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सोमवार, 22 जुलाई 2024

अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा - 5 दिन में हो जाता है दोगुना

अजोला एक विस्मयकारी अद्भुत पौधा
आज हम आपको एक ऐसी हर्बल खाद के बारे में बता हैं जिसके इस्तेमाल से उपज तो डबल होती ही है साथ में इनकम भी दोगुनी होती है. इस हर्बल खाद की मदद से पशुओं के लिए उत्तम चारा उगाया जा सकता है. जिसके खाने से पशुओं की कई समस्या दूर हो जाती है इसके साथ ही दूध का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है. इस हर्बल खाद के एक नहीं अनेक फायदे हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इस हर्बल खाद का नाम है अजोला. खेती में अजोला के प्रयोग से कई लाभ मिलते हैं. फसल में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है. खेतों में कम समय में जैविक पदार्थ का कम समय में अधिक उत्पादन होता है. अजोला फसलों में जिंक, मैगनीज, लोहा, फॉस्फोरस, पोटाश की मात्रा को बढ़ाता है.

                 अजोला  तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो  पानी की सतह पर तैरती रहती है। धान की फसल में नील हरित काई की तरह अजोला को भी हरी खाद के रूप में उगाया जाता है और कई बार यह खेत में प्राकर्तिक रूप से भी उग जाता है। इस हरी खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और उत्पादन में भी आशातीत बढ़ोत्तरी होती है।   एजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सहजैविक के  रूप में विध्यमान होता है। इस नील हरित शैवाल को  एनाबिना एजोली के  नाम से जाना जाता है जो  कि वातावरण से Nitrogen के  स्थायीकरण के  लिए उत्तरदायी रहता है। एजोला शैवाल की वृद्धि के  लिए आवश्यक कार्बन स्त्रोत  एवं वातावरण प्रदाय करता है । इस प्रकार यह अद्वितीय पारस्परिक सहजैविक संबंध अजोला को  एक अदभुद पौधे के  रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है।  प्राकृतिक रूप से यह उष्ण व गर्म उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। देखने में यह शैवाल से मिलती जुलती है और  आमतौर पर उथले पानी में अथवा धान के  खेत में पाई जाती है।

एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यतः एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है।[1]

अजोला एक जैव उर्वरक है। एक तरफ जहाँ इसे धान की उपज बढ़ती है वहीं ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम आता है। कुछ देशों में तो लोग इसे चटनी व पकोड़े भी बनाते हैं। इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है। यहां तक कि लोग इसे अपने घर के ड्रॉइंग रूम को सजाने के लिए भी लगाते हैं। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। पशुओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है ।

एजोला पानी में पनपने वाला छोटे बारीक पौधों के जाति का होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में फर्न कहा जाता है। एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना (Anabaena,) नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय Nitrogen का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को nitrogen की पूर्ति करता है। एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में ५ दिनों में ही दो-गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो ३०० टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है यानी ४० कि०ग्रा० nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त। एजोला में ३.५ प्रतिशत nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।

धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। २ से ४ इंच पानी से भरे खेत में १० टन ताजा एजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर ३० से ४० कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। इसकी वृद्धि के लिये ३० से ३५ डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।

एजोला के उपयोग से धान की फसल में ५ से १५ प्रतिशत उत्पादन वृद्धि संभावित रहती है।

इस फर्न का रंग गहरा लाल या कत्थई होता है। धान के खेतों में यह अक्सर दिखाई देती है। छोटे-छोटे पोखर या तालाबों में जहां पानी एकत्रित होता है वहां पानी की सतह पर यह दिखाई देती है।

भारत में एजोला की सात आठ किस्में पाई जाती है जिनमें से junwer29 सर्वोत्तम है

उपयोग

जैविक खाद

अजोला का प्रयोग मुख्यतः धान की खेती में किया जाता है जिसमें सभी किस्मों का प्रयोग हम कर सकते हैं अगर Junwer29 का प्रयोग करते हैं तो अधिक लाभ मिलता है धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद हम इसे खेतों में डाल सकते हैं एक बार डालने के बाद आसानी से पूरे खेत में यह फैल जाता है खेती में एजोला को हरी खाद के रूप में रामबाण माना गया है अजोला को खाद के रूप में प्रयोग करने से भूमि में कार्बनिक गुणों में बढ़ोतरी व फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करना मुख्य कार्य है

पशु आहार

पशुओं को अजोला चारा खिलाने के लाभ


अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं। यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है। पशुओं के पेशाब में खून आने की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो अजोला खिलाने से दूर हो जाती है। अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा है। अजोला में प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है। इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यन्त कम होती है, अतः इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।[2] दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से पाया गया है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि होती है
पशुओं के चारे के लिए ऐसे बनाएं अजोला
सीमेंट के टैंक में 40 किलोग्राम खेत की साफ छनी भुरभुरी मिट्टी डालें. 20 लीटर पानी में दो दिन पुराना गोबर चार से पांच किग्रा लेकर घोल बनाएं. इसे अजोला के बेड पर डाल दें. टैंक में सात से दस सेमी पानी भर कर एक से डेढ़ किलोग्राम ‘मदर एजोला’ कल्चर डाल दें. अजोला धीरे-धीरे बढ़ता है. 12 दिन बाद एक किलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्लास्टिक की छन्नी से निकालें. इसे साफ कर पशुओं को खिलाएं.

अजोला के गुणधर्म

अजोला जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाला फर्न है। यह छोटे-छोटे समूह में हरित गुक्ष्छ की तरह तैरता है। भारत में मुख्य रूप से "अजोला पिन्नाटा" नामक अजोला की जाति पाई जाती है जो काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली जाति है।

  • अजोला जल मे तीव्र गति से बढ़ती है।
  • अजोला प्रोटीन, आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन), एवं कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, कॉपर एवं मैग्नीशियम से भरपूर है। शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रति‍शत प्रोटीन, 20-30 प्रति‍शत वसा, 50-70 प्रति‍शत खनिज लवण, 10-13 प्रति‍शत रेशा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं।
  • इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं उपरोक्त तत्व होने के कारण पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं।
  • अजोला की उत्पादन लागत काफी कम होती है।
  • यह औसतन 15 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर प्रति सप्ताह की दर से उपज देती है।
  • सामान्य अवस्था मे यह फर्न तीन दिन में दोगुनी हो जाती है।
  • यह पशुओं के लिए प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) का कार्य करती है।
  • यह पशुओं के लिए आदर्श आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है।

    एजोला बनाने की विधि

    पानी के पोखर या लोहे के ट्रे में एजोला कल्चर बनाया जा सकता है। पानी की पोखर या लोहे के ट्रे में ५ से ७ से.मी. पानी भर देवें। उसमें १०० से ४०० ग्राम कल्चर प्रतिवर्ग मीटर की दर से पानी में मिला देवें। सही स्थिति रहने पर एजोला कल्चर बहुत तेज गति से बढ़ता है और २.३ दिन में ही दुगना हो जाता है। एजोला कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखर में एजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो Nitrogen स्थिरीकरण का कार्य करती है

    इस तरह कर सकते हैं उत्पादन

    अजोला उगाने के लिए किसान छोटे आकार का तालाब या क्यारी बना कर भी इसे उगा सकते हैं. और भी बड़े स्तर पर उत्पादन करना हो तो सीमेंट का टैंक बनाकर या पॉलीथीन से ढका हुआ गड्ढा बनाकर पानी में इसका उत्पादन किया जा सकता है. यहां तक कि चिकनी मिट्टी या सीमेंट के गमले में भी इसे उगाया जा सकता है.

    इस तापमान पर होता है उत्पादन
    पानी के पोखरे या लोहे के ट्रे में अजोला कल्चर बनाया जा सकता है. कल्चर डालने के बाद दूसरे दिन से ही एक ट्रे या पोखरे में अजोला की मोटी तह जमना शुरू हो जाती है जो नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य करती है. धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है. इसकी वृद्धि के लिये 30 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है.

    अजोला उत्पादन में ध्यान देने योग्य बातें

    1.    अजोला की तेज बढ़वार और  उत्पादन के  लिए इसे प्रतिदिन उपयोग हेतु (लगभग 200 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से) बाहर निकाला जाना आवश्यक हैं।
    2.    अजोला तेैयार करने के  लिए अधिकतम 30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त माना जाता है। अतः इसे तैयार करने वाला स्थान छायादार होना चाहिए।
    3.    समय-समय पर गड्ढे में गोबर एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट  डालते रहें जिससे अजोला फर्न तीव्रगति से विकसित  होता रहे।
    4.    प्रति माह एक बार अजोला तैयार करने वाले गड्ढे या टंकी की लगभग 5 किलो  मिट्टी को  ताजा मिट्टी से बदलेें जिससे नत्रजन की अधिकता या अन्य खनिजो  की कमी होने से बचाया जा सके ।
    5.    एजोला तैयार करने की टंकी के पानी के  पीएच मान का समय-समय पर परीक्षण करते रहें। इसका पीएच मान 5.5-7.0 के  मध्य होना उत्तम रहता है।
    6.    प्रति 10 दिनों के अन्तराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे से 25-30 प्रतिशत पानी ताजे पानी से बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचाया जा सके ।
    7.    प्रति 6 माह के  अंतराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे को  पूरी तरह खाली कर साफ कर नये सिरे से मिट्टी,गोबर, पानी एवं अजोला कल्चर डालना चाहिए।

    5 दिन में हो जाता है दोगुना
    एजोला की विशेषता यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5 दिनों में ही दो-गुना हो जाता है. यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो 300 टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है, यानी 40 किलोग्राम Nitrogen प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकता है. अजोला में 3.5 प्रतिशत Nitrogen तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं





ध्यान" में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।

*"ध्यान" में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।*

*आचार्य रजनीश जी* से उनके एक अनुयायी ने प्रश्न किया।
प्रश्न - *कृपया बतायें जेहादियों द्वारा जब मकान और संपत्ति जलाई जा रही हों , हत्याएं की जा रही हों,तब हमें क्या करना चाहिए बशीर? हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का प्रचार करना चाहिए या सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाना चाहिए , कृपया मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - *तुम्हारा प्रश्न ही तुम्हारी मूर्खता को बता रहा है,भारत के इतिहास से तुमने कुछ सीखा हो ऐसा मुझे मालूम नहीं पड़ता। महमूद गजनबी ने जब सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया, तो सोमनाथ उस समय का भारत का सबसे बड़ा और धनी मंदिर था।  उस मंदिर में पूजा करने वाले 1200 हिन्दू पुजारियों का ख़याल था कि हम तो रातदिन "ध्यान" ,भक्ति ,पूजापाठ, में लगे रहते हैं।  इसलिए भगवान हमारी रक्षा करेगा। उन्होंने रक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं किया, उल्टे जो क्षत्रिय अपनी रक्षा कर सकते थे, उन्हें भी मना कर दिया।*
*परिणाम क्या हुआ? महमूद गजनी ने उन हज़ारों निहत्थे हिन्दू पुरोहितो की निर्मम हत्या की, मूर्तियों ओर मंदिर को तोड़ा ओर अकूत धन संपत्ति, हीरे ,जवाहरात, सोना -चाँदी लूट कर ले गया।*
उन पंडितो का *ध्यान* भक्ति पूजा पाठ उनकी रक्षा न कर सका।

*आज सैकड़ों साल बाद भी वही मूर्खता  जारी है*, तुमने अपने महापुरूषों के जीवन से भी कुछ सीखा हो ऐसा मालूम नही पड़ता है। 

यदि "ध्यान" में इतनी शक्ति होती कि वो दुष्टों का ह्रदय परिवर्तन कर सके तो *रामचंद्र जी को हमेशा अपने साथ धनुष बाण रखने की जरूरत क्यों होती। ध्यान की शक्ति से ही वो राक्षस और रावण का हदय परिवर्तन कर देते उन्हें सुर-असुर भाई -भाई समझा देते और झगड़ा ख़त्म हो जाता लेकिन राम भी किसी को समझा न पाए और राम रावण युद्ध का फैसला भी अस्र शस्त्र से ही हुआ।*

ध्यान में यदि इतनी शक्ति होती कि वो दुसरो के मन को परिवतिर्त कर सके। तो *पूर्णावतार श्रीकृष्ण को कंस ओर जरासंघ का वध करने की जरूरत क्यों पड़ती*! ध्यान से ही उन्हें बदल देते।

ध्यान में यदि दूसरे के मन को बदलने की शक्ति होती तो *महभारत का युद्ध ही नहीं होता, कृष्ण अपनी ध्यान की शक्ति से दुर्योधन को बदल देते ओर युद्ध टल जाता। लेकिन उल्टे कृष्ण ने अर्जुन को जो कि ध्यान में जाना चाहता था रोका और उसे युद्ध में लगाया।*

*महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध है जिसमें करोड़ों लोगों का नरसंहार हुआ*, पिछले 1200 सालों में भारत मे कितने महर्षि संत हुए ,गोरखनाथ से लेकर रैदास ओर कबीर तक; गुरुनानक से लेकर गुरु गोविंदसिंह तक; इन सबकी *ध्यान* की शक्ति भी मुस्लिम आक्रान्ताओं और अंग्रेज़ों को न रोक सकी इस दौरान करोड़ों हिन्दुओं का नरसंहार हुआ और ज़बरदस्ती तलवार की नोक पर उनका धर्म परिवर्त्तन करवाया गया। 

मार मार कर उन्हें मुसलमान बनाया गया। 
उन संतों की शिक्षा आक्रान्ताओं को बदल न सकी। गुरुनानक ने तो अपना धर्म दर्शन ही इस प्रकार दिया कि मुस्लमान उसे आसानी से समझ सकें, आत्मसात कर सकें । *लेकिन उसी गुरु परंपरा में गुरुगोविंद सिह को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए, मुसलमानों के खिलाफ़ तलवार उठानी पड़ी। निहत्थे सिक्खों को शस्त्र उठाने पड़े।*

*इससे स्पष्ट हो जाता है कि ध्यान से स्वयं की ही चेतना का रूपांतरण हो सकता है,* 
*लेकिन पदार्थ (भौतिक शरीर ) की रक्षा हमें ख़ुद करनी होगी उसके लिए विज्ञान और टेक्नॉलॉजी का सहारा लेना होगा।*

*देश की 70% से अधिक समस्याओं का समाधान*

*भगवान श्रीकृष्ण ने 5 गाँव मांगे थे!*
*हम देशहित में 5 कानून मांग रहे हैं!!*

*समान शिक्षा*
*समान नागरिक संहिता*
*धर्मातंरण नियंत्रण*
*घुसपैठ नियंत्रण*
*जनसंख्या नियंत्रण*

ये पांच कानून नही आऐ तो पूरी दुनिया और भारत के नौ राज्यों की तरह सनातन पूरी तरह मिट जाऐगा।

*भारत बचाओं आंदोलन*

*अपने देश और अपनी बहन बेटियो को बचाने के लिए एक आदोंलन लड़ना होगा।*

*मुझे पत्ता है आप इसे आगे अवश्य भेजेगें। इसे पढकर छोड नही देंगे ।*

आप स्वयं समझदार है इस  Messege को आगे भेजना चाहिए या डिलीट करना चाहिए। 
🌹🌷जय श्रीराम 🌷🌹

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