भगवान शिव ने पार्वति के इच्छा करने पर भी पार्वती को लंका नहीं दी | क्यों ?माँ पार्वती ने भव्य स्वर्ण महल में रहने के लिए महादेव से कहा | महादेव ने मना कर दिया तो पार्वती जिद पर आ गयी | महादेव ने पार्वती को सत प्रेमज्ञान देने के लिए स्वर्ण लंका बनाई तथा नए घर का पूजन कर्मकंडी ब्राहमण रावन से करवाया | रावन ने दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया शिव ने लंका अपने भक्त और ब्राह्मन देव को पूजन की दक्षिणा में लंका दे दि | शिव के पास जाकर शिव(कल्याण/सनातन) को मांगने के बजाय लंका(पतन/आधुतन) को मांग बैठा | रावन उस स्वर्णिम लंका को पाकर अभिमानी और घमंडी होता गया | आत्म ज्ञान को ढक अज्ञान का धुवा छाने लगा | अपने मान के घमंड(अहम) में अपनी बहन सूर्पनखा की बात का सत्य बिना जाने अन्याय युक्त हो अज्ञानता वश शिव के आराद्य श्री राम की भार्या सीता का हरण कर बैठा | वो माँ महा माया (लक्ष्मी) उसके पुरे आधुतन(विदेशी-राक्षस संस्कृति और उस अधर्म) सहित कुल अहम् के नाश का कारण बनी और पार्वती शिव सनातन बने रह गए | पार्वती (काली/महा शक्ति) को लंका में सीता (सतधर्म) की सेवा(रक्षi) करने का मोका मिला |
रावन का प्रेम वेलन की तरह टाइन व्यक्तित्व से हट कर भोतिक पदार्थ में चला गया, जो उनके कुल प्रेम के नाश का कारण बना | अत: वो प्रेम न रह कर पतन कारक मोह, मद, घमंड बन गया |
माँ पार्वती को शिव ने स्वयं (आत्म- परमात्म) प्रेम में रखा | यदि लंका पार्वती को देते तो पार्वती और शिव में घमंड आ जाता तथा पार्वती भी रावन की तरह शिव-पति धर्म से विमुख हो भोतिक मोह, इर्ष्या, मद, अज्ञान को प्राप्त हो परमात्मीय और सत गुण खो देती | प्रेम का व्यक्ति भाव न रह कर वास्तु-पद भाव हो जाता | जो उनके सत प्रेम का नाश कर असत उत्पन करता | अत: परम शक्ति भटके तो शिव(कल्याण) धर्म सनातन जाग्रत कर सत(श्रेष्ठता) को दिलाते है और पार्वती सदा शिव को सनातन शक्ति प्रदान कर शव से शिव बनाती है | इसलिए हम भी अपने राम-शिव की तरह इस वेलनटाइन (राक्षसधर्म/अधर्म/विदेशी संस्कृति/भौतिक अर्थात झूठेप्रेम ) को पसंद नहीं करते | बल्कि सनातन धर्म ज्ञान(अमर कथा) देकर शिव ने पार्वति को अमर कर दिया , सभी की अजर-अमर माता बना दिया
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