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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

मोबाइल री डब्बी 😁जदीऊं या मोबाइल री डब्बी दुनिया में आईगी,

  मोबाइल री डब्बी  
जदीऊं या मोबाइल री
डब्बी दुनिया में आईगी,
बाळपणों,जवानी और
बुढापों सब ने खाईगी !
रिया किदा करम अणी
'जीओ' वाळें पूरा किदा,
पकड़े तो खावें,छोड़े तो जावें     
जस्या हालात पैदा किदा !
छोटा मोटा सब अणी में
कई केउं अतरां वेण्डा वेरियांं,
साल भर का बाळक टाबर
अणीने देख न छाना रेरियां  !
गूगल बाबा में छोरा छोरी
सर्च करवां में अतरा रमग्या ,
क अणां री किताबां के
पड़ी पड़ी के धुळा जमग्या  !
हाँ, माना अणी डब्बी में
हर तरे को ज्ञान गणों है,
सदुपयोग करे तो ठीक
दुजूं ईंको नुकसान गणों है  !
सड़क पे एक्सिडेन्ट वेग्यों
घायल जोर सूं वारां मेळरियां,
दवाखाने कोई नी ले जावें
जो वें जोई फोटों खींचरीयां  !
सब घर में भड़े भड़े बैठ्या
कोई कणीऊं नी बोलरियां,
ठाई नी पड़े हुता क जागरियां
सब अणी डब्बी में लागरियां!
हुतां बैठा,खाता-पिता
मोबाइल  चलाईरियां,
हामें थाळी की रोटियां
कुत्तरां      लेजाईरियां  !
फेसबुक  पे  नवां  नवां
यार  दोस्त  कबाडरियां,
हागी का रिश्तेदार बापडां
रामा सामी की वाट नाळरियां  !
यों  अस्यों  कस्यो  राक्षस
धरती पर छाने-छाने आईग्यों,
घड़ी, रेडियो, टेप, टार्च,टीवी
सबने वनाई चबायां खाईग्यो !
जीनें देखें जोई कानडां में तार
गाल न,धुन में माथो हलारियां,
यूं लागे जाणे यें वेण्डा वेग्या 
क यें माख्योंमाळ उडाईरियां !
राम गोपाल केवें गणों राखो मती
मोबाइल रा डाब्बा सूं थां  हेत,
भणणों, कमाणों भूल जावोंलां
यों तो है  जीवतो जागतो प्रेत !!

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है?

*प्र0-मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है?*
उ0-बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?
आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -
*अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।*
*देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।*
इस श्लोक का अर्थ है *अनायासेन मरणम्* अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
*बिना देन्येन जीवनम्* अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।
*देहांते तव सानिध्यम* अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।
*देहि में परमेशवरम्* हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना करें गाड़ी ,लाडी ,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । *मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं* और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

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