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सोमवार, 18 अप्रैल 2011

सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी

कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी शिला पर। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और हनुमन्नाटक के नाम से प्रसिद्ध है।
'हनुमान' शब्द का ह ब्रह्मा का, नु अर्चना का, मा लक्ष्मी का और न पराक्रम का द्योतक है।
 

 
हनुमान को शिवावतार अथवा रुद्रावतार भी माना जाता है। रुद्र आँधी-तूफान के अधिष्ठाता देवता भी हैं और देवराज इंद्र के साथी भी। विष्णु पुराण के अनुसार रुद्रों का उद्भव ब्रह्माजी की भृकुटी से हुआ था। हनुमानजी वायुदेव अथवा मारुति नामक रुद्र के पुत्र थे।



हनुमान को सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था। वे सेवक भी थे और राजदूत, नीतिज्ञ, विद्वान, रक्षक, वैय्यारकरण, वक्ता, गायक, नर्तक, बलवान और बुद्धिमान भी। शास्त्रीय संगीत के तीन आचार्यों में से एक हनुमान भी थे। अन्य दो थे शार्दूल और कहाल। 'संगीत पारिजात' हनुमानजी के संगीत-सिद्धांत पर आधारित है। हनुमान के जन्म-स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों का कहना है कि हनुमानजी का जन्म राँची जिले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था। कर्नाटकवासियों की धारणा है कि हनुमानजी कर्नाटक में पैदा हुए थे। पंपा और किष्किंधा के ध्वंसावशेष अब भी हाम्पी में देखे जा सकते हैं। अपनी रामकथा में फादर कामिल बुल्के ने लिखा है कि कुछ लोगों के अनुसार हनुमानजी वानर-पंथ में पैदा हुए थे।



हनुमानजी का जन्म कैसे हुआ इस विषय में भी भिन्न मत हैं। एक मान्यता है कि एक बार जब मारुति ने अजंनी को वन में देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने अंजनी से बलात संयोग किया और वह गर्भवती हो गई। एक अन्य मान्यता है कि वायु ने अंजनी के शरीर में कान के माध्यम से प्रवेश किया और वह गर्भवती हो गई।
एक अन्य कथा के अनुसार महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त जो हवि अपनी रानियों में बाँटी थी उसका एक भाग गरुड़ उठाकर ले गया और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहाँ अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खा लेने से अंजनी गर्भवती हो गई और कालांतर में उसने हनुमानजी को जन्म दिया।

रविवार, 17 अप्रैल 2011

एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ।।

एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ।। 
कर दो अधम की नैया, भव पार हे कन्हैया ।।... 

अच्छा हूँ या बुरा हूँ , पर दास हूँ तुम्हारा । 
जीवन का मेरे तुम पर, है भार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

तुम हो अधम जनों का, उद्धार करने वाले ।
मैं हूँ अधम जनों का, सरदार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

करूणानिधान करूणा, करनी पडेगी तुमको । 
वरना ये नाम होगा, बेकार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

ख्वायश ये है कि मुझसे, दृग बिंदु अश्रु लेकर । 
बदले में दे दो अपना, कुछ प्यार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया... 

कर दो अधम की नैया, भव पार हे कन्हैया....

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

so never loose above three CONFIDENCE ,TRUST & HOPE

1.एक बार एक गावं ने सोचा क्यों ना हम बारिश के लिए
भगवान से प्रार्थना करे ! स्थान तय हुआ !! सारा गावं
वहा पंहुचा पर एक बच्चा छतरी ले के पंहुचा ! इसको
कहते हैं confidance ?
2.एक साल के बच्चे को हवा मैं उछाला और वो हंस रहा था
क्योंकी उसको विश्वास हैं की कोइ उसे पकड़ भी लेगा
इसको कहते हैं trust.
3.हम रोज रात को बिस्तर पे सोने जाते हैं !! हमे पता भी
नहीं की कल् हमारी आँख खुलेगी भी या नहीं पर
फिर भी हम अगले दिन की रूप रेखा बना के सोते हैं
इसको कहते हैं hope
so never loose above three CONFIDENCE ,TRUST & HOPE

एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये

एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये –

(नरेन्द्र मोदी भारत के लोहा व्यापारी हैं, जबकि परवेज़ मुशर्रफ पाकिस्तान के लोहे के व्यापारी हैं)
फ़ोन की घण्टी बजती है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ– हाँ है…
मोदी – मुँह में डाल ले… (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Provocation करना…

अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ(स्मार्ट बनने की कोशिश) – सरिया नहीं है…
मोदी – क्यों, मुँह में डाल लिया क्या? (फ़िर फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं, “Irritation” में डालना…

अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र भाई – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ(ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश) – अबे साले, सरिया है भी और नहीं भी…
नरेन्द्र भाई – अच्छा, यानी कि बार-बार उसे मुँह में डालकर निकाल रहा है? (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Aggravation में डालना…

अगले दिन मुशर्रफ , मोदी जी से बदला लेने की सोचता है… खुद ही फ़ोन करता है…
मुशर्रफ – क्यों बे मोदी, सरिया है क्या?
नरेन्द्र मोदी – अबे मुँह में दो-दो सरिये डालेगा क्या? (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Frustration पैदा कर देना…

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही हुवा न छोटासा....

सोने की इतनी बड़ी डली लेलो उसमे से थोडा टुकडा काट लो तो वो सोना ही है.....

शुद्ध सोना है हम सब, परंतु इस सोने को माया का,कर्मो का कचरा लग गया है, लेकिन कचरे में भी सोना है तो उसका मोल थोडी कम हो गया कोई, साफ करो उसकी कीमत वही है

कोई दोष, कोई खोट नहीं है हममे, कोई पापी भी नहीं है, पाप भी अपवित्र नहीं कर सकता हमें, अगर परमात्मा का अंश अपवित्र हो गया तो, परमात्मा भी अपवित्र हो सकता है

भगवन के पास न पाप जायेगा न पुण्य जायेगा, अगर सिर्फ पुण्य ही वहा जा सकता है, तो गलत है, फिर वो भगवान नहीं है, वहा सौदा नहीं है, वहा सिर्फ शुद्ध जायेगा...........

पाप भी बोझ है और पुण्य भी, दोनों का फल भुगतना है अच्छा या बुरा.....

लेकिन परमात्मा की भक्ति एक एसा यज्ञ है सब स्वाहा,पाप क्या पुण्य भी नहीं बचेंगा


"पुरन प्रगटे भाग्य कर्म का कलसा फूटा"

एक दिन एसा आता है भगवन की भक्ति-ध्यान करते-करते इतना तेज आ जाता है जो घडा है कर्म का जिसमे पाप-पुण्य जो कुछ भी भरा पड़ा है वो फुट जाता है और ये अंश परमात्मा में समां जाता है और परमात्मा

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