असली अघोर शब्द का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अघोर जो घोर ना हों जो भयावह से मुक्त हों। अघोर साधू की पहचान जानिये विस्तार से -
अघोरी बाबा सुनते ही नसों में एक वीभत्स घिनौना सा रूप आ जाता है. भस्म का स्नान, मनुष्य मांस का भक्षण करने वाला, तंत्र मंत्र से सीधा जोड़कर देखा जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में तात्पर्य है 'अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त, शुद्धता भी समझा जाता है. किंतु अघोरियों का रहन-सहन और शुद्धता के एकदम विरुद्ध ही दिखते हैं. अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़े कुछ नवीनतम पक्ष लेकर आई हूँ। आप भी इस बेहद ही महत्वपूर्ण चर्चा में सम्मिलित होइये - - - - -
1. कठोर जीवन - इनका जीवन अत्यंत कठोर होता है। ये 24 घंटे तक खड़े होकर शिव गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। ऐसा करने के पश्चात ये स्वयं का श्राद्ध कर्म करते हैं। वर्षो तक धूप, वर्षा ठंड से स्वयं को तपाते हैं। हठ योग करते हैं। जैसे - कुंभ के मेले में ये प्रण लेते हैं कि एक पैर पर खड़े रहना है जब तक कुंभ का मेला है। यदि उस बीच ये पैर को जमीन में रख देते हैं तो इसका अर्थ है कि ये अगले कुंभ मेले तक एक पैर में ही खड़े रहेंगे।
इस प्रकार इनका जीवन बहुत कठिन कठोर तपस्या से भरा होता है। ये किसी से कुछ नहीं मांगते।
जो भी मिल जाता है पशु मे कुत्ते के साथ मिलकर इक ही पात्र में खाते हैं।
2.. इंसानों का कच्चा मांस खाते हैं: इस बात से लगभग सभी अवगत ही होंगे कि अघोरी कच्चा मांस खाते हैं। ये अघोरी सदैव रात्री के समय श्मशान घाट में ही रहते हैं और अधजली शवों को निकालकर उनका कच्चा पक्का मांस खाते हैं, शरीर से प्रवाहित होने वाले द्रव्य अर्थात जब शरीर डिकंपोज होती है तो शरीर का रक्त पानी की तरह बहने लगता है उसी का ये सेवन करते हैं। जो असहनीय गंध से भरा होता है। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति में प्रबलता होती है. वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है।
3. शिव और शव के उपासक: अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में तल्लीन करना चाहते हैं. शिव के पंच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है. शिव की उपासना करने के मध्य ये अघोरी शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं. 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है. ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है जैसे मां काली शिव पर पैर रखी थीं। और श्मशान साधना, जहां हवन यज्ञ किया जाता है। साथ ही ये साधना में सदैव किसी मज़बूत शरीर का ही उपयोग करते हैं। ना कि किसी बालक का।
4. शिव की वजह से ही धारण करते हैं नरमुंड: शरीर का श्रृंगार ये भस्म से करते हैं। क्योंकि शरीर ही इनका वस्त्र अगर आपने अघोरियों चित्र देखी होंगी तो यह जरूर पाया होगा कि उनके पास हमेशा एक इंसानी खोपड़ी, त्रिशूल जरूर रहती है। अघोरी बाबा मानव खोपड़ियों को भोजन के पात्र के रूप में प्रयोग करते हैं, जिस कारण इन्हें कापालिक कहा जाता है. कहा जाता है कि यह प्रेरणा उन्हें शिव से ही मिली. किवदंतियों के अनुसार एक बार शिव ने ब्रह्मा का मस्तक अहंकार उत्पन्न होने के कारण खंडित कर दिया था और उनका सिर लेकर उन्होंने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे. शिव के इसी रूप के अनुयायी होने के कारण अघोरी भी अपने साथ नरमुंड रखते हैं।
5. स्वभाव से रुखे, किन्तु सबसे बड़े दानी - अघोरी भले ही स्वभाव से रुखे होते हैं किन्तु अपने पुण्य फल को देने में एक क्षण की भी प्रतीक्षा नहीं करते। ये जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। इनकी आंखों में बहुत क्रोध दिखता है किंतु मन से ये बहुत ही शांत होते हैं।
6. बालक की तरह अबोध - ये बालक की तरह अबोध भी हैं। जैसे एक बालक मल - मूत्र गंध दुर्गंध सुगंध से मुक्त रहते हैं ठीक वैसे ही अघोरी भी घृणा से मुक्त होकर स्वयं में मस्त मौला बनकर जीते हैं।
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