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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

बद्रीनाथ मंदिर को 15 टन फूलों से सजाया गया है.

*🔴भारी बर्फबारी के बीच खुले बद्रीनाथ धाम के कपाट, जयकारों के बीच नाचने लगे श्रद्धालु*


*बद्रीनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं. इसी के साथ ही उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा शुरू हो गई है. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यहां पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना हुई. भारी बर्फबारी के बीच श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था और कपाट खुलते ही वह झूमने लगे.*

बद्रीनाथ मंदिर को 15 टन फूलों से सजाया गया है.

*नई दिल्ली,*
केदारनाथ के बाद अब भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट भी यात्रियों के लिए खुल गए हैं. कपाट खुलने से पहले ही बद्रीनाथ में भारी बर्फबारी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद भी श्रद्धालु वहां जयकारे लगाने के साथ झूमते हुए नजर आए. हर साल की तरह इस साल भी पहली पूजा और आरती देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से हुई. आईटीबीपी के बैंड के अलावा गढ़वाल स्काउट्स भी इस मौके पर प्रस्तुति दी. कपाट खुलने से पहले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद मंदिर पहुंच गए थे. मंदिर को 15 टन से अधिक फूलों से सजाया गया है. 

*धार्मिक मान्यता*
12 महीने भगवान विष्णु जहां विराजमान होते हैं, उस सृष्टि के आठवें बैकुंठ धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां 6 महीने विश्राम करते हैं और 6 महीने भक्तों को दर्शन देते हैं. वहीं दूसरी मान्यता यह भी है कि साल के 6 महीने मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तो बाकी के 6 महीने यहां देवता भगवान विष्णु की पूजा करते हैं जिसमें मुख्य पुजारी खुद देवर्षि नारद होते हैं. 

*चारधाम यात्रा का होगा आगाज*

बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा शुरू हो गई है. इस दिन का चयन टिहरी नरेश करते हैं जो कि एक पुरानी परंपरा रही है. पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि जिस तारीख से वैशाख शुरू हो वही तिथि से बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं और परंपरा के अनुसार नरेंद्र नगर के टिहरी नरेश की तारीख तय करते हैं. परंपराओं के अनुसार यहां 6 महीने मनुष्य और 6 महीने देवता भगवान विष्णु की आराधना करते हैं.

*चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड तैयार.*

चारधाम: केदारनाथ धाम के लिए बंद किये गए रजिस्ट्रेशन, जानिए वजह.

केदारनाथ धाम के भक्तों के लिए खुशखबरी, आज से खोले गए कपाट.

केदारनाथ-बद्रीनाथ में स्पेशल दर्शन के लिए देने होंगे इतने रुपये.

*तैयारियां जोरों पर*
बद्रीनाथ धाम के अंदर भी जगह-जगह निर्माण कार्य और तैयारियां जोरों शोरों पर हैं. संत महात्माओं की टोली बद्रीनाथ पहुंच गई है तो श्रद्धालु भी धाम में पहुंच चुके हैं. सडकें पहले के मुकाबले ज्यादा चौड़ी हो चुकी हैं. गोविंदघाट से रास्ता बद्रीनाथ और सिखों के पवित्र धर्मस्थल हेमकुंड साहिब के लिए अलग होता है. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानी सीमा सड़क संगठन की ओर से पीपीपी की तर्ज पर एक रेस्टोरेंट भी बनाया जा रहा है. अगले 2 दिनों में यह रेस्टोरेंट्स है तैयार हो जाएगा और बद्रीनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर क्वालिटी का खाना मिलेगा.

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

गंगा सप्तमी 27 अप्रैल, क्या है सही तिथि, जानिए पूजा विधि

गंगा सप्तमी  27 अप्रैल, क्या है सही तिथि, जानिए पूजा विधि*


*🚩🌺गंगा नदी का महत्व हम सभी जानते हैं। गंगा जल की पवित्रता पर ग्रंथों में कई उल्लेख मिलते हैं। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसी दिन मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं।*
 
*🚩🌺गंगा नदी और गंगा जल की तरह ही हिंदू धर्म में गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा का महत्व है। इस दिन मां गंगा की पूजा करने से, जल को स्पर्श करने, स्मरण करने घर में ही गंगा जल का आचमन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।* 
 
*🚩🌺गंगा सप्तमी पर गंगा नदी में स्नान से करोड़ों पापों का नाश होता है। अनंत पुण्य मिलता है। इस दिन दान करना श्रेष्ठ माना गया है। गंगा सप्तमी के दिन स्नान-दान पूजा और मंत्र से सहत का साथ मिलता है, रिश्तों में मिठास आती है। धन खूब आता है, दान-धर्म में रूचि बढ़ती है। जीवन में खुशियां आती हैं और संतान सुख प्राप्त होता है।*

*🚩🌺लेकिन वास्तव में गंगा नदी के प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। आंकड़ों में गंगा नदी का सच डराने वाला है।*  

*🚩🌺गंगा सप्तमी 2023 तिथि* 

*🚩🌺वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरुआत 26 अप्रैल 2023 को सुबह 11 बजकर 27 मिनट पर हो रही है। ये तिथि अगले दिन 27 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी। शास्त्रों में तीर्थ स्नान के लिए ब्रह्म मुहूर्त को उत्तम बताया गया है, इसलिए 27 अप्रैल 2023 को गंगा स्नान करना शुभ होगा। 27 अप्रैल को मां गंगा की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजे से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक है। विविध मतानुसार 26 और 27 अप्रैल दोनों दिन गंगा सप्तमी मनाई जा रही है। लेकिन शास्त्र सम्मत तिथि 27 अप्रैल अधिक शुभ है।*

*🚩🌺गंगा सप्तमी पूजा विधि*

*🚩🌺गंगा सप्तमी के दिन यदि आप गंगा नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो सूर्योदय से पहले उठकर घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।*
 
*🚩🌺इसके बाद अपने घर के मंदिर में मां गंगा की मूर्ति या तस्वीर के साथ कलश की स्थापना करें।*

*🚩🌺इस कलश में रोली, चावल, गंगाजल, शहद, चीनी, इत्र और गाय का दूध इन सभी सामग्रियों को भर कर कलश के ऊपर नारियल रखें और इसके आसपास मुख पर अशोक के पांच पत्ते लगा दें। साथ ही नारियल पर कलावा बांध दें।*
 
*🚩🌺फिर देवी गंगा की प्रतिमा या तस्वीर पर कनेर का फूल, लाल चंदन, फल और गुड़ का प्रसाद चढ़ाकर मां गंगा की आरती करें।*
 
*🚩🌺साथ ही 'गायत्री मंत्र' तथा गंगा सहस्त्रनाम स्त्रोत का का जाप करें।* 

*🚩🌺धार्मिक मान्यता*

*🚩🌺गंगा सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर गंगा नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ होता है।* 
 
*🚩🌺इस दिन गंगा जी में डुबकी लगाने से जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है।*

*🚩🌺साथ ही सभी तरह के पाप मिट जाते हैं।*
 
   *🌺🌻उपाय🌺🌻* 

*🚩🌺यदि किसी व्यक्ति के घर में हमेशा अनबन या क्लेश भरा माहौल बना रहता है तो उसे अपने पूरे घर में पूजा के बाद गंगा जल का छिड़काव करना चाहिए।* 
 
*🚩🌺इससे घर का क्लेश भी दूर होगा साथ ही नकारात्मकता दूर होगी और सकारात्मकता का प्रवेश होगा।* 
 
*🚩🌺जो व्यक्ति ग्रह दोष से पीड़ित हैं उन्हें भगवान शिव की पूजा के बाद उनका गंगा जल से अभिषेक करना चाहिए।*
 
*🚩🌺गंगा सप्तमी पर एक कलश में पानी लेकर उसमें थोड़ा सा गंगा जल मिला लें। अब इस जल को पीपल की जड़ों में चढ़ाएं। इससे ग्रह दोष से उत्पन्न परेशानियों से छुटकारा मिलेगा।* 

*🚩🌺कर्ज से परेशान हैं तो पीतल के कलश में गंगाजल लेकर घर की उत्तर पूर्व दिशा के कोने में गंगा जल को रख दें। कलश के मुंह को लाल कपड़े से ढक दें। इस उपाय से कर्ज से धीरे धीरे राहत मिलने लगती है।*  
 
*🚩🌺यदि नौकरी संबंधी समस्या से परेशान हैं तो गंगा सप्तमी से लेकर 40 दिन तक पीतल या चांदी के कलश में गंगाजल की 11 बूंदें शुद्ध सामान्य जल में मिलाकर  डालकर 5 बेलपत्र के साथ शिवलिंग पर अर्पित करें।*
 
*🚩🌺विवाह में बाधा आ रही है तो नहाने के पानी में गंगाजल और चुटकी भर हल्दी मिलाकर लगातार 21 दिन स्नान करें।*

 
*🌺🌻गंगाजल के नियम* 

*🌺🌻गंगा जल को कभी भी प्लास्टिक के बर्तन में न रखें।* 

*🌺🌻गंगाजल को कभी भी जूठे हाथ या फिर जूते-चप्पल पहनकर न छुएं।*

*🌺🌻गंगाजल को किसी अंधेरे वाली जगह पर बंद करके नहीं रखना चाहिए।* 

*🌺🌻गंगा जल को हमेशा अपने घर के ईशान कोण यानि पूजा घर में ही रखना चाहिए।*

*🕉️मां गंगा का मंत्र : ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः'* 
 
*🌺🌻गंगा में स्नान करते समय हमेशा 3, 5, 7 या 12 डुबकियां लगाना अच्छा बताया गया है।* 
 
*🌺🌻यदि आप तीन डुबकी लगा रहे हैं तो आप एक डुबकी देवी-देवताओं के नाम से, एक अपने पुरखों के नाम से और एक अपने परिवार के नाम से लगाएं।*

🚩🌻🌺🚩🌻🌺🚩🌻🌺🚩

भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार

एक बार माता लक्ष्मी गहनों से सुसज्जित होकर भगवान विष्णु के पास आईं। भगवान विष्णु उन्हें देखकर मुस्कुराए माता लक्ष्मी ने उसे अपना अपमान समझा और भगवान विष्णु को श्राप दिया ''कि आपका मस्तक आपके धड़ से विलग हो जाएगा ''। उसी समय हयग्रीव नाम का एक पराकर्मी दानव सरस्वती नदी के तट पर चला गया और वहां उसने माता पार्वती की घोर तपस्या आरम्भ कर दी। माता पार्वती ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा तो वह बोला ''कि हे माते मुझे अमरता का वर दीजिए ’'। माता पार्वती ने कहा '' कि हे असुर राज संसार में जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी अवश्य होती है यह विधि का विधान है ''। जब माता पार्वती ने हयग्रीव को अमरता का वर देने से इंकार किया तो वह बोला कि ''हे मां मैं ही इस सृष्टि में एक ऐसा प्राणी हूं जिसका सिर घोड़े का और धड़ मनुष्य का है सो मुझे वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु हयग्रीव के ही हाथों हों ''। माता पार्वती तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गई। इस वरदान का उसने दुरुपयोग शुरू कर दिया क्योंकि वह सोचने लगा कि एकमात्र वही सृष्टि पर ऐसा है जो हयग्रीव है इसलिए उसने ब्रह्मा जी से वेदों की शक्तियों को अपने भीतर समाहित कर लिया जिससे वेद शक्तिहीन हो गए और संसार से ज्ञान का प्रकाश हट
गया और पाप का अंधकार छा गया। भगवान विष्णु को उसने युद्ध के लिए ललकारा। भगवान विष्णु तत्काल गरुड़ पर आरूढ़ होकर हयग्रीव से युद्ध करने गए। दोनों का युद्ध कई दिनों तक चला। दोनों को युद्ध करते हुए एक सप्ताह हो गया था आठवें दिन हयग्रीव तथा भगवान विष्णु दोनों थककर विश्राम करने लगे। ब्रह्मा जी ने उस समय अपने तेज़ से एक कीड़ा उत्पन्न किया और उसे आदेश दिया कि वह नारायण के धनुष की प्रत्यंचा काट दे। उसने आदेश मानते हुए ऐसा ही किया और भगवान विष्णु के धनुष की प्रत्यंचा काट दी जिससे भगवान विष्णु का सिर उनके धड़ से अलग हो गया उस कारण चारों ओर अन्धकार छा गया। देवताओं ने अश्विनी कुमारों का स्मरण किया। ब्रह्मा जी भी एक घोड़े की गर्दन ले आए। अश्विनी कुमारों ने भगवान विष्णु के धड़ से घोड़े की गर्दन का जुड़ाव किया जिसके कारण भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ। हयग्रीव रूपी विष्णु तथा हयग्रीव में बहुत भयानक युद्ध चला। हयग्रीव रूपी भगवान विष्णु ने एक बाण चलाया जिससे सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ और सुदर्शन चक्र ने पलक झपकते ही हयग्रीव का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने दुष्ट दानव हयग्रीव का वध करके वेदों की शक्तियों को उसके भीतर से निकलकर ब्रह्मा जी को सौंप दिया।

शंकरो शंकर: साक्षात्’

शंकरो शंकर: साक्षात्’ 

एक वृद्ध सन्यासी ओंकारेश्वर क्षेत्र में एक गुफा के भीतर तपस्यारत था। शरीर की अवस्था अब ऐसी न थी कि वह यात्राएं कर सकें। सन्यासी का प्रभाव ऐसा था कि जो जंगली पशु सदा हिंसक रहते, वे गुफा के समीप आते ही शांत हो जाते।

सन्यासी का सारा समय ध्यान में गुजरता, उसे प्रतीक्षा थी किसी के आगमन की। उसे परंपरा से प्राप्त ज्ञान किसी को सौंप कर ही इस संसार से विदा लेनी थी। प्रतीक्षा लंबी होती जा रही थी, लेकिन विश्वास दृढ़ था। 

एक दिन वहां से बहती नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई। नर्मदा का उफान देखकर किसी की हिम्मत नही थी कि कोई उसके समीप भी जा सके। पशु पक्षियों में भगदड़ मच गई, शोर मचाती नर्मदा हर तट, बांध को तोड़ती जा रही थी।

एक बालक जिसने भगवा रंग के वस्त्र पहने थे, माथे पर त्रिपुंड, शरीर पर यज्ञोपवीत, सर पर गोखुरी शिखा, गले मे रुद्राक्ष और चेहरे पर सूर्य सा तेज औऱ हाथ म् कमंडल पकड़ा हुआ था, नर्मदा के समीप आकर खड़ा हो गया। वह रुक नही सकता था, उसने शांत चित्त से नर्मदा को देखा, उफान देखकर अंदाजा हो गया कि अभी नदी को पार नही किया जा सकता। उस बाल ब्रह्मचारी ने माँ नर्मदा को प्रणाम किया औऱ नर्मदा की स्तुति करते हुए कहा,

"सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ||"

इस नर्मदाष्टकम को सुनकर देखते ही देखते नर्मदा उसके कमंडल में आकर समा गई।

नदी के दूसरे छोर पर जंगल में स्थित गुफा में समाधिरत सन्यासी की आंखे खुल गई, वह जान गया कि प्रतीक्षा समाप्त हुई। तभी बाल ब्रह्चारी उसके सामने आकर खड़ा हो गया। दोनों ने एक दूसरे को देखा, ब्रह्मचारी ने सन्यासी को प्रणाम किया तो सन्यासी ने परम्परा के निर्वाहन हेतु उसे बाहर से आशीर्वाद दिया, किन्तु मन ही मन प्रणाम किया।

सब कुछ जानते हुए भी लोकाचार की मर्यादा रखते हुए सन्यासी ने पूछा,"कौन हो तुम? अपना परिचय दो।"
बाल ब्रह्चारी जो मात्र आठ वर्ष का था, उसने कहा,

"मनो बुद्धय अहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम॥

मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।।"

निर्वाण षट्कम के रूप में ब्रह्चारी ने जो परिचय दिया वह सुनकर सन्यासी की आँखों से आंसू निकल आये औऱ उसने प्रेम से उस बालक को गले लगा लिया।

सन्यासी की प्रतीक्षा औऱ ब्रह्चारी की खोज समाप्त हुई। सन्यासी गोविंद भगवत्पाद ने ब्रह्चारी शंकर को विधिवत सन्यास की दीक्षा दी औऱ परंपरागत ज्ञान को शंकर को सौंप दिया।

यही बालब्रह्चारी शंकर, आदि गुरु शंकराचार्य बने जो स्वयं शिवातार थे। वैशाख शुक्ल पंचमी को 507 ईसापूर्व  केरल के कलाड़ी ग्राम में जन्मे आदिगुरु ने महाराज सुधन्वा की सहायता से वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया। उन्होंने चार मठों की स्थापना की, पूर्व में गोवर्धन, उत्तर में जोशी, पश्चिम में शारदा औऱ दक्षिण में श्रृंगेरी।

आदिगुरु शंकराचार्य भगवान की आज 2530वीं जयंती है, 
आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

#जय_भूतेश्वर

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

श्री आद्य शंकराचार्य जयंती आज

श्री आद्य शंकराचार्य जयंती आज

आद्य शंकराचार्य एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे। आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के कालड़ी में एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इसी उपलक्ष्य में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष आद्यगुरू शंकराचार्य जयंती 25 अप्रैल 2023, को मनाई जाएगी। हिन्दू धार्मिक मान्यता अनुसार इन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है यह अद्वैत वेदान्त के संस्थापक और हिन्दू धर्म प्रचारक थे। आद्य शंकराचार्य जी जीवनपर्यंत सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासों ने हिंदु धर्म को नव चेतना प्रदान की।

आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवसर पर शंकराचार्य मठों में पूजन हवन का आयोजन किया जाता है। देश भर में आदि शंकराचार्य जी को पूजा जाता है। अनेक प्रवचनों एवं सतसंगों का आयोजन भी होता है। सनातन धर्म के महत्व पर की उपदेश दिए जाते हैं और चर्चा एवं गोष्ठी भी कि जाती है।

मान्यता है कि इस पवित्र समय अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन धर्म यात्राएं एवं शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया जिस कारण आदि शंकराचार्य जी को हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है, आदि शंकराचार्य, जी को जगद्गुरु  एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है।

आदि शंकराचार्य’ की जन्म कथा 
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असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था। दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए। इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहाँ जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो इन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की इनकी श्रद्धा पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।

शिवगुरु ने प्रभु शंकर से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा।

इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य ने शैशव में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है। सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना की उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी अपने इन्हीं महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

आदि शंकराचार्य जयंती का महत्व 
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आदि शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है।

इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है। इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है।

आदि शंकराचार्य के कुछ उपदेश
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अज्ञान का नाश ही मोक्ष है।
समय पर दिया गया दान अनमोल होता है।
सत्य वह है जो जीवों की सहायता करे।
स्वयं का निर्मल मन ही सबसे बड़ा तीर्थ है।
वह ज्ञान है जो ब्रह्म से जुड़ने में मदद करता है।


शनिवार, 22 अप्रैल 2023

जाती का विनाश नही सुधार जरूरी @ महेश्री

भारत भाग्य विधाता 
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जाती का  विनाश नही सुधार जरूरी @ महेश्री 
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दुनिया मे एकल धर्मं के देश अधिक.
 जितनी ऊनकी नज़र जाती उतने को ही वे दूरी / रोशनी समझते .
भारत जो आज हे,  वो अतीत की निरन्तरता  मे हे .
ना  तो पूरा आधुनिक तथा ना  ही पुरातन  ही .
दुनिया की लगभग सभ्यताये यूनान  से रोम तक खत्म हो गयी 
लेकिन भारत की सभ्यता  क्यो बची रही?
हमारी  सभ्यता बाकी की तरह खुद  को नवीन नही कर पायी ?
सनातनता  को उपलब्धी मानने वाले गैर उत्पादक अधिक नही ?
अतीत से बचा के जो लाये हे तथा जो हे वो भविष्य मे जा  पायेगा 
वो ही सनातन , बाकी सब त्यागने जैसा कचरा ?
बाबा / प्रचारक को सनातनता  पे बोलने की क्या  ज़रुरत ?
बिना ग्रहस्त / विवाहित हुये अनुभवहीनता  की बाते क्या  काल्पनिक भर नही सेक्स के आनन्द की सनातनता  को लेकर ?
गांधी ने सत्य तथा अहिंसा  की बात की ना  की ब्रहमचर्य  की ?
उन्होने प्रयोग का  साहस  किया  अंत तक तथा उसको नपुन्शक  लोगो के लिए छोड़ दिया ,की वो झूट को महिमा  माडित  करे तो करते रहे सदियो की झूट की तरह .
वाजपयी ने खुद को अविवाहित  बोला ना  की ब्रहमचारी .
सनातनी  होने के लिए सत्य का  चिंतन  जरूरी ये हमने देखा .
वाजपयी भारत रत्न /गांधी  को राष्ट्रपिता  सनातनी  होने के लिए?
 बाबा तथा प्रचारक जी   को अतीत / उधार का   नही खुद का  अनुभव  बताना / बोलना चाहिये अगर  बताना  ही हो तो .
भारत  मे जाती  तथा वर्ग हे जबकी दुनिया मे वर्ग  भर ही .
जाती अगर व्यवस्था हे तो ठीक तथा बाधा  हो तो लांघने योग्य .
ईश्वर , धर्मं तथा जाती अतीत के इजाद  हे मनुष्य के , 
अभी तो जिसको विवेक नही वो ही इनको  सनातन मानता?
विग्यान , विवेक तथा व्यक्ती   ने ईश्वर , धर्मं तथा जाती को छोटा किया  हे दुनिया मे तथा भारत क्या  पीछे रहेगा ?
भारत मे 1947 मे ये  गलती रह गयी संविधान लिखते हुये ---
सरकारी  सेवक / सेविका को  अपनी जाती लिखने का  अधीकार ना  होता  तथा नाम के साथ  नम्बर  लिखने की तजबीज  होती  तो ?
जिस जगह जो जाती अधिक होती उसको वंहा से संसद के लिए चुनाव लडने की अनुमती ना  होती तो जातिवाद  क्या बढता ?
जिस जगह से जो उम्मीदवार जीतता  वंहा से  उसकी जाती को सरकारी सेवा मे जाने की अनुमती  नही होती  तो क्या  जाती खत्म नही हो जाती ?
एक परिवार एक वोट की कल्पना होती तो लोग जाती की भीड बढाते इतनी की चीन से अधिक हो गये जबकी  क्षेत्र  थोडा !
अम्बेडकर ने जाती के विनाश  को जरूरी बताया  तथा गांधी  ने उसपे अपने विचार यंग इन्डिया  मे उनके साथ साथ  लिखे .
 दोनो व्यस्त  थे तथा दोनो ने जाती से बाहर विवाह को कर के दिखाया खुद ने / परिवार मे .
जाती को विवाह के लिए अछूत  क्यो  समझे ?
जाती मे हो  विवाह तो ठीक तथा जाती से बाहर हो तो भी बढ़िया? 
जाती विहीन विवाह  तो श्रेष्ठ विवाह क्योकी  इसमे जाती होना या  नही कोई महत्व की बात नही .
खारा  पानी खुदके कुयें का  तो जन्हा मीठा पानी हो उसको उपयोग मे लेना क्या  गलत ?
माहेश्वरी धर्मं किसी किताब तथा व्यक्ती की गुलामी मे  नही .
नीम  ही इसकी सनातनता जो दुनिया के पर्यावरण को  भी ठीक.
जाजू ,बिडला , सोनी से लेकर मुझ तक जाती को सुधारा अनेको  ने  अपने अपने तरीको से .
पूजारियो ने ये भ्रम फेलाया की क्षत्रीय  से वेश्य  हुये माहेश्वरी ! 
कोई ऊपर से नीचे जाता अगर वर्ण को  सामाजिकता की सीढी समझे  तो भी ?
क्षत्रीय  से ऊपर पुजारी को लांघ के नया वर्ण बना होगा महेश्री ?
पुजारी कथा की लोहा गलने  से पत्थर के अशापित  होने से हुये 
माहेश्वरी , सही नही क्योकी  दुनिया मे कहीं कोई होता ऐसे पैदा  ?
माहेश्वरी होना भीड / बहुमत के होने को सत्य मानना  नही होता .
सत्य को सत्य मानने वाला  कभी उन्मादी नही होता कथा वाचक की तरह जिसकी आय पे सरकार जी एस टी नही लेती दुकानो की तरह .जिसे शुरु करवा रहे कवियो  की तरह .
विविकेत सत्य को सनातन समझे वो माहेश्वरी , सनातनी  भी .
अनाज के आखिरी कण  तथा पानी  की आखिरी बूंद को उपयोग लेने वाले रहे हे मारवाडी माहेश्वारियो के पुरखे , जो मेरे भी .
अतीत को भविष्य की तरफ बिना परखे, जो  जाने ना  दे वो मेरी तरह का  माहेश्वरी ?
 आप इसको पढ़ रहे तथा आपने नीम / पेड  लगा दिया धरती  माता पे तो आपका शौर्य आत्मतोश  वाला .
धन को विचार  समझने वाले बाकी जो भी हो शौर्य वाले नही . 
@ महेश्री 9967600972

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

मनुष्य के कर्म - पाप-पुण्य

 ।। श्रीहरि: ।।
(मनुष्य के कर्म)


महर्षि शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सातवें  दिन समझाते हुए अंतिम उपदेश दिया-

हे राजन ! मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेले ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते हैं। अकेले ही वह पाप-पुण्य का भोग करता है परन्तु धर्म ही उसका अनुसरण करता है।

‘शरीर और गुण (पुण्यकर्म) इन दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि शरीर तो थोड़े ही दिनों तक रहता है किन्तु गुण प्रलयकाल तक बने रहते हैं। जिसके गुण और धर्म जीवित हैं, वह वास्तव में जी रहा है।’

वेदों में जिन कर्मों का विधान है, वे धर्म (पुण्य) हैं और उनके विपरीत कर्म अधर्म (पाप) कहलाते हैं। मनुष्य एक दिन या एक क्षण में ऐसे पुण्य या पाप कर सकता है कि उसका भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूर्ण न हो।

सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म- ये सब मनुष्य के कर्मों के साक्षी हैं।



सूर्य रात्रि में नहीं रहता और चन्द्रमा दिन में नहीं रहता, जलती हुई अग्नि भी हर समय नहीं रहती; किन्तु रात-दिन और संध्या में से कोई एक तो हर समय रहता ही है। दिशाएं, आकाश, वायु, पृथ्वी, जल सदैव रहते हैं, मनुष्य इन्हें छोड़कर कहीं भाग नहीं सकता, इनसे छुप नहीं सकता। मनुष्य की इन्द्रियां, काल और धर्म भी सदैव उसके साथ रहते हैं। कोई भी कर्म किसी- न किसी इन्द्रिय द्वारा किसी- न- किसी समय (काल) होगा ही। उस कर्म का प्रभाव मनुष्य के ग्रह-नक्षत्रों व पंचमहाभूतों पर पड़ता है। जब मनुष्य कोई गलत कार्य करता है तो धर्मदेव उस गलत कर्म की सूचना देते हैं और उसका दण्ड मनुष्य को अवश्य मिलता है।

पृथ्वी पर जो मनुष्य-देह है उसमें एक सीमा तक ही सुख या दु:ख भोगने की क्षमता है। जो पुण्य या पाप पृथ्वी पर किसी मनुष्य-देह के द्वारा भोगने संभव नही, उनका फल जीव स्वर्ग या नरक में भोगता है। पाप या पुण्य जब इतने रह जाते हैं कि उनका भोग पृथ्वी पर संभव हो, तब वह जीव पृथ्वी पर किसी देह में जन्म लेता है।

कर्मों के अवशेष भाग को भोगने के लिए मनुष्य मृत्युलोक में स्थावर-जंगम अर्थात् वृक्ष, गुल्म (झाड़ी), लता, बेल, पर्वत और तृण- आदि योनि प्राप्त करता है। ये सब दु:खों के भोग की योनियां हैं। वृक्षयोनि में दीर्घकाल तक सर्दी-गर्मी सहना, काटे जाने व अग्नि में जलाये जाने सम्बधी दु:ख भोगना पड़ता है। यदि जीव कीटयोनि प्राप्त करता है तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा दी गयी पीड़ा सहता है, शीत-वायु और भूख के क्लेश सहते हुए मल-मूत्र में विचरण करना आदि दारुण दु:ख उठाता है।

इसी तरह से पशुयोनि में आने पर अपने से बलवान पशु द्वारा दी गयी पीड़ा का कष्ट पाता रहता है। पक्षी की योनि में आने पर कभी वायु पीकर रहना तो कभी अपवित्र वस्तुओं को खाने का कष्ट उठाना पड़ता है। यदि भार ढोने वाले पशुओं की योनि में जीव आता है तो रस्सी से बांधे जाने, डण्डों से पीटे जाने व हल जोतने का दारुण दु:ख जीव को सहना पड़ता है।

इस संसार-चक्र में मनुष्य घड़ी के पेण्डुलम की भांति विभिन्न पापयोनियों में जन्म लेता और मरता है-


माता-पिता को कष्ट पहुंचाने वाले को कछुवे की योनि में जाना पड़ता है।

मित्र का अपमान करने वाला गधे की योनि में जन्म लेता है।

छल-कपट कर जीवनयापन करने वाला बंदर की योनि में जाता है।

अपने पास रखी किसी की धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य कीड़े की योनि में जन्म लेता है।

विश्वासघात करने से मनुष्य को मछली की योनि मिलती है।

विवाह, यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाले को कृमियोनि मिलती है।

देवता, पितर व ब्राह्मणों को भोजन न कराकर स्वयं खा लेता है वह काकयोनि (कौए) में जाता है।

इस प्रकार बहुत-सी योनियों में भ्रमण करके जीव किसी महान पुण्य के कारण मनुष्ययोनि प्राप्त करता है। मनुष्ययोनि प्राप्त करके भी यदि दरिद्र, रोगी, काना या अपाहिज जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पड़ता है।



इसलिए दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर संसार-बंधन से मुक्त होने के लिए प्राणी को भगवान विष्णु की सेवा-आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता व संसार-बंधन से छुड़ाने वाले मोक्षदाता हैं। भगवान विष्णु के जो-जो स्वरूप हैं, उनकी भक्ति करने से मनुष्य संसार-सागर आसानी से पार कर परमध ाम को प्राप्त करता है।

भगवान विष्णु ने संसार-सागर से पार होने का उपाय भगवान रुद्र को बताते हुए कहा कि ‘विष्णुसहस्रनाम’ स्तोत्र से मेरी नित्य स्तुति करने से मनुष्य भवसागर को सहज ही पार कर लेता है।

‘जिनका मन भगवान विष्णु की भक्ति में अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियों के लिए भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तों के हाथ में ही रहती है।’
(नारदपुराण)

भक्त अपने आराध्य के लोक में जाते हैं। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य-मुक्ति है। भगवान के समान ऐश्वर्य प्राप्त करना सार्ष्टि-मुक्ति है। भगवान के समान रूप पाकर वहां रहना सारुप्य-मुक्ति है। भगवान के आभूषणादि बनकर रहना सामीप्य-मुक्ति कहलाती है। भगवान के श्रीविग्रह में मिल जाना सायुज्य-मुक्ति है।

जिस जीव को भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है, वह भगवान की इच्छा से उनके साथ या अलग से संसार में दिव्य जन्म ले सकता है। वह कर्मबन्धन में नहीं बंधा होता है। संसार में भगवत्कार्य समाप्त करके वह पुन: भगवद्धाम चला जाता है।

मनुष्य बिना कर्म किए रह नहीं सकता। कर्म करेगा तो पाप-पुण्य दोनों होंगे। लेकिन जो मनुष्य सबमें भगवत्दृष्टि रखकर भगवान की सेवा के लिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और भगवान की प्रसन्नता के लिए कर्म करता है तो उसके कर्म भी अकर्म बन जाते हैं और कर्म-बंधन में नहीं बांधते हैं। वह संसार में रहते हुए भी नित्यमुक्त है।

तत्त्वज्ञानी पुरुष संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। उनके प्राण निकलकर कहीं जाते नहीं बल्कि परमात्मा में लीन हो जाते हैं। सती स्त्रियां, युद्ध में मारे गए वीर और उत्तरायण के शुक्ल-मार्ग से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं।

गीता में शुक्ल तथा कृष्ण मार्ग कहकर दो गतियों का वर्णन है-

जिनमें वासना शेष है, वे धुएं, रात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन के देवताओं द्वारा ले जाए जाते हैं। ऊर्ध्वलोक में अपने पुण्य भोगकर वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

जिनमें कोई वासना शेष नहीं है, वे अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के देवताओं द्वारा ले जाये जाते हैं। वे फिर पृथ्वी पर जन्म लेकर नहीं लौटते हैं।

पितृलोक-
यह एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है। एक जीव को पृथ्वी पर जिस माता-पिता से जन्म लेना है, जिस भाई-बहिन व पत्नी को पाना है, जिन लोगों के द्वारा उसे सुख-दु:ख मिलना है; वे सब लोग अलग-अलग कर्म करके स्वर्ग या नरक में हैं। जब तक वे सब भी इस जीव के अनुकूल योनि में जन्म लेने की स्थिति में न आ जाएं, इस जीव को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। पितृलोक इसलिए एक प्रकार का प्रतीक्षालोक है।

प्रेतलोक-
यह नियम है कि मनुष्य की अंतिम इच्छा या भावना के अनुसार ही उसे गति प्राप्त होती है। जब मनुष्य किसी प्रबल राग-द्वेष, लोभ या मोह के आकर्षण में फंसकर देह त्यागता है तो वह उस राग-द्वेष के बंधन में बंधा आस-पास ही भटकता रहता है। वह मृत पुरुष वायवीय देह पाकर बड़ी यातना भरी योनि प्राप्त करता है। इसीलिए कहा जाता है- ‘अंते मति: सो गति:! अत: हे राजन!भगवान का भजन ही श्रेयस्कर है।

इसी बात को गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में लिखा है-

उमा कहउं मै अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।

निज अनुभव मैं कहउं खगेसा।
विनु हरि भजन न जाइ कलेसा।।

।। जय भगवान श्रीहरि विष्णु ।।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

केदारनाथ कि यात्रा पर जाते समय क्या-क्या लेकर जाना चाहिए |

केदारनाथ कि यात्रा पर जाते समय क्या-क्या लेकर जाना चाहिए |
What to carry while traveling to Kedarnath in Hindi



नमस्कार साथियों आज के इस आर्टिकल में हम केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आपको क्या-क्या लेकर जाना चाहिए इसके बारे में पूरी जानकारी जानने वाले हैं। इस आर्टिकल में हम केवल वैसे ही वस्तु के बारे में बात करेंगे, जिसे ले जाना आपके लिए जरूरी होगा। इस आर्टिकल में बताए गए जानकारी के अलावा भी आप कई सारी अपने जरूरत के हिसाब से वस्तुओं को ले जा सकते हैं। तो चलिए हम जानते हैं, कि आपको केदारनाथ की यात्रा के लिए कौन-कौन से सामान अपने साथ ले जाना जरूरी होता है।

इस आर्टिकल में अपने साथ ले जाने वाले बताए गए जरूरी सामान अगर आप चार धाम की यात्रा पर भी जा रहे हैं, तो भी तकरीबन सभी सामान ले जाना आपके लिए जरूरी होगा। तो चलिए अब हम जान लेते हैं कि आपको केदारनाथ की यात्रा या चार धाम की यात्रा पर जाते समय अपने साथ क्या-क्या जरूरी होता है ले जाना।
विषय - सूचीकेदारनाथ / चार धाम की यात्रा पर जाते समय अपने साथ ले जाने वाले सामानों की लिस्ट –केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय कौन कौन से डॉक्यूमेंट अपने साथ ले जाना चाहिए ?
केदारनाथ की यात्रा पर अपने साथ कितना और कैसा लगेज (बैग) ले जाना चाहिए ?
केदारनाथ की यात्रा पर जाने के लिए अपने साथ कैसा कपड़ा ले जाना उचित रहेगा ?
केदारनाथ की यात्रा के लिए कैसा जूता ले जाना उचित रहेगा ?
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय बारिश से बचने के लिए अपने साथ क्या-क्या ले जाना चाहिए ?
केदारनाथ की यात्रा पर ले जाने वाले कुछ जरूरी सामान –
केदारनाथ की यात्रा के लिए अपने साथ कौन-कौन से दवा ले जाना चाहिए ?
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय अपने साथ कैश ले जाना उचित रहेगा या नहीं ?
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय अपने साथ कौन सी कंपनी का सिम ले जाना चाहिए ?
केदारनाथ / चार धाम की यात्रा पर जाते समय अपने साथ ले जाने वाले सामानों की लिस्ट –
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय कौन कौन से डॉक्यूमेंट अपने साथ ले जाना चाहिए ?


केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आपके पास आधार कार्ड और यात्रा पास होना जरूरी है। यात्रा पास एक वयस्क व्यक्ति के अलावा बच्चों का भी होना काफी ज्यादा जरूरी है। वैसे आपके पास ये दोनों डॉक्यूमेंट रहेगा, तो आप अपना केदारनाथ की यात्रा आसानी से पूरा कर सकते हैं।

इन दोनों डॉक्यूमेंट के अलावा आप अपने हिसाब से कोई और डॉक्यूमेंट भी ले जा सकते हैं। एक और बात आप अपने साथ ले जाने वाले आधार कार्ड या यात्रा पास का फोटो कॉपी अपने साथ जरूर ले जाए, क्योंकि इसकी जरूरत कभी भी आपको पड़ सकती है।
केदारनाथ की यात्रा पर अपने साथ कितना और कैसा लगेज (बैग) ले जाना चाहिए ?



केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आपको एक बात की ध्यान रखनी है, कि आप अपने साथ ले जाने वाले जरूरतमंद सामानों को ट्रॉली वाले लगेज (बैग) में ले जाने से बचें, अगर आपके पास खुद की गाड़ी नहीं है तो। क्योंकि आपको ट्रॉली वाले लगेज से कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है।

आपको बता दें कि केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आप अपने साथ दो बैग ले जाए, जिनमें एक बैग 70 से 80 लीटर एवं दूसरा बैग 30 से 40 लीटर का आप अपने साथ ले जाए, यही आपके लिए उचित रहेगा। ऐसा इसलिए कि आप अपने जरूरतमंद सामान जिसे आप कभी-कभी उपयोग करते हैं, उसे आप बड़े बैग में और जिसे आप एनी टाइम प्रयोग में लाते हैं, उसे छोटे बैग में ले जा सकते हैं।

एक बात और जब आप केदारनाथ ट्रेक की यात्रा शुरू करेंगे तो आप अपने साथ घर से ले गए अपना पूरा सामान तो आप केदारनाथ ट्रेक की यात्रा पर ले जाएंगे नहीं, इसलिए जरूरतमंद सामान जो कि केदारनाथ की यात्रा के समय काम आने वाला होगा उसे आप जो छोटा बैग आपके पास होगा उसमे ले जा सकते हैं।

केदारनाथ की यात्रा पर जाने के लिए अपने साथ कैसा कपड़ा ले जाना उचित रहेगा ?

केदारनाथ की यात्रा पर जब भी आप जाएं तो आप अपने साथ दोनों टाइप के कपड़े यानी कि गर्म मौसम के दौरान उपयोग में आने वाले कपड़े और ठंड के मौसम के दौरान उपयोग में आने वाले कपड़े जरूर साथ ले जाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी आप केदारनाथ की यात्रा पर जाएंगे तो आपको जैसे-जैसे दिन ढलेगा वैसे-वैसे ठंड का सामना अधिक करना होगा।

कभी-कभी तो ऐसा होता है कि गर्मी के दिनों में भी वहां पर स्नोफॉल देखने को मिल जाता है। या कभी-कभी बारिश होने के वजह से भी ठंड में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा सकती है। केदारनाथ की यात्रा पर आप ऊनी वाले जैकेट, हैंड ग्लॉब्स एवं एक कैप अवश्य ले जाएं। इन सबके अलावा आप अपने पहनावे एवं जरूरत के हिसाब से कपड़े ले जा सकते हैं।

केदारनाथ की यात्रा के लिए कैसा जूता ले जाना उचित रहेगा ?

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय जूता एवं सॉक्स को लेकर भी लोगों के मन में कन्फ्यूजन होता है, कि यहां पर कैसा जूता एवं कितने जोड़ी सॉक्स ले जाए। आपको बता दें कि आप केदारनाथ की यात्रा पर लेदर वाले जूते या कपड़े वाले जूते ले जाने से बचें, क्योंकि केदारनाथ की यात्रा पर आपको कई जलप्रपात से होकर गुजारना पड सकता है, जिसकी वजह से आपके लेदर वाले जूते या कपड़े वाले जूते आसानी से भीग जाएंगे और सूखने में काफी समय भी लगेगा।

आप यहां पर ट्रेकिंग वाले जूते ले जाएं यह आपके लिए अच्छा रहेगा। इसके अलावा आप यहां पर अपने साथ चार से पांच जोड़ी सॉक्स जरूर ले जाएं।
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय बारिश से बचने के लिए अपने साथ क्या-क्या ले जाना चाहिए ?


केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आप अपने साथ अपने जरूरत के हिसाब से छाता, रेनकोट एवं अपने साथ ले जाने वाले बैग या सामान के लिए रैन कवर अवश्य ले जाए। एक बात और जितना हो सके आप इन सामानों को अपने शहर से ही खरीद ले। क्योंकि जहां से केदारनाथ की यात्रा शुरू होती है, वहां पर यह सामान मिल तो जाएंगे पर उनकी क्वालिटी कोई खास नहीं होती है।

केदारनाथ की यात्रा पर ले जाने वाले कुछ जरूरी सामान –

केदारनाथ की यात्रा पर आप अपने साथ एक टॉर्च अपने जरूरत के हिसाब से पावर बैंक भी साथ ले जाएं, क्योंकि केदारनाथ ट्रैक की यात्रा पर आपको मोबाइल वगैरह चार्ज करना पड सकता है। और वहां पर बिजली की उतनी सही से व्यवस्था है नहीं। आप अपने साथ एक पानी का बोतल भी अवश्य रखें, क्योंकि यात्रा के दौरान आपके पास बोतल रहने पर वाटरफॉल के पानी का उपयोग कर सकते हैं। इन सबके अलावा आप अपने साथ कुछ खाने के लिए ड्राई फ्रूट भी कैरी कर सकते हैं।

केदारनाथ की यात्रा के लिए अपने साथ कौन-कौन से दवा ले जाना चाहिए ?

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय आप अपने साथ कुछ मेडिसिन भी कैरी जरूर करें, क्योंकि केदारनाथ की यात्रा पर आपको कुछ दावा जैसे पेन किलर की दावा एवं स्प्रे और बुखार की दवा अवश्य ले जानी चाहिए। इसके अलावा आप अपने साथ कपूर भी जरूर ले जाएं, क्योंकि कभी आपको अगर अधिक थकान या सांस लेने में दिक्कत हो तो आप कपूर का उपयोग कर सकते हैं। इन सबके अलावा आप अपने साथ एक छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी ले जा सकते हैं।
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय अपने साथ कैश ले जाना उचित रहेगा या नहीं ?

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय कैस को लेकर बहुत से लोगों के मन में एक विचार आता है कि यहां पर कैश ले जाना उचित रहेगा या नहीं। तो आपको बता दें की केदारनाथ की यात्रा के दौरान आप अपने साथ अपने जरूरत के हिसाब से कैश जरूर रखें। क्योंकि केदारनाथ की यात्रा के समय आपको एटीएम तो दिखेगा और उसमें पैसा होगा या नहीं इसके बारे में कोई गारंटी नहीं है। अगर आप वहां पर किसी दुकान से पैसा निकलना चाहते हैं, तो आपको वह दुकानदार 5 या 10 पर्सेंट कमीशन ही ले लेगा। इसलिए आप अपने साथ अपने जरूरत के मुताबिक कैश जरूर ले जाएं।

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय कैस को लेकर एक और प्रश्न लोगों के मन में रहती है, कि क्या हम वहां पर यूपीआई ट्रांजैक्शन नहीं कर सकते। तो आपको बता दें कि यूपीआई ट्रांजैक्शन की व्यवस्था तो आपको कहीं कहीं देखने को मिल जाएंगी पर कभी-कभी नेटवर्क प्रॉब्लम फेस करने की वजह से आप UPI ट्रांजैक्शन नहीं कर पाएंगे। इसलिए आपको अपने साथ कैस ले जाना ही होगा।
केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय अपने साथ कौन सी कंपनी का सिम ले जाना चाहिए ?

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय लोगों के मन में सबसे बड़ा प्रश्न रहता है, कि यहां पर अपने साथ किस कंपनी का सिम लेकर जाना उचित रहेगा। तो आपको बता दें कि केदारनाथ की यात्रा पहले से काफी सरल हो गया है। पहले की तुलना में यहां पर तकरीबन सभी कंपनियों की नेटवर्क देखी जा सकती है।

लेकिन एक बात है कि सभी कंपनियों का नेटवर्क आपको केदारनाथ की यात्रा के दौरान सभी जगहों पर देखने को नहीं मिलेगी। कहीं पर जियो का नेटवर्क रहेगा तो idea नहीं, तो कभी idea का नेटवर्क रहेगा तो बीएसएनल का नहीं। इसलिए आप अपने साथ एक से अधिक कंपनी का सिम ले जाएं, यही आपके लिए उचित रहेगा।

केदारनाथ की यात्रा पर जाते समय हमें अपने साथ कौन-कौन से सामान ले जाना चाहिए, कौन-कौन से सामान की जरूरत पड़ती है के बारे में लिखा गया यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा हो तो आप इसे अपने दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ शेयर करें। ताकि जब वह भी यहां पर जाने का प्लान बनाएं तो उन्हें भी इसके बारे में जानकारी हो सके।

अगर आप इस आर्टिकल से जुड़ी हमें कोई राय या सुझाव देना चाहते हैं, तो आर्टिकल के अंत में कमेंट बॉक्स का ऑप्शन आपके लिए ही दिया गया है। वहां पर कमेंट बॉक्स में आप अपना राय या सुझाव हमारे लिए छोड़ सकते हैं।

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