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गुरुवार, 23 सितंबर 2021

सुखी जीवण रा टोटका


*सुखी जीवण रा टोटका*
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*झोड़ नहीं झिकाळ नहीं,* फालतू पंपाळ नहीं! 
झगड़ो नहीं टंटो नहीं,*झूठो छातीकुटो नहीं!* 

*नशो नहीं पतो नहीं,* अंटसंट खाणों नहीं! 
कोट कचेड़ी थाणों नहीं,*गलत रास्ते जाणों नहीं!* 

*मिले जका में संतोषी,* भेळो करणं री भूख नहीं! 
सुबह शाम सुमरण करे,*इणमें होवे चूक नहीं!* 

*गााय कुत्ता नें रोटी देवे,* पंछीयां ने चुग्गो देवे!
घर आया री करे खातरी,*हाजरी में ऊभो रेवे!*
 
*थारी नहीं म्हारी नहीं,* बहम री बीमारी नहीं! 
लाग नहीं लपेट नहीं,*लेणों नहीं देणों नहीं!*
 
*घर की बात घर में राखे,* पाड़ोसी नें केणों नहीं! 
फैशन नहीं शौक नहीं,*भटकणं री आदत नहीं!*
 
*माथे नहीं चोटी नहीं,* मांगणं री आदत नहीं! 
खुदरो काम खुद करे,*दूजा नें सताणों नहीं!*
 
*खुदकी नींद उड ज्यावे तो,* दूजां नें जगाणों नहीं! 
काम नहीं क्रोध नहीं,*कोई सुं विरोध नहीं!*
 
*चिंता नहीं सोच नहीं,* कोई की भी होड नहीं! 
झूठ नहीं कपट नहीं,*थोड़ो भी अभिमान नहीं!*
 
*झूठी थोथी शान नहीं,* अकड़ अर गुमान नहीं! 
सादगी रो जीवणों,*लोग दिखाऊ ठाठ नहीं!*
 
*आपस में विश्वास राखे,* मन में राखे गांठ नहीं! 
सुख शांति घर में रेवे,*रोज मचे घमसाणं नहीं!*
 
*राम री गिरस्थी सुखी,जठै खींचाताणं नहीं!*

*༺꧁ जय भवानी👏🏻🌺🔱🚩꧂༻*

साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल


साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल ₹500 किलो बिकता है!




प्रकृति के अनुपम उपहार हैं जायफल। इसे हम मसाले में प्रयोग करते हैं।
मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है

मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पर उपलब्ध हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का एक इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदार होता है। पकने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके कड़े खोल को तोड़ने पर भीतर से जायफल प्राप्त होता है। ।


जायफल घिसकर उस पानी का सेवन करें व नाभि पर लेप लगाने से दस्त आने बन्द हो जाते हैं। मुहांसे होने पर जायफल को दूध में घिसकर चेहरे पर लेप लगाने से मुहांसे समाप्त हो जाते हैं।

पाचन तंत्र
आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से गैस हटाता है।

सर्दी-खांसी
सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।

सर्दी से सुरक्षा
सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन को मुंह में रखकर चूसते रहिये। यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये। यह शरीर की स्वाभाविक गर्मी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।

बढ़ाए भूख
आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी, भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा।

दस्त और पेट दर्द
दस्त आ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये। एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये। सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं।

लकवा वाले अंगों में फूंकता है नई जान
लकवा का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिसकर रोज लेप करना चाहिए, दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की संभावना देखी गयी है।

प्रसव बाद कमर दर्द में फायदा
प्रसव के बाद अगर कमर दर्द खत्म नहीं हो रहा है तो जायफल पानी में घिसकर कमर पर सुबह-शाम लगाएं, एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा।

फटी एड़ियों पर लगाएं
फटी एडियों के लिए जायफल महीन पीसकर बिवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।

हृदय को बनाए मजबूत
जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है। पेट भी ठीक रहता है।

जी मिचलाए तो पिएं जायफल मिक्स पानी 
जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है।

मिटा देता है पुराने घावों के निशानों को
कई बार त्वचा पर कुछ चोट के निशान रह जाते हैं तो कई बार त्वचा पर नील और इसी तरह के घाव पड़ जाते हैं। जायफल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करें। जहां भी आपकी त्वचा पर पुराने निशान हैं रोजाना मालिश से कुछ ही समय में वे हल्के होने लगेंगे। जायफल से मालिश से रक्त का संचार भी होगा और शरीर में चुस्ती-फुर्ती भी बनी रहेगी।

बढ़ाता है आंखों की रौशनी
इसे थोडा सा घिसकर काजल की तरह आंख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है और आंख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है।

शक्ति के साथ बढ़ाए आवाज में सम्मोहन भी
यह शक्ति भी बढाता है। जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है।

मिटाए चेहरे की झाईयां
चेहरे पर या फिर त्वचा पर पड़ी झाईयों को हटाने के लिए आपको जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसना चाहिए। घिसने के बाद इसका लेप बना लें और इस लेप का झाईयों की जगह पर इस्तेमाल करें, इससे आपकी त्वचा में निखार भी आएगा और झाईयों से भी निजात मिलेगी।

झुर्रियों का है दुश्मन
चेहरे की झुर्रियां मिटाने के लिए आप जायफल को पीसकर उसका लेप बनाकर झुर्रियों पर एक महीने तक लगाएंगे तो आपको जल्द ही झुर्रियों से निजात मिलेगी। जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है, मुहांसे ख़त्म होते हैं।

बार-बार लघुशंका जाने से मिलेगा छुटकारा
किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली 2-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये, दिन में एक बार, खाली पेट, 10 दिन लगातार।

बच्चों की करे सुरक्षा
बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये, फिर 3 चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को सुबह शाम चटायें।

आंखों के नीचे से मिटाए काला घेरा
आंखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए रात को सोते समय रोजाना जायफल का लेप लगाएं और सूखने पर इसे धो लें। कुछ समय बाद काले घेरे हट जाएंगे।

दूर भगाए अनिद्रा को
अनिद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इसका त्वचा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। त्वचा को तरोताजा रखने के लिए भी जायफल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको रोजाना जायफल का लेप अपनी त्वचा पर लगाना होगा। इससे अनिद्रा की शिकायत भी दूर होगी और त्वचा भी तरोताजा रहेगी।

दांत दर्द को करे तुरंत ठीक
दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।

पेट दर्द में फायदा
पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।

मुंह के छालों को करे ठीक
जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी।

दूध पाचन
शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।



जायफल की खेती कैसे करें

जायफल के पौधों के विकास के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु काफी उपयुक्त मानी जाती है. जायफल का पौधा समुद्र तल से 1300 मीटर के आसपास की ऊंचाई तक आसानी से विकास कर सकता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती. इसकी खेती किसानों के लिए कम खर्च में अधिक लाभ देने वाली मानी जाती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
जायफल की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली गहरी उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन व्यापारिक रूप से पौधों के जल्द विकास करने के लिए इसके पौधों को बलुई दोमट मिट्टी या लाल लैटेराइट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के भूमि का पी. एच. मान सामान्य के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान
जायफल का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. इसके पौधे को विकास करने के लिए सर्दी और गर्मी दोनों मौसम की आवश्यकता होती है. लेकिन अधिक सर्दी और गर्मी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही मानी जाती. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए नुक्सानदायक माना जाता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है. इसके अलावा शुरुआत में पौधों के विकास के दौरान उन्हें हल्की छाया की जरूरत होती है.

इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरण के वक्त 20 से 22 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है. अंकुरण के बाद इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान (25 से 30) की जरूरत होती हैं. वैसे इसके पूर्ण रूप से तैयार पेड़ गर्मियों में अधिकतम 37 और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास के तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं.

पौध तैयार करना
जायफल की खेती के लिए इसकी पौध बीज और कलम दोनों के माध्यम से नर्सरी में तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने में सबसे बड़ी समस्या इसके नर और मादा पेड़ों के चयन में होती है. क्योंकि बिना फलों के लगे इसके पौधों में नर और मादा का चयन करना काफी कठिन होता है. इसलिए बीज से तैयार करने पर काफी बार ज्यादातर पौधे नर के रूप में प्राप्त हो जाते हैं. इस कारण इसकी पौध कलम रोपण के माध्यम से तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों को उचित मात्रा में उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी से भरी पॉलीथीन में लगा दें. और पॉलीथीन को छायादार जगह में रख दें. जब इसके पौधे अच्छे से अंकुरित हो जाए. तब उन्हें लगभग एक साल बाद खेत में लगा दें.

कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की सबसे अच्छी विधि कलम दाब और ग्राफ्टिंग होती है. लेकिन ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना काफी आसान होता है. ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए अच्छे से उत्पादन देने वाली किस्म के पौधों की शाखाओं से पेंसिल के सामान आकार वाली कलम तैयार कर लें. उसके बाद इन कलमों को जंगली पौधों के मुख्य शीर्ष को काटकर उनके साथ वी (<<) रूप में लगाकर पॉलीथीन से बांध दें. इनके अलावा कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की अन्य विधियों की अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं.

पौध रोपाई का तरीका और टाइम
जायफल के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है. लेकिन पौधों की रोपाई से पहले गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटे आकार का गड्डा बना लें. गड्डे को बनाने के बाद उसे गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए, ताकि पौधे को शुरूआती दौर में किसी तरह की बीमारियों का सामना ना करना पड़े.


गड्डों को उपचारित करने के बाद पौधे की पॉलीथीन को हटाकर उसमें लगा दें. उसके बाद पौधे के तने को दो सेंटीमीटर तक मिट्टी से दबा दें.

इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त समय बारिश का मौसम होता है. इस दौरान इसके पौधों की रोपाई जून के मध्य से अगस्त माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है. इसके अलावा किसान भाई इसके पौधों को मार्च के बाद भी उगा सकते हैं. इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है.

पौधों की सिंचाई
जायफल के पौधों को सिंचाई की जरूरत शुरुआत में अधिक होती है. शुरुआत में इसके पौधों की गर्मियों के मौसम में 15 से 17 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए. और सर्दियों के मौसम में 25 से 30 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों को पानी की आवश्यकता नही होती. लेकिन बारिश सही वक्त पर ना हो और पौधों को पानी की जरूरत हो तो पौधों को पानी आवश्यकता के अनुसार देना चाहिए. जब पौधा पूरी तरह बड़ा हो जाता है तब पौधे को साल में पांच से सात सिंचाई की ही जरूरत होती है, जो पौधों की गुड़ाई और फल लगने के दौरान की जानी चाहिए.

 

पौधों की देखभाल
किसी भी फसल या पौधों की देखभाल कर उसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है. उसी तरह जायफल की खेती में इसके पौधों की देखभाल कर जल्दी और अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसके पौधों को देखभाल की जरूरत शुरुआत से ही होती है. शुरुआत में इसके पौधों के विकास के दौरान उन पर एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई पर किसी भी तरह की कोई शाखा का निर्माण ना होने दें. इससे पौधे का तना मजबूत और पौधों का आकार अच्छा बनता है.

उसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए और फल देने लगे तब उसकी कटाई छटाई करते रहना चाहिए. इसके पौधों की कटाई छटाई फलों के तोड़ने के बाद करनी चाहिए. इस दौरान पौधे सुषुप्त अवस्था में होते है. पौधों की कटाई छटाई के वक्त पौधों पर दिखाई देने वाली रोगग्रस्त और सूखी हुई डालियों के साथ साथ अनावश्यक शाखाओं को भी निकाल देना चाहिए. इससे पौधे में नई शाखाएं बनती है. जिससे पेड़ो की उत्पादन क्षमता बढती है. और किसान भाइयों को अधिक उत्पादन मिलता हैं.

अतिरिक्त कमाई
जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई अपने खेत में मौजूद खाली जमीन पर कम समय की बागवानी, औषधीय, सब्जी और अन्य फसलों को उगाकर अच्छा उत्पादन ले सकता हैं. जिससे किसान भाई को उसकी भूमि से लगातार उचित उत्पादन भी मिलता रहता है और उसे किसी भी तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ता. वैसे इसकी खेती 15 से 20 साल पहले उगाये गए नारियल के खेतों में भी सहफसली के रूप में की जा सकती है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
जायफल के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित समय रहते देखभाल ना की जाए तो पौधों की पैदावार के साथ साथ उनके विकास को भी काफी हद तक प्रभावित करती है.

फलों की तुड़ाई और छटाई

जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. लेकिन पौधों से पूर्ण रूप से पैदावार लगभग 18 से 20 साल बाद मिलती है. इसके पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार होते हैं. इसके फल जून से लेकर अगस्त माह तक प्राप्त होते हैं. इसके फल पकाने के बाद पीले दिखाई देने लगते हैं. फलों के पकने के बाद उनके बाहर का आवरण फटने लगता है. तब इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. फलों की तुड़ाई के बाद जायफल को जावित्री से अलग कर लेते हैं. शुरुआत में जावित्री का रंग लाल दिखाई देता हैं. जो सूखने के बाद हल्के पीले रंग में बदल जाता है.

पैदावार और लाभ

जायफल की खेती में पैदावार और लाभ पौधे के विकास के साथ साथ बढ़ता जाता है. इसके पौधे को लगाने में अधिक खर्च शुरुआत में ही आता है. जायफल के पूर्ण रूप से तैयार एक पेड़ से सालाना 500 किलो के आसपास सूखे हुए जायफलों की पैदावार प्राप्त होती है. जिनका बाजार भाव 500 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई की एक बार में एक हेक्टेयर से दो से ढाई लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.

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