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रविवार, 20 अप्रैल 2025

"युद्ध तो तुमको करना ही पड़ेगा – एक यथार्थ बोध"

"युद्ध तो तुमको करना ही पड़ेगा – एक यथार्थ बोध"

✍️ प्रस्तुतकर्ता: हिन्दू 
#Sanatan #Dharm #Realities #MahabharatToday


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महाभारत के काल में भी कृष्ण जानते थे... युद्ध टालना एक भ्रम है।
उन्होंने सिर्फ पाँच गाँव माँग कर पाँडवों को यह दिखा दिया था —
कि अन्याय के विरुद्ध जब तक तुम तलवार नहीं उठाओगे,
तब तक शांति का कोई विकल्प नहीं है।

"कभी-कभी 'संघर्ष से बचना' ही सबसे बड़ा अन्याय होता है..."


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आज का युग - और वह पुराना प्रश्न

आज भी कुछ पिता, अपने “सेक्युलर” सोच वाले बेटों को समझा रहे हैं –
"बेटा, जितना हो सके संघर्ष से बचो। सबको साथ लेकर चलो।"

बेटा पूछता है —
"लेकिन कब तक? जब सब कुछ देकर देख लिया, तब भी माँगें नहीं रुकतीं —
तो क्या तब भी हम झुकते रहें?"

पिता मुस्कुराकर कहते हैं —
"तुम्हारा झुकना, तुम्हारी सहनशीलता नहीं... तुम्हारी कमजोरी मानी जाएगी।
जिसे तुम भाई मानते हो, वह तुम्हें गुलाम समझता है।"


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इतिहास साक्षी है...

1947 — देश के दो टुकड़े हो गए। फिर भी हिन्दू खदेड़ा गया।

कश्मीर — हिन्दू को घर छोड़ना पड़ा, और मुस्लिम को विशेषाधिकार।

370 धारा — अलग कानून, अलग झंडा, फिर भी असंतोष।

बाढ़ में बचाया गया — सेना ने जानें बचाईं, और बदले में पत्थर मिले।



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कृष्ण ने पहले ही कहा था...

"जब तुम्हारे अस्तित्व पर संकट आए,
तो यह तय करने का विकल्प तुम्हारे पास नहीं कि युद्ध होगा या नहीं..."

तुम कितना भी धर्मनिरपेक्ष बनो,
पाँच गाँव भी दे दो — दुर्योधन तो युद्ध करेगा ही...


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तुम्हारे अस्तित्व से है समस्या

उन्हें परेशानी घंटी की आवाज़ से है,

उन्हें कुपोषण गौमांस बिना होता है,

उन्हें ऐतराज़ मंदिर की पूजा से है,

उन्हें चाहिए तुम्हारी बहन-बेटियाँ,

और सवाल करेंगे —
"तुम्हारी बेटी इतनी कीमती है, तो पर्दे में क्यों नहीं रखते?"



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किसी को भी भ्रम नहीं होना चाहिए

हमने कभी हज पर नहीं रोका,
लेकिन हर साल अमरनाथ यात्रा बाधित होती है।

हमने कभी मस्जिदें नहीं तोड़ीं,
लेकिन हमारे मंदिरों पर कब्ज़ा कर उन्हें मस्जिद बना दिया गया।



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अब अर्जुन मत बनो — तैयार हो जाओ

"कृष्ण अब बार-बार उपदेश नहीं देंगे..."
"तुम्हारे बच्चों के भविष्य का प्रश्न है — और अस्तित्व का भी।"


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अंतिम पंक्तियाँ:

"संघर्ष से भागना विकल्प नहीं —
धर्म की रक्षा केवल ज्ञान और विवेक से नहीं,
कभी-कभी शस्त्र से भी करनी होती है

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक

*शर्त ये है कि इसको पढ़ कर अपने ग्रुप में फारवर्ड जरूर करें*वरना डिलीट कर देवे।

 *खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक*

*622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने  तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)*

*634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!*

*640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!*

*3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए!*

*711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी!*


*मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया! मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! बेचारे मूर्ख इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया!*

*अब आप भारत की स्थिति देखिये!*
*उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है!*

*जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें!*

*636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया!*

*कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी! दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा!*

*सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए!*

*यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया!*
*उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने पराजय नही मानी! जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल का जन्म हो चुका था!*

*वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया! केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे! जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी!*

*उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं! नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले! जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा!*

*पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है! लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए!*

*सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया! यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते!*

*भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया!*

*पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी! उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी! उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे!*

*अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए!*

*किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दी!*

*महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए!*

*एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए! एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें! जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?*

*राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, छत्रसाल बुन्देला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए!*

*अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!*

*ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया! पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था! फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया!*

*अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता!*

*ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए!*

  *आज फिर भारत संकट में है वीर पुरुष नरेंद्र मोदी चट्टान की तरह अडिग देश को बचाने में दिन रात मेहनत कर रहा है और ये राक्षस राहुल खान और इंडिया पार्टी जिहादियों के साथ मिलकर भारत को हम सब को बर्बाद करने में लगे हैं।बाबा साहेब और संविधान के नाम पर भाईयो को बांटने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं*

*कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे** ..........🇮🇳🚩
**संकलन वन्दे मातरम्*

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

कॉन्वेंट" हम जिस शब्द को गर्व से उच्चारित करते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।

"कॉन्वेंट स्कूल" — गर्व का विषय या गुलामी की विरासत?
आज समाज में अक्सर ये सुनने को मिलता है —
“मेरा बच्चा कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता है।”
या फिर — “मैं कॉन्वेंट एजुकेटेड हूँ।”

सुनकर लगता है मानो यह कोई प्रतिष्ठा का प्रमाणपत्र हो, पर क्या हमने कभी रुकर सोचा है कि "कॉन्वेंट" शब्द की जड़ें क्या हैं?
आइए जानने की कोशिश करें कि हम जिस शब्द को गर्व से उच्चारित करते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।


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"कॉन्वेंट" शब्द की उत्पत्ति और इतिहास

"Convent" शब्द की जड़ें लैटिन भाषा के “Conventus” में हैं, जिसका अर्थ है — “एक धार्मिक समुदाय का निवास”।
मुख्यतः यह शब्द ईसाई धर्म में ननों (Nuns) और पादरियों (Fathers) के लिए बने धार्मिक केंद्रों के लिए इस्तेमाल होता था, जहाँ वे प्रार्थना और सेवा के जीवन में रहते थे।

अब सवाल यह उठता है कि ये धार्मिक केंद्र शिक्षा से कैसे जुड़ गए?


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ब्रिटेन की सामाजिक विडंबना और "Convent" का जन्म

ब्रिटेन में एक दौर ऐसा था जब “Live-in Relationship” जैसी व्यवस्थाएं समाज में बढ़ने लगीं। ऐसे रिश्तों से जन्म लेने वाले बच्चों को समाज ने स्वीकार नहीं किया और वे अनाथ हो गए।
ऐसे हज़ारों अनचाहे बच्चों को रखने के लिए चर्चों ने कॉन्वेंट बनाए — जहाँ उन्हें एक नया परिवेश दिया गया।

इन कॉन्वेंटों में उन्हें यह सिखाया गया कि उनके माता-पिता कौन हैं:

वहाँ Father होता था – जो आध्यात्मिक रूप से पिता का स्थान लेता था।

Sister होती थी – जो उनकी माँ या बड़ी बहन का रोल निभाती थी।

Mother Superior होती थी – जो पूरे कॉन्वेंट की संरक्षिका होती थी।


ध्यान दीजिए:
यह मूलतः अनाथालय थे — जिन्हें धार्मिक रंग देकर Convent कहा गया।


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भारत में "कॉन्वेंट स्कूल" कैसे आए?

जब भारत अंग्रेजों का गुलाम बना हुआ था, तब 1842 में कोलकाता (कलकत्ता) में पहला कॉन्वेंट स्कूल शुरू किया गया।
इसके बाद मुंबई और मद्रास में भी ऐसी ही यूनिवर्सिटियाँ शुरू हुईं, जिन्हें “Free Schools” कहा गया — नाम तो मुफ्त शिक्षा का था, पर मकसद था भारतीयों को उनकी जड़ों से काटना।


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लॉर्ड मैकाले का “ब्रेनवॉशिंग प्लान”

लॉर्ड मैकाले ने अपने पिता को एक प्रसिद्ध चिट्ठी में लिखा था:

> “मैं भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू करूंगा,
जिससे हम ऐसे भारतीय तैयार करेंगे जो रंग-रूप से भारतीय होंगे,
पर सोच और आत्मा से अंग्रेज बन जाएंगे।”
“उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा, इतिहास कुछ भी याद नहीं रहेगा।”



क्या हम आज वही स्थिति नहीं देख रहे हैं?

हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है।

हम अपने त्यौहारों, परंपराओं को पिछड़ा मानते हैं।

अंग्रेजी में बात करने वालों को ही "स्मार्ट" कहा जाता है।



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आज की विडंबना

आज भारत में हजारों कॉन्वेंट स्कूल खुल गए हैं – और मज़े की बात ये है कि उनके नाम हैं:

श्री हनुमान कॉन्वेंट स्कूल

माँ दुर्गा कॉन्वेंट स्कूल

गुरु गोविंद कॉन्वेंट स्कूल


अब सोचिए — बजरंगबली और "Convent" का क्या संबंध?
माँ भगवती और Sister Mother Superior का क्या रिश्ता?

यह स्थिति बताती है कि हमने न केवल गुलामी स्वीकार की, बल्कि अब उसे अपनी संस्कृति से जोड़ने का हास्यास्पद प्रयास भी करने लगे हैं।


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अंग्रेजी: अंतर्राष्ट्रीय भाषा या भ्रम?

कई लोग तर्क देते हैं —
“अंग्रेजी तो इंटरनेशनल लैंग्वेज है।”

पर सच्चाई यह है कि:
दुनिया के 204 देशों में से केवल 11 देशों में ही अंग्रेजी मुख्य भाषा के रूप में बोली जाती है।

यह तो हमारी मानसिक गुलामी है कि हम उसे ही अपनी पहचान मान बैठे हैं।

क्या आपको पता है कि:

ईसा मसीह की भाषा Aramaic थी।

बाइबिल की मूल भाषा भी Aramaic और Hebrew थी — अंग्रेजी नहीं।

अंग्रेजों की खुद की पवित्र पुस्तक भी अंग्रेजी में नहीं लिखी गई थी।



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निष्कर्ष: गर्व किस पर करें?

शिक्षा का उद्देश्य है ज्ञान, विवेक और संस्कार देना — चाहे वह किसी भी माध्यम से मिले।
लेकिन अगर शिक्षा हमें अपने धर्म, संस्कृति, भाषा और मूल्यों से दूर कर दे, तो वह शिक्षा नहीं, एक सुनियोजित गुलामी है।

अब समय है आंखें खोलने का।
अब जब भी कोई "कॉन्वेंट स्कूल" की बात करे,
तो उससे पूछिए – क्या आप इसकी सच्चाई जानते हैं?


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साभार: ✍️
#भारतीय_संस्कार #ConventSchool_का_सच #शिक्षा_या_गुलामी #CulturalAwakening #Bhartiyata #Swabhiman

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

अब वक़्फ़ संपत्तियों का सही इस्तेमाल होगा, और मुस्लिम समाज को इसका वास्तविक लाभ मिलेगा।

वक़्फ़ से मुस्लिम भी वाक़िफ़ नहीं हैं!dgs

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भारत में मुस्लिम समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर हमेशा चर्चा होती है। यह कहा जाता है कि "मुस्लिम गरीब और मजलूम हैं," लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा कि वक़्फ़ बोर्ड, जो अरबों-खरबों की संपत्ति का मालिक है, उसने अब तक मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए क्या किया?

आज लोकसभा में वक़्फ़ संशोधन बिल पेश किया गया, और इस पर चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि खुद मुस्लिम समाज के लोग भी वक़्फ़ की असलियत से अंजान हैं।

क्या है वक़्फ़ बोर्ड?

वक़्फ़ की संपत्ति वह होती है, जिसे किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दान किया जाता है ताकि जरूरतमंदों और गरीबों की भलाई हो सके। लेकिन वक़्फ़ बोर्ड, जो कि इन संपत्तियों की देखरेख के लिए बना था, क्या उसने इस दान का सही इस्तेमाल किया?

आज भारत में वक़्फ़ बोर्ड अरबों की संपत्तियों का मालिक है, लेकिन आम मुस्लिम के जीवन में इसका कोई सकारात्मक प्रभाव क्यों नहीं दिखता?

क्या वक़्फ़ बोर्ड ने मुस्लिम समाज के लिए कुछ किया?

क्या वक़्फ़ बोर्ड ने गरीब मुस्लिम बच्चों के लिए उच्च स्तरीय स्कूल और कॉलेज बनाए?
क्या वक़्फ़ बोर्ड ने मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कोई ठोस कदम उठाया?
क्या गरीब मुस्लिमों को मुफ्त इलाज के लिए वक़्फ़ बोर्ड ने अस्पताल बनाए?
जब मुस्लिम समुदाय के लोग किसी आपराधिक मामले में फंसते हैं, तो क्या वक़्फ़ बोर्ड उनकी मदद करता है?
क्या वक़्फ़ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक़ से पीड़ित महिलाओं को कोई सहायता दी?

अगर इन सभी सवालों का जवाब "नहीं" है, तो फिर यह अरबों की संपत्ति आखिर जाती कहाँ है?

वक़्फ़ संपत्तियों की असली हकीकत!

❌ वक़्फ़ बोर्ड की अधिकांश संपत्तियों पर होटल, रिसॉर्ट और आलीशान इमारतें खड़ी कर दी गईं
❌ वक़्फ़ संपत्तियों से होने वाली आमदनी का कोई रिकॉर्ड नहीं और न ही इसका लाभ आम मुस्लिमों तक पहुंचता है
❌ वक़्फ़ बोर्ड ने गैर-मुस्लिमों को तो छोड़िए, खुद मुस्लिम समुदाय की भी कोई ठोस मदद नहीं की
❌ जब मुस्लिम समुदाय को किसी कानूनी सहायता की जरूरत होती है, तो वक़्फ़ बोर्ड चुप रहता है, लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद वकील मुहैया कराता है


#WaqfBoardAmendmentBill से क्या बदलेगा?

अब सरकार इस भ्रष्ट व्यवस्था पर लगाम लगाने जा रही है।

अब कोई सरकारी संपत्ति वक़्फ़ घोषित नहीं की जा सकेगी
अब कोई भी संपत्ति तभी वक़्फ़ मानी जाएगी, जब दान करने वाला कम से कम 5 साल से मुस्लिम हो
संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य होगा और कलेक्टर उसकी देखरेख करेगा
वक़्फ़ बोर्ड के फैसलों को अब कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी
अब वक़्फ़ बोर्ड की संपत्तियों पर पारदर्शिता बढ़ेगी और उनका सही इस्तेमाल हो सकेगा

विपक्ष को इस बिल से इतनी दिक्कत क्यों हो रही है?

👉 239 विपक्षी सांसदों में सिर्फ 24 मुस्लिम हैं, लेकिन 215 हिंदू सांसद इस बिल का विरोध कर रहे हैं!
👉 1000 चर्च इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि वक़्फ़ बोर्ड से ईसाई समुदाय भी परेशान था
👉 अब वक़्फ़ बोर्ड में 2 मुस्लिम महिलाओं और 2 गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति होगी, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी
👉 विपक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस बदलाव से इसलिए घबरा रहे हैं, क्योंकि अब वक़्फ़ बोर्ड की संपत्तियों पर उनकी मनमानी नहीं चल पाएगी

अब समय है जागने का!

मुस्लिम समाज को अब यह सोचना चाहिए कि क्या वक़्फ़ बोर्ड वास्तव में उनके कल्याण के लिए काम कर रहा था, या फिर यह सिर्फ राजनीति का एक हिस्सा था?

अब वक़्फ़ संपत्तियों का सही इस्तेमाल होगा, और मुस्लिम समाज को इसका वास्तविक लाभ मिलेगा।





#WaqfBoard #WaqfAct #WaqfProperties #WaqfAmendmentBill #IndianMuslims #MuslimCommunity #Welfare #Transparency #Justice

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

राजस्थान का ऐतिहासिक घुड़ला पर्व: सत्य जो अनजान है!

राजस्थान का ऐतिहासिक घुड़ला पर्व: सत्य जो अनजान है!
राजस्थान की भूमि वीरता, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मारवाड़ में मनाया जाने वाला घुड़ला पर्व वास्तव में किस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है? यह सिर्फ एक पारंपरिक लोक उत्सव नहीं, बल्कि एक बलिदान और साहस की गाथा भी समेटे हुए है।

घुड़ला पर्व का पारंपरिक स्वरूप

हर साल होली के बाद, राजस्थान में कुंवारी कन्याएँ सिर पर मटका रखकर उसके अंदर दीप जलाकर गांव-गांव घूमती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं। यह पर्व विशेष रूप से गणगौर पूजा से जुड़ा हुआ माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि "घुड़ला" नाम कैसे पड़ा?

घुड़ला पर्व से जुड़ी ऐतिहासिक घटना

इतिहास के पन्नों में दबी एक कहानी यह बताती है कि "घुड़ला" वास्तव में कोई पर्व नहीं, बल्कि एक क्रूर मुगल सरदार घुड़ला खान से जुड़ा है। यह घटना जोधपुर के पीपाड़ क्षेत्र के पास बसे कोसाणा गांव की है।

गांव की 200 से अधिक कुंवारी कन्याएँ गणगौर पूजा करने तालाब पर गई थीं। तभी वहां से मुगल सरदार घुड़ला खान अपनी सेना के साथ गुजरा। उसकी गंदी नज़र उन कन्याओं पर पड़ी और उसने बलपूर्वक उनका अपहरण कर लिया। जिसने भी विरोध किया, उसे मौत के घाट उतार दिया।

जब यह खबर राव सातल सिंह राठौड़ को मिली, तो उन्होंने तुरंत अपनी सेना के साथ घुड़ला खान का पीछा किया और उसका सामना किया। युद्ध में राजपूतों की तलवारों ने मुगलों को पराजित कर दिया, और अंततः राव सातल सिंह ने घुड़ला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन इस संघर्ष में वीर राव सातल सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए।

घुड़ला पर्व का वास्तविक अर्थ

गांव वालों ने कन्याओं को घुड़ला खान का सिर सौंप दिया। उन्होंने उस सिर को एक घड़े (मटके) में रखा और उसमें उतने छेद किए, जितने घाव घुड़ला खान के शरीर पर थे। फिर पूरे गांव में इसे घुमाया गया और प्रत्येक घर में दीप जलाकर न्याय और विजय का संदेश दिया गया। यही परंपरा धीरे-धीरे घुड़ला पर्व के रूप में स्थापित हो गई।

इतिहास से सबक लें!

समय के साथ इस घटना का वास्तविक अर्थ धुंधला होता गया और लोग अनजाने में इस पर्व को एक साधारण परंपरा के रूप में मनाने लगे। यह आवश्यक है कि हम अपने इतिहास को समझें और अपने वीरों को याद रखें। राव सातल सिंह जी का बलिदान भुलाया नहीं जाना चाहिए।

हमारी जिम्मेदारी

हमें अपने इतिहास को जानना और दूसरों तक पहुँचाना चाहिए ताकि कोई भी झूठी कथा हमारे वीरों के बलिदान को ढक न सके। आइए, इस बार घुड़ला पर्व पर इसके वास्तविक नायक को याद करें और दूसरों को भी इस ऐतिहासिक सत्य से अवगत कराएं।

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