*फसल सुरक्षा रसायनों के दुष्परिणामों से सबक लेकर यदि आज मनुष्य नहीं सुधरा तो मानव सभ्यता का अंत निकट है।*
प्रकृति में केंचुआ, तितली, मधु मख्खी, चिड़िया, मेढ़क, गिद्ध, एवं लाभ दायक सूक्ष्म जीवों की महत्ता को मनुष्य ने जब से नकारा है तब से उसके जीवन मे संकट बढ़े है, फसलों की उत्पादन लागत बढ़ी है, खाद्यान्न, पानी एवं हवा में प्रदूषण बढ़ा है, कृषि योग्य भूमियों में जीवांश कार्बन बनने की प्रक्रिया बन्द हुई है, भूगर्भ जल स्तर का दोहन बढ़ा है। रसायनों के प्रयोग से प्रकृति की व्यवस्था के नाजुक हालत का यदि ईमानदारी से मूल्यांकन किया जाए तो ज्ञात होता है कि अब इस पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन की खुशियों का अंत होने वाला है।
*यदि समय रहते इस विषय पर विचार नहीं हुआ तो मानव सभ्यता खतरे में पड़ सकती है।*
" *केंचुआ"*
कृषि योग्य भूमियों में प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगभग 5 केंचुआ हुआ करता थे। प्रति हेक्टर इनकी संख्या लगभग 50000 होती थी।
अनुकूल परिस्थितियों में एक केंचुआ जिसका बजन 3 ग्राम होता है प्रति दिन अपने बजन के बराबर जैव पदार्थ खाकर उसे ह्यूमस में बदल देता था। वर्षा काल के 90 दिन केंचुओं के लिए अनुकूल मौसम रहता है। खेत मे पाये जाने वाले केंचुए प्रति वर्ष खेत मे उपलब्ध जैव पदार्थ की मात्रा के अनुसार 15 से 20 कुंटल जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ाते थे।
कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि नीतियां केंचुए की इस सच्चाई को जानते है तभी किसानों को वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए अनुदान दे रही है।
" *तितलियां एवं मधु मख्खियां"*
पर परागित फसलों में परागण की क्रिया को तितलियां एवं मधु मख्खियां ही सम्पन्न करती है। यह बात कृषि विषयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती है।
1950 से 80 के दशक के मध्य गांवों के पुराने वृक्षो में मधु मख्खी के छत्ते देखे जाते थे, उस समय हर पुष्प पर तितलियां मंडराया करती थी। परन्तु फसलों को कीटो से सुरक्षा के नाम पर प्रयोग किये गए रसायनों ने तितलियों एवं मधु मख्खियों को नष्ट कर डाला है।
आज नदी, नालों, सड़को एवं जंगलों के अतरिक्त तितलियां एवं मधु मख्खियां कहीं दिखाई नहीं देती है।
पर परागित फसलों जैसे मिर्च, टमाटर, बैगन, भिंडी, चना, मटर, मसूर, अलसी, उर्द मूंग आदि की उपज घटने का मुख्य कारण यही है।
" *मेढ़क"*
मेढ़क एक ऐसा कीट भक्षी प्राणी था जो गांव, खलिहान एवं खेतों में रहकर मनुष्य में रोग फैलाने वाले मच्छरों पर नियंत्रण बनाये रखता था एवं फसलों में लगने वाले कीटो से फसलों को भी सुरक्षित रखता था। एक अध्ययन के अनुसार वर्षा ऋतु में प्रति हेक्टर 30 से 40 मेढ़क दिखाई दे जाते थे। गांव के प्रत्येक घर के बाहर बने पानी के गड्ढे में 10 से 20 मेढ़क मौजूद रहते थे। गांव के जलासयो में तो मेढकों की संख्या को गिना जाना मुश्किल था। परन्तु आज मेढ़क कहीं भी दिखाई नहीं देते है।
मेढ़क प्रकृति में पाये जाने वाले हानि कारक कीटों को खाकर प्रकृति में संतुलन बनाये रखता था। मेढ़क वर्षा ऋतु बहुत अधिक सक्रिय रहता था, शरद ऋतु में कम एवं ग्रीष्म ऋतु में सुसुप्ता अवस्था मे रहता था।
परन्तु फसल सुरक्षा रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से आज मेढ़क हमारे बीच नहीं बचा है इसी लिए मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है एवं फ़सलो मे कीटो का प्रकोप बढ़ रहा है।
" *पक्षी"*
गौरैया, कौवा, कबूतर, तोता, मैना, बुलबुल, पडखी, सारस, हंस, गिद्ध, मोर, बगुला जैसे अनेक पक्षी बहुत अधिक संख्या में पाये जाते थे। यदि धूप में आनाज सुखाना होता था तो परिवार के एक व्यक्ति को चिड़ियों से आनाज की रखवाली के लिए बैठना पड़ता था। जब कोई पशु मर जाता था और उसे गांव के बाहर फेंक दिया जाता था तो गिद्ध उस पशु को कुछ ही घण्टो में खाकर नष्ट कर दिया करते थे।खेत की जुताई के समय अथवा खेत मे पलेवा के समय सैकड़ो बगुला पक्षी फसलों में क्षति पहुंचाने वाले कीटों को खाकर हमारी फसलों की सुरक्षा करते थे।
परन्तु आज फसल सुरक्षा रसायनो के बढ़ते प्रयोग से हमारे इनमें से बीच कोई पक्षी नहीं बचा है।
चीनी गोरिया को मारा और इस किसान ने कीट प्रबंधन के लिए गौरैया को अपने घर में पालना शुरू किया देखिए वीडियो
https://youtu.be/Dq7UqlgurDo
" *भूमि के लाभ दायक सूक्ष्म जीव"*
भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में एवं अघुलनशील पोषक तत्वों को घुलनशील बनाने में तथा नाना प्रकार की बीमारियों से फसलों को बचाने मे लाभ दायक सूक्ष्म जीवणुओ की उपयोगिता आज देश के समस्त कृषि वैज्ञानिक सहमत है तभी तो विभिन्य प्रकार के बायो फर्टिलाइजर के प्रयोग की सलाह किसानों को दी जाती है।
आज से चालीस वर्ष पूर्व जब लोग खेतों में शौच क्रिया के लिए जाते थे तब मानव मल एक दो दिन में ही ह्यूमस में बदल जाता था क्योंकि तब हमारी भूमियों में लाभदायक जीव केंचुए एवं अन्य सूक्ष्म जीव पर्याप्त संख्या में थे। सभी को यवद है कि फसलों में बीमारियां बहुत कम लगती थी क्योंकि फसलों में लगने वाली बीमारियों पर प्रकृति के लाभ दायक जीव नियंत्रण बनाये रखते थे।
परन्तु विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के इस युग मे पढ़े लिखे मनुष्य ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए मानवीय मूल्यों को एवं प्रकृति की व्यवस्था को नजरंदाज कर दिया है।
और देश के किसानों को यह समझाने में सफल रहा है कि बिना रसायनों के खेती सम्भव नहीं है। स्वार्थी एवं लालची मनुष्य दीमक को दुश्मन बताता है केंचुआ को मित्र बताता है। तितली एवं मधु मख्खी को मित्र बताता है और इल्ली एवं माहू को दुश्मन बताता है।
आज हमारी अज्ञानता ने हमारे जीवन मे काम आने वाले अनेकों जीव जंतुओं को प्रकृति से समाप्त कर दिया है।
आज देश मे बिकने वाले प्रत्येक कीट नाशक रसायन पर प्रतिबंध है किंतु प्रतिबंध लगाने में जिस चतुराई को अपनाया गया है उससे प्रतिबंध के बावजूद भी सभी रसायन धड़ल्ले से बिक रहे है।
वास्तव में कीट नाशक रसायन के नाम पर हम प्रकृति को नष्ट करते जा रहे है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि मनुष्य के जीवन की खुशियां नष्ट होती जा रही है।
यदि फसल सुरक्षा रसायनों के प्रयोग को बन्द करने में देर कि गयी तो मानव सभ्यता खतरे में पड़नी तय है।