यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 26 सितंबर 2022

सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए_**_सेक्युलरिज्म 'ढाल' है!_

*_‘सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए_*

*_सेक्युलरिज्म 'ढाल' है!_*

*_Saturday, September 24, 2022_*

*_“भारत एक सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है” यह शब्द सुनने पर यदि कोई सबसे अधिक आक्रोशित होता है तो वो है भारत का हिंदू समुदाय। हिंदू समाज का एक वर्ग ऐसा है जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से केवल इसलिए नाराज रहता हैं क्योंकि पीएम मोदी ने देश को हिंदू राष्ट्र नहीं घोषित किया। उन्हें लगता हैं कि पंत प्रधान नरेंद्र मोदी अपने मूल्यों, अपने वादों से पीछे हट चुके हैं और भाजपा अब अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि भूलकर धर्म निरपेक्षता की बात करने लगी है। वहीं यदि हम अपने लेख की पहली पंक्ति को थोड़ा-सा बदल दें, तो निश्चित ही दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाएगी और वे मोदी को भगवान की तरह मानने लगेंगे। अगर हम कहें- ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्र है’ तो सभी चीजें ठीक हो सकती हैं। सत्य कहें तो आज के वक्त में देश की नरेंद्र मोदी सरकार इसी एजेंडे पर काम कर रही थी, लेकिन आखिर यह सेक्युलरिज्म और हिंदू राष्ट्र का संबंध क्या है‌? चलिए आपको इसको समझाते हैं।_*

*_संविधान में जुड़ा सेक्युलर शब्द_*

*_वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “सोशलिस्ट और सेक्युलर” शब्द जुड़वाए थे, जिस पर दक्षिणपंथियों को सबसे अधिक आपत्ति हुई थी। उनका कहना था कि इसकी आड़ में कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण करती हैं। परंतु हकीकत तो यह है कि इन शब्द के जुड़ने से पूर्व भी  कांग्रेस मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास करती ही आ रही थी। यदि 1976 से पहले मुस्लिम तुष्टीकरण न होता तो राम मंदिर का मामला पहले ही कांग्रेस द्वारा निपटा लिया गया होता। किंतु सच यह है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भी हमेशा राजनीति करने की ही कोशिश की। वहीं बाद में मुस्लिमों को लुभाने के लिए “सेक्युलर” शब्द का झुनझुना मुस्लिम समुदाय को पकड़ा दिया गया।_*

*_वहीं कांग्रेस ने तो सेक्लुअर शब्द को भारतीय संविधान से जोड़ दिया था। ऐसे में देश की जनता भाजपा से उम्मीद लगाए बैठी थी कि जब भी कभी उसकी सरकार सत्ता में आएगी, तो अवश्य ही सेक्युलरिज्म शब्द को भारतीय संविधान से हटा देगी, लेकिन ऐसा अब तक होता नहीं दिखा। सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 90 के दशक में बनी और 5 साल तक सत्ता में भी रही, परंतु इस दौरान इसको लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए। भाजपा ने गठबंधन की सरकारों का हवाला दिया। अहम यह है कि जो अटल बिहारी वाजपेयी जी सत्ता में आने से पहले ‘हिन्दू तन मन हिंदू जीवन’ नाम की कविता गाते थे उन्होंने भी इस सेक्युलर शब्द को अपना लिया।_*

*_पर्दे के पीछे का खेल कुछ और है_*

*_अटल जी की सरकार के बाद भाजपा केंद्रीय सत्ता से फिर दस वर्षों तक दूर रही। हालांकि इसके बाद साल 2013 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के दौरान घोर दक्षिणपंथी और वामपंथी एक ही सोच लिए हुए थे। दक्षिणपंथी खुश थे कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने वाला है और यहां मुस्लिमों का रहना मुश्किल होगा। हालांकि साल 2014 के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करते रहे और वैश्विक स्तर पर एक बड़े राजनेता के तौर पर उभरे। पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल के बाद तो अपने नारे में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’ शब्द भी जोड़ दिया था। तब से नरेंद्र मोदी के समर्थक उनसे भी चिढ़े बैठे हैं।_*

*_गौरतलब है कि प्रधानमंत्री भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक स्तर पर जहां पश्चिमी देश वामपंथी सोच वाले हैं तो ऐसे में उनके बीच स्वीकृति पाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत कट्टरता के रास्ते पर न आगे बढ़े। इसीलिए पीएम हमेशा सबको साथ लेकर चलने और सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। सबको दिखाने के लिए भले कुछ भी हो, परंतु पर्दे के पीछे की कहानी तो यही है कि भाजपा सरकार अपने अधिकतम निर्णय वही लेती है, जो देश के बहुसंख्यकों यानी हिंदुओं के पक्ष में हो।_*

*_अनुच्छेद-370 जो सबसे संवेदनशील मुद्दा था उसे खत्म करते हुए गृहमंत्री ने संसद में संबोधन दिया था। राम मंदिर का निर्णय भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया था, लेकिन सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट से मांग अवश्य की थी‌। देखा जाए तो यह दोनों ही निर्णय देश के बहुसंख्यक यानी हिंदू समुदाय के हित में थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही सामने आकर उन्होंने सर्वधर्म समभाव की बात की हो, लेकिन पर्दे के पीछे से मजबूत हिंदू समुदाय हुआ।_*

*_CAA जैसा विवादित कानून गृह मंत्री अमित शाह ने पारित कराया और पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने के मुद्दे पर हिंदुओं को मजबूती मिली। इतना ही नहीं गृहमंत्री सीएए विरोध के दौरान आक्रामक रहे। इस दौरान भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले न हों लेकिन हिंदू समुदाय के उत्थान को वे समर्थन देते रहे। प्रधानमंत्री के पद की गरिमा रखते हुए हिंदुत्ववादी बात नहीं करते हैं लेकिन देखा जाए तो उनकी सरकार का एक-एक काम हिंदू हितकारी हैं।_*

*_सेक्युलरिज्म भारत के लिए लाभदायक है_*

*_गृहमंत्री अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेता लगातार हिंदुओं के हितों में फैसले ले रहे हैं। वहीं पीएम मोदी इन सभी के कार्यों को अपने सेक्युलरिज्म वाले सर्वधर्म समभाव और सबका साथ सबका विकास के नारों में ढक ले रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो वैश्विक स्तर पर भारत को प्रबल बनाने और सभी पश्चिमी देशों की स्वीकृति पाने के लिए सेक्युलरिज्म शब्द भारत के लिए लाभदायक है।_*

*_सटीक शब्दों में कहें तो सेक्युलरिज्म शब्द एक मुखौटा है जो कि भारत के संविधान में लिखा हुआ अच्छा लगता है। प्रधानमंत्री का पद इस शब्द पालन करता दिखता है और वैश्विक पश्चिमी ताकतें देखना भी ऐसा ही चाहती हैं। वहीं इस मुखौटे के पीछे वो सारे काम होते हैं जिनके पीछे हिंदुओं और बहुसंख्यक समुदाय का हित छिपा होता है। इस दौरान सेक्युलरिज्म को तो केवल एक ढाल की तरह उपयोग किया जा रहा है।_*

*_सरल शब्दों में कहें तो इंदिरा गांधी द्वारा दिया गया सेक्युलरिज्म शब्द भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की परिकल्पना करने वालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि इस सेक्युलर शब्द की आड़ में ही धीरे-धीरे भारत अपने मूल मकसद यानी हिंदुत्व को अपना चुका है और इसके पीछे पूरा खेल देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है।_*

#26_सितम्बर#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। #रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। 
#रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है; पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।।    

रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये। इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।

विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था। अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला। सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया। 

रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया। इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना वापस किया। एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।

एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां काली ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।

इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं। 

रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है।

#26_सितम्बर#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। #रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। 
#रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है; पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।।    

रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये। इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।

विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था। अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला। सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया। 

रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया। इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना वापस किया। एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।

एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां काली ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।

इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं। 

रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है।

#26_सितम्बर#कर्मयोगी_पंडित_सुन्दरलाल_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#कर्मयोगी_पंडित_सुन्दरलाल_जी_का_जन्म_दिवस 🇮🇳🚩🙏

भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के  साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।

26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।

मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर क१लिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियों के सम्पर्क रखने के कारण पुलिस उन पर निगाह रखने लगी। गुप्तचर विभाग ने उन्हें भारत की एक शिक्षित जाति में जन्मा आसाधारण क्षमता का युवक कहा, जो समय पड़ने पर तात्या टोपे और नाना फड़नवीस की तरह खतरनाक हो सकता है।

1907 में वाराणसी के शिवाजी महोत्सव में 22 वर्षीय सुन्दर लाल ने ओजस्वी भाषण दिया। यह समाचार पाकर कॉलेज वालों ने उसे छात्रावास से निकाल दिया। इसके बाद भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। अब तक उनका संबंध लाला लाजपतराय, श्री अरविन्द घोष तथा रासबिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों से हो चुका था। दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंकने की योजना में सुंदरलाल जी भी सहभागी थे।

उत्तर प्रदेश में क्रांति के प्रचार हेतु लाला लाजपतराय के साथ सुंदरलाल जी ने भी प्रवास किया। कुछ समय तक उन्होंने सिंगापुर आदि देशों में क्रांतिकारी आंदोलन का प्रचार किया। इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हुआ। उन्होंने पंडित सुंदरलाल के नाम से ‘कर्मयोगी’ पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने अभ्युदय, स्वराज्य, भविष्य और हिन्दी प्रदीप का भी सम्पादन किया।

ब्रिटिश अधिकारी कहते थे कि पंडित सुन्दर लाल की कलम से शब्द नहीं बम-गोले निकलते हैं। शासन ने जब प्रेस एक्ट की घोषणा की, तो कुछ समय के लिए ये पत्र बंद करने पड़े। इसके बाद वे भगवा वस्त्र पहनकर स्वामी सोमेश्वरानंद के नाम से देश भर में घूमने लगे। इस समय भी क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क निरन्तर बना रहा और वे उनकी योजनाओं में सहायता करते रहे। 1921 से लेकर 1947 तक उन्होंने उन्होंने आठ बार जेल यात्रा की।

इतनी व्यस्तता और लुकाछिपी के बीच उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ प्रकाशित कराई। यद्यपि प्रकाशन के दो दिन बाद ही शासन ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया; पर तब तक इसकी प्रतियां पूरे भारत में फैल चुकी थी। इसका जर्मन, चीनी तथा भारत की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ।

1947 में स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद गांधी जी के आग्रह पर विस्थापितों की समस्या के समाधान के लिए वे पाकिस्तान गये। 1962-63 में ‘इंडियन पीस काउंसिल’ के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई देशों की यात्रा की। 95 वर्ष की आयु में 8 मई, 1981 को दिल्ली में हृदयगति रुकने से उनका देहांत हुआ। जब कोई उनके दीर्घ जीवन की कामना करता था, तो वे हंसकर कहते थे -

होशो हवास ताबे तबां, सब तो जा चुके 
अब हम भी जाने वाले हैं, सामान तो गया।।

अंग्रेज चले गए अमेजन घुस गई!

*अंग्रेज चले गए अमेजन घुस गई!?* 

आधुनिक जमाने की *सुरसा अमेजन* खा जायेगी सभी स्वदेशी कंपनियां! 

इसके साथ ही आपके घर के भीतर आप जो भी बात करेंगे, बिना इंटरनेट के पहुंच जाएगी, अमेरिका! 

*जेफ बेजोस का खतरनाक प्लान* भारत समेत दुनिया के सभी देशों को अपने अंडर करने का विदेशी चक्रव्यूह है अमेजन प्राइम, अमेजन वेब सर्विस AWS जो खत्म कर देगा तमाम स्थानीय स्वदेशी कंपनियां! 

इसके अलावा *अमेजन ने कर लिया दुनिया के मीडिया पर भी अपना कब्जा!* आधुनिक *दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है अमेजन*... इतना तय है अगर कुछ नहीं किया गया तो *अंग्रेजों और मुगलों का राज भूल जायेंगे... जब अमेजन राज करेगा*... 

40% कब्जा ही चुका है, बाकी हर फेस्टिवल सीजन पर होता जायेगा...  *अबहुं चेत गंवार* पहले से समझदार, जागरूक लोगों को शिव नमन, *बाकियों से अनुरोध आज से शुरू कर दें बॉयकॉट!*

क्योंकि ये विदेशी, विधर्मी सामान का बॉयकॉट ही है जिसने छोटे से द्वीप जापान को दुनिया की बड़ी शक्ति बनाया अपने देश का अपने व्यापारी का महंगा खरीदते है जापानी पर विदेशी सस्ता नहीं!

*क्या आप चाहते हैं फिर गुलाम बनना, और सस्ते के चक्कर में, मुफ्त के चक्कर में, अपने ही स्थानीय व्यापारियों समेत अपने राष्ट्र धर्म से गद्दारी करना*... 

सस्ता पड़ेगा महंगा... *अब तो जागो मूढमति* खुजली वाली बीमारी एक नहीं, हर शाख पर उल्लू बैठा है, कलियुग में जानकारी ही बचाव है, संगठन ही शक्ति! 

*इसलिए मिलकर जवाब दो, विदेशी, विधर्मी सामान, कंपनी का पूर्ण बहिष्कार है कलियुग का मूल मंत्र, बाकी सब बकवास!*😳

function disabled

Old Post from Sanwariya