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रविवार, 6 नवंबर 2022

देश बचाने की ^सुप्रीम^ मुहिम, लागू हो जनसंख्या नियंत्रण कानून

📌 *_देश बचाने की ^सुप्रीम^ मुहिम, लागू हो जनसंख्या नियंत्रण कानून_*

जागरूक रहिये नुकसान से बचिए
*प्रतापसिंह*

*भारत देश हिंदू राष्ट्र है इसकी भी जरूरत है*

देश में भयावह होती जनसंख्या की समस्या को देखते हुए दो बच्चा नीति लागू करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने और देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर उपाय करने की मांग की गई है। भाजपा नेता व वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में देश में दो बच्चे ही पैदा किए जाने का नियम तय करने की मांग की है। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में कहा कि जनसंख्या का विस्फोट ही देश में पैदा हो रही समस्याओं की मुख्य वजह है।

*प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव*
याचिका में कहा गया है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है। उपाध्याय ने दो बच्चा नीति लागू करने की मांग को लेकर पहले दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया था।

*केंद्र परिवार नियोजन थोपने को तैयार नहीं*
जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को लेकर पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर होते रहे हैं। पिछली बार ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि भारत में परिवार नियोजन जनता पर थोपना ठीक नहीं होगा। इसका विपरीत असर देखने को मिल सकता है। देश की डेमोग्राफी में परिवर्तन हो सकता है।

अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि देश में परिवार नियोजन कार्यक्रम को लेकर जागरूकता अभियान जारी है। सरकार चाहती है कि जनता अपनी समझ से परिवार नियोजन करे। उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाए।

*हमारी आबादी चीन से ज्यादा?*
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट स्वच्छ हवा के अधिकार, पेयजल, स्वास्थ्य, शांतिपूर्ण नींद, शेल्टर, आजीविका और सुरक्षा की गारंटी देने वाले संविधान के अनुच्छेद 21 को मजबूत करने में सफल नहीं रहा है। जनसंख्या विस्फोट के चलते इन अधिकारों की रक्षा का कोई काम नहीं हो पा रहा है। हाई कोर्ट में दाखिल अर्जी में दावा किया गया था कि भारत आबादी के मामले में चीन से भी आगे निकल गया है। देश की 20 फीसदी आबादी के पास आधार कार्ड नहीं हैं। देश में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जोड़ लिया जाए तो फिर यह संख्या चीन से ज्यादा है। याचिका में यह भी कहा गया था कि जनसंख्या विस्फोट के कारण ही जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं। दुष्कर्म व घरेलू हिंसा जैसे मामले इसकी देन हैं।

*आप भी इस मुहिम में शामिल हो और अपनी सरकार से जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग करे*

भारत राष्ट्र हिंदू राष्ट्र

🇮🇳 वन्दे मातरम 🇮🇳
सक्षम युवा सबल भारत


*एडवोकेट प्रताप सिंह सुवाणा*
PS.CON
e mail *ps.con@hotmail.com*
*मो. 94130 95053*
जय हिन्द 🇮🇳

शनिवार, 5 नवंबर 2022

अकेले व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता, संगठन का साथ मिलने पर ही वह चमकता है और रोशनी बिखेरता है


एक आदमी था, जो हमेशा अपने संगठन में सक्रिय रहता था, उसको सभी जानते थे ,बड़ा मान सम्मान मिलता था; अचानक किसी कारण वश वह निष्क्रीय रहने लगा , मिलना - जुलना बंद कर दिया और संगठन से दूर हो गया।

कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस संगठन के मुखिया ने उससे मिलने का फैसला किया । मुखिया उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक बोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक मुखिया का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे। कुछ देर के बाद मुखिया ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से शांत बैठ गया।
मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने संगठन के मुखिया के साथ है। लेकिन उसने देखा कि अलग की हुई लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी से आग की चमक जल्द ही बाहर निकल गई।कुछ समय पूर्व जो उस लकड़ी में उज्ज्वल प्रकाश था और आग की तपन थी वह अब एक काले और मृत टुकड़े से ज्यादा कुछ शेष न था।

इस बीच.. दोनों मित्रों ने एक दूसरे का बहुत ही संक्षिप्त अभिवादन किया, कम से कम शब्द बोले। जाने से पहले मुखिया ने अलग की हुई बेकार लकड़ी को उठाया और फिर से आग के बीच में रख दिया। वह लकड़ी फिर से सुलग कर लौ बनकर जलने लगी और चारों ओर रोशनी तथा ताप बिखेरने लगी।जब आदमी, मुखिया को छोड़ने के लिए दरवाजे तक पहुंचा तो उसने मुखिया से कहा मेरे घर आकर मुलाकात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

आज आपने बिना कुछ बात किए ही एक सुंदर पाठ पढ़ाया है कि अकेले व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता, संगठन का साथ मिलने पर ही वह चमकता है और रोशनी बिखेरता है ; संगठन से अलग होते ही वह लकड़ी की भाँति बुझ जाता है। मित्रों संगठन से ही हमारी पहचान बनती है, इसलिए संगठन हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए ।

संगठन के प्रति हमारी निष्ठा और समर्पण किसी व्यक्ति के लिए नहीं, उससे जुड़े विचार के प्रति होनी चाहिए। 

आप सभी को किसी न किसी हिंदू संगठन से जुड़ा रहकर सक्रिय रहना चाहिए 

जय हिंद 
वंदे मातरम्

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

अधिकांश हिंदुओं के चिंतन में सबसे पहले "मैं" फिर "मेरा परिवार" आता है ।

सुबह सुबह अपने ही कालोनी के बुजुर्ग अब्दुल चच्चा तांगा वाले अपने घोड़े को जीन पहना रहे थे । 
मैने पूछा कैसे हो चचा ? 
वो बड़े खुश मिजाजी से बोले "अल्लाह का करम है, सब इत्मीनान से हैं"। मैने कहा कि "चच्चा,, अब तो आपकी उम्र हो गई,कब तक तांगा चलाओगे ?" वो तपाक से बोले, "बेटा घोड़ा और आदमी तब तक जवान रहते हैं जब तक बैठ कर न रह जाएं।" 

उनसे दुआ सलाम के बाद मैं आगे बढ़ा तो सलीम अपनी मेकेनिक की गुमठी खोल कर सामान जमा रहा था। मैने वही सवाल उससे पूछा "और सलीम भाई कैसे हो ?"
 वो बोला "भाईजान मजे में हैं ऊपर वाले का करम है, दुकानदारी की तैयारी कर रहा हूं, दरोगा जी की ये मोटर साइकिल आज सही करके देना है"। 

मैं और आगे बढ़ा तो पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स अपनी दुकान पर चाय पीते मिल गए। एक भाई ट्रक के टायर में हथौड़ा बजा कर उसे रिम पर ढीला कर रहा था। मैने वही सवाल उनसे भी पूछ धरा,"और मियां कैसे हो ?" वो बोले कि "आ जाओ भैया चाय पी लो, सब लोगों की दुआ से बढ़िया हैं"। फिर चाय देते हुए बोले कि "सकीना की शादी भी अल्लाह के करम से चंदेरी पक्की हो गई है। दूल्हा भाई भी खाते कमाते घर के हैं। उनसे थोड़ी गपशप के बाद मैं आगे बढ़ा।"

इसके बाद मैं अपने दोस्त शर्मा जी की दुकान पर पहुंचा,उनसे भी वही सवाल दाग दिया "और पंडित जी कैसे हो,क्या हाल चाल है ?" ये सवाल जैसे पंडित जी के फोड़े पर चीरा लगा गया, सड़े मुंह से गहरी सांस लेकर बोले, "कुछ मत पूछो भाई,गिन गिन कर दिन काट रहे हैं । जीएसटी ने मार दिया, महंगाई कमर तोड़ रही है, बिट्टू को इंदौर MBA करने भेजा है, बेरोजगारी इतनी है कि समझ में नहीं आ रहा उसे कौन सी लाइन में भेजूं ?" 

मैने कहा "पंडित जी आपको GST से क्या मतलब,आप तो सारा व्यापार कच्चे बिल पर करते हो, दुकान भी पहले से बढ़िया जमा ली है । बिट्टू को दुकान ही सम्हलवा देते, एक ही तो लड़का है आपका ।" लेकिन पंडित जी मानो दुनिया के सबसे दुखी इंसान लगे वो बोले,"अरे नही यार, व्यापार में दम नहीं है बिट्टू तो नौकरी करने की कह रहा है।"

       पंडित जी के दुख से मैं भी मायूस होकर आगे बढ़ा, सब्जी मंडी में ठाकुर साहब मिल गए । उनसे राम राम के बाद बात हुई। वही सवाल मैने उन पर दाग दिया । "कैसे हो भाई साहब,क्या हाल चाल है ?" वो बोले "बुढ़ापा है यार, समय काट रहा हूं। तुम्हारी भाभी भी बीमार है । शिवेंद्र की शादी कर दी थी, प्राइवेट नौकरी में था, उसने नौकरी छोड़ दी, बोला काम ज्यादा था, अब पेंशन के भरोसे हैं " । मैने कहा "शिवेंद्र कोई और काम क्यों नहीं कर लेता ?" वो बोले "ग्रेजुएट है उसके लायक काम मिल नही रहा" । फिर इधर उधर की बातों के साथ मैं आगे बढ़ गया ।

घर लौटते में गर्ग साहब मिल गए, वो ऑफिस जा रहे थे । मैने गुड मॉर्निंग की और वही सवाल उनसे किया । "सर कैसे हैं ?" वो बोले "क्या बताऊं आज कल नौकरी बड़ी कठिन हो गई है, अफसर कुछ समझते नहीं हैं और नेता हर काम में हस्तक्षेप करते हैं । तीन साल बचे हैं जैसे तैसे काट रहा हूं ।" इतना कहते हुए वो कार से आगे बढ़ गए ।

तभी आकाश आ गया। मुझसे नजर मिलते ही उसने सिगरेट इस तरह फेंक दी थी जैसे पी ही नही रहा था । मैने आवाज देकर बुला लिया। पूछा, "भाई कहां है आजकल,कैसा है तू?" वो बोला "यहीं हूं चाचा, बड़ी दिक्कत है,जॉब ढूंढ रहा हूं, आपकी नजर में कोई जॉब हो तो बताना" । इतने में उसने मेरी नजर बचा कर दो तीन बार पाउच की पीक भी सड़क पर पिच्च कर दी थी । 

अब मैं सोच रहा हूं कि क्या ये कौम की परवरिश और सीख का अंतर है या कोई और वजह कि घोड़े की जीन कस रहे, बुजुर्ग अब्दुल से लेकर मैकेनिक सलीम और पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स मजे में हैं। उन्हें अपनी मेहनत और ऊपर वाले पर भरोसा है । जो कुछ भी उन पर है वो उसी में खुश हैं । मैने कभी इस कौम के लोगों को जीएसटी,महंगाई, बेरोजगारी की बातें करते नहीं देखा । अलबत्ता कौम और धर्म के लिए लड़ते जरूर देखा है ।

जबकि दूसरी ओर हिंदुओं को हमेशा ही सरकारों को कोसते, रोते ही देखा है। सुबह घर में नाश्ते की लड़ाई से शुरू होने वाली ये लड़ाई दिन भर सोशल मीडिया पर सरकारों को भला बुरा कहते हुए रात को पसंद की तरकारी न बनने से होने वाली तकरार पर जाकर खत्म होती है । अधिकांश हिंदुओं के चिंतन में सबसे पहले "मैं" फिर "मेरा परिवार" आता है । 

कौम की बात पर तो सब जाति के अनुसार पहले ही अलग अलग बंटे हुए हैं । फिर जाति में भी पंथ के आधार पर अलग अलग फिरके आपस में बंटे हुए हैं जैसे जैन को ही लें, तो मैं श्वेतांबर, मैं दिगंबर । ब्राह्मणों को लें तो ये कान्यकुब्ज, मैं सरयूपारीण, मैं सारस्वत, मैं मैथिल, मैं गौड़। मजे की बात ये है कि कोई किसी को श्रेष्ठ मानने तैयार नहीं । 
देश या धर्म की बात करने वालों को ऐसे ही लोग अंधभक्त, भाजपाई या संघी (आरएसएस) घोषित कर देते हैं । यदि मेरा ये अनुभव गलत हो तो सुधिजन खुद ही परीक्षण कर लें । 

हकीकत के इस लेख में बस नाम ही काल्पनिक हैं ।
(कॉपी+संशोधित)

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!! आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है

*सभी से अनुरोध है कि एक बार पढ़ियेगा अवश्य । काफी समय के बाद किसी ने बेहद सुंदर आर्टिकल भेजा है ।*
*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!!* 
आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके मूल कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा है, जो कि अति संभव है एवं निम्न हैं:--
*1, पीहरवालों की अनावश्यक  दखलंदाज़ी।*
*2, संस्कार विहीन शिक्षा*
*3, आपसी तालमेल का अभाव* 
*4, ज़ुबानदराज़ी*
*5, सहनशक्ति की कमी*
*6, आधुनिकता का आडम्बर*
*7, समाज का भय न होना*
*8, घमंड झूठे ज्ञान का*
*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*
*10, परिवार से कटना।*
 *11.घण्टों मोबाइल पर चिपके रहना ,और घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देना।* 
*12. अहंकार के वशीभूत होना ।* 
पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
*लेकिन वर्षों आपस में निभती थी!*
*भय था , प्रेम था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
*पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है*, 
*और अब कहते हैं कि मेरी बेटी नाज़ों से पली है । आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*
*तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?*
*शिक्षा के घमँड में बेटी को आदरभाव,अच्छी बातें,घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*
*माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।*
*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही है ।*
*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*
परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।
*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में तांक-झांक।*
जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*
बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।
*वो भी मोबाईल पर।*
बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
*परिवार के लिये नहीं*।
*सबसे ज्यादा बदलाव तो इन दिनों महिलाओं में आया है।*
*दिन भर मनोरँजन,* 
*मोबाईल,*
*स्कूटी..कार पर घूमना फिरना ,*
*समय बचे तो बाज़ार जाकर शॉपिंग करना*
*और ब्यूटी पार्लर।*
जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।
भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।
*होटल रोज़ नये-नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।
*और साथ ही बिक रही है बीमारी एवं फैल रही है घर में अशांति।*
आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में बतौर चौकीदार।*
पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थीं।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि *महिला संगीत* में अपनी नृत्य प्रतिभा जो दिखानी है।
*जिस महिला की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।*
*👌🏻घूँघट और साड़ी हटना तो चलो ठीक है,*
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?
स्कूल कॉलेज में लड़किया ऐसे जाती
है जेसे की फैशन शो में प्रदर्शन करने जाना है
*बड़े छोटे की शर्म या डर रहा क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
*कोई लड़की को उठा रहा है* 
डीजे पर फूहड़ता भरे गीत।
*छोरी जैल करावगी र, छोरी जैल करावगी*
अरर्र भाई तेरे दो दो साली 
एक भूरी एक काली
म्हारो भी करदे जुगाड़ तू।

डीजे जब बजता है तो कुछ और नहीं सुनता,
विवाह शादियों में लोगो के बीच, एक दूसरे रिस्तेदारो से होने वाले वार्तालाप खत्म हो चुका है
*माटी मसल ली लोगो ने और हम ये तमाशा देख रहे हैं, खुश होकर, मौन रहकर।*
*माँ बाप बच्ची को शिक्षा तो बहुत दे रहे हैं ,
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करें।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक-वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये*
*ख़ुद कमा खा ले।*
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना ही है।*
 साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*
बस यही सोच कि - अकेले भी जिंदगी जी लेगी गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।
*पहले पुराने समय में , स्त्री तो  छोड़ो पुरुष भी थाने, कोर्ट कचहरी जाने से घबराते थे।*
*और शर्म भी करते थे।*
*लेकिन अब तो फैशन हो गया है।*
पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ *तलाकनामा* तो जेब में लेकर घूमते हैं।
*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
*और अब तो समाज की कौन कहे , माँ बाप तक को जूते की नोंक पर रखते हैं।*
*सबसे खतरनाक है - ज़ुबान और भाषा,जिस पर अब कोई नियंत्रण नहीं रखना चाहता।*
कभी-कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझा जाता है।* आखिर शिक्षित जो हैं।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में मिली है।*
*आखिर झुक गये तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।*
*गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।*
*आज समाज ,सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*
 महिलाओ की वजह से ही आजकल वर्धाआश्रम बन रहे है।
*पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।*
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
*एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।*
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
*खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।*
*घरवाली के लिये हार के सपने ज़रूर देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।
*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*
अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*
मनोरंजन हेतु TV,
*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,* 
*मसाला पीसने के लिए मिक्सी*, 
*रेडिमेड  पैक्ड आटा,
*पैसे हैं तो नौकर-चाकर,*
*घूमने को स्कूटी या कार* 
*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*
आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?
*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*
दो लोगों का परिवार।
*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।
*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*
लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।
*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*
*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दें , तो ये सब न हो।
*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*
ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।
*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*और पुराने रिश्ते भी।
*आज बिड़ला सीमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।* और रिश्ते भी महीनों में खत्म।
*इसका कारण है*
रिश्तों  मे *ग़लत सँस्कार*
*खैर हम तो जी लिये।*
सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*
दिनभर बाहर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ होती है।
आप मानो या ना मानो आप की मर्जी मगर यह कड़वा सत्य है।..🤝👏🙏                                
            *। परम सत्य ।*
🙏🙏🙏🚩🚩🚩🙏🙏🙏🚩🚩🚩

बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

सोनपापड़ी* जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो।उसका उपहास करो। उसकी छवि मलिन कर दो। बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी।

*सोनपापड़ी*
 
जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो।
उसका उपहास करो। 
उसकी छवि मलिन कर दो। 

बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी।

आपने इधर सोनपापड़ी जोक्स और मीम्स भारी संख्या में देखे होंगे। निर्दोष भाव से उन पर हँस भी दिए होंगे। पर अगली बार उस बाज़ार को समझिए जो मिठाई से लेकर दवाई तक और कपड़ों से लेकर संस्कृति तक में अपने नाखून गड़ाये बैठा है।
        एक ऐसी मिठाई जिसे एक स्थानीय कारीगर न्यूनतम संसाधनों में बना बेच लेता हो। जिसमें सिंथेटिक मावे की मिलावट न हो। जो अपनी शानदार पैकेजिंग और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर बिना दूषित हुए किसी और को दी जा सके, खोये की मिठाई की तरह सड़कर कूड़ेदान में न जा गिरे। आश्चर्य, बिल्कुल एक सुंदर, भरोसेमंद मनुष्य की तरह जिस सहजता के लिए इसका सम्मान होना चाहिए, इसे हेय किया जा रहा है। 

       एक काम कीजिये डायबिटिक न हों तो घर में रखे सोनपापड़ी के डिब्बों में से एक को खोलिए। नायाब कारीगरी का नमूना गुदगुदी परतों वाला सोनपापड़ी का एक सुनहरा, सुगंधित टुकड़ा मुँह में रखिये। भीतर जाने से पहले होंठों पर ही न घुल जाये तो बनानेवाले का नाम बदल दीजियेगा। कई लोगों की पसंदीदा मिठाई यूँ ही नहीं है।

     बात बाज़ार से शुरू हुई थी, सोनपापड़ी तो तिरस्कार का विषय हुई। अब लंबी शेल्फ लाइफ और बढ़िया पैकेजिंग का दूसरा किफ़ायती उपहार और क्या हो सकता है? चॉकलेट्स!!! और क्या? समझ रहे होंगे। 

  एक छोटे से उपहास के चलते, इधर के दो चार महीनों में ही कैडबरी का ही टर्न ओवर क्या से क्या हो सकता है मेरी कल्पना से बाहर की बात है।  पिछले दो दशकों से वे बड़े- बड़े फ़िल्म स्टार्स को करोड़ों रुपये सिर्फ़ इस बात के दे रहे हैं कि हमारी जड़ बुद्धि में 'कुछ मीठा हो जाये' यानी चॉकलेट ठूँस सकें। और हम हैं कि अब भी मीठा यानी मिठाई ही सूँघते , ढूँढ़ते फिर रहे हैं। तो क्या करना चाहिए। मिठाई क्या यह तो प्रोटीन बार है, और चीनी तो हर मिठाई में है। और लोकप्रियता का आधार देखिये वो 35 रुपये में एक टुकड़ा देते हैं ये डिब्बाभर थमा देते हैं।  सो, याद रखिये, मीठा यानी, गुलाबजामुन, रसगुल्ला, सोनपापड़ी और सूजी का हलवा। चॉकलेट यानी चॉकलेट।
आप कैडबरी वालो को हम सोनपापड़ी वालों को तरफ से शुभ दीपावली।।
               
साभार...एक सौम्य उपहा

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

आज का संदेश "दीपावली" पर विशेष

*आज का संदेश* 
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*🏮 "दीपावली" पर विशेष 🏮*
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दीपावली का पावन पर्व आज हमारे देश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में भी यह पर्व मनाया जा रहा है। मान्यता के अनुसार आज दीपमालिकाओं को प्रज्वलित करके धरती से अंधकार भगाने का प्रयास मानव समाज के द्वारा किया जाता है। दीपावली मुख्य रूप से प्रकाश का पर्व है। विचार करना चाहिए कि क्या सिर्फ वाह्य अंधकार को दूर करके यह पर्व मनाना सार्थक हो सकता है ? प्रकाश पर्व मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब मनुष्य स्वयं को आन्तरिक प्रकाश से प्रकाशित कर ले। प्रकाश का अर्थ मात्र सांसारिक अवयवों को चमकाना ही नहीं बल्कि मनुष्य को अपने भीतर के प्रकाश को भी चमकाने का प्रयास करना चाहिए। हमारे मनीषियों ने आंतरिक प्रकाश को "आत्मप्रकाश" कहा है। मनुष्य के हृदय में काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, छल, कपट, ईर्ष्या आदि अवगुण अंधकार रूप में व्याप्त हो जाते हैं। इन अंधकार के प्रारूपों को हृदय से भगाने के लिए मनुष्य को अपने हृदय में दया, क्षमा, करुणा, परोपकार, एवं सहृदयता का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। जब हृदय में इन सद्गुणों का दीपक प्रज्वलित होता है तो अवगुण रूपी अंधकार को भागना ही पड़ता है। इस प्रकार के दीपक को जलाने की विधा किसी योग्य गुरु की शरण अथवा सतसंग से ही जानी जा सकती है। दीपावली के पावन पर्व पर धरती पर अनेकों दीपक जलाकर उसके प्रकाश से अंधकार को तो दूर करना ही चाहिए साथ प्रत्येक मनुष्य स्वयं को "आत्मप्रकाश" से भी प्रकाशित करना चाहिए तभी सच्चे अर्थों में दीपावली मनाना सार्थक कहा जा सकता है। अन्यथा यह पर्व दिखावा करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक मनुष्य को ऐसी दीपावली मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे धरती तो प्रकाशित हो ही साथ ही "आत्मप्रकाश" भी प्रखर हो।

आज के वर्तमान आधुनिक युग में एक ओर तो इन पर्वों ने भव्यता पाई है वहीं दूसरी ओर मनुष्य "आत्मप्रकाश" से च्युत होता जा रहा है। आज के दिन समाज के बड़े - छोटे सभी लोग धन की देवी महालक्ष्मी का पूजन करके उनकी कृपा प्राप्त करने का उद्योग करते हैं, परंतु महालक्ष्मी के ही प्रतिबिम्ब किसी नारी के प्रति उनके हृदय में करुणा एवं दया रूपी दीपक नहीं प्रज्वलित होता। मनुष्य की अंधकारमय कुत्सित भावनायें नारी जाति के साथ ही सम्पूर्ण मानव समाज को भी लज्जित कर रही हैं। 

मैं *"पनपा"* यह  देख रहा हूँ कि आज जहाँ समाज में एक तबका भव्यता के साथ यह पर्व मनाते हुए अनेक प्रकार के मिष्ठानों/पकवानों का भोग लगा रहा है वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है जिसके घर में न तो दिया जलाने की व्यवस्था है और न ही बच्चों के लिए भोजन। चाहिए तो यह कि अपने अगल बगल ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनके घर भी प्रकाश एवं मिष्ठान्न की व्यवस्था की जाय। परोपकार की भावना से बेसहारों का सहारा बना जाय। ऐसा करना तभी सम्भव हो सकता है जब मनुष्य में "आत्मप्रकाश" होगा। जब मनुष्य में आंतरिक ज्योति जगमगाती है तभी मनुष्य के भीतर दया, करुणा एवं परोपकार आदिक भावनाओं का उदय होता है। आज के युग में ऐसा नहीं है कि किसी भीतर "आत्मप्रकाश" नहीं है परंतु ऐसे लोग बिरले ही होते हैं आंतरिक दीपावली मनाने एवं "आत्मप्रकाश" जगाने के लिए मनुष्य को सच्चे सद्गुरु की शरण में रहते हुए दीर्घकालिक सतसंग का लाभ लेना पड़ता है। परंतु आज शिष्य भी गुरु के पास स्वार्थवश ही रहता है, जैसे ही उसका स्वार्थ पूरा होता है वह वहाँ से हट जाता है। ऐसे में दीपावली तो नहीं मनाई जा सकती बल्कि दीपावली मनाने का ढोंग ही मनुष्यों के द्वारा किया जा रहा है।

"जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये" किसी कवि द्वारा कही गयीं ये पंक्तियां तभी सार्थक हो सकती हैं जब मनुष्य में "आत्मप्रकाश" होगा।
*पनपा*

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं - कैलाश चंद्र लढा संस्थापक 👑सांवरिया 👑

🙏मेरे पास कमाए हुए धन से ज्यादा दौलत कमाए हुए रिश्तो की है, मैंने नोट नहीं अच्छे रिश्ते और अच्छे व्यवहार कमाए हैं, नोट खर्च हो जाते हैं पर रिश्ते नहीं वे हरदम मेरे साथ थे, है.......और रहेंगे |
साथ बना रहे........ ❤से
स्नेह बना रहे......... 💕से

रूबरू मिलने का मौका नहीं मिलता इसलिए
शब्दो से नमन कर लेता हूं और  आशीष आप सभी का प्राप्त कर लेता हूं अपनो से !!!
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में मुझसे श्रेष्ठ है | अतः मैं सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों को हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूं और निवेदन करता हूं कि नकारात्मक सोच को निकाल कर सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर  हो .....!!!दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भाई दूज के इस पावन पर्व पर मैं और मेरा परिवार आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता है


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दीपावल्याः सहस्रदीपाः भवतः जीवनं सुखेन,
सन्तोषेण, शान्त्या आरोग्येण च प्रकाशयन्तु।

*भावार्थ: दिवाली के हजारों दीपक आपके जीवन को ख़ुशी, शांति और आनंद से रोशन करें और आपके स्वास्थ्य को लाभ दें।*

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       *आपको दीपावली की*    
       *हार्दिक शुभकामनाएं।*
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🖊️कैलाश चंद्र लढा
संस्थापक 👑सांवरिया 👑
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JODHPUR
🔮www.sanwariya.org 🔮🙏

शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

धनतेरस (Dhanteras Puja 2022): Date And Time, Shubh Muhurat, Significance, Vastu Tips

धनतेरस (Dhanteras) जिसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दिवाली के त्योहार का पहला दिन है। यह अश्विनी के हिंदू कैलेंडर महीने में कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर मनाया जाता है। भारतीय आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी मंत्रालय ने धनतेरस को "राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस" के रूप में मनाने के अपने निर्णय की घोषणा की, जिसे पहली बार 28 अक्टूबर 2016 को मनाया गया था। भारतीय लोग रंगोली बनाकर भी धनतेरस मनाते हैं।

Dhanteras Puja 2022

धनतेरस का त्योहार 23 अक्टूबर को है. धनतेरस भगवान धन्वंतरि की पूजा है। भगवान धन्वंतरि, हिंदू परंपराओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान उभरे, एक हाथ में अमृत से भरा एक कलश और दूसरे हाथ में आयुर्वेद के बारे में पवित्र पाठ था। उन्हें देवताओं का वैद्य माना जाता है।

धनतेरस पर, दिवाली की तैयारी में अभी तक साफ नहीं किए गए घरों को अच्छी तरह से साफ और सफेदी कर दिया जाता है, और शाम को स्वास्थ्य और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मुख्य प्रवेश द्वार को रंगीन लालटेन, हॉलिडे लाइट से सजाया गया है और धन और समृद्धि की देवी के स्वागत के लिए रंगोली डिजाइन के पारंपरिक रूपांकनों को बनाया गया है।

Dhanteras 2022 Date And Time:

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट से शुरू होकर 23 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 4 मिनट तक रहेगी।

धनतेरस 2022 शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2022 Shubh Muhurat)

कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ - 22 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 02 मिनट से
कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि समाप्त - 23 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 03 मिनट तक
पूजन का शुभ मुहूर्त - 23 अक्टूबर 2022 को रविवार शाम 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 5 मिनट तक
प्रदोष काल: शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 8 बजकर 16 मिनट तक।
वृषभ काल: शाम 6 बजकर 58 मिनट से रात 8 बजकर 54 मिनट तक।

धनतेरस महत्व (Dhanteras Significance)

धनत्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी दूध के सागर से निकलीं। इसलिए, त्रयोदशी के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि, पवित्र शास्त्रों के अनुसार, यह पूजा सभी लोक कथा है, जिसका उल्लेख हमारे पवित्र ग्रंथों में कहीं नहीं है। यहां तक कि श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 23 और 24 ने भी इसका खंडन किया है।

हिंदू इसे नई खरीदारी करने के लिए एक अत्यंत शुभ दिन मानते हैं, विशेष रूप से सोने या चांदी की वस्तुओं और नए बर्तनों की। ऐसा माना जाता है कि नया "धन" (धन) या कीमती धातु से बनी कोई वस्तु सौभाग्य का संकेत है। आधुनिक समय में, धनतेरस को सोना, चांदी और अन्य धातुओं, विशेष रूप से बरतन खरीदने के लिए सबसे शुभ अवसर के रूप में जाना जाता है।

चूंकि यह दिवाली से पहले की रात है, इसलिए इसे 'छोटी दिवाली' या छोटी दिवाली भी कहा जाता है। जैन धर्म में, इस दिन को धनतेरस के बजाय धनतेरस के रूप में मनाया जाता है जिसका अर्थ है तेरहवें का शुभ दिन। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन महावीर इस दुनिया में सब कुछ छोड़कर मोक्ष से पहले ध्यान करने की स्थिति में थे, जिसने इस दिन को शुभ या धन्य बना दिया।

Dhanteras 2022: धनतेरस की रात इन जगहों पर जलाएं दीपक

  • धनतेरस के दिन घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए.
  • धनतेरस पर शाम के समय पीपल वृक्ष के नीचे एक दीपक जरूर जला दें.
  • धनतेरस की रात में बेल के पेड़ के नीचे दीपक जरूर जलाएं.

Dhanteras 2022 Vastu Tips

  • धनतेरस के दिन मुख्य द्वार में दोनों ओर स्वास्तिक का चिन्ह जरूर लगाएं।
  • घर में किसी भी तरह का मांगलिक या फिर शुभ काम होने पर घर के मुख्य द्वार में बंदनवार जरूर लगाया जाता है।
  • धनतेरस के दिन घर के मुख्य द्वार में मां लक्ष्मी के प्रतीकात्मक चरण जरूर लगाएं।
  • धनतेरस के दिन से ही रोजाना मुख्य द्वार के बाएं ओर घी का दीपक जरूर जलाएं।
  • घर के मुख्य द्वार में साफ सुथरा करके मनी प्लांट या फिर तुलसी का पौधा जरूर रखना चाहिए।

आंखों की रोशनी बढ़ाने के घरेलू उपाय

 

हमारी आंखें बहुत नाजुक होती हैं। इन आँखों से हम अपने आस-पास की दुनिया को देख सकते हैं और आसानी से जीवन जी सकते हैं। यदि आंखों से संबंधित किसी समस्या के कारण दृष्टि कमजोर हो जाती है तो कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

ऐसे में हम डॉक्टर के पास जाते हैं और हमें चश्मे की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा डॉक्टर हर तरह की देखभाल के तरीके भी सुझाते हैं। हालांकि आंखों की इस समस्या को दूर करने के लिए कुछ घरेलू नुस्खे भी हैं जिन्हें लोग सालों से अपना रहे हैं।

तो आइए जानते हैं आंखों की रोशनी बढ़ाने के घरेलू उपायों के बारे में।

१. ठंडे पानी से बढ़ती है आंखों की रोशनी। अपने आंखों को दिन में 3/4 बार ठंडे पानी से धो लें। इससे आपकी आंखों को ठंडक मिलती है। चेहरे पर चमक आएगी और आंखें साफ होती हैं। (ध्यान राखे की पानी जोर जोर से ना मारे)

२. अगर आपकी आंखों की रोशनी कमजोर है तो नियमित रूप से आंखों का व्यायाम करें। आंखों की पुतलियों को दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे की ओर घुमाएं।

३. दीपक की ज्योती को निहारने की प्रक्रिया को त्राटक कहते हैं। यह दृष्टि में सुधार करता है और एकाग्रता को भी बढ़ाता है। इसके अलावा अपने अंगूठे को भौंहों के बीच रखें और अपनी आंखों को उस बिंदु पर कुछ देर के लिए केंद्रित करें। इसके अलावा आप दिवार पर एक बिंदु पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास का समय बढ़ाएं ओर अंतर भी बढ़ाएं।

४. गाजर के नियमित सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद मिलती है गाजर सलाद के रूप में भी खाया जा सकता है, गाजर और करवंदा का रस भी आंखों की रोशनी में सुधार के लिए उपयोगी है।

५. सरसों के तेल की मालिश। रात को सोने से पहले पैरों के तलवों में सरसों के तेल से मालिश करें और सुबह उठकर हरी घास पर नंगे पांव नियमित रूप से चलें ताकि आंखों की रोशनी में सुधार होता है।

६. आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आई ड्रॉप। मेडिकल स्टोर्स पर कई आई ड्रॉप्स उपलब्ध हैं। जो आपकी आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करता है। यह आंखों की जलन को कम करता है।

७. दृष्टि में सुधार के लिए विटामिन। हमारे शरीर में विटामिन सी और विटामिन ई का होना आंखों की रोशनी के लिए बहुत जरूरी है। अगर आपके शरीर में विटामिन ई और विटामिन सी की कमी है तो आपको आंखों में कमजोरी के लक्षण दिखने लगेंगे। इसलिए अपने आहार में विटामिन सी और विटामिन ई से भरपूर फलों और सब्जियों को शामिल करें। विटामिन की कमी से दृष्टि हानि हो सकती है। जैसे बदाम, मुफळी, ब्रोकोली, पालक, आम्, आखरोट.

८. आय फोकस गोली। यह हर्बल एक्स्ट्रा अपने आप में अनोखा और बहुत कंसंट्रेटेड कॉम्बिनेशन है।

आपको 1-2 दिन ट्रीटमेंट में ही अपनी नज़र में बेहतरी महसूस होने लगेगा। आपकी नज़र साफ हो जाएगी, फोकस पैना हो जाएगा, आंखें लाल होना और जलन होना बंद हो जाएगा। इसके बाद कोशिकाएं पुनर्जीवित होने लगती है और बिगड़ चुके मामलों में भी नज़र सामान्य हो जाती है। दवाई की दुकानों पर बिकने वाली केमिकल से भरी हुई दवाओं की तुलना में iFocus का आंख की रक्त धमनियों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।(आय फोकस दुकान पर उपलब्ध नहीं हैं, आपको लेणा हो तो आय फोकस के ऑफिसियल वेबसाइट से ऑर्डर करना पडेगा मैं आपको कॉमेंट मैं लिंक देता हू)

९. आंखों की मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के लिए आंखों की मालिश जरूरी है। विटामिन ई युक्त तेल या क्रीम से रोजाना आंखों की मालिश करें। इसके लिए आप एलोवेरा का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

हम दीपावली क्यूँ मनाते हैं?

हम दीपावली क्यूँ मनाते हैं?
इसका अधिकतर उत्तर मिलता है राम जी के वनवास से लौटने की ख़ुशी में।

*सच है पर अधूरा*    

*अगर ऐसा ही है तो फिर हम सब दीपावली पर भगवन राम की पूजा क्यों नहीं करते? लक्ष्मी जी और गणेश भगवन की क्यों करते हैं?* 

*सोच में पड़ गए न आप भी।*
इसका उत्तर आप तक पहुँचाने का प्रयत्न कर रहा हूँ, अगर कोई त्रुटि रह जाये तो क्षमा कीजियेगा।

*1. देवी लक्ष्मी जी का प्राकट्य:*

 *देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन समुन्दर मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थीं।*


*2. भगवन विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना:*

*भगवन विष्णु ने आज ही के दिन अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बालि से मुक्त करवाया था।*

*3. नरकासुर वध कृष्ण द्वारा:* 

*इस दिन भगवन कृष्ण ने राक्षसों के राजा नरकासुर का वध कर उसके चंगुल से 16000 औरतों को मुक्त करवाया था। इसी ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया। इसे विजय पर्व के नाम से भी जाना जाता है।*

*4.  पांडवो की वापसी:*

*महाभारत में लिखे अनुसार कार्तिक अमावस्या को पांडव अपना 12 साल का वनवास काट कर वापिस आये थे जो की उन्हें चौसर में कौरवों द्वारा हराये जाने के परिणाम स्वरूप मिला था। इस प्रकार उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई।*

*5. राम जी की विजय पर :*

*रामायण के अनुसार ये चंद्रमा के कार्तिक मास की अमावस्या के नए दिन की शुरुआत थी जब भगवन राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापिस लौटे थे रावण और उसकी लंका का दहन करके। अयोध्या के नागरिकों ने पूरे राज्य को इस प्रकार दीपमाला से प्रकाशित किया था जैसा आजतक कभी भी नहीं हुआ था।* 

*6. विक्रमादित्य का राजतिलक:*

*आज ही के दिन भारत के महान राजा विक्रमदित्य का राज्याभिषेक हुआ था। इसी कारण दीपावली अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना भी है।*

*7. आर्य समाज के लिए प्रमुख दिन:*

 *आज ही के दिन कार्तिक अमावस्या को एक महान व्यक्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने हिंदुत्व का अस्तित्व बनाये रखने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी।*

*8. जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण दिन:*

 *महावीर तीर्थंकंर जी ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मोक्ष प्राप्त किया था।*

*9. सिक्खों के लिए महत्त्व:* 

*तीसरे सिक्ख गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और 1577 में अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास किया गया था।*
*1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द  जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओ के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबन्द किया हुआ था। इसे सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी जानते हैं।*

*10. द पोप का दीपावली पर भाषण:*

 *1999 में पॉप जॉन पॉल 2 ने भारत में एक खास भाषण दिया था जिसमे चर्च को दीपावली के दीयों से सजाया गया था। पॉप  के माथे पर तिलक लगाया गया था और उन्होंने  दीपावली के संदर्भ में रोंगटे खड़े कर देने वाली बातें बताई।*

*🌸भगवान् गणेश सभी देवो में प्रथम पूजनीय हैं इसी कारण उनकी देवी लक्ष्मी जी के साथ दीपावली पर पूजा होती है और बाकी सभी कारणों के लिए हम दीपमाला लगाकर दीपावली का त्यौहार मनाते हैं।🌸*

*अब आपसे एक विनम्र निवेदन की इस जानकारी को अपने परिवार अपने बच्चों से जरूर साँझा करे। ताकि उन्हें दीपावली के महत्त्व की पूरी जानकारी प्राप्त हो सके।*
           
                          जय श्री कृष्ण #🎆 शुभ दीपावली

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