यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 6 सितंबर 2023

नेहरू जी के कुत्ते पर एक दिन में 3 रूपए तक खर्च होते थे... मतलब नेहरू जी के कुत्ते पर होने वाले खर्च में 15 भारतीय पल जाते.

 आजादी के बाद जब देश में जबरदस्त गरीबी थी... तब लगभग 60% भारतीयों का एक दिन का औसत खर्च हुआ करता था 3 आना (1 आना =6.25 पैसा)... मतलब लगभग 19 पैसे रोजाना एक भारतीय का खर्च हुआ करता था... मतलब उनके जीवन यापन का खर्च.




वहीं नेहरू जी के कुत्ते पर एक दिन में 3 रूपए तक खर्च होते थे... मतलब नेहरू जी के कुत्ते पर होने वाले खर्च में 15 भारतीय पल जाते.

ऐसे समय में नेहरू जी पर रोजाना का खर्च हुआ करता था 25-30 हजार रूपए... यानी महीने का खर्च लगभग 10 लाख रूपए.

मतलब... नेहरू जी के रहने सहने खाने पीने पर जितना खर्च होता था.. उतने में 50 लाख भारतीयों का गुजारा होता था.

यह योजना आयोग के आंकड़े थे... जो नेहरू जी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले राम मनोहर लोहिया जी ने on record बताये थे.

अभी आपको महात्मा गाँधी पर होने वाले खर्च का तो पता ही नहीं.... सरोजिनी नायडू जो कांग्रेस की ही नेता थीं... उन्होंने ही एक बार कहा था... महात्मा गाँधी के सादा जीवन यापन को दिखाने के लिए, उनकी Image को maintain करने पर ही बहुत खर्चा हुआ करता था.

प्रेरक प्रसंग - "My bad Habits" यानि मेरी बुरी आदतें।

 प्रेरक प्रसंग 🌹🌹

एक शाम एक एक मित्र के निवासस्थान पर जाना हुआ। हमारे मित्र की अर्धांगिनी यानि हमारी भाभी जी उनके सुपुत्र को पढा रही थी। हम पहुंचे तो भाभी जी किचेन में चाय बनाने चली गयी और हमारा भतीजा मेरी बगल में आ कर बैठ गया। बच्चे के हाथ में एक कॉपी और पेंसिल थी। कॉपी पर 1 से लेकर 10 तक क्रमांक लिखा हुआ था और पन्ने के श्रीर्ष पर लिखा था "My bad Habits" यानि मेरी बुरी आदतें। मैंने बच्चे से पूछा के कॉपी पर क्या लिख रहा है तो वह मायूस होकर बोला के मम्मी ने मुझे अपनी 10 बुरी आदतें लिखने को कहा है ताकि मैं उन्हें सुधार सकूं। 10 में 3 तीन बुरी आदतें वह लिख चुका था। जैसे कि वह सुबह देर से उठता है। लंच बॉक्स में  खाना छोड़ देता है आदि इत्यादि......

मैंने उससे कॉपी ली। इरेज़र से कॉपी पर लिखा सब कुछ मिटा दिया। दो कॉलम बनाये। एक ओर लिखा "My good habits" यानि मेरी अच्छी आदतें और दूजी ओर लिखा "My bad Habits " यानि मेरी बुरी आदतें। मैंने बच्चे से कहा के अपनी 10 बुरी आदतें लिखने की बजाय अपनी 5 अच्छी आदतों के बारे में लिखे और 5 बुरी आदतों के बारे में भी लिखे।

लड़का खुश हो गया। पहले झट से अच्छाई वाला कॉलम भर दिया। स्व्च्छता का ध्यान रखने से लेकर अपनी सुंदर लेखनी को उसने अपनी अच्छी आदतों में शुमार कर लिया। फिर झट से अपनी बुरी आदतें भी लिख डाली।


बगल में हमारे मित्र विराजमान थे और इतने में हमारी आदरणीय भाभी जी चाय लेकर आ गयी। मैंने भाभी जी से पूछा के केवल इसे अपनी बुरी आदतें लिखने का कार्य क्यों दिया गया। भाभी जी ने तपाक से शिकायतों की झड़ी लगा दी। सुस्त है , कामचोर है , बहानेबाज है, टाइमपास करता रहता है आदि इत्यादि। सोचा के अगर खुद अपनी बुरी आदतें कागज़ पर लिखेगा तो आत्ममंथन करेगा।

मैंने तुरंत ही भाभी जी पर एक और सवाल दाग दिया। मैने कहा के यह तो बुरी आदतें हो गयी .....अब आप मुझे इसकी 10 अच्छी आदतें गिनवा दीजिये।

भाभी जी ने मौन साध लिया .....
मैं अपने मित्र की ओर पलटा। मैंने कहा तू तो लड़के का बाप है....चल तू ही बता लड़के की खासियत क्या है।

हमारे भाई ने भी मौन साध लिया....

फिर दोनों ने कुछ समय मंथन करने के बाद कुछ अच्छी आदतें गिनवाने की प्रक्रिया शुरू की। जैसे भाभी जी ने बताया के सुबह उठ कर सभी के चरणस्पर्श करता है। हमारा मित्र बोला के साफ सफाई के प्रति जागरूक है। कई बार मुझे भी कचरा फेंकने से टोक चुका है। फिर हमारी भाभी बोली के इसकी मेंटल केलकुलेशन बड़ी तेज़ हैं। इसी तरह बहुत सोच विचार के बाद दोनों ने बच्चे की कई अच्छी आदतें गिनवा दी।

कुल 10 मिनट के अंतराल में मेरा बच्चे के प्रति नज़रिया बदल चुका था। पहले मैं कॉपी पर लिखी उसकी 10 बुराइयां पढ़ कर उसके प्रति एक धारणा बना चुका था परंतु जब मुझे उसकी विशेषताओं के विषय में पता चला तो मेरी धारणा कांच के शीशे की तरह चकनाचूर हो गयी।

अच्छाई और बुराई या हीरो और विलेन का कॉन्सेप्ट अपनी समझ से बाहर है। मैं तो अब तक के जीवन में इतना समझ पाया हूँ के हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों मौजूद हैं। गुड़ हैबिट्स भी हैं और बैड हैबिट्स भी हैं।

परंतु जब भी हम किसी के प्रति धारणा बनाते हैं तो आदतन हम अपने मन की कॉपी पर पहले उसकी 10 बैड हैबिट्स यानि बुराईयां लिख डालते हैं।
यह वास्तविकता है के बहुत कम लोग किसी व्यक्ति में वास कर रहे "राम " को ढूंढते हैं। हमें पहले रावण दिखाई देता है।

ईश्वर के बनाये हर माटी के पुतले में कुछ अच्छाइयाँ हैं ......विशेषताएं हैं ....हुनर है .......काबिलियत है...... हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ खासियत है।

बस फर्क नज़र और नज़रिये का है। जब हम व्यक्ति , समाज और राष्ट्र की बुराइयों तक सीमित रह जाते हैं तब हम एक संकीर्ण दायरे में फंस जाते हैं ........और जब हम व्यक्ति समाज और राष्ट्र में छिपी अच्छाइयों को पहचानते हैं तो हमें इन अच्छाइयों के दम पर समाज में व्याप्त बुराइयों का विनाश करने का बल मिलता है। किसी को गलत नजरिए से देखने के पहले खुद ये तय जरूर करना चाहिए के कही में तो गलत नही ।

नकारात्मक खबरों से भरे अखबार , न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया का एक अंश कॉपी पर लिखी बैड हैबिट्स के समान है , जबकि स्वतंत्र होकर समाज का सकारात्मक और रचनात्मक चेहरा देखते ही लगता है

🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!


हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्

देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी थी कांग्रेसिओं की।


 जस्टिस G D Khosla  एक जज थे जिन्होंने नाथूराम गोडसे के केस की सुनवाई की थी और नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा दी थी ।

 गोडसे को फांसी पर चढ़ा देने के बाद जज साहब ने अपनी किताब "द मर्डर ऑफ महात्मा एन्ड अदर केसेज फ्रॉम ए जजेज डायरी"  में पेज नंबर 305 - 06 पर लिखते है कि :
"अदालत में गोडसे ने अपनी बात पाँच घंटे के लंबे ब्यान के रूप में रखी थी जो कि 90 पृष्ठों का था। । 5 घंटे तक लगातार बोलने के बाद जब गोडसे ने बोलना बन्द किया तब सभी सुनने वाले स्तब्ध और विचलित थे। एक गहरा सन्नाटा था, जब उसने बोलना बंद किया। महिलाओं की आँखों में आँसू थे और पुरुष भी खाँसते हुए रुमाल ढूँढ रहे थे।…
मुझे कोई संदेह नहीं है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित लोगों की जूरी बनाई जाती और लोगों को गोडसे पर फैसला देने को कहा जाता तो उन्होंने भारी बहुमत से गोडसे को ‘निर्दोष’ करार कर दिया होता ।

गोडसे का ब्यान सुनने के बाद मैं उन्हें फांसी की सज़ा नहीं देना चाहता था लेकिन मैं सरकार और प्रशासन के दबाव में मजबूर था । मुझे पता है कि गोडसे को फांसी की सज़ा देकर मैंने जो पापकर्म किया है उस के कारण यमराज के घर एक भयंकर सज़ा मेरा इंतजार कर रही है। मैंने एक निर्दोष और महान देशभक्त को फांसी की सज़ा दी थी जिसके लिए भगवान मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा।”

हिंदुस्तान में सनातनिओं के प्रति कांग्रेसिओं की 'महान' 'उपलब्धिओं' तथा काले कारनामों के बारे में सभी सनातन धर्मावलम्बियों ज्ञात होना चाहिए...

अंधाधुंध कांग्रेस की आलोचना करते जाना ठीक नहीं। उपलब्धियां भी देखिए।🙏

कौन कहता है कि कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में 'सनातन हिन्दुओं के बारे में' 'कुछ काम' नहीं किया है। 'काम' तो बहुत किया है लेकिन केवल अपने मुसलमानों भाइयों के लिए ही किया है...
जैसे
• पाकिस्तान बनाया, केवल मुसलमानों के लिए,

• बांग्लादेश बनाया केवल मुसलमानों के लिए,

• कश्मीर में धारा 370 को  लागू किया केवल  मुसलमानों के लिए,

• अल्पसंख्यंक बिल बनाया केवल  मुसलमानों के लिए,

• मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया केवल मुसलमानों के लिए,

• अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया केवल मुसलमानों के लिए,

• वक़्फ़ बोर्ड बनाया, केवल मुसलमानों के लिए,

• अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बनाया केवल मुसलमानों के लिए,

• हिंदुस्तान का बंटवारा धार्मिक आधार पर किया केवल मुसलमानों के लिए,

• Places of Worship Act  बनाया मुसलमानों के लिए,

• Anti Communal Violence Bill दो बार संसद में पेश किया लेकिन भला हो BJP का कि ये Bill संसद में पास नहीं होने दिया, इस बिल को भी कांग्रेस pass करवा रही थी केवल मुसलमानों के लिए.
 
और कहीं अगर यह बिल पास हो गया होता तो हिंदुओं को ख़त्म करने में मात्र 10 साल ही लगते.  (अगर किसी को कोई शक शुबह हो तो Google पर जा कर सर्च करके पढ़ ले)।

• देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी थी कांग्रेसिओं की।

और हिंदूओं को सिर्फ आरक्षण  का झुनझुना देना था ताकि हिंदू समाज सदा आपस में लड़ता रहे और कभी गजबा-ए-हिन्द द्वारा अपने इस्लामीकरण को समझ ही न पाये...

हिंदूओं को दोयम दर्जे का नागरिक (second rate citizen) बनाने के लिए - हिंदू कोड बिल लाई ,  वो भी केवल मुसलमानों के लिए,

कभी - कभी मन करता है कि पोस्ट ही ना करूं... फिर ख्याल आता है कि   पढ़ेगा भारत, तभी तो ग़द्दारों की छातीे  पर चढ़ेगा भारत।
✊🚩
आगे forward करें  ताकि हिन्दू भाइयों का पता चल जाए कि कांग्रेस उनके लिए कितनी गहरी खाइयां खोद कर उन्हें दफ़्न करने का बन्दोबस्त कर रही थी।
कृपया आगे forward करें।

जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।

  चारधाम की यात्रा🌹



पता नही किसने ये पोस्ट लिखा है आपके आंसू आ जाएंगे । पूरी पोस्ट की एक लाइन एक भाई ने अपनी बहनों से कहा  चार धाम की यात्रा का समय आ गया है .., जरूर पढ़ें ...

"मेरी छोटी बुआ...!"
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा मुंबई वाली बुआ जी की राखी के कूरियर का इन्तेज़ार रहता था.
कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी.
तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.
इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने.
इंदौर और  जोधपुर वाली दोनों बुआ जी ने  भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे.
बस बाड़मेर वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी
पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट.*
मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर  अपनी बहनों की भेजी राखियां और तोहफे देख लें...
पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और  लैपटॉप  की  बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे.
"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...
मम्मी ने  पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...
"जया का लिफाफा दिखाना जरा...
पापा जया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तेज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे....
जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था.
विवाह के तुरंत बाद  देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था.
तबसे फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे .
बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी.
इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...
जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...
'गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर बाड़मेर उसे बगैर बताए जाएंगे...
"जया दीदी के घर..!!
मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी...
आप को पता  है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...
हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी.
पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है...
रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली पैसेंजर से हम सब बाड़मेर पहुँच गए थे.
बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं....
बुआ उम्र  में सबसे छोटी थी पर तंग हाली और रोज की चिंता फिक्र ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....
एकदम  पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं...
बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का  कोई ज़वाब  नहीं  था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था.
बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी  कुछ क्षण देखे जा  रहे थे...
पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी.

हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी.

उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे.

अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था...

वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है...

बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था....

पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है...

अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था...

 हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे.....

एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...

पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था.....

"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ?

सब ठीक है न...?

बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...

'आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..

तो बस आ गए हम सब...

पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था.....

"भाभी आओ न अंदर....

 मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...

जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था

"जया तुम बस बैठो मेरे पास. चाय नास्ता गायत्री देख लेगी."

हमलोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे......

मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी...

उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....

बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.

राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....

शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था

नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.

न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....

धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....

पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....

बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी

मिठाई का डब्बा रख लिया था

जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा

सभी आश्चर्यचकित  थे...

" दस मिनट  रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "

पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....

तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....

जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.

नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न  सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...

बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..

पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.

जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....

कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...

सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...

सबने पापा को राखी बांधी....

ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...

रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....

फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....

अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.

वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.

बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...

जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी..

 मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था
बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो  पापा घबरा गए थे...

सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....

पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..

पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....

और आज तक किसी से कही भी नही थीं...

आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!

अपनों का ध्यान रखें।

जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌸सोच बदलेंगे तो जग बदलेगा।🌸

होनी बहुत बलवान है - एक पौराणिक कथा


 होनी बहुत बलवान है
आज एक पौराणिक कथा
अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उन के लड़के जनमेजय राजा बने।

एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे। बातों ही बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से वेदव्यास जी से कहा.. कि,"जहां आप समर्थ थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य कुलगुरू कृपाचार्य जी, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे.....फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए और देखते-देखते अपार जन-धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता"।

अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द सुन कर भी, व्यास जी शांत रहे।

 उन्होंने कहा," पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतनी सामर्थ्य थी कि वे युद्ध को रोक सकते थे।

जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला,"मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता है,  मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए...मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता"।

व्यास जी ने कहा,"पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन...."।

कुछ वर्ष बाद तू काले घोड़े पर बैठकर  शिकार करने जाएगा दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचेगा...वहां  तुम्हें एक सुंदर स्त्री मिलेगी.. जिसे तू महलों में लाएगा, और उससे विवाह करेगा। मैं तुम को मना करूँगा कि ये सब मत करना लेकिन फिर भी तुम यह सब करोगे। इस के बाद उस  लड़की के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा..। मैं तुम को आज ही चेता कर रहा हूं कि उस यज्ञ को तुम वृद्ध ब्राह्मणो से कराना.. लेकिन, वह यज्ञ तुम युवा  ब्राह्मणो से कराओगे.... और..

जनमेजय ने  हंसते हुए व्यासजी की बात काटते हुए कहा कि,"मै आज के बाद काले घोड़े पर ही नही बैठूंगा..तो ये सब घटनाऐ घटित ही नही होगी।

व्यासजी ने कहा कि,"ये सब होगा..और अभी आगे की सुन...,"उस यज्ञ मे एक ऐसी घटना घटित होगी....कि तुम ,उस रानी के कहने पर उन युवा ब्राह्मणों को प्राण दंड दोगे, जिससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा...और..तुझे कुष्ठ रोग होगा..  और वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सको तो रोक लो"।

वेदव्यास जी की बात सुनकर जन्मेजय ने एहतियात वश शिकार पर जाना ही छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया तो उसे शिकार पर जाने की बलवती इच्छा हुई। उस ने  सोचा कि काला घोड़ा नहीं लूंगा.. पर उस दिन उसे अस्तबल में काला घोड़ा ही मिला। तब उस ने सोचा कि..मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर गया और समुद्र तट पर पहुंचा वहां पर उसने एक सुंदर स्त्री को देखा, और उस पर मोहित हुआ। जन्मेजय ने सोचा कि इसे लेकर  महल मे तो जाउंगा....लेकिन शादी नहीं करूंगा।
परंतु, उसे महलों में लाने के बाद, उसके प्यार में पड़कर उस से विवाह भी कर लिया। फिर रानी के कहने से जन्मेजय द्वारा यज्ञ भी किया गया। उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण ही, रक्खे गए।
किसी बात पर युवा ब्राह्मण...रानी पर हंसने लगे। रानी क्रोधित हो गई ,और रानी के कहने पर राजा जन्मेजय ने उन्हें प्राण दंड की सजा दे दी..,  फलस्वरुप  उसे कोढ हो गया।

अब  जन्मेजय घबरा गया.और तुरंत  व्यास जी के पास पहुंचा...और उनसे जीवन बचाने के लिए प्रार्थना करने लगा।

वेदव्यास जी ने कहा कि,"एक अंतिम अवसर तेरे प्राण बचाने का और देता हूं......., मैं तुझे महाभारत में हुई घटना का श्रवण कराऊंगा जिसे तुझे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सुनना है..., इससे तेरा कोढ् मिटता जाएगा।
परंतु यदि किसी भी प्रसंग पर तूने अविश्वास किया.., तो मैं महाभारत का प्रसंग रोक दूंगा..,और  फिर मैं भी तेरा जीवन नहीं बचा पाऊंगा...,याद रखना अब तेरे पास यह अंतिम अवसर है।

अब तक जन्मेजय को व्यासजी की बातों पर पूरा विश्वास हो चुका था, इसलिए वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करने लगा।

व्यासजी ने कथा आरम्भ करी और जब भीम के बल  के वे प्रसंग सुनाऐ ....,जिसमें भीम ने हाथियों को सूंडों से पकड़कर उन्हें अंतरिक्ष में उछाला...,वे हाथी आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं....,तब जन्मेजय अपने आप को रोक नहीं पाया,और बोल उठा कि ये कैसे संभव  हो सकता है। मैं नहीं मानता।

व्यास जी ने महाभारत का प्रसंग रोक दिया....और कहा..कि,"पुत्र मैंने तुझे कितना समझाया...कि अविश्वास मत करना...परंतु तुम अपने स्वभाव को  नियंत्रित नहीं कर पाए। क्योंकि यह होनी द्वारा निश्चित था"।

फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आवाहन किया..और वे हाथी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति में आकर नीचे गिरने लगे.....तब व्यास जी ने कहा, यह मेरी बात का प्रमाण है"।

जितनी मात्रा में जन्मेजय ने श्रद्धा विश्वास से कथा श्रवण की,
उतनी मात्रा में  वह उस कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ परंतु एक बिंदु रह गया और  वही उसकी मृत्यु का कारण बना।

सार :-
 पहले बनती है तकदीरे फिर बनते हैं शरीर।
कर्म हमारे हाथ मे है...लेकिन उस का फल हमारे हाथों में नहीं  है।

गीता के 11 वें अध्याय के 33 वे श्लोक मैं श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं,"उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो केवल निमित्त बना है।



होनी को टाला नहीं जा सकता लेकिन नेक कर्म व ईश्वर नाम जाप से होनी के प्रभाव को कम किया जा सकता है अर्थार्थ रोग आएंगे परंतु पीड़ा नहीं होगी।

अगर आपको श्रीमदभागवत गीता का यह प्रसंग अच्छा लगा हो तो आप दो और लोगों को जरूर शेयर करें आपको पुण्य मिलेगा लाभ के भागीदार बनेंगे , 💐जय श्री राम 💐रोशनलाल वैष्णव*🙏🏻🙏🏻

समस्या का समाधान

 समस्या का समाधान🌷🌷

एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था।
एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा !”
पिताजी तैयार हो गए।
दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए।

“क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
“नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।”, पिताजी बोले।
लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…”, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।

पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।

लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये,” क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो?”
“मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा।
कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता !”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था।

वे झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था ना पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।”
“मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !”,बेटा बोला।

“ ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है।


दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या को अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है। तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। “ पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
दोस्तों हमारा जीवन ऐसी तमाम कंकडों से भरा हुआ है l

शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है l

समस्याओं को तभी पकडिये जब वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!


हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्

तुम नजर में हो

 ।। तुम नजर में हो ।।



एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी,  मैं उठकर आया दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है...

मैंने कहा:- "जी कहिए.."
तो बोला:- "अच्छा जी,  आज.. जी कहिये
रोज़ तो  एक ही गुहार लगाते थे ,
प्रभु सुनिए, प्रभु सुनिये.....आज, जी कहिये वाह..!

मैंने आँख मसलते हुए कहा:-
माफ कीजीये भाई साहब!
मैंने पहचाना नही आपको

तो कहने लगे:- भाई साहब नही, मैं वो हूँ जिसने तुम्हे साहेब बनाया है
अरे ईश्वर हूँ... ईश्वर
तुम हमेशा कहते थे, नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते, लो आ गया..!
अब आज पूरा दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा

मैंने चिढ़ते हुए कहा:- ये क्या मजाक है!!!
अरे मजाक नही है, सच है, सिर्फ तुम्हे ही नज़र आऊंगा
तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पायेगा मुझे

कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी...
ये अकेला ख़ड़ा खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ... चाय तैयार है, चल आजा अंदर...

अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था..
मैं जाकर सोफे पे बैठा ही था, तो बगल में वो आकर बैठ गए
चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पिया

गुस्से से चिल्लाया:- यार... ये चीनी कम नही डाल सकते हो क्या आप

इतना कहते है, ध्यान आया अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नही आयेगा कोई अपनी माँ पे गुस्सा करे

अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि भाई "तुम नज़र मे हो आज" ज़रा ध्यान से
बस फिर में जहाँ जहाँ वो मेरे पीछे पीछे पूरे घर मे
थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही में बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढा दिए..

मैंने कहा:- प्रभु यहाँ तो बख्श दो!!
खैर नहाकर, तैयार होकर मे पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु को रिझाया क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी..
फिर आफिस के लिए घर से निकला, अपनी कार मे बैठा, तो देखा बगल   वाली सीट पे महाशय पहले ही बैठे हुए है सफर शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया "तुम नज़र मे हो" ।

कार को साइड मे रोका, फ़ोन पे बात की और बात करते करते कहने ही वाला था कि "इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे" पर ये  तो गलत था, पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया "आप आ जाइये आपका काम हो  जाएगा आज"

फिर उस दिन आफिस मे ना स्टाफ पे गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 100-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन  सारी गालियाँ "कोई बात नही ITS OK"
मे तब्दील हो गयी..
वो पहला दिन था जब
क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूठ
ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नही बने

शाम को आफिस से निकला,
कार मे बैठा तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया
"प्रभु सीट बेल्ट लगालो, कुछ नियम तो आप भी निभाओ...
उनके चेहरे पे संतोष भरी मुस्कान थी

www.sanwariyaa.blogspot.com

घर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला
"प्रभु पहले आप लीजिये"

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा
भोजन के बाद माँ बोली:- "पहली बार खाने में कोई कमी नही निकाली आज तूने, क्या बात है सूरज पश्चिम से निकला क्या आज"

मैंने कहाँ "माँ आज सूर्योदय मन मे हुआ है...
"रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद मे कोई कमी नही होती
थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पे अपना सिर रखा तो उन्होंने प्यार से सिर पे हाथ फिराया और कहा:-
"आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नही है"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठा:
"कब तक सोएगा, जाग जा अब"
*माँ की आवाज़ थी *
सपना था शायद, हाँ सपना ही था
पर नीँद से जगा गया
अब समझ आ गया उसका इशारा

"तुम नज़र मे हो"

🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!



हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्

कैसे मनाएं जन्माष्टमी का त्यौहार

कैसे मनाएं जन्माष्टमी का त्यौहार
हम सब के प्‍यारे नटखट नंदलाल, राधा के श्‍याम और भक्‍तों के भगवान श्रीकृष्‍ण के जन्‍मदिन की तैयारियां पूरे देश में चल रही हैं।  भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को हुआ था। हालांकि इस बार कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं।

इस बार जन्‍माष्‍टमी दो दिन पड़ रही है क्‍योंकि यह त्‍योहार 6 सितंबर और 7 सितंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा। वहीं, वैष्‍णव कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी 7 सितंबर को है। अब सवाल उठता है कि व्रत किस दिन रखें? जवाब है 6 सितंबर यानी कि पहले दिन वाली जन्माष्टमी मंदिरों और ब्राह्मणों के घर पर मनाई जाती है। 7 सितंबर यानी कि दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं।

जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व
श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्‍व है। यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्‍य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। इस दिन क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढ़े सभी अपने आराध्‍य के जन्‍म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्‍ण की महिमा का गुणगान करते हैं। दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्‍कूलों में श्रीकृष्‍ण लीला का मंचन होता है।


जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद भक्‍त व्रत का संकल्‍प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्‍टमी तिथि के खत्‍म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं। कृष्‍ण की पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है।

जन्‍माष्‍टमी की पूजा विधि
कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें 16 चरण शामिल हैं-

ध्‍यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्‍यान करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्‍यानात् ध्‍यानम् समर्पयामि।।

आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर श्रीकृष्‍ण का आवाह्न करें।

आसन- अब श्रीकृष्‍ण को आसन देते हुए श्री कृष्ण का ध्यान करें।

पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के पांव धोने के लिए उन्‍हें पंचपात्र से जल समर्पित करें।

अर्घ्‍य- अब श्रीकृष्‍ण को इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए अर्घ्‍य दें।

आचमन- अब श्रीकृष्‍ण को आचमन के लिए जल अर्पित करें।

स्‍नान- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्‍य पात्र में रखकर स्‍नान कराएं। सबसे पहले पानी से स्‍नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्‍खन, घी और शहद से स्‍नान कराएं। अंत में साफ पानी से एक बार और स्‍नान कराएं।

वस्‍त्र- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्‍त्र पहनाएं. फिर उन्‍हें पालने में रखें और इस मन्त्र का जाप करें- शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।

यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें।

चंदन: अब श्रीकृष्‍ण को चंदन अर्पित करते हुए।

गंध: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्रीकृष्‍ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं।

दीपक: अब श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं।

नैवैद्य: अब श्रीकृष्‍ण को भागे लगाते हुए।

ताम्‍बूल: अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्‍ण को समर्पित करें।

दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार श्रीकृष्‍ण को दक्षिणा या भेंट दें।

कृ्ष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रसाद के लिये धनिये की पंजीरी

कृ्ष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रसाद के लिये पारंपरिक रूप से धनिये की पंजीरी (Dhania Panjiri) और धनिया की बर्फी बनाई जाती है. धनिया बर्फी पिसे हुए धनिया में नारियल पाउडर, मावा या फूले हुये रामदाना - राजगिरा मिला कर बनाई जाती है. आप इस जन्माष्टमी पर नारियल का पाग और मिगी का पाग तो बना ही रहे होंगे, प्रसाद के लिये धनिया बर्फी भी बना डालिये.
आवश्यक सामग्री - Ingredients for Dhania Barfi

    धनियां पाउडर - 1 कप
    नारियल चूरा - 1 कप
    चीनी - 1 कप
    खरबूजे के बीज - 1/4 कप
    छोटी इलाइची - 4
    देशी घी - 2 टेबल स्पून

विधि: 
पैन में घी डालकर गरम कीजिये, धनियां पाउडर डालिये और मीडियम फ्लेम पर 3-4 मिनिट, खुशबू आने तक भून लीजिये. भुना हुआ धनियां पाउडर प्याली में निकाल कर रख लीजिये.

पैन में नारियल चूरा डालकर 1 मिनिट चलाते हुये भून लीजिये. भुना नारियल पाउडर प्याली में निकालिये.
 अब खरबूजे के बीज पैन में डालिये और लगातार चलाते हुये बीज फूलने तक भून लीजिये (खरबूजे के बीज भूनते समय उचटकर कढ़ाई से निकल कर बाहर आ रहे हों तो ऊपर से हाथ से पकड़ कर प्लेट ढककर रखें और कलछी से चलाते हुये बीज भूने, ये बहुत जल्दी भून जाते हैं). भुने बीज प्याले में निकाल लीजिये.

इलाइची को छील कर पाउडर बना लीजिये.
पैन में चीनी और आधा कप से थोड़ा कम पानी डालिये, चीनी घुलने के बाद चाशनी को और 2 मिनिट और पका लीजिये, चाशनी में भुना धनियां पाउडर, नारियल चूरा, इलाइची पाउडर और बीज डालकर मिलाइये और मिलाते हुये तब तक पका लीजिये जब तक कि मिश्रण जमने वाली कनिसिसटेन्सी पर न पहुंच जाय. चैक करने के लिये चम्मच से जरा सा मिश्रण प्याली में डालिये ठंडा होने पर उंगली और अंगूठे से चिपका कर देखिये, आप महसूस कर लेंगे कि वह जम जायेगा, अगर लगे कि गीला है, तो 1-2 मिनिट और पका लीजिये.
किसी प्लेट या ट्रे में घी लगाकर चिकना कीजिये, मिश्रण को प्लेट में एक जैसा फैला दिजिये. बर्फी जमने के बाद बर्फी को अपने मन पसन्द आकार में काट कर तैयार कर लीजिये.

धनिये की बर्फी तैयार है, कृष्णा को प्रसाद चढ़ाने के बाद सभी को प्रसाद दीजिये और आप भी खाइये. धनिये की बर्फी को 15 दिन तक फ्रिज से बाहर रख कर खाया जा सकता है
#janmashtami

function disabled

Old Post from Sanwariya