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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

संघ की शाखाओं का Placement देखकर Cambridge, Harvard, Oxford, IIM, IIT, BIT, NIT और पूरी दुनिया हैरान..


 ✍संघ की शाखाओं का Placement देखकर
Cambridge, Harvard, Oxford, IIM, IIT, BIT, NIT और पूरी दुनिया हैरान..

राष्ट्रपति,,,
उपराष्ट्रपति,,,
प्रधानमंत्री,,,
गृहमंत्री,,,
लोकसभा सभापती,,,

और

18 मुख्यमंत्री,,,
29 राज्यपाल,,,
1 लाख शाखाएं,,,
15 करोड़ स्वयंसेवक,,,
2 लाख सरस्वती विद्यामंदिर,,,
5 लाख आचार्य,,,
एक करोड़ विद्यार्थी,,,
2 करोड़ भारतीय मजदूर संघ के सदस्य,,,
1 करोड़ ABVP के कार्यकर्ता,,,
15 करोड़ बीजेपी सदस्य,,,
1200 प्रकाशन समूह,,,
9 हजार पूर्णकालिक एवं,,,
7 लाख पूर्व सैनिक परिषद,,,
1 करोड़ विश्व हिन्दू परिषद् सदस्य (पूरे विश्व में),,,
30 लाख बजरंग दल के हिन्दुत्व सेवक,,,
1.5 लाख सेवाकार्य,,,
18 राज्यों में सरकारें,,,
283 लोकसभा सांसद,,,
58 राज्यसभा सांसद,,,
1460 विधायक,,,          

वनवासी कल्याण आश्रम,
वनबंधु परिषद,
संस्कार भारती,
विज्ञान भारती,
लघु उद्योग भारती,
सेवा सहयोग,
सेवा इंटरनॅशनल,
राष्ट्रीय सेविका समिती,
आरोग्य भारती,
दुर्गा वाहिनी,
सामाजिक समरसता मंच,
ऑर्गनाजर,
पांच्यजन्य,
श्रीरामजन्म भूमी मंदिर निर्माण न्यास,
दीनदयाळ शोध संस्थान,
भारतीय विचार साधना,
संस्कृत भारती,
भारत विकास परिषद,
जम्मूकाश्मीर स्टडी सर्कल,
दृष्टी संस्थान,
हिंदू हेल्पलाईन,
हिंदू स्वयंवसेवक संघ,
हिंदू मुन्नानी,
अखिल भारतीय साहित्य परिषद,
भारतीय किसान संघ,
विवेकानंद केंद्र,
तरुण भारत,
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत,
हिंदुस्थान समाचार,
विश्व संवाद केंद्र,
जनकल्याण रक्तपेढी,
इतिहास संकलन समिती,
स्त्री शक्ती जागरण,
एकल विद्यालय,
धर्म जागरण,
भारत भारती,
सावरकर अध्यासन,
शिवाजी अध्यासन,
पतित पावन संघटना,
हिंदू एकता
और ऐसी कई अनेक

बस इतना सा है RSS बाबू जी...!!!

ये कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है जो इतनी जल्दी इसकी जड़े हिल जाएँगी,,,, बड़े बड़े सूरमा RSS मुक्त भारत के सपने देखते देखते दुनिया से ही चले गए...।
95 साल का आरएसएस आने वाले हजारो साल तक भारतवर्ष की सेवा करेगा।

परम: वैभवम ने तुम्हे तत्व राष्ट्रम:।

भारत माता की जय,
वन्देमातरम्।🙏

टेटनस रोग का कारण क्लॉस्ट्रीडियम टेटनाई नामक जीवाणु


 

ढेरों लोगों की तरह उनका भी सोचना था कि ज़ंग-लगी कील चुभने से टेटनस हो जाता है।

मैं यह नहीं कहूँगा कि उनका सोचना ग़लत था। लेकिन विचार की संक्षिप्तता के अपने लाभ हैं और सुदीर्घता के अपने। सो ज़ंग-लगी कील के चुभने से टेटनस के होने में सत्यता तो है। पर कितनी ? और किस तरह से यह चुभन इस रोग जो जन्म दे सकती है ?


टेटनस रोग का कारण क्लॉस्ट्रीडियम टेटनाई नामक जीवाणु हैं। ये जीवाणु हमारे आसपास की मिट्टी में बहुतायत में मौजूद हैं। जब ये किसी तरह से हमारे शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं , तो वहाँ प्रजनन करते हुए टॉक्सिन यानी विष का निर्माण करते हैं। यह विष पूरे शरीर पर अपना दुष्प्रभाव दिखाता है। यही विषैला दुष्प्रभाव ही टेटनस-रोग है।

टेनिस का रैकेट देखा है आपने ? मिट्टी में मौजूद टेटनसकारी जीवाणु उसी आकार में निष्क्रिय अवस्था में रहा करता है , जिसे स्पोर कहा जाता है। दिनों-दिन , महीनों-सालों स्पोर यों ही पड़े रह सकते हैं। मिट्टी के सम्पर्क में आने वाली हर वस्तु पर , चाहे वह लोहे का हो अथवा न हो। कीलें में इनमें शामिल हैं , चाहे उनपर ज़ंग लगी हो अथवा न लगी हो।

जिस घावों के कारण टेटनस होने की आशंका सर्वाधिक होती है , वे गहरे-नुकीले घाव होते हैं। जब कोई पतली-लम्बी-नुकीली वस्तु त्वचा को गहरा पंचर करती है। इससे उस वस्तु पर मौजूद निष्क्रिय क्लॉस्ट्रीडियम जीवाणु व्यक्ति के मांस में गहरे पहुँच जाते हैं। यह वह स्थान है , जिसका बाहर वायु से सम्पर्क नहीं होता। यहाँ ऑक्सीजन की कमी रहा करती है और यही वातावरण इन जीवाणुओं के पनपने के लिए एकदम उचित होता है।

इन गहरे-नुकीले , हवा के सम्पर्क से कटे घावों में ये जीवाणु पनपते हैं और अपना टेटनोस्पाज़्मिन नामक विष बनाते हैं। यह विष संसार के सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक विषों में से एक है , जिसके प्रभाव से व्यक्ति की मांसपेशियाँ सिकुड़ कर अकड़ जाती हैं। चेहरा-छाती-हाथ-पैर सभी साथ यों कड़े होकर सिकुड़े रहते हैं , मानो व्यक्ति की धनुष की मुद्रा में आ गया हो। इस मुद्रा का नाम धनुष्टंक या ओपिस्थोटैनॉस है। लगातर सिकुड़ी मांसपेशियाँ जो ढीली पड़ती ही नहीं , व्यक्ति के प्राण ले लेती हैं।

पर इस पूरी रोग-कथा में ज़ंग लगी कील कहाँ है ? वस्तुतः इस तरह से तो कहीं नहीं है। ज़ंग यानी आयर्न ऑक्साइड का टेटनस से सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं। लेकिन मिट्टी के सम्पर्क में मौजूद कीलों पर टेटनस के जीवाणु मौजूद हो सकते हैं ; चाहे उनपर ज़ंग लगी हो अथवा नहीं। फिर चूँकि कील का घाव नुकीला और गहरा होता है , इसलिए इनके माध्यम से ये जीवाणु मांस में गहरे पहुँच सकते हैं। इस तरह से टेटनस पैदा करने में कील का नुकीलापन एवं मिट्टी के सम्पर्क में होना ही उत्तरदायी है , ज़ंग की मौजूदगी नहीं।

बच्चों के जन्म के बाद उनकी कटी नाल पर गोबर लगाने से भी टेटनस इसीलिए होता है। मल में टेटनस-जीवाणु बहुतायत में वास करते हैं और कटी हुई नाल पर इसे मलने से ये ख़ून के बहाव से शिशु-देह में गहराई में पहुँच जाते हैं जहाँ ऑक्सीजन अनुपस्थित हो। बस वहाँ से पनपते हैं और अपना विष बनाकर छोड़ते हैं। नतीजन शिशु को टेटनस हो जाता है।

सुना गया है कि अमुक व्यक्ति को शेव बनाते समय रेज़र से टेटनस हो गया। या फिर ब्लेड से नाख़ून काटने पर इस रोग की पुष्टि हुई। हो सकता है ( सैद्धान्तिक तौर पर ) अगर क्लोस्ट्रीडियम टेटनाई रेज़र पर हो और गहराई से खाल में पहुँच जाए। लगभग असम्भव है अगर धारदार यन्त्र स्वच्छ है और त्वचा को उसके प्रयोग के बाद साफ़ किया गया है।

टेटनस का क्या इलाज है ? एक बार यह रोग हो गया , तब जान का बड़ा संकट सामने है। लेकिन ज्यों ही टेटनस की आशंका होती है , डॉक्टर इन जीवाणुओं को मारने के लिए एंटीबायटिक देते हैं। पर टेटनस में जीवाणु मर भी गये , तो क्या ? उनका विष अगर शरीर में उपस्थित रहा , तो वह अपना दुष्प्रभाव दिखाएगा ही ! इसलिए टेटनस-इम्यूनोग्लोबुलिन देकर इस विष को नष्ट किया जाता है। साथ ही अनेक दवाओं से रोगी की मांसपेशियों को ढीला करने की चेष्टा की जाती है।

और रोकथाम ? किसी भी तरह गन्दी , मिट्टी में पड़ी , धारदार ( विशेषकर नुकीली ) वस्तुओं से चोट न लगे , इसका प्रयास हो। वस्तु चुभ ही जाए तो टेटनस का टीका लिया जाए। एक बार लिया यह टीका वयस्कों में दस वर्षों तक रक्षण देता है। बाक़ी हर मामला अलग है , हर रोगी अलग। इसलिए अन्तिम निर्णय तो उसी डॉक्टर को करना है , जिसके पास दुर्घटना के बाद रोगी पहुँचता है।

ज़ंग-लगी कील से टेटनस के होने में ज़ंग का कोई हाथ नहीं है। भूमिका उसपर मौजूद टेटनस-जीवाणु की है , जिन्हें कील का नुकीला आकार मांस की गहराई में पहुँचा देता है।

स्त्रोत:

1.

Tetanus
Tetanus is a medical condition characterized by a prolonged contraction of skeletal muscle fibers, the primary symptoms are caused by tetanospasmin, a neurotoxin produced by the Gram-positive, obligate anaerobic bacterium Clostridium tetani. Infection generally occurs through wound contamination, and often involves a cut or deep puncture wound. As the infection progresses, muscle spasms in the jaw develop, hence the common name, lockjaw. This is followed by difficulty swallowing and general muscle stiffness and spasms in other parts of the body. The clinical manifestations of tetanus are caused when tetanus toxin blocks inhibitory nerve impulses, by interfering with the release of neurotransmitters. This leads to unopposed muscle contraction and spasm. Seizures may occur, and the autonomic nervous system may also be affected. Infection can be prevented by proper immunization and by post-exposure prophylaxis.

2.

Tetanus - an overview
Clinical Manifestations Tetanus is most often generalized but may also be localized. The incubation period typically is 2-14 days but may be as long as months after the injury. In generalized tetanus the presenting symptom in about half of cases is trismus (masseter muscle spasm, or lockjaw). Headache, restlessness, and irritability are early symptoms, often followed by stiffness, difficulty chewing, dysphagia, and neck muscle spasm. The so-called sardonic smile of tetanus ( risus sardonicus ) results from intractable spasms of facial and buccal muscles. When the paralysis extends to abdominal, lumbar, hip, and thigh muscles, the patient may assume an arched posture of extreme hyperextension of the body, or opisthotonos , with the head and the heels bent backward and the body bowed forward. In severe cases, only the back of the head and the heels of the patient are noted to be touching the supporting surface. Opisthotonos is an equilibrium position that results from unrelenting total contraction of opposing muscles, all of which display the typical boardlike rigidity of tetanus. Laryngeal and respiratory muscle spasm can lead to airway obstruction and asphyxiation. Because tetanus toxin does not affect sensory nerves or cortical function, the patient unfortunately remains conscious, in extreme pain, and in fearful anticipation of the next tetanic seizure. The seizures are characterized by sudden, severe tonic contractions of the muscles, with fist clenching, flexion, and adduction of the arms and hyperextension of the legs. Without treatment, the duration of these seizures may range from a few seconds to a few minutes in length with intervening respite periods. As the illness progresses, the spasms become sustained and exhausting. The smallest disturbance by sight, sound, or touch may trigger a tetanic spasm. Dysuria and urinary retention result from bladder sphincter spasm; forced defecation may occur. Fever, occasionally as high as 40°C (104°F), is common and is caused by the substantial metabolic energy consumed by spastic muscles. Notable autonomic effects include tachycardia, dysrhythmias, labile hypertension, diaphoresis, and cutaneous vasoconstriction. The tetanic paralysis usually becomes more severe in the 1st wk after onset, stabilizes in the 2nd wk, and ameliorates gradually over the ensuing 1-4 wk. Neonatal tetanus , the infantile form of generalized tetanus, typically manifests within 3-12 days of birth. It presents as progressive difficulty in feeding (sucking and swallowing), associated hunger, and crying. Paralysis or diminished movement, stiffness and rigidity to the touch, and spasms, with or without opisthotonos, are characteristic. The umbilical stump, which is typically the portal of entry for the microorganism, may retain remnants of dirt, dung, clotted blood, or serum, or it may appear relatively benign. Localized tetanus results in painful spasms of the muscles adjacent to the wound site and may precede generalized tetanus

3.

Disease factsheet about tetanus
Tetanus is an often fatal disease, which is present worldwide. It is a consequence of a toxin produced by the bacterium Clostridium tetani. The main reservoirs of the bacterium are herbivores, which harbour the bacteria in their bowels (with no consequences for them) and disseminate the “spore form” of the bacteria in the environment with their faeces.

24 दिसंबर के दिन हुई थी एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री की 'बे अदबी'

24 दिसंबर के दिन हुई थी एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री की 'बे अदबी'

राकेश गुहा की पोस्ट
23 दिसम्बर 2004 को करीब 11 बजे पीवी नरसिम्हा राव ने एम्स में अंतिम सांस ली। करीब 2.30 बजे उनके पार्थिव शरीर को 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित उनके आवास लाया गया। जहाँ चर्चित आधात्मिक गुरु चंद्रास्वामी, राव के 8 पुत्र-पुत्रियां, भतीजे व परिवार के अन्य सदस्य घर पर मौजूद थे।

राव का शव एम्स से घर पहुँचने के उपरांत असली राजनीति शुरू हुई।

तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे पुत्र प्रभाकरण को सुझाव दिया, राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए। उन्होंने वजह दी राव प्रधानमंत्री बनने से पहले आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। किन्तु परिवार दिल्ली में ही अंतिम संस्कार के लिए अड़ा रहा।
***
कुछ देर बाद कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के करीबी नेता रहे गुलाम नबी आजाद 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित राव के आवास पहुंचे। उन्होनें भी राव के परिवार से हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने की अपील की। वे परिवार को समझा ही रहे थे, कि इसी बीच राव के पुत्र प्रभाकरण का फ़ोन घनघना उठा। दूसरी और से आवाज आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की थी।

रेड्डी ने संवेदनाएं व्यक्त की औऱ कहा:- मैं दिल्ली पहुंच रहा हूँ। हम राव का शव हैदराबाद लायेंगे व पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार करेंगे।

करीब शाम 6.30 बजे सोनिया गांधी 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग में दाखिल हुई। उनके साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कद्दावर नेता प्रणव मुखर्जी भी थे। कुछ देर मौन के बाद मनमोहन ने राव परिवार से पूछा:- ये लोग कह रहे हैं, आप राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में करेंगे। आपने क्या निर्णय लिया।

प्रभाकरण ने दो टूक जवाब दिया:- दिल्ली पिता की कर्मभूमि थी, अतः हम दिल्ली में ही अंतिम संस्कार करेंगे। आप कृपया अपने केबिनेट सहयोगियो को अंतिम संस्कार हेतु मनाइए।

नजदीक खड़ी सोनिया कुछ बुदबुदाई। तभी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रेड्डी भी वहाँ पहुँच चुके थे। उन्होंने राव परिवार को मनाना शुरू कर दिया। उन्होंने विश्वास दिलाया राव का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया जाएगा तथा हैदराबाद में राव का भव्य पर मेमोरियल भी मनेगा।

राव की बेटी एस वाणी का कहना था कि, वह रेड्डी ही थे जिन्होने परिवार को मनाया। अन्ततः परिवार नरम पड़ा और हैदराबाद में अंतिम संस्कार हेतु तैयार हो गया। परिवार ने दिल्ली में भी राव मेमोरियल बनाने की इक्छा प्रकट की। जिस पर वहाँ मौजूद कांग्रेस नेताओं ने हामी भर दी।

किन्तु पिछले कुछ वर्षों से राव के साथ पार्टी का जैसा व्यवहार था, उसे लेकर परिवार की चिंता लाजिमी थी। वे रात 9.30 बजे शिवराज पाटिल के घर पहुंचे, दिल्ली में मेमोरियल की बात दोहराई। पाटिल ने मनमोहन तक पहुंचाई। मनमोहन ने हामी भर दी।
***
अगले दिन 24 दिसम्बर को तिरंगे में लपेटा राव का पार्थिव शरीर एयरपोर्ट जाने हेतु तोप गाड़ी में रखा गया। एयरपोर्ट के रास्ते में वो पता भी पड़ता था, जो कभी राव के सियासत का केंद्र बिंदु हुआ करता था। 24 अकबर रोड़, कांग्रेस का मुख्यालय।

सोनिया के घर से सटे कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड के सामने तोप गाड़ी की रफ़्तार थोड़ी धीमी हुई। मुख्यालय का मुख्य गेट बन्द था। तमाम कांग्रेसी नेता गेट के पास खड़े थे, किन्तु सब के सब चुप्पी साधे थे। कुछ समय उपरांत सोनिया कुछ नेताओं संग राव को अंतिम विदाई देने हेतु बाहर आई। वे फूल चढ़ाकर भीतर चली गई।

चुँकि पार्टी परम्परानुसार निधन उपरांत किसी भी नेता का शव आम जनता के दर्शन हेतु पार्टी मुख्यालय में रखने का रिवाज था। अतः परिवार चाहता था कुछ समय के लिए राव का शव पार्टी मुख्यालय पर रखा जाए। किन्तु परिजन ने कभी उम्मीद भी नही की होगी उनके साथ ऐसा भी हो सकता हैं।

करीब आधा घण्टे तक "पूर्व प्रधानमंत्री के शव" को ले जा रही तोप गाड़ी, मुख्यालय के गेट पर खड़ी रही। लेकिन गेट नही खुला। निराश होकर परिवार एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो गया।

विनय सीतापति अपनी किताब "द हाफ लायन" में लिखते है....,

राव के एक दोस्त ने कांग्रेस के नेताओं से गेट खोलने के लिए आग्रह भी किया था, लेकिन उन्होंने "गेट नही खुलता" कहकर मना कर दिया। वबाल बढ़ने पर मनमोहनसिंह को कहना पड़ा उन्हें इसकी कोई जानकारी नही थी।
अन्ततः परिवार एयरपोर्ट से A-32 विमान में राव का शव लेकर हैदराबाद रवाना हो गया। वही उनका अंतिम संस्कार किया गया।

विनय सीतापति अपनी किताब में लिखते हैं.....,
राव के बेटे प्रभाकरण ने उनसे कहा था:- हमे महसूस हुआ कि सोनिया जी नही चाहती थी, कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो और उनका मेमोरियल यहाँ बने।

राव व सोनिया के मनमुटाव, कड़वाहट के किस्से आम थे। किंतु इसकी परिणीति इस हद तक जाएगी शायद ही किसी ने सोचा होगा।

भारतीय राजनीति में एक प्रधानमंत्री के शव के साथ स्वयं उनकी पार्टी द्वारा ऐसी दुर्दशा, घोर अपमान का मामला सम्भवतः एकमात्र होगा।

पीवी नरसिम्हा राव को अपने कार्यो के लिए जितना सम्मान मिलना चाहिए था, उन्हें कभी नही मिला। वे 'राजनीति' का आसान शिकार हो गए।

आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐.💐

बुधवार, 29 दिसंबर 2021

छत्तीसगढ़ में संत कालीचरण महाराज के विरुद्द केस दर्ज

‘गाँधी ने एक लाठी भी खाई? छत्रपती शिवाजी - राणा प्रताप - चाणक्य को बनाओ राष्ट्रपिता’: FIR पर बोले कालीचरण महाराज – फाँसी दे दो, माफ़ी नहीं माँगूँगा
28 December, 2021
ऑपइंडिया स्टाफ़




कालीपुत्र कालीचरण महाराज,
गाँधी पर बयान को लेकर कालीपुत्र कालीचरण महाराज न जारी किया स्पष्टीकरण (फाइल फोटो)
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कालीपुत्र कालीचरण महाराज ने रायपुर धर्म संसद में महात्मा गाँधी के खिलाफ बयान देने पर स्पष्टीकरण जारी किया है। अपने YouTube चैनल पर जारी किए गए वीडियो में ‘ॐ काली’ के साथ अपनी बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा है कि महात्मा गाँधी के लिए कहे गए अपशब्दों का उन्हें कोई पश्चाताप नहीं है। उन्होंने पूछा कि महात्मा गाँधी ने हिन्दुओं के लिए किया ही क्या है? उन्होंने बताया कि किस तरह 14 वोट प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को मिले, लेकिन शून्य वोट वाले जवाहरलाल नेहरू को पीएम बना कर उन्होंने वंशवाद फैलाया।

उन्होंने कहा कि अगर सरदार पटेल के हाथों में भारत की सत्ता गई होती तो हमारा देश आज जगद्गुरु होता और अमेरिका से भी आगे होता, लेकिन जनता के साथ विश्वासघात हुआ। उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे प्रतिभावान लोगों को कॉन्ग्रेस में इसी कारण काम करने का अवसर नहीं मिला। उन्होंने कहा कि ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, दे दी आज़ादी हमें बिना खडग बिना ढाल’ गाना लिखने वाले को जूती मारने चाहिए। उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को याद करते हुए पूछा कि क्या इन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया?

उन्होंने बताया कि किस तरह जिन क्रांतिकारियों को फाँसी दी गई, उनमें 80% सिख थे, ये गाना लिखने वालों ने उन्हें श्रेय क्यों नहीं दिया। उन्होंने पूछा कि क्या कभी महात्मा गाँधी ने एक लाठी भी खाई? उन्होंने कहा कि गाँधी चाहते तो भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी रुकवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कालीपुत्र कालीचरण महाराज ने गाँधी का तिरस्कार करने की बात करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपनी लाश पर भारत का बँटवारा होने की बात कही थी, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश बन गया।

उन्होंने कहा, “जब बँटवारा हुआ, तब गाँधी ज़िंदा थे। बँटवारे के दंगे में लाखों हिन्दुओं-सिखों को काट डाला गया। 27 लाख हिन्दुओं का नरसंहार हुआ ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के दिन जिन्ना द्वारा। पाकिस्तान की ट्रेनों से बोर के बोर भर कर हिन्दुओं की लाशें और महिलाओं के सामूहिक बलात्कार के बाद स्तन काट कर भेजे जा रहे थे। गाँधी अनशन कर रहे थे कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दो। जब दंगा पीड़ित सिखों ने ठंड में मस्जिदों का आसरा लिया, तब उन्हें बाहर निकाल कर मुस्लिमों को मस्जिदें सौंपने के लिए गाँधी ने अनशन किया। इसीलिए, मैं नफरत करता हूँ गाँधी से।”

उन्होंने कहा कि ‘गजवा-ए-हिन्द’ के तहत भारत के इस्लामीकरण के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ने वाले हजारों वर्ग किलोमीटर का कॉरिडोर मुस्लिमों ने माँगा और उसे देने के लिए भी गाँधी अनशन करने वाले थे। उन्होंने बताया कि जब स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने हिन्दू वर्ण व्यवस्था को तोड़ कर एक होने की बात कही तो गाँधी ने नकार दिया। उन्होंने कहा कि बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित करने की बात कही, तब गाँधी ने इसके लिए अनशन नहीं किया।

कालीपुत्र कालीचरण महाराज ने पूछा कि जो राष्ट्र करोड़ों वर्षों से है, उसका राष्ट्रपिता कोई कुछ वर्ष पहले आया व्यक्ति कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र का पिता बनाना अनिवार्य ही है तो छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, आचार्य चाणक्य या महाराणा प्रताप को बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी के महापुरुषों को बनाना है तो राष्ट्र को एक करने वाले सरदार पटेल को बनाया जाना चाहिए, जिन्होंने छोटे-छोटे रियासतों को एक कर के टुकड़ों में बँटे देश को एक किया।

कालीपुत्र कालीचरण महाराज ने कहा, “अगर पाकिस्तान-बांग्लादेश को भारत में कॉरिडोर मिल जाता तो हिंदुस्तान कब का मुस्लिम देश बन गया होता। महात्मा नाथूराम गोडसे को कोटि-कोटि धन्यवाद है। उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम है। उन्होंने अपना बलिदान देकर हिंदुस्तान को मुस्लिम देश बनने से बचा लिया। ‘गजवा-ए-हिन्द’ फेल कर दिया। सच बोलने की सज़ा मृत्यु है तो स्वीकार है। वीरों ने कुल के लिए बलिदान दे दिया तो मेरे जैसे करोड़ों कालीचरण धर्म के लिए मर सकते हैं। हम हिंदुत्व के लिए मृत्युदंड पाने के लिए भी तैयार हैं।”

बता दें कि छत्तीसगढ़ में संत कालीचरण महाराज के विरुद्द केस दर्ज किया गया है। आरोप है कि उन्होंने महात्मा गाँधी को लेकर एक धर्म संसद में अपमानजनक बातें कहीं। ये धर्म संसद 26 दिसंबर 2021 को रायपुर के रावण भाटा मैदान में आयोजित की गई थी। उन्होंने मोहनदास करमचंद गाँधी का नाम लेकर उनकी हत्या को जायज ठहराया था। साथ ही गोडसे को नमन किया था। उन्होंने मंच से कॉन्ग्रेस नेताओं की आलोचना करते हुए हिंदू नेता चुनने की बात भी श्रोताओं से कही थी। इसके अलावा उन्होंने इस्लाम को लेकर कहा कि इस्लाम का मकसद राजनीति के जरिए देश पर कब्जा करने का था।




राजनीति में बहुत कम लोग बचे हैं जो .....इत्र नहीं लगाते। वर्ना आज के दौर में महकने का शौक किसे नहीं हैं..

एक ज़माना था जब Oyo rooms नहीं हुआ करते थे। 
उन दिनों हमारे एक परिचित को इश्क हुआ। इश्क परवान चढ़ा तो प्रेमिका से हर रोज़ मिलने की इच्छा भी हिलोरें मारने लगी। 
बन्धु कभी प्रेमिका से पार्क में मिलता। कभी किसी फ़ास्ट फूड रेस्तरां में मुलाकात होती। 

परंतु पार्क हो या रेस्तरां.....एक चीज़ की कमी खलती थी। 

निजता नहीं थी। 

Privacy नहीं थी। 

बन्धु ने दिमाग के घोड़े दौड़ाये। 
बहुत सोच विचार के पश्चात उसका ध्यान हमारे एक सहपाठी पर गया जो अपने माँ बाप की इकलौती सन्तान था और जिसके माता पिता गवर्मेंट जॉब में थे। 

यानि ठीक 8:30 बजे माता पिता घर से ऑफिस की ओर प्रस्थान कर जाते थे। 

बन्धु ने सहपाठी से आग्रह किया के माता पिता के जाने के पश्चात वह कुछ क्षणों के लिये उसे और प्रेमिका को घर में मिलने की इजाज़त दे दे। 

सहपाठी भोला भाला बालक था। वह बन्धु की चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया। 

थोड़ी सी ना - नुकुर के पश्चात सहपाठी ने बन्धु का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

प्रेमी प्रेमिका सहपाठी के घर मिलने लगे। 
एकांत यानि privacy के क्षण भी मिले। 

इन्ही क्षणों में बैकग्राउंड में "रूप तेरा मस्ताना ....प्यार मेरा दीवाना" गीत बजता रहा और जो अपेक्षित था ...वह हो गया। 

कांड हो गया। 

अब हो गया सो हो गया। 

आदरणीय मुलायम सिंह जी ने ही कहा है के लौंडों से जवानी में गलती हो जाती है।

बात बढ़ गयी। परिवारों तक पहुंच गई। 

परिवारों के बीच पंचायत हुई जिसमें सर झुकाये प्रेमी प्रेमिका मौजूद थे। 
सहपाठी महोदय को भी समन भेजे गये क्योंकि मौका ऐ वारदात पर प्रेमी प्रेमिका के अलावा हर वक्त मौजूद रहने वाले सहपाठी महोदय ही थे। 

दोनों पक्षों में गर्मा गर्मी हुई। फिर प्रेमी के पक्ष से एक उम्र दराज़ आदमी ने सहपाठी महोदय से पूछा के जब सारा कांड हो रहा था तो वह कहां था। 

सहपाठी ने बड़े ही भोले स्वभाव से कहा के ....."अंकिल मुझे क्या पता दोनों गड़बड़ कर रहे थे। मुझे तो लगा ....बातचीत कर रहे थे" 

अंकिल उठे और उन्ने सहपाठी के कान पर पहले तो 2-3 कड़ाकेदार थप्पड़ रसीद किये। 

फिर उन्ने उसे पेट में एक ज़बरदस्त घूंसा रसीद किया। पेट पर मुक्का पड़ते ही जैसे ही वह झुका उसकी पीठ पर एक ज़बरदस्त चमाट रसीद कर दी।

बमुश्किल उसे अंकिल के कहर से छुड़वाया। गुस्से से लबरेज़ अंकिल कहते रहे के साले हमें *** समझता है। बंद कमरे में सब गड़बड़ होती रही और तू अब हैरान होकर कह रहा है के तुझे लगा के प्रेमी प्रेमिका बातचीत कर रहे थे। 

ऐसा बेहूदा हैरानी भरा चेहरा बना रहा है जैसे कुछ पता ही ना हो। 

..............................

कानपुर के "समाजवादी इत्र व्यापारी" के घर 100-200 करोड़ पकड़े जाने पर कुछ ऐसी प्रतिक्रिया आ रही हैं जैसे कुछ अजीबोगरीब हो गया हो। 

इसमें हैरानी की क्या बात है? 

हर नेता के पास एक "इत्र व्यापारी" है।

हैरान तो लोग ऐसे हो रहे हैं जैसे पॉलिटिक्स और ब्लैक मनी के प्रेम का ज्ञान ही ना हो। 

बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?  

 नेता और भ्रष्टाचार ....प्रेमी और प्रेमिका हैं। दोनों कमरे में बंद हैं। 
कांड हो जाता है और फलस्वरूप 100-200 करोड़ रुपये गर्भ में ठहर जाते हैं। 

बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?

यह तो प्राकृतिक है....नैचुरल है। 

जाते जाते एक और बात कह दूं......इसलिये कह दूं के सक्रिय राजनीति को मैंने बहुत करीब से देखा है। 

सक्रिय राजनीति में बहुत कम लोग बचे हैं जो .....इत्र नहीं लगाते। 

वर्ना आज के दौर में महकने का शौक किसे नहीं हैं.....😊....!

 चाहें कोई कितना भी इत्र लगा ले....!!

2022 में आएंगे तो योगी ही.......😎😎

【रचित】

हमेशा परिवार के पीछे रहता है, शायद इसीलिए क्योकि वो *पिता* है ।

*तुम और मैं पति पत्नी थे, तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया।*
तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई,
लेकिन तुम "माँ के हाथ का खाना" बन गई,
मैं कमाने वाला पिता रह गया।
बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया,
मैंने समझाया,
तुम ममतामयी बन गई
मैं पिता रह गया।
बच्चों ने गलतियां कीं,
तुम पक्ष ले कर "understanding Mom" बन गईं 
और मैं "पापा नहीं समझते" वाला पिता रह गया।
"पापा नाराज होंगे" कह कर
तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं,
और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया।
तुम्हारे आंसू में मां का प्यार 
और मेरे छुपे हुए आंसुओं मे, मैं निष्ठुर पिता रह गया।
तुम चंद्रमा की तरह शीतल बनतीं गईं,
और पता नहीं कब
मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया।
तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं,
और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिए
सिर्फ एक पिता रह गया...

*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ, नौ महीने पालती है 
पिता, 25 साल् पालता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम करती है 
पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है* 

माँ ! जो चाहते हो वो बनाती है 
पिता ! जो चाहते हो वो ला के देता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ ! को याद करते हो जब चोट लगती है 
पिता ! को याद करते हो जब ज़रुरत पड़ती है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

माँ की ओर बच्चो की अलमारी नये कपड़े से भरी है 
पिता, कई सालो तक पुराने कपड़े चलाता है 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

पिता, अपनी ज़रुरते टाल कर सबकी ज़रुरते समय से पूरी करता है
किसी को उनकी ज़रुरते टालने को नहीं कहता 
*फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*

जीवनभर दूसरों से आगे रहने की कोशिश करता है मगर हमेशा परिवार के पीछे रहता है, शायद इसीलिए क्योकि वो *पिता* है । 
 समर्पित।

जिस सोच ने सैंकड़ों साल तक ऐसी नृशंसताएँ कीं, उसी सोच ने..

• पृथ्वीराज चौहान..... अंधा करके मारा गया
• गुरु अर्जुनदेव जी.... गर्म तवे पर बैठाने के बाद उन पर खौलती हुई रेत डालकर मारा गया !
• गुरु तेगबहादुर जी... नृशंस हत्या कैसे की गई यह बताने की जरूरत नहीं !
• भाई मतिदास जी... लकड़ी के दो पाटों में बांधकर, ऊपर से नीचे आरी से चीरा गया !
• भाई सतीदास जी... बड़े कड़ाह में खौलते तेल में डुबाकर मारा !
• भाई दयाला जी.... रुई में लपेटकर जिन्दा जलाया !
• गुरु गोविंद जी के दो मासूम साहिबजादों को.... जिंदा ही दीवार में चुनवा दिया गया !
• बाबा बंदा बहादुर.... उनकी खाल नोंचते हुए पंजाब से दिल्ली लाने के बाद मारा गया, उनके मुँह में उनके ही बच्चे का दिल ठूँस दिया गया !
• छत्रपती संभाजी महाराज.... 65 दिन हाल-हाल करके उनकी चमड़ी छीलकर, उनका वध किया गया !

            जिस सोच ने सैंकड़ों साल तक ऐसी नृशंसताएँ कीं, उसी सोच ने.... 
.....1990 में कश्मीर के सैंकड़ों हिन्दुओं के सिर में ठोककर मारा !
.....स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को 12 घंटों तक टॉर्चर करके मारा गया !
.....कैप्टन सौरभ कालिया के साथ हुई नृशंसता को लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं !
...... अभी अभी हाल ही में, फरवरी 2020 में, अंकित शर्मा को 2 घंटे से ज्यादा समय तक चाकू के कई वार करके मारा गया !😭

           लेकिन... फिर भी अगर आपको ऐसा लगता है कि.... मेरे जैसे लोग नफरत फैला रहे  है तो... शायद आपको भगवान भी नहीं बचा सकेंगे ! 
हम व्यक्तिगत  तौर पर किसी भी पार्टी के खिलाफ नहीं हैं

ये मैसेज आप सही दृष्टिकोण से समझोगे तो ही जान सकोगे कि महंगाई और तेल के दाम से इतना फ़र्क़ नहीं पाने वाला है जितना कि ऐसे राजा को शासन करने का मौका गवां देने से पड़ेगा, जिसने कि धर्म की रक्षा के लिए देश में  महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं।
  
🚩 "जय हिंद"🚩

गुजराती नागरिक सदैव दूर की सोचते हैं, और ये एक पाठ देशवासियों को, और विशेष कर हिन्दुओं को, उनसे सीखना होगा!

*भाजपा सत्ता में आई, उसमें गुजरात का बहुत बड़ा योगदान है!*

*गुजरात को मीडिया के लोग "हिंदुत्व की प्रयोगशाला" कहते थे!*

*गुजरात पहला राज्य है, जहां भाजपा सत्ता में आई, और जिस जमाने में भाजपा के केवल दो संसद सदस्य थे! उसमें से एक मेहसाना से थे!*

*आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा, कि गुजरात में भाजपा सत्ता में कैसी आई?*

*मित्रों, गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने में कुख्यात "माफिया डॉन अब्दुल लतीफ" का बहुत बड़ा योगदान है*

*अगर अब्दुल लतीफ नहीं होता, तो संभव है भाजपा सत्ता में नहीं आती!* 

*अब्दुल लतीफ इतना कुख्यात डॉन था, कि उसने सबसे पहले एके-५६ का उपयोग किया था! और १२ पुलिस कर्मियों सहित, १५० से अधिक नागरिकों का वध किया था, जिसमें "राधिका जिमखाना" वध बहुत प्रसिद्ध हुआ था!*

*जब "राधिका जिमखाना" क्लब में लतीफ ने अंधाधुंध गोलीबारी करके, एक साथ ३५ नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था!*

*लतीफ के ऊपर कांग्रेस और जनता दल दोनों के नेताओं का वरदहस्त था!*

*लतीफ की इतनी पहुंच थी, कि वह मुख्य मंत्री चिमन भाई पटेल के चेंबर में, बगैर अपॉइंटमेंट के, चला जाता था, और तस्करी, सोने चांदी की स्मगलिंग, ड्रग्स की स्मगलिंग, इत्यादि में अरबों रुपए कमाये, और उसमें नेताओं को हिस्सा जाता था!*

*यदि लतीफ या लतीफ के गैंग के किसी गुर्गे को कोई हिंदू लड़की पसंद आ जाती थी, तो वो रातों-रात उठा ली जाती थी!*

*लतीफ, जब चाहे तब, किसी हिंदू का बंगला, दुकान खाली करवा लेता था! उस समय भाजपा गुजरात में संघर्ष के दौर में थी*

*नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला, केशुभाई पटेल साइकिल स्कूटर पर, चप्पल पहन कर घूमते थे!*

*एक दिन, गोमतीपुर में भाजपा की एक सभा थी! भाषण देते देते, केशुभाई पटेल ने जोश में बोल दिया, कि जब भाजपा की सरकार आएगी, तब अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया जाएगा! बोलने के बाद, वह डर गए! उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई! लेकिन गुजरात की जनता के अंदर एक संदेश चला गया, कि आखिर यह कौन से पार्टी के नेता हैं, जो अब्दुल लतीफ के गढ़ में, उसका इनकाउंटर करने की बात कर रहे हैं?*

*केशुभाई पटेल के इस भाषण के बाद, जब चुनाव हुए, तब गुजरात में भाजपा की ३५ सीटे आई, जो अपने आप में बहुत बड़ी विजय थी!*

*उसके बाद, भाजपा ने अब्दुल लतीफ और उसके गुर्गों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया, और अगले चुनावों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई! और अपने वायदे के अनुसार, शंकर सिंह वाघेला ने अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया!*

*अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर भी बड़े जोरदार तरीके से हुआ था! शंकर सिंह वाघेला के सामने डीएसपी जाडेजा आए, और बोले सर लतीफ का एनकाउंटर करना चाहता हूं, क्योंकि इसने मेरे इंस्पेक्टर झाला का मर्डर किया था, जब वह अपनी गर्भवती पत्नी को देखने छुट्टी पर जा रहा था!*

*अब्दुल लतीफ को गिरफ्तार किया गया! और नवरंगपुरा स्थित पुराने उच्च न्यायालय में उसकी पेशी होनी थी! पेशी के पहले, डीएसपी जडेजा ने कहा, "दाबेली खाओगे?" लतीफ ने हां बोला, तो उसकी हथकड़ी खोल दी गई! और फिर उसे ८ गोलियां मार दी गई! और मीडिया में कह दिया गया, लतीफ ने नाश्ता करने के लिए हथकड़ी खुलवाई, और भागने का प्रयास किया! जिसके फलस्वरूप वह मारा गया!*

*उसके बाद, शंकरसिंह वाघेला ने एक और बहुत अच्छा काम किया, कि उन्होंने "अशांत धारा एक्ट" लागू कर दिया, यानी गुजरात के विभिन्न शहरों में बहुत से विस्तार चिन्हित कर दिए गए! और इन विसतारों में किसी हिंदू की संपत्ति, कोई मुस्लिम नहीं खरीद सकता!*

*और उसके बाद भाजपा गुजरात से होती हुई मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बंगाल, इत्यादि अन्य कई जगह बढ़ती चली गई! और आज केंद्र में ३०३ बैठकों के साथ सत्ता में है!* 

*जब एक हिन्दू जागता है, और दूसरे सोये हुए हिन्दुओं को जगाता है, तब ये गुजरात वाला वातावरण बनता है!*

*जब केशूभाई ने लतीफ का एनकाउंटर करने की घोषणा की थी, गुजरातियों ने बिना किसी प्रश्न-उत्तर के भाजपा को अपना भरपूर समर्थन किया था!*

*अगर पूरे देश में गुजरात वाला परिणाम हिन्दुओं को चाहिए, तो सभी को वही करना होगा, जो तब गुजरातियों ने किया था!*

*इसीलिए भाजपा और मोदी को, बिना प्रश्न किये, साथ दें! तभी पूरे देश में से लतीफों का सफाया मोदीजी और भाजपा कर पाएंगे!*

*गुजराती नागरिक सदैव दूर की सोचते हैं, और ये एक पाठ देशवासियों को, और विशेष कर हिन्दुओं को, उनसे सीखना होगा!*

*छोटी-छोटी बातों में मोदीजी और भाजपा का विरोध न करें! बल्कि उन्हें अपना पूरा समर्थन दें! ताकि वे अपना काम पूरी प्रामाणिकता से कर सकें!* 
🤔 🤔 🤔
*केवल २५ हिन्दू मित्रों को भेजिए!*

*ll जय श्री राम ll*

मनुष्य योनि का भोग

*मनुष्य योनि का भोग*

एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था, बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया, किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।
आखिर दोपहर हो गयी ,तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला ?
इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राहम्ण पर पड़ी ,उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली, वे बड़े पहुँचे हुए संत थे ,उन्होंने कहाः “हे दरिद्र ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

महात्मा बोले, “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं ,अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं। कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की योनी से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है ,उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है, किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है ,और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता। "दूसरे में भी मेरा प्रभु ही है" यह ज्ञान नहीं होता। तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”।

ब्राह्मण का चेहरा दुःख व निराशा से भरा था। सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण, मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

वह दरिद्र ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया और योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः

‘ओहोऽऽऽऽ….वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है तो कोई बघेरा है। आकृति तो मनुष्य की है ,लेकिन संस्कार पशुओं के हैं, मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’। घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है, ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया।

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है ,औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ ,मुझे बड़ी भूख लगी है ,इसीलिए मैं तुझसे माँगता हूँ ,क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु, आप भूखे हैं ? हे मेरे भग्वन आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर (रेज़गारी) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हलवाई भाई, मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा,और घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया, एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया।


उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था, उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं, किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया, दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो राजा मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः

“अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा ,और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा।”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था। मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया। राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी। राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ ,किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया। उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली। राजा ने कहाः

“जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं है,पाँच सौ रूपयों वाली जूती है। जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो!”

मोची बोलाः “राजा जी, तनिक ठहरिये, यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आताहूँ”मोची जाकर विनयपूर्वक उस ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा जी, यह जूती इन्हीं की है।

”राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ, यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मण देव की होगी। जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ। न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ?

इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए। मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं। हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया!”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?

”ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली बात बताई, और कहा कि राजन्, आप के राज्य में पशुओं के दर्शन तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का अंश इन मोची भाई में ही नज़र आया।

”राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें।”राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारियों में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ। राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर! उस के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ।’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है, वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।”श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते।

ब्राह्मण ने आगे कहाः "राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है।

एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है ,लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है।”अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है ,और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हममें मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

गोस्वामी तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरे अब और आजु।
तुलसी होई राम को, रामभजि तजि कुसमाजु।।

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे। अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा। यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे। पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है। पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप बाहर निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है हरि नाम संकीर्तन यानी (सत्य का संग)व सत्संग से! तो हे आत्म जनों, मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है। बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है..!! इसलिए आप जो भी कमा रहे उसमे से कम से कम 2% दान करते रहे जो सेवा आपको सही लगे उस में..!!
   *🙏🏼🙏🏽🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏻🙏

अच्छे संस्कार बनाएं और देश समाज धर्म के लिए भी अच्छे कर्म करके आप उपयोगी बनें


        "टाइम पास करने के लिए यदि आप को चर्चा ही करनी हो, तो उसके दो उपाय हैं। या तो ईश्वर के गुणों की चर्चा करें, या फिर दूसरे लोगों के अच्छे कर्मों की चर्चा करें। बहुत अच्छा टाइम पास होगा।"
          बहुत से लोगों के पास बहुत सारा टाइम फालतू है। जब उन्हें कोई काम नहीं होता, पूरी फुर्सत में होते हैं, तो वे सोचते हैं, कि "अपना टाइम पास कैसे करें?" यूं तो टाइमपास करने के बहुत तरीके हैं, जिनका प्रयोग आमतौर पर लोग करते हैं। जैसे "कि व्यायाम करना खेलकूद करना टेलीविजन देखना facebook पर काम करना whatsapp का प्रयोग करना ताश खेलना जुआ खेलना सेवा करना दान देना कहीं रोगियों की मदद करना ईश्वर का ध्यान करना स्वाध्याय करना सत्संग करना इत्यादि।" इनमें से कुछ तरीके अच्छे हैं, और कुछ बुरे। "बुरे तरीके से टाइम पास नहीं करना चाहिए, सदा अच्छे कर्म ही करने चाहिएं, जिससे कि सब का भविष्य अच्छा बने।" लोग इन सब कामों को करते हुए अपना टाइम पास करते हैं। परंतु कभी-कभी उनकी इच्छा गप्पें मार कर टाइम पास करने की होती है। "ऐसी स्थिति में वे लोग बैठकर आपस में  कुछ इधर-उधर की बातें करते हैं। कुछ गपशप करते हैं। कुछ निंदा चुगली करते हैं। कभी कभी कुछ अश्लील बातें भी करते हैं। कुछ लोग बिना प्रसंग की व्यर्थ की बातें भी करते हैं।" यदि आपको टाइम पास करने के लिए बातचीत ही करनी हो, और दूसरे किसी काम में रुचि न हो, तो "इस प्रकार की बातचीत करें, जिससे आपको कुछ लाभ भी हो, शांति मिले, आनंद मिले, उत्साह बढ़े, कुछ अच्छी प्रेरणा मिले और आपका टाइम पास भी हो जाए।"
            मनोविज्ञान का सिद्धांत ऐसा कहता है, कि आप जिस विषय पर चर्चा करेंगे, उसका प्रभाव आपके ऊपर अवश्य पड़ेगा। यदि आप अच्छी चर्चा करेंगे, तो आपका मन प्रसन्न होगा। यदि आप खराब घटनाओं की चर्चा करेंगे, तो आपके मन पर उसका भी प्रभाव पड़ेगा। मन में अशांति और तनाव उत्पन्न होगा।"
          अब यदि आप अपने मन को प्रसन्न भी रखना चाहते हैं, उस चर्चा से अपना संस्कार भी उत्तम बनाना चाहते हैं, उन संस्कारों से भविष्य में अच्छे कर्म भी करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको अच्छी बातें ही करनी पड़ेंगी। उसके दो भाग इस प्रकार से हैं।
            एक तो यह, - कि "आप ईश्वर के विषय में चर्चा करें। जब भी आपको फुर्सत हो, समय खाली हो, टाइमपास करना हो, जब दो चार आदमी मिलकर बैठें, तो ईश्वर की चर्चा करें। ईश्वर के गुणों पर विचार चिंतन और बातचीत करें। इससे आपको बहुत आनंद मिलेगा, शांति मिलेगी, और ईश्वर के गुणों का आपके ऊपर बहुत उत्तम प्रभाव पड़ेगा, जिससे कि आप भविष्य में अच्छे काम करेंगे।"
       इसके अतिरिक्त बात चीत करने के लिए दूसरा विषय यह है, कि - "समाज के लोगों में से जिसने अच्छे कर्म किए हों, अर्थात सेवा परोपकार दान दया नम्रता सभ्यता रोगियों की सहायता करना गरीबों को मदद देना आदि आदि इस प्रकार के अच्छे काम किए हों, तो उन मनुष्यों के कर्मों पर इस प्रकार से चर्चा करें," कि "हमारा कितना सौभाग्य है, कि हमारे देश में इतने अच्छे-अच्छे परोपकारी सज्जन लोग रहते हैं। जैसे कि उस व्यक्ति ने गौशाला चलाई। उसने धर्मार्थ चिकित्सालय चलाया। किसी ने धर्मशाला बनवाई। कोई गरीब लोगों की सहायता कर रहा है। कोई गरीब बच्चों की स्कूल की फीस भर रहा है। कोई व्यक्ति गरीब बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन पढ़ा रहा है।"
        जब आप इस प्रकार की बातें करेंगे, तो आपके ऊपर इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा।   आपको भी उन अच्छे कर्मों से प्रेरणा मिलेगी। आपका मन भी शांति और प्रसन्नता से भर जाएगा। वैसे उत्तम कर्म करने का आपके अंदर भी उत्साह उत्पन्न होगा। तो इस प्रकार से आपको बहुत अधिक लाभ होगा। अतः जब भी चर्चा करें तो ऐसी ही सार्थक चर्चा करें।
           "व्यर्थ की राजनीति की बातें, फिल्मों की बातें, गंदी कथा कहानियां, अश्लील बातें करने से आप का चरित्र बिगड़ेगा। आपका कर्म बिगड़ेगा। आप के संस्कार भी बिगड़ेंगे, जिससे कि आप भविष्य में बुरे कर्म करेंगे। आपके मन में अशांति और तनाव उत्पन्न होगा।" ऐसी ख़राब बातें करने से आपका टाइम तो पास हो जाएगा, परंतु यह कार्य लाभकारी नहीं होगा, बल्कि हानिकारक अधिक होगा। "ख़राब बातें करने से आपका वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ जाएंगे। इसलिए इस प्रकार की बुरी चर्चाएं करने से बचें। अच्छी चर्चाएं करें। अच्छे संस्कार बनाएं और देश समाज धर्म के लिए भी अच्छे कर्म करके आप उपयोगी बनें। इसी में आप के जीवन की सफलता है।"
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सोचे आनेवाली पीढी।*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी

सभी से अनुरोध है कि एक बार पढ़ियेगा अवश्य । काफी समय के बाद किसी ने बेहद सुंदर आर्टिकल भेजा है ।

🙏🏽 

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!!* 


आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके मूल कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा है, जो कि अति संभव है एवं निम्न हैं----------------।


*1, पीहरवालों की अनावश्यक दखलंदाज़ी।*

*2, संस्कार विहीन शिक्षा*

*3, आपसी तालमेल का अभाव* 

*4, ज़ुबानदराज़ी*

*5, सहनशक्ति की कमी*

*6, आधुनिकता का आडम्बर*

*7, समाज का भय न होना*

*8, घमंड झूठे ज्ञान का*

*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*

*10, परिवार से कटना।*

 *11. घण्टों मोबाइल पर चिपके रहना ,और घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देना।* 

*12. अहंकार के वशीभूत होना ।* 

पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
*लेकिन वर्षों आपस में निभती थी!*
*भय था , प्रेम था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
*पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है*, 

*और अब कहते हैं कि मेरी बेटी नाज़ों से पली है । आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*

*तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?*



*शिक्षा के घमँड में बेटी को आदरभाव,अच्छी बातें,घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*

*माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।*

*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही है ।*

*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*

परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।

*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में तांक-झांक।*

जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*

बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।

*वो भी मोबाईल पर।*


बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
*परिवार के लिये नहीं*।



*सबसे ज्यादा बदलाव तो इन दिनों महिलाओं में आया है।*

*दिन भर मनोरँजन,* 

*मोबाईल,*

*स्कूटी..कार पर घूमना फिरना ,*

*समय बचे तो बाज़ार जाकर शॉपिंग करना*

*और ब्यूटी पार्लर।*

जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।

*होटल रोज़ नये-नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।

*और साथ ही बिक रही है बीमारी एवं फैल रही है घर में अशांति।*

आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में बतौर चौकीदार।*


पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थीं।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि *महिला संगीत* में अपनी नृत्य प्रतिभा जो दिखानी है।


*जिस महिला की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।


👌🏻*घूँघट और साड़ी हटना तो चलो ठीक है,
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?
*बड़े छोटे की शर्म या डर रहा क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
*कोई लड़की को उठा रहा है* 
*और हम ये तमाशा देख रहे हैं, खुश होकर, मौन रहकर।*



*माँ बाप बच्ची को शिक्षा तो बहुत दे रहे हैं ,
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करें।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक-वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये*
*ख़ुद कमा खा ले।*
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना ही है।*


 साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*


बस यही सोच कि - अकेले भी जिंदगी जी लेगी गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।


*पहले पुराने समय में , स्त्री तो छोड़ो पुरुष भी थाने, कोर्ट कचहरी जाने से घबराते थे।*
*और शर्म भी करते थे।*
*लेकिन अब तो फैशन हो गया है।*
पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ *तलाकनामा* तो जेब में लेकर घूमते हैं।


*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
*और अब तो समाज की कौन कहे , माँ बाप तक को जूते की नोंक पर रखते हैं।*


*सबसे खतरनाक है - ज़ुबान और भाषा,जिस पर अब कोई नियंत्रण नहीं रखना चाहता।*
कभी-कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझा जाता है।*आखिर शिक्षित जो हैं।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में मिली है।*


*आखिर झुक गये तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।*
*गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।*


*आज समाज ,सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*


*पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।*
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
*एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।*
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
*खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।*
*घरवाली के लिये हार के सपने ज़रूर देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।


*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*


अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*

मनोरंजन हेतु TV,

*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,* 

*मसाला पीसने के लिए मिक्सी*, 

*रेडिमेड पैक्ड आटा,

*पैसे हैं तो नौकर-चाकर,*

*घूमने को स्कूटी या कार* 

*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*

आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?

*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*

दो लोगों का परिवार।

*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।


*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*


लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।

*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*

*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दें , तो ये सब न हो।

*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*

ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।


*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*और पुराने रिश्ते भी।

*आज बिड़ला सीमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।*

और रिश्ते भी महीनों में खत्म।


*इसका कारण है
रिश्तों मे *ग़लत सँस्कार*
*खैर हम तो जी लिये।*


सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*


दिनभर बाहर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ होती है ।
आप मानो या ना मानो आप की मर्जी मगर यह कड़वा सत्य है ।

प0 रघुवीर शर्मा

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