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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

सोच मे कितना अंतर ?

स्वामी विवेकानंद/प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: दोनो की सोच मे कितना अंतर ?
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स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण दिया था और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 8 जुलाई 2005 को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने पर व्याख्यान दिया था ।

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण दिया था । भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानेद को कहा जाय, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने सदियों की गुलामी में जकड़े भारतवासी को मुक्ति का रास्ता सुझाया। जन-जन के मन में भारतीय होने के गर्व का बोध कराया।

स्वामी विवेकानंद ने मानव समाज को अन्याय, शोषण और कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने का साहस प्रदान किया और पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में दिशाभ्रमित भारतीय नौजवानों के मन-मस्तिष्क में स्वदेश-प्रेम एवं हिन्दुत्व-जीवन दर्शन के प्रति अगाध विश्वास पैदा किया। अपनी विद्वतापूर्ण एवं तर्क आधारित भाषण से दुनिया भर के बुध्दिजीवियों के बीच भारत के प्रति एक जिज्ञासा पैदा की।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 8 जुलाई 2005 को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों ने हमें सभ्यता सिखाई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजों के पक्ष में दिए गए बयान की भारत में कड़े शब्दों में चौतरफा निंदा हुई थी।

हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों ने हमें सभ्यता सिखाई। क्या अंग्रेजों के यहां आने से पहले हम असभ्य थे?

स्वामी विवेकानंद में जीवन के उच्च आदर्शों के उदाहरण मिलते हैं जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंग्रेजों के पक्ष में दिए गए व्याख्यान/बयान छोटी सोच को दर्शाता है । वैसे, देखा जाए तो यह पूरा मामला सोच के अंतर को ही दिखाता है।

भारतीय नवजागरण का अग्रदूत और भारत के युवाओ के पथ प्रदर्शक, महान दार्शनिक व चिंतक स्वामी विवेकानंद जी को शत्-शत् नमन जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

तो वो है माँ का प्यार

एक जवान बेटा अपनी बुढी माँ के पास बेठा था...!!
उसकी माँ ने एक पेड के ऊपर बैठे पक्षीकी तरफ इशारा करके पुछा: बेटा..! वो क्या है..?
बेटा: माँ वो कौवा है..
...
एक बार फिर माँ पुछा: बेटा वो क्या है...??
बेटा: माँ वो कौवा है कौवा..!
एक बार फिर माँ ने पुछा: बेटा वो क्या है...???
बेटा गुस्सा होकर: माँ तु बुढी हो गई हो...!
अब तुम्हारे दिमाग को जंग लग गया है..!
तुम पागल हो गई हो..
मैनेँ कितनी बार बोला की वो कौवा है..!!
फिर भी तुम पुछती जा रही हो..??

माँ की आँखो से आँसु निकल आये..!!!
फिर माँ ने आँसु पोछकर भारी आवाज मेँ
बोली: बेटा..! जब तु छोटा था ना तो,
तुने मुझे 30 बार पुछा कि माँ वो क्या है...?
तो मैनेँ तीस बार तेरा सर चुमकर कहा बेटा वो कौवा है
कौवा है..कौवा है...!!!

मित्रों, दुनिया मेँ सबसे मीठा कोई है तो वो है माँ का प्यार और सबसे कडवा माँ के आँसु इस बात का हमेशा ध्यान रखना....!!!

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