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शनिवार, 12 नवंबर 2022

हर एक भारतीय नारी का एक महत्वपूर्ण आभूषण है " मंगलसूत्र "

*मंगलसूत्र* 
     हिन्दू सनातन धर्ममे त्योहारों ओर रीति रिवाजों के पीछे कोई न कोई लाभदायी रहस्य या आरोग्य की दरकार करने वाला तथ्य होता है । समय समय पर उनमें अज्ञानता से किये बदलाव या स्थल काल से विपरीत उपयोग लाभदायी नही रहता । इसलिए लोगो को ये अंधश्रद्धा या फुजूल रिवाज लगता है । 

    हर एक भारतीय नारी का एक महत्वपूर्ण आभूषण है " मंगलसूत्र " । दांपत्य ओर कुटुंब परम्परामे सबसे ज्यादा जिम्मेदारी के साथ सतत कार्यशील रहने का भार परिवार की स्त्री पर होता है । घरकी साफ सफाई , भोजन व्यवस्था , सासु स्वसुर पति की सेवा , बच्चों को जन्म देना और उनकी परवरिश .... ऐसे देखा जाय तो बाकी पात्रों से दसगुना कार्य स्त्री के हिस्सेमें आता है । ऐसेमें स्त्री के शरीरमे ज्यादा जोश , शक्ति , दृढ़ मनोबल , सहनशक्ति की जरूरत होती है । इसलिए हमारे ऋषिमुनियों ने स्त्री को शाक्तवन बनाने केलिए जोश , उमंग , शक्ति , मक्कम मनोबल के कारक ग्रह " मंगल देवता " की विशेष कृपा हेतु " मंगलसूत्र " का अविष्कार किया । कन्या की जब शादी होती है तब पति द्वारा उनके गलेमें मंगलसूत्र पहनाया जाता है । मंगलसूत्र सुहागन की निशानी है और पति प्रेम का प्रतीक है । 

   मंगलसूत्र मतलब मंगल का धागा । मंगल का रंग लाल है इसलिए लाल कलर का धागा  मंगल सूत्र है । गुरु को भी स्वामी माना जाता है और सुखी दाम्पत्य जीवन केलिए गुरु ( बृहस्पति ) की विशेषकृपा भी आवश्यक है इसलिए कुछ कुछ प्रांतोमे पीले रंग के धागेमे लाल रंग के मोती परोके मंगलसूत्र बनाया जाता है । अगर धनवान हो तो सोने का पैडल ओर लाल रंगके मोती से भी मंगल सूत्र बनाया जाता है । मंगलसूत्र धारण करने से स्त्री के शरीर मे मंगल और गुरु ग्रह देवता की असर से विशेष परिवर्तन देखा जाता है और स्त्री स्वयं भी इसे महसूस करती है । 

*  स्त्री और पुरुष की तुलनामे स्त्री के शरीरमे खून कम होता है जो मंगल की कृपासे सरभर होता है

* मंगल की कृपासे स्त्री के शरीरमे प्रजनन शक्ति बढ़ती है । 

* मंगल की कृपासे दृढ़ मनोबल के साथ सहन शक्ति बढ़ती है । 

* मंगल की कृपासे अपने पति के प्रति अपार स्नेह रहता है जो सुखी दाम्पत्य की महत्तम जरूरत है । 

* मंगल और गुरु दोनों की कृपासे सत्य , दया , प्रेम जैसे सद्गुण आत्मसात होते है । 

* मंगल और गुरु की कृपासे देहमें लावण्य ओर सुंदरता बढ़ती है । 

    मतलब सुखी परिवार और कुटुंब जीवन केलिए परिवार की स्त्री को सक्षम बनाने केलिए मंगलसूत्र प्रथा दी गयी है । आजकल पता नही फैशन के कारण या कोई और  अज्ञात कारणवश कही प्रांतोमे काले रंग के मोतियों से मंगल सूत्र बनाने लगे है । कोई कोई विशेषज्ञ उसे शिव शक्ति का प्रतीक कहते है । पर ये बात तर्क संगत भी नही है । क्योंकि एक स्त्री  और पुरुष का जोड़ा स्वयं ही शिव शक्ति माने जाते है फिर मंगल सूत्रमे उनके प्रतीक का क्या काम ? काला रंग तो शनि का कारक है । ओरो की बुरी नजर से बचने केलिए काला धागा कहि ओर भी बांध सकते है या काला टिका भी लगाया जाता है । मंगलसूत्रमे अशुभ काला रंग ये तर्क संगत नही है । पर आजकल तो सोने के साथ काले मोती फैशन ही बन गयी है । सबके अपने अपने विचार । मानसिक ट्रेस , कुटुंब कलह , शारीरिक रोग , वांजपन , डिवोर्स जैसी अनेक समस्याओं के हल के स्वरूपमे भी मंगलसूत्र या लाल - पिला रंग उपयोगी है  तो यही सही । कलर थेरपी भी विज्ञान सम्मत सफल थेरपी ही है । 

      आजकल तो हरकोई बिना कुछ समजे शिवशक्ति के प्रतीक की बाते कर देते है । सतयुग से आजतक अगर इसे मंगलसूत्र कहते है तो सहज है ये मंगल की कृपा केलिए बनाया सूत्र ही है ।

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बात वो नहीं जिसके चर्चे उङ रहे हैं.. महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं..*

*बात वो नहीं जिसके चर्चे उङ रहे हैं..*
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं..*


पहले नानी के घर मनती थी छुट्टियां
आम-अमरूद खाकर मनती थी छुट्टियां
अब तो गोआ मनाली के ट्रिप लग रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

सरे राह रोज यूं ही नही मिलते थे लोग
पहले मीलो मील पैदल चलते थे लोग
आज दो कदम जाने को कैब बुक कर रहे हैं 
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*


घर में बने खाने पर स्वाद लेकर इतराते थे हम
नमक संग रोटी भी खुशी-खुशी खाते थे हम
अब तो हर वीकेंड सब होटल में दिख रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

दो जोङी कपङे में पूरा साल निकलता था 
बस दिवाली के दिन नया जोङा सिलता था
अब तो शौक-फैशन के लिए शापिंग कर रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

एक टीवी से पूरा मोहल्ला चलता था
एक दूरदर्शन से पूरा घर बहलता था 
अब तो चैनलो और वेब के जाल में फंस गए हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

पैंतीस पैसे के पत्र का इंतजार रहता था
और पत्र के अंदर हरेले का त्योहार रहता था
अब तो बस सब के हाथो में मोबाइल दिख रहे हैं
*महंगाई नही साहब खर्चे बढ गए हैं...*

नानी बाई का मायरा"


*"नानी बाई का मायरा"*

नानी बाई ने (मायरा) भात भरने के लिए 
नरसी जी को बुलाया. 
नरसी जी के पास भात भरने के लिए 
कुछ नहीं था. 
वह निर्धन थे लेकिन भगवन की भक्ति का खजाना भरपूर था. 
वो कहते थे कि -हम्हे अपनी चिंता कियो करनी, हमारी चिंता करने के लिए भगवान बैठे हैं. 

जब नरसी जी के पास भात का सन्देश आया 
तो सामानों की लिस्ट देखकर चिंतित हो उठे 
और आर्त भाव से अपने भगवान को पुकारा -
“हे साँवरिया सेठ! हे गिरधारी !
नरसी मेहता को तो कोई नहीं जाने, 
तुमको जाने है संसार,
चिट्ठी मेरी आई है सावंर सरकार.”

सुलोचना बाई नानी बाई की पुत्री थी, 
सुलोचना बाई का विवाह जब तय हुआ था; 
तब नानी बाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी एक गरीब व्यक्ति है 
तो वह शादी के लिये भात नहीं भर पायेगा, उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली को लेकर पहुँचे तो उनकी बहुत बदनामी हो जायेगी, इसलिये उन्होंने एक बहुत लम्बी सूची भात के सामान की बनाई !
उस सूची में करोड़ों का सामान लिख दिया गया जिससे कि नरसी उस सूची को देखकर 
खुद ही न आये।

नरसी जी को निमंत्रण भेजा गया !
साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई ,
परन्तु नरसी के पास केवल एक चीज़ थी -
वह थी श्री कृष्ण की भक्ति, 
इसलिये वे उन पर भरोसा करते हुए 
अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को आर्शिवाद देने के लिये अंजार नगर पहुँच गये, उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले 
भड़क गये और उनका अपमान करने लगे, 
अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गये और रोते हुए श्री कृष्ण को याद करने लगे, 
नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और 
आत्महत्या करने दौड़ पड़ी !
परन्तु श्री कृष्ण ने नानी बाई को रोक दिया 
और उसे यह कहा कि कल वह स्वयं 
नरसी के साथ मायरा भरने के लिये आयेंगे।

बारह घंटे हुई स्वर्ण वर्षा :-

दूसरे दिन नानी बाई बड़ी ही उत्सुकता के साथ श्री कृष्ण और नरसी जी का इंतज़ार करने लगी! और तभी सामने देखती है कि 
नरसी जी संतों की टोली और 
कृष्ण जी के साथ चले आ रहे हैं 
और उनके पीछे ऊँटों और घोड़ों की लम्बी कतार आ रही है जिनमें सामान लदा हुआ है, 
दूर तक बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियाँ 
नज़र आ रही थी, 
ऐसा मायरा न अभी तक किसी ने 
देखा था न ही देखेगा!
यह सब देखकर ससुराल वाले 
अपने किये पर पछताने लगे, 
उनके लोभ को भरने के लिये द्वारिकाधीश ने बारह घण्टे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की, 
नानी बाई के ससुराल वाले 
उस सेठ को देखते ही रहे 
और सोचने लगे कि कौन है ये सेठ 
और ये क्यों नरसी जी की मदद कर रहा है, 
जब उनसे रहा न गया तो उन्होंने पूछा कि 
कृपा करके अपना परिचय दीजिये 
और आप क्यों नरसी जी की सहायता कर रहे हैं।

भक्त के बस में हैं भगवान :-

उनके इस प्रश्न के उत्तर में जो जवाब सेठ ने दिया, वही इस कथा का सम्पूर्ण सार है !
तथा इस प्रसंग का केन्द्र भी है, 
इस उत्तर के बाद सारे प्रश्न 
अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं, 
सेठ जी का उत्तर था ...

’मैं नरसी जी का सेवक हूँ !
इनका अधिकार चलता है मुझपर !
जब कभी भी ये मुझे पुकारते हैं ,
मैं दौड़ा चला आता हूँ इनके पास, !
जो ये चाहते हैं; मैं वही करता हूँ !
इनके कहे कार्य को पूर्ण करना ही 
मेरा कर्तव्य है।"

ये उत्तर सुनकर सभी हैरान रह गये 
और किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था !
बस नानी बाई ही समझती थी कि 
उसके पिता की भक्ति के कारण ही 
श्री कृष्ण उससे बंध गये हैं ,
और उनका दुख अब देख नहीं पा रहे हैं 
इसलिये मायरा भरने के लिये स्वयं ही आ गये हैं, इससे यही साबित होता है कि भगवान केवल अपने भक्तों के वश में होते हैं..!!
   *🙏🙏🏽🙏🏿जय जय श्री राधे*🙏🏻🙏🏼🙏🏾

कूटने की परम्परा - जब से हमने कूटना छोड़ा है, तब से हम सब बीमार होने लग गए



🍂कूटने की परम्परा  ✧😅😅

  कल एक बुजुर्ग से एक आदमी ने पूछा, कि 
     पहले इतने लोग बीमार नहीं होते थे,
           जितने आज हो रहे हैं...?

    तो बुजुर्ग ने अपने तजुर्बे से बोला ~
   भाईजी ! पहले कूटने की परंपरा थी,
जिससे इम्यूनिटी पावर मजबूत रहता था....

★  *पहले हम हर चीज को कूटते थे*. ★
   *जब से हमने कूटना छोड़ा है, तब से* 
    *हम सब बीमार होने लग गए*.🍂

   *जैसे* ... *पहले खेत से अनाज को* 
               *कूट कर घर लाते थे*.
     *घर में मिर्च मसाला कूटते थे*,🍂

     *कभी-कभी तो बड़ा भाई भी*
   *छोटे को कूट देता था, और जब* 
      *छोटा भाई उसकी शिकायत*
        *माँ से करता था, तो माँ*
      *बड़े भाई को कूट देती थी*.

 🍂  *और कभी-कभी तो दादाजी भी* 
           *पोते को कूट देते थे*.

   *यानी कुल मिलाकर .... दिन भर*
  *कूटने का काम चलता रहता था*.

      *कभी माँ , बाजरा कूट कर* 
       *शाम को खिचड़ी बनाती*.🍂

  *पहले हम कपड़े भी कूट कर धोते थे*.
     *स्कूल में मास्टरजी भी कूटते थे*.
     *जहाँ देखो वहाँ पर कूटने का काम*
         *चलता रहता था, इसीलिए*
   🍂   *बीमारी नजदीक नहीं आती थी*.

          *सबका इम्यूनिटी पावर*
             *मजबूत रहता था*.

        *जब कभी बच्चा सर्दी में* 
        *नहाने से मना करता था*, 
        *तो माँ , पहले कूटकर*
    *उसका इम्यूनिटी पावर बढ़ाती थी*,
         *और फिर नहलाती थी*.
            *वर्तमान समय में*
    *इम्यूनिटी पावर बढ़ाने के लिए* 
          *कूटने की परंपरा* 
      *फिर से चालू होनी चाहिए*.
😂😂😂😂

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रसिद्ध स्टार जयललिता ने जीवित रहते हुए कभी दिवाली नहीं मनाई। आप जानते हो क्यों?



तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रसिद्ध स्टार जयललिता ने जीवित रहते हुए कभी दिवाली नहीं मनाई। आप जानते हो क्यों?
1790 नरक चतुर्दशी के मध्यरात्रि थी l टीपू सुल्तान के पास सबसे वफादार और क्रूर साथियों की एक सेना थी, जो मेलुकोट के श्री चेलुवरया स्वामी के मंदिर में प्रवेश करती है।

वहीं नरक चतुर्दशी के अवसर पर आयोजित भगवान जुलूस में लगभग 1000 श्रद्धालु शामिल हुए थे । रात की पूजा के बाद वे आराम करने की तैयारी कर रहे थे। टीपू ने आकर मंदिर के सभी द्वार बंद कर दिए और 1000 भक्तों में से 800 लोगों को बंद कर दिया और अपनी सेना के बल से नरसंहार किया यहां तक बच्चों को भी नहीं बख्शा।  जनानखाने के लिए बाकी  200  महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया।
अगली सुबह दीपावली पद्य का दिन था। वह मेलुकोट मंदिर को तोड़ दिया और उसकी विशाल संपत्ति को लूट लिया l मंदिरा का ख़ज़ाना इतना था कि ले जाने के लिए 26 हाथियों और 180 घोड़ों की जरूरत पड़ी थी । सारे खजाने ले जाने में 3 दिन लगे थे l

यही कारण है कि आज भी मेलुकोटे के कई परिवार (मांड्याम अयंगर कहलाते हैं) उस अंधेरी दिवाली की भयानक घटनाओं के कारण इस त्योहार को नहीं मना रहे हैं।

*जयललिता भी इसी समुदाय की थीं* इसलिए उन्होंने कभी दिवाली का त्योहार नहीं मनाया।  उनके पूर्वज (मेलकोट अयंगर) 800 लोग नरसंहारों में मारे गए थे? वह कैसे भूल सकती थी l

कित्तूर चेन्नम्मा के राज्य में 1.40,000 हिंदू जिन्होंने धर्मांतरण से इनकार कर दिया था, वो टीपू सुल्तान के हाथों मारे गए थे l

2. 10,000 ब्राह्मण जिन्होंने धर्मांतरण से इनकार कर दिया, उनका केरल राज्य में जबरन 'खतना' किया गया।

3. हिंदू महिलाओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग करना और फिर उन्हें अपने सैनिकों को पुरस्कार के रूप में देने की प्रथा बहुत दिनों तक चलाई।

4. 20 साल के लड़कों को बनाया गया हिजड़ा, इसके प्रमाण उपलब्ध हैं।

5. कोडागु के हिंदुओं का नरसंहार किया गया।

टीपू के पिता हैदर अली  तिरुपति कल्याण वेंकटेश्वर की विशाल संपत्ति को लूट लिया था l

टीवी सीरियलों में टीपू को एक देशभक्त और कुशल प्रशासक के रूप में चित्रित करने वाले धर्मनिरपेक्षतावादी। देखिए टीपू की मशहूर तलवार पर उर्दू में क्या लिखा है:

*"मुस्लिम नायक जिसने काफिरों का कत्लेआम किया"*
“My victorious sabre is lightning for the destruction of the unbelievers.”Haidar, the Lord of the Faith, is victorious for my advantage. And moreover, he destroyed the wicked race who were unbelievers. Praise be to him, who is the Lord of the Worlds! Thou art our Lord, support us against the people who are unbelievers

हमें टीपू सुल्तान को फिर से समझना चाहिए।अपनी सल्तनत बचाने के लिए टीपू ने फ्रांसीसी मदद लेकर ब्रिटिश फौजों का सामना किया लेकिन टीपू सुल्तान हिंदुओं का क़ातिल था हिंदुत्व को मिटाने के लिए उसने इंतिहा जुल्म किए। ऐसे नरपिशाच राक्षस का महिमा मंडन करके कांग्रेस ने बहुत बड़ी ऐतिहासिक गलती की है।
इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान को एक सुंदर, गंभीर, शांत और बहादुर व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है। लेकिन लंदन के पुस्तकालय में टीपू की वास्तविक छवि बहुत अलग है।

टीपू सुल्तान का इतिहास इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि कैसे कांग्रेस और वामपंथियों ने भारत के इतिहास को विकृत किया है।

रूप में दानव कहे जाने वाले इस सुल्तान ने न केवल मेलुकोट मंदिर बल्कि दक्षिण भारत के लगभग 25 मंदिरों की संपत्ति लूटा था l

टीपू हमेशा बड़े-बड़े त्योहारों पर नरसंहार और धन की लूट की घटनाओं को अंजाम देता था। क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि उन दिनों भक्त बड़ी संख्या में इकट्ठा होते थे और उन सभी के पास अधिक धन और प्रसाद के रूप में चांदी और सोना होता था। उन दिनों मंदिर में ही सारा धन और अनाज इकट्ठा करने की प्रथा थी।
शलीभद्र एस जैन संगीता वर्मा  की वाल से कॉपीड

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