अगर
आप इतिहास देखोगे तो पाओगे कि मुगलों का राज्य और प्रभाव उत्तर भारत तक ही
सीमित था । हां , ये अलग बात है कि उन्होंने दक्कन और दक्षिण भारत को
जीतने की कोशिश की लेकिन वो कभी वहां उत्तर भारत के जैसे प्रभाव नहीं जमा
पाए थे इसलिए हम आज भी देखते है कि साऊथ इंडिया के मन्दिर और संस्कृति काफी
हद तक सुरक्षित हैं नॉर्थ इंडिया की तुलना में।
और
उत्तर भारत में भी उनका राज्य और प्रभाव बना रहा था क्योंकि उन्हें "
राजपूतों का समर्थन " था जो कि उत्तर भारत के अधिकांश भाग पर अपने राज्यों
में राज करते थे ।
औरंगजेब
के समय मुगल सत्ता अपने चरम पर थी और उसने हिंदुओं को उन्हीं के देश में
सेकंड क्लास सिटीजन बनाने की कोशिश की । उसने जैसे ही जजिया लगाया और
मन्दिर तोड़ने शुरु किए तो सारे सोए हुऐ हिंदु जाग गए और ये कोई राजा
महाराजा नहीं थे इनमें आम लोग भी शामिल थे
और
इसका उदाहरण हैं _ " जाट विद्रोह " वो किसान थे जो दिल्ली के आस पास
भरतपुर मथुरा में रहते थे। उन्होंने जजिया और मथुरा के मन्दिर तोड़ने के
गुस्से में विद्रोह किया ।
ऐसे ही विद्रोह सिक्ख , सतनामी , राजपूत , मराठों ने किए और औरंगजेब की जिंदगी इन्हीं विद्रोहाें को दबाते हुऐ निकली ।
यहां सबसे इंटरेस्टिंग हिस्सा है "
"राजपूतों का विद्रोह "
अगर
मैं मेवाड को न शामिल करूं तो वो राजपूत ही थे जिन्होंने मुगल शासन को
भारत में मजबूत किया। उसे फैलाया और उसकी रक्षा की और इसमें उनका स्वार्थ
था _ वो सत्ता के भागीदार थे।
लेकिन औरंगजेब के आते ही सब बदल गया
उसने
सबसे पहले टारगेट किया जोधपुर को जहां उसने अजीत सिंह को मुस्लिम बनाने की
कोशिश लेकिन यहां महाराणा राजसिंह ने फिर से अपने वंश का गौरव बढ़ाया और
जोधपुर की रक्षा के लिए उन्होंने दुर्गादास राठौड़ के साथ मिलकर जोधपुर और
मेवाड को एक साथ संगठित किया और मुगलों को रोक दिया ।
ये
राजपूतों के विद्रोह की शुरुआत थी लेकिन दुर्भाग्य ये था कि असमय महाराणा
राजसिंह का १६८० में निधन हो गया और ये विद्रोह कमजोर पड़ गया और फिर अजीत
सिंह के दुर्गादास के प्रति शक ने इसे और कमजोर किया ।
लेकिन यहां से इतना साबित हो चुका था कि अब राजपूतों और मुगलों के रिश्तों की जड़ कमज़ोर हो चुकी हैं।
इसी
विद्रोह का दूसरा भाग शुरू होता है औरंगजेब की मौत के तुरंत बाद जब बहादुर
शाह को दिल्ली मिली तो उसने राजपूतों को निशाना बनाया और घटनाक्रम में
उसने वहां टारगेट किया जो राजपूतों को मुगलों से जोड़ता था - जयपुर के
कचवाह
ये उसकी सबसे बडी भूल थी । उसने जय सिंह से जयपुर छीन लिया और उसे एक मामूली जागीर बना दिया और फिर उसने जोधपुर को घेर लिया ।
इससे
वो हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ _ राजपूताना के तीन सबसे बडे़ राज्य मुगलों
के खिलाफ़ एक संघटन में आ गए मेवाड, जोधपुर और जयपुर । इसके लिए महाराणा की
बेटी की शादी जय सिंह से हुई जिसका बेटा जयपुर का शासक होगा ऐसी संधि हुई ।
विद्रोह की अगुवाई की दुर्गादास राठौड़ और जय सिंह ने
इसके बाद इनकी सेना एक साथ आकर मुगलों पर टूट पड़ी और एक के बाद एक जोधपुर और आमेर को वापस से जीत लिया गया ।
इसी दौर मुगलों की तरफ़ से संघ को तोड़ने की और लालच देने की कोशिश की गई लेकिन इस बार जय सिंह ने पीठ नहीं दिखाई ।
मुगलों ने फिर से सैयद हुसैन और चूड़ामन जाट के साथ सेना भेजी ( ये इंटरेस्टिंग है कि कैसे जाट विद्रोही किसानों से शासक बने )
लेकिन जयसिंह चूड़ामण को अलग करने में सफल रहा और राजपूतों ने सांभर में मुगलों पर हमला कर सांभर में मुगलों के खजाने को लूट लिया ।
फिर सांभर का युद्ध ( इनके बारे में आपको एनसीईआरटी में नहीं मिलेगा ) हुआ
जिसमें राजपूतों में मुगल सेना को एक निर्णायक हार दी और फौजदारों समेत
पूरी मुगल सेना का सफाया कर दिया और इसमें ३००० से ज्यादा मुगल सैनिक मारे
गए । ( इस विद्रोह में कई लड़ाइयां हुई सबको एक उत्तर में लिखना संभव नहीं )
राजपूतों
ने आगे बढ़कर कर रेवाड़ी और नारनौल में अपनी चौकी बैठा दी और राजपूतों ने
मुगलों को नीचा दिखाने के लिए दिल्ली , आगरा तक रैड की ।
जय सिंह ने इसी दौरान मराठों , बुंदेलों को भी पत्र लिखे विद्रोह को हर राज्य में फैलाने के लिए ( जो कि सबसे दिलचस्प है )
जब मुगल बादशाह को अपनी हार का पता लगा तो उसने राजपूतों की मांग मान ली और औरंगजेब के कब्जे किए क्षेत्र और उनके राज्य लौटा दिए ।
लेकिन
इस पूरे घटनाक्रम से ये बात साफ हो गई अन्य राज्यो के लिए कि जो राजपूत
इनकी जड़ और आधार थे इनके राज्य के वो अब इनसे दूर हो चूके हैं और इसी के
बाद मराठों ने रही सही कसर पूरी कर दी ।
मेरा
मानना ये ही है कि ये ही विद्रोह था जिसने मुगलों को खत्म किया वरना अगर
राजपूत इनसे जुड़े रहते तो कभी भी उत्तर भारत में इनका प्रभाव कम नहीं होता
।
इति।