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शनिवार, 24 अगस्त 2024

जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार-बार चुभे... उसे एक बार हथौड़ी बन कर ठोक दो।

जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार-बार चुभे... उसे एक बार हथौड़ी बन कर ठोक दो।
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काकभुशुण्डि जब करोड़ों ब्रह्माण्डों में घूमें होंगे तो उन्हें समय कितना लगा होगा? क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान् राम तो अवतरित होकर केवल ग्यारह हजार वर्ष अथवा तेरह हजार वर्ष तक ही रहे। करोड़ों ब्रह्माण्ड देखने के लिये तो बड़ा लम्बा समय चाहिये।गरुड़ जी ने पूछ दिया कि भगवान् श्रीराम के उदर में करोड़ों ब्रह्माण्ड आपने कितने समय में देखें? उत्तर देते हुए काकभुशुण्डि जी ने कहा कि-
भ्रमत मोहि ब्रह्माण्ड अनेका।
बीते मनहुँ कलप सत एका॥
      एक सौ एक कल्प तक मैं भगवान् के पेट में स्थित कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों को देखता रहा। अब आश्चर्य होता है कि कहाँ ग्यारह अथवा तेरह हजार वर्ष और कहाँ एक सौ एक कल्प। वैसे तो एक कल्प का समय ही बहुत लम्बा-चौड़ा होता है और इस अवधि की गणना करने वाले अंकों को पढ़कर तो व्यक्ति आतंकित हो जायगा कि एक सौ एक कल्प तक उन्होंने देखा, यह भला कैसे सम्भव है? जब एक सौ एक कल्प तक देख चुके तो भगवान् फिर हँसे और हँसते ही भुशुण्डि जी पेट से निकल कर बाहर आ गये और बाहर आकर देखने लगे कि यह जो मैंने देखा है उसे देखने में कितना समय लगा है? और बाहर की घड़ी की ओर देखने पर पता चला कि-
उभय घरी महँ मैं सब देखा।
          केवल दो घड़ी में मैंने सब देख लिया। आश्चर्य हुआ कि कहाँ दो घड़ी और कहाँ एक सौ एक कल्प। एक देश में भगवान् श्रीराम और उन श्रीराम के उदर में अनेकानेक ब्रह्माण्ड, यह विचित्र विरोधाभास है और तब प्रभु ने मुस्करा कर भक्त के मस्तक पर हाथ रख दिया-"भुशुण्डि तुम्हें क्या लगा?" वे बोले, 'प्रभु! मैं पहले यह समझता था कि आप अयोध्या में थे और आपके साथ मैं क्रीड़ा करता था। बाद में पता चला कि आप सारे ब्रह्माण्ड में हैं, पर नहीं नहीं और अधिक गहराई में जाने पर पता चला कि आप सारे ब्रह्माण्ड में नहीं हैं अपितु सारा ब्रह्माण्ड ही आपमें है। क्योंकि जितने ब्रह्माण्ड होंगे अगर उनमें ही ईश्वर होगा तो वह सीमित होगा क्योंकि आखिर ब्रह्माण्डों की संख्या की भी तो एक सीमा होगी। इसलिये प्रभु! अन्त में यह पता चला कि वस्तुतः ब्रह्माण्ड में आप दिखायी भले ही देते हैं पर सत्य तो यह है कि-'एकांशेन स्थितं जगत्' - अनन्त ब्रह्म के एक अंश में ही कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड रहते हैं, देश की दृष्टि से यह बात पता चली।" 
        काल की दृष्टि से इस सत्य का ज्ञान हुआ कि बाह्य काल की गणना के अनुसार जिस कार्य में एक सौ एक कल्प लगना चाहिये था उसे आप दो घड़ी में ही सम्पन्न करा सकते हैं। मानो दो ही घड़ी में एक सौ एक कल्प की अनुभूति करा देते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ है कि वस्तुतः काल तो आपका ही संकल्प है। आप भले ही काल में दिखायी दें, देश में दिखायी दें और व्यक्ति के रूप में दिखायी दें पर आप इन सबकी सीमा में नहीं हैं। भुशुण्डि की बात सुनकर भगवान् ने कहा- "चलो! अब हम फिर से खेलें।" मानो खेल-खेल में ही इतना बड़ा तत्त्व ज्ञान उन्होंने काकभुशुण्डि जी को दे दिया। इस तरह से अवतार के रूप में प्रभु की लीला चलती ही रहती है।

जय श्री राम

ईश्वर महान है वो कुछ भी कर सकता है।

करिश्मा…
( एक कहानी )

यह कहानी बीहड़ के रेगिस्तान की है , जहाँ पर जब रेत के तूफान आते थे , तो सब तरफ अंधेरा सा छा जाता था और कुछ भी दिखाई नही देता था।

इसी बीहड़ के रेगिस्तान के एक गाँव में , एक औरत अपने 2 वर्ष के बच्चे को एक कपड़े के झूले में झूला झुला रही थी और अपनी मीठी आवाज़ में लोरी सुना रही थी। उस औरत का एक छोटा सा झोपड़ी नुमा घर था। जो मिट्टी और कुछ ईंटों से बना हुआ था।

वो औरत बहुत ममतामई निगाहों से अपने बच्चे को देख रही थी , पर उस सांवली सी दिखाई देने वाली औरत के चेहरे पर , चिंता की लकीरें साफ नज़र आ रही थी।

वह औरत विधवा थी और उस औरत की माली हालत बिल्कुल भी अच्छी नही थी। उस औरत के पास , अब बस महीने भर का अनाज बचा था और रेगिस्तान के बीहड़ में ऐसा होना , गुपचुप से संकट की ओर इशारा कर रहा था।

रेगिस्तान के बीहड़ में रहने वाले अधिकतर लोग किसान थे या मवेशी पालते थे और बीहड़ के गाँव में रहने वाले अधिकतर किसान साल भर का अनाज और जीवन उपयोगी वस्तुएँ , एक ही बार खरीद कर रख लेते थे। पर उस औरत के पति का देहांत हुए अभी कुछ ही महीने बीते थे और अब उस घर की सुरक्षा करने वाला और कमाने वाला कोई भी नही था। कभी इस मातम मनाते घर में , ढेर सारी खुशियाँ थी और उनके परिवार के अच्छे दिन थे। तब उनके पास तीन चार गाय थी जिसका दूध बेच कर उनकी अच्छी गुज़र बसर हो जाती थी। पर जब से उस औरत के पति का देहांत हुआ था , बीहड़ के गाँव में रहने वाली उस अकेली औरत पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उस औरत के पति के गुज़र जाने के बाद , कुछ ही महीनों में , एक एक करके उनकी दो गाय भी गुज़र गई थी और अब उनके घर पर एक कमज़ोर सी दिखाई देने वाली गाय आँगन में बंधी थी और वह गाय भी ठीक समय पर चारा न मिलने की वजह से , बहुत कमज़ोर हो चुकी थी।

वह औरत अपनी मुसीबतों से अकेली लड़ रही थी। एक तरफ तो वो घर के रोज़मर्रा के कामों में जी जान से जुटी हुई थी और साथ ही वो अपने 2 वर्ष के छोटे बच्चे की देखभाल भी कर रही थी। पर इतनी मेहनत मुश्क्त करने के बाद भी और थक कर चूर हो जाने के बाद भी , उसकी आँखों में अपने बच्चे के लिये ममता कम नही हुई थी।

वह अपने बच्चे को लोरी सुनाती हुए सोच रही थी कि अगर उसकी परिस्थिति और भी खराब हो गई , तो वो पास के किसी गाँव में चली जायेगी और मेहनत मजदूरी कर लेगी पर अपने बच्चे को कोई भी कष्ट नही होने देगी।

बीहड़ के उस रेगिस्तान में , उस छोटे से कच्चे घर में , रात बहुत कयामत सी गुज़रती थी। एक तरफ वह औरत अपने छोटे बच्चे को कपड़े के बने झूले में डाल कर लोरियाँ देकर सुलाने की कोशिश कर रही होती थी और दूसरी तरफ रेगिस्तान की तेज़ हवाओं से उसके घर का किवाड़ बजता रहता था और घर के बाहर आँगन में बंधी गाय , रंभाती रहती थी। कुल मिलाकर यह सारा माहौल जैसे उस मासूम औरत की कठिन परीक्षा ले रहा था।
जब कभी उस औरत का बच्चा थोड़े समय के लिए सो जाता था , तब वह औरत अपने घर में बने एक छोटे से मंदिर में दिया जलाती थी और आँसु बहाते हुए ईश्वर से ये प्रार्थना करती थी कि " हे ईश्वर अभी सिर्फ तू ही हमारी रक्षा कर सकता है " और एक दिन उस औरत की ज़िन्दगी में एक करिश्मा हुआ।

उस समय सरकार की एक स्वास्थ्य अभियान की योजना के अंतर्गत बहुत से डॉक्टरों के दल गाँव गाँव भेजे जा रहे थे, जो अनपढ़ और गरीब लोग का मुफ्त इलाज कर रहे थे और छोटे बच्चों को चेचक प्लेग और पोलियो जैसी भयानक बीमारियों से लड़ने के लिए टीके लगा रहे थे। उसी योजना के अंतर्गत डॉक्टरों का एक दल , डॉक्टर अभय श्रीवास्तव के संचालन में उसी गाँव में आया हुआ था।

डॉक्टर अभय श्रीवास्तव एक ऐसे डॉक्टर थे , जो हिंदुस्तान में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद , विदेश से शिक्षा ले कर हिन्दुस्तान वापिस लौटे थे। 35 वर्षीय डॉक्टर अभय श्रीवास्तव बहुत अद्धभुत समझ बुझ वाले बहुत दयालु इंसान थे।

जब डॉक्टर अभय श्रीवास्तव अपने कुछ सहयोगी डॉक्टरों की टीम के साथ , उस औरत के घर के करीब पहुँचे , तब उन्होंने उस औरत के घर पर बहुत अद्धभुत नज़ारा देखा , उन्होंने देखा कि एक औरत अपने छोटे बच्चे को , घर के आंगन में लगे पेड़ पर बंधे एक कपड़े के झूले में , झूला झुला रही थी और अपनी मधुर और ममतामई आवाज़ में , अपने छोटे बच्चे को लोरी सुना रही थी।

वह दृश्य वास्तव में बेहद खूबसूरत था। उस समय आसपास का वातावरण बहुत शांत था और सुबह की गुनगुनी धूप उस सुखद दृश्य को चार चाँद लगा रही थी।

उस पल डॉक्टर अभय ने , अपने सब साथियों को खामोश रहने के लिए कहा और वह आँखें बंद करके उस औरत की लोरी को ध्यान मगन होकर सुन रहे थे और जब उस औरत का बच्चा सो गया , तब उस औरत का ध्यान टूटा और उसने देखा कि उसके घर के आँगन में कुछ लोग खड़े थे।
लोरी की मधुर आवाज़ बन्द होते ही डॉक्टर अभय ने अपनी आँखें खोली और उस औरत से बातचीत करने के लिये आगे बढ़े और उन्होंने उस औरत को अपना और अपने साथियों का परिचय दिया

उस औरत को बीहड़ के इस रेगिस्तान में अकेले देख कर डॉक्टर अभय बहुत हैरान थे। उन्होंने बातचीत करने के लिए उस औरत से कहा " आप बहुत अच्छा गाती हैं , हम काफी देर से आपकी मीठी आवाज़ का आनन्द ले रहे थे "

वह औरत बस मुस्करा भर दी थी , पर डॉक्टर अभय ने देखा कि अपनी तारीफ सुन कर भी उसे कुछ खास खुशी नही हुई थी। बस चेहरे पर एक बुझी बुझी सी मुस्कान चली आई थी।

फिर अपनी बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए और उस औरत के घर पर एक सरसरी नज़र डालते हुए डॉक्टर अभय ने उस औरत से पूछा " आपके घर पर और कितने सदस्य रहते हैं "

ज़िन्दगी से मायूस उस औरत ने मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा " इस घर में मेरे बच्चे और मेरे सिवा और कोई भी नही रहता जी " वह औरत एक सीधी सादी बंजारन थी और बहुत भोली थी , उसे लाग लपेट कर बातचीत करनी नही आती थी और यह बात उसका चेहरा देख कर ही प्रकट होती थी।

" ओह " यह सुनते ही डॉक्टर अभय के चेहरे पर अफसोस के भाव उभर आये थे। वो अपनी पैनी निगाहों से घर की माली हालत को भांप रहे थे और उन्होंने घर के आँगन में बंधी उस कमज़ोर सी गाय को भी देख लिया था और उन्हें यह समझते देर नही लगी थी कि वह औरत बहुत कठिन दौर में से गुज़र रही है।

फिर भी उन से रहा नही गया और उन्होंने पूछ ही लिया " और आपके पति " उन्होंने देखा कि उनके इस सवाल से उस औरत के चेहरे पर बेहद पीड़ा भरे भाव उभरे थे और उस औरत ने डॉक्टर अभय को बताया कि उसके पति को गुज़रे हुए 6 महीने हो चुके हैं।

डॉक्टर अभय को उस औरत की उम्र 25 वर्ष के लगभग लग रही थी और इतनी कम उम्र में विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़े , यह उस औरत पर बहुत बड़ा ज़ुल्म था। अपना सब काम निबटाने के बाद , जब डॉक्टर अभय वहाँ से जाने लगे , तब उन्होंने उस औरत की सहायता करने के लिये उस औरत को एक छोटा सा झूठ बोला। उन्होंने उस औरत से कहा कि उनका एक छोटा बच्चा है , जिसे किसी बीमारी की वजह से ठीक से नींद नही आती और उन्होंने उस औरत को गुज़ारिश की कि अगर वह एक बार फिर से वह लोरी गुनगुना दें , तो वो उस लोरी को अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लेंगे और वह उस लोरी की रिकार्डिंग सुनाकर अपने बच्चे को भी सुलाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने बहुत प्रेम से उस बंजारन औरत से कहा कि " मुझे यकीन है कि आपकी मीठी आवाज़ सुनकर मेरा बच्चा सुख की मीठी नींद सो जायेगा "

उस औरत में माँ की ममता कूट कूट कर भरी हुई थी , वह डॉक्टर अभय के उस प्यार भरे आग्रह को टाल न सकी।

डॉक्टर अभय ने उस खूबसूरत लोरी को अपने मोबाईल फोन पर रिकार्ड कर लिया और पुरस्कार के तौर पर उस बंजारन औरत को 5000 रुपये दिये।
वह औरत बहुत हैरागी सी डॉक्टर अभय को देख रही थी। पहली बार उसने वह पैसे लेने से इनकार कर दिया था और भोलेपन से डॉक्टर अभय से ये कहा था कि इतने मामूली से काम के मैं इतने पैसे कैसे ले सकती हूँ।

वह बेचारी गाँव की रहने वाली थी और उस में लालच लेशमात्र भी नही था। पर डॉक्टर अभय की ज़िद के आगे उस औरत की एक न चली थी और उस औरत को डॉक्टर अभय की दी हुई धनराशि स्वीकार करनी पड़ी। अपने कार्य को ठीक से अंजाम देने के बाद , डॉक्टर अभय की टीम वापिस शहर लौट गई।

इतने सारे पैसे एक साथ देख कर , उस औरत की आँखों में मारे खुशी के आँसु आ गये थे और उसने उन पैसों से अनफन में अपने घर में कुछ महीने का राशन भर लिया था। अब वो थोड़ी सी निश्चिंत सी लग रही थी और ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी कि घर बैठे ईश्वर ने उसके लिये मदद भेज दी थी।

उधर डॉक्टर अभय उस औरत की मीठी आवाज़ से बहुत प्रभावित थे और साथ ही उन्हें उस औरत और उसके बच्चे के भविष्य की चिंता हो रही थी। वह जानते थे कि रेगिस्थान के उस बीहड़ में रह कर अपनी और अपने बच्चे की देख भाल करना , उस औरत के लिये एक टेड़ी खीर साबित होगा।

डॉक्टर अभय जब शहर वापिस लौटे , तो उन्होंने उस औरत की वीडियो रिकार्डिंग को अपने कुछ उन दोस्तों को दिखाया , जो संगीत के क्षेत्र में स्थापित थे। डॉक्टर अभय के सब दोस्तों को उस बंजारन औरत की आवाज़ बहुत भा गई थी। डॉक्टर अभय के सभी दोस्त , डॉक्टर अभय का बहुत सम्मान करते थे। डॉक्टर अभय ने अपने सब दोस्तों से अनुरोध किया कि हो सके अगर तो उस बंजारन औरत की मदद करिये , वो बहुत कठिन परिस्थितियों से जूँझ रही है। डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने , उन्हें उस बंजारन औरत का अतापता दिया और उनसे आश्वासन लिया कि वह सब उस बंजारन औरत की सहायता ज़रूर करेंगे। उन सब सिलसिलों से निबट कर , वह अपने कार्यों में व्यस्त हो गये और कुछ महीनों के बाद वह हिन्दुस्तान से बाहर विदेश चले गये।

आज तीस वर्षों के बाद डॉक्टर अभय श्रीवास्तव हिन्दुस्तान वापिस लौटे थे और एक बहुत शानदार पाँच सितारा होटल में अपने परिवार के साथ डिनर कर रहे थे।

तब डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने देखा कि एक अधेड़ सी उम्र की दिखाई देने वाली महिला उनके टेबल की ओर चली आ रही है। वह हैरान से उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहे थे पर उन्हें कुछ भी याद नही आ रहा था।

वो महिला मुस्कराती सी उनके बहुत करीब आ गई थी और उनके निकट आते ही उसने डॉक्टर अभय को नमस्ते कहा। फिर उस महिला ने कुछ मुस्कराते हुए डॉक्टर अभय से कहा " क्या आपने मुझे पहचाना डॉक्टर साहब " डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने देश और विदेश में हज़ारों मरीजों का ईलाज किया था। उन्होंने अपनी याददाश्त पर बहुत जोर डाला पर फिर भी वो उस महिला को पहचानने में असफल रहे थे।

कुछ पल रुक कर , उस अमीर सी दिखाई देने वाली महिला ने डॉक्टर अभय से कहा " मैं रेगिस्थान के बीहड़ में रहने वाली वो ही बंजारन हूँ , जिसकी अपने आज से ठीक 30 साल पहले 5000 रुपया देकर मदद की थी "

उस महिला की बात सुनकर , उन्हें सब याद आ गया , पर फिर भी उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नही हो रहा था। वह उस महिला की बात सुनकर बहुत खुश थे और अभी तक आश्चर्यचकित से खड़े थे। वह बरसों पुराने उस किस्से को याद करने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें रेगिस्थान की उस बंजारन में और उस सभ्य सी दिखाई देने वाली महिला में ज़मीन आसमान का अंतर दिखाई दे रहा था।

उन्होंने अपनी कुर्सी से उठकर उस औरत का स्वागत किया और अपने परिवार के साथ बैठने के लिये उस महिला को आमंत्रित किया।

तब उस महिला ने उन्हें बताया कि वह अपने बेटे और बहू के साथ आई है और उनके ठीक पीछे की टेबल पर अपने परिवार सहित बैठी है।

दो परिवारों का बहुत प्रेम से मिलन हुआ और उस बंजारन औरत ने , जो अब बहुत बड़ी गायिका बन चुकी थी अपने सारे परिवार को बताया कि कैसे डॉक्टर अभय ने उनकी मदद की थी , जिससे वो इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँच पाई थी। उस महिला ने डॉक्टर अभय श्रीवास्तव को बताया कि उनके विदेश चले जाने के बाद , कैसे उनके दोस्तों ने उसकी मदद की थी और उसे संगीत की दुनिया में नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया था।

बरसों के बाद डॉक्टर अभय को अपनी आँखों के सामने देख कर , उस महिला की आँखों से झर झर आँसु बह रहे थे और वो हाथ जोड़े डॉक्टर अभय श्रीवास्तव के सामने खड़ी थी।

उसने डॉक्टर अभय श्रीवास्तव को बताया कि उसने उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की थी , पर असफल रही थी क्योंकि डॉक्टर अभय श्रीवास्तव उस समय विदेश में थे।

वह बंजारन महिला कुछ समय के बाद ही जान गई थी कि डॉक्टर अभय ने उसे झूठ बोल कर 5000 रुपये की मदद दी थी। वो इस बात को जान गई थी कि उस समय तक डॉक्टर अभय की खुद की शादी भी नही हुई थी, फिर उनके बच्चे का तो सवाल ही पैदा नही होता था। फिर ऐसे देवता जैसे इंसान को कोई कैसे भूल सकता था।

वो कहते हैं न कि ईश्वर की मर्ज़ी के बिना कहीं पर एक पत्ता भी नही हिलता और यह बात पत्थर पर पड़ी लकीर की भांति सत्य है। जब भी किसी नेक इंसान को ईश्वर की सहायता की ज़रूरत पड़ती है और वो सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, तब ईश्वर किसी न के रूप में आकर उसकी मदद ज़रूर करता है। पर यह बात और है कि " उन हैरान कर देने वाले करिश्मों को सिर्फ कुछेक लोग ही जान पाते हैं कि कैसे किसी के जीवन में सिर्फ क्षण भर में जीवनभर के सारे अंधकार मिट गये थे और ईश्वरीय रोशनी हो गई थी।

ईश्वर महान है वो कुछ भी कर सकता है।

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