✍संघ की शाखाओं का Placement देखकर
Cambridge, Harvard, Oxford, IIM, IIT, BIT, NIT और पूरी दुनिया हैरान..
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बस इतना सा है RSS बाबू जी...!!!
ये कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है जो इतनी जल्दी इसकी जड़े हिल जाएँगी,,,, बड़े बड़े सूरमा RSS मुक्त भारत के सपने देखते देखते दुनिया से ही चले गए...।
95 साल का आरएसएस आने वाले हजारो साल तक भारतवर्ष की सेवा करेगा।
परम: वैभवम ने तुम्हे तत्व राष्ट्रम:।
भारत माता की जय,
वन्देमातरम्।🙏
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021
संघ की शाखाओं का Placement देखकर Cambridge, Harvard, Oxford, IIM, IIT, BIT, NIT और पूरी दुनिया हैरान..
टेटनस रोग का कारण क्लॉस्ट्रीडियम टेटनाई नामक जीवाणु
ढेरों लोगों की तरह उनका भी सोचना था कि ज़ंग-लगी कील चुभने से टेटनस हो जाता है।
मैं यह नहीं कहूँगा कि उनका सोचना ग़लत था। लेकिन विचार की संक्षिप्तता के अपने लाभ हैं और सुदीर्घता के अपने। सो ज़ंग-लगी कील के चुभने से टेटनस के होने में सत्यता तो है। पर कितनी ? और किस तरह से यह चुभन इस रोग जो जन्म दे सकती है ?
टेटनस रोग का कारण क्लॉस्ट्रीडियम टेटनाई नामक जीवाणु हैं। ये जीवाणु हमारे आसपास की मिट्टी में बहुतायत में मौजूद हैं। जब ये किसी तरह से हमारे शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं , तो वहाँ प्रजनन करते हुए टॉक्सिन यानी विष का निर्माण करते हैं। यह विष पूरे शरीर पर अपना दुष्प्रभाव दिखाता है। यही विषैला दुष्प्रभाव ही टेटनस-रोग है।
टेनिस का रैकेट देखा है आपने ? मिट्टी में मौजूद टेटनसकारी जीवाणु उसी आकार में निष्क्रिय अवस्था में रहा करता है , जिसे स्पोर कहा जाता है। दिनों-दिन , महीनों-सालों स्पोर यों ही पड़े रह सकते हैं। मिट्टी के सम्पर्क में आने वाली हर वस्तु पर , चाहे वह लोहे का हो अथवा न हो। कीलें में इनमें शामिल हैं , चाहे उनपर ज़ंग लगी हो अथवा न लगी हो।
जिस घावों के कारण टेटनस होने की आशंका सर्वाधिक होती है , वे गहरे-नुकीले घाव होते हैं। जब कोई पतली-लम्बी-नुकीली वस्तु त्वचा को गहरा पंचर करती है। इससे उस वस्तु पर मौजूद निष्क्रिय क्लॉस्ट्रीडियम जीवाणु व्यक्ति के मांस में गहरे पहुँच जाते हैं। यह वह स्थान है , जिसका बाहर वायु से सम्पर्क नहीं होता। यहाँ ऑक्सीजन की कमी रहा करती है और यही वातावरण इन जीवाणुओं के पनपने के लिए एकदम उचित होता है।
इन गहरे-नुकीले , हवा के सम्पर्क से कटे घावों में ये जीवाणु पनपते हैं और अपना टेटनोस्पाज़्मिन नामक विष बनाते हैं। यह विष संसार के सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक विषों में से एक है , जिसके प्रभाव से व्यक्ति की मांसपेशियाँ सिकुड़ कर अकड़ जाती हैं। चेहरा-छाती-हाथ-पैर सभी साथ यों कड़े होकर सिकुड़े रहते हैं , मानो व्यक्ति की धनुष की मुद्रा में आ गया हो। इस मुद्रा का नाम धनुष्टंक या ओपिस्थोटैनॉस है। लगातर सिकुड़ी मांसपेशियाँ जो ढीली पड़ती ही नहीं , व्यक्ति के प्राण ले लेती हैं।
पर इस पूरी रोग-कथा में ज़ंग लगी कील कहाँ है ? वस्तुतः इस तरह से तो कहीं नहीं है। ज़ंग यानी आयर्न ऑक्साइड का टेटनस से सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं। लेकिन मिट्टी के सम्पर्क में मौजूद कीलों पर टेटनस के जीवाणु मौजूद हो सकते हैं ; चाहे उनपर ज़ंग लगी हो अथवा नहीं। फिर चूँकि कील का घाव नुकीला और गहरा होता है , इसलिए इनके माध्यम से ये जीवाणु मांस में गहरे पहुँच सकते हैं। इस तरह से टेटनस पैदा करने में कील का नुकीलापन एवं मिट्टी के सम्पर्क में होना ही उत्तरदायी है , ज़ंग की मौजूदगी नहीं।
बच्चों के जन्म के बाद उनकी कटी नाल पर गोबर लगाने से भी टेटनस इसीलिए होता है। मल में टेटनस-जीवाणु बहुतायत में वास करते हैं और कटी हुई नाल पर इसे मलने से ये ख़ून के बहाव से शिशु-देह में गहराई में पहुँच जाते हैं जहाँ ऑक्सीजन अनुपस्थित हो। बस वहाँ से पनपते हैं और अपना विष बनाकर छोड़ते हैं। नतीजन शिशु को टेटनस हो जाता है।
सुना गया है कि अमुक व्यक्ति को शेव बनाते समय रेज़र से टेटनस हो गया। या फिर ब्लेड से नाख़ून काटने पर इस रोग की पुष्टि हुई। हो सकता है ( सैद्धान्तिक तौर पर ) अगर क्लोस्ट्रीडियम टेटनाई रेज़र पर हो और गहराई से खाल में पहुँच जाए। लगभग असम्भव है अगर धारदार यन्त्र स्वच्छ है और त्वचा को उसके प्रयोग के बाद साफ़ किया गया है।
टेटनस का क्या इलाज है ? एक बार यह रोग हो गया , तब जान का बड़ा संकट सामने है। लेकिन ज्यों ही टेटनस की आशंका होती है , डॉक्टर इन जीवाणुओं को मारने के लिए एंटीबायटिक देते हैं। पर टेटनस में जीवाणु मर भी गये , तो क्या ? उनका विष अगर शरीर में उपस्थित रहा , तो वह अपना दुष्प्रभाव दिखाएगा ही ! इसलिए टेटनस-इम्यूनोग्लोबुलिन देकर इस विष को नष्ट किया जाता है। साथ ही अनेक दवाओं से रोगी की मांसपेशियों को ढीला करने की चेष्टा की जाती है।
और रोकथाम ? किसी भी तरह गन्दी , मिट्टी में पड़ी , धारदार ( विशेषकर नुकीली ) वस्तुओं से चोट न लगे , इसका प्रयास हो। वस्तु चुभ ही जाए तो टेटनस का टीका लिया जाए। एक बार लिया यह टीका वयस्कों में दस वर्षों तक रक्षण देता है। बाक़ी हर मामला अलग है , हर रोगी अलग। इसलिए अन्तिम निर्णय तो उसी डॉक्टर को करना है , जिसके पास दुर्घटना के बाद रोगी पहुँचता है।
ज़ंग-लगी कील से टेटनस के होने में ज़ंग का कोई हाथ नहीं है। भूमिका उसपर मौजूद टेटनस-जीवाणु की है , जिन्हें कील का नुकीला आकार मांस की गहराई में पहुँचा देता है।
स्त्रोत:
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2.
3.
24 दिसंबर के दिन हुई थी एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री की 'बे अदबी'
बुधवार, 29 दिसंबर 2021
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