*तिल के तेल के बारे में आपने बहुत कम सुना होगा। पता है क्यों...??*
तिल के तेल का प्रचार कंपनियाँ इसलिए नहीं करती क्योंकि इसके गुण जान लेने के बाद आप उनके द्वारा बेचा जाने वाला तरल चिकना पदार्थ जिसे वह तेल कहते हैं, आप एकदम लेना बंद कर देंगे और उनकी दुकान बंद हो जायेगी।
*जानिये तिल के तेल के चमत्कारी अद्भुत गुण...*
(1). तिल के तेल में इतनी ताकत होती है कि यह पत्थर को भी चीर देता है!
*प्रयोग करके देखें....*
आप पर्वत का पत्थर लीजिए और उसमे कटोरी के जैसा खडडा बना लिजिए, उसमे पानी, दूध, घी या तेजाब संसार में कोई सा भी कैमिकल, एसिड डाल दीजिए,
पत्थर में वैसा की वैसा ही रहेगा, कही नहीं जायेगा...
लेकिन अगर आप ने उस कटोरी नुमा पत्थर में तिल का तेल डाल दिया तो...
*उस खड्डे में भर दीजिये..*
2 दिन बाद आप देखेंगे कि तिल का तेल पत्थर के अन्दर भी प्रवेश करके, पत्थर के नीचे आ जायेगा।
*यह होती है तिल के तेल की ताकत.!*
इस तेल की मालिश करने से, ये हड्डियों को पार करता हुआ, हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।
तिल के तेल के अन्दर फास्फोरस होता है जो कि हड्डियों की मजबूती का अहम भूमिका अदा करता है।
तिल का तेल ऐसी वस्तु है जो अगर कोई भी भारतीय चाहे तो थोड़ी सी मेहनत के बाद आसानी से प्राप्त कर सकता है।
तब उसे किसी भी कंपनी का तेल खरीदने की आवश्यकता ही नही होगी।
तिल खरीद लीजिए और किसी भी तेल निकालने वाले से उनका तेल निकलवा लीजिए।
*तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है।*
*जो तिल से निकलता वह है तैल अर्थात तेल का असली अर्थ ही है "तिल का तेल"*
*तिल के तेल का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह शरीर के लिए औषधि का काम करता है..*
चाहे आपको कोई भी रोग हो यह उससे लड़ने की क्षमता शरीर में विकसित करना आरंभ कर देता है।
*यह गुण इस पृथ्वी के अन्य किसी खाद्य पदार्थ में नहीं पाया जाता।*
सौ ग्राम सफेद तिल से 1000 मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं।
बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।
काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।
तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता।
*आयुर्वेद चरक संहिता में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।*
तिल में विटामिन-सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं।
तिल विटामिन-बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।
इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते।
ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है।
यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है।
मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।
तिल का बीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।
यह कब्ज भी नहीं होने देता।
तिल के बीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व, जैसे कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।
तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
सीधा अर्थ यह है की यदि आप नियमित रूप से स्वयं द्वारा निकलवाए हुए शुद्ध तिल के तेल का सेवन करते हैं तो आप के बीमार होने की संभावना ही ना के बराबर रह जाएगी।
जब शरीर बीमार ही नही होगा तो उपचार की भी आवश्यकता नही होगी।
*यही तो आयुर्वेद है..*
*आयुर्वेद का मूल सिद्धांत यही है कि उचित आहार विहार से ही शरीर को स्वस्थ रखिए ताकि शरीर को औषधि की आवश्यकता ही ना पड़े।*
एक बात का ध्यान अवश्य रखिएगा कि बाजार में कुछ लोग तिल के तेल के नाम पर अन्य कोई तेल बेच रहे हैं.. जिसकी पहचान करना मुश्किल होगा।
ऐसे में अपने सामने निकाले हुए तेल का ही भरोसा करें।
यह काम थोड़ा सा मुश्किल ज़रूर है किंतु पहली बार की मेहनत के प्रयास स्वरूप यह शुद्ध तेल आपकी पहुँच में हो जाएगा।
जब चाहें जाएँ और तेल निकलवा कर ले आयें।
तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रोल को कम करके गुड कोलेस्ट्रोल यानि एच.डी.एल. (HDL) को बढ़ाने में मदद करता है।
यह हृदय रोग, दिल का दौरा और धमनी कलाकाठिन्य या एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) के संभावना को कम करता है।
*कैंसर से सुरक्षा प्रदान करता है...*
तिल में सेसमीन (Sesamin) नाम का एन्टीऑक्सिडेंट (Anti Oxidant) होता है जो कैंसर के कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के साथ-साथ है और उसके जीवित रहने वाले रसायन के उत्पादन को भी रोकने में मदद करता है।
*यह फेफड़ों का कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर और अग्नाशय के कैंसर के प्रभाव को कम करने में बहुत मदद करता है।*
*तनाव को कम करता है...*
इसमें नियासिन (Niacin) नाम का विटामिन होता है जो तनाव और अवसाद को कम करने में मदद करता है।
*हृदय के मांसपेशियों को स्वस्थ रखने में मदद करता है-*
तिल में ज़रूरी मिनरल जैसे कैल्सियम, आयरन, मैग्नेशियम, जिन्क, और सेलेनियम होता है जो हृदय के मांसपेशियों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है और हृदय को नियमित अंतराल में धड़कने में मदद करता है।
*शिशु के हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है-*
तिल में डायटरी प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों के हड्डियों के विकसित होने में और मजबूती प्रदान करने में मदद करता है।
उदाहरणस्वरूप 100 ग्राम तिल में लगभग 18 ग्राम प्रोटीन होता है, जो बच्चों के विकास के लिए बहुत ज़रूरी होता है।
*गर्भवती महिला और भ्रूण (Foetus) को स्वस्थ रखने में मदद करता है-*
तिल में फोलिक एसिड होता है जो गर्भवती महिला और भ्रूण के विकास और स्वस्थ रखने में मदद करता है।
*आयुर्वेद के अनुसार इस तेल से मालिश करने पर शिशु आराम से सोते हैं।*
*अस्थि-सुषिरता या ओस्टीयोपोरोसिस (Osteoporosis) से लड़ने में मदद करता है-*
तिल में जिन्क और कैल्शियम होता है जो अस्थि-सुषिरता से संभावना को कम करने में मदद करता है।
*मधुमेह के दवाईयों को प्रभावकारी बनाता है-*
डिपार्टमेंट ऑफ बायोथेक्सनॉलॉजी विनायक मिशन यूनवर्सिटी, तमिलनाडु के अध्ययन के अनुसार यह उच्च रक्तचाप को कम करने के साथ साथ इसका एन्टी ग्लिसेमिक प्रभाव रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को 36%कम करने में मदद करता है।
जब यह मधुमेह विरोधी दवा ग्लिबेक्लेमाइड (Glibenclamide) से मिलकर काम करता है।
इसलिए टाइप-2 मधुमेह (Type 2 diabetic) रोगी के लिए यह मददगार साबित होता है।
*दूध के तुलना में तिल में तीन गुना कैल्शियम रहता है।*
इसमें कैल्शियम, विटामिन-बी और ई, आयरन और ज़िंक, प्रोटीन की भरपूर मात्रा रहती है और कोलेस्टरोल बिल्कुल नहीं रहता है।
*तिल का तेल ऐसा तेल है, जो सालों तक खराब नहीं होता है, यहाँ तक कि गर्मी के दिनों में भी वैसा की वैसा ही रहता है।*
तिल का तेल कोई साधारण तेल नहीं है।
इसकी मालिश से शरीर काफी आराम मिलता है।
यहां तक कि लकवा जैसे रोगों तक को ठीक करने की क्षमता रखता है।