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रविवार, 22 जून 2025

"जहां मुनाफा ज़रूरी नहीं, ज़रूरत की कीमत ज़्यादा है – पढ़िए इस दुकान की कहानी"

🚩बदलाव की शुरूआत अंदर से होती है🚩
वह रोज़ की तरह अपनी किराने की दुकान बंद करके गली में थोड़ी देर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई —"अंकल... अंकल..."

वे पलटे। एक लगभग 7-8 साल की बच्ची हांफती हुई उनके पास आ रही थी।

"क्या बात है... भाग कर आ रही हो?" उन्होंने थोड़े थके मगर सौम्य स्वर में पूछा।

"अंकल पंद्रह रुपए की कनियाँ (चावल के टुकड़े) और दस रुपए की दाल लेनी थी..." बच्ची की आंखों में मासूमियत और ज़रूरत दोनों झलक रहे थे।

उन्होंने पलट कर अपनी दुकान की ओर देखा, फिर कहा —
"अब तो दुकान बंद कर दी है बेटा... सुबह ले लेना।"
"अभी चाहिए थी..." बच्ची ने धीरे से कहा।

"जल्दी आ जाया करो न... सारा सामान समेट दिया है अब।" उन्होंने नर्म मगर व्यावसायिक अंदाज़ में कहा।

बच्ची चुप हो गई। आंखें नीची कर के बोली —
"सब दुकानें बंद हो गई हैं... और घर में आटा भी नहीं है..."
उसके ये शब्द किसी हथौड़े की तरह उनके सीने पर लगे।
वे कुछ देर चुप रहे। फिर पूछा, "तुम पहले क्यों नहीं आई?"

"पापा अभी घर आए हैं... और घर में... " वो रुकी, शायद आँसू रोक रही थी।
उन्हें कुछ और पूछने की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने बच्ची की आंखों में देखा और बिना कुछ कहे, ताले की चाबी जेब से निकाल ली। दुकान का ताला खोला, अंदर घुसे, और समेटे हुए सामान को हटाते हुए कनियाँ और दाल बिना तोले ही थैले में डाल दी।

बच्ची ने थैला पकड़ते हुए कहा —"धन्यवाद अंकल..."
"कोई बात नहीं। अब घर ध्यान से जाना।" इतना कह कर उन्होंने दुकान फिर से बंद कर दी।

उस रात वह जल्दी सो नहीं पाए। मन में बच्ची की उदासी, उसका मासूम चेहरा और वो शब्द "घर में आटा भी नहीं है..." गूंजते रहे।

उन्हें अपना बचपन याद आ गया।
वे भी कभी ऐसे ही हालात से गुजरे थे। पिता रिक्शा चलाते थे, मां दूसरों के घरों में काम करती थीं। कई बार तो रात को पानी में रोटी भिगो कर खाना पड़ता था। तब किसी ने मदद की होती तो कितना सुकून मिलता था।

"अब मेरे पास दुकान है, कमाई है, लेकिन क्या मैंने इंसानियत भी कमा ली है?" उन्होंने खुद से सवाल किया।
सुबह जब उन्होंने दुकान खोली, तो सबसे पहले एक बोर्ड बनाया —"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए। कुछ सामान उधार नहीं, हक़ से मिलेगा।"

पास में ही एक डब्बा रख दिया, जिस पर लिखा था —
"अगर आप किसी के लिए मदद करना चाहें, तो इसमें पैसे डाल सकते हैं।"

गली के लोग पहले तो हैरान हुए। लेकिन धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि ये कोई पब्लिसिटी स्टंट नहीं, ये उस इंसान का दिल था जो अपने अतीत से सबक लेकर किसी का आज सुधारना चाहता था।

एक हफ्ते बाद वही बच्ची फिर से आई, इस बार अपने छोटे भाई के साथ।
"अंकल, पापा ने कुछ पैसे दिए हैं... पिछली बार जो आपने दिया था उसका भी जोड़ लें।" वह मासूमियत से बोली।
"नहीं बेटा, उस दिन जो दिया था वो इंसानियत का कर्ज़ था। उसका कोई हिसाब नहीं होता।"

बच्ची मुस्कुरा दी। उसने दुकान में रखा वो बोर्ड पढ़ा और बोली —"पापा ने कहा है कि जब वे मज़दूरी करके लौटेंगे, तो इस डब्बे में पैसे डालेंगे... ताकि किसी और को भी मदद मिल सके।"

उस दिन उस दुकानदार की आंखें भर आईं। किसी ने सच ही कहा है — "नेकी कभी बेकार नहीं जाती।"

धीरे-धीरे इस दुकान का नाम गली में फैलने लगा — "इंसानियत वाली दुकान।"

गली की बुज़ुर्ग महिलाएं, अकेले रहने वाले बुज़ुर्ग, और दिहाड़ी मज़दूर अब यहां से इज़्ज़त से सामान लेते। जो सक्षम होते, वे उस डब्बे में कुछ न कुछ डालते जाते।

कई स्कूल के बच्चे भी अपनी गुल्लक से पैसे लाकर उसमें डालते।

यह दुकान अब सिर्फ व्यापार का स्थान नहीं थी, यह एक भरोसे का मंदिर बन गई थी।

कुछ ही समय में इस दुकान की चर्चा सोशल मीडिया पर हुई। एक स्थानीय पत्रकार ने इस कहानी को अपने अख़बार में छापा —
"जहां मुनाफा ज़रूरी नहीं, ज़रूरत की कीमत ज़्यादा है – पढ़िए इस दुकान की कहानी"

यह लेख वायरल हो गया। कई सोशल मीडिया पेजों ने इस दुकान का वीडियो बनाया। लोग दूर-दूर से इस ‘इंसानियत वाली दुकान’ को देखने आने लगे।
पर दुकानदार ने कभी उसका फ़ायदा नहीं उठाया। उन्होंने कहा —
"अगर एक बच्ची की भूख ने मुझे बदल दिया, तो शायद ये दुकान किसी और को भी बदल दे।"

वो बच्ची अब रोज़ स्कूल जाती है। दुकानदार ने उसके स्कूल की फ़ीस भी गुप्त रूप से भर दी।

उसके पिता ने दुकानदार से कहा —
"आपने उस दिन सिर्फ चावल और दाल नहीं दी थी, आपने मेरी बेटी को भरोसा दिया था कि दुनिया में अच्छे लोग अब भी ज़िंदा हैं।"

आज भी उस दुकान के बाहर वो बोर्ड लगा है —
"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए।" और उस डब्बे में हर दिन कोई न कोई चुपचाप कुछ न कुछ डाल कर चला जाता है।

यह कहानी उस छोटी सी बच्ची की है, लेकिन यह बदलाव की बड़ी लहर बन चुकी है।

एक व्यक्ति, एक दुकान, और एक मासूम सी आवाज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि —
"बदलाव की शुरुआत बाहर से नहीं, दिल के भीतर से होती है।"


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#MittiKiKhushboo

क्या आप जानते हैं वह लड़का कौन था जिसे मोदी जी ने सराहा और DRDO में नौकरी दी..?*

*क्या आप जानते हैं वह लड़का कौन था जिसे मोदी जी ने सराहा और DRDO में नौकरी दी..?*
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उसका नाम प्रताप है, वह सिर्फ 21 साल का है।
वह कर्नाटक के मैसूर के पास कडैकुडी गांव का रहने वाला है।
उसका पिता एक साधारण किसान है।
वह एक गरीब छात्र था।
वह बचपन से ही अपनी कक्षा में प्रथम आता था, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया।
स्कूल की छुट्टियों में वह 100-150 रुपये कमाकर पास के इंटरनेट सेंटर में जाता और ISRO, NASA, BOEING, ROLLS ROYCE, HOWITZER आदि के बारे में रिसर्च करता और वहां के वैज्ञानिकों को ई-मेल भेजता।
उसे कभी कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उसने हार नहीं मानी और न ही उम्मीद छोड़ी।

उसे इलेक्ट्रॉनिक्स से बहुत प्रेम था। उसका सपना इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग करने का था, लेकिन गरीबी के कारण उसे बी.एससी (फिजिक्स) में दाखिला लेना पड़ा। फिर भी वह निराश नहीं हुआ।
होस्टल की फीस न दे पाने के कारण उसे बाहर कर दिया गया।
वह बसों में रहता, सार्वजनिक शौचालयों में काम करता और एक दोस्त की मदद से C++, Java, Python आदि सीखता।
वह अपने दोस्तों और ऑफिसों से ई-वेस्ट के रूप में कीबोर्ड, माउस, मदरबोर्ड और अन्य कंप्यूटर उपकरण इकट्ठा करता और उन पर रिसर्च करता।
वह मैसूर की इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों में जाकर ई-वेस्ट के रूप में सामान इकट्ठा करता और एक ड्रोन बनाने की कोशिश करता।
वह दिन में पढ़ाई और काम करता और रात में प्रयोग करता।
करीब 80 प्रयासों के बाद उसका बनाया ड्रोन हवा में उड़ गया। उस समय वह एक घंटे तक खुशी से रोता रहा।

ड्रोन की सफलता की खबर से वह अपने दोस्तों में हीरो बन गया।
उसके पास अभी भी कई ड्रोन मॉडल की योजनाएँ हैं।
इसी बीच, उसने सुना कि दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता होने वाली है।
वह काम करके 2000 रुपये जमा कर दिल्ली के लिए जनरल डिब्बे में बैठकर रवाना हुआ।
उस प्रतियोगिता में उसने दूसरा पुरस्कार जीता। और उसे जापान में होने वाली वर्ल्ड ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला।
वह फिर से एक घंटे तक खुशी के मारे रोया।

जापान जाना लाखों रुपये का खर्च था। और किसी की सिफारिश भी जरूरी थी।
एक दोस्त ने चेन्नई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर से सिफारिश करवाई।
मैसूर के एक दानी ने फ्लाइट टिकट का खर्च उठाया।
बाकी खर्चों के लिए उसकी मां ने अपनी मंगलसूत्र और 60,000 रुपये दिए।
वह बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से फ्लाइट पकड़कर टोक्यो पहुंचा।
बुलेट ट्रेन का किराया न होने से उसने 16 स्टेशनों पर सामान्य ट्रेन बदली और आखिरी स्टेशन पर उतरा।
वहां से उसने 8 किलोमीटर पैदल चलकर गंतव्य तक पहुंचा।

वहां सभी तरह के हाई-फाई लोग आए थे।
सबसे आधुनिक ड्रोन वहां थे।
प्रतियोगी बेंज और रोल्स-रॉयस जैसी गाड़ियों से आए थे।
जैसे अर्जुन को सिर्फ पक्षी की आंख दिखती थी, वैसे ही प्रताप ने सिर्फ अपने ड्रोन पर ध्यान दिया।
उसने अपने मॉडल प्रस्तुत किए और ड्रोन का प्रदर्शन किया।
वहां के लोग बोले कि परिणाम चरणों में घोषित होंगे, इंतजार करें।
कुल 127 देशों ने भाग लिया था।
घोषणाएं शुरू हुईं।
किसी भी राउंड में प्रताप का नाम नहीं आया।
वह निराश हो गया और आंखों में आंसू लिए धीरे-धीरे गेट की ओर जाने लगा।

तभी आखिरी घोषणा हुई – "कृपया स्वागत कीजिए मिस्टर प्रताप का, प्रथम पुरस्कार, भारत से.."
तुरंत उसने अपना सामान वहीं छोड़ दिया, जोर-जोर से रोता हुआ मंच पर पहुंचा, अपने माता-पिता, शिक्षकों, दोस्तों और दानदाताओं का नाम लिया।
अमेरिका का दूसरा स्थान वाला झंडा नीचे गया और भारत का प्रथम स्थान वाला झंडा ऊपर गया।
प्रताप कांपते हाथ-पैर और पसीने से भीगे कपड़ों में मंच पर पहुंचा।
उसे पहला पुरस्कार और 10,000 डॉलर (करीब 7 लाख रुपये) मिले।

तीसरा पुरस्कार जीतने वाले फ्रांसीसी लोग उसके पास आए।
"हम तुम्हें 16 लाख रुपये मासिक वेतन, पेरिस में प्लॉट और 2.5 करोड़ की कार देंगे, हमारे देश चलो.." उन्होंने कहा।
प्रताप ने कहा – "मैंने यह सब पैसों के लिए नहीं किया। मेरा उद्देश्य अपने मातृभूमि की सेवा करना है.." और वह धन्यवाद देकर घर लौट आया।

स्थानीय बीजेपी विधायक और सांसद को यह बात पता चली।
वह उसके घर आए, बधाई दी और प्रधानमंत्री मोदी जी से मिलने का मौका दिलवाया।
मोदी जी ने उसे बधाई दी और DRDO में भेजा।
अब वह DRDO के ड्रोन विभाग में वैज्ञानिक नियुक्त है।
वह महीने में 28 दिन विदेशों में यात्रा करता है और DRDO के लिए ड्रोन आपूर्ति के ऑर्डर लाता है..!

"अगर मेहनत तुम्हारा हथियार है, तो सफलता तुम्हारी गुलाम होगी.."
हमारे युवा वैज्ञानिक प्रताप इस भारतीय कहावत का जीता-जागता प्रमाण हैं..!

मेरा भारत महान 🇮🇳

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