने के लिए यदि मुझे पूर संसार से भी लडऩा पड़े तो भी मैं इस भाषा को ही चुनूंगा। पं0गुलाम दस्तगीर संस्कृत में एक मैगजीन भी निकालते हैं। इसी प्रकार मो. इजराइल खान थे, जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे। जाकिर हुसैन कालेज के मो.मारूफ उर रहमान, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के मो.हनीफ शास्त्री आदि मुस्लिम विद्वानों के अतिरिक्त प्रो.हांग बांसग, डॉ,जॉर्ज कार्डोना, थाईलैण्ड की राजकुमारी सिरिन्थोर्न, चाल्र्स विल्किन्स, जार्ज फासटन फॉन बोएथलिंक, डॉ.थीबो, प्रो. कीलर्सन, जेम्स बैलेन्टाइन, डॉ. बॉय, अलब्रख्ते बेबर, डॉ. आइगोर सेरे ब्राइकोन, प्रो. एलेक्स वेमेन, डॉ. ह्वूलर, ब्रेसोएक, प्रो. डब्ल्यू रूबेन, इमर्सन, हेनरी डेविड थारो, वाल्ट ह्विटमन, वारेन हेंस्टिंग्ज आदि ने बिना किसी आग्रह या मजबूरी के संस्कृत भाषा का अध्ययन किया और इसके साहित्य के प्रचार-प्रसार में प्रवृत्त हुए।

भारत में भी सभी वर्णों और वर्गों के छात्र संस्कृत पढ़ते हैं और ब्राह्मणों के अलावा भी अनेक संस्कृत के विद्वान उच्च पदों पर आरूढ़ हुए हैं। किन्तु संस्कृत के विरोधियों द्वारा इसप्रकार के भ्रम शासन-प्रशासन में फिर भी फैलाए जाते हैं। गत दिनों संसद-भवन में हुए शपथ-समारोह में संस्कृत में शपथ लेने वाले सांसदों की अधिक संख्या को देख कर बौखलाए हुए इस प्रकार के लोगों ने अखबारों और  मीडिया में इसी प्रकार के वक्तव्य प्रकाशित किये। यह विडम्बना है कि भारत में ही इस प्रकार की संकीर्ण सोच है, जबकि  विदेशी बुद्धिजीवी संस्कृत का महत्त्व समझ कर इसके उपयोग पर बल दे रहे हैं। इसलिए हालैण्ड, इटली, डेनमार्क, स्वीडन, जर्मनी, फ्र ांस, इंग्लैण्ड, अमेरिका, जापान, रूस, इण्डोनेशिया, श्रीलंका आदि देशों में संस्कृत-शास्त्रों पर वैज्ञानिक दृष्टि से शोध-अनुसन्धान प्रारम्भ हो चुके हैं। भारत में अभी भी संस्कृत-शिक्षा गुलामी की मानसिकता का शिकार है।

संस्कृत के लिए जैसी सोच पराधीन भारत में थी, वैसी ही आज भी है। इसे केवल वर्ग विशेष और कर्म विशेष तक सीमित करके इसमें स्थित ज्ञान-विज्ञान से देश को वंचित रखा जा रहा है, जिससे संस्कृत-शिक्षा को हेय और उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता है। अत: भारत की इस सबसे महत्त्वपूर्ण धरोहर को बचाने के लिए हमें लॉर्ड मैकाले की शिक्षानीति के प्रभाव से बाहर आ कर कुछ नया करना होगा।
✍🏻साभार - भारतीय धरोहर

बुधवार, 10 अगस्त 2022

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशीWednesday, 10 August 2022 किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी
Wednesday, 10 August 2022

किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार
आज किंकोड़ा तेरस है. आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी यवनों के उपद्रव का नाश कर पाड़े (भैंसे) के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी आदि को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के विरक्त योगी को दर्शन देने एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे. 

चतुरा नागा श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे. 
भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं एवं अपने सभी भक्तों को मान देते हैं अतः वे स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारे. चतुरा नागा की अपार प्रसन्नता का कोई छोर नहीं था. 
वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. 

तब कुम्भनदासजी ने यह पद गाया – 
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो । 
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।

कुछ देर पश्चात समाचार आये कि यवन लश्कर फिर से बढ़ गया है जिससे तुरंत श्रीजी को पुनः मंदिर में पधराया गया. 

आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नमक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अत्यंत रमणीय स्थान है.

आज श्रीजी को मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में किंकोडा का शाक एवं सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) अरोगाया जाता है.

अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी.

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राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल महराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बेरखबाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

साज – वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज चौफूली चूंदड़ी की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. आभरण हीरा मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं आती हैं.श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है. श्रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी ( एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.

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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर बदल कर राष्ट्र ध्वज 'तिरंगे' की तस्वीर लगा

 पीएम मोदी ने प्रोफाइल पिक्चर पर लगाई तिरंगे की तस्वीर, मोदी ने सभी से की यह अपील



Har Ghar Tiranga: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर बदल कर राष्ट्र ध्वज 'तिरंगे' की तस्वीर लगा दी है। उन्होंने देश के लोगों से भी तिरंगा महोत्सव मनाने के लिए एक आंदोलन के रूप में ऐसा ही करने की अपील की है। रविवार 31 जुलाई को प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा था कि 'आजादी का अमृत महोत्सव' एक जनांदोलन के रूप में तब्दील हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने जनता से अपील की थी कि 2 से 15 अगस्त के बीच अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्रोफाइल पिक्चर के रूप में 'तिरंगे' की तस्वीर लगाएं। अमित शाह ने भी बदली डीपीपीएम मोदी के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने सोशल मीडिया खातों की डीपी बदल दी। देश हर घर तिरंगा अभियान के लिए तैयार : मोदीपीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया खातों की प्रोफाइल पिक्चर बदलने के साथ ट्वीट किया, 'आज 2 अगस्त विशेष दिन है! ऐसे समय में जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, हमारा देश हर घर तिरंगा अभियान के लिए पूरी तरह तैयार है। तिरंगा महोत्सव एक सामूहिक आंदोलन है। मैंने अपने सोशल मीडिया पेजों पर डीपी बदल दी है और आप सभी से भी ऐसा ही करने का आग्रह करता हूं।'तिरंगे की डिजाइन बनाने वाले पिंगली वेंकैया का किया याद पीएम मोदी ने इस मौके पर पिंगली वेंकैया को भी श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने राष्ट्र ध्वज की डिजाइन तैयारी की थी। आज यानी 2 अगस्त को वेंकैया की जयंती है। पीएम ने कहा, 'हमें तिरंगा देने के उनके प्रयासों के लिए हमारा देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा, जिस पर हमें बहुत गर्व है। तिरंगे से ताकत और प्रेरणा लेते हुए, हम राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करते रहें।'बता दें, देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर हर घर तिरंगा योजना की शुरुआत की गई है। हर नागरिक को अपने घर पर 13 अगस्त से 15 अगस्त तक तिरंगा लगाने की अपील की गई है। आंध्र के थे पिंगली वेंकैया, गांधीजी के सुझाव पर जोड़ी सफेद पट्टीपिंगली वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम भाटलापेनुमरु में हुआ था। वे ब्रिटिश फौज में सैनिक थे। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के कई रूप बनाए थे। 1921 में विजयवाड़ा में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उनकी एक डिजाइन को मंजूरी दी गई थी। वैंकैया ने जो डिजाइन गांधीजी को बताई थी उसमें हरी और लाल दो धारियां और बीच में चरखा था। गांधीजी ने उन्हें एक सफेद पट्टी जोड़ने को कहा था।पहली बार 1921 से कांग्रेस की सभी बैठकों में वेंकैया द्वारा तैयार झंडे को अनौपचारिक रूप से मंजूरी दी गई थी। इसके बाद 1931 में मौजूदा तिरंगे को औपचारिक रूप से मंजूर किया गया। यही तिरंगा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन और अब देश की शान बना हुआ है।

हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस अवसर पर देश भर में 20 करोड़ से अधिक घरों पर तिरंगा झंडा फहराया जाएगा

 इस अभियान के तहत प्रत्येक नागरिकों को अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने के लिए सरकार प्रोत्साहित करेगी।

हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस अवसर पर अगले महीने तक तीनों दिन तक ( 13 अगस्त से 15 अगस्त तक) देश भर में 20 करोड़ से अधिक घरों पर इस अभियान के तहत तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के सभी मुख्यमंत्री एवं केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासकों के साथ आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इस अभियान की तैयारी को लेकर समीक्षा की है। इस अभियान के अंतर्गत 13 से 15 अगस्त तक जनभागीदारी से सभी घरों में तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। जिसमें सभी सरकारी एवं निजी प्रतिष्ठान शामिल होंगे। इसके साथ सभी नागरिकों को अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम टि्वटर और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट पर तिरंगा प्रदर्शित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा।


हर घर तिरंगा फहराने का उद्देश्य | Purpose of Har Ghar Tiranga

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आजादी के 75 वें वर्षगांठ पर आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने के दौरान देश के प्रत्येक नागरिक को अपने घरों में तिरंगा लगाने और इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर घर तिरंगा अभियान शुरू किया  है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इस अभियान के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जागृत करना एवं जनभागीदारी की भावना से देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के वर्षगांठ के अवसर पर आजादी के अमृत महोत्सव को मनाना है। 13 से 15 अगस्त के बीच प्रत्येक नागरिक द्वारी अपने घरों में तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। इस अभियान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जुलाई को ट्वीट करते हुए कहा है कि इस साल देश के प्रत्येक नागरिक आजादी के अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं जिसमें हर घर 13 से 15 अगस्त के बीच भारत के प्रत्येक व्यक्ति अपने घरों में  तिरंगा को लहराएंगे। जिससे देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जुड़ाव और लगाव अधिक गहरा होगा।

हर घर तिरंगा अभियान के तहत झंडा फहराने का नियम | Rule Of Har Ghar Tiranga

केंद्र सरकार ने 15 अगस्त को 20 करोड़ घरों में जनभागीदारी से तिरंगा झंडा फहराने के लिए राष्ट्रीय अभियान हर घर तिरंगा अभियान पहल शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कुछ नियम निकाले हैं। आइए जानते हैं उन नियमों के बारे में – अगर कोई भी व्यक्ति इस नियम के अनुसार तिरंगा झंडा नहीं फहराता है, तब उन पर सख्त से सख्त कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा जारी फ्लैग कोड 2002 तैयार किया गया है। यह कोड राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग, फहराने और प्रदर्शन से जुड़ी गाइडलाइन को बताता है और इस गाइडलाइन को 26 जनवरी 2002 में लागू किया था। इस अभियान के तहत हर घर तिरंगा अभियान में जनभागीदारी से तिरंगा झंडा फहराए जाना है।

1.हर घर तिरंगा अभियान में झंडे का प्रयोग किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
2. किसी व्यक्ति या वस्तु को सलामी देने के लिए भी झंडे को नहीं झुकाया जाएगा।
3. झंडे का प्रयोग किसी भी पोशाक, वर्दी के रूप में नहीं किया जाएगा, साथ ही झंडे को किसी भी रुमाल, तकिए या अन्य कपड़े पर नहीं छापा जाएगा।
4. झंडे का प्रयोग किसी भी भवन में पर्दा लगाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
5. किसी भी प्रकार के अधिसूचना, विज्ञापन, अभिलेख ध्वज पर नहीं लिखा जाना चाहिए।

6. इसके साथ-साथ झंडे को वाहन, रेलगाड़ी, वायुयान की छत को ढकने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

7. इसके साथ-साथ किसी दूसरे झंडे को भारतीय झंडे के बराबर या उसके ऊंचाई पर नहीं फहराया जाएगा।

इस अभियान का उद्देश्य | Main Objective of This Mission

इसका मुख्य लक्ष्य नागरिकों के दिलों में देशभक्ति की भावना पैदा करना और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। भारत में राष्ट्रीय ध्वज को कैसे नियंत्रित किया जाता है यह भारत के ध्वज संहिता 2002 भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया है। यह राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग, प्रदर्शनी और फहराने पर गाइडलाइन प्रोवाइड करता है। भारत का ध्वज संहिता 26 जनवरी 2002 को लागू किया गया था। जो कि प्राइवेट पब्लिक और गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन द्वारा ध्वज के प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।

फ्लैग के साथ सेल्फी क्या है और संस्कृति मंत्रालय ने हर घर तिरंगा योजना के लिए वेबसाइट क्यों लॉन्च की है?

 केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने हर घर तिरंगा योजना के लिए लोगों को और अधिक उत्साहित एवं जागरूक करने के लिए एक वेबसाइट लॉन्च की है। जिसमें देश का कोई भी नागरिक झंडा लगा सकता है और अपने देशभक्ति को दिखाने के लिए तिरंगा झंडा के साथ सेल्फी लेकर इस वेबसाइट पर पोस्ट कर सकता है। इस साल स्वतंत्रता दिवस के 75 साल पूरा होने पर देश में आजादी का अमृत महोत्सव का पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया है। भारत के आजादी के 75 गौरवशाली सालों को मनाने के लिए इस महोत्सव की शुरुआत की गई है। जिसमें देश के 28 राज्यों, 8 केंद्र शासित प्रदेशों और 150 से अधिक देशों में 50,000 से अधिक इस आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत सफलतापूर्वक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। जो कि अब तक का सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है।

केंद्र सरकार हर घर तिरंगा अभियान पर कितना और कैसे खर्च कर रही है

 केंद्र सरकार ने इस साल आजादी के अमृत महोत्सव अभियान के तहत देश के 20 करोड़ घरों में झंडा फहराने का लक्ष्य तय किया है। कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स सीएआईटी के अनुसार भारत में फिलहाल 4 करोड़ झंडे उपलब्ध है और बाकी के झंडों का आर्डर राज्य एवं केंद्र सरकार को अपने स्तर पर निर्माण कर बिक्री के जगह पहुंचाना होगा। केंद्र सरकार के अनुसार झंडे 3 साइज में उपलब्ध होंगे और तीनों की कीमत भी अलग-अलग तय की जाएगी। इन तीनों झंडों के साइज के अनुसार इनका कीमत ₹9, ₹18 और ₹25 रुपये केंद्र सरकार ने तय किया है।

झंडा बनाने वाली कंपनियां शुरुआत में केंद्र और राज्य सरकार को झंडा उधार पर उपलब्ध करवाएंगे। देश के उन सभी नागरिकों को अपने पैसे से झंडा खरीदना होगा। जो आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अपने घरों में झंडा फहराएंगे। 1 अगस्त से डाक घरों पर भी झंडा उपलब्ध होगा। केंद्र सरकार के 20 करोड़ घरों पर झंडा फहराने के लक्ष्य में अगर झंडे का न्यूनतम कीमत ₹10 भी होता है। तो इस अभियान में कुल 200 करोड़ रुपए खर्च होने की उम्मीद है और यह 200 करोड़ उन्हीं लोगों के जेब से आएंगे जो झंडे खरीदेंगे और झंडा बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह छोटे और मध्यम उद्योग जैसे से जुड़े व्यापारी और बिजनेस हाउस को झंडा बनाने के लिए टेंडर दिया गया है। ताकि ज्यादा से ज्यादा मात्रा में लोगों को झंडा उपलब्ध हो सके।

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