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गुरुवार, 28 जनवरी 2021

आप समझते हो कि आपने मोदी को एक्सपोज़ कर दिया तो यह आपकी भूल है।



 लाल किले पर झंडा आपने इतनी आसानी से लहरा दिया क्योंकि यह जो शासक है, वह आपको अपना मानता है वरना यदि चाहता तो आपको चार कदम भी न हिलने देता।

अगर आप समझते हो कि आपने मोदी को एक्सपोज़ कर दिया तो यह आपकी भूल है। सत्य यह है कि उसने आपको एक्सपोज़ कर दिया।

उसने उस साजिश की पोल खोल दी कि कैसे हर नेशनल डे तक किसी भी आंदोलन को खींचा जाता है और उसे शाहीन बाग जैसी घृणित आंदोलन की शक्ल दी जाती है।

आप हार गए मोदी जीत गया।

जिसे आप तानाशाह साबित करने पर तुले थे, उसने आपकी अराजकता को पूरी दुनिया के सामने दिखा दिया कि आप एक paid आंदोलन में शामिल थे, जिसकी आयु 26 जनवरी तक थी और दुनिया के सामने यह संदेश देना चाहते थे कि मोदी तानाशाह है।

लेकिन मोदी ने आपके क्रियाकलाप का भीषण विरोध न करके आपको जल बिन मछली बना दिया और यह संदेश दिया कि वह तानाशाह नही बल्कि आप अराजक हो।

जिस तरह से तलवारें लहराई गयी, जिस तरह से ईंट पत्थर फेंके गए, ट्रैक्टर से पुलिस वालों को कुचलने की कोशिश की गई, इन सब चीजों को जनता देख रही है।

आप मोदी विरोधी मुठ्ठी भर हो लेकिन मोदी के समर्थको की मुठ्ठियां फिर किसी चुनाव में खुलेंगी और उसे ही अपना सिर मौर बनाएगी जो कि आपके गाल पर एक गहरा तमाचा होगा।

वैसे मैं हमेशा कहता आया हूँ कि भारत को संजय गांधी जैसा नेता चाहिये।

भाग्यशाली हो आप लोग जो कि मोदी के कार्यकाल में हो जो आपकी उदंडता को भी सर माथे लगाया पता नहीं जी कोनसा नशा करता है ।

खैर! मुझे डर है कि कहीं जिहादी इस आंदोलन में घुसकर और ज्यादा उत्पात न मचा दें क्योंकि विपक्ष को और पाकिस्तान को जो खून खराबा चाहिए था वह अभी तक नही मिला।

इनकी सोच थी कि सरकार इनका खूब विरोध करे और सैकड़ो लोगों की लाशें गिरें, जिससे आज तक मोदी द्वारा किये गए सारे अच्छे कार्यों को भूला दिया जाय और वर्षो तक इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाया जाए
लेकिन सरकार ने इनकी इस मंशा पर भी पानी फेर दिया।

मोदी हमे आप पर गर्व है।
शास्त्र कहता है कि राजा समस्त प्रजा के लिए पिता समान होता है और आपने इनकी उदंडता को माफ कर के अपने कर्तव्य का निर्वहन करके दिखा दिया लेकिन अगर जिहादी इसमे घुसकर उत्पात मचाये तो उन्हें भीषणतम दंड देना भी राजा का कर्तव्य होता है।

इस देश की जनता आशा करती है कि मोदी जी आप अपने इस कर्तव्य का भी अच्छे से निवर्हन करेंगे।

मोदी समर्थक जो नाराज़ है, उन्हें बस यही कहूंगा कि धैर्यपूर्वक एक बार विचार कीजिये कि आपके नेता के धैर्य ने कौन कौन सी अनहोनी को टाल दिया।

कृपया लाल किले पर झंडा फहराए जाने को नाक का सवाल न बनाएं।

यह कृष्ण युग है इसमे शिशुपाल को 99 तक माफ किया जाता है। यहां कालयवन को स्वयं न मारकर राजा मुचुकुन्द की दृष्टि  से मरवाया जाता है।

यहां कालयवन paid आंदोलनकारी है और राजा मुचुकुंद  देश की जनता है।

अब जनता अपनी आँख खोले और धराशायी कर दे कालयवन को।

तिल का तेल ... पृथ्वी का अमृत





 तिल का तेल ... पृथ्वी का अमृत

यदि इस पृथ्वी पर उपलब्ध सर्वोत्तम खाद्य पदार्थों की बात की जाए तो तिल के तेल का नाम अवश्य आएगा और यही सर्वोत्तम पदार्थ बाजार में उपलब्ध नहीं है. और ना ही आने वाली पीढ़ियों को इसके गुण पता हैं.

🔹 क्योंकि नई पीढ़ी तो टी वी के इश्तिहार देख कर ही सारा सामान ख़रीदती है.
और तिल के तेल का प्रचार कंपनियाँ इसलिए नहीं करती क्योंकि इसके गुण जान लेने के बाद आप उन द्वारा बेचा जाने वाला तरल चिकना पदार्थ जिसे वह तेल कहते हैं लेना बंद कर देंगे.

🔹तिल के तेल में इतनी ताकत होती है कि यह पत्थर को भी चीर देता है. प्रयोग करके देखें....
🔹आप पर्वत का पत्थर लिजिए और उसमे कटोरी के जैसा खडडा बना लिजिए, उसमे पानी, दुध, धी या तेजाब संसार में कोई सा भी कैमिकल, ऐसिड डाल दीजिए, पत्थर में वैसा की वैसा ही रहेगा, कही नहीं जायेगा...
🔹लेकिन... अगर आप ने उस कटोरी नुमा पत्थर में तिल का तेल डाल दीजिए, उस खड्डे में भर दिजिये.. 2 दिन बाद आप देखेंगे कि, तिल का तेल... पत्थर के अन्दर भी प्रवेश करके, पत्थर के नीचे आ जायेगा. यह होती है तेल की ताकत, इस तेल की मालिश करने से हड्डियों को पार करता हुआ, हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है.

🔹 तिल के तेल के अन्दर फास्फोरस होता है जो कि हड्डियों की मजबूती का अहम भूमिका अदा करता है.

🔹और तिल का तेल ऐसी वस्तु है जो अगर कोई भी भारतीय चाहे तो थोड़ी सी मेहनत के बाद आसानी से प्राप्त कर सकता है. तब उसे किसी भी कंपनी का तेल खरीदने की आवश्यकता ही नही होगी.

🔹तिल खरीद लीजिए और किसी भी तेल निकालने वाले से उनका तेल निकलवा लीजिए. लेकिन सावधान तिल का तेल सिर्फ कच्ची घाणी (लकडी की बनी हुई) का ही प्रयोग करना चाहिए.
🔷तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकलता वह है तैल। अर्थात तेल का असली अर्थ ही है "तिल का तेल".
🔹तिल के तेल का सबसे बड़ा गुण यह है की यह शरीर के लिए आयुषधि का काम करता है.. चाहे आपको कोई भी रोग हो यह उससे लड़ने की क्षमता शरीर में विकसित करना आरंभ कर देता है. यह गुण इस पृथ्वी के अन्य किसी खाद्य पदार्थ में नहीं पाया जाता.
🔹सौ ग्राम सफेद तिल 1000 मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।
काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।
🔷तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

🔷तिल में विटामिन  सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।
इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते।

🔹ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।

🔷तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।
यह कब्ज भी नहीं होने देता।
तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।

🔷तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
सीधा अर्थ यह है की यदि आप नियमित रूप से स्वयं द्वारा निकलवाए हुए शुद्ध तिल के तेल का सेवन करते हैं तो आप के बीमार होने की संभावना ही ना के बराबर रह जाएगी.

🔹 जब शरीर बीमार ही नही होगा तो उपचार की भी आवश्यकता नही होगी. यही तो आयुर्वेद है.. आयुर्वेद का मूल सीधांत यही है की उचित आहार विहार से ही शरीर को स्वस्थ रखिए ताकि शरीर को आयुषधि की आवश्यकता ही ना पड़े.

🔹एक बात का ध्यान अवश्य रखिएगा की बाजार में कुछ लोग तिल के तेल के नाम पर अन्य कोई तेल बेच रहे हैं.. जिसकी पहचान करना मुश्किल होगा. ऐसे में अपने सामने निकाले हुए तेल का ही भरोसा करें. यह काम थोड़ा सा मुश्किल ज़रूर है किंतु पहली बार की मेहनत के प्रयास स्वरूप यह शुद्ध तेल आपकी पहुँच में हो जाएगा. जब चाहें जाएँ और तेल निकलवा कर ले आएँ.

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करे सदुपयोग जमीन का जो हो खाली य़ा बेकार शुरू करे मखाना की खेती पैसे मिलेंगे जीवन में भरमार


 📌  करे सदुपयोग जमीन का जो हो खाली य़ा बेकार शुरू करे मखाना की खेती पैसे मिलेंगे जीवन में भरमार

इस युवा किसान ने बेकार ज़मीन में की मखाने की खेती, सालभर में कमाएं 5 लाख रुपए

आज के समय में कई युवा किसानों का खेती की तरफ रुझान बढ़ा है. दरभंगा के युवा किसान धीरेन्द्र भी उन्हीं में से एक है. वे आधुनिक खेती के जरिए अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. दरअसल, धीरेन्द्र ने बरसात के समय में जलभराव के कारण खाली पड़ी रहने वाली जमींन पर मखाने की खेती शुरू की. बेहद कम इन्वेस्टमेंट में उन्होंने इस जमींन को कमाई का एक जरिया बना लिया है. इससे वे साल भर लाखों रुपए की आय अर्जित कर रहे हैं.

एक समय खेती करना छोड़ दिया
दरभंगा के बेलबाड़ा गाँव से ताल्लुक रखने वाले धीरेन्द्र सिंह की सात बीघा जमीन ऐसी थी जिसमें जलभराव के कारण कोई फसल नहीं हो पाती थी. धान की खेती भी इसमें असफल रही है. लिहाजा यह जमीन सालों से बेकार पड़ी थी. इसमें उन्होंने मखाने की खेती शुरू की. मखाने की खेती के लिए उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र में संपर्क किया. जो उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ. उन्होंने अपनी 7 बीघा बेकार जमींन में इसकी खेती शुरू की. इसमें तक़रीबन 1 लाख 80 हज़ार रुपए का खर्च आया. जिससे उन्हें 42 क्विंटल मखाना पैदा हुआ. जो 4 लाख 20 हज़ार में बिका. इससे उन्हें 2 लाख 40 हजार का शुद्ध मुनाफा हुआ. धीरेन्द्र कहते है कि इससे अभी 7-8 क्विंटल मखाना और निकलेगा जिसकी कीमत लगभग 50 हज़ार रुपए है.

5 बीघा में सिंघाड़ा

मखाना के अलावा धीरेन्द्र ने अपनी अन्य पांच बीघा ज़मीन में सिंघाड़े की खेती शुरू की. जिसमें से उन्होंने एक बीघा की तुड़ाई हाल ही कर ली. जिससे उन्हें खेती की लागत मिल गई. वहीं 4 बीघा के सिंघाड़े की तुड़ाई और बाकी है. जिसकी कीमत 60 हज़ार से अधिक है. वहीं वे इसमें मछली पालन भी करते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आय हो जाती है.

पहले ट्रेनिंग ली

प्रगतिशील किसान धीरेन्द्र को मखाना की खेती करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों का भरपूर साथ मिला. इसके लिए उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र में ट्रेनिंग की भी ली. जहाँ से उन्हें पांच किलो मखाना का बीज मुफ्त मुहैया कराया गया. समय समय पर कृषि वैज्ञानिकों ने उनके खेत का निरीक्षण किया और उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया. वहीं लॉकडाउन के दौरान अधिकारीयों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये मदद की.

आपकी सुविधा के लिए दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केन्द्र का पता भी दिया जा रहा है

दरभंगा मखाना अनुसंधान केन्द्र
Basudeopur, Kakarghati, Darbhanga, NH-57, Darbhanga, Darbhanga, Bihar 846004
फ़ोन: 0612-2223962

इसलिए कि इन सबके पीछे अन्नदाता का नाम जुड़ा हुवा है।

 बहुत शर्मनाक स्थिति !!
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे विश्व के सम्मुख देश की जो छवि अन्नदाता किसान बने गुंडो ने जिन्होंने पुलिस पर तलवारें उठायी, पत्थर फेंके, ट्रेक्टर तक चढ़ाने का प्रयास किया, तय रूट्स को तोड़कर उपद्रव फैलाया यह भारतीय इतिहास का काला पन्ना है। क्या सरकार इतनी कमजोर होती है, क्या पुलिस इतनी कमजोर होती है ?
नहीं, यह सब इसलिए जो रहा है कि सरकार चाहती है कि कुछ देशभक्त लोग जो इसे किसान आंदोलन समझ रहे है उन्हें इनकी हकीकत नजर आए, उनकी भी आंखे खुल जाए। इतनी लाठियां, इतने पत्थर, तलवारें अचानक तो नही आ गयी। सब कुछ पहले से तय था। सरकार पर दबाव बनाने के लिए जानबूझ कर इसे इवेंट के रूप में अंजाम दिया गया। यदि किसानों को वास्तव में सरकार पर दबाव बनाना ही था तो अधिक बेहतर होता कि शांतिपूर्ण तरीके से कानून के दायरे में रहकर अभूतपूर्व रैली सम्पन्न होती। लेकिन इस कांड का अंदेशा तो उसी दिन से हो गया था जब पूरा विपक्ष इन आंदोलनकारियों के साथ खड़ा नजर आया था। यह तो होना ही था।
लेकिन, अब एक बात और बात देना चाहूंगा, अब तक तो सरकार किसानों से बात करने का, समाधान देने का हर प्रयास कर रही थी, कोर्ट ने कानूनों पर रोक भी लगा दी थी, लेकिन यह भी देशभक्तो की सरकार है। जो सरकार चीन या पाकिस्तान के सामने कभी नही झुकी, आज किसानों के बीच छुपे गुंडो के सामने तो कतई नही झुकेगी, अब तक मोदीजी ने योगीजी का स्वरूप नही दिखाया, लेकिन अब जरूर देखने को मिलेगा। इतने बड़े लोकतंत्र को चंद गुंडो के सामने गिरवी नही रखा जा सकता।
जिस देश की इतनी लंबी सरहद पर विगत 6 वर्षों में दुश्मन को 1 इंच अंदर नही घुसने दिया गया है उसी देश की उस प्राचीर पर जहाँ तिरंगा फहराया जाता है उस पर आज उपद्रवियों ने दूसरा झंडा फहरा दिया । देश के लिए इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है । आज देश झुक गया है और सिर्फ इसलिए कि इन सबके पीछे अन्नदाता का नाम जुड़ा हुवा है। कसम से, यदि इस आंदोलन में वास्तविक किसान जो नहीं जुड़ा होता तो मोदीजी अब तक निपटा भी देते। खैर, मोदीजी छोड़ने वाले भी नही है। बस एक काम अच्छा हो गया कि आज उन लोगों की भी आंखे खुल गयी होगी जो अब तक इसे किसान आंदोलन मान रहे थे।
प्रभु सबको सद्बुद्धि दे। 🙏🙏

अभी कई दुष्टों का पर्दा उठना बाकी है |


 आज एक बार पुनः महाभारत के उस प्रसंग की यादे ताजा हो गयी
जब भगवन श्री कृष्ण महाभारत युद्ध से पूर्व सेनाये सज जाने के बाद भी
अंतिम प्रयास के रूप में धृतराष्ट्र की सभा में संधि प्रस्ताव लेकर जाते है सब कुछ जानते हुवे भी की दुर्योधन पांड्वो को आधा राज्य देना तो दूर पांच गाँव तक देने को तैयार नहीं होगा |
हकीकत में वे सिर्फ समाज को यह बतलाने के लिए ऐसा करते है की भविष्य में कोई विद्वान या चिन्तक यह ना कह दे की युद्ध टाला जा सकता था |
आज एक बार फिर अक्षरश: वही हुवा है, मोदी सरकार सब जानती थी की यह आन्दोलन किसान कानूनों के लिए कभी था ही नहीं, यह तो मोदी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता को धवस्त करने की देश विरोधियो की कुटिल चाले है | लेकिन अभिव्यक्ति हेतु स्वतंत्र भारतीय लोकतान्त्रिक समाज भविष्य में कभी यह ना कह दे की समाधान हेतु हरसंभव प्रयास ही नहीं किये गये | सरकार के बड़े से बड़े मंत्री ने किसान वार्ता के माध्यम से हर संभव समाधान दिए, लेकिन सबको पता था की सामने जो लोग थे उनमे से कोई भी समाधान चाहता ही नहीं था और अंतत: यह तो होना ही था, सब तैयारी इसी के लिए तो थी, शाहीन बाग़ फेल हुवा, विश्वविद्यालय काण्ड फेल हुवा, असंभव सी धारा 370 हटा दी गयी, 500 वर्षो की लडाई राम मंदिर निर्माण की जीत ली गयी | आखिर देश विरोधियो को इतने बड़े बड़े घाव, मवाद तो निकलनी ही थी |
घबराइयेगा बिलकुल मत ! अभी आगे आगे देखिये !
इस महाभारत के कृष्ण भी मोदी है और अर्जुन भी | अभी कई दुष्टों का पर्दा उठना बाकी है |
ये कृष्ण और अर्जुन बख्शेंगे किसी को भी नहीं |
हर दुष्ट को सामने लाकर, उसके गुनाहों से पूरा पर्दा उठाकर
स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनायेंगे |
जय हिन्द !!

चिदानन्दमय देह तुम्हारी । विगत विकार जान अधिकारी


 रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में तुलसीदास जी ने भगवान् राम की स्तुति करते हुए कहा है ---

"चिदानन्दमय  देह  तुम्हारी ।
विगत विकार जान अधिकारी ।।"

आपका यह शरीर पंच-महाभूतों का विकार नहीं है , किन्तु सच्चिदानन्द-स्वरूप है ।

अर्थात् आपका स्थूल शरीर सत् , सूक्ष्म शरीर चित्  तथा कारण शरीर आनन्द तत्त्व से बना है ।

जिसका आपकी अन्तरङ्ग लीला में प्रवेश हो चुका है , वह अधिकारी पुरुष ही आपके सच्चिदानन्द-स्वरूप विकार रहित शरीर के सम्बन्ध में जान सकता है ।

भागवत के दशम स्कन्ध के चौदहवें अध्याय में ब्रह्मा जी भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति कहते हैं --

"आपका यह शरीर पंच-भौतिक नहीं है , किन्तु दिव्यातिदिव्य है , चिन्मय-अविनाशी है।"

वैशेषिक-दर्शन में कणाद जी ने छः प्रकार के स्थूल शरीरों का वर्णन किया है ---

१ . सर्वसाधारण प्राणियों के पार्थिव शरीर।

२.  वरुण लोक के जल तत्त्व प्रधान जलीय शरीर ।

३. इन्द्र तथा ब्रह्मादि लोकों के अग्नि तत्त्व प्रधान दिव्य शरीर ।

४. वायु तत्त्व की प्रधानता वाले भूत-प्रेत-बेताल-कूष्माण्ड-ब्रह्मराक्षस आदिकों के स्थूल नेत्रों से न दिखाई देने वाले वायु तत्त्व प्रधान वायवीय शरीर ।

५.  युक्त-योगियों की सत्य-संकल्पता से युक्त यौगिक शरीर अर्थात् योगी जब अपने प्रतिबिम्ब में धारणा-ध्यान-समाधि का संयम करते हैं , तब अनेक रूप धारण कर लेते हैं ।

जैसे भगवान् कृष्ण ने रास-क्रीड़ा में अनेक रूप धारण किये ।

भगवान् राम ने दण्डक वन में खर-दूषण-त्रिशिरा से युद्ध करते समय सबको राम रूप दे दिया ।

६. दिव्यातिदिव्य शरीर --    महाविष्णु , परम शिव, परम स्वरूपा दुर्गा , महागणपति एवं राम-कृषणादि अवतारों के शरीर दिव्यातिदिव्य कहलाते हैं ।

देवताओं के शरीर दिव्य है , उनके शरीरों से पसीना नहीं निकलता , बुढापा नहीं आता ।

परन्तु देवता आंख से देखते व कान से सुनते हैं अर्थात् उनकी प्रत्येक इन्द्रिय एक प्रकार का कर्म तथा ज्ञानेन्द्रिय द्वारा एक प्रकार का ज्ञान होता है ।

किन्तु दिव्यातिदिव्य राम-कृषणादि के शरीरों में यह विशेषता है कि उनकी प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय में पांचों प्रकार की ज्ञान शक्तियां रहती हैं , यह विशेषता देवताओं में नहीं होता ।

अतः मनुष्य तो क्या ब्रह्मवेत्ता महर्षि तथा देवता भी उनका नित्य वैकुण्ठ तथा गोलोक धाम और भगवान् का श्रीविग्रह अविनाशी-अमृत रूप कैसे है , नहीं समझ सकते ।

किन्तु भगवान् की विशेष कृपा तथा सद्गुरुओं की महती कृपा से प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं ।

यतिधर्म में कहा है --

दुर्लभो विषयत्यागो दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् ।
दुर्लभा सहजावस्था सद्गुरो: करुणां विना ।।

कालनेमि की रोचक कथा


 ‼️कालनेमि की रोचक कथा‼️

एक ऐसा दैत्य जिसने कलियुग तक भगवान विष्णु का पीछा नहीं छोड़ा...

सतयुग में दो महाशक्तिशाली दैत्य हुए - हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष। ये इतने शक्तिशाली थे कि इनका वध करने को स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा। हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी को सागर में डुबो दिया। तब नारायण ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया। उसके दो पुत्र थे - अंधक एवं कालनेमि जो उसके ही समान शक्तिशली थे।

जब तक उनके चाचा हिरण्यकशिपु जीवित रहे, उन्होंने उनके संरक्षण में जीवन बिताया किन्तु जब नारायण ने हिरण्यकशिपु को नृसिंह अवतार लेकर मारा तब दोनों भाई ने प्रतिशोध लेने की ठानी। अंधक अपनी महान शक्ति के मद में आकर देवी पार्वती से धृष्टता कर बैठा और महारुद्र के हाथों मारा गया। तब कालनेमि ने महादेव से प्रतिशोध लेने हेतु अपनी पुत्री वृंदा, जिसे ये वरदान प्राप्त था कि उसके होते उसके पति की मृत्यु नहीं हो सकती, उसका विवाह जालंधर नमक दैत्य से कर दिया जो महादेव का घोर शत्रु था।

 हालाँकि वृंदा का सतीत्व भी जालंधर को बचा नहीं सका और वो नारायण के छल के कारण भगवान शिव के हाथों मारा गया। जब कालनेमि को विष्णु के छल और अपनी पुत्री और दामाद के मृत्यु का समाचार मिला तो उसने नारायण से प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा की।

परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि, जो प्रजापति होने के साथ-साथ सप्तर्षिओं में भी एक थे, उनके छः पुत्र हुए। एक दिन महर्षि मारीचि अपने पुत्रों के साथ अपने पिता ब्रह्मदेव से मिलने गए। वहाँ देवी सरस्वती भी उपस्थित थी। जब वे वहाँ पहुँचे तो उनके सभी पुत्रों ने अपने पितामह ब्रह्मा से परिहास में ही कहा कि - "हे पितामह! सुना है कि आपने अपनी ही पुत्री देवी सरस्वती से विवाह कर लिया था। ये कैसे संभव है?" ऐसा कह कर सारे हँसने लगे।

तब ब्रह्माजी ने उन सभी को श्राप दिया कि अगले जन्म में वो एक दैत्य के रूप में जन्मेंगे। उनके क्षमा माँगने पर उन्होंने कहा कि उसके भी अगले जन्म में उन्हें नारायण के बड़े भाई के रूप में जन्म लेने का सौभाग्य मिलेगा और उन्हें अधिक समय तक पृथ्वीलोक पर ना रहना पड़े इसी कारण जन्मते ही उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।

 उधर कालनेमि अपने पिता हिरण्याक्ष के वध का प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की तपस्या कर रहा था। जब ब्रह्माजी प्रसन्न हुए तो उसने वरदान माँगा कि उसे छः ऐसे पुत्र मिलें जो अजेय हों। तब ब्रह्मदेव के वरदान स्वरूप महर्षि मरीचि के श्रापग्रसित छः पुत्र अगले जन्म में कालनेमि के छः पुत्रों के रूप में जन्मे। उनके अतिरिक्त उसकी एक और कन्या थी वृंदा, जिसे तुलसी के नाम से भी जानते हैं।

 जब कालनेमि के छः पुत्रों ने उत्पात मचाना शुरू किया तो कालनेमि के चाचा हिरण्यकशिपु ने उन्हें पाताल जाने की आज्ञा दे दी। कालनेमि के रोकने पर भी उन सभी ने हिरण्यकशिपु की आज्ञा मानी और पाताल जाकर बस गए। इससे कालनेमि स्वयं अपने पुत्रों का शत्रु हो गया और निश्चय किया कि वो अगले जन्म में अपने ही पुत्रों का अपने हाथों से वध करेगा।

इसके बाद अपने चाचा हिरण्यकशिपु की मृत्यु के पश्चात, अपने भाई प्रह्लाद के लाख समझाने के बाद भी कालनेमि ने भगवान विष्णु पर आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में उसने देवी दुर्गा की भांति सिंह को अपना वाहन बनाया। दोनों में घनघोर युद्ध हुआ और कहा जाता है कि उस युद्ध में कालनेमि ने भगवान विष्णु पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया किन्तु उससे नारायण को कोई हानि नहीं हुई। फिर कालनेमि ने नारायण पर एक अमोघ त्रिशूल से प्रहार किया किन्तु नारायण ने उसे बीच में ही पकड़ कर नष्ट कर दया।

फिर उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से कालनेमि का अंत कर दिया। मरते हुए उसने प्रतिज्ञा की कि वो फिर जन्म लेगा और नारायण से प्रतिशोध लेगा। अपने भाई की मृत्यु पर प्रह्लाद अत्यंत दुखी हो गया। अंततः प्रह्लाद की प्राथना पर भगवान विष्णु ने उसे आश्वासन दिलाया कि अगले जन्म में भी वही उसका वध करके उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्त करेंगे।

मथुरा के राजा उग्रसेन अपनी पत्नी पद्मावती के साथ सुख से राज कर रहे थे। विवाह के तुरंत बाद पद्मावती अपने पिता सत्यकेतु के घर गयी। एक बार कुबेर का एक संदेशवाहक गन्धर्व द्रुमिला (गोभिला) सत्यकेतु से मिलने आया। जब उसने पद्मावती को देखा तो उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया। उसने छल से उग्रसेन का वेश बनाया और पद्मावती से मिलने आया। पद्मावती उसे अपना पति समझ कर उसके साथ उसी प्रकार का व्यहवार करने लगी।

 थोड़े दिनों के पश्चात उसके पुत्र के रूप में कालनेमि ने नारायण से प्रतिशोध लेने के लिए जन्म लिया। उसका नाम कंस रखा गया। उसके जन्म के पश्चात देवर्षि नारद ने पद्मावती को गन्धर्व के छल के बारे में बता दिया जिससे उसे अपने पुत्र से घृणा हो गयी। उसने अपने पति उग्रसेन को तो कुछ नहीं बतया किन्तु वो मन ही मन उसकी मृत्यु की कामना करने लगी।

आगे चल कर कंस ने अपने पिता को कैद कर लिया और ये जानकर कि देवकी उस संतान को जन्म देगी जो उसके वध का कारण बनेगा, उसे भी कारावास में डाल दिया। बाद में उसे पता चला कि देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु जन्म लेंगे तो उसने उसे मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की ठानी। देवकी के पहले छः पुत्रों के रूप में कालनेमि के छः पुत्र जन्मे जिन्हे मारकर कंस रुपी कालनेमि ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

 देवकी की सातवीं संतान संकर्षित हो वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में चली गयी जिससे बलराम का जन्म हुआ। देवकी के गर्भ से उनकी जगह महामाया ने जन्म लिया जिसने बताया कि देवकी की आठवीं संतान का भी जन्म हो गया है। अपना प्रतिशोध लेने के लिए कंसरुपी कालनेमि ने कृष्ण के कारण गोकुल के सभी बच्चों के वध का आदेश दिया। सैकड़ों बच्चे मारे गए किन्तु कृष्ण को कुछ नहीं हुआ। १६ वर्ष की आयु में कृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ कंस का वध कर संसार को उसके अत्याचार से मुक्त किया।

इस प्रकार कालनेमि ने सतयुग से द्वापर तक नारायण का पीछा किया किन्तु प्रभु को कौन मार सका है? हर बार उसे अपने प्राण गवाने पड़े। कहते है कि कालनेमि ही द्वापर के अंत समय प्रत्येक रात्रि के रूप में उसे कलियुग के और निकट ले जाता है। यहाँ तक कि कलियुग को भी कालनेमि का अवतार माना जाता है। ये भी मान्यता है कि अपना प्रतिशोध लेने के लिए ही कालनेमि कलियुग के रूप में जन्मा ताकि इस युग में भी वो नारायण के कल्कि अवतार से प्रतिशोध ले सके। हालाँकि अगर ये सत्य है तो हम जानते हैं कि इसका परिणाम क्या होगा।

‼️ जय श्रीहरि विष्णु।‼️

श्री कृष्ण के बारे में रोचक जानकारीया


 श्री कृष्ण के बारे में रोचक जानकारीया
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कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।

आठ का अंक
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 कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
 
कृष्ण के नाम
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 नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

कृष्ण के माता-पिता
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 कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं।

कृष्ण के गुरु
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 गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।

कृष्ण के भाई
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कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।

कृष्ण की बहनें
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कृष्ण की 3 बहनें थी :

1. एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)।

2. सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3. द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे।

4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण की पत्नियां
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 रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।

कृष्ण के पुत्र
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रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…।

कृष्ण की पुत्रियां
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रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।

कृष्ण के पौत्र
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प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।

कृष्ण की 8 सखियां
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 राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं-

 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।

कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।
 इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है।

कृष्ण के 8 मित्र
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 श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु।
इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।

कृष्ण के शत्रु
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कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।

कृष्ण के शिष्य
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कृष्ण ने किया जिनका वध : ताड़का, पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।

कृष्ण चिन्ह
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 सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।

कृष्ण लोक
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 वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।
कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता

कृष्ण का कुल
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यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।

शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।

कृष्ण पर्व
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 श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।

मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं
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मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।

भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:
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 सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।         

कृष्णा जिनका नाम है
गोकुल जिनका धाम है
ऐसे श्री कृष्ण को मेरा
बारम्बार प्रणाम है।                             

जय श्रीराधे कृष्णा

बिचौलियों को मिलने वाली मोटी मलाई बंद हो जाएगी।


 1. कई साल से हम लोग इंपोर्टेड दाल खा रहे थे। 2 साल पहले मोदी जी ने इस पर रोक लगानी शुरू कर दी और अब पूरी तरह से बंद कर दिया। कृषि बिल तो बहाना था असली किस्सा कुछ यूं है। 2007 में मनमोहन सिंह ने नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से समझौता कर दाल आयात करना शुरू कर दिया था। कनाडा ने अपने यहां लेंटील दाल के बड़े-बड़े फार्म स्थापित किए जिसकी जिम्मेदारी वहां रह रहे पंजाबी सिखों के हवाले किया।
कनाडा से भारत में बड़े पैमाने पर दाल आयात होने लगा। बड़े आयातकों में अमरिंदर, कमलनाथ जैसे कांग्रेसी भी थे और बादल भी थे ।
जैसे ही मोदी ने आयात पर रोक लगाई इनका खेल शुरू हुआ। इनके कनाडा के फार्म सूखने लगे। खालिस्तानियों की नौकरी जाने लगी इसीलिए जस्टिन ट्रुडो ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था। अब धमकी दी जा रही है कनाडा के खालिस्तानी सिखों को पंजाब वापस भेजा जाएगा। वैसे भी खालिस्तानी कांग्रेसियों की ही देन है। कृषि कानून का सबसे ज्यादा विरोध विदेशी ताकते और खालिस्तानी सिख कर रहे है।
अब भारत का किसान अमीर होगा तो इन्हें तो कष्ट होगा ही, मोदी जी ने भारत को विकसित करने का बीडा उठाया है और जनता भी साथ दे रही है, जल्द ही भारत की आर्थिक हालत विश्व मे सबसे अच्छी होगी क्योंकि जिस देश में अन्न बाहर से खरीदना नहीं पड़ता वही देश सबसे जल्द् विकसित होते है!

2. अदानी और अंबानी ने जो भी व्यापार शुरू किया वहां मोनोपली का खात्मा करते हुए भारतीय ग्राहकों को जबरदस्त फायदा कराते हुए मुनाफा कमाया है। अब सोचिए कि पहले कितनी लूट मची हुई थी...??
उदाहरण:- जियो नहीं था तब आपका बिल कितना आता था ? कितनी लूट चलती थी... अब हर कंपनी दाम घटाने पर मजबूर है ।
अदानी एग्रो प्रगति कर रही है तो विरोध हो रहा है... अदानी गोडाउन क्यों बना रहा है...? जब अपने देश में पेप्सिको, वॉलमार्ट, हिन्दुस्तान यूनीलीवर, आईटीसी जैसी विदेशी कंपनियों ने पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में बड़े-बड़े गोडाउन खड़े कर लिए तब कोई विरोध नहीं हुआ... तो अब अदानी का ही विरोध क्यों???

रिलायंस रिटेल, रिलायंस डिजिटल अब सारे देश में पहुंच रहे हैं, तो अमेज़न और फ्लिपकार्ट को तकलीफ़ होना स्वाभाविक है... स्वदेशी पतंजलि के आने से हिन्दुस्तान यूनीलीवर (कोलगेट, लक्स, पाँड्स) का एकाधिकार समाप्त हो गया, तो उन्हें तकलीफ़ तो होनी ही थी... चीन दुनिया भर के साथ भारत में भी 5G तकनीक बेचने को उतावला हो रहा है, ऐसे में जियो की संपूर्ण स्वदेशी 5G तकनीक से उसे तकलीफ़ होगी ही... अदानी पोर्ट्स और अदानी एंटरप्राइज़ के कारण सबकी मोनोपली बंद हो गई है।
अब जब अपने देश के उद्योगपति आगे बढ़ रहे हैं, देश को फायदा पहुंचा रहे हैं, तो अपने ही देश के कतिपय लोग उनका विरोध क्यों कर रहे हैं?

क्या अदानी, अंबानी या पतंजलि आपको जबरदस्ती अपना सामान बेच रहे हैं, या आपसे कुछ ले रहे हैं...?
खेल समझिए:
अब पंजाब के किसान नेता उनके विरोध में आ गए हैं... अदानी गोडाउन क्यों बना रहा है...?? हमारी ज़मीन हड़प लेगा... आदि-आदि...
पंजाब में देशी-विदेशी कंपनियों के गोडाउन बरसों से मौजूद हैं, वह चलता है... अब अदानी बनवा रहा है तो कहा जा रहा है कि जमाखोरी होगी और कीमतें बढ़ेंगी...
हकीकत तो यह है कि अब तक जो लाखों टन अनाज, सब्ज़ियां और फल सड़ जाते थे, वे अब इनके गोडाउन में सही तरह से भंडारित हो सकेंगे। तकलीफ़ यह है कि अब महंगाई काबू में रहेगी और बिचौलियों को मिलने वाली मोटी मलाई बंद हो जाएगी।
महंगाई तो सालों से बढ़ती आ रही है, तो अब ही अफवाहें क्यों फैलाई जा रही हैं...? क्योंकि अदानी-अंबानी से कई विदेशी एजेंटों को तकलीफ़ हो रही है, और कई लोग तो कुछ भी जाने-समझे बगैर सिर्फ और सिर्फ मोदी-विरोध में ये अफवाहें फ़ैला रहे हैं और अपने साथ-साथ सबके पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं...!!

यह सच्चाई सब तक पहुंचाएं।
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मुगलों का रक्तरंजित हवसभरा इतिहास-

 मुगलों का रक्तरंजित हवसभरा इतिहास-

1. आठवीं सदी में मुहम्मद बिन क़ासिम का जिहादी जंगी जुनून, काफ़िर राजा दाहिर का कटा सर, इराक़ में हज्जाज इब्न यूसुफ़ के हरम में दाहिर की बेटियों के कुचले हुए जिस्म, लड़ाई के बाद सिंध में सड़कों पर सड़ती काफ़िरों की लाशें, अधमरे सैनिकों की दिल चीर देने वाली चिंघाड़, क़ासिम के जिहादियों के चंगुल में आयीं हज़ारों काफ़िर औरतें, उनकी बोटी बोटी नोचे जाने से उठी चीत्पुकार, १०-१० जिहादियों के नीचे फँसी उस माँ को जिसके दुधमुँहे बच्चे को अल्लाहु अकबर के नारे के साथ भाले की नोक पर घुसा कर हवा में उछाल दिया गया था, उस माँ को जो यह नहीं जान पा रही थी कि कौन सी तकलीफ़ ज़्यादा बड़ी है- एक साथ १० हैवानों के बीच अपने जिस्म को नुचवाना या अपने बच्चे को भाले की नोक पर लटके हुए देखना या उस जिगर के टुकड़े को आख़िरी आशीर्वाद भी नहीं दे पाना।     

2. ग्यारहवीं सदी के पहले साल से ही महमूद ग़जनवी के जंगी दस्ते, १/२/३/१७ बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस, करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक ज्योतिर्लिंग जो अब टुकड़े टुकड़े होकर जिहादियों के क़दमों में पड़ा था, हज़ारों सर जो धड़ों से जुदा करके खेतों में फेंक दिए गए, पेशावर, मुल्तान, लाहौर, के वो जले हुए शहर, उनमें भुट्टों की तरह भून दिए गए बुतपरस्त काफ़िर।     

3. बारहवीं सदी के वो गुरु चेले- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और मुहम्मद गौरी, राजा पृथ्वीराज के राज्य में उसी के टुकड़ों और दया पर पलने वाले चिश्ती के ख़्वाब में आए इस्लामी नबी, उसका हिन्दुस्तान पर हमला करके बुतपरस्त काफ़िरों को सबक़ सिखाने के लिए गौरी को चिट्ठी, पहली लड़ाई में पृथ्वीराज के सामने घुटनों पर आकर सिर झुकाने वाले गोरी का अगली बार फिर से झपटना, और अपनी जान बख़्शने वाले के सर को अपने मुल्क ले जाकर क़िले के दरवाज़े पर टाँग देना, उसके साथ हुआ अल्लाहु अकबर का अट्टाहस, हिन्दुस्तान में मूर्तिपूजकों के ख़ून से घुटनों तक दरया बहाने के गुरु चेलों के मंसूबे और कत्लेआम।

4. तेरहवीं सदी में बख़्तियार ख़िलजी का हमला। नालंदा और विक्रमशिला के महीनों तक धूँ धूँ करके जलते भवन, तकबीर के नारों और फ़तह के जश्न के शोर के बीच मौत के आग़ोश में समा गए हज़ारों आचार्य, शिक्षक, शिष्य, मर्द, औरत, बच्चे।

5. चौदहवीं सदी में महारानी पद्मिनी को पाने के लिए अलाउद्दीन ख़िलजी का चित्तौड़ का हमला, शादीशुदा माँ समान रानी को अपने बिस्तर में देखने के जिहादी मंसूबे, हज़ारों महारानियों, रानियों, राजकुमारियों, और साथी स्त्रियों की सामूहिक पूजा, पूरा शृंगार करके आरती अर्चना, भीमकाय क़िले के बीचोंबीच हज़ारों मन लकड़ियों को इकट्ठा करते शाही हाथी, अहाते के चारों तरफ़ उन लकड़ियों को जमता देखती कन्याओं की टोली, प्रचण्ड आग में कूदने के पहले एक दूसरे से आख़िरी गले मिलना, धर्म की विजय की कामना करते हुए महारानी पद्मिनी का अग्निकुण्ड में प्रवेश, एक पल में लकड़ी को कोयला कर देने वाली दहकती आग में माँ समान कोमल महारानी और हज़ारों स्त्रियों का अंतिम प्रयाण, मर कर भी किसी जिहादी के हाथ ना आने का अतुल्य संतोष, मर कर भी सम्मान नहीं मरने देने का सुख, आने वाली पीढ़ी के वीर पुत्र अपनी जलती माताओं का प्रतिशोध ज़रूर लेंगे, इस संदेश के साथ उस ऊँची उठती आग में धुआँ हो जाने वाली राजमाताएँ और पुत्रियाँ।

इसी सदी में काफ़िरों के कटे सरों की मीनारें बनाने वाला तैमूर, दिल्ली शहर का वो कत्लेआम, दहाईयों तक इंसानी वजूद से ख़ाली हो जाने वाले शहर, गिद्ध, चील, भेड़ियों और जानवरों के शोर में ढके हुए शहर, क़रीब २ करोड़ इंसानों के क़ातिल का दिल्ली की गलियों में बेख़ौफ़ घूमना, पूरी दुनिया की इंसानी आबादी के ५% हिस्से को अपनी तलवार से ख़त्म करने वाले उस लंगड़े के चेहरे के भद्दे चेचकी दाग़।     

6. सोलहवीं सदी के मुग़ल बाबर के हाथों से काटे गए हज़ारों सरों की मीनारों के जुलूस, मीनारों के ख़ौफ़ से पूरे के पूरे शहरों का इस्लाम क़ुबूल करना, बाजौड़ की औरतों की दर्दनाक दास्ताँ, बाबर के हरम से हर रात निकलने वाली कमसिन बच्चों की चीख़ें, अफ़ीम के नशे में सर काटने की प्रतियोगिता। करोड़ों हिंदुओं के भगवान राम के मंदिर का ज़मीन में दफ़न किया जाना।  

इसी सदी में बाबर के पोते अकबर का अपने उस्ताद बैरम खाँ को फ़ारिग़ करके माँ समान उसकी बीवी से निकाह, चित्तौड़ के क़ब्ज़े के दिन ३०,००० बेगुनाह औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों का अपने हाथों से कत्लेआम, सैंकड़ों राजस्त्रियों का जौहर की आग में फिर से पलायन, ५,००० काफ़िर औरतों और बच्चों से भरा हुआ हरम, रिश्ते में बेटी, पोती और बहू लगने वाली औरतों/बच्चों की दर्दनाक चीख़ों से भरी हुई हरम की रातें।

7. सत्रहवीं सदी में अकबर के बेटे जहांगीर का हिंदू-सिखों के गुरु अर्जन देव जी को इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म, गुरु का इनकार, गुरु की मौत का फ़रमान, जलते लोहे के तवे पर गुरु का बैठना, ऊपर से गरम रेत से बदन को छलनी करना, भालों से गुरु का माँस उतारना, बादशाह जहांगीर का आख़िरी बार इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म? गुरु का आख़िरी इनकारी जवाब, गुरु को उनकी गाय माता की खाल में सिल कर मारने का फ़रमान, इस पर गुरु का रावी नदी में स्नान के लिए जाना और फिर कभी वापस नहीं आना।

इसी सदी में अकबर महान के पड़पोते औरंगज़ेब के हाथों इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर लाखों हिंदुओं का कत्लेआम।हज़ारों मन्दिरों को ज़मींदोज़ करके मूर्तिपूजक हिंदुओं को असली खुदा की ताक़त का एहसास करवाना, हिंदू-सिखों के गुरु तेग़ बहादुर जी को इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर क़त्ल का फ़रमान, दिल्ली की धरती पर गुरु का उड़ता हुआ सर, भाई मति दास का आरे से चीरा गया बदन, भाई सती दास का रुई में लपेट कर जलाया गया जिस्म, भालों पर झूलते ७०० सिखों के कटे सर, दिल्ली में कटे सरों के जुलूस, छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी की यातनाओं के २० दिन, इस्लाम नहीं क़ुबूल करने के लिए ख़ंजर से निकाली गयीं आँखें, अल्लाहु अकबर नहीं बोलने के लिए खींची गयी ज़बान, उँगलियों के खींचे गए नाख़ून, पत्थरों से कुचली गयीं उँगलियाँ, चिमटों से खींची गयी जिस्म की खाल, ख़ंजरों से काटी गयी बोटी बोटी, तलवार से कलम किया गया सर।  

8. अठारहवीं सदी में हिंदू-सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी के ५ और ८ साल के छोटे छोटे बच्चों का अपहरण- उन्हें इस्लाम क़ुबूल करने का हुक्म, बच्चों का इनकार, दीवार में ज़िंदा चिनवाए गए बच्चे, अल्लाहु अकबर का शोर। बच्चों के बलिदान का बदला लेने वाले बंदा वैरागी का दिल्ली आना, शेर के पिंजरे में उसे क़ैद करके दिल्ली शहर में घुमाना, दुधमुँहे बच्चे का माँस ख़ंजर से निकाल के पिता बंदा के मुँह में ठूँसना, इस्लाम क़ुबूल नहीं करने पर बदन के टुकड़े टुकड़े दिल्ली की सड़कों पर। देवी के अपमान पर पैग़म्बर का अपमान करने के जुर्म में १४ साल के बालक हक़ीक़त राय का लाहौर में माँ की आँखों के सामने तन से जुदा सर। इतना सुनना था कि खाने की मेज़ पर रोटी के निवाले हलक में अटक गए। रूँधे हुए गले से रोटी नीचे नहीं उतरती थी। भाई, ये सब क्या था? अगर ये सब सच है तो हमने स्कूल में ये सब क्यों नहीं पढ़ा? १४ आँखों से आँसू लुढ़क रहे थे। कमरे में ख़ामोशी ही ख़ामोशी थी जो ७ लोगों के सुबकने से टूट रही थी।

एक सवाल मन में कौंध रहा था, क्या कारण है कि जिस देश में पिछले १३ सदियों का एक एक साल ख़ून में डूबा हो, एक भी सदी बिना औरतों, बच्चों, माँओं की अगणित चीख़ पुकार सुने बिना नहीं बीती, जिस देश में आज भी उन १३०० सालों के हमलावरों, माओं को नंगा घुमाने वालों, उनको अरब की ग़ुलाम मंडियों में बेचने वालों, बलात्कार करने वालों, लाखों मंदिरों-मूर्तियों को तोड़ कर उन पर मस्जिद बनाने वालों, करोड़ों लोगों को तलवार के ज़ोर पर हिंदू से मुसलमान बनाने वालों को हीरो, वली और इस्लाम का ग़ाज़ी समझा जाता हो, ग़ज़नी, बाबर और औरंगज़ेब के नाम की मस्जिदें बनाकर उनमें बैठ कर करोड़ों हिंदुओं के ज़ख़्मों पर दिन में ५ बार, सप्ताह में ३५ बार, महीने में १५० बार और साल में १८२५ बार नमक मिर्च रगड़ा जाता हो, जिस देश में बलात्कारी बाबर के नाम की मस्जिद के लिए लाखों लोग सड़कों पर उतर आते हों, औरंगज़ेब के नाम की मस्जिद से दिल्ली में तकारीर की जाती हों, जिस देश को ७० साल पहले इन्हीं क़ातिल लुटेरों के मानने वालों ने दो टुकड़े कर के फेंक दिया

जिस देश के टुकड़े होने के बाद भी बचे खुचे पर शरीयत के काले क़ानून के साये हैं, जिस देश के २०% लोग देश का क़ानून मानने से इनकारी हों, मज़हब मुल्क से ऊपर है, इस बात का खुल्लम खुल्ला एलान करते घूमते हों, जिस देश में ६०० में से ८६ जिलों में ऐसे लोगों की संख्या २०% के पार हो चुकी हो, जिस देश में हिंदू को कश्मीर से साफ़ किया गया हो, राजधानी दिल्ली से १०० किलोमीटर दूर कैराना में हिंदुओं का पलायन किया जा चुका हो, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, बुलन्दशहर, रामपुर, मुरादाबाद आदि में पलायन की तैयारी हो चुकी हो, जिस देश में बचे खुचे हिंदू ८ राज्यों में अल्पसंख्यक बन चुके हों, जिस देश के स्कूलों में रमज़ान के दिनों में हिंदू बच्चों के लिए भी खाने पर पाबंदी लगनी शुरू हो गयी हो, जिस देश की राजधानी में हनुमान आरती को रमज़ान के महीने में रुकवा दिया गया हो क्योंकि मूर्तिपूजा से मोहल्ले के लाखों अल्पसंख्यक लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हो जाती हैं, जिस देश में आपके लिए घेरा तंग से तंगतर होता जा रहा हो, उस देश के युवाओं की समस्या क्या हैं? भ्रष्टाचार, ग्लोबल वार्मिंग, गोरक्षक, पद्मावती फ़िल्म की आज़ादी?               
- अग्निवीर की  पुस्तक 'मुग़ल - हवस के सुल्तान' से उद्धृत

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