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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

Statue of Equality - आचार्य रामनुजाचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा

'Statue of Equality' समानता को समर्पित मिशन



100 करोड़ में तैयार हुई आचार्य रामनुजाचार्य की सबसे बड़ी प्रतिमा , पूरे प्रोजेक्ट की लागत 1400 करोड़ ।

हैदराबाद में स्थापित की गई आचार्य रामानुजाचार्य की यह प्रतिमा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बैठी हुई प्रतिमा है , जिसे बनाने में 9 महीने का वक़्त लग गया ।
स्वामी रामनुजाचार्य की विशालकाय प्रतिमा का लोकार्पण देश के पीएम नरेंद्र मोदी इसी साल फरवरी में करेंगे , इस स्टैचू के साथ 108 मंदिर का निर्माण किया गया है , इसी के साथ आचार्य रामनुजाचार्य की एक छोटी प्रतिमा भी बनाई गई है जिसमे 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है । इस जगह को स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी ( Statue of Equality ) नाम दिया गया है . इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 1400 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं ।

स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को शास्त्रों के तहत बनाया गया है स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को बनाने में 18 महीने का समय लगा है , इसके लिए मूर्तिकारों ने कई डिज़ाइन तैयार किए और उनकी स्कैनिंग करने के बाद सबसे बेस्ट मूर्ति को विशाल रूप दिया गया ।
 
इस प्रतिमा की ऊंचाई 108 फ़ीट है , जबकि प्रतिमा में लगे त्रिदण्डम की उंचाई 138 फ़ीट है । टोटल प्रतिमा की हाइट 216 फ़ीट है । आचार्य रामानुजाचार्य की प्रतिमा में 5 कमल पंखुडिया , 27 पद्म पीठम , 36 हाथी , और प्रतिमा तक पहुंचने के लिए 108 सीढिया बनाई गई हैं ।


जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?

एक बात  वह है दवा निर्माण में उपयुक्त कच्चे माल की गुणवत्ता
एक ही साल्ट 10 हजार रु से लेकर 1 लाख रु तक की थोक कीमत में मिल सकता है अर्थात दवाइयों के साल्ट के थोक मूल्य में बहुत अंतर पाया जाता है जिसमें कहीं न कहीं गुणवत्ता जरूर मायने रखती है।
उदाहरण के लिए इस समय
पैरासिटामोल पाउडर का थोक मूल्य रु200-1200 के बीच है.

सहज सामान्य सिद्धांत (बेसिक थंब रूल) से समझा जा सकता है कि कौन मंहगा और उच्च गुणवत्ता वाला साल्ट प्रयोग करते होंगे और क्यों - जबकि दूसरे लोग क्यों सस्ता साल्ट यूज करते होंगे। पहले को अपनी साख बचाए रखना मुख्य उद्देश्य है भले उत्पाद महंगा क्यों न हो जाए जबकि दूसरे को बाजार में अपनी जगह बनानी है जिसके कारण लागत को घटाया जाता है कि खुदरा व्यापारियों को ज्यादा कमीशन और उपभोक्ता को कम कीमत से लुभाया जा सके।

बाजार से आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वो बाजार की तरह व्यवहार न करके मानवीयता और ईमानदारी का पालन करे?
हर जगह उद्यमी और निवेशक तो एक आम इंसान ही है जिनकी औरों की तरह ही जरूरतें और ख्वाहिशें हैं।
सबसे पहले यह समझना होगा कि पेटेंटेड मेडिसिन व नॉन-पेटेंटेड (जेनेरिक) मेडिसिन और ब्रांडेड मेडिसिन व नॉन-ब्रांडेड मेडिसिन ये दो नहीं बल्कि तीन चीजें हैं। राजनीति ने इन्हें गोलमाल कर रखा है।

पेटेंटेड मेडिसिन बिना लाइसेंस के कोई अन्य कंपनी नहीं बना सकती लेकिन पेटेंट अवधि खत्म होने के बाद उसे (जेनेरिक) कोई भी बना सकता है मतलब ब्रांड या नॉन-ब्रांड सब। तो मुद्दा ही नहीं क्योंकि जब पेटेंटेड मेडिसिन बिना पेटेंटधारी की अनुमति के कोई अन्य बना ही नही सकता तो सस्ता या महंगा कैसे होगा? मुद्दा है ब्रांडेड और नॉन-ब्रांडेड का जिसमे गुणवत्ता मायने रखती है।

सॉल्ट के थोक मूल्य के अलावा अन्य कारक जैसे श्रम, संयंत्र और मशीनरी, पैकिंग मेटेरियल, हाइजीन, दवा निर्माण में प्रयुक्त अन्य सामग्री (बॉन्डिंग, थिकनिंग, कोटिंग एजेंट आदि), छपाई, अनुकूल भंडारण और सुरक्षित परिवहन आदि में भी खर्च को घटाया बढ़ाया जा सकता है।

बाकी बचा औषधियों की गुणवत्ता के ऊपर सरकारी नियंत्रण, तो उस पर लिखने की क्या जरूरत? सबको पता है कि सरकारी तंत्र कैसे काम करता है।

बाकी ये मैने नहीं लिखा कि नॉन-ब्रांडेड दवा असर नहीं करेगी। मेरा कहने का मतलब है कि राजनीति और बाजार के दांव-पेंचों में फंसे बगैर अपनी हैसियत के अनुसार अच्छे डॉक्टर की सलाह माने क्योंकि कोई भी डाक्टर आपका दुश्मन नहीं है, हां थोड़ा बहुत लालच सबमें होता है; बाकी जमीन जायदाद बेच कर कुछ हासिल नहीं होता।

मानव हृदय इतना प्रभावशाली अंग

 

ये हैं दिल के बारे में कुछ मजेदार तथ्य:

  1. आपन ऊपर के एनिमेशन में जो देख रहे हैं वह आपके जीवन के दौरान लगभग 2.5 बिलियन बार होता है।
  2. एक वयस्क व्यक्ति का दिल एक बंद मुट्ठी के आकार का होता है और इसका वजन सिर्फ 340 ग्राम होता है। इसे 4 भागों में बांटा गया है: 2 अटरिया और 2 निलय।
  3. यह प्रत्येक धड़कन के साथ 85 ग्राम रक्त पंप करता है, जो एक दिन में 9,000 लीटर से अधिक के बराबर है, एक मिनट में हृदय शरीर में 5 लीटर रक्त पंप करता है; एक घंटे में, यह 400 लीटर है।
  4. एक महिला का दिल पुरुषों की तुलना में थोड़ा तेज होता है। 1 मिनट में, यह औसतन 8 बीट अधिक होता है।
  5. मानव हृदय प्रतिदिन 30 किलोमीटर तक ट्रक की आपूर्ति करने में सक्षम ऊर्जा उत्पन्न करता है। यदि आप जीवन भर उत्पन्न ऊर्जा की गणना करते हैं, तो आप चंद्रमा तक और वापस पृथ्वी पर आ सकते हैं।

धन्यवाद🙏

यूनिकॉर्न किस जानवर को कहते हैं? ये किस देश में पाए जाते हैं?

 

यूनिकॉर्न एक एकसिंगा पशु है और वर्तमान में स्कॉटलैंड का राष्ट्र पशु है

"इकसिंगा एकमात्र ऐसा पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।" पहले इसे एक मनगढ़ंत पशु समझा जाता था मगर २०१६ में हुए शोध और अमेरिकन जर्नल ऑफ अप्लाइड साइंसेज में प्रकाशित लेख के हिसाब से वेस्टर्न सर्बिया, कजाकिस्तान आदि में ये पाए जाते थे जो कि विलुप्त होती प्रजाति हैं।


मूल रूप से गरीबों के व्यंजन था लेकिन अब उस व्यंजन तक केवल अमीरों की ही पहुंच है?


 

राजस्थान की एक प्रसिद्ध सब्ज़ी है, कैर सांगरी ! एक ज़माने में यह सिर्फ़ ग्रामीण क्षेत्रों के भोजन का हिस्सा था ! इसे ग़रीबों की सब्ज़ी कहा जाता था ! समय ने करवट ली , लोगों तक इसके फ़ायदे पहुँचे और आज यह सब्ज़ी 1200 से 2000 रुपये किलो के भाव में बिकती है और, इसे राजस्थान का मावा कहा जाने लगा !

आज इस सब्ज़ी को अमीरो की शादी में मुख्य स्थान मिला हुआ है !

रेगिस्तान में हरी सब्ज़ी बहुत कम पाई जाती हैं अतः पहले ज़्यादातर सुखे स्थानों पर यही बनाई जाती थी !

मुख्यतया इसकी पैदावार राज्य के पश्चिम क्षेत्र में होती है !राजस्थान में कैर - सांगरी की सब्जी प्रसिद्ध है । कैर और सांगरी दोनों अलग - अलग चीजें हैं । कैर का फल होता है, सांगरी की फलियाँ ।कई जगह इसमें तीन चीज़ें अमचूर ,गोंदा और सुखी लाल मिर्च मिलाकर पंचकुटा नाम से भी बनाया जाता है !

सांगरी की फलियाँ खेजड़ी यानी शमी के वृक्ष पर उगती हैं।

इसमें किसी प्रकार का खाद का प्रयोग नहीं होता है, इसलिए यह पूरी तरीके से शुद्ध सब्जी मानी जाती है। ! ग्रीष्मकालीन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में कैर, सांगरी जब यह ताजा होती है, तब इससे आचार बनाया जाता है, तो वहीं इसे सुखाकर सब्जी बनाई जाती है !

इसमें विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन, और कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ! यह एंटी ऑक्सीडेंट युक्त है, जो कि विभिन्न रोगों से बचाती है। ! बता दें कि कैर के डंठल से चूर्ण भी तैयार किया जाता है, जो कि खांसी से बहुत जल्द राहत दिलाता है ! कैर की छाल से बना चूर्ण पेट को साफ रखता है, साथ ही कब्ज की समस्या दूर करता है ! इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है !

स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए?

 

दंडवत प्रणाम को सभी प्रकार के प्रणामों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है लेकिन हमारे शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करने का सर्वथा निषेध है। शास्त्रानुसार स्त्रियों को कभी भी किसी के भी सम्मुख दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए।

आजकल अनेक स्थानों पर देखने में आता है कि स्त्रियां भी मंदिरों, पूजा स्थलों व परिक्रमा आदि में षाष्टांग दंडवत प्रणाम करती हैं, जो शास्त्रानुसार अनुचित है।

ऐसा क्यों है इसका समाधान हमें 'धर्मसिन्धु' नामक ग्रंथ में मिलता है, जिसमें स्पष्ट निर्देश है-

'ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्।

वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।'

- अर्थात् ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों का वक्षस्थल (स्तन) यदि सीधे भूमि (बिना आसन) का स्पर्श करते हैं तो पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। इस असहनीय भार को सहने के कारण वह इस भार को डालने वाले से उसकी श्री (अष्ट-लक्ष्मियों) का हरण कर लेती है।

ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों के वक्षस्थल को पृथ्वी पर सीधे स्पर्श कराने वाले की अष्ट-लक्ष्मियों क्षय होने लगता है। अत: शास्त्र के इस निर्देशानुसार स्त्रियों को दंडवत प्रणाम कभी नहीं करना चाहिए।

स्त्रियों को दंडवत प्रणाम के स्थान पर घुटनों के बल बैठकर अपना मस्तक भूमि से लगाकर ही प्रणाम करना चाहिए एवं ब्राह्मणों, शंख, शालिग्राम भगवान को, धर्मग्रंथ (पुस्तक) को सदैव उनके यथोचित आसन पर ही विराजमान कराना चाहिए

मकर संक्रांति की 8 पौ‍राणिक घटनाएं

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*मकर संक्रांति की 8 पौ‍राणिक घटनाएं...*

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मकर संक्रांति का पर्व प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाता है।  
आइए जानते हैं कि आखिर मकर संक्रांति के दिन कौन सी *8 पौराणिक घटनाएं* घटी थी *जिसके चलते मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है*।
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*1.) गंगा जा मिली थी गंगा सागर में :*
 मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथजी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से ही माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।'

कथा के अनुसार एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और अपने अश्व को विश्व-विजय के लिए छोड़ दिया। इंद्रदेव ने उस अश्व को छल से कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब कपिल मुनि के आश्रम में राजा सगर के 60 हजार पुत्र युद्ध के लिए पहुंचे तो कपिल मुनि ने श्राप देकर उन सबको भस्म कर दिया। राजकुमार अंशुमान, राजा सगर के पोते ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर विनती की और अपने बंधुओं के उद्धार का रास्ता पूछा। तब कपिल मुनि ने बाताया कि इनके उद्धार के लिये गंगाजी को धरती पर लाना होगा। तब राजा अंशुमन ने तप किया और अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश दिया। बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप के यहां भागीरथ का जन्म हुआ और उन्होंने अपने पूर्वज की इच्छा पूर्ण की।
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*2.) श्रीहरि विष्णु ने किया था असुरों का वध :-*
 इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
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*3.) सूर्यवंशी राजा करते हैं सूर्य की पूजा :-*
 रामायण काल से ही भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। रामकथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की विशेष आराधना होती है।
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*4.) सूर्य की सातवीं किरण :-*
 सूर्य की सातवीं किरण भारतवर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
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*5.) भीष्म पितामह :-*
 महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का ही इंतजार किया था। कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।
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*6.) सूर्य जाते हैं अपने पुत्र शनि के घर :-*
 हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। कथा के अनुसार सूर्यदेव ने शनि और उनकी माता छाया को खुद से अलग कर दिया था, जिसके कारण शनि के प्रकोप के चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। तब सूर्यदेव के दूसरे बेटे यमराज ने इ रोग को ठीक किया था। रोगमुक्त होने के बाद सूर्यदेव ने क्रोध में आकर उनके घर कुंभ को जला दिया था। परंतु बाद में यमराज के समझाने पर वे जब शनि के घर गए तो उन्होंने वहां देखा कि सबकुछ जल चुका था केवल काला तिल वैसे का वैसा रखा था। अपने पिता को देखकर शनिदेव ने उनका स्वागत उसी काले तिल से किया। इससे प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें दूसरा घर ‘मकर’ उपहार में दे दिया। इसके बाद सूर्यदेव ने शनि को कहा कि जब वे उनके नए घर मकर में आएंगे, तो उनका घर फिर से धन और धान्य से भर जाएगा। साथ ही कहा कि मकर संक्रांति के दिन जो भी काले तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
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*7.) यशोदाजी ने किया था व्रत :-* 
 कहते हैं कि माता यशोदा जी ने श्रीकृष्‍णजी के लिए व्रत किया था तब सूर्य उत्तरायण हो रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। तभी से मकर संक्रांति के व्रत का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
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*8.) उत्तरायण होता है सूर्य तब देवताओं का प्रारंभ होता है दिन :-*
 मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति करने लगते हैं। इस दिन से देवताओं का छह माह का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।

सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है।

विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना आदि! 
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मकर संक्रांति विशेष - मकर संक्रांति त्योहार का महत्व


 मकर संक्रांति विशेष


जीवनदाई सूर्य को आभार प्रकट करने का दिवस -

सूर्य केवल संसार को रौशनी ही नहीं देता अपितु आरोग्य भी प्रदान करता है, इसके अलौकिक तेज में असाध्य रोगों को भी ठीक कर देने की अद्भत क्षमता है। पृथ्वी पर निरंतर प्राणों का प्रवाह करने के कारण इसे परमात्मा का प्रतिरूप माना गया है, यही कारण है की वैदिक हिन्दू संस्कृति में सूर्य की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है।

प्राचीन भारत में सूर्य को ‘सविता’ और ‘पुष्ण’ के नाम से पूजा जाता था। मिस्र में रा, ईरान में मित्रा (भारत का ‘मित्र’ अर्थात्, सूर्य), ग्रीस में ‘असुरिया’, ‘हिलियोस’ अथवा ‘अपोलो’ तथा इटली में ‘जुपिटर सोल’ कहते थे। जापान को ‘निप्पान’ के नाम से भी जाना जाता हैं, जिसका अर्थ हैं ‘उगते सूर्य का देश’।

अमेरिका के सुविख्यात सूर्यचिकित्सा विशेषज्ञ डॉ सोले के अनुसार सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति मौजूद है, उतनी संसार की किसी और वस्तु में नहीं है। इंग्लैण्ड के जाने-माने तपेदिक विशेषज्ञ डॉक्टर हर्निच भी सूर्य चिकत्सा के नतीजों से आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके। जर्मन चिकित्सक डॉक्टर होनार्ग एक मेडिकल जर्नल में लिखते हैं, रक्त का पीलापन, आयरन की कमी, नसों की दुर्बलता आदि में सूर्य की किरणों के इलाज से नतीजे लाजवाब रहे। अमेरिका की प्रसिद्द सूर्य चिकित्सक लेडी कीवो लिखती हैं लिखती हैं मेरे पास इलाज के लिए कई ऐसे बच्चे आये जो बहुत दुबले थे और जिनकी हड्डियाँ भी बहुत दुबली पड़ गई थीं मैंने उन्हें प्रातःकाल एक घंटे नंगे बदन धूप में टहलाया। कुछ ही दिनों में वो सत्तर फीसदी स्वस्थ हो गए. जर्मनी के नामचीन सिविल सर्जन एफ. प्रिवेल्ड ने सूर्य चिकत्सा पर अपना अनुभव लिखते हुए कहा है की “सूर्य की धूप का अगर ठीक तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो बिना किसी खर्च के सेहत दुरुस्त रह सकती है।

इसी जीवनदायी सूर्य की उपासना का महापर्व है मकर-संक्रांति । इस दिन सूर्य, भू-मध्यरेखा को पार करके उत्तर की ओर अर्थात् मकररेखा की ओर बढ़ना शुरू करता है। इसी को सूर्य का उत्तरायण स्वरूप कहते हैं। इससे पूर्व वह दक्षिणायन होता है।

आइये इस मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर इसके विषय मे विस्तार से जानते है कि इसका आध्यात्मिक , चिकित्सकीय , खगोलीय और मानव जीवन पर क्या असर डालता है ।।
मकर संक्रांति के अन्य_रूप ---
मकर संक्रान्ति को सम्पूर्ण भारत मे अलग अलग नामो से मनाया जाता है लेकिन सभी का प्रारूप एक है ।।

मकर_संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू

ताइ_पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु
उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड
माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
भोगाली बिहु : असम
शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी
खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
मकर संक्रमण : कर्नाटक

भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी मकरसंक्रांति को धूमधाम से मनाया जाता है --

बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति
नेपाल : माघे सङ्क्रान्ति या 'माघी सङ्क्रान्ति' 'खिचड़ी सङ्क्रान्ति'
थाईलैण्ड : सोङ्गकरन
लाओस : पि मा लाओ
म्यांमार : थिङ्यान
कम्बोडिया : मोहा संगक्रान
श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल

मकरसंक्रांति_नाम --

संक्रान्ति का अर्थ है, 'सूर्य का एक राशि से अलगी राशि में संक्रमण (जाना)'। मकर संक्रांति का त्योहार भी एक संक्रमणकालीन चरण माना जाता है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति स्वयं को आत्मप्रकाशित करने का प्रतीक है तथा इसे कृतज्ञता प्रकट करने के दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
मकर संक्रांति त्योहार का महत्व इसके नाम में ही छुपा हुआ है। मकर का अर्थ है मकर राशि और संक्रांति का अर्थ है संक्रमण। इस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। बारह महीने बारह राशियों के लिए हैं। सूर्य के सभी संक्रमणों में से यह संक्रमण जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में में प्रवेश करते हैं, सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को पवित्र माना जाता है तथा इस दिन से छह महीने के उत्तरायण का प्रारंभ होता है।

ज्योतिष एवम आध्यात्मिक आधार पर मकर संक्रांति --

सभी जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में दो तरह के पिण्ड हैं। ऑक्सीजन प्रधान और कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान। जहाँ ऑक्सीजन प्रधान पिण्ड ‘जीवनवर्धक’ होते हैं और वही कार्बन डाइऑक्साइड प्रधान ‘जीवनसंहारक’। बृहस्पति ग्रह जीवनवर्धक तत्वों का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है। शुक्र सौम्य होने के बावजूद आसुरी है। रवि यानी सूर्य का द्वादशांश यानी बारहवां हिस्सा छोड़ दें, तो शेष भाग जीवनवर्धक है। सूर्य पर दिखता काला धब्बे वाला भाग मात्र ही जीवन सहांरक प्रभाव डालता है। वह भी उस क्षेत्र में, जहां उस क्षेत्र से निकले विकिरण पहुंचते हैं।

अलग-अलग समय में पृथ्वी के अलग-अलग भाग इस नकारात्मक प्रभाव में आते हैं। अमावस्या के निकट काल में जब चंद्रमा क्षीण हो जाता है, तब संहारक प्रभाव डालता है। शेष दिनों में, खासकर पूर्णिमा के दिनों में चंद्रमा जीवनवर्धक होता है। इसीलिए चंद्रमा और सूर्य के हिसाब से गणना के दो अलग-अलग विधान हैं। मंगल रक्त और बुद्धि… दोनों पर प्रभाव डालता है। बुध उभयपिण्ड है।

जिस ग्रह का प्रभाव अधिक होता है, बुध उसके अनुकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे व्यापारी ग्रह कहा गया है। व्यापारी स्वाभाव वाला। छाया ग्रह राहु-केतु तो सदैव ही जीवनसंहारक यानी कार्बन डाइऑक्साइड से भरे पिण्ड हैं। इनसे जीवन की अपेक्षा करना बेकार है। जब-जब जीवनवर्धक ग्रह संहारक ग्रहों के मार्ग में अवरोध पैदा करते हैं। संहारक ग्रहों की राशि में प्रवेश कर उनके जीवनसंहारक तत्वों को हम तक आने से रोकने का प्रयास करते हैं। ऐसे संयोगों को हमारे शास्त्रों ने शुभ तिथियां माना। ऐसा ही एक संयोग मकर सक्रान्ति है।

शनि जीवनसंहारक शक्तियों का पुरोधा है। अलग-अलग ग्रह अलग-अलग राशि के स्वामी होते है। शनि मकर राशि का स्वामी ग्रह है। जिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकता है। वह पल ही मकर संक्रान्ति का शुभ संदेश लेकर आता है।

खगोलीय महत्व मकर संक्रांति का --

सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण और कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणयान कहलाता है। उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। कर्क रेखा की ओर बढ़ता हुआ सूर्य शहर को भी प्रभावित करता है। क्योंकि कर्क रेखा मप्र के 14 जिलों में से जबलपुर से भी होकर गुजरती है। एेसे में मौसम में गरमाहट भी यहां अधिक पता चलती है, वहीं ठंड के दौरान भी अधिक असर इसलिए ही होता है।
उत्तर की सीमा में सूर्य दाखिल होते ही प्रकाश को बढ़ा देता है। इस दौरान पृथ्वी पर सूर्य की किरणें भी सीधी हो जाती हैं। सीधी किरणें होने के कारण गर्मी भी बढऩे लगती है। एेसे में दिनभर का प्रकाश भी लम्बे समय के लिए हो जाता है। प्रकाश की न्यूनाधिकता के कारण की उत्तरायण को अधिक महत्व दिया जाता है। इस बदलाव के चलते 14 जनवरी को सूर्य उत्तरायण और 16 जुलाई को दक्षिणयाण में होता है।

धार्मिक महत्व मकर संक्रांति_का --

विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है। रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। रामचरित मानस में ही भगवान श्री राम द्वारा पतंग उड़ाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति का जिक्र वाल्मिकी रचित रामायण में मिलता है।
कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।'
राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।

मानव जीवन मे मकर संक्रांति सेलाभ --

मकर संक्रांति में प्रयोग तिल से_लाभ --
तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से कोलेस्ट्रोल को कम करता है,दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है।तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट पाया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है, अपनी इस खूबी की वजह से ही यह लंग कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका को कम करता है । तिल में कई तरह के लवण जैसे कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम होते हैं जो हृदय की मांसपेशियों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं । तिल में डाइट्री प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों की हड्डियों के विकास को बढ़ावा देता है, इसके अलावा यह मांस-पेशियों के लिए भी बहुत फायदेमंद है

मकर संक्रांति में प्रयोग गुड़ से लाभ --
गुड़ शरीर के खून को साफ करने का काम भी करता है. ये खून में मौजूद हिमोग्लोबीन काउंट बढ़ाता है और इम्यूनिटी बूस्ट करता है, इसीलिए पीरियड्स के दौरान दूध के साथ गुड़ खाने की सलाह दी जाती है,
सर्दियां अस्थमा के मरीज़ों के लिए काफी दिक्कत लेकर आती है, हवा में ऑक्सीजन की कमी और बढ़ता प्रदूषण उन्हें सांस लेने में दिक्कत देता है, सर्दियों में खांसी और कफ की वजह से भी सांस लेने में दिक्कत आती है, ऐसे में उनके शरीर को गर्म रखने के लिए और कफ को बाहर निकालने के लिए रोज़ाना काले तिल को मिलाकर लड्डू बनाकर दूध के साथ देंने से बेहतर परिणाम मिलता है,
गुड़ पाचन तंत्र को बीमारियों से बचाता है, खाने को जल्दी पचाता है और पेट में गैस नहीं बनने देता, खासकर सर्दियों में होने वाली पेट की परेशानियों से गुड़ राहत देता है

मकर संक्रांति में पतंग उड़ाने से लाभ --

संक्रांति पर धूप में पतंग उड़ाना मतलब सूर्य की रोशनी से शरीर को सेकना ,सूरज की रोशनी के फायदों के बारे में तो हम जानते ही हैं। इसे विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। लेकिन, अब ताजा वैज्ञानिक अनुसंधानों ने इसके एक और गुण के बारे में पता लगाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज की रोशनी इतनी गुणकारी है कि इससे कई प्रकार के कैंसर से सुरक्षित रहने में मदद मिलती है।
समाचार पत्र ‘डेली एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर के मुताबिक शोधकर्ताओं कई अनुसंधानों के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्होंने पाया कि त्वचा के कैंसर का खतरा सूरज की रोशनी से जरूर रहता है लेकिन इसके बावजूद यह रोशनी हमें करीब 15 प्रकार के कैंसर से बचाने में भी मददगार साबित होती है ।
एंटीकैंसर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के लिए शोधकर्ताओं ने 100 देशों में कैंसर के मामलों को आधार बनाया।
शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूरज की रोशनी से स्तन कैंसर, सर्विकल कैंसर, कोलोन कैंसर, गैस्ट्रिक, फेफड़े और दो प्रकार के लिम्फोमा से बचने में मदद मिलती है।
प्रमुख शोधकर्ता रसेल फोस्टर कहते है, 'प्राकृतिक रोशनी के संपर्क में रहने से मस्तिष्क से सरोटोनिन हार्मोन का स्राव होता है। इसे हैप्पी हार्मोन भी कहते है। यह इनसान का मूड सुधारने और उसे खुशमिजाज बनाने के लिए जिम्मेदार होता है।' उन्होंने कहा कि हम में से कई लोगों को प्राकृतिक रोशनी के संपर्क में वक्त बिताने का मौका नही मिलता। घर और दफ्तर में मिलने वाली रोशनी बॉडी क्लॉक में नियमितता के लिए पर्याप्त नही होती। अत: व्यक्ति में सुस्ती बनी रहती है।

मकर संक्रांति में प्रयोग खिचड़ी से लाभ --

खिचड़ी एक पौष्टिक भोजन है, जिसमें पोषक तत्वों का सही संतुलन होता है। चावल, दाल और घी का संयोजन आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम प्रदान करता है। कई लोगों इसके पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए इसमें सब्जियां भी मिला देते हैं।
खिचड़ी पेट और आंतों को स्मूथ बनाती है। सुपाच्य और हल्की होने की वजह से ही बीमारी में खिचड़ी खाने की सलाह दी जाती है। इसके सेवन से विषाक्त भी साफ होते हैं। नरम और पौष्टिक होने की वजह से यह बच्चों और बुजुर्ग दोनों के लिये बेहतर भोजन है। खिचड़ी आयुर्वेदिक आहार का एक मुख्य भोजन है, क्योंकि इसमें तीन दोषों, वत्ता, पित्त और कफ को संतुलित करने की क्षमता होती है। यह क्षमता ही खिचड़ी को त्रिदोषिक आहार बनाती है। शरीर को शांत व डीटॉक्सीफाई करने के अलावा खिचड़ी की सामग्री में ऊर्जा, प्रतिरक्षा और पाचन में सुधार करने के लिए आवश्यक बुनियादी तत्वों का सही संतुलन होता है। ग्लूटेन अर्थात लस से परहेज कर रहे लोगों के लिये भी खिचड़ी एक बेहद फायदेमंद आहार विकल्प होती है। इसमें मौजूद दालों, सब्जियों व चावल में ग्लूटेन नहीं होता है और सभी लोग इसका निश्चिंत होकर सेवन कर सकते हैं।प्रोटीन से भरी दाल में एक प्रकार का अमिनो एसिड नहीं होता इसलिए केवल दाल का सेवन न कर दाल-चावल या खिचड़ी के रूप में खाएं। खिचड़ी कॉम्बिनेशन में सेवन करने से यह कम्प्लीट प्रोटीन बन जाता है

मकर संक्रांति में नदी में स्नान से लाभ --

हमारे शरीर के जलीय भाग या अंश का सूक्ष्मतम रूप प्राण है और जल को प्राणमय बताया गया है। अर्थात जल से प्राणमय ऊर्जा का निर्माण होता है।
आयुर्वेदीय ग्रंथों में जल का शोधपूर्ण वर्णन ‘वीरवर्ग’ में है। आयुर्वेद के महान वैज्ञानिक आचार्य आत्रेय के शिष्य हारित ने अपनी ‘हारित संहिता’ में देश की संपूर्ण नदियों के जल पर शोध के क्रम में हिमालय पर्वत से उत्पन्न नदियों के जल को इस प्रकार वर्णित किया कि हिमालय से निकली नदियां पवित्र हैं, देव ऋषियों से सेवित हैं, भारी पत्थर और बालुका से युक्त बहने वाली हैं। उनका जल निर्मल, वात, कफ नाशक है, श्रम निवारक पित्त नाशक तथा त्रिदोष को शांत करता है।
इस प्रकार हिमालय से निकलने वाली सभी नदियां गुणों में समान हैं। 900 नदियां छोटी-बड़ी हिमालयी जड़ी-बूटियों से ओत-प्रोत होने के कारण गंगा बनी है। इसी प्रकार आत्रेय ने चर्मण्यवती, वेत्र वति, पासवती, क्षिप्रा, महानदी, शैवालिनी व सिंधु इन नदियों का जल, वात, पित्त, कफ नाशक, श्रम हारक, ग्लानि निवारक, वीर्यवद्र्धक बताया है। नर्मदा का जल अत्यंत पवित्र कहा गया है। यह जल घन, शीतल, पित्त नाशक, कफ कारक, वात विकार निवारक, हृदय के लिए हितकारी होता है।

विशेष --सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है. सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है. उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है. मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है. इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. यही नहीं कई जगहों पर तो मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी दान करने का भी विधान है. मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है. कई जगहों पर पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है.
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव की निम्न मंत्रों से पूजा करनी चाहिए।
ऊं सूर्याय नम: , ऊं आदित्याय नम: , ऊं सप्तार्चिषे नम:
अन्य मंत्र हैं- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम:
ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:

नोट - आप सभी स्वजनों को मकरसंक्रांति ,लोहड़ी और पोंगल की हृदयतल से शुभकामनाएं

नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ??

 हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ??



हम भारत वासियों को कवर चढ़ाने का बहुत शौक है |
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बाज़ार से बहुत सुंदर सोफा खरीदेंगे लेकिन फिर उसे भद्दे सफेद जाली के कवर से ढक देंगे |🤔
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बढ़िया रंग का सुंदर सूटकेस खरीदेंगे, फिर उस पर मिलिट्री रंग का कपड़ा चढ़ा देंगे |🤔

मखमल की रजाई पर फूल वाले फर्द का कवर!!!🤔
फ्रिज पर कवर!🤔
माइक्रोवेव पर कवर!🤔
वाशिंग मशीन पर कवर!🤔
मिक्सी पर कवर!🤔
थर्मस वाली बोतल पर कवर!🤔
TV पर कवर!🤔
कार पर कवर!🤔
कार की कवर्ड सीट पर एक और कवर!🤔
स्टेयरिंग पर कवर!🤔
गियर पर कवर!🤔
फुट मैट पर एक ओर कवर!🤔
सुंदर शीशे वाली डाइनिंग टेबल पर प्लास्टिक का कवर!🤔
स्टूल कवर!🤔
चेयर कवर!🤔
मोबाइल कवर!🤔
बेडशीट के ऊपर बेड कवर!🤔
गैस के सिलिंडर पर कवर!🤔
RO पर कवर!🤔
किताबों पर कवर!🤔
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काली कमाई पर कवर!!!🤔
गलत हरकतों पर कवर!!!🤔
बुरी नियत पर कवर!!!🤔

लेकिन.....
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कचरे के डिब्बे पर ढक्कन नदारद!!😁
खुली नालियों के कवर नदारद!!😁
कमोड पर ढक्कन नदारद!!😁
मैनहोल के ढक्कन नदारद!!😁
सर से हेलमेट नदारद!!😁
खुले खाने पर से कवर नदारद!!😁
आधुनिकता में तन से कपडे नदारद!!😁
इन्सानों के दिल से इंसानियत नदारद!!😁
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क्या ढकना है और क्या खुला रखना है!!!
हम लोग आज तक ये नहीं समझ पाये।

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