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रविवार, 29 मई 2022

आँखों के चश्मे का "पावर" बढ़ता जा रहा है, इसे रोकने के लिए प्रभावी उपाय- नेत्र क्रिया कल्प थैरेपी

 

आज इस लेख में आँखों के रोग विशेषज्ञ आयुर्वेदिक डॉक्टर संतोष कुमार गुप्ता द्वारा बतायी गयी चिकित्सा विधि की जानकारी आपके साथ शेयर करुँगी। डॉक्टर के अनुसार नेत्र क्रिया कल्प थैरेपी लेने से चश्मे का पॉवर बढ़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त आँखों की रौशनी में सुधार भी होने की सम्भावना रहती है। आइये जाने इलाज से सम्बंधित जानकारी।

आँखों के चश्मे का पॉवर बढ़ने से रोकने के लिए उपचार की अवधि

  • रोगी के आँखों की स्थिति और रोग के प्रकार के आधार पर उपचार में समय लगता है। एक अनुमान के अनुसार आँखों की रोशिनी से सम्बंधित रोगों के उपचार में न्यूनतम 7 दिन और अधिकतम 21 दिन का वक्त लगता है। उपचार के दौरान प्रतिदिन एक बार थैरेपी लेना होता है।
  • उपचार की अवधि के दौरान प्रतिदिन बीमारी की गंभीरता के आधार पर न्यूनतम 45 मिनट से अधिकतम 3 घंटे तक थेरेपी दी जाती है।
  • उपचार की प्रक्रिया पूरी होने तक हल्का सुपाच्य आहार लेना होता है।

आँखों के चश्मे का पॉवर बढ़ने से रोकने के उपचार की प्रक्रिया

Netradhara Therapy नेत्रधारा थेरेपी

प्रत्येक आंख या प्रभावित आंख में 2-3minutes की एक निर्धारित अवधि के लिए 5-6 इंच की ऊँचाई से लगातार नाक के कैन्थस पर लगातार औषधीय की पतली धारा डाली जाती है। यह प्रक्रिया आंख के चैनल (श्रोत) को साफ करने में मदद करती है और सेलुलर स्तर पर डिटॉक्सिफिकेशन करती है।

Anjana Therapy अंजना थेरेपी

इस थेरेपी में इस्तेमाल की जाने वाली दवा धातुओं, खनिजों और जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार की जाती है। इस औषधि को पेस्ट के रूप में उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।

Aschyotana Therapy अश्योतन थैरेपी

इस थेरेपी में जड़ी -बूटियों से तैयार की गयी तरल औषधि की 8-10 बूँद नाक के कैंथस पर टपकाई जाती है।

Tharpana Therapy तर्पण थेरेपी

इस उपचार थेरेपी में आँखों के चारों ओर आटे से गहरा आकार बनाते हैं। फिर इसके अन्दर जड़ी -बूटियों से तैयार औषधि डालकर छोड़ा जाता है। इस थेरेपी से आँखों की कोशिकाओं को पोषण प्राप्त होती हैं।

Shirodhara Therapy सिरोधारा थेरेपी

रोगी को टेबल पर लेटना होता है। इसके बाद औषधीय तेल माथे पर लगभग 45 मिनट की अवधि के लिए लगातार डाला जाता है। यह प्रक्रिया तंत्रिका तंत्र को ताकत देती है और ऑप्टिक नसों के रक्त परिसंचरण को बढ़ाती है। यह मस्तिष्क के कई अपक्षयी रोगों /degenerative diseases में भी प्रभावी है, जैसे कि लकवा, मस्तिष्क शोष, पार्किंसंस रोग और तंत्रिका तंत्र के अपक्षयी रोग। इस थेरेपी में रोग के आधार पर औषधीय तेलों/ दूध/ छाछ के साथ औषधीय काढ़े का प्रयोग किया जाता है।

Sirovasty Therapy सिरोवस्ती थेरेपी

इस थेरेपी में सहनीय तापमान में तरल औषधि को चमड़े के बैग को सिर के चारो तरफ फिट करके वस्ति दी जाती है। ये थेरेपी निष्क्रिय कोशिकाओं को पुनः सक्रीय करने में बहुत प्रभावी होती है।

Nasya Therapy नस्य थेरेपी

इस थेरेपी में जड़ी -बूटियों से तैयार तेल को नाक के दोनों छिद्रों में डाला जाता है। नस्य थेरेपी खाली पेट यानी खाना खाने से पहले प्रदान की जाती है। इस प्रक्रिया में गर्दन से ऊपर के भाग का शोधन किया जाता है।

आँखों से सम्बंधित रोग के आयुर्वेदिक उपचार के लिए नीचे दिए पते पर संपर्क किया जा सकता है :

Veda Panchakarma Hospital & Research Institute

148, Medical College Road,

Basaratpur, Gorakhpur,

Uttar Pradesh 273004

सोम रस किसे कहते हैं ?

 

सोम रस किसे कहते हैं ?

चित्र स्रोत: गूगल

आपने कई जगह सोमरस के विषय में पढ़ा या सुना होगा। अधिकतर लोग ये समझते हैं कि सोमरस का अर्थ मदिरा या शराब होता है जो कि बिलकुल गलत है। कई लोगों का ये भी मानना है कि अमृत का ही दूसरा नाम सोमरस है। ऐसा लोग इस लिए भी सोचते हैं क्यूंकि हमारे विभिन्न ग्रंथों में कई जगह देवताओं को सोमरस का पान करते हुए दर्शाया गया है। आम तौर पर देवता अमृत पान करते हैं और इसी कारण लोग सोमरस को अमृत समझ लेते हैं जो कि गलत है।

अब प्रश्न ये है कि सोमरस आखिरकार है क्या? सोमरस के विषय में ऋग्वेद में विस्तार से लिखा गया है। ऋग्वेद में वर्णित है कि "ये निचोड़ा हुआ दुग्ध मिश्रित सोमरस देवराज इंद्र को प्राप्त हो।" एक अन्य ऋचा में कहा गया है - "हे पवनदेव! ये सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलकर तैयार किया गया है।"

इस प्रकार हम यहाँ देख सकते हैं कि सोमरस के निर्माण में दुग्ध का उपयोग हुआ है इसी कारण ये मदिरा नहीं हो सकता क्यूंकि उसके निर्माण में दुग्ध का उपयोग नहीं होता।

साथ ही साथ मदिरा का अर्थ है जो "मद" अर्थात नशा उत्पन्न करे। वही सोमरस में शब्द "सोम" शीतलता का प्रतीक है। ऋग्वेद में ये कहा गया है कि सोमरस का प्रयोग मुख्यतः यज्ञों में किया जाता था और मुख्यतः देवता ही इसके अधिकारी होते थे। सोमरस का पान मनुष्यों के लिए वर्जित बताया गया है।

अश्विनीकुमार के विषय में भी एक कथा है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें सोमरस का अधिकारी होने का वरदान दिया। अर्थात जो भी देवत्व को प्राप्त करता था वो ही सोमरस का पान कर सकता था।

सोमरस का एक रूप औषधि के रूप में भी जाना जाता था। कहा जाता है कि सोम दरअसल एक विशेष पौधा होता था जो गांधार (आज के अफगानिस्तान) में ही मिलता था। इसे पीने के बाद हल्का नशा छा जाता था। महाभारत में ऐसा वर्णित है कि जब भीष्म धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ मांगने गांधार गए तब गांधारी के पिता ने उनका स्वागत सोमरस से किया। वहाँ इस बात का भी वर्णन है कि गान्धार राज भीष्म को ये बताते हैं कि ये दुर्लभ पेय गांधार के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता।

ऋग्वेद में सोमरस बनाने की विधि भी बताई गयी है:

उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज।नि धेहि गोरधि त्वचि।।

औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।

अर्थात: मूसल से कुचली हुई सोम को बर्तन से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और छानने के लिए पवित्र चरम पर रखें। सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं।

सोमरस निर्माण की तीन अवस्थाएं बताई गयी हैं:

  1. पेरना: सोम के पत्तों का रस मूसल द्वारा निकाल लेना।
  2. छानना: वस्त्र द्वारा रस से अपशिष्ट को अलग करना।
  3. मिलाना: छाने हुए रस को दुग्ध, घी अथवा शहद के साथ मिलकर सेवन करना।

सोम को गाय के दूध में मिलाने पर गवशिरम् तथा दही में मिलाने पर दध्यशिरम् बनता है। इसके अतिरिक्त शहद या घी के साथ भी इसका मिश्रण किया जाता था। यज्ञ की समाप्ति पर ऋषि मुनि पहले इसे देवताओं को समर्पित करते थे और फिर स्वयं भी इसका पान करते थे। किन्तु बाद में लोगों ने इस ज्ञान को गुप्त रखना आरम्भ कर दिया जिससे सोम की पहचान असंभव हो गयी और इस पेय का ज्ञान लुप्त हो गया।

ऋग्वेद में सोमरस की तुलना संजीवनी से की गयी है और कहा गया है कि नित्य सोमरस पान करने से शरीर में अतुलित बल आता है। कदाचित यही कारण था कि सोमरस के पान के कारण देवता इतने शक्तिशाली होते थे। अगर आधुनिक काल की बात करें तो समय के साथ साथ सोमरस का स्थान पंचामृत ने ले लिया है। पंचामृत को भी दुग्ध, दही, घी, शक्कर एवं शहद से बनाया जाता है। इसे भी प्रथम देवताओं को अर्पित किया जाता है और इसका पान करने से भी शक्ति प्राप्त होती है। अतः पंचामृत को आधुनिक काल का सोमरस कहा जा सकता है।

पूरे कुंए का पानी मीठा,साफ और औषधि युक्त कर दिया जाता था।

आपने जिन भी कुंओ का पानी पिया होगा आपको साधारण पानी की अपेक्षा ठंडा और मीठा लगा होगा। इस पानी को पीने से सिर्फ प्यास नही बुझती बल्कि तृप्ति होती है।

 

मैं कभी गांव में नही रहा इसलिए इसका कारण मुझे आज पता चला। इसके लिए प्राकृतिक उपाय अपनाए जाते हैं।

कुंओ का आधार जामुन की लकड़ी का बनाया जाता है, जामुन की लकड़ी हज़ारों साल पानी मे रहने पर भी नही सड़ती।इसको नेवार बोलते हैं।

अंगूठी के आकार के इस छल्ले को जो आंवले की लकड़ी से बनी होती है को कुएं के सबसे निचले हिस्से में डूबा कर रखते है,क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार आंवले की लकड़ी उत्कृष्ट वाटर प्यूरिफायर है। ये कुएं के पानी को मीठा भी बनाता है ।

जब हम आंवला खाकर पानी पीते हैं तो पानी मीठा लगता है ,इसी आधार पर पूरे कुंए का पानी मीठा,साफ और औषधि युक्त कर दिया जाता था।

अब कुएं विलुप्त हो रहे हैं तो शायद यह विधा भी खत्म हो जाए । पर आंवले की लकड़ी के इन गुणों को ग्रहण करना या समझना आवश्यक है ।

कोई आश्चर्य नही की पिछली पीढ़ी के लोग सुखी रोटी और सादा पानी पीकर इतने स्वस्थ रहते थे ।



भगवान कल्कि का अवतार कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता?

 भगवान कल्कि का अवतार कब, कहाँ, क्यों और कौन होंगे माता-पिता??????



धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी 'कल्कि अवतार' प्रकट होगा। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। भगवान का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार हैं।


भगवान श्री कल्कि की भक्ति इस समय एक ऐसे कवच के समान है जो हमारी हर प्रकार से रक्षा कर सकती है। भगवान श्री कल्कि की भक्ति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत है। जो भी व्यक्ति भगवान श्री कल्कि की भक्ति करता है, वह चाहता है कि भगवान शीघ्र अवतार धारण कर भूमि का भार हटाएं और दुष्टों का संहार करें।


कलियुग यानी कलह-क्लेश का युग, जिस युग में सभी के मन में असंतोष हो, सभी मानसिक रूप से दुखी हों, वह युग ही कलियुग है। हिंदू धर्म ग्रंथों में चार युग बताए गए हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। सतयुग में लोगों में छल, कपट और दंभ नहीं होता है।


 त्रेतायुग में एक अंश अधर्म अपना पैर जमा लेता है। द्वापर युग में धर्म आधा ही रह जाता है। कलियुग के आने पर तीन अंशों से इस जगत पर अधर्म का आक्रमण हो जाता है। इस युग में धर्म का सिर्फ एक चैथाई अंश ही रह जाता है। सतयुग के बाद जैसे-जैसे दूसरा युग आता-जाता है। वैसे-वैसे मनुष्यों की आयु, वीर्य, बुद्धि, बल और तेज का ह्रास होता जाता है।


माना जाता है और जैसा वर्तमान में चल रहा है कि कलियुग के अंत में संसार की ऐसी दशा होगी। लोग मछली-मांस ही खाएँगे और भेड़ व बकरियों का दूध पिएँगे। गाय तो दिखना भी बंद हो जाएगी। सभी एक-दूसरे को लूटने में रहेंगे। व्रत-नियमों का पालन नहीं करेंगे। उसके विपरित वेदों की निंदा करेंगे। स्त्रियाँ कठोर स्वभाव वाली व कड़वा बोलने वाली होंगी।


वे पति की आज्ञा नहीं मानेंगी। अमावस्या के बिना ही सूर्य ग्रहण लगेगा। अपने देश छोड़कर दूसरे देश में रहना अच्छा माना जाएगा। व्याभिचार बढ़ेगा। उस समय मनुष्य की औसत आयु सोलह साल होगी। सात-आठ वर्ष की उम्र में पुरुष व स्त्री समागम करके संतान उत्पन करेंगे।


 पति व पत्नी अपनी स्त्री व पुरुष से संतुष्ट नहीं रहेंगे। मंदिर कहीं नहीं होंगे। युग के अंत में प्राणियोें का अभाव हो जाएगा। तारों की चमक बहुत कम हो जाएगी। पृथ्वी पर गर्मी बहुत बढ़ जाएगी। इसके बाद सतयुग का आरंभ होगा। उस समय काल की प्रेरणा से भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा।

यह अवतार दशावतार परम्परा में अन्तिम माना गया। शास्त्रों के अनुसार यह अवतार  भविष्य में होने वाला है। कलियुग के अन्त में जब शासकों का अन्याय बढ़ जायेगा। चारों तरफ पाप बढ़ जायेंगे तथा अत्याचार का बोलबाला होगा तक इस जगत् का कल्याण करने के लिए भगवान् विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे।


 कल्कि अवतार का वर्णन कई पुराणों में हुआ है परन्तु इसे सर्वाधिक विस्तार कल्कि उपपुराण मे मिला है, उसमें यह कथा उन्नीस अध्यायों  में वर्णित है।


अभी  तो  कलियुग  का  प्रथम  चरण  है।  कलि  के  पाँच  सहस्र  से  कुछ अधिक समय बीता है। इस समय मानव जाति का मानसिक एवं नैतिक पतन हो  गया  है  लेकिन  जैसे-जैसे  समय  बीतता  जायेगा  वैसे-वैसे  धर्म  की  हानि होगी।


सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरण शक्ति सबका लोप होता जायेगा। अर्थहीन व्यक्ति असाधु माने जायेंगे। राजा दुष्ट, लोभी, निष्ठुर होंगे, उनमें व लुटेरों में कोई अन्तर नहीं होगा। प्रजा वनों व पर्वतों में छिपकर अपना जीवन बितायेगी। समय पर बारिश नहीं होगी, वृक्ष फल नहीं देंगे।


कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे।  मनुष्यों  का  स्वभाव  गधों  जैसा  दुस्सह,  केवल  गृहस्थी  का  भार  ढोने वाला  रह  जायेगा।  लोेग  विषयी  हो  जायेंगे।  धर्म-कर्म  का  लोप  हो  जायेगा। मनुष्य जपरहित नास्तिक व चोर हो जायेंगे।


पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा।
निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः।
हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।


पुत्र,  पिता  का  और  पिता  पुत्र  का  वध  करके  भी  उद्विग्न  नहीं  होंगे। अपनी  प्रशंसा  के  लिए  लोग  बड़ी-बड़ी  बातें  बनायेंगे  किन्तु  समाज  में  उनकी निन्दा  नहीं  होगी।


 उस  समय  सारा  जगत्  म्लेच्छ  हो  जायेगा-इसमें  संशयम नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा। सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा। अधर्म फैल जायेगा, पत्नियाँ अपने पति की बात नहीं मानेंगी। मांगने पर भी पतियों को अन्न, जल नहीं मिलेगा। चारों तरफ पाप फैल जायेगा। उस समय सम्भल ग्राम में विष्णुयशा नामक एक अत्यन्त पवित्र, सदाचारी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण अत्यन्त अनुरागी भक्त होंगे।


 वे सरल एवं उदार होंगे। उन्हीं अत्यन्त भाग्यशाली  ब्राह्मण  विष्णुयशा  के  यहाँ  समस्त  सद्गुणों  के  एकमात्र  आश्रय निलिख सृष्टि के सजर्क, पालक एवं संहारक परब्रह्म परमेश्वर भगवान् कल्कि के  रूप  में  अवतरित  होंगे।  वे  महान्  बुद्धि  एवं  पराक्रम  से  सम्पन्न  महात्मा, सदाचारी तथा सम्पूर्ण प्रजा के शुभैषी होंगे।


मनसा तस्य सर्वाणिक वाहनान्यायुधानि च।।
उपस्थास्यन्ति योधाश्च शस्त्राणि कवचानि च।
स धर्मविजयीराजा चक्रवर्ती भविष्यति।।
स चेमं सकुलं लोकं प्रसादमुपनेश्यति।
उत्थितो ब्राह्मणों दीप्तःक्षयान्तकृतदुदारधीः।।

चिन्तन करते ही उनके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित  जायेंगे। वह  धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा होगा। वह  उदारबुद्धि, तेजस्वी  ब्राह्मण  दुःख  से  व्याप्त हुए  इस  जगत्  को  आनन्द  प्रदान करेगा। कलियुग का अन्त करने के लिए उनका प्रादुर्भाव होगा।

भगवान्  शंकर  स्वयं  उनको  शस्त्रास्त्र  की  शिक्षा  देंगे  और  भगवान् परशुराम उनके वेदोपदेष्टा होंगे। वे देवदत्त नामक शीघ्रागमी अश्व पर आरुढ़ होकर राजा के वेश में छिपकर रहने वाले पृथ्वी पर सर्वत्र फैल हुए दस्युओं एवं  नीच  स्वभाव  वाले  सम्पूर्ण  म्लेच्छों  का  संहार  करेंगे।  

कल्कि  भगवान्  के करकमलों  सभी  दस्युओं  का  नाश  हो  जायेगा  फिर  धर्म  का  उत्थान  होगा। उनका  यश  तथा  कर्म  सभी  परम  पावन  होंगे।  वे  ब्रह्मा  जी  की  चलायी  हुई मंगलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके रमणीय वन में प्रवेश करेंगे।


इस  प्रकार  सर्वभूतात्मा  सर्वेश्वर  भगवान्  कल्कि  के  अवतरित  होने  पर  पृथ्वी पर पुनः सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा।


कहाँ होगा भगवान कल्कि का जन्म?

कल्कि भगवान उत्तर प्रदेश में गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में जन्म लेंगे। भगवान के जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्रा और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्रा में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा।


वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँंगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे, तब सतयुग शुरू होगा। वे धर्म के अनुसार विजय पाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे।


कौन होंगे इनके माता-पिता?

अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान होंगे। भगवान कल्कि के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, ऐसा व्यक्ति जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोकहितैषी है। सुमति का अर्थ है, अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली महिला।


कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से सम्पन्न। वे सफेद घोड़े पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, लेकिन गुस्से में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्रा धारण किए हैं।


प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वंय उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्राण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। कल्कि को माना गया है।

पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भगवान का ये अवतार दिशा धारा में बदलाव का बहुत बड़ा प्रतीक होगा। मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं।


इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण करेगें अर्थात भगवान धरती पर से सारे पापों का नाश करेगें।

श्रीमद्भागवत के अभिन्न अंग भगवान श्री कल्कि क्यों?

शुकदेव जी (वैशम्पायन, व्यास जी के पुत्र) पाण्डवों के एकमात्र वंशज अभिमन्यु पुत्र परीक्षित (विष्णुपुराण) को, जो उपदेश (कथा) सुना रहे थे वह अठारह (18) हजार श्लोकों  का समावेश था। महाराज परीक्षित का सात-दिन में निधन हो जाने से उन सारे श्लोकों का उपदेश न हो पाया था। अतः बाद में मार्कण्डेय ऋशि के आग्रह पर शुकदेव जी ने पुण्याश्रम में उसे पूरा किया था।


सूत जी (व्यास जी के शिष्य  हर्षण सूत के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिनकी धारणा शक्ति से संहितायें दे दी) का कहना है कि वे भी वहाँ उपस्थित थे और पुण्यप्रद कथाओं को सुना था। सूत जी ने उन ऋषियों  को, जो कथा सुनाई वही श्री कल्कि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है।

समाज के अविवाहित युवकों और युवतियों की आयु बढ़ती जा रही है।

 *कृपया ज़रूर पढ़ें*



          समाज में *कुंडली* मिलन के साथ साथ  *inquiry* भी एक वजह बनती जा रही है जिस कारण समाज के *अविवाहित युवकों और युवतियों* की *आयु* बढ़ती जा रही है।

     कुंडली मिलान पर कई बार चर्चाएं हुई पर inquiry पर कोई चर्चा सुनने में नहीं आती है।

  आजकल कई केसेस आ रहे हैं जहां  *समाज से inquiry गलत* मिलने पर बात आगे नहीं बढ़ पाती *मुलाकात* तक नहीं होती।

ध्यान देने की बात यह है कि आप जिस व्यक्ति से inquiry निकाल रहे हैं, वह किसी *तीसरे* व्यक्ति को कॉल करता है, तीसरा किसी *चौथे* व्यक्ति को कॉल करता है ... अगर पार्टी के *दोस्त* को कॉल लग गया तो inquiry अच्छी अगर *दुश्मन* को कॉल लगा तो inquiry गलत।

        इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति *ईर्ष्या* बहुत बढ़ गई है, ऐसे बहुत कम रिश्ते बचे हैं जिनमें खटास नहीं है।

          कुछ लोग इस *खुश फहमी* में रहते हैं कि उनकी  inquiry गलत नहीं निकल सकती.. तहकीकात करने पर पता चलता है कि इनके *प्रिय जन* और उनके *करीबी मित्र* ही इनके बारे में *गलत* बातें कहते हैं।

       यह वही *समाज* है जिसने किसी समय *प्रभु राम* , *मां सीता* से लेकर *कृष्ण* पर भी लांछन लगाए थे।

          याद रखें कि *राजा जनक* ने सीता माता को सूझबूझ कर हि प्रभु राम को सौंपा था।

   अच्छे-अच्छे घरों के पढ़े-लिखे लड़के लड़कियां 32 34 36 की उम्र तक बैठे हैं ... *कुंडली के साथ-साथ लोग inquiry में फंस रहे हैं,*

      याद रखें भगवान कृष्ण के *मामा* *कंस* थे और पांडवों के *चाचा* *धृतराष्ट्र* थे.... तो हम किस खेत की मूली है।

      *कई जगह inquiry सही मिलने के बावजूद कुछ हफ्तों में सगाई टूट रही है और कुछ महीनों में शादी टूट रहि है, इसकी वजह क्या है?...*

हमे सचेत रहने की आवश्यकता है..  *केवल बाहर की सजावट पर ध्यान ना दें  ..*

              *बच्चियों के अभिभावकों* को ज्यादा चिंता होती है क्यूकि समाज में कन्याओं की बदनामी बड़े आसानी से हो जाती है .. *कन्या* जवाब देती है तो *तेज* कहलाती है चुप रहती है तो उनको अधिक *प्रताड़ित* करते है।     
 
ध्यान रखें *फलों से लदे वृक्ष* को ही *पत्थर* मारे जाते हैं ...

       *अंततः सिर्फ और सिर्फ *मुलाकात* *करने पर ध्यान दें inquiry में ना फंसे** ...   

 इंटरेस्टेड परिवार से *मुलाकात करें* उनके घर पर जाए दुकान पर जाकर मिले और अपने *अनुभव* से जांच पड़ताल करें *अपनी बुद्धि* से डिसीजन ले .. किसी दूसरे या तीसरे की बुद्धि से डिसीजन ना लें

         *केवल मोबाइल पर व्हाट्सएप-व्हाट्सएप खेलने से कुछ नहीं होगा।*

    यदि आप 15 दिन में भी एक परिवार से *मुलाकात* करते हैं तो *साल में 26 परिवारों* से मिलना होगा और हमारे युवकों युवतियों के विवाह में शायद इतना कष्ट ना हो..

-- *एक सेवक*
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ऊपर लिखी बातें किन्ही महानुभावो को असामयिक लग सकती है,फिर भी मेंरे विचार  में यथार्थ पूर्ण है, इसे केवल काॅपी पेस्ट न कर सामाजिक मंच पर विचार विमर्श कर तथ्य परक निर्णय लिया जाना चाहिए।🙏 जय महेश


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