यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

छॅंठ पूजा की संपूर्ण कथा

🚩🏵️‼️छॅंठ पूजा की संपूर्ण कथा‼️🏵️🚩

🌞 ❛❛ छठ पूजा भारत का एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र पर्व है, जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है ! यह पर्व दीपावली के छह दिन बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है ! चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष श्रद्धा के साथ मनाया जाता है ! ❜❜

🌞 छठ पूजा की उत्पत्ति और पौराणिक कथाएं : 〰️
🏵️ द्रौपदी और पांडवों की कथा : 〰️
❛❛ महाभारत काल में जब पांडव जुए में अपना सब कुछ, राज्य, धन, और सम्मान हार गए थे, तब वे गहन दुःख में थे ! उस समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने का उपदेश दिया ! द्रौपदी ने पूरे मन, श्रद्धा और नियम पूर्वक सूर्य देव की उपासना की ! उन्होंने छठी मैया की आराधना कर यह प्रार्थना की कि उनके परिवार को पुनः सुख और सम्मान मिले ! कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया ! तभी से छठ व्रत को संकटों से मुक्ति, समृद्धि और सफलता प्रदान करने वाला व्रत माना जाता है ! ❜❜

🏵️ राजा प्रियवद और रानी मालिनी की कथा : 〰️
❛❛ प्राचीन समय में राजा प्रियवद और रानी मालिनी संतानहीन थे ! संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया ! यज्ञ पूर्ण होने पर महर्षि ने रानी को यज्ञ की खीर दी !
रानी ने वह खीर ग्रहण की, जिससे उन्हें पुत्र प्राप्ति तो हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश वह बालक मृत पैदा हुआ ! ❜❜

❛❛ राजा प्रियवद पुत्र-वियोग के दुःख में श्मशान पहुँचे और अपने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया ! उसी समय आकाश से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ, और उसमें से एक देवी अवतरित हुईं ! उन्होंने कहा, “राजन, मैं छठी देवी हूँ, सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ ! यदि तुम मेरी पूजा और व्रत करोगे तो तुम्हें जीवित पुत्र प्राप्त होगा" ! ❜❜

❛❛ राजा प्रियवद ने श्रद्धा से छठी देवी की पूजा की ! देवी प्रसन्न हुईं और उन्हें एक सुन्दर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई !
तभी से यह व्रत संतान-सुख और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाने लगा ! ❜❜

🏵️ भगवान श्री राम और माता सीता की कथा : 〰️
❛❛ लंका विजय के बाद जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे और रामराज्य की स्थापना हुई, तब उन्होंने और माता सीता ने भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की उपासना की ! अगले दिन सप्तमी को उन्होंने उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया ! इस प्रकार उन्होंने लोक कल्याण और परिवार की सुख-शांति के लिए यह व्रत किया ! ❜❜

🏵️ सूर्य पुत्र कर्ण की कथा : 〰️
❛❛ महाभारत के महान योद्धा कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे ! वे प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते थे ! सूर्य की उपासना से ही उन्हें अद्भुत शक्ति और तेज प्राप्त हुआ था ! इसी परंपरा के आधार पर आज भी छठ पर्व में जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है ! ❜❜

🌸 छॅंठी मैया का स्वरूप और महत्व : 〰️
❛❛ छठी मैया को सूर्य देव की बहन कहा जाता है ! वे संतान की रक्षक और सुख-समृद्धि की दात्री मानी जाती हैं ! कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया भगवान ब्रह्मा की पुत्री या प्रकृति का छठा अंश हैं ! कई ग्रंथों में उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी भी बताया गया है ! ❜❜

🌄 छॅंठ पूजा की विधि और अवधि : 〰️
🏵️ यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है : 〰️

०१. पहला दिन ( नहाय-खाय ) :  〰️
❛❛ व्रती स्नान कर शुद्ध भोजन करते हैं ! ❜❜

०२. दूसरा दिन ( खरना ) : 〰️
❛❛ दिनभर निर्जला उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर से व्रत की शुरुआत करते हैं। ❜❜

०३. तीसरा दिन ( संध्या अर्घ्य ) : 〰️
❛❛ अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है ! ❜❜

०४. चौथा दिन ( उषा अर्घ्य ) : 〰️
❛❛ उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है ! और ( छठ व्रत का पारण ) व्रती इस दौरान ३६ घंटे तक निर्जल उपवास करते हैं और भगवान सूर्य तथा छठी मैया से संतान, परिवार के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं ! ❜❜

🌞 छॅंठ पूजा का संदेश : 〰️
❛❛ छठ पूजा न केवल सूर्य देव की उपासना का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति, जल, और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का उत्सव भी है ! ❜❜
❛❛ यह व्रत मनुष्य में अनुशासन, शुद्धता, संयम और श्रद्धा का भाव जाग्रत करता है ! ❜❜
❛❛ जो व्यक्ति पूरे समर्पण और भक्ति भाव से छठी मैया की पूजा करता है, उसके जीवन में सुख, शांति, संतान-सुख और समृद्धि का वास होता है ••• !!! ❜❜ ✍
ßß

आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सिर की गणना कैसे की गयी...🚩👇👆

आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सिर की गणना कैसे की गयी...
🚩👇👆
कुछ मलेक्स के  हाई ब्रीड नश्ल द्वारा हिंदू धर्म व रामायण महाभारत गीता को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट ने लगभग 6 वीं शताब्दी मे शून्य/जीरो की खोज की तो आर्यभट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई। और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई। जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे, तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना

अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ".
👇👆

कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे। आर्यभट्ट से पहले संसार 0(शुन्य) को नही जानता था। आर्यभट्ट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है। लेकिन आर्यभट्ट ने "0(जीरो) की खोज 'अंको मे' की थी, 'शब्दों' में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था। उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण, स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को शुन्य कहा गया है।

 यहाँ पे शुन्य बका मतलव अनंत से होता है। लेकिन रामायण व महाभारत काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी संस्कृत मे।

उस समय "1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10 अंक के स्थान पे 'शब्दो' का प्रयोग होता था वह भी 'संस्कृत' के शव्दो का प्रयोग होता था। जैसे:1 = प्रथम 2 = द्वितीय 3 = तृतीय" 4 = चतुर्थ 5 = पंचम"" 6 = षष्टं" 7 = सप्तम"" 8 = अष्टम, 9 = नवंम"" 10 = दशम। "दशम = दस" यानी दशम मे "दस" तो आ गया, लेकिन अंक का 0 (जीरो/शुन्य) नही आया,‍‍ रावण को दशानन कहा जाता है। 'दशानन मतलब दश+आनन =दश सिर वाला' अब देखो रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई। लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया। 

इसी प्रकार महाभारत काल मे संस्कृत" शब्द मे "कौरवो" की सौ की संख्या को "शत-शतम" बताया गया। 'शत्' एक संस्कृत का "शब्द है, जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है। सौ(100) को संस्कृत मे शत् कहते है। शत = सौ इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई। लेकिन इस गिनती मे भी "अंक का 00(डबल जीरो)" नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई। महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है। 

रोमन में भी 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की जगह पे (¡), (¡¡), (¡¡¡) पाँच को V कहा जाता है। दस को x कहा जाता है। X= दस इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया। और हम" दश पढ़ "भी लिए और" गिनती पूरी हो गई! इस प्रकार रोमन मे कही 0 (जीरो) "नही आता है। और आप भी रोमन मे" एक से लेकर सौ की गिनती पढ लिख सकते है। आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है। पहले के जमाने मे गिनती को शब्दो मे लिखा जाता था। उस समय अंको का ज्ञान नही था। जैसे गीता, रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो  को इस प्रकार पढा जाता है। जैसे (प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय... आदि!) इनके दशम अध्याय ' मतलब दशवा पाठ  होता है। दशम अध्याय= दसवा पाठ इसमे 'दश' शब्द तो आ गया। लेकिन इस दश मे 'अंको का 0' (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ। बिना 0 आए पाठो की गिनती दश हो गई।

हिंदु विरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा ‍हिंदू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है। जिससे हिंदुओं के मन मे हिंदू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके, हिंदू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए। लेकिन आज का हिंदू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है। यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानि कारक है। अपनी सभ्यता पहचानें, गर्व करें की हम सनातनी हैं हम भारतीय हैं ।
🚩🚩

आप शुरुआत में जीते, आप अंत में जीते, आप बीच में भी जीतेंगे।

विज्ञान कहता है

कि एक वयस्क स्वस्थ पुरुष एक बार संभोग के बाद जो वीर्य स्खलित करता है, उसमें 400 मिलियन शुक्राणु होते हैं......

ये 40 करोड़ शुक्राणु मां के गर्भाशय की ओर पागलों की तरह दौड़ते हैं, केवल 300-500 शुक्राणु ही जीवित बचते हैं। और बाकी? वे रास्ते में थक जाते हैं या मर जाते हैं। इन 300-500 शुक्राणुओं में से जो अंडे तक पहुँचने में कामयाब हो जाते हैं, केवल एक अत्यंत शक्तिशाली शुक्राणु ही अंडे को निषेचित करता है या अंडे में बस जाता है। वह भाग्यशाली शुक्राणु आप हैं, मैं हूँ या हम सभी हैं। क्या आपने कभी इस महायुद्ध के बारे में सोचा है?

❒ आप भागे थे - जब आपकी आँखें, हाथ, पैर, सिर नहीं थे, फिर भी आप जीत गए...

❒ आप भागे थे - आपके पास कोई प्रमाणपत्र नहीं था, कोई दिमाग नहीं था, फिर भी आप जीत गए....

❒ आप भागे थे - आपके पास कोई शिक्षा नहीं थी, किसी ने आपकी मदद नहीं की, फिर भी आप जीत गए....

❒ जब आप दौड़े थे - आपके पास एक मंज़िल थी और आपने उस मंज़िल की ओर अपना लक्ष्य निर्धारित किया और अंत तक दौड़े और आप जीत गए....

❒ कई बच्चे अपनी मां के गर्भ में ही मर जाते हैं, लेकिन आप नहीं मरे, आप पूरे 9 महीने जीवित रहे ....

❒ कई बच्चे प्रसव के दौरान मर जाते हैं, लेकिन आप बच गए....

❒ कई बच्चे जन्म के पहले 5 सालों में ही मर जाते हैं, लेकिन आप फिर भी जीवित हैं...

❒ कई बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं, लेकिन आपको कुछ नहीं हुआ....

❒ कई लोग वयस्कता की राह पर इस दुनिया को छोड़ गए, लेकिन आप अब भी यहां हैं....

और आज जब भी कुछ होता है, तो आप डर जाते हैं, निराश हो जाते हैं, लेकिन क्यों? आपको ऐसा क्यों लगता है कि आप हार गए हैं? आपका आत्मविश्वास क्यों खो जाता है?

हालांकि अब आपके पास दोस्त हैं, भाई-बहन हैं, सर्टिफिकेट हैं, शिक्षा है....सब कुछ है। आपके पास हाथ-पैर हैं, योजना बनाने के लिए दिमाग है, मदद करने वाले लोग हैं, फिर भी आप उम्मीद खो देते हैं। जब आपने अपने जीवन के पहले दिन हार नहीं मानी थी। आपने 40 करोड़ शुक्राणुओं के साथ मौत से जंग लड़ी और बिना किसी की मदद के अकेले ही प्रतियोगिता जीत ली। फिर निराशा क्यों?

आप शुरुआत में जीते, आप अंत में जीते, आप बीच में भी जीतेंगे। खुद को समय दें, अपने मन से पूछें - आपके पास जो स्किल है, उसे सजाएं संवारे..इनोवेटिव ideas पैदा करें? हुनर सीखें.. स्ट्रगल करें... लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें....रस्ते के बाधाओं से लड़ते रहें, आप खुद ही जीत जाएंगे

function disabled

Old Post from Sanwariya