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गुरुवार, 26 मई 2022

असली अघोरी साधु की पहचान


 

असली अघोर शब्द का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अघोर जो घोर ना हों जो भयावह से मुक्त हों। अघोर साधू की पहचान जानिये विस्तार से -

अघोरी बाबा सुनते ही नसों में एक वीभत्स घिनौना सा रूप आ जाता है. भस्म का स्नान, मनुष्य मांस का भक्षण करने वाला, तंत्र मंत्र से सीधा जोड़कर देखा जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में तात्पर्य है 'अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त, शुद्धता भी समझा जाता है. किंतु अघोरियों का रहन-सहन और शुद्धता के एकदम विरुद्ध ही दिखते हैं. अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़े कुछ नवीनतम पक्ष लेकर आई हूँ। आप भी इस बेहद ही महत्वपूर्ण चर्चा में सम्मिलित होइये - - - - -

‌1. कठोर जीवन - इनका जीवन अत्यंत कठोर होता है। ये 24 घंटे तक खड़े होकर शिव गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। ऐसा करने के पश्चात ये स्वयं का श्राद्ध कर्म करते हैं। वर्षो तक धूप, वर्षा ठंड से स्वयं को तपाते हैं। हठ योग करते हैं। जैसे - कुंभ के मेले में ये प्रण लेते हैं कि एक पैर पर खड़े रहना है जब तक कुंभ का मेला है। यदि उस बीच ये पैर को जमीन में रख देते हैं तो इसका अर्थ है कि ये अगले कुंभ मेले तक एक पैर में ही खड़े रहेंगे।

‌इस प्रकार इनका जीवन बहुत कठिन कठोर तपस्या से भरा होता है। ये किसी से कुछ नहीं मांगते।

‌जो भी मिल जाता है पशु मे कुत्ते के साथ मिलकर इक ही पात्र में खाते हैं।

2.. इंसानों का कच्चा मांस खाते हैं: इस बात से लगभग सभी अवगत ही होंगे कि अघोरी कच्चा मांस खाते हैं। ये अघोरी सदैव रात्री के समय श्मशान घाट में ही रहते हैं और अधजली शवों को निकालकर उनका कच्चा पक्का मांस खाते हैं, शरीर से प्रवाहित होने वाले द्रव्य अर्थात जब शरीर डिकंपोज होती है तो शरीर का रक्त पानी की तरह बहने लगता है उसी का ये सेवन करते हैं। जो असहनीय गंध से भरा होता है। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति में प्रबलता होती है. वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है।

‌3. शिव और शव के उपासक: अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में तल्लीन करना चाहते हैं. शिव के पंच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है. शिव की उपासना करने के मध्य ये अघोरी शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं. 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है. ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है जैसे मां काली शिव पर पैर रखी थीं। और श्मशान साधना, जहां हवन यज्ञ किया जाता है। साथ ही ये साधना में सदैव किसी मज़बूत शरीर का ही उपयोग करते हैं। ना कि किसी बालक का।

4. शिव की वजह से ही धारण करते हैं नरमुंड: शरीर का श्रृंगार ये भस्म से करते हैं। क्योंकि शरीर ही इनका वस्त्र अगर आपने अघोरियों चित्र देखी होंगी तो यह जरूर पाया होगा कि उनके पास हमेशा एक इंसानी खोपड़ी, त्रिशूल जरूर रहती है। अघोरी बाबा मानव खोपड़ियों को भोजन के पात्र के रूप में प्रयोग करते हैं, जिस कारण इन्हें कापालिक कहा जाता है. कहा जाता है कि यह प्रेरणा उन्हें शिव से ही मिली. किवदंतियों के अनुसार एक बार शिव ने ब्रह्मा का मस्तक अहंकार उत्पन्न होने के कारण खंडित कर दिया था और उनका सिर लेकर उन्होंने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे. शिव के इसी रूप के अनुयायी होने के कारण अघोरी भी अपने साथ नरमुंड रखते हैं।

5. स्वभाव से रुखे, किन्तु सबसे बड़े दानी - अघोरी भले ही स्वभाव से रुखे होते हैं किन्तु अपने पुण्य फल को देने में एक क्षण की भी प्रतीक्षा नहीं करते। ये जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। इनकी आंखों में बहुत क्रोध दिखता है किंतु मन से ये बहुत ही शांत होते हैं।

6. बालक की तरह अबोध - ये बालक की तरह अबोध भी हैं। जैसे एक बालक मल - मूत्र गंध दुर्गंध सुगंध से मुक्त रहते हैं ठीक वैसे ही अघोरी भी घृणा से मुक्त होकर स्वयं में मस्त मौला बनकर जीते हैं।

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

1.प्लैनरियन फ्लैटवर्म : यह प्राणी अजर अमर है आप इसके लगभग 200 टुकड़े कर सकते हैं। आश्चर्य की हर टूकड़े फिर से एक जीव बन जाएगा।

2.हाइड्रा — आप बहुत सिरों वाला सांप या जलव्याल समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड्रा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड्रा में विकसित हो जाता है। देखने में यह शायद आपको ऑक्टोपस जैसा लगे।

3.जेलिफ़िश - जेलीफिश के बारे में तो सभी जानते ही होंगे। यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।

4.टार्डीग्रेड-पानी में रहने वाला आठ पैरों वाला और 4 mm लंबा यह जीव 30 वर्षों तक बिना खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष के व्योम में भी जिंदा करने की योग्यता है। यह किसी भी प्रकार के वातावरण में जिंदा रह सकता है। टार्डीग्रेड माइनस 272 डीग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है और यह लगभग 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। मानवों की तुलन में यह सैंकड़ों अधिक गुना तक जिंदा रह सकते हैं। संभवत: उससे भी ज्यादा यदि इन्हें मारा न जाए तो। यह प्राणी धरती पर लगभग 60 करोड़ साल है। इस जंतु को धरती का प्राणी नहीं माना जाता है।

5.अलास्कन वुड फ्रॉग (Alaskan wood frog) : यह मेंढक भी अजर अमर है। अलास्का में जब तापमान - 20°c गिर जाता है तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह सीतनिद्रा (hibernation) में सो जाता है। तब यह लगभग 80% तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। दिल की धड़कन भी बंद हो जाती है। अगर डॉक्टरी भाषा में कहें तो यह मर चुका होता है लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके दिल में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका दिल फिर से धड़कने लगता है। मतलब यह कि यह फिर से जिंदा होकर अपने काम पर लग जाता है। इसे फ्रोजन फ्रॉग भी कहते हैं।

6.लंग फिश (Lung Fish) : इस मछली के बारे में कहा जाता है कि यह पांच साल तक बिना कुछ खाए पीए जिंदा रह सकती है। अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर होती है तो अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।

स्रोत गूगल

सर्जरी के आविष्कारक - महर्षि सुश्रुत

 

महर्षि सुश्रुत सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं...

आज से 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।

आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता है।

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर- इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं

भारत का हाबूर गांव, जहां मिलता है दही जमाने वाला चमत्कारी पत्थर

दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं। कभी कटोरी लेकर पड़ोसी के यहां पर भागते हैं तो कभी थोड़ा सा दही बाजार से ले आते हैं, सोचते है की थोड़े से दही को दूध में डालकर खूब सारा दही जमा ले। लेकिन राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव को अभी तक जामन की जरूरत ही नहीं पड़ी, ऐसा नहीं है कि यहां पर लोग दही नहीं खाते, छाछ नहीं पीते। बल्कि उनके पास लाखों बरस पुराना जादुई पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध, दही बन जाता है। आइए जानते हैं उस गांव के पास विशेष पत्थर के साथ दही बनाने की अनूठी विधि कौनसी है ? और उस पत्थर का रहस्य क्या है?

हाबूर गांव - जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है हाबूर गांव। ये वहीं गांव है जहां पर दही जमाने वाला रहस्यमयी पत्थर पाया जाता है। इस गांव को स्वर्णगिरी के नाम से जाना जाता है। हाबूर गांव का वर्तमान नाम पूनमनगर है। हाबूर पत्थर को स्थानीय भाषा में हाबूरिया भाटा कहा जाता है। ये गांव अनोखे पत्थर की वजह से देश- विदेश में प्रसिद्ध है।


दही जामने वाला हाबूर पत्थर: जैसलमेर पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है, यहां के पीले पत्थर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। लेकिन हाबूर गांव का जादुई पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है। हाबूर पत्थर दिखने में बहुत खूबसूरत होता है। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। हाबूर पत्थर का कमाल ऐसा है कि इस पत्थर में दूध को दही बनाने की कला है। हाबूर पत्थर के संपर्क में आते ही दूध एक रात में दही बन जाता है। जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है। इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है। इस गांव में मिलने वाले स्टोन से यहां के लोग बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाते हैं जो अपनी विशेष खूबी के चलते देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। इस पत्थर से गिलास, प्लेट, कटोरी, प्याले, ट्रे, मालाएं, फूलदान, कप, थाली, और मूर्तियां बनाए जाते हैं।

पत्थर से दही जमने की वजह : अब सवाल उठता है कि एक पत्थर से कैसे दही जम सकता है। वो भी रात को दूध उस पत्थर से बने बर्तन में डाला और सुबह उठकर दही खा लो। जब ऐसा होने लगा तो रिसर्च भी होने लगी, जिसमें ये सामने आया है की हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे केमिकल्स मौजूद है। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं। ये केमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है जो इसे चमत्कारी बनाते हैं।

क्या है इतिहास: कहा जाता है कि जैसलमेर में पहले समुद्र हुआ करता था। जिसका का नाम तेती सागर था। कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए और पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है।

हाबूर पत्थर से बने बर्तनों की डिमांड: हाबूर पत्थर से बने बर्तनों कि डिमांड देश के साथ-साथ विदेशों में भी है। इस पत्थर से बने बर्तनों की बिक्री ऑनलाइन भी होती है। कई ऐसे ऑनलाइन आउटलेट है जहां पर आपको इस पत्थर से बने बर्तन अलग- अलग Rate पर मिल जाएंगे। उदाहरण के तौर पर अगर आपको हाबूर पत्थर से बनी एक प्याली खरीदनी है तो आपको 1500 से 2000 रुपये चुकाने होंगे। वहीं कटोरी की कीमत 2500 के आसपास हो सकती है। वहीं एक गिलास की कीमत 650 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक होती है।

हाबूर पत्थर में औषधीय गुण: हाबूर पत्थर चमत्कारी जीवाश्म पत्थर बताया जाता है जिसका गठन 180 मिलियन साल पहले समुद्र के खोल से जैसलमेर में हुआ था। इसमें भारी औषधीय गुण होते हैं, जैसे मधुमेह तथा रक्त दबाव नियंत्रित करता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर से बने गिलास में रात को सोते समय पानी भरकर रख दो और सुबह खाली पेट पी लो। अगर आप एक से डेढ़ महीने तक लगातार इसका पानी पीते है, तो आपके शरीर में एक चेंज नजर आएगा। आपके शरीर में होने वाला जोड़ों का दर्द कम होगा साथ ही पाइल्स की बीमारी कंट्रोल होगी।

हाबूर गांव कैसे जाएं : अगर आप दिल्ली से हाबूर गांव आना चाहते हैं तो आपको 810 किलोमीटर का सफर तय करना होगा। आप यहां पर बस, कार, जीप में आ सकते हैं।

25 मई से प्रारंभ होकर 2 जून तक रहेगा नौतपा

!!  *सूर्यनारायणाय नमः* !!

*🌞🔥25 मई से प्रारंभ होकर   2 जून तक रहेगा नौतपा*


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*🌞🔥नौतपा यानी वे 9 दिन जब सूर्य धरती के ज्यादा करीब आ जाते हैं, जिससे गर्मी अधिक पड़ती है। नौतपा 25 मई शुरू हो रहा है और 2 जून तक रहेगा। नौतपा के दौरान प्रचंड गर्मी होती है, जिससे मानसून बनता है।*

 *🌞🔥अगर इन 9 दिनों में बारिश होने लगे तो नौतपा का गलना कहा जाएगा। ऐसा होने पर अच्छी बारिश की संभावना नहीं होती। माना जाता है कि नौतपा  खूब तपा तो उस साल अच्छी बारिश होती है। क्योंकि तपन की वजह से समुद्र के जल का तेजी से वाष्पीकरण होता है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश करते हैं।*

*🌞सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर*
*परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर*

*🌞🔥घाघ के इस दोहे का अर्थ है… रोहिणी नक्षत्र में भरपूर गर्मी हो, मूल भी पूरा तपे और जेठ की प्रतिपदा पर भी भीषण गर्मी हो तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।* 

*🔥🌞मौसम और खेती के लिहाज से इस साल यह दोहा एकदम सटीक साबित हो सकता है।* 

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, जेठ के इन नौ दिनों में गर्मी का प्रकोप बढ़ता जाएगा। इसके साथ धूल भरी आंधी भी चलने के आसार हैं। नौतपा में भीषण गर्मी पड़ने से इस साल अच्छी बरसात होगी। इससे खाद्यान्न उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।*

*🌞🔥ऐसे शुरू होता है नौतपा*

*🌞🔥ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर यानी 25 मई को सूर्य कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। दोपहर 02 बजकर 52 मिनट पर सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ नौतपा शुरू हो जाएगा और वहां वह 8 जून को सुबह 06 बजकर 40 मिनट तक रहेंगे। इसके बाद 15 दिनों तक सूर्य की किरणें धरती पर लंबवत पड़ेंगी।* 

*🌞🔥इसके शुरुआती नौ दिनों को नौतपा कहते हैं। इन नौ दिनों को गर्मी का चरम माना जाता है।*

*🌞🔥ग्रह-नक्षत्रों की चाल*

*🌞🔥मौजूदा समय में सूर्य शुक्र की राशि वृषभ राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही शुक्र नौतपा से पहले मेष में आ गए हैं और मंगल व गुरु एक ही नक्षत्र में विराजमान रहेंगे। पूरे नौतपा के दौरान मेष, वृषभ और मीन राशि में तीन ग्रहों की युति रहेगी अर्थात नौतपा के दौरान हर दिन त्रिग्रही योग बनेगा, जिससे मौसम में बदलाव आएगा*

*🌞🔥अच्छी बारिश की मान्यता*

*🌞🔥ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, चंद्रमा जब ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो और तीव्र गर्मी पड़े तो वह नौतपा है। रोहिणी के दौरान बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है। इस बार मॉनसून में अच्छी बारिश के अनुकूल योग हैं। इस वर्ष मेघेश बुध हैं और वह सूर्य के नक्षत्र में स्थित हैं। इससे वर्षा समयानुकूल होने के योग बन रहे हैं।*
*🌞🔥यह है नौतपा का विज्ञान*

*🌞🔥नौतपा के दौरान सूर्य घूमते हुए मध्य भारत के ऊपर आ जाता है। जब यह कर्क रेखा के पास पहुंच जाता है, तब 90 डिग्री की स्थिति में होता है। इससे सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं। इससे तापमान बढ़ जाता है।*

*🌞🔥नौतपा के दौरान बरतें ये सावधानी*

*🌞🔥नौतपा के समय कुछ भी खाए-पिए घर से नहीं निकलना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में नौतपा के दौरान जल की कमी नहीं रहती।*

*🌞🔥नौतपा के समय हमेशा टोपी पहने, कानों को ढ़ककर रखें और आंखों पर चश्मा लगाएं। हर दिन सत्तू पिएं और मौसमी फल, फलों का रस, दही, मट्ठा, छाछ आदि का सेवन करें।*

*🌞🔥नौतपा के समय तैलीय और मसालेदार भोजन से दूरी बनाकर रखें। साथ ही हल्का व शीघ्र पचने वाला भोजन करें, इससे पेट खराब नहीं होता है।*

*🌞🔥नौतपा के समय गर्मी अधिक होती है इसलिए लू से बचकर रहें और घर में रहें। पंखा, एसी और कूलर से निकलने के बाद एकदम गर्मी में न जाएं।*
 संकलित ...
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