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शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

महादेव की तलवार चंद्रहास रावण को कैसे मिली ।

 

आखिर ऐसा क्या हुआ, जो देवों के देव महादेव को अपनी तलवार चंद्रहास रावण को देनी पड़ी।

रावण महाकाल की तालाश करते करते कैलाश जा पहुंचा। और अपने वाहुवल से कैलाश को उठाने लगा । तब महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से उसे दबाया जिससे पहाड़ नीचे गिर गया। रावण समझ गया महादेव रूष्ट है । लंकेश ने महादेव को मनाने के लिए अपने 10 सिरों में से 1,1 करके हवन में प्रज्वलित करने शुरू कर दिये। जैसे ही वह 10 वां सिर काटने वाला था । तभी महादेव प्रकट हो गये । तब रावण महादेव से उनकी तलवार चंद्रहास मांग लेता है ‌। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश को छोड़कर सव का बंध कर सकती है । जिसमे इंद्र के वज्र के समान शाक्ति है । माता सीता के हरण के समय जटायु के पंख इसी चंद्रहास तलवार से काटे थे ।

क्या विष्णुकांता के फूलों को शिवलिंग पर चढ़ाया जा सकता हैं?

 

विष्णुकांता को अपराजिता भी कहा जाता है और ये फूल भगवान श्री राम और भगवान श्री विष्णु जी के साथ साथ भगवान भोलेनाथ जी को भी बहुत प्रिय है. ये दो रंगों मे मिलते हैं नीले और सफेद.

इसकी कोई पौराणिक कथा का तो ज्ञान नहीं परंतु भगवान भोलेनाथ जी को अपराजिता के फूल चढ़ाने के विषय में आपको बता सकता हूँ.

हिन्दू धर्म में अपराजिता के पौधे को काफी पवित्र माना जाता है और भगवान शिव के प्रिय पौधों में से एक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि जिस घर में ये पौधा सही जगह और दिशा में लगा हुआ होता है वहां कभी भी कोई समस्या नहीं आती है और शिव जी की विशेष कृपा बनी रहती है।

वहीं जब बात इस पौधे के फूलों की होती है तब इन्हें भी बहुत पवित्र माना जाता है और विशेष रूप से सोमवार के दिन इन फूलों से किए गए उपाय आपको कर्ज मुक्ति से लेकर विवाह में होने वाली देरी से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं.

यदि आपके पास अक्सर धन की कमी रहती है और पैसा व्यर्थ के कामों में व्यय होता है तो आप सोमवार के दिन अपराजिता का फूल भगवान शिव के चरणों या शिवलिंग के पास अर्पित करें और उसे उठाकर अपनी तिजोरी या पैसों के स्थान पर रखें। इस फूल को अच्छी तरह से सुखाकर एक सफेद कपड़े में लपेटकर अपने पर्स में रखें। इस उपाय से कभी भी धन की कमी नहीं होगी।

यदि आपके ऊपर बार-बार व्यर्थ का कर्ज चढ़ता है और उससे बाहर आना मुश्किल हो जाता है, तो आप सोमवार के दिन किसी बहती हुई नदी में अपराजिता के 5 फूलों को एक साथ प्रवाहित कर दें। इस उपाय से आपको जल्द ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी और धन के योग बनेंगे।

यदि आप लंबे समय से नौकरी के लिए प्रयास कर रहे हैं और अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही है, तो सोमवार के दिन नीले कपड़े में अपराजिता का फूल बांधकर पूजा के स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर के पास रखें। इसे ऐसी जगह रखें जिस पर किसी बाहरी व्यक्ति की नजर न पड़े। इस उपाय से जल्द ही आपको अच्छी नौकरी मिलेगी और व्यापार में लाभ होगा।

यदि आपके विवाह में किसी वजह से अड़चनें आ रही हैं, तो आप सोमवार के दिन 7 अपराजिता के फूलों को एक चुटकी नमक के साथ उस लड़के या लड़की के सिर के ऊपर से 7 बार घड़ी की सुई की दिशा में घुमाएं और बहते पानी में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से जल्द ही विवाह के योग बनेंगे।

यदि आपके घर में बिना वजह ही बीमारियां आ जाती हैं, तो सोमवार के दिन अपराजिता के तीन फूल शिवलिंग पर चढ़ाएं और इसे एक सफेद कपड़े में रखकर घर के किचन में ईशान कोण में रख दें। इस उपाय से आपको किसी लंबी बीमारी से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी।

तो सावन में भगवान शिव को जरूर चढ़ाएं विष्णुकांता के फूल.

हर हर महादेव शिव शंभु 🙏☘

धन्यवाद.

कामाख्या मंदिर के रोंगटे खड़े करने वाले रहस्य

 शुक्रवार : कामाख्या मंदिर के रोंगटे खड़े करने वाले रहस्य🔱


जादू- टोने की धरती, जननी… मायावी चेहरे… जहां समय चक्र के साथ पानी का रंग लाल हो जाता है… पहाड़ का रंग नीला। विनाशकारी वेग से डराने वाली लोहित नदी का प्रचंड स्वरूप भी ब्रह्मपुत्र में समाहित होकर शांत पड़ जाता है… नदियों के बीच इकलौते नद, ब्रह्मपुत्र का विस्तार यहां पहुंचकर अबूझ अनंत जैसा दिखता है।…

⚜️ जनश्रुतियां तो कहती हैं कि यहां की सिद्धियों में इंसान को जानवर में बदल देने की शक्ति है… कुछ के लिए ये भय है और बहुतों के लिए यहां की तांत्रिक सिद्धियों के प्रभावी होने की आश्वस्ति। इसलिए तो देवी की देदीप्यमान अनुभूति के साथ श्रद्धालुओं की सैकड़ों पीढ़ियां गुजर गई। आस्था के कई कालखंड अतीत का हिस्सा बन गए। मगर विराट आस्था की नगरी कामरूप कामाख्या, तांत्रिक विद्या की सर्वोच्च सत्ता के रूप में आज भी प्रतिष्ठित है।

⚜️ राजा दक्ष की बेटी सती ने पिता की मर्जी के खिलाफ़ शिव जी से शादी की थी। राजा दक्ष ने जब अपने यहां यज्ञ किया तो उसने शिव और सती को न्यौता नहीं दिया। इसके बावजूद सती अपने मायके गई जहां पिता दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक शब्द कहे। उनका उपहास उड़ाया। जिससे आहत सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर जान दे दी।

⚜️ अग्निकुंड में कूदने से पहले सती के नेत्र लाल हो गए… उनकी भौंहें तन गई…मुखमंडल प्रलय के सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त हो उठा.. असीम पीड़ा से तिलमिलाते हुए सती ने कहा-

`⚜️ ओह!… मैं इन शब्दों को कैसे सुन पा रही हूं… मुझे धिक्कार है। मेरे पिता दक्ष ने मेरे महादेव का अपमान किया… देवताओं तुम्हें धिक्कार है… तुम भी कैलाशपति के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं… जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को भस्म कर सकते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। पृथ्वी सुनो… आकाश सुनो… देवताओं तुम भी सुनो!… मैं अब एक क्षण जीवित नहीं रहना चाहती… मैं अग्नि प्रवेश लेती हूं।’

⚜️ सती की अग्नि समाधि से शिव ने प्रचंड रूप धारण कर लिया… देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर कैलाशपति उन्मत की भांति सभी दिशाओं को थर्राने लगे… प्राणी से लेकर देवता तक त्राहिमाम मांगने लगे… भयानक संकट देखकर भगवान विष्णु, अपने चक्र से सती के अंगों को काटकर गिराने लगे… जब सती के सारे अंग कटकर गिर गए तब भगवान शंकर संयत हुए।

⚜️ सती की अग्नि कुंड में समा जाने के बाद, भगवान शंकर समाधि में चले गए… इसी बीच तारकासुर के उत्पात से सृष्टि कांप उठी… उसका वध करने के लिए देवताओं ने भगवान शंकर की समाधि तोड़ने का यत्न किया..। देवताओं ने कामदेव को समाधि भंग करने के लिए भेजा लेकिन समाधि टूटने से क्रोधित महादेव ने कामदेव को भस्म कर दिया।

⚜️ जहां तक नज़रें जाती है, हर तरफ ब्रह्मपुत्र ही ब्रह्मपुत्र है… ब्रह्मपुत्र की धाराओं से घिरा ये स्थान अत्यंत मनोरम है… कामाख्या आने वालों का ये वैसे भी पसंदीदा जगह है…. लेकिन कौमारी तीर्थ पर आए श्रद्धालुओं के लिए भी ये जगह ख़ास है…. यहां बने शिव मंदिर का इतना महत्व है कि उमानंद के दर्शन के बिना कामाख्या के दर्शन का फल नहीं मिलता है।

⚜️ ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी के बीच बने इसी द्वीप पर समाधि में लीन भोले शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोला था… समाधि भंग होने से क्रोधित भगवान शंकर ने कामदेव को यहीं भस्म कर दिया था… इसलिए इस स्थान को भस्माचल भी कहा जाता है… कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना पर कैलाशपति ने कामदेव को पुनर्जीवन तो दे दिया लेकिन रूप और कांति नहीं आई।

⚜️ हे महादेव! हे कैलाशपति! आपने मेरे स्वामी कामदेव को जीवन तो दे दिया लेकिन उनकी कांति… कामदेव का उनका रूप नहीं रहा… हे महादेव कृपा करो…. तुम दयालु हो… मेरे स्वामी का तेज प्रदान करो।

⚜️ रति की प्रार्थना को महादेव ने स्वीकार कर लिया लेकिन उन्होंने देवी सती का मंदिर बनवाने की शर्त रखी… कामदेव ने मंदिर का निर्माण करवाया और कामदेव को रूप सौंदर्य मिला… इसलिए इस स्थान का नाम, कामरूप कामाख्या के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

⚜️ जिन इक्यावन स्थानों पर सती के अंग गिरे थे, वे स्थान ही आज शक्ति के पीठ माने जाते हैं… कामरूप कामाख्या में देवी का योनि भाग गिरा था जो देवी का जगत जननी स्वरूप है। नीलांचल पर्वत पर बने इस मंदिर को ऊपर से देखने पर ये शिवलिंग के आकार का दिखता है…. 51 शक्तिपीठों में इसे सर्वोच्च माना जाता है।… इसे कौमारी तीर्थ भी कहते हैं… इस शक्तिपीठ को असीम ऊर्जा और अथाह शक्ति का स्रोत माना गया है… इसलिए तंत्र साधना के लिए इसे ही सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है…

⚜️ मान्यता है कि जून के महीने में देवी रजस्वला होती हैं… इस दौरान यहां हर साल अम्बूवाची योग पर्व मनाया जाता है, जो कुंभ की तरह विशाल होता है… इस दौरान माता कामाख्या मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। साधक और तांत्रिक इस आयोजन के दौरान विभिन्न कर्मकांडों के जरिए दिव्य अलौकिक शक्तियों का अर्जन करते हैं।

⚜️ सूर्य, चंद्रमा, तारे। प्रकृति का ये प्रत्यक्ष दर्शन, क्या मानव के जीवन पर निर्णायक प्रभाव डालता है?… ग्रह –नक्षत्रों का मानव जीवन पर सीधा असर पड़ता है?… इसका अध्ययन ही ज्योतिष कहलाता है। भारत के प्राग ज्योतिषपुर यानी पूर्व के ज्योतिष केंद्र से बेहतर जगह भला कौन हो सकती है?

⚜️ चित्राचल पहाड़ी के नवग्रह मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। इसे ज्योतिषी विज्ञान का केंद्र माना जाता है। पूर्व मुखी मंदिर में पहुचने के लिए पूर्व से पश्चिम के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं… प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ राहु और बाईं तरफ केतु की प्रतिमा है… मंदिर की पहली दहलीज पर गणेश, शिव- पार्वती और श्रीकृष्ण की प्रतिमा है… तीन दीपक जलाकर सबसे पहले इन तीन प्रतिमाओं की पूजा होती है।

 ⚜️ दूसरी दहलीज के बाद एक अंधेरी गुफा दिखती है… यहां दिखने वाले गोलाकार मंदिर के धरातल पर नौ शिवलिंग बने हुए हैं… हर शिवलिंग की जललहरी का मुख विभिन्न दिशाओं की तरफ है… एक मुख्य शिवलिंग बीच में बना हुआ है… यहां पूजा या दर्शन के बाद बाहर जाते समय पीछे घूमकर देखना वर्जित है।

⚜️ कहते हैं कि ऐसा करने से पूजा का फल नहीं मिलता… यहां आने वाले भक्तों को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से संबंधित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।

⚜️ शुक्रेश्वर मंदिर :- सती की शक्ति और शिव की साधना की इस धरती की अपनी ही माया है… कहते हैं कि देवताओं से लेकर दैत्यों तक ने इस आदिशक्ति को स्वीकारा। दैत्यों के गुरू कहे जाने वाले शुक्राचार्य भी हस्तीगिरि पर शिव की आराधना करते थे। हाथी असम की पहचान हैं… काजीरंगा इसी पहचान को पुख्ता करता है… गुवाहाटी में हस्तीगिरि पर्वत का आकार भी हाथी की पीठ जैसा है… दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य मंदिर के शिवलिंग की दूर- दूर तक मान्यता है…

 ⚜️ भारत के विशाल शिवलिंगों में इसे गिना जाता है… शुक्रेश्वर घाट दाह संस्कार के लिए भी जाना जाता है… और यहां से सूर्यास्त के अद्भुत नज़ारे के लिए भी। जो शायद श्मशान के देवता शिव के साथ जीवन की संध्या का प्रतीक है।

🔱 जय श्री परशुराम

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