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मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

"मैंने गाँधी को क्यों मारा " ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान

"मैंने गाँधी को क्यों मारा " ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान



{इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति
प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक
धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई  सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के  सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा  मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने  कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ..............में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे

जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना

भगवान शिव की कृपा भक्ति

:: भगवान शिव की कृपा भक्ति ::

 
वैसे तो भगवान शिव की शक्ति, महिमा और दयालुता की बहुत-सी कहानियाँ प्रचलित हैं। लेकिन एक बड़ी विचित्र एवं रोचक कथा इस संबंध में आती है। जो आज भी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के अन्तर्गत रसड़ा तहसील में, खैराडीह में एवं आसपास के इलाकों में बहुत अर्से से जानी जाती है। सावन के महीने में एक नवविवाहिता दुल्हन को विदाई कराकर कहार डोली में बिठाकर चले जा रहे थे। खैराडीह के नजदीक एक शिव मंदिर के पास पहुँचने पर बड़े जोर से बारिश होने लगी।

हारों ने डोली वहीं पर उतार कर मंदिर में रख दी और खुद बरामदे में बैठ गए। दुल्हन अन्दर शिवलिंग के पास एक कोने में लाज एवं संकोच में दुबकी बैठी थी। अचानक उसके पेट में मरोड़ उठने लगा। लेकिन पेट दर्द बर्दाश्त न कर सकने के कारण दुल्हन ने वहीं पर शौच कर दिया।

परम भगत भयहारी तथा अपने भक्तों की मान-मर्यादा की रक्षा करने वाले भगवान शिव ने तत्काल उस मलमूत्र को सोने एवं हीरे में बदल दिया। धीरे-धीरे यह बात आस-पास के इलाकों भी फैल गई।

अब लोग जबर्दस्ती अपनी बहुओं को ले जाकर उस शिव मंदिर में शौच कराने लगे। तब भगवान शिव के कोप से वह समस्त गाँव ही सिरे से उलट गया व पूरा गाँव उस उलटी हुई धरती के नीचे दब कर एक टीला या देहाती शब्दों में डीह बन गया। और आज भी बहुत दूरी में, कई कोस में फैला हुआ वह टीला 'खैराडीह' के नाम से प्रसिद्ध है।


पौराणिक कथाओं एवं जनश्रुतियों में जो कहावतें सुनने को मिलती हैं। उससे यह स्पष्ट है कि धन सम्पदा एवं लक्ष्मी प्राप्ति में शिव पूजा के समान अन्य कोई उपाय नहीं है। जटाधारी भुजगपतिहारी चिताभस्मलेपी गंगाधर भगवान भोलेनाथ अपने तीसरे नेत्र की भीषण वेधनक्षमता वाली उग्र ज्वालामयी नेत्र ज्योति से ब्रह्माण्ड के पार तक के दृश्य को समग्र रूप से देख पाने में समर्थ है।

कंठ में हलाहल होने के कारण अन्दर से विकल किन्तु समस्त जगत को सुख-शान्ति प्रदान करने हेतु अति सूक्ष्म तथा विकट कारणों का भी निवारण कर देते हैं। आवश्यकता मात्र भगवान साम्बसदाशिव की शरण में जाने की है। वह भी विश्वास के साथ।

सदा छप्पन भोग एवं सोने-चाँदी से भगवान शिव की पूजा करने वाले राजा छविकृति भगवान शनि के प्रकोप से नष्ट हो गए। कारण यह था कि उन्होंने भगवान शिव की पूजा- श्रद्धा एवं विश्वास के साथ नहीं बल्कि अपनी वाहवाही, दिखावे के लिए ही किया था।

किन्तु क्रम से विधिपूर्वक हल्दी, चन्दन, बेलपत्र, धतूरा, पुष्प एवं जल चढ़ाने वाली प्रभावती के डर से शनि देव को तब तक वृष राशि में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं पड़ी। जब तक उसकी राशि का स्वामी शुक्र मीन राशि में गुरु के साथ और चन्द्रमा उसकी राशि में प्रवेश नहीं कर गया। तब तक शनि देव को इंतजार करना पड़ गया।

राजा छविकृति ने केवल उचित क्रम से ही पदार्थों को शिव लिंग पर चढ़ाया था। 'रुद्रनिधान' में क्रम निम्न प्रकार बताया गया है। इसी क्रम में पदार्थों को शिवलिंग पर चढ़ाने का विधान है।

'नीरसचन्दनबिल्वपत्रेत्रगंधानुलेपनं। हरिद्राखण्डं पुष्पार्पणमभिषेक गोरसेन च। अगरतगरकर्पूरादिक मध्वान्नं फल पयार्पणं। तदान्ते जलार्पणं तत्रान्ते च नीराजनम्‌। अपराधाय क्षमायाचना तत्प्रसादांगीयताम्‌। हर हर शिव ननादयित्वा हर कृपा खलु लब्धयेत्‌।'

किन्तु देखने में आया है कि प्रायः लोग पदार्थों को चढ़ाने का क्रम नहीं जानते हैं। तथा कुछ लोग हल्दी के बाद चन्दन तथा कुछ दही चढ़ाकर सिन्दूर चढ़ाने लगते हैं। वैसे तो भगवान शिव की चाहे जैसे पूजा करें, उन्हें शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। किन्तु क्या सब्जी खाकर, दाल पीकर, तब चावल में रोटी मसल कर खा सकते हैं? या चावल खाकर, हाथ मुँह धोकर फिर सब्जी और चटनी खायी जाती है? कितना रुचिकर खाना होगा? या फिर कितना सुन्दर उसका पाचन शरीर में होगा?

उसी प्रकार पूजा के पदार्थों को चढ़ाने का एक निश्चित क्रम बताया गया है। उस क्रम से न चढाने पर प्रेम एवं विश्वास का फल भले भगवान शिव दे दें। किन्तु पूजा का कोई फल प्राप्त नहीं होता है। भगवान शिव सभी का कल्याण करें।

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