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सोमवार, 16 जनवरी 2023

भाषा की दरिद्रता : नाम हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है?

भाषा की दरिद्रता :  नाम 

हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? 
उत्तर भारतीय हिन्दू समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है. 
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम अवीरा है, बड़ा ही यूनिक नाम रखा है। पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बोले कि बहादुर, ब्रेव कॉन्फिडेंशियल। सुनते ही दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत हीअशोभनीय नाम है। नहीं रखना चाहिए. उनको बताया कि
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री) 
2. स्वतंत्र (स्त्री) उसका नाम होता है अवीरा.
नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः  सा अवीरा 

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए,  बोले महाराज क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ... लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो  दे गूगल ...  दे याहू ... और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"
नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन  ने अपनी गुड़िया का नाम रखा "श्लेष्मा". स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा ! मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे. क्या हुआ have I said anything weird? मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का mucus" उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है उत्तर भारतीय हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग का। न जाने हो क्या गया है उत्तर भारतीय हिन्दू समाज को ? फैशन के दौर में फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग हिन्दू समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है

अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.
भाषा की संकरता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.

नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, भुआ, तथा गुरुओं का होता है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.
आप जब दादा दादी बनेंगे तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार करें. अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है,कोई भी अवीरा हो सकती है।

शास्त्रों में लिखा है व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.
नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।
नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत:  प्रशस्तं खलु नामकर्म।
{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

स्मृति संग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।
 नामकर्मफलं त्वेतत्  समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।

नाम कैसा हो--
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र  1/7/23 में बताया गया है-
द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं। 
दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।। 
अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।
इसका तात्पर्य यह है कि बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।
जैसे देव शर्मा ,सूरज वर्मा ,कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए यथा श्रीदेवी आदि।

धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं -
१ देवनाम
२ मासनाम 
३ नक्षत्रनाम 
४ व्यावहारिक नाम 

नोट -कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए. यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है, व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में वर्ण अनुसार नाम की व्यवस्था की गई है ब्राह्मण का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, तथा शर्मा युक्त होना चाहिए. क्षत्रिय का नाम बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक, तथा वर्मा युक्त होना चाहिए, वैश्य का नाम धन ऐश्वर्य सूचक, पुष्टि युक्त तथा गुप्त युक्त होना चाहिए, अन्य का नाम सेवा आदि गुणों से युक्त, एवं दासान्त होना चाहिए।

पारस्कर गृहसूत्र में लिखा है -
शर्म ब्राह्मणस्य वर्म क्षत्रियस्य गुप्तेति वैश्यस्य

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं. बालकों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

हमारे सनातन धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
भायं कुभायं अनख आलसहूं। 
नाम जपत मंगल दिसि दसहूं॥

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है. इससे बचें शास्त्रोक्त नाम रखें इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।
जै राम जी की।

कीकर और बबूल का गोंद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है।

 कहा जाता हैं कि सर्दियों में गर्म तासीर वाली चीजें खानी चाहिए, इससे ठंड नहीं लगती है और सीजनल बीमारियां भी दूर रहती हैं। यही वजह है कि सर्दियों में लहसुन,अदरक और काली मिर्च का खूब सेवन किया जाता है। सर्दियों में तो गोंद के लड्डू भी बड़े चाव से खाए जाते हैं।  बबूल गोंद को अक्सर लोग साधारण पेड़ समझ लेते हैं, लेकिन इसके हर हिस्से का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवा और घरेलू उपचार में किया जाता है। लेकिन गोंद  सेवन से आपकी ढलती उम्र में भी कमसिन नजर आएंगे। ये चीज है बबूल की गोंद, बबूल के तने को चीर लगाने पर जो रस निकलता है। वो सूखने पर ठोस और भूरा हो जाता है, इसे ही गोंद कहते हैं। लेकिन यह भी जानने की जरूरत है कि हर पेड़ का गोंद खाने लायक नहीं होता। कीकर और बबूल का गोंद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। मार्केट में आपको खाने वाला गोंद आसानी से मिल जाएगा।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

गोंद खाने का तरीका:

बबूल का एक चम्मच गोंद मिश्री मिले दूध के साथ लेने से शरीर में ताकत का संचार होता है, बबूल की गोंद को मुंह में रखकर चूसने से खांसी ठीक हो जाती है, बबूल की गोंद, फली और छाल को बराबर मात्रा में लेने से कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।

-सर्दियों में गोंद का सेवन दिमागी तरावट और जोड़ों में दर्द व जोड़ों की अन्य समस्याओं के लिए काफी फायदेमंद होता है।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

-गोंद खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता सुधरती है। इसीलिए सर्दियों में गोंद के लड्डू खाए जाते हैं।

गोंद में बहुत औषधीय गुण होते हैं साथ ही ये रक्त को शुद्ध करता है,जिससे कील मुंहासे आदि से छुटकारा मिल जाता है।

-गोंद हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। यह डिप्रेशन से भी बचाव करता है और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।

-गोंद स्किन के लिए भी बेहद फायदेमंद है। यह एक स्किन केयर एजेंट के तौर पर काम करता है।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

-जिन लोगों को फेफड़ों से संबंधित समस्या है, कमजोरी और थकान महसूस होती है, उन लोगों के लिए गोंद बड़े ही काम की चीज है।

स्त्रियों के लिए शारीरिक थकावट और बदन दर्द दूर करने का एक सामान्य परंतु कारगर तरीका


 स्त्रियों के लिए बड़ी अजीब सी बात है कि दिन भर खटने के बाद जब महिलाए रात में बिस्तर पर पहुंचती हैं तो आधे घंटे तक दर्द से कराहती रहती हैं ।




इसके कई कारण हैं ।

1 युवावस्था में दो फुल्के खाकर काम चला लेना ।

2 जंक फ़ूड ज्यादा मात्रा मे सेवन करना।

4 पानी बहुत कम पीना ।

5 छोटी छोटी बीमारियों को नज़रअंदाज करना ।

5 कास्मेटिक्स का ज्यादा मात्रा में प्रयोग करना ।

6 खान-पान मे लापरवाही करना ।

शारीरिक थकावट और बदन दर्द दूर करने का एक सामान्य परंतु कारगर तरीका :-

एक किलो मेथी दाने घी में भूनकर पीस लीजिए । अब इसमें 250 ग्राम बबूल का गोंद घी

में भून कर और पीस कर मिला दीजिए । सुबह शाम 1-1 चम्मच यानी 5-5 ग्राम पानी से निगल लीजिए । जब तक यह पूरी दवा खत्म होगी आप अपने आपको अधिक सुन्दर,

ताकतवर महसूस करेंगी । पूरे बदन में दर्द का कहीं नामोनिशान नहीं रहेगा और एक नयी

स्फूर्ति का अनुभव होगा ।

मातृभूमि से बढ़कर कोई और देश नही हो सकता,भारत मे जो अपनापन है वो किसी भी देश मे नही मिल सकता।

 डा. मीनाक्षी दो साल बाद लंदन से भारत लौटी हैं। वहाँ हर तरीके से सब कुछ बढ़िया होते हुए भी वो चैन से नही थी। विदेशी भूमि को उनका परिवार कभी अपना नहीं पाया। अब पटना  लौट कर चैन की सांस आई है।

दीपावली की कुछ शॉपिंग करने अपने प्रिय पटना मार्केट आई थीं।

तभी एक संभ्रांत महिला ने टोका, "मैडम, बहुत दिनों के बाद देखा आपको। आप शायद इंग्लैंड चली गई थीं...कितने दिनों के लिए आई हैं"।

वो बहुत अभिभूत सी थीं। वहां लंदन में कोई पहचानता भी नही था...किसी को किसी से कोई मतलब ही नही होता था और यहाँ इस महिला ने देखते ही पहचान लिया और रोक कर स्नेहप्रदर्शन भी किया।  उन्होने भी उतनी ही कोमलता से उस महिला से बात की।

अभी थोड़ा आगे बढ़ी ही थीं कि एक बड़े साड़ी शोरूम से एक सज्जन निकले और उनका अभिवादन किया,
"आप मैडम मीनाक्षी! बहुत दिनों के बाद दिखाई दी हैं। कहां रही इतने दिन?"

वो भी राकेश बाबू को पहचान कर बड़ी खुश हो गई, "अरे भाईसाहब, आपने हमें पहचान लिया। हमारी ननद के विवाह की काफ़ी खरीदारी आपके यहां से ही तो की गई थी"।

वो भी बहुत आत्मीयता से बोले, "जी बिल्कुल याद है।  आपने तो मेरे पोते को नया जीवन दिया था। मेरा परिवार तो आपका सदा ही ऋणी रहेगा।"
 उन्होने उनको शोरूम के अंदर आकर कॉफी़ पीने का आग्रह किया।  वो उस स्नेही आग्रह को ठुकरा नहीं सकीं...सारे कामों की लिस्ट उनके मन में उछलकूद मचा रही थी पर उस स्नेह...उस आत्मीयता... उस प्यार भरी मनुहार को कैसे टाल दें जिसके लिए वहाँ सुदूर इंग्लैंड में वो हर पल...हर क्षण तड़पती रही थीं।

कॉफी़ पीते पीते उन्हें बुआजी की याद आ गई।  आज सुबह ही तो वो कितना अचरज कर रही थी, "अरे मीनू, इतना बढ़िया जॉब, इतना ठाठबाट... सबसे बढ़ कर इतना सुंदर देश...सब छोड़छाड़ कर तुम लोग यहाँ वापस कैसे आ गए? जो एक बार जाता है.. बस वहीं का होकर रह जाता है।"

उस समय तो वो सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई थीं पर अब बुआजी की बात का...उनके अचरज का  जवाब देने का मन हो रहा था...देखिए बुआजी... यही अपनापन...यही अपनी पहचान ...जो शायद वहां की चमकदमक में कहीं ओझल सी हो गई थी...वहाँ की सुंदर राजसी सड़कों पर कोई पहचानने वाला नहीं था...यहाँ तो कदम कदम पर अपने लोग हैं...अपनापन है।
उसके बाद डॉ मीनाक्षी ने मुड़कर लंदन नही देखा और यही रख कर लोगो का कम पैसे में इलाज किया ताकि जरूरतमन्दों का सफल इलाज कर सकें।

💐💐शिक्षा💐💐

दोस्तों, अपनी मातृभूमि से बढ़कर कोई और देश नही हो सकता,भारत मे जो अपनापन है वो किसी भी देश मे नही मिल सकता।

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