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शनिवार, 8 अप्रैल 2023

क्या आप जानते हैं कि पौधों के लिए कौन सा फर्टिलाइजर सबसे बेस्ट होता है?


क्या आप जानते हैं कि पौधों के लिए कौन सा फर्टिलाइजर सबसे बेस्ट होता है? क्या कभी आपने सोचने की कोशिश की है कि नर्सरी में तो पौधा बहुत ही ज्यादा अच्छा दिखता है, उसमें बहुत ही ज्यादा फूल होते हैं, लेकिन जब हम उसे घर पर लेकर आते हैं तो उसमें फूल खिलना बंद क्यों हो जाते हैं? आपने भी शायद कई बार नर्सरी वालों से पूछा होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है, लेकिन क्या कभी जवाब मिला? कई ऐसे फर्टिलाइजर होते हैं जिन्हें नर्सरी वाले अपने पौधों में डालने की कोशिश करते हैं।


तो चलिए आज आपको ऐसे ही फर्टिलाइजर्स के बारे में बताते हैं जिन्हें अधिकतर नर्सरी वाले लोग अपने पौधों में डालते हैं।
1. डीएपी खाद

इसमें बराबर मात्रा में यूरिया और फास्फोरस होता है। कई बार ये बाज़ार से ही मिला हुआ मिल जाता है और कई बार इसे अलग से खरीदकर मिलाना भी होता है।



कैसे इस्तेमाल करते हैं ये खाद?

इसका 1 चम्मच 1 लीटर पानी में घोलकर पौधों में छिड़काव किया जा सकता है और उसके साथ ही पौधे में गुढ़ाई करके 1/4 चम्मच इस खाद को मिट्टी में छिड़का जा सकता है।

ये तरीका आपके उन सभी पौधों के लिए अच्छा साबित हो सकता है जिन्हें फास्फोरस की जरूरत होती है।


2. सिंगल सुपर फॉस्फेट

जिन लोगों के पास ज्यादा समय नहीं है उनके लिए फॉस्फेट से भरपूर ये खाद काफी जरूरी हो सकती है। ये खाद पत्तियों को चमकदार बनाती है और फूल और फलों को बड़ा बनाती है।



कैसे इस्तेमाल करते हैं ये खाद?

इसका 1 चम्मच 1 लीटर पानी में घोलकर पौधों में छिड़काव किया जा सकता है और उसके साथ ही पौधे में गुढ़ाई करके 1/2 चम्मच इस खाद को पत्तियों में छिड़का जा सकता है। इससे फंगस नहीं लगती है और परेशानी ज्यादा नहीं होती है। हालांकि, कई पौधों को ये सूट नहीं करती है इसलिए आपको पहले अपने पौधे के बारे में जानकारी ले लेनी चाहिए।
3. पोटाश खाद

ये ऑरेंज रंग की खाद होती है जो अधिकतर खेती में भी इस्तेमाल की जाती है। पोटाश ग्रोथ को आगे बढ़ाता है और अगर पौधा किसी कारण से मर रहा है या फिर उसमें किसी तरह से ग्रोथ नहीं हो रही तो इसे यूज करना चाहिए।


कैसे इस्तेमाल करते हैं ये खाद?

इसे भी इस्तेमाल करने का तरीका बिल्कुल वैसा ही है, लेकिन अगर आप इसे बड़े गमले में इस्तेमाल कर रहे हैं तो 1 चम्मच खाद डालें।

अगर इसका लिक्विड फर्टिलाइजर बना रहे हैं तो आप इसे रात भर पानी में डूबा रहने दें और फिर सुबह छिड़काव करें।

4. नीम खली

ये सबसे आसानी से मिलने वाला फर्टिलाइजर है और इससे मिट्टी में लगने वाली फंगस भी खत्म होती है। नीम खली को कई बार मिट्टी में पौधा लगाते समय भी मिलाया जाता है जिससे पौधों की ग्रोथ बिना किसी फंगस या रोग के हो सके।
कैसे इस्तेमाल करते हैं ये खाद?

हफ्ते में एक बार कम से कम एक चम्मच इसे मिट्टी की गुढ़ाई करके डालें। इससे मिट्टी में फंगस की समस्या बिल्कुल ही खत्म हो सकती है।

ये आपके घरेलू पौधों के लिए बहुत ही जरूरी खाद है जिसका इस्तेमाल हमेशा करते रहना चाहिए।


5. सरसों खली

नीम खली की तरह ही सरसों खली भी पौधों के लिए बहुत जरूरी खाद साबित हो सकती है हालांकि, ये उनकी ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए है।

इसमें कई तरह के न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो इसे हर पौधे के लिए सही माना जा सकता है। वैसे गुलाब के पौधों के लिए भी ये काफी जरूरी होती है।
कैसे इस्तेमाल करते हैं ये खाद?

आप 5 लीटर पानी में 250 ग्राम खली मिलाएं और इसे 1 हफ्ते के लिए ऐसा ही छोड़ दें। इसमें पानी मिलाते रहें पर बहुत ज्यादा लिक्विड नहीं करना है। इसे लकड़ी की मदद से चलाते रहें ताकि लंप्स ना बनें और फिर इसे पौधों में इस्तेमाल किया जा सके। क्योंकि ये ज्यादातर सॉलिड फॉर्म में होती है इसलिए इसे लिक्विड बनाना जरूरी है।


ये सभी फर्टिलाइजर्स नर्सरी में रेगुलर यूज किए जाते हैं और ऐसे में आपके लिए ये यूजफुल साबित हो सकते हैं।

क्या करोगे इतनी संपत्ति कमाकर ? आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर क्या संकट आने वाला है ??



 क्या करोगे इतनी संपत्ति कमाकर ?
एक दिन पूरे काबुल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है | 

 -सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |

-एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण पण्डितों का था,  उन महलों और झीलों पर अब आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हें मिला दिल्ली में दस बाई दस का टेंट..|

-एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |
-ननकाना साहब, लवकुश का लाहौर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए |
पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |

-यह सब किसलिए हुआ.? केवल और केवल असंगठित होने के कारण। इस देश के  समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है |

-आज भी बेकारण आया संकट देखकर बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है |
कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपने समझ रहा है,
कोई आंध्रा की खदानें अपनी मान रहा है |
तो कोई सूरत का व्यापारी सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा |
-कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |
-उसे केवल अपने घर का ध्यान रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया |
बहुत कमाया बस्तर के जंगलों से... आज वहाँ घुस भी नहीं सकते |
आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर क्या संकट आने वाला है ??
बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को SICKular मानते हैं |
कुछ समाज लाल गुलामों का मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा हानि पहुंचाने में जुटा है |
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत ही बचता है जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है,
धूर्त SICKulars ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया|
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |

एक रास्ता है शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना ,
और दूसरा तमाम संकटों को भांपकर , सारे मतभेद भुलाकर , संगठित हो कर व संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना |

  अगर आप पहला रास्ता अपनाते हैं तो आपकी चुप्पी और तटस्थता समय के इतिहास में एक अपराध के तौर पर दर्ज होगी।
 अगर आप दूसरे रास्ते पर चलते हैं तो आपके secular मित्र -संबंधी आपको कट्टर, संघी या अंधभक्त कहकर अपने आपको बड़का वाला चमचा सिद्ध करने की कोशिश जरूर करेंगे  लेकिन आप अपनी मातृभूमि और अपने सनातन धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और कर्त्तव्य का परिचय देते हुए इस राष्ट्र की मूल संस्कृति को बचाने के लिए प्राणपण से डटे रहिए।
सोच आपकी, निर्णय आपका !

जय श्री राम
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आज से शुरू करें..खिचड़ी - सभी पोषक तत्वों का भंडार है।


खिचड़ी खाओ😋



कुछ साल पहले मुझे प्राचीन भारत की विरासत में दिलचस्पी हुई। प्रकृति को बहुत करीब से देखने और समझने लगे। दुनिया में जंक फूड और फास्ट फूड का बढ़ता प्रचलन और इससे होने वाले नुकसान दिल तोड़ने वाले हैं। भारतीय खाद्य संस्कृति का अध्ययन किया। खिचड़ी एक ऐसी डिश है जो कई मायनों में अनोखी है। मैं जब छोटा था तब खिचड़ी खाता था, लेकिन खिचड़ी में इतनी ताकत होती है, इसका अंदाजा नहीं था। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गोलकिया साहब के साथ मिलकर खिचड़ी के बारे में शोध किया। वडोदरा एम.एस. यूनिवर्सिटी में रहते हुए खिचड़ी पर रिसर्च की।
हज़ारों साल पहले थी खिचड़ी। आयुर्वेद, ऋषियों ने भी खिचड़ी की वकालत की थी। मूंग और चावल दोनों ही बहुत पवित्र और शक्तिशाली अनाज हैं। खिचड़ी एक शुभ आहार है। खिचड़ी दूध के समान पवित्र है। खिचड़ी देवी-देवताओं को भी प्रिय है। इसमें अपार और अतुलनीय गुण हैं। यह सिर्फ चार घंटे में पच जाता है। खिचड़ी खाने से दिमाग भी शांत होता है। हमारी एक कहावत है कि जैसा अन्न वैसा मन।मूंग-चावल की खिचड़ी में गाय का घी डालने से तन और मन को बहुत लाभ मिलता है।
कहा जाता है कि अगर भारत में जंक फूड की जगह खिचड़ी को लोकप्रिय बनाया जाए तो भारत की कई समस्याएं दूर हो जाएंगी। रोग कम होता है। लोगों का तन और मन स्वस्थ रहे। आत्महत्याएं कम होंगी। ब्रह्मा खिचड़ी में तरह-तरह की सब्जियां होती हैं जो खाने वाले को खाने से तृप्ति का एहसास कराती हैं और कई बीमारियों को दूर करती है। डूंगरी नी खिचड़ी ने वयस्कों और बच्चों को खिचड़ी के प्रति आकर्षित करने के लिए पनीर खिचड़ी पर शोध किया। * हमारे कई व्यंजन हैं खास -देशी हांडवा 500 साल पुराना है। कई चटनी 100-150 साल पुरानी हैं। यह सभी पोषक तत्वों का भंडार है। उनके अनुसार खिचड़ी में 16 प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। इसमें ऊर्जा (280 कैलोरी), प्रोटीन (7.44 ग्राम), कार्बोहाइड्रेट (32 ग्राम), कुल वसा (12.64 ग्राम), आहार फाइबर (8 ग्राम), विटामिन ए (994.4 आईयू), विटामिन बी6 (0.24 मिलीग्राम), विटामिन सी शामिल हैं। (46.32 मिलीग्राम), विटामिन ई (0.32 आईयू), कैल्शियम (70.32 मिलीग्राम), एरियन (2.76 मिलीग्राम), सोडियम (1015.4 मिलीग्रामजी), पोटेशियम (753.64 मिलीग्राम), मैग्नीशियम (71.12 मिलीग्राम), फास्फोरस (138.32 मिलीग्राम) और जस्ता (1.12 मिलीग्राम)।



कहा जाता है कि मिट्टी के बर्तन में खिचड़ी बनाने से उसकी गुणवत्ता और स्वाद बढ़ जाता है। प्राचीन काल में लोग मिट्टी के बर्तनों में खिचड़ी बनाते थे। तैत्रिय उपनिषद के एक श्लोक के अनुसार, अन्न ब्रह्म है क्योंकि प्रत्येक जीव की उत्पत्ति अन्न से होती है। जन्म लेने के बाद वह केवल भोजन पर ही जीवित रहता है और अंत में मृत्यु भी भोजन में ही प्रवेश कर जाती है। * भगवदभगवान कृष्ण* ने गीता में कहा है कि, मैं मानव शरीर में जठराग्नि के रूप में वसु हूँ। उन्होंने यह भी कहा है कि, जो जीवन, बल, स्वास्थ्य, सुख और प्रेम को बढ़ाता है, जिसका क्षय नहीं होता और स्थिर रहता है, हृदय को कौन नहीं गिराता, रसीले, चिपचिपे पदार्थ सात्विक लोगों को प्रिय होते हैं। ये सभी गुण हमारी खिचड़ी में शामिल हैं। वह समय जल्द ही आएगा जब लोगों को शाश्वत सत्य का एहसास होगा कि भोजन ब्रह्म है और भारतीय भोजन वापस आ जाएगा। इसमें खिचड़ी सबसे अच्छी है, तो लोग खिचड़ी का उपयोग ज़रूर बढ़ायेंगे, उस समय लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होगा। भले ही अब हम खिचड़ी को भूल गए हों, लेकिन हमारी खिचड़ी देश-विदेश के अनेक व्यंजनों से हजारों गुना श्रेष्ठ है। करोड़ों युवा एक तरफ रोज फास्ट फूड खाकर अपनी सेहत बर्बाद कर रहे हैं और दूसरी तरफ खिचड़ी जैसे सर्वोच्च भोजन से दूर रहकर भारी नुकसान भी उठा रहे हैं...!!
आज से शुरू करें..खिचड़ी

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

अपने स्मार्ट फ़ोन से फौरन डिलीट कर दें ये 17 खतरनाक वरना हो सकता है भारी नुकसान। गूगल ने प्ले स्टोर से इन एप्स को बैन के दिया है।

कौन सी एप्प को अपने फ़ोन से तुरंत ही डिलीट कर देना चाहिए और क्यों डिलीट कर देना चाहिए?

अपने स्मार्ट फ़ोन से फौरन डिलीट कर दें ये 17 खतरनाक वरना हो सकता है भारी नुकसान। गूगल ने प्ले स्टोर से इन एप्स को बैन के दिया है।

जुलाई से सितंबर के दूसरे सप्ताह के बीच गूगल ने प्ले स्टोर से 17 वायरस इंफेक्टेट ऐप्स को डिलीट किया था । इसमें से 11 ऐप्स को जुलाई के महीने में व बाकी 6 ऐप्स को पिछले सप्ताह हटाया गया है । ये 17 ऐप्स गूगल प्ले स्टोर पर अब उपस्थित नहीं हैं व अब इन्हें डाउनलोड नहीं किया जा सकता है । दरअसल 17 ऐप्स में नया वेरिएंट मैलवेयर जोकर पाया गया था । चेक पॉइंट के रिसर्चर्स ने जुलाई में 11 ऐप्स को स्पॉट किया था , जो वायरस से प्रभावित पाई गईं । रिपोर्ट को मुताबिक गूगल इन ऐप्स को 2017 से ट्रैक कर रहा था । 11 ऐप्स को डिलीट करने के बाद ये खतरनाक जोकर मैलवेयर गूगल प्ले स्टोर की 6 नयी ऐप में पाया गया , जिसे हटा दिया गया है । ) साइबर सिक्योरिटी फर्म के मुताबिक प्ले स्टोर से हटाने से पहले इन 6 ऐप्स को करीब 200,000 बार डाउनलोड किया गया है ।

जानते हैं कौन सी हैं वह 17 ऐप्स >>
com.imagecompress >>
com.contact withme.texts >> com.hmvoice.friendsms >> com.relax.relaxation.androidsms >> com.cheery.message.sendsms >> com.peason.lovinglovemessage >> com.file.recovefiles >>
com.LPlocker.lockapps >>
com.remindme.alram >> com.training.memorygame >>
Safety AppLock >>
Convenient Scanner 2 >>
Push Message- Texting & SMS >>
Emoji Wallpaper >>
Separate Doc Scanner >>
Fingertip GameBox

रिसर्चर्स के अनुसार जोकर मैलवेयर का नया वेरिएंट डिस्कवर किया है , जो कि ऐप्स में छुप जाते हैं । ये नया अपडेटेड जोकर मैलवेयर डिवाइस में कई व मैलवेयर डाउनलोड कर सकता है , जो बदले में यूज़र के परमिशन के बिना उसे प्रीमियम सर्विस का सदस्य बना देता है । यानी कि हैकर्स इन प्रभावित ऐप्स के ज़रिए चुपचाप प्रीमियम सर्विस का सब्सक्रिप्शन ले लेते हैं , व इसके बारे में यूज़र्स को कुछ नहीं पता चल पाता ।

मुख्य स्रोत - इन्टरनेट

शेयर बाजार की सटीक जानकारी देने वाला देश-दुनिया का पहला ग्रुप है 'किंग ऑफ निफ्टी'


 शेयर बाजार की सटीक जानकारी देने वाला देश-दुनिया का पहला
ग्रुप है 'किंग ऑफ निफ्टी'


जो मेहनत और श्याम कृपा के बल पर देते हैं निफ्टी और स्टॉक्स की सटीक जानकारी

किंग ऑफ निफ्टी के डायरेक्टर हैं अहमदाबाद (भीलवाड़ा) निवासी श्री विकास लड्ढा

* आर्थिक जगत में धन का महत्व और उसकी उपयोगिता को हर कोई समझता है। विशेषकर कोरोना और उसके बाद उपजे हालातों पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे की परिस्थितियां विकट से विकटतम प्रतीत होती जा रही है।

विशेषज्ञों के दावे कुछ भी कहते हों लेकिन व्यवसायिक हलचल चिंताजनक जरूर हुई है। तमाम व्यवसायों पर नजर डाले तो एक ही कहानी सामने आती है की उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन खरीददार कम हो गए हैं, जहां खरीददार हैं, वहां वस्तु के दामों का अवमूल्यन हुआ है। ऐसे में उत्पादित वस्तु के मुनाफे का प्रतिशत कम से कमतर होता जा रहा है।


विभिन्न व्यवसायों पर रिसर्च करने पर ज्ञात हुआ की शेयर बाजार एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे व्यवसायिक बुद्धि और नफे-नुकसान की सीमा को तय करते हुए अच्छी कंपनियों में निवेश किया जाए तो बेहतर रिटर्न प्राप्त किया जा सकता है। बस एक अड़चन आती है की शेयर में निवेश की जानकारी किससे प्राप्त की जाए ? यह जानकारी अनेक ब्रोकर और बड़े-बड़े समूह भी उपलब्ध करवाते हैं लेकिन अनिश्चितता के साथ। ऐसे में जोखिम बढ़ने के साथ नुकसान का डर भी रहता है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से "किंग ऑफ निफ्टी" ग्रुप ने कमाल का प्रदर्शन किया है। इनके द्वारा बताए गए फंडों से निवेशकों ने मुनाफा भी कमाया है और पूर्व में हुए नुकसान की भरपाई भी की है।

किंग ऑफ निफ्टी के डायरेक्टर श्री विकास लड्ढा, अहमदाबाद (भीलवाड़ा) से बातचीत करने पर सामने आया की वो व्यक्तिगत रूप से निवेशकों को कोचिंग भी उपलब्ध करवाते हैं। हालांकि सेबी से मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन मान्यता प्राप्त समूहों से कई गुना बेहतर प्रदर्शन करने का प्रत्यक्ष उदाहरण कई बार सामने आया है। केश, डिलिवरी, इंट्राडे, निफ्टी 50, 100, बैंक निफ्टी, गोल्ड, सिल्वर, सहित कमोडिटी में भी खरीद और बेचान के लेवल्स बताते हैं। यही नहीं इनके खरीद और बेचान की एक्यूरेसी भी 95% सही जाती है। यह देखकर आश्चर्य होता है की  एक महीने पहले, एक दिन पहले और बाजार खुलने के 15 मिनट पहल ही बता देते हैं की बाजार की चाल क्या रहेगी। वर्षों की मेहनत के साथ और गुरु - गोविंद की कृपा के बिना अनिश्चितता वाले शेयर बाजार की इतनी सटीक जानकारी देना संभव नहीं है।


king of nifty के नाम से वाट्सएप, यू-ट्यूब और टेलीग्राम चैनल्स के माध्यम से भी यह नि:शुल्क जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। ऐसे में कोई भी इस व्यवसाय को सीखकर अपनी पेंशन की पुख्ता व्यवस्था कर सकता है।

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यह WHATSAPP ग्रुप पर कोई चार्ज नहीं है
एक माह पहले ही Nifty की Advance एनालिसिस दे दी जाती है और उसके Stocks की भी सटीक जानकरी बिल्कुल फ्री दी जाती है पिछले 6 माह ऑल पोस्ट (एनालिसिस) 95% सही जाती हुई | King of Nifty ये श्याम भक्त एक बात गारन्टी के साथ बोलता हू कि  कि मार्केट खुलने से पहले, एक दिन पहले, एक सप्ताह पहले और एक माह पहले... Nifty मे क्या होगा ये टेलीग्राम चैनल और Whats App पर ही मिलेगा | यकीन ना हो तो  पहले टेलीग्राम ग्रुप की और Whats APP की ऑल पोस्ट चेक करे | उसके बाद ही जॉइन करे

ALL SOCIAL MEDIA पर  KING OF NIFTY के नाम से है

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श्याम कृपा सब पर बनी रहे  जय हो नन्द लाल की
🙏🌹🙏🌹🙏

किंग ऑफ निफ्टी के डायरेक्टर श्री विकास लड्ढा माहेश्वरी समाज के होनहार युवक है जो नम्रतापूर्वक अपने हुनर को श्याम कृपा और माता-पिता का आशीर्वाद बताते हैं। आपके पिताजी श्री हेमराज जी लड्ढा, आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ ही गोल्ड मेडलिस्ट व जानेमाने वास्तु और ज्योतिष्य शास्त्र के ज्ञाता हैं। जो पिछले 25 वर्षों से समाज और दीन - दुखियों को नि:शुल्क सेवाएं प्रदान कर रहे है। आपकी लंबी फेहरिस्त में अनेक नेता, अभिनेता, आईएएस, आरएएस और गणमान्य हैं, जो ' मां ' की कृपा से लाभान्वित हुए हैं। ' मां जगदम्बा ' का आशीर्वाद  सभी पर बनी रहे इसलिए पिछले 36 वर्षों से अपने निवास स्थल पर शुद्ध देशी घी की अखंड ज्योत प्रज्वलित है।


' मां जगदम्बा ' और ' श्री गोविंद ' के कृपापात्र दोनों पिता-पुत्र का अखिल भारतीय माहेश्वरी समाज स्तर पर सम्मान किया जाना चाहिए, ताकि युवाओं को जगतकार्य के साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रेरणा मिल सके।
जय महेश
जय श्री कृष्ण


गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

22 फीट के पंचमुखी बालाजी के श्रृंगार में लगता है 1 माह, 16 किलो सिंदूर और 5 किलो तेल

मेहरानगढ़ की तलहटी में सिटी पुलिस स्थित मंदिर में विराजित है प्रतिमा, शहर की सबसे लंबी-चौड़ी 550 साल पुरानी प्रतिमा 

 
एक ऐसे हनुमान मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां माथा टेकने भर से ही सभी भक्तों को संकटों से छुटकारा मिल जाता है. साथ ही, सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. भगवान श्री हनुमान के प्रति भक्तों में विशेष आस्था देखने को मिलती है. कुछ इस तरह का नजारा जोधपुर के पंचमुखी बालाजी मंदिर में देखने को मिलता है. इस मंदिर में जोधपुर शहर के श्रद्धालु ही नहीं, दूरदराज से भी लोग हनुमान जी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं|

22 फीट के पंचमुखी बालाजी के श्रृंगार में लगता है 1 माह, 16 किलो सिंदूर और 5 किलो तेल, मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में विराजे पंचमुखा बालाजी मंदिर में 
श्री हनुमान प्राकट्योत्सव पर विशेष पूजा-अर्चना होगी। भीतरी शहर सिटी पुलिस की तंग गलियों से होकर मंदिर तक पहुंचने के लिए 101 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।
मंदिर की खासियत यह है कि यहां शहर की सबसे लंबी और चौड़ी बालाजी की मूर्ति स्थापित हैं। करीब 550 वर्ष पुराने इस मंदिर में पंचमुखा बालाजी की मूर्ति स्वयं भू प्रकट हुई थी। बालाजी के पांच मुख और 10 हाथ हैं। मूर्ति की ऊंचाई 22 फुट और चौड़ाई 12.50 फुट है।

मूर्ति के बारे में यह कहा जाता है कि जो भी यहां पर 8 फेरी देता है उसके सभी कष्ट व पीड़ा हर ली जाती है।
पंचमुखा बालाजी मूर्ति की विशालता को देखते हुए साल में केवल दो बार ही श्रृंगार होता है। एक बार के श्रृंगार में एक माह का समय लगता है, जिसमें 30 से 35 हजार रुपए का खर्च आता है। मूर्ति पर 16 किलो सिंदूर लगता है। यह सिंदूर घाणी के तेल में ही डालकर लगाया जाता है। तेल लगभग 5 किलो लगता है। एक माह तक प्रतिदिन सात-आठ पुजारी 5-6 घंटे तक श्रृंगार करने का काम करते है।
मंदिर के पुजारी रामेश्वर प्रसाद ने बताया कि प्रतिमा के पांव के नीचे पाताल की देवी की भी प्रतिमा है।
प्रति मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा-अर्चना होती है। बालाजी को विशेष रूप से रोट और गुड़ का भोग लगता है। साथ ही विशेष रूप से पान का बीड़ा लूंग के साथ भोग लगाया जाता है। पुजारी अनिल शर्मा, सुनील और मंगल प्रसाद बताते हैं कि हनुमान जयंती के दिन शनिवार को विशेष पूजा के साथ मंदिर परिसर में फूल मंडली और आकर्षक रोशनी की जाएगी। यह शहर की सबसे प्राचीनतम हनुमान मूर्ति में से एक है।

अहिरावण को वरदान था कि जब तक पांच दिशाओं में लगी ज्योति को एक साथ नहीं बुझाया जाएगा, तब तक उसका वध नहीं किया जा सकता. अहिरावण के वध के लिए हनुमान जी ने पंचमुखी अवतार लिया | 
पंचमुखी हनुमान मंदिर की बड़ी मान्यता है. भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को जब अहिरावण पाताल लोक ले गए थे, तब भगवान हनुमान उनकी खोज करते हुए पताल लोक पहुंचे थे. लेकिन, अहिरावण को देवी का वरदान था कि जब तक 5 दिशाओं में जल रही अखंड ज्योति को कोई एक साथ नहीं बुझाएगा, तब तक अहिरावण का वध नहीं हो सकता था. ऐसे में हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण कर पांचों दिशाओं की ज्योति एक साथ बुझाई और अहिरावण का वध किया. 
बालाजी का पहला मुख हनुमान, दूसरा नृसिंह, तीसरा वराह, चौथा हयग्रीव व पांचवां घोड़े का
मंदिर के पुजारी रामेश्वर प्रसाद ने बताया कि पंचमुखा में पहला मुख हनुमान, दूसरा नृसिंह, तीसरा वराह, चौथा हयग्रीव और पांचवां घोड़े का मुख लगा है। इनके हाथ में पहाड़, दूसरे में संजीवनी बूटी, तीसरे में त्रिशूल, चौथे में कमंडल, पांचवें में नाग देवता, छठे हाथ में तलवार, सातवें मुस्ठिका, आठवें में अंकुश, नौवें हाथ में गदा और दसवें हाथ में डमरू है। वहीं इस मंदिर पर जाने वाली रोड पर ब्ल्यू सिटी की थीम पर दिवारों पर पेंटिंग भी की गई है। इस दौरान यहां आने वाले शहरवासियों का रूझान भी बढ़ने लगा है। शहरवासी यहां सेल्फी लेकर पंचमुखा बालाजी के दर्शन करने जरूर जाते है। इस दौरान इस मंदिर में हमेशा चहल-पहल बनी रहती हैं।

मंदिर से मिले हुए फूलों का क्या करना चाहिए?

 मंदिर से मिले हुए फूलों का क्या करना चाहिए?

आइए जानते हैं कि मंदिर से मिले इन फूलों या हार को सूख जाने पर क्या करना चाहिए.

मंदिर से मिले फूल या हार घर लाने पर जब कुछ दिन के बाद यह सूख जाय तो इन सूखे हुए फूलों को किसी कपड़े में बांध कर घर की तिजोरी में रख देना चाहिए. ऐसा करने से फूल या हार की पॉजिटिव एनर्जी घर में मौजूद रहती है.

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जब हम किसी तीर्थ स्थान या किसी दूर-दराज के मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं तो वहां भी मंदिर का पुजारी भगवान को चढ़ाई गई माला या फूल उठाकर हमें दे देता है. मंदिर के पुजारी द्वारा दी गई इस माला या फूल को लेकर हम परेशान हो जाते हैं कि अब इसका क्या किया जाय क्योंकि घर पहुंचते-पहुंचते यह खराब हो सकता है. ऐसी स्थिति में मंदिर से मिले हुए फूल को हथेली पर रखकर सूंघ लेना चाहिए. सूंघने के बाद इस फूल को किसी पेड़ के नीचे या किसी नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए. ऐसा माना जाता जाता है कि सूंघने से फूल की पॉजिटिव एनर्जी हमारे शरीर में चली आती है. इसके बाद भी मंदिर से मिले हुए फूल या हार नहीं संभाले जा रहे हैं तो इसे किसी बहते हुए शुद्ध जलधारा में प्रवाहित कर देना चाहिए.

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ?


सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर ध्यान थोड़ा रुक गया। तुलसीदास ने सुन्दर कांड में, 
जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥
अर्थात : (जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो) -
भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे।
हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।
यह विचारणीय है -
इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ?
यह तुलसी दास जी ने भी विस्तार से नहीं लिखा।

49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी हमारे गुरुओं ने दी है।
उसी 49 वायु का उल्लेख गोस्वामीजी ने किया है।
सृष्टि विज्ञान के रहस्य उद्घाटित करने वाले हमारे सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व होता है।

 हम सभी को तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य होना स्वाभाविक है, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।
    हमें यह जानना चाहिए कि - 
वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। 
अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समान वायु - अपान वायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 

जल के भीतर जो वायु है उस का शास्त्रों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसकी प्रकृति और उसका नाम अलग है।
अंतरिक्ष में जो वायु है वह अलग और पाताल में स्थित वायु भी भिन्न है।
नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है।
इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।

ये 7 प्रकार हैं-
1.प्रवह,
2.आवह,
3.उद्वह,
4. संवह,
5.विवह,
6.परिवह और
7.परावह।
 
1. प्रवह : पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 
 
2. आवह : आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घूमता जाता है।
 
3. उद्वह : वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घूमता जाता है। 
 
4. संवह : वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
 
5. विवह : पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 
 
6. परिवह : वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
 
7. परावह : वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
 
   इन सातो वायु के सात सात गण हैं जो निम्न स्थानों में विचरण करते हैं

 ब्रह्मलोक,
इंद्रलोक,
अंतरिक्ष,
भूलोक की पूर्व दिशा,
भूलोक की पश्चिम दिशा,
भूलोक की उत्तर दिशा और
भूलोक कि दक्षिण दिशा।
इस प्रकार 7 x 7 = 49
कुल 49 मरुत हो जाते हैं
जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।

हम रामायण, भगवद् गीता आदि सनातन धर्म की पुस्तकें पढ़ते हैं।
उनमें लिखी छोटी-छोटी बातें,
गहन अध्ययन- मनन करने योग्य हैं।

बोलिए सिया वर रामचंद्र की जय
पवनसुत हनुमान की जय 🚩

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

मोदी जी अभी तक संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द काट के भारत एक हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं कर रहा है...


मान लो कि आपके गांव में 100-200 घर हैं... जिसमें से 4-5 घर आपसे अच्छे और खूबसूरत हैं... तथा, बाकी के 194 घर आपसे खराब हैं...

लेकिन, आप चाहते हैं कि... उस गांव का सर्वश्रेष्ठ घर आपका ही हो तो फिर... आपके पास दो उपाय है...

या तो, आप डायनामाइट लगा कर अपने से अच्छे और खूबसूरत उन चारो-पांचों घर को ढहा दो...

या फिर... अपने घर को पुनर्रचना करके सर्वश्रेष्ठ घर बना लो... ☺️

हालांकि... लक्ष्य दोनों तरीकों से उपलब्ध हो जाना है...

लेकिन, इन दोनों तरीकों में एक तरीका रचनात्मक सोच का तरीका है...और, दूसरा विनाशात्मक सोच का...

अरे हाँ... सोच से याद आया कि...मान लो कि... किसी होटल के बाहर बोर्ड पर शुद्ध वैष्णव होटल लिखा हो और अंदर टेबल पर मीट- मुर्गा- मछली आदि भी परोसा जाता रहे तो फिर आपकी सोच क्या होगी?

या फिर, एक दूसरे होटल में वैष्णव होटल न लिखा रहे लेकिन वो हमेशा शुद्ध और सात्विक भोजन ही खिलाए तो फिर आपकी सोच क्या होगी?

जाहिर सी बात है कि... आप बाहर लिखे बोर्ड की अपेक्षा खाने की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दोगे...और, अगर आप सात्विक भोजन पसंद करते हैं तो हमेशा दूसरे वाले होटल में ही जाना पसंद करेंगे...
यही है सोच का अंतर... 😊

कुछ लोगों की मान्यता है कि खाना चाहे जैसा भी मिले लेकिन बोर्ड वैष्णव होटल का लगा रहना चाहिए...
जबकि, मेरा मानना है कि... बोर्ड तो बाद में भी लग जायेगा... पहले खाना पूर्ण सात्विक और शाकाहारी होना चाहिए...

जैसे कि... हिन्दू राष्ट्र को ही ले लेते हैं...

कुछ लोगों की मान्यता है कि... मोदी जी अभी तक संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द काट के भारत एक हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं कर रहा है...
मतलब कि होटल का सिर्फ बोर्ड बदल दो... खाना यही चलता रहेगा...☺️

जबकि... मोदी जी होटल के बोर्ड बदलने की जगह खाने को पूर्ण रूपेण सात्विक और शाकाहारी बना रहा है...

मतलब कि देश की संस्कार/प्रकृति बदल रही है...
याद करके देखें कि... भारत में हिंदुओं के बहुसंख्यक होने के बावजूद भी 2014 से पहले हमारे पास क्या था?

गंदी एवं बदबूदार गलियों से घिरा हुआ हमारा काशी विश्वनाथ,बुनियादी सुविधाओं को भी तरसता हमारा विश्वप्रसिद्ध महाकाल मंदिर, संगीनों के साये में होती वैष्णोदेवी यात्रा, टेंट में पड़े भगवान राम...


जबकि, हर शहर में आधुनिक सुविधाओं से लैस एवं जगमगाता हुआ सा हज हाउस, चमचमाते हुए से मजार और हज के जाने वाले लोगों को दिया जा रहा था VVIP बर्ताव...


ऐसे में आप संविधान के एक पन्ने में भारत एक हिन्दू राष्ट्र लिख भी देते तो क्या बदल जाना था ??

उल्टे उसकी प्रतिक्रिया में हुए दंगों में हजारों लाखों लोगों की जान चली जाती और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण जीना मुहाल हो जाता....

इसीलिए... मोदी जी ने होटल की बोर्ड बदलने की अपेक्षा पहले खाने की गुणवत्ता को बदलना शुरू किया...

क्योंकि, अगर एक बार हमने खाने की गुणवत्ता को बदल कर उसे पूर्णतया सात्विक और शाकाहारी कर दिया तो फिर आपको होटल का बोर्ड बदलने की जरूरत ही नहीं पड़नी है...
क्योंकि, फिर तो वो होटल खुद ही एक शुद्ध वैष्णव होटल के रूप में प्रसिद्ध हो जाना है...
महज 8 सालों के छोटे अंतराल में ही जहाँ पहले हमारे पास भव्यता के नाम पर सिर्फ मीनाक्षी और तिरुपति मंदिर आदि ही थे...
अब... केदारनाथ से लेकर अयोध्या के राम मंदिर, काशी कॉरिडोर, महाकाल लोक जैसे अनेकों ऐतिहासिक धरोहर बनते जा रहे हैं...

इन भव्य मंदिरों की वैल्यू आप इसी से समझ सकते हैं कि... जो हिंदुस्तान पहले एकमात्र ताजमहल और लालकिला से पहचाना जाता था...

अब हिंदुस्तान... सरदार पटेल की प्रतिमा, भव्य एवं दिव्य अयोध्या का श्री राम मंदिर, भव्य काशी कॉरिडोर, महाकाल लोक, केदारनाथ कॉरिडोर आदि से पहचाना जाएगा...



इस तरह... मोदी जी द्वारा हिंदुस्तान को भव्य मंदिरों के देश के रूप में पुनर्स्थापित किया जा रहा है...

अगर अभी तक आप ये नहीं समझ पाए हैं कि क्या हो रहा है... तो, मैं उसे एक बहुत साधारण भाषा में समझा देता हूँ कि क्या हो रहा है...

जब हम मुगल काल से पहले का इतिहास पढ़ते हैं तो हम यही पढ़ते हैं कि... गजनवी/गोरी या उन जैसे कोई अन्य जेहादी भारत आये तो वे भारत में मौजूद भव्य मंदिरों को देखकर चकाचौंध रह गए...

प्राचीन काल में... अयोध्या, काशी, मथुरा, सोमनाथ आदि मंदिर इतने भव्य और विशाल थे कि वे आतताई हैरानी से उसे देखते ही रह गए कि... बाप रे... इतना भव्य?
बाद में होश में आते ही उन्होंने... हिंदुस्तान की सभ्यता संस्कृति को नष्ट करने हेतु उन भव्य मंदिरों को नष्ट कर दिया और उसके मलबे से वहाँ खुद के लिए एक जीर्ण शीर्ण सा ढांचा खड़ा कर दिया...

अब 1000 साल के बाद मोदी जी... हमारे उसी प्राचीन काल के हिंदुस्तान के वैभव को वापस ला रहे हैं...

तथा, हिंदुस्तान को एक बार फिर से दुनिया में उसी शक्तिशाली एवं वैभवपूर्ण देश के रूप में स्थापित कर रहे हैं...

जहाँ की पहचान... कोई लालकिला, ताजमहल अथवा आलतू-फालतू मजार या हज हाउस नहीं... बल्कि, दिव्य एवं भव्य मंदिर एवं कॉरिडोर बन रहे हैं...
क्योंकि, अगर आप नहीं जानते हैं तो ये जानना आपके लिए दिलचस्प होगा की उज्जैन के "महाकाल लोक" के उद्घाटन समारोह का दुनिया के 40 से ज्यादा देशों में लाइव प्रसारण किया गया...
उसी तरह... अयोध्या के श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन एवं काशी कॉरिडोर का भी प्रसारण पूरी दुनिया में किया गया था...

यही तो है... सही मायने में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मार्ग... जहाँ सिर्फ होटल का बोर्ड ही शुद्ध वैष्णव होटल नहीं बल्कि खाना भी वैष्णव अनुरूप शुद्ध एवं सात्विक बनाया जा रहा है...

अंतर सिर्फ ये है कि कुछ लोग चाहते हैं कि मोदी जी गांव के अपने से सुंदर 4-5 घरों को डाइनामाइट लगा कर उड़ा दें ताकि अपना घर सर्वश्रेष्ठ दिखने लगे...

जबकि, मोदी जी... दूसरों के घरों से कोई छेड़छाड़ किये बिना अपने घर के इस तरह से रेनोवेशन कर रहे हैं कि हमारा घर सिर्फ अपने गांव ही नहीं बल्कि आसपास के 100-50 गांवों में सर्वश्रेष्ठ की गिनती में आ जाये...

Have full faith in your leadership
😊🙏🏻🚩

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

धरतीपुत्र केंचुआ


धरतीपुत्र केंचुआ



 
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केंचुआ सच्चे अर्थों में धरतीपुत्र है,प्राकृतिक खेती का केंचुआ मुख्य आधार है ।जंगल के पेड़ को यूरिया व डीएपी कौन डालता है? किटनाशक का छिड़काव कौन करता है ?पानी कौन देता है ?लेकिन समय आने पर वह पेड़ फलों से लद जाते हैं। आप जंगल के किसी पेड़ के पत्ते को लैब में टेस्ट कराओ एक भी तत्व की कमी नहीं मिलेगी जंगल में जो नियम काम करता है वही हमारे खेत में करना चाहिए ,इसी का नाम प्राकृतिक कृषि है। केंचुआ रात के अंधेरे में क्योंकि दिन में उसे पक्षियों  द्वारा उठा ले जाने का डर रहता है अपनी माता धरती के लिए उसकी उर्वरता  खुशहाली के लिए रात्रि भर अनथक परिश्रम करता है... जमीन को ऑक्सीजन देता है खाद तैयार करता है । केचुआ के द्वारा बनाए गए असंख्य छिद्रों  से वर्षा का जल भूमि में नीचे जाता है उससे भूमिगत जलस्तर बढ़ता है भूमि को नमी मिलती है जो भीषण गर्मी में भी पौधों को सूखने नहीं देती। बात यदि भारतीय केचुआ की करें उसमें विलक्षण विशेषता है। वर्मी कंपोस्टिंग के लिए विदेशों से आयात किये केचुआ केवल गोबर को खाते हैं लेकिन भारतीय केंचुआ मिट्टी और गोबर दोनों को खाता है विदेशी केंचुआ 16 डिग्री से नीचे और 28 डिग्री से ऊपर के तापमान पर जीवित नही रहता जबकि भारतीय केचुआ अधिक गर्मी अधिक सर्दी  दोनों को ही सहन कर लेता है। इतना ही नहीं यह एक छिद्र से जमीन में नीचे जाता है दूसरे छिद्र से ऊपर आता है हर बार एक नया छेद बनाता है। 8 से 10 फुट तक छिद्र बनाते हुए जमीन में जाता है और अपने शरीर से वर्मी वाश से छेद को लिपते हुए जाता है जिससे  छेद जल्दी बंद नहीं होता । भारतीय केचुआ धरती में जो खनिज है उनको खा कर पेट से निकालकर पौधों की जड़ को देता है। जिनमें अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं  धरती माता का कायाकल्प करते हुए इस प्रकार यह किसान का भी कितना बड़ा उपकार करता है। लेकिन रासायनिक खेती 'अधिक अन्न उपजायो 'की प्रतिस्पर्धा में यह परोपकारी जीव अकाल मौत मरता है यूं तो इंसान भी धरती का ही पुत्र है वह भी धरती को माता मानता है बड़े-बड़े नारे लगाता है लेकिन धरती का इंसान रूपी कुपुत्र कभी-कभी जानबूझकर तो अधिकार अज्ञानतावश धरती के सैकड़ों लाखों सपूतों को एक झटके में मौत की नींद सुला देता है। एक उदाहरण से समझे एक केंचुए को पकड़ो उसके ऊपर यूरिया, डीएपी डालो देखो वह जिएगा मरेगा निश्चित तौर पर वह तुरंत मर जायेगा  इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा परंतु उसी केंचुए के ऊपर  यदि गाय का गोबर डाल तो तो वह स्वस्थ होगा अपना परिवार बढ़ाएगा क्योंकि उसको उसका भोजन मिल गया है। 1 एकड़ खेत में लाखों की संख्या में केंचुआ  बिना पैसे के मजदूर की तरह दिन-रात काम करता है वह सारी जमीन को मुलायम बना देता है नीचे की जमीन को उलट देता है खनिजों को नीचे से ऊपर कर देता है और बारिश का सारा पानी इन छिद्रों  के द्वारा धरती मां के पेट में चला जाता है। सरकारे 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' के लिए करोडो खर्च करती है जो ठीक से काम भी नहीं करते लेकिन केचुआ यह काम निशुल्क कर देता है लेकिन आज जमीन को यूरिया डीएपी ने पत्थर बना दिया है केंचुआ  जैसे मित्र जीव बचे नहीं है। धरती में छिद्र नही है जब बारिश आती है तो पानी तेजी से बेहकर नदी नालों में जाकर बाढ़ आने का कारण बनता है। धरती को हरी-भरी, शस्य श्यामला केवल केंचुए जैसे जीव ही बनाते हैं सच्चे अर्थों में केंचुआ ही धरतीपुत्र है इंसान जब था तब था धरती पुत्र आज उसके क्रियाकलापों के कारण उसे धरती को माता कहने का भी अधिकार नहीं है क्योंकि धरती के पुत्र इंसान ने धरती के केंचुआ  जैसे लाखों परोपकारी जीवो को जहरीली रासायनिक खेती के माध्यम से धरती के गर्भ में ही दफन कर दिया है। अब भी समय है हमें  जैविक खेती व प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा यदि दुनिया को अकाल महामारी कुपोषण वैश्विक प्रदूषण कैंसर जैसी बीमारियों से बचाना है।

आर्य सागर खारी✍✍✍

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