यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

जाती का विनाश नही सुधार जरूरी @ महेश्री

भारत भाग्य विधाता 
-------------------------
जाती का  विनाश नही सुधार जरूरी @ महेश्री 
---------------------------------------------------------
दुनिया मे एकल धर्मं के देश अधिक.
 जितनी ऊनकी नज़र जाती उतने को ही वे दूरी / रोशनी समझते .
भारत जो आज हे,  वो अतीत की निरन्तरता  मे हे .
ना  तो पूरा आधुनिक तथा ना  ही पुरातन  ही .
दुनिया की लगभग सभ्यताये यूनान  से रोम तक खत्म हो गयी 
लेकिन भारत की सभ्यता  क्यो बची रही?
हमारी  सभ्यता बाकी की तरह खुद  को नवीन नही कर पायी ?
सनातनता  को उपलब्धी मानने वाले गैर उत्पादक अधिक नही ?
अतीत से बचा के जो लाये हे तथा जो हे वो भविष्य मे जा  पायेगा 
वो ही सनातन , बाकी सब त्यागने जैसा कचरा ?
बाबा / प्रचारक को सनातनता  पे बोलने की क्या  ज़रुरत ?
बिना ग्रहस्त / विवाहित हुये अनुभवहीनता  की बाते क्या  काल्पनिक भर नही सेक्स के आनन्द की सनातनता  को लेकर ?
गांधी ने सत्य तथा अहिंसा  की बात की ना  की ब्रहमचर्य  की ?
उन्होने प्रयोग का  साहस  किया  अंत तक तथा उसको नपुन्शक  लोगो के लिए छोड़ दिया ,की वो झूट को महिमा  माडित  करे तो करते रहे सदियो की झूट की तरह .
वाजपयी ने खुद को अविवाहित  बोला ना  की ब्रहमचारी .
सनातनी  होने के लिए सत्य का  चिंतन  जरूरी ये हमने देखा .
वाजपयी भारत रत्न /गांधी  को राष्ट्रपिता  सनातनी  होने के लिए?
 बाबा तथा प्रचारक जी   को अतीत / उधार का   नही खुद का  अनुभव  बताना / बोलना चाहिये अगर  बताना  ही हो तो .
भारत  मे जाती  तथा वर्ग हे जबकी दुनिया मे वर्ग  भर ही .
जाती अगर व्यवस्था हे तो ठीक तथा बाधा  हो तो लांघने योग्य .
ईश्वर , धर्मं तथा जाती अतीत के इजाद  हे मनुष्य के , 
अभी तो जिसको विवेक नही वो ही इनको  सनातन मानता?
विग्यान , विवेक तथा व्यक्ती   ने ईश्वर , धर्मं तथा जाती को छोटा किया  हे दुनिया मे तथा भारत क्या  पीछे रहेगा ?
भारत मे 1947 मे ये  गलती रह गयी संविधान लिखते हुये ---
सरकारी  सेवक / सेविका को  अपनी जाती लिखने का  अधीकार ना  होता  तथा नाम के साथ  नम्बर  लिखने की तजबीज  होती  तो ?
जिस जगह जो जाती अधिक होती उसको वंहा से संसद के लिए चुनाव लडने की अनुमती ना  होती तो जातिवाद  क्या बढता ?
जिस जगह से जो उम्मीदवार जीतता  वंहा से  उसकी जाती को सरकारी सेवा मे जाने की अनुमती  नही होती  तो क्या  जाती खत्म नही हो जाती ?
एक परिवार एक वोट की कल्पना होती तो लोग जाती की भीड बढाते इतनी की चीन से अधिक हो गये जबकी  क्षेत्र  थोडा !
अम्बेडकर ने जाती के विनाश  को जरूरी बताया  तथा गांधी  ने उसपे अपने विचार यंग इन्डिया  मे उनके साथ साथ  लिखे .
 दोनो व्यस्त  थे तथा दोनो ने जाती से बाहर विवाह को कर के दिखाया खुद ने / परिवार मे .
जाती को विवाह के लिए अछूत  क्यो  समझे ?
जाती मे हो  विवाह तो ठीक तथा जाती से बाहर हो तो भी बढ़िया? 
जाती विहीन विवाह  तो श्रेष्ठ विवाह क्योकी  इसमे जाती होना या  नही कोई महत्व की बात नही .
खारा  पानी खुदके कुयें का  तो जन्हा मीठा पानी हो उसको उपयोग मे लेना क्या  गलत ?
माहेश्वरी धर्मं किसी किताब तथा व्यक्ती की गुलामी मे  नही .
नीम  ही इसकी सनातनता जो दुनिया के पर्यावरण को  भी ठीक.
जाजू ,बिडला , सोनी से लेकर मुझ तक जाती को सुधारा अनेको  ने  अपने अपने तरीको से .
पूजारियो ने ये भ्रम फेलाया की क्षत्रीय  से वेश्य  हुये माहेश्वरी ! 
कोई ऊपर से नीचे जाता अगर वर्ण को  सामाजिकता की सीढी समझे  तो भी ?
क्षत्रीय  से ऊपर पुजारी को लांघ के नया वर्ण बना होगा महेश्री ?
पुजारी कथा की लोहा गलने  से पत्थर के अशापित  होने से हुये 
माहेश्वरी , सही नही क्योकी  दुनिया मे कहीं कोई होता ऐसे पैदा  ?
माहेश्वरी होना भीड / बहुमत के होने को सत्य मानना  नही होता .
सत्य को सत्य मानने वाला  कभी उन्मादी नही होता कथा वाचक की तरह जिसकी आय पे सरकार जी एस टी नही लेती दुकानो की तरह .जिसे शुरु करवा रहे कवियो  की तरह .
विविकेत सत्य को सनातन समझे वो माहेश्वरी , सनातनी  भी .
अनाज के आखिरी कण  तथा पानी  की आखिरी बूंद को उपयोग लेने वाले रहे हे मारवाडी माहेश्वारियो के पुरखे , जो मेरे भी .
अतीत को भविष्य की तरफ बिना परखे, जो  जाने ना  दे वो मेरी तरह का  माहेश्वरी ?
 आप इसको पढ़ रहे तथा आपने नीम / पेड  लगा दिया धरती  माता पे तो आपका शौर्य आत्मतोश  वाला .
धन को विचार  समझने वाले बाकी जो भी हो शौर्य वाले नही . 
@ महेश्री 9967600972

function disabled

Old Post from Sanwariya