यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 22 नवंबर 2020

गोपाष्टमी (गोमाता का महत्त्व )

🐄🐄 #गोपाष्टमी (गोमाता का महत्त्व )"🐄🐄
       
   गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।
          हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।
          गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो-संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ-रक्षा व गौ-संवर्धन का संकल्प करते हैं।

          शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
          एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।
         इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण-स्पर्श किये जाते हैं। सुबह  गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गो-माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली, हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं। गायों को सजाया जाता है, प्रातःकाल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ-माता की पूजा की जाती है, और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ-माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। कहते हैं ऎसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता है। कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है।

¸.•*""*•.¸ 
Զเधे Զเधे ...💕

                               विशेष

1. इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएँ।
2. जिनके घरों में गाय नहीं है वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करें।
3. गंगा जल, फूल चढाये, दिया जलाकर गुड़ खिलाये।
4. गाय को तिलक लगायें, भजन करें, गोपाल (कृष्ण) की पूजा भी करें, सामान्यतः लोग अपनी सामर्थ्यानुसार गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते हैं।
www.sanwariyaa.blogspot.com

गोपाष्टमी महोत्सव क्यों मनाया जाता है

*🚩गोपाष्टमी पर्व क्यों मनाया जाता है?, उस दिन हमें क्या करना चाहिए?*

*🚩 वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है । इस साल गोपाष्टमी 22 नवम्बर को मनाई जाएगी।*

*🚩गोपाष्टमी का इतिहास:-*

*🚩गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।*

*🚩उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।*

*🚩कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?*

*🚩इस साल 22 नवम्बर को गोपाष्टमी है उस दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।*

*🚩गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।*

*🚩भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।*

*🚩विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन*

*🚩देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।*

*🚩देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापो का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है ।*

*🚩गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।*

*🚩विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं ।*
🙏🙏🙏🙏🙏

लक्ष्मी की बहिन दरिद्रा की कथा

*लक्ष्मी की बहिन दरिद्रा की कथा
〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰

मां लक्ष्मी के परिवार में उनकी एक बड़ी बहन भी है जिसका नाम है- दरिद्रा। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था इसलिये एक बार माँ लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली, जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा, आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। जब विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा, वो कैसा वर पाना चाहती हैं। तो वह बोली कि, वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए।
अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी। श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली, जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

*विशेष ,,,,,,, मेरे मतानुसार "कालाधन " जो अनैतिक अथवा भ्रष्ट " तरीकों से कमाया जाता है वह लक्ष्मी जी की बहन दरिद्रा ही है ! जो क्रय शक्ति लक्ष्मी जी की है वही दरिद्रा की है ! अंतर केवल है की नेक कमाई उसी तरह फलती फूलती है जिस प्रकार कमल की अनेक पंखुड़िआ खिलने लगाती है ! मेरे अनुभव में ये कमल की पंखुड़िआ अनेक आय के स्रोतों का उत्पन्न होना है जो नेक कमाई से ही संभव है ! दूसरी तरफ काला धन अनेक आपदाओं व् विपदाओं को उत्पन्न करने वाला होता है ! यह प्रकृति से तामसिक होने के कारण अज्ञान एवं मनोविकारों ( विषय एवं वासनाओं ) को उत्पन्न करने वाला है ! अंत में दुर्लभ मनुष्य योनि के सत्व गुणों को नष्ट कर देता है ! ज्ञान का प्रकाश शनैः शनैः समाप्त होने लगता है ! आपदा एवं विपदाए सही मोके की इंतज़ार में रहती है ! मनुष्य मूढ़ बुद्धि होने लगता है और अंत में सबकुछ यहीं छोड़ कर चला जाता है ! जबकि लक्ष्मी वान "पुण्य " की कमाई करता है और साथ ले जाता है !
अतः " देवी दारिद्रा को लक्ष्मी समझने की भूल ना करे !"

लक्ष्मी का वास परोपकारी के घर में स्थाई है !

अनैतिक एवं भ्रष्ट तरीकों से धन कमाने वाले मूढ़ प्राणी अपने घर में लक्ष्मी जी को आमंत्रित करने के स्थान पर दरिद्रा को आमंत्रित करते है जिससे कोई भी धार्मिक अनुष्ठान एवं परोपकार के कार्य संभव नहीं है या वे निष्फल और औपचारिकता मात्र होते है !

function disabled

Old Post from Sanwariya