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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय

शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय

तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है।

लहसुन : 200 ग्राम लहसुन पीसकर उसमें 60 मिली शहद मिलाकर एक साफ-सुथरी शीशी में भरकर ढक्कन लगाएं और किसी भी अनाज में 31 दिन के लिए रख दें। 31 दिनों के बाद 10 ग्राम की मात्रा में 40 दिनों तक इसको लें। इससे यौन शक्ति बढ़ती है।

जायफल : एक ग्राम जायफल का चूर्ण प्रातः ताजे जल के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही यौन दुर्बलता दूर होती है। दालचीनी : दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है और यौन दुर्बलता दूर होती है।

खजूर : शीतकाल में सुबह दो-तीन खजूर को घी में भूनकर नियमित खाएं, ऊपर से इलायची- शक्कर डालकर उबला हुआ दूध पीजिए। यह उत्तम यौन शक्तिवर्धक है।

गोखरू: का महीन पिसा चूर्ण 3 ग्राम, कतीरा गोंद पिसा हुआ 3 ग्राम और शुद्ध घी दो चम्मच, यह एक खुराक है। घी में दोनों पिसे द्रव्य मिलाकर आग पर रख कर थोड़ा पका लें और चाटकर ऊपर से एक गिलास मीठा गर्म दूध पी लें।

हम बीमार क्यों होते हैं ?

हम बीमार क्यों होते हैं ?

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसीलिए अब समय आ गया है की हम जानें कि ऐसा क्यों हो रहा है.

पहले महिलाएं घर का सारा काम काज करती थी और उनकी नोर्मल delivery होती थी. आजकल हर तरह की सुविधाएँ हैं और बहुत सारा काम machines करती है तो डेलिवेरी सिसेरियन होती है. जिसके कारण महिला को ज़िन्दगी भर परेशानी उठानी पड़ती है. मेहनत मजदूरी करने वाली महिलाओं के आज भी साधारण प्रसव होते है.

बच्चा पैदा होते ही उसे incubator में रखना पड़ता है. ventilator लगाना पड़ता है. तो ऐसा क्यों हो रहा है.

आजकल के आधुनिक रसोईघर में महिलाओं को घंटों या दिन भर खड़ा रहना पड़ता है. इससे भी उनको कम उम्र में ही शारीरिक दर्द होने लगे हैं.

पहले आदमी को काम पर जाने के लिए पैदल चलना या साइकिल पर जाना पड़ता था. इससे एक प्रकार से शारीरिक व्यायाम हो जाता था.

अब तो कोई भी काम हो गाड़ी उठाई और चले. इससे शरीर को काम या मेहनत करने की आदत नहीं होती है और मांसपेशियों को बल नहीं मिलता है.

देखा गया है की आसन प्राणायाम करने वालों के शरीर फूलते नहीं है. लेकिन जिम जनेवालें अगर जिम जाना बंद कर दें तो उनका शरीर फुल कर कुप्पा हो जाता है और फिर कभी शेप में नहीं आ सकता. और टेढ़ी मेढ़ी कसरत करने के चक्कर में मांसपेशियों को इतना खींच लेते हैं कि दर्द पीड़ित हो जाते हैं

आजकल मेहनत ना करने से और खाने के लिए गरिष्ठ पदार्थ उपलब्ध होने के कारण कम उम्र में ही लड़के लड़कियों के पेट निकल आते हैं. उसे काम करने के लिए उट पटांग कसरत कर के शरीर में दर्द पैदा कर लेते हैं या बेवजह भूखे रहकर शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को गवां बैठते हैं.

प्रायः हम देखते हैं की जानवरों और पशु पक्षियों के कोई दवाखाने नहीं होते हैं. लेकिन जब से कुत्ते बिल्ली को पालने का फैशन आया है तब से कुत्ते बिल्ली के भी दवाखाने भी खुल गए हैं और उनके भी खान पान की चीजें दुकानों में मिलने लगी है. इसी बात पर एक फिल्म का सीन याद आ गया. आदमी दुकान पर कहता है "भई एक पाकेट कुत्ते के बिस्किट देना. तो दुकानदार पूछता है कि यहीं खायेंगे या साथ ले जायेंगे?"

इसका सीधा मतलब यह निकला कि आदमी खुद तो डूब ही रहा है अपने साथ अन्य प्राणियों को भी ले डूब रहा है. "हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे"

लिखना अभी जारी रहेगा यदि आप कुछ सुझाव दे सकते हैं, कुच्छ त्रुटियाँ ठीक कर सकते हैं तो हम आपके आभारी होंगे.

कमर की चौड़ाई 34 ईंच से अधिक होने लगे तो सावधान हो जाना चाहिए।

खासकर शादी होने या बच्‍चे होने के बाद महिलाएं अपने फिटनस को लेकर लापरवाह हो जाती हैं, जिससे वह आसानी से मोटापे की शिकार होती चली जाती हैं। डॉक्‍टरों का मानना है किजब कमर की चौड़ाई 34 ईंच से अधिक होने लगे तो सावधान हो जाना चाहिए। इससे अधिक कमर की चौड़ाई होना मोटापे की निशानी है। यहां हम कुछ ऐसे घरेलू नुस्‍खे बता रहे हैं, जिससे न केवल कमर की मोटाई कम की जा सकती है, बल्कि उसे पतली, आकर्षक और कमनीय बनाया जा सकता है।
* पपीता के मौसम में इसे नियमित खाएं। लंबे समय तक पपीता के सेवन से कमर की न केवल अतिरिक्‍त चर्बी कम होती है, बल्कि वह बेहद आकर्षक हो जाता है।
* छोटी पीपल का कपड़छान बनाकर चूर्ण बना लें।इस चूर्ण को तीन ग्राम प्रतिदिन सुबह के समय छाछ के साथ लेने से निकला हुआ पेट दब जाता है और कमर पतली हो जाती है।
* मालती की जड़ को पीसकर उसे शहद में मिलाएं और उसे छाछ के साथ पीएं। प्रसव के बाद बढ़ने वाले मोटापे में यह रामवाण की तरह काम करता है और कमर की चौड़ाई कम हो जाती है।
* आंवले व हल्‍दी को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ के साथ लें, पेट घट जाएगा और कमर कमनीय हो जाएगी।

नवरात्रि क्या है??? और नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य.......

नवरात्रि क्या है??? और नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य.......

नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।

भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता,... तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते।

मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है। जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।

आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। सामान्य भक्त ही नहीं, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते। न कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।

वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।

नवरात्र या नवरात्रि::
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है।
नवरात्र क्या है
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात

अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।
नौ देवियाँ / नव देवी

नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की पड़वा यानि पहली तिथि से नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी मतलब नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं-
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री

इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीजों से भी सम्बंध है, जिन्हे नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है-
1. कुट्टू (शैलान्न)
2. दूध-दही,
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला(सिध्दीदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं।

अष्टमी या नवमी::
यह कुल परम्परा के अनुसार तय किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए। वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता 'दुर्गासप्तशती' में कही गई है।

जय माँ भवानी.

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