यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 19 अगस्त 2020

2014 में आयी मोदी सरकार और बनाया गया NCLT (National Company Law Tribunal)

ये कहानी शुरू होती है भूषण पावर एंड स्टील के दिवालिया होने के बाद। दिवालिया घोषित होने के बाद आप ऐसी कम्पनीज से पैसा वसूल नहीं कर सकते। हिन्दुस्तान में कोई ऐसा कानून ही नहीं था कि कोई दिवालिया हो गया तो उससे पैसे कैसे वसूल किये जाएँ  ? ? ? अब तक ऐसा ही चलता था। 2014 में आयी मोदी सरकार और बनाया गया NCLT (National Company Law Tribunal) 
अब जो भी कंपनी दिवालिया होगी उसे NCLT में जाना पड़ेगा। वहां बोली लगेगी। कंपनी नीलाम की जाएगी और पैसे वसूल करके प्रोमोटर्स, जैसे कि बैंकों को दिए जायेंगे। जिससे बैंक्स का NPA बढ़ता न रहे। 
अब बात भूषण पावर एंड स्टील और उसके मालिक संजय सिंघल की।  इनकी कंपनी १८ महीने पहले दिवालिया घोषित हो गई। इनके ऊपर PNB बैंक का 47, 000 करोड़ रुपया बकाया था। नीलामी की बोली शुरू हो गई तो टाटा स्टील, जिंदल और UK लिबर्टी हाउस ने बोली लगाई। अब  NCLT कोर्ट से फैसला आना है कि किस कंपनी की बोली स्वीकार की गई है। फिर उसी कंपनी को  bhushan पावर दे दिया जायेगा और बैंक का कर्ज भी चुकता किया जायेगा.. 
👉🏻 अब क्लाइमेक्स आया है, जब भूषण स्टील एंड पावर के मालिक ने NCLT के सामने एक ऑफर रखा है कि हम बैंकों का 47, 000 करोड़ का कर्ज चुका देंगे। आप हमारी कंपनी नीलाम मत करिये।
👉🏻 अब जनता को ये सोचना है कि ऐसे कितने उद्योगपतियों ने बैंकों  का पैसा खाकर और दिवालिए होकर ऐश काटी है। पिछली एक खास परिवार की सरकारों के समय में।
👉🏻 अब उन्हें लोन चुकाना ही होगा। और ये सब मोदी सरकार के बनाये क़ानून और NCLT जैसे संस्था बनाने से संभव हुआ। इसीलिए मोदीजी कहते हैं कि मैंने कांग्रेस के समय के loop holes (गड्ढे) भरे हैं। तो बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं लगती है।
👉🏻 लगभग यही कहानी रुइया ब्रदर्स, एस्सार स्टील वालों की भी है। उनका भी बैंक कर्ज चुकाने का मन नहीं था। दिवालिए हो गए। NCLT में लक्ष्मी मित्तल, मित्तल स्टील्स ने बोली लगा रखी है पर अब रुइया ब्रदर्स के पास 54, 000 करोड़ आ गया है और विनती कर रहे हैं कि हमारी कंपनी को हम ही खरीद लेते हैं। उसे नीलम मत करो और 54, 000 करोड़ भी  हमसे ले लो। 
अब आये हैं ये ऊँट पहाड़ के नीचे। अब तक इन्होंने खुद भी खूब देश के पैसे पर ऐश की और अपने आकाओं (खानदानी सरकार यानी काँग्रेस) को भी ऐश कराई। कोई समस्या आई तो फिर उन्हें डर काहे का जब उनके सैंया भये कोतवाल। लेकिन अब ये 'चौकीदार' की सरकार है। और इसके एक आह्वान पर पूरे देश भर में चौकीदारों की लम्बी लाइन खड़ी हो चुकी है। ऐसे देशविरोधी तत्वों को अब डरना ही होगा।
*ये है प्रधान चौकीदार मोदी को सत्ता देने का फायदा। निर्णय आपको करना है, कि देश को लुटेरों को या चौकीदार को सौंपना है।*

मेरे इस पोस्ट को आप गर्व से शेयर और कॉपी करें ताकि जन जन तक मेरा ये संदेश पहुंचे और पोस्ट की सार्थकता सिद्ध हो ""

165 साल बाद ऐसा संयोग, पितृपक्ष के 1 महीने बाद आएगी नवरात्र


*165 साल बाद ऐसा संयोग, पितृपक्ष के 1 महीने बाद आएगी नवरात्र*

हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है  और घट स्‍थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्‍त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होने जा रहा है।
लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष की मानें तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।
इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में 14 नवंबर को मनाई जाएगी।

क्‍या होता है अधिक मास

एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।
अधिकमास को कुछ स्‍थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्‍वयं श्रीहरि से उन्‍हें स्‍वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहर‍ि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्‍तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्‍तम मास भी कहा fजाता है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्‍व माना गया है। साथ ही दान पुण्‍य करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं।

function disabled

Old Post from Sanwariya