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शुक्रवार, 12 मई 2023

गरुड़ संजीवनी.

गरुड़ संजीवनी...
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गरुड़ काष्ठ वास्तव में गरुड़ नामक एक विशाल वृक्ष की फली होती है जो देखने में किसी सर्प के समान लगती है और १ मीटर तक हो सकती है। इसके ऊपर एक बहुत महीन पारदर्शी परत चढ़ी रहती है जो देखने में किसी साँप की केंचुली के समान लगती है। यह एक दुर्लभ वृक्ष है और बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। ये इस पृथ्वी पर उत्पन्न सबसे प्राचीन वृक्षों में से एक है जिसकी उत्पत्ति लगभग ३ अरब वर्ष पहले बताई गयी है।

इसकी उत्पत्ति के बारे में एक कथा आती है कि जब अपनी माता विनता को अपनी विमाता कुद्रू के दासत्व से मुक्त कराने के लिए जब गरुड़ स्वर्ग से अमृत लेकर वापस आ रहे थे तो उसकी कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिर जाने के कारण एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई। गरुड़ के नाम पर ही उस वृक्ष का नाम गरुड़ वृक्ष पड़ा। अमृत से जन्में होने के कारण इसके गुणों को भी अमृत के समान ही बताया गया है।

जैसा कि बताया गया है, गरुड़ वृक्ष और उसकी लकड़ी अद्भुत औषधीय गुणों से भरी होती है। जिस प्रकार गरुड़ नागों के शत्रु माने गए हैं, ये वृक्ष भी कुछ वैसा ही है।

कहा जाता है कि जिस स्थान पर गरुड़ वृक्ष लगा होता है वहाँ से १०० मीटर की परिधि में कोई नाग अथवा सर्प नहीं आ सकता। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई सर्प इस वृक्ष के निकट जाएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।

गाँवों में लोग इस कारण भी इस वृक्ष को अपने घर के सामने लगाते हैं ताकि साँप और अन्य विषैले कीड़े मकोड़ों से उनकी सुरक्षा हो सके।

इस वृक्ष की पत्तियाँ भी बेलपत्र के समान ही तीन-तीन के समूहों में होती हैं। अपनी अद्वितीय औषधीय गुणों के कारण इसका एक नाम गरुड़ संजीवनी भी है। इसके वास्तु और ज्योतिष चमत्कार भी बताये गए हैं। कहते हैं जो कोई भी इसकी फली अपने शयनकक्ष में रखता है उसे सर्पों के दुःस्वप्न भी नहीं आते। इसे अपने पास रखने से मनुष्य को कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसकी फली पर कुमकुम लगा कर अपनी तिजोरी में रखने पर माता लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है।

सर्पदंश में ये फली साक्षात् संजीवनी के समान बताई गयी है। यदि किसी व्यक्ति को किसी सर्प ने काट लिया हो तो उस फली को जल में डुबा कर उस जल को पीड़ित को पिलाने से उसका विष तत्क्षण उतर जाता है। इस जड़ी को पानी में रात भर डुबा कर रखने के बाद यदि उससे किसी व्यक्ति को स्नान करा दिया जाये तो भयंकर से भयंकर विष भी उतर जाता है।

हालाँकि इसके विषय में कुछ भ्रामक जानकारियाँ भी फैली है जिसे बता कर लोगों को ठगा भी जाता है। ऐसी ही एक भ्रामक जानकारी दी जाती है कि ये फली अपने आप जमीन में गड़े खजाने को ढूँढ़ लेती है, जो कि सच नहीं है।

इसकी फली की भी एक अद्भुत विशेषता होती है कि ये सदैव पानी की धार के विपरीत दिशा में चलती है। यहाँ तक कि यदि इसके ऊपर आप पानी गिराएंगे तो ये उसकी धार के साथ-साथ ऊपर आ जाएगी। इसके अतिरिक्त शायद ही कोई निर्जीव चीज इस प्रकार पानी की धार के विरुद्ध तैर सके। इसे देखना वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं है।
हालाँकि वैज्ञानिक इसे चमत्कार नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार चूँकि गरुड़ वृक्ष की डली घुमावदार होती है इसी कारण ये पानी के विपरीत दिशा में तैरती है। किन्तु इस प्रकार की घुमावदार चीजें कई हैं जैसे अन्य लकड़ी, प्लास्टिक इत्यादि, किन्तु इनमें से कोई भी चीज इस प्रकार पानी की धार से विपरीत दिशा में नहीं तैर सकती। इससे इस वृक्ष की विशेषता सिद्ध होती है।

वैसे तो शहरों के लिए ये लकड़ी नयी है किन्तु आज भी देश के जंगलों में रहने वाली जनजाति इसका उपयोग करती है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड आदि राज्यों के आदिवासी लोग इस जड़ी का आज भी सर्पों से रक्षा के लिए उपयोग करते हैं।

गुरुवार, 11 मई 2023

कमाल की है ‘#मूंग_की_दाल’हम इसे बीमारियों में क्यों खाते हैं..?

कमाल की है ‘#मूंग_की_दाल’
हम इसे बीमारियों में क्यों खाते हैं..?

सभी जानते हैं कि दालें प्रोटीन से भरपूर होती हैं, लेकिन दालों में सबसे उत्तम, #स्वास्थवर्द्धक तथा #शक्तिवर्द्धक #दाल_मूंग की होती है।

● मूंग की दाल की खास बात है कि यह #सुपाच्य होती है।

● इसके अतिरिक्त मूंग की दाल में #कार्बोहाइड्रेट, कई प्रकार के #विटामिन, #फॉस्फोरस और #खनिज तत्व पाए जाते हें, जो अनेक बीमारियों से लड़ने की क्षमता रखते हैं।

● मूंग साबूत हो या धुली, पोषक तत्वों से भरपूर होती है।

● अंकुरित होने के बाद तो इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों #कैल्शियम, #आयरन, #प्रोटीन, #कार्बोहाइड्रेट और #विटामिन्स की मात्रा दोगुनी हो जाती है।अंकुरित मूंग दाल में #मैग्नीशियम, #कॉपर, #फोलेट, #राइबोफ्लेविन, #विटामिन_सी, #फाइबर, #पोटेशियम, #फॉस्फोरस, #मैग्नीशियम, #आयरन, #विटामिन_बी_6, #नियासिन, #थायमिन और #प्रोटीन होता है।

● कुछ लोगों को लगता है कि मूंग दाल बीमारी में खाने के लिए होती है, जबकि मूंग दाल में इतने पौष्टिक तत्व होते है कि अपनी खुराक में उसे शामिल करना ही चाहिए।

● मात्र एक कटोरी पकी हुई मूंग की दाल में 100 से भी कम केलौरी होती है।

● इसे खाने के बाद लम्बे समय तक भूख नहीं लगती है।

● रात के खाने में रोटी के साथ एक कटोरी मूंग दाल खाने से भरपूर पोषण मिलता है और जल्द ही बढ़ा वजन कम होता है।

● इस तरह मोटापा घटने में मूंग दाल महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

● शोध बताते हैं कि मूंग दाल खाने से त्वचा कैंसर से सुरक्षा भी मिलती है।

● मूंग की मदद से आसानी से रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है, साथ ही मूंग कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करती है।

● ये सोडियम के प्रभाव को कम कर देती है, जिससे रक्तचाप बढ़ता नहीं है।

● मूंग आयरन की कमी को पूरा करने में सक्षम है।
आमतौर पर, शाकाहारी लोग अपने खाने में कम आयरन लेते हैं।

● अपनी खुराक में मूंग को शामिल करके आयरन की कमी दूर की जा सकती है, जिससे एनीमिया का जोखिम भी अपनी आप कम हो जाएगा।

● दाद, खाज-खुजली की समस्या में मूंग की दाल को छिलके सहित पीस कर लेप बनाकर उसे प्रभावित जगह पर लगाने से लाभ होता है।

● टायफॉयड होने पर मूंग की दाल खाने से मरीज को बहुत आराम मिलता है।

● किसी भी बीमारी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है।

● मूंग की दाल खाने से शरीर को ताकत मिलती है।

● मूंग की दाल के लेप से ज्यादा पसीना आना भी रुक जाता है।

● दाल को हल्का गर्म करके पीस लें। फिर इस पाउडर में कुछ मात्रा पानी की मिला कर लेप की तरह पूरे शरीर पर मालिश करें, ज्यादा पसीना आने की शिकायत दूर हो जाएगी।

● मूंग को अंकुरित करके भी उपयोग में लाया जा सकता है, यह बहुत ही गुणकारी और स्वास्थ्वर्द्धक है तथा इसके सेवन से अनेक रोगों से बचाव किया जा सकता है और मुक्ति पायी जा सकती है।

● अंकुरित मूंग का सेवन अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह शरीर में आवश्यक तत्वों की कमी पूरी करती है और शरीर को मजबूत बनाती है।

● यह सुपाच्य भी है।

● इससे बेहतर शाकाहारी खाद्य सामग्री कोई नहीं होती है।

● अंकुरित मूंग में ग्लूकोज लेवल बहुत कम होता है इस वजह से मधुमेह रोगी इसे खा सकते हैं।

● अंकुरित मूंग के सेवन से पाचन क्रिया हमेशा सही बनी रहती है जिसके कारण पेट सम्बंधी समस्या नहीं होती है और जीवन खुशहाल रहता है।

● अंकुरित मूंग में शरीर के विषाक्त तत्वों को निकालने का गुण होता है।

● इसके सेवन से शरीर में विषाक्त तत्वों में कमी आती है और शरीर स्वस्थ तथा चुस्त रहता है।

● अंकुरित मूंग का नियमित सेवन करने से उम्र का असर जल्दी ही चेहरे पर दिखाई नहीं देता है।

● अंकुरित मूंग में पेप्टिसाइड होता है जो रक्तचाप को संतुलित रखता है और शरीर को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाए रखने में कारगर होता है।

● अंकुरित मूंग में फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जिससे अपच और कब्ज की समस्या नहीं होती है तथा पाचन क्रिया दुरुस्त बनी रहती है।

● मूंग की दाल में ऐसे गुण होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देते हैं और उसे बीमारियों से लड़ने की ताकत देते हैं।

अब मर्जी आपकी, आप मूंग की दाल खायें या कुछ और।

बुधवार, 10 मई 2023

सोलह_प्रकार_की_माताएँ

#सोलह_प्रकार_की_माताएँ!!!!!!! 

#गुरुपत्नी , राजपत्नी , देवपत्नी , पुत्रवधु , माता की बहिन , पिता की बहिन , शिष्यपत्नी , भृत्य पत्नी ( नौकर की पत्नी ) , मामी , पिता की पत्नी ( माता और विमाता ) , भाई की पत्नी , सास , बहिन , बेटी , गर्भ में धारण करने वाली ( जन्मदात्री ) तथा इष्टदेवी - ये पुरुष की #सोलह_माताएं हैं ! 

#गुरुपत्नी_राजपत्नी_देव्पतनी_तथा_वधु: !
पित्रो: स्वसा शिष्यपत्नी भृत्यपत्नी च मातुली !!
पितृपत्नी भ्रातृपत्नी श्वभृशच भगिनी सुता !
गर्भधात्रीषट्देवी च पुन्सः षोडश मातरः !!

- #ब्रह्मवैवर्त्य_पुराण

ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं।

ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर 
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जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं। 
उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। 
इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है
जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । 
साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है ।
महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।

• त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
• यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
• ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
• कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
• य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
• जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
• म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
• हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
• सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
• ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
• न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
• पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
• ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
• व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
• र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
• नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
• उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
• र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
• रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
• क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
• मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
• व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
• ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
• न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
• नात् - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
• मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
• र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
• मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।
• क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।
• य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।
• मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
• मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
• तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।
उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्त देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है ।

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द केरला स्टोरी का सबसे भयावह दृश्य कौनसा था? समीक्षा

द केरला स्टोरी का सबसे भयावह दृश्य कौनसा था? 
गोलियों की बरसात.. धमाके, गला काटना, हाथ काटना,  औरतों को जंजीरों में बांधकर बेचा जाना.... यह सब चल रहा था। मेरे लिए यह नॉर्मल था। आखिर इस्लामिक स्टेट में इससे अलग होना भी क्या था? मध्यकाल में भारत ने तो इससे भयंकर क्रूरताएँ झेली हैं। 

लेकिन मेरा कलेजा मुँह को आ गया था.. जब मजहबी 'दोस्त' के बहकावे में कन्वर्ट हो चुकी लड़की प्रॉपर्टी हासिल करने के लिए हॉस्पिटल में मरणासन्न पड़े अपने पिता से मिलने जाती है और उनके चेहरे पर थूक देती है! 

वह पिता जो शान से कॉमरेड हुआ करता था..लेकिन बेटी के कन्वर्ट होने पर जिसे हार्ट अटैक आ गया। क्यों? क्योंकि सच को सब जानते हैं और अपने फायदे के लिए दूसरे के बच्चों को मौत के मुँह में झोंक देते हैं लेकिन अपने बच्चे के साथ मजहब क्या करेगा यह उस बाप को भी पता था जिसके घर में मार्क्स, लेनिन, स्टॅलिन के बड़े-बड़े पोस्टर चिपके थे।

मैं रोई कब? अगेन... ब्लैकमेल, खून , बलात्कार, आतंकवाद.. जो अवश्यंभावी है उसे देखते हुए कलेजा कड़ा रहता है मेरा लेकिन इस सबसे पहले मेरे आँसू फूट पड़े थे.. जब स्क्रीन पर एक प्यारी सी, प्यार भरी बूढ़ी दादी आई थी। जब यह दादी अपनी चिड़िया जैसी मासूम पोती को हाथों से कौर खिला रही थी, उसे स्नेह से गोदी में सुला रही थी,मैं भीतर से फूट पड़ी थी कि इस प्यारी सी चिड़िया के पंख क्रूरता से नोंच दिए जाएंगे! क्या बीतेगी उस दादी पर? क्या बीतती होगी असल में उन परिवारों पर? 

अक्सर सिनेमा इतिहास बताते हैं लेकिन कुछ सिनेमा खुद इतिहास बनाते हैं। 'द केरला स्टोरी' ऐसा सिनेमा है जो इतिहास बनाने जा रहा है। इसमें इतनी क्षमता है कि यह केवल कुछ हजार या लाख लड़कियों को ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को आतंकवाद से बचाकर उनका जीवन संवार सकता है। 

कोई फिल्म महान कब होती है? अपनी कलात्मकता से.. कथ्य से या अभिनय जैसे पहलुओं से? लेकिन मेरी दृष्टि में वह फिल्म महान है जो अपने विषय को दर्शक के मन मस्तिष्क में पूरी तरह उतार दे और 'द केरला स्टोरी' इसीलिए एक महान फिल्म दस्तावेज है... सो कॉल्ड करिश्माई सिनेमेटिक सौंदर्य न होने के बावजूद। 

यह फिल्म 100% कड़वा सच है। देश भर में प्यार के नाम पर चल रहे आतंकवाद का घिनौना सच। ये आतंकवादियों की मोडस ओपेरैंडी को अच्छी तरह खोलकर उन मासूम बच्चियों को समझा देती है जो हर कदम पर इनका शिकार हैं। 
आप फिल्म देखने जाएँ तो बारीकियों पर नजर रखिए। यह फ़िल्म किसी मनोवैज्ञानिक की तरह उनकी हर एक हरकत को उघाड़कर दिखा रही है।

जैसे, जो 'प्रेमी' कल तक लड़की के सैंडिल हाथ में उठाकर चल रहा था वही आतंकवाद में शामिल न होने पर उसी लड़की के न्यूड्स दुनियाभर में वायरल कर देता है। उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है। यह उन लड़कियों की आँखें खोल सकता है जिनका "मेरा अयाज़/फरहान/आतिफ/ सूफी सबसे अलग है।" 
इस फिल्म में आतंकी वैसे ही दिखाए गए हैं जैसे वास्तविकता में होते हैं- बिल्कुल साफ सुथरे, पढ़े-लिखे, हाईफाई, गुड लुकिंग, चार्मिंग, वेल मैनर्ड।

किसी की बड़ी सटीक टिप्पणी पढ़ी कि 'द केरला स्टोरी' असल में 'द कश्मीर फाइल्स' का प्रीक्वल है। पहले किसी क्षेत्र में केरल की तरह जनसंख्या बदलती  है और अंततः कश्मीर का पलायन और नरसंहार सामने आता है। 

फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन , प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह, लेखक सूर्यपाल सिंह शाबाशी के हकदार हैं। उन्होंने इस आतंकवाद की मैथडोलॉजी बताई है। हम कहाँ चूक रहे हैं इसे भी समझाया है।

फिल्म को चारों लड़कियाँ अपने कंधों पर अच्छे से लेकर चली हैं। अदा शर्मा की हिम्मत और एक्टिंग, दोनों अप्रतिम हैं। एक्टिंग का मतलब आड़े-टेढ़े मुँह बनाना ही नहीं होता। वह इतनी भोली लगी है... ज्यों अनजाने में पागल कुत्तों के झुंड की ओर भागता गाय का बछड़ा ! 

फिल्म का संगीत और बैक ग्राउंड समीचीन है। असरदार है। कुछ flaws हर चीज में होते हैं। बलात्कार दृश्यों की क्रूरता दिखाने के लिए रियलिस्टिक फिल्माया गया है। लेकिन ये प्रतीकात्मक होते तो 13-14 वर्ष की बच्चियों को भी साथ बैठाकर फिल्म दिखाई जा सकती थी। खैर, OTT रिलीज के बाद माता पिता स्वविवेक से कुछ दृश्यों के अलावा पूरी फिल्म किशोरों को दिखा और समझा सकते हैं।

द केरला स्टोरी देखिए। सक्षम हों तो औरों को भी दिखाइये। यह  फिल्म नहीं, जीवन रक्षक वैक्सीन है। सुनिधि चौहान का पूरे मन से गाया टाइटल ट्रैक इसकी पूरी कहानी को सिरे से बयां कर रहा है:

ना ज़मीं मिली, ना फ़लक मिला, 
है सफ़र में अंधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नहीं, 
वहीं खो गया होके गुमराह

ज़िंदान को उड़ान समझ बैठा,
एक बार भी मुड़ के ना देखा
हरे पेड़ों की शाख़ें छोड़ आया
मासूम को किसने बहकाया?

हरियाली वो राहों में आती रहीं
राहें तक़रीरें रोज़ सुनाती रहीं
ना दुआ मिली, ना मिला ख़ुदा
हुआ क़ैद पागल परिंदा

मंगलवार, 9 मई 2023

अति सुन्दर,सनातन घड़ी

*🌹अति सुन्दर,सनातन घड़ी🌹* 

*12:00* बजने के स्थान पर *आदित्य* लिखा हुआ है जिसका अर्थ यह है कि *सूर्य 12 प्रकार* के होते हैं।

*1:00* बजने के स्थान पर *ईश्वर* लिखा हुआ है इसका अर्थ यह है कि *ईश्वर एक* ही प्रकार का होता है। *एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति।*

*2:00* बजने की स्थान पर *पक्ष* लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि *पक्ष दो* होते हैं *1 कृष्ण पक्ष* औऱ दूसरा *शुक्ल पक्ष।*

*3:00* बजने के स्थान पर *अनादि तत्व* लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि *अनादि तत्व 3* हैं। *परमात्मा*, *जीवात्मा* और *प्रकृति* ये तीनों तत्व अनादि है ,

*4:00* बजने के स्थान पर *वेद* लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि वेद चार प्रकार के होते हैं -- *ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।*

*5:00* बजने के स्थान पर *महाभूत* लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य है कि महाभूत पांच प्रकार के होते हैं। *पांच महाभूत हैं* - *सत्वगुण, रजगुण, कर्म, काल, स्वभाव"*

*6:00* बजने के स्थान पर *दर्शन* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *दर्शन 6 प्रकार* के होते हैं । छः दर्शन  *सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त* के नाम से विदित है।

*7:00* बजे के स्थान पर *धातु* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *धातु 7* हैं। सात धातुओं के नाम
*रस : प्लाज्मा*
*रक्त : खून (ब्लड)*
*मांस : मांसपेशियां*
*मेद : वसा (फैट)*
*अस्थि : हड्डियाँ*
*मज्जा : बोनमैरो*
*शुक्र : प्रजनन संबंधी ऊतक* 

*8:00* बजने के स्थान पर *अष्टांग योग* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *योग के आठ प्रकार* होते है। योग के  आठ अंग हैं: *1) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि*

*9:00* बजने के स्थान पर *अंक* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *अंक 9 प्रकार के होते हैं। 1 2 3 4 5 6 7 8 9*

*10:00* बजने के स्थान पर *दिशाएं* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *दिशाएं 10 होती है।*

*11:00* बजने के स्थान पर *उपनिषद* लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि *उपनिषद 11 प्रकार के होते हैं।*
       🙏🙏🙏

शुक्रवार, 5 मई 2023

पीलू (peelu) Salvadora persica Linn. पीलू || मारवाड़ का अंगूर, पीलू के औषधीय प्रयोग


पीलू || मारवाड़ का अंगूर


पीलू का परिचय (Introduction of Peelu)

पीलू (peelu) एक कांटेदार वृक्ष है। कई लोग पीलू को पीलु या पीला भी कहते हैं। इसके फल मीठे तथा स्वादिष्ट होते हैं। आपने शायद पीलू को देखा भी होगा क्योंकि अनेक लोग पीलू के वृक्ष के डंठलों से दातुन भी करते हैं। कुछ ही लोगों को यह पता होता है  कि पीलू का प्रयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। आयुर्वेदिक जानकार ये बताते हैं कि पीलू एक बहुत ही गुणी औषधि है और पीलू का प्रयोग कर कई रोगों को ठीक (Meswak tree benefits) किया जा सकता है। पेट के रोग, पथरी, बवासीर और तिल्ली विकार में पीलू का उपयोग कर लाभ पाया जा सकता है।

इसी तरह वात्त, पित्त और कफ दोष तथा सिर दर्द आदि में भी पीलू का प्रयोग लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, कुष्ठ रोग, डायबिटीज में भी पीलू के प्रयोग से बहुत लाभ मिलता है। पीलू (Salvadora persica benefits) की जड़ की छाल से शारीरिक कमजोरी और मासिक विकार दूर होते हैं। आइए जानते हैं कि आप पीलू से और क्या-क्या फायदे ले सकते हैं।

पीलू क्या है? (What is Peelu?)

पीलू का वृक्ष (Meswak tree) 2-3 मीटर ऊँचा होता है और इसकी दो जातियां होती है। इसकी शाखाएं कमजोर और नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं। शाखाएं छोटी और हमेशा हरी रहती हैं। पीलू के फल 3 मिमी व्यास के, गोल, चिकने होते हैं। ये कच्ची अवस्था में हरे और पके अवस्था में लाल रंग के, चमकीले तथा रस-युक्त होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। फलों को मसलने से तेज गन्ध आती हैं।

(1) छोटा पीलू

(2) बड़ा पीलू।

अनेक भाषाओं में पीलू के नाम (Peelu Called in Different Languages)

पीलू का वानस्पतिक नाम Salvadora persica Linn. (सैल्वेडोरा पर्सिका) Syn-Salvadora indica Wight है और यह Salvadoraceae (सैल्वैडोरेसी) कुल का है। पीलू को देश या विदेश में अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जो ये हैंः-

Peelu in –

Hindi – पीलू, छोटा पीलू, खरजाल
English – मेसवाक (Meswak), साल्ट बुश ट्री (Salt bush tree), मस्टर्ड ट्री (Mustard tree), Tooth brush tree (टूथ ब्रश ट्री)
Sanskrit – पीलू , पीलू, गुडफल्, स्रीं, शीतफल, गौली, शीत, सहस्राक्षी, शीतसह, श्याम, करभवल्लभ, पीलूक
Oriya – कोटुङ्गो (Kotungo), टोबोटो (Toboto)
Urdu – पीलू (Pilu)
Kannada – गोनी मारा (Goni mara), गोनी (Goni)
Gujarati – पीलू (Pilu), खरि जाल (Khari jal)
Tamil – पेरुन्गोलि (Perungoli), कलावी (Kalavi)
Telugu – गोगु (Gogu), गुनिया (Gunia)
Bengali – पीलूगाछ (Pilugach), पीलू (Pilu)
Nepali – पिलु (Pilu)
Punjabi – पीलू (Pilu), झाल (Jhal)
Marathi – पीलू (Pilu), खाकिन (Khakin)
Malayalam – उका (Uka)
Arabic – अराक (Arak), मिसवाक (Miswaq)
Persian – दरख्ते मिसवाक (Darkhate miswak)



पीलू के औषधीय गुण (Peelu Benefits and Uses in Hindi)

पीलू के औषधीय प्रयोग (Meswak tree benefits), प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-

मुँह के छाले में पीलू का प्रयोग लाभदायक (Benefits of Peelu in Cure Mouth Ulcer in Hindi)

पीलू के फलों को खाने से मुंह के छाले की समस्या खत्म होती है।

मुंह के रोग में पीलू का उपयोग फायदेमंद (Peelu Benefits in Oral Disease Treatment in Hindi)

पीलू की लकड़ी का दातून करने से दांत तथा मसूड़े मजबूत होते हैं।

इससे मुंह की बदबू खत्म होती है।

सांसों की बीमारी में पीलू के प्रयोग से लाभ (Uses of Peelu to Treat Respiratory Disease in Hindi)

पीलू के पत्तोंं का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से श्वास (सांस फूलना/दमा) और खांसी में लाभ होता है।

पेट के रोग में पीलू के उपयोग से फायदा (Peelu Uses in Cure Abdominal Disease in Hindi)

भुने हुए पीलू फल को सेंधा नमक के साथ खाएं और साथ में गोमूत्र, दूध या अंगूर का रस पीने से पेट की बीमारी जैसे – पैट की गैस की समस्या (Meswak tree benefits) ठीक होती है।

पेट के फूलने पर पीलू के सेवन से लाभ (Benefits of Peelu in Flatulence in Hindi)

पीलू के पेस्ट से पकाए हुए घी का सेवन करने से पेट के फूलने की समस्या में लाभ (peelu ke fayde) होता है।

आंतों के रोग में पीलू के सेवन से फायदा (Peelu Benefits in Cure Intestinal Disease in Hindi)

निशोथ, पीलू, अजवायन, कांजी आदि अम्ल द्रव्य तथा चित्रकादि पाचन द्रव्यों को मिलाकर सेवन करें। इससे पेट दर्द और आंतों के रोग में लाभ होता है।

पीलू का प्रयोग कर बवासीर का इलाज (Uses of  Peelu in Piles Treatment in Hindi)

रोज सुबह 7 दिन से एक माह तक पीलू को अकेले या छाछ के साथ सेवन करें। इससे बवासीर, पेट की गैस, पाचन विकार, गुदा विकार आदि में लाभ (peelu ke fayde) मिलता है।
सहिजन बीज, जड़ी बीज, कनेर पत्ते, पीलू वृक्ष की जड़, बेलगिरी तथा हींग को थूहर के दूध के साथ पीस लें। इसे बवासीर के मस्सों पर लेप करने से लाभ होता है।
पीलू के तेल में बत्ती भिगोकर गुदा में रखने से बवासीर में लाभ होता है।

मूत्र-विकार (पेशाब संबंधित बीमारी) में पीलू का उपयोग (Peelu Uses to Treat Urinary Disease in Hindi)

पीलू के फलों का काढ़ा बनाकर 10-40 मिली मात्रा में पिएं। इससे मूत्र विकार ठीक होते हैं।

पीलू के प्रयोग से सुजाक का इलाज (Benefits of Peelu in Cure Gonorrhea in Hindi)

10-40 मिली पीलू की जड़ का काढ़ा पीने से सुजाक में लाभ होता है।

गठिया में पीलू के उपयोग से लाभ (Peelu Benefits in Arthritis Treatment in Hindi)

बलाजड़, शतावरी जड़, रास्ना, दशजड़, पीलू फल, काली निशोथ, एरण्डजड़ तथा शालपर्णी के पेस्ट को दूध में पका कर सेवन करें। इससे गठिया में लाभ (peelu ke fayde) होता है।
पीलू के पत्ते को पीसकर लगाने से भी जोड़ों के दर्द या गठिया में लाभ होता है।
पीलू के पत्ते तथा निर्गुण्डी के पत्तोंं को समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे जोड़ों पर बांधने से जोड़ों के दर्द का ठीक होता है।
पीलू की बीज के तेल की मालिश करने से जोड़ों का दर्द मिटता है।
सफेद दाग में पीलू से लाभ (Uses of Peelu in Cure Leucoderma in Hindi)

तिल्वक, नीम, पीलू, आरग्वध पत्ते, विडंग, कनेर बीज, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, लघु तथा बड़ी कटेरी को जल में पीस लें। इसका लेप करने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।

घाव में पीलू से फायदा (Peelu Uses in Wound Healing in Hindi)

पीलू के पत्तों को पीसकर आग से जले हुए स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

पीलू के पत्तों को पीसकर घाव के ऊपर लगाने से घाव में पीव नहीं बनती तथा घाव जल्दी भर (peelu ke fayde) जाते हैं।

अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में पीलू के सेवन से फायदा (Peelu is Beneficial in Excessive Thirst Problem in Hindi)

कई लोगों को शराब के सेवन के बाद बहुत अधिक प्यास लगने की समस्या हो जाती है। इसमें पीलू के रस का सेवन करना चाहिए। यह मद्यपान मतलब शराब पीने के बाद अत्यधिक प्यास लगने की समस्या खत्म होती है।

शारीरिक कमजोरी में पीलू के प्रयोग से लाभ (Peelu Help in Treating Body Weakness in Hindi)

पीलू (Salvadora persica benefits) के फलों का सेवन करने से पित्त की अधिकता से होने वाली बीमारियां जैसे- शुक्राणु विकार, कफ एवं वात दोष में लाभ होता है।

शरीर के दर्द में पीलू के उपयोग से फायदा (Peelu Cures Body Pain in Hindi)

पीलू के पत्तोंं को जैतून के तेल में पकाकर छान लें। इस तेल से मालिश करने से दर्द ठीक होता है।

पीलू के उपयोगी भाग (Beneficial Part of Peelu)

पत्ते
फूल
तना
फल
जड़

पीलू के प्रयोग की मात्रा (How Much to Consume Peelu?)

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार पीलू का प्रयोग करें।

पीलू कहां पाया या उगाया जाता है? (Where is Peelu Found or Grown?)

पीलू (Salvadora persica benefits) भारत में बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, सिंध आदि शुष्क प्रदेशों में पाया जाता है। यह 500 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है।
#सदास्वस्थरहें👇👇👇👇👇

शिकार होते रहिए.. फिल्म बनवाते रहिए अपनी पीड़ा पर, कश्मीर फाइल्स,केरला स्टोरी,अजमेर फाइल्स, बंगाल फाइल्स,और अंत में द भारत स्टोरी?


#सेल्फी_इन_हिजाब
कानपुर के एक कॉन्वेंट स्कूल के बाहर स्कूल ड्रेस पर हिजाब पहनी सकीना मास्क लगा कर,प्रिया और राधिका के साथ सेल्फी लेती है,सेल्फी लेने से पहले प्रिया और राधिका को हिजाब पहनाती है,जो उसकी अम्मी ने खास प्रिया और राधिका के लिए दुबई से मंगवाया है,जहां सकीना के अब्बा अरबियों के गुसलखाने साफ़ करते हैं,सकीना उस तस्वीर को राधिका और प्रिया को व्हाट्सएप करने के साथ साथ,अपने इस्लामिक ग्रुप में शेयर करती है,जहां सकीना के मामा,चाचा,चाचा के लड़के,भाई और अब्बा भी मौजूद हैं,अब्बू वो तस्वीर अपने अरबी बॉस को दिखाता है,और अरबी बॉस सकीना के अब्बा के अकाउंट में 10000 दीनार यानी मोटा मोटी भारतीय रुपयों में 26 लाख 70,000 ट्रांसफर कर देता है।

उधर राधिका अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट पर हैशटैग हिजाब फैशन,हैशटैग हिजाब स्टाइल,हैशटैग हिजाबी,हैशटैग इस्लाम इज लव इमोजी हार्ट हार्ट,हैशटैग सकीना बीएफएफ (बेस्ट फ्रेंड फॉरेवर)लिखकर अपनी और प्रिया की फोटो मास्क लगाई सकीना के साथ पोस्ट कर देती है।प्रिया के मम्मी उसे सोशल मीडिया से दूर रखती हैं,तो वो ऐसी कोई पोस्ट नहीं कर सकती।

राधिका के एक रात में इंस्टाग्राम पर डेढ़ हज़ार फॉलोअर बढ़ जाते हैं,और सारे मुस्लिम लड़के,उसकी तारीफ़ पर तारीफ़ करने लगते हैं,साथ ही साथ उसकी स्कूल की बाकी हिंदू लड़कियां उसको सुंदरता के लिए अंग्रेज़ी में जितने शब्द हैं,उनसे नवाज़ देती हैं,और स्कूल में अगले दिन हिजाब पहन कर,सेल्फी पोस्ट करने का ट्रेंड शुरू हो जाता है।

राधिका खुशी से फूली नहीं समा रही है,उसकी कभी किसी लड़के ने तारीफ करी ही नहीं,और आज इतने सारे लड़के,लड़कियां उसे खूबसूरत कह रहे हैं,बस इसलिए क्योंकि उसने हिजाब पहना..

राधिका के पापा लखनऊ में प्रिंसिपल हैं,भाई दिल्ली में इंजीनियर है,और मां कानपुर के लाल बंगले के कॉन्वेंट स्कूल में टीचर,घर में सब कुछ है,जो एक उच्च मध्यमवर्गीय घर में होना चाहिए,पर किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है,कौन क्या कर रहा है,किसी को उससे कोई मतलब नहीं है,राधिका अभी 14 साल की है,इस साल उसका 10 th है,पर पढ़ाई से ज्यादा समय उसका इंस्टाग्राम की रील देखने में,
और अपनी फोटो पोस्ट करने में जाता है।

रात को 11 बजे,इंस्टा पर एक मैसेज आता है,और जिसका ये मैसेज है,राधिका उसे बचपन से जानती है,ये है सकीना का सगा बड़ा भाई,फरहान जो रोज़ सकीना को स्कूल छोड़ने अपनी काली अपाचे आरटीआर 200  से आता है,जिसमें दोनों तरफ़ हरे झंडे लगे हुए हैं और कुछ लिखा हुआ है उर्दू में,वो रोज़ काली टोपी लगाए कुर्ते पजामे में इत्र लगाए सकीना को छोड़ने और वापस ले जाने आता है,वो क्या करता है,ये राधिका को पता नहीं,पर उसे वो अच्छा लगता है,क्योंकि फरहान के बाल उसके फेवरेट कोरियन बैंड बीटीएस के जंगकूक से मिलते हैं,जिसका पोस्टर उसके कमरे में लगा हुआ है,
सकीना राधिका और प्रिया की हर पसंद नापसंद से वाकिफ है,उसने बहुत अच्छी रिसर्च करी है इन दोनों पर,और उसकी पूरी रिपोर्ट वो अपनी अम्मी अब्बू और भाई फरहान को रोज़ देती है।

फरहान के मैसेज का वो तुरंत रिप्लाई कर देती है,और फरहान उसे कहता है कि वो बहुत खूबसूरत और ज़हीन लग रही थी कल हिजाब में,राधिका को ज़हीन का मतलब पता नहीं है,पर वो खुश हो जाती है, कि जिस लड़के को वो सिक्रेटली पसंद करती थी,वो लड़का उसकी आज इतने साल बाद तारीफ कर रहा सामने से,कारण हिजाब.!

कहानी में आगे क्या हुआ होगा,ये पता सबको है..

पर शुरुआत यहीं से होती है,स्कूल से ही आपकी बेटियां,आपकी बहनें,आपकी पोतियां,नतिनी,भांजी,भतीजी सब टारगेट पर आ जाती हैं,वो उनका शिकार करते हैं,और शिकार करने के लिए एक जाल बिछाया जाता है,एक शिकारी मेमना बन उसे जाल के पास लाने का काम करती है,शिकार खुद ब खुद शिकारी की गिरफ्त में फंसता चला जाता है,और जब तक उसे पता चलता है,बहुत देर हो चुकी होती है, अंत हो जाता है उसका और अंत दुबई में होता है,या कार्डबोर्ड के डब्बे से लेकर,फ्रिज में,या सूटकेस में,ये कहना मुश्किल है,क्योंकि वो तरीका बदलता रहता है..

और एक आप हैं..
जो बदलना चाहते ही नहीं,
सतर्क होना चाहते ही नहीं
पता नहीं कैसा सम्मोहन है
जो बार बार जाल में फंसते चले जाते हैं
और जाल में फंसते रहने देते हैं अपने बच्चों को

शिकार होते रहिए..
फिल्म बनवाते रहिए अपनी पीड़ा पर,
कश्मीर फाइल्स,केरला स्टोरी,अजमेर फाइल्स,
बंगाल फाइल्स,और अंत में द भारत स्टोरी?

क्या चाहते हैं?
आप पर हुई त्रासदियों के ऊपर बस फिल्म बनती रहें?
और वो आपकी बेटियां बहनों की फिल्म बना दुबई में अपने आकाओं को भेजते रहें?पता भी नहीं चलेगा कि कब आपकी राधिका रज़िया बेगम बन गई और कब उसे मुंबई के रास्ते दुबई और दुबई से न जाने कहां कहां भेज दिया गया,सकीना तो राधिका के बाद प्रिया,प्रिया के बाद तान्या,आकृति,अदिति,आद्या,पूजा,
नेहा,समृद्धि,सीमा,तृप्ति,लतिका etc etc सबके साथ फोटो डालेगी,और एक एक करके,फरहान और उसके अन्य भाई अलग अलग तरीकों से,एक एक कर सबको ट्रैप करेंगे,और लड़की 18 की होते ही इस्लाम कुबूल कर,निकाह कर लेगी,क्योंकि उसे इस तरह ब्रेनवॉश किया जाएगा कि इस्लाम से सुंदर कुछ नहीं है संसार में,वो इसलिए क्योंकि आपके पास उसे अपने धर्म के बारे में न बताने के लिए टाइम है,ना आपको खुद पता है कि आपको उसे बताना क्या है,आप सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाने में लगे हुए हैं,और वो पैसे के साथ साथ अपने पंथ को बढ़ाने के लिए हर तरीका आजमाने में लगे हुए हैं,और इसमें उनके साथ उनकी बीवियां भी हैं,और उनके बेटे और बेटियां भी..

यूएनओ में राणा आयूब जा कर,क्या बोलती है अतीक को पता है? लॉ मेकर(शास्त्रकार)एक लॉ मेकर की
 कैमरे के सामने हत्या हो गई।

एक लॉ ब्रेकर माफिया को,
वो अपना लॉ मेकर बताते हैं दुनिया भर में..

और आप क्या करते हैं बॉस?
जातियों के आधार पर,वोट देने में लगे रहते हैं,चाहे वो किसी भी विचारधारा का क्यों न हो,आपकी जाति का होना चाहिए,बस भईया अपना काम बनता भाड़ में जाए सनातन विचारधारा और सनातन विचारधारों के लिए लड़ने मरने वाली जनता,हमको अपने फ्री बिजली और फ्री पानी वाले नेता के साथ सेल्फी खिंचानी है,खींचते रहिए सेल्फियां,फिर चाहे वो माफियाओं के दिन क्यों न लौट कर आएं कि कोई आपके बच्चे की खाल बीच चौराहे खींच कर उसका खून से लथपथ निर्जीव शरीर फेंक दे और पुलिस तथा सिस्टम फिर उसकी हजूरी में लगी रहे,क्योंकि वो चुना हुआ नेता है, उस कौम द्वारा जो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी आबादी बढ़ाने और आपकी आबादी को अपने में मिलाने और मिटाने में लगी हुई है,और आप बस फेसबुक व्हाट्सएप की डीपी बदल लड़ाई जीतने के ख्वाब देखते रहते हैं...

ख्वाब टूट जाते हैं बॉस..

इसलिए लक्ष्य निर्धारित करना आरंभ करिए🙏🏻
और कुछ करिए ठोस उसके लिए🙏🏻

कौनसा लक्ष्य?

अखंड हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य..
उससे कम कुछ भी नहीं.!

अरे वो तो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कर ही रहे हैं..
योगी जी भी कर ही रहे हैं..

हमें किस बात की चिंता?
हमें तो पैसा कमाना है,
और अपने बच्चों की सरकारी नौकरी लगवानी है..

भईया,
ज़रा ये बताइए वो दिल्ली में जिसकी लाश नाले से निकाली गई थी,जिसे चाकुओं से गोद दिया था वो सनातनी लड़का,इंटेलिजेंस ब्यूरो में कांस्टेबल पद पर तैनात था न?सरकारी नौकरी तो उसकी भी थी?सेट था उसका भविष्य न?

फिर क्यों हुआ उसके साथ वो सब?
वो तो समझाने गया था..शायद

और उसे खींच लिया..अंदर..
अल्लाह हू अकबर के नारे लगे..
और फिर एक दिन नाले से लाश निकली हाथ में रस्सी बांध कर निकाली गई उसकी लाश..

सरकारी नौकरी..सेट भविष्य..
सब खत्म!

बताइए हाथ जोड़ें आपके या पैर पड़ें?
कैसे समझेंगे आप?

बॉस अपनी अगली पीढ़ी और उसकी अगली पीढ़ी को तैयार करिए,नहीं तो आपका कमाया सब कुछ,उनके कब्जे में होगा और आप पर बस फिल्म बनती रहेगी और आप किसी रिफ्यूजी कैंप में पड़े रहेंगे और अपने गुमशुदा बच्चों की सेल्फी देख रोते रहेंगे.!

और अभी भी नहीं समझे तो..खैर जाने दीजिए..

समय सब समझा देगा,
अच्छे से समझा देगा.!

कभी कभी लगता है,
कुछ नया बनने से पहले
पुराना टूटना आवश्यक होता है..

समझाने से जो नहीं समझते,उनके लिए समय द्वारा पीड़ा से भरा सबक मिलना ज़्यादा बेहतर होता है.!

✒️ तत्वज्ञ देवस्य 
{#कॉपीराइट_रिजर्व्ड©}

#चित्र_सौजन्य: #TheKeralaStory

पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?

*श्री सत्यनारायण व्रत विशेष*




पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?
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आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान  सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है । पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । 
जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें। 

सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है, भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ 
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पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।
सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की। शतानन्दअति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्तिअपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। 

वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ 

(इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुर में प्रवेश) की स्थिति में आए। काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरण किया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की। राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रती थे। वे नियमित रूप से भद्रशीलानदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना करते थे। सत्याचरण ही उनके जीवन का मूल मन्त्र था। दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरण किया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की। साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावती नामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्म के पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चाना से मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुर में श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु के कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामी से

झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादन के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिक के मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने  को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावती को अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज तो पूजास्थल पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत:बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की और सत्याचरण का व्रत लिया। सत्यनारायण व्रतकथा के उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापा त्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से स्कंद पुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीन व्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही हो सकता है। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीन थे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिकनएवं राजा तुंगध्वज धन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धन सम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे। पूरी सत्यनारायण व्रत कथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिक हितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरण का व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरण का अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।
केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।
नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।

भगवान सत्यनारायण पूजा सामग्री
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भगवन सत्यनारायण की मूर्ति या फ़ोटो
1 चौकी या पटला तथा उस पर बिछाने के लिए एक मीटर पीला या सफ़ेद कपडा
अबीर
गुलाल
कुमकुम (रोली)
सिंदूर
हल्दी
मोली
धुप
अगरबत्ती
10 ग्राम लौंग
10 ग्राम इलायची
32 सुपारी
चन्दन
500 ग्राम चावल
250 गेहूँ
50 ग्राम कपूर
इत्र
कापूस
गंगाजल
गुलाबजल
गोमूत्र
पञ्च मेवा
5 जनेऊ
1 नारियल
भगवन के वस्त्र
250 ग्राम घी
10 ग्राम पीली राई
5 पान के पत्ते
5 आम के पत्ते
हार फूल तुलसी पत्र
4 केले के खम्बे
250 ग्राम मिठाई
1 लीटर दूध
250 ग्राम दही
100 ग्राम चीनी
50 ग्राम शहद
भगवन के भोग के लिये चूरमा, पंजीरी या हलुआ इत्यादि

हवन प्रकरण (यदि हवन करना हो तो )
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हवन सामग्री
तिल
चावल
जौ
चीनी
घी
नव ग्रह समिधा 2 बण्डल
1 किलो आम की लकड़ी

पूजा के पूर्व की तैयारी
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जिस दिन पूजा करनी हो एक या दो दिन पूर्व ही यतन अनुसार पूजा की सभी सामग्री बाजार से ला कर उसे चेक कर ले ताकि पूजा के समय असुविधा न हो।

पूजन विधि
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श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्तव को बतलाता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।

पूजन का मंडप तैयार करना
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पूर्वाभिमुख हो कर एक चोकी पर पीला कपडा बिछा कर केले के खम्बे को लगा दे उस के बाद चित्रानुसार भगवन श्री सत्यनाराण गणेश नवग्रह कलश षोडश मातृकाएँ वास्तुदेवता की स्थापना करें अष्टदल या स्वस्तिक बनाएं। बीच में चावल रखें। पान सुपारी से भगवान गणेश की स्थापना करें। अब भगवान सत्यनारायण की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या नारायण की प्रतिमा की भी स्थापना करें।
सत्यनारायण के दाहिनी ओर शंख की स्थापना करें। जल से भरा एक कलश भी दाहिनी ओर रखें। कलश पर शक्कर या चावल से भरी कटोरी रखें। कटोरी पर नारियल भी रखा जा सकता है। अब बायी ओर दीपक रखें। केले के पत्तों से पाटे के दोनो ओर सजावट करें।
अब पाटे के आगे एक सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रखें तथा नवग्रह मंडल बनाएं पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाना है। और उस के साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें तथा षोडशमातृका मंडल तैयार करने के बाद पूजन शुरु करें।
प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें। या जितना शक्ति हो उस अनुसार इकठ्ठा कर लें। भगवान की तस्वीर के आगे ये सभी पदार्थ रख दें।

सकंल्प ;
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संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

पवित्रकरण ;
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बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन शुद्धि
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निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।

ग्रंथि बंधन
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यदि यजमान या पूजा करने वाले भक्त सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-

यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्।

आचमन करें
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इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-
ऊँ केशवाय नमः
ऊँ नारायणाय नमः
ऊँ माधवाय नमः
यह मंत्र बोलकर हाथ धोएं
ऊँ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

स्वस्तिवाचन मंत्र
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सबसे पहले स्वस्तिवाचन किया जाना चाहिए।
स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्र्षयो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु।
अब सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमा महेश्वराभ्यां नमः ।
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः ।
कुलदेवताभ्यो नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।
सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्यहा गणाधिपतये नमः।

भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। जनेऊ अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। भगवान नारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें। अब दीपक प्रज्वलित करें। धूप, दीप करें। भगवान गणेश और सत्यनारायण धूप-दीप अर्पित करें। ‘‘ऊँ सत्यनारायण नमः’’ कहते हुए सत्यनारायण का पूजन करें।
अब चावल की ढेरी में नवग्रहों का पूजन करें। अष्टगंध, पुष्प को नवग्रहों को अर्पित करें।

नवग्रहों का पूजन का मंत्र
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ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।
इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें।
अब कलश में वरुण देव का पूजन करें। दीपक में अग्नि देव का पूजन करें।

कलश पूजन
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कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः। इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें।

दीपक
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दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत ।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः।

कथा-वाचन और आरती
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पूजन के बाद सत्यनारायण की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। कथा पूरी होने पर भगवान की आरती करें। प्रदक्षिणा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई, शक्कर का बूरा जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा करा हो। उन सभी पदार्थों का भगवान को भोग अर्पित करें। भगवान का प्रसाद सभी भक्तों को बांटे।

श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में 
श्रीसत्यनारायणव्रत कथा 
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पहला अध्याय ,,एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए. इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं. सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले – हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था. आप सब इसे ध्यान से सुनिए –
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे. यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा. उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए. इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए. वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे.
स्तुति करते हुए नारद जी बोले – हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं. आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है. निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है. नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले – हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो. इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं. हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।

श्रीहरि बोले – हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है. जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो. स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है. आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ।

श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है.
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ.  नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले – दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है. मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए. भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें. गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ। ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें. भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं. इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं. इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है.

।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण।।  
श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

दूसरा अध्याय
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सूत जी बोले ,, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था. भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था. ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा ,, हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला ,, मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ. भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ. हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए. वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो.

इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है.
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए. ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा. यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई. वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया. उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला. जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है.
सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।

विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।

बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

तीसरा अध्याय 
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सूतजी बोले ,, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ. पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा – हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएँ।
राजा बोला – हे साधु! अपने बंधु-बाँधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ. राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला – हे राजन ! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए. आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा. मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी. राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुँगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनोंदिन वह ऎसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।

एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा. इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बाँधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें.
राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है?
कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।

।।इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

चतुर्थ अध्याय
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सूतजी बोले ,, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए. उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं. वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले – तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए. कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए. दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी. दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला – मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है. तू मेरी पूजा से विमुख हुआ.

साधु बोला – हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ. आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा. मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए. जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया. दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई. प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया. कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई. नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें.
साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई – हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है. यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा. ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है. उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है. इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।

।।इति श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

पाँचवां अध्याय
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सूतजी बोले ,, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था. उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया. एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया. वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा. अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया. ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया.
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है. वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया. दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है.
सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा  कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।

श्री सत्यनारायणजी की आरती 
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जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥

भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी... ॥

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🚩मतलब हर गांव से 20 लड़की चली गई #TheKerelaStory नहीं बनती तो हिंदुओं को कभी पता तक नहीं चलता ।
🚩क्या हमारे देश की मीडिया को धर्मांतरण की सच्चाई पता नहीं होती या हमसे जानबूझकर छिपाई जाती है,किसी षड्यंत्र के तहत!?

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