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शुक्रवार, 19 जून 2015

सूर्यनमस्कार योग - विधि और लाभ

भारतवर्ष में सूर्य को ज्ञान और उर्जा का प्रतिक माना जाता हैं। सूर्य को दैनंदिन स्वरूप से पूजने का क्रम अविरत चला आ रहा हैं। सूर्य भगवान से ज्ञान और उर्जा प्राप्ति के लिए योग में ' सूर्यनमस्कार ' किया जाता हैं। सूर्यनमस्कार अपने आप में एक सम्पूर्ण साधना है जो आसन, प्राणायाम, मंत्र और ध्यान तंत्र से परिपूर्ण हैं। सूर्यनमस्कार एक सरल और संपूर्ण व्यायाम हैं जिसकी बहुउपयोगिता तथा बहुआयामिता हमारे जीवन को तेजोमय, निरोगी तथा गतिशील बनाती हैं।
सूर्यनमस्कार संबंधी अधिक जानकारी निचे दी गयी हैं :


सूर्यनमस्कार कैसे करते हैं ?

सूर्यनमस्कार में कुल 12 आसन किये जाते हैं। इसमें की जानेवाली 12 शारीरिक स्तिथियों का संबंध 12 राशियों से होने के दावा भी किया जाता हैं। सूर्यनमस्कार करने का सबसे शुभ समय सूर्योदय का होता हैं। अगर संभव हो तो इसे सूर्य की तरफ मुख कर स्वच्छ हवादार स्थान करने से ज्यादा लाभ होता हैं। सूर्यास्त के समय भी यह किया जा सकता हैं। समय न मिलने पर, इसे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है पर आपका पेट खाली होना आवश्यक हैं।

सूर्यनमस्कार करने का क्रम इस प्रकार हैं :
  1. प्रणामासन : दोनों पैरो पर सीधे खड़े हो जाए और पैरो को एक दुसरे से मिलाकर रखे। आँखों को बंद कर दोनों हाथो के तलवे को एक दुसरे से वक्षपर (सिनेपर) मध्य में मिला दे। नमस्कार की मुद्रा धारण करे। इस आसन से एकाग्रता बढ़ती हैं और मानसिक शांति का लाभ होता हैं। 
  2. हस्तउतानासन : अब दोनों हाथों को कुंहनियो (elbow) को सिधाकर सिर के ऊपर उठा ले। दोनों हाथों को अपने कंधो की चौड़ाई की दुरी पर रखे। अब हाथ, सिर तथा शरीर को क्षमता अनुसार पीछे की और मोड़े। इस आसन से पाचन प्रणाली प्रभावित होती हैं। हाथ, कंधे तथा मेरुदंड को शक्ति मिलती हैं। अतिरिक्त वजन कम कर मोटापा को दूर करने में लाभप्रद हैं। 
  3. पादहस्तासन : अब धीरे-धीरे सामने की ओर झुकना हैं। दोनों हाथो को पैरो के बाजू मे रख कर भूमि को स्पर्श करे। माथे को घुटने से लगाने का प्रयास करे। ध्यान रहे की आपका घुटना सीधा रहना चाहिए। यह पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी कम करता हैं, कब्ज को दूर करता हैं, मेरुदंड लचीला बनाता है और पाचन प्रणाली मजबूत करता हैं। 
  4. अश्वसंचालनासन : अब निचे की ओर झुककर हथेलियों को दोनों पैर की बाजू मे रखे। बाए पैर के तलवे को स्थिर रखकर दाहिने पैर को पीछे की ओर अपने क्षमतानुसार अधिकतम तान दे। बाए पैर के घुटने को मोड़ दे। शरीर का संतुलन समान बनाये रखे। सिर को अपने क्षमतानुसार पीछे और ऊपर की ओर मोड़े तथा पीठ की कमान (curve) बनाए। आसमान / छत की और देखे। इस आसन से पैरो के स्नायु मजबूत होते हैं। तंत्रिका प्रणाली (Nervous System) संतुलित होती हैं। 
  5. पर्वतासन : अब बाए पैर को पीछे कर दाहिने पैर से मिला दें। नितंब (Hips) को ऊपर की और उठा दे। सिर को सामने झुकाकर दोनों हाथों के बिच रखे। हाथो को कुंहनियो से और पैर को घुटनों से सीधा कर पर्वत के समान आकर बनाए। एडियो को भूमि से लगाने का प्रयास करे। यह आसन हाथ-पैर के स्नायु तथा मेरुदंड को मजबूती प्रदान करता हैं। 
  6. अष्टांग नमस्कार : अब धीरे-धीरे निचे की ओर झुके और दोनों पैर की अंगुलिया, दोनों घुटने, दोनों हथेलिया, छाती तथा ठुड्डी यह आठ अंगो से भूमि को स्पर्श करे। इस आसन से हाथ-पैर तथा वक्षप्रदेश के स्नायु को मजबूती मिलती हैं।  
  7. भुजंगासन : अब नितंब को धीर से निचे की ओर ले आए। हाथों को कुंहनियो से सीधा करे तथा सिर और पीठ को पीछे की ओर तानकर कमान जैसा करे। आकाश की ओर देखे। इस आसन में शरीर का आकर सर्प के समान होता है इसलिए इसे भुजंगासन कहते हैं। इस आसन से मेरुदंड लचीला होता हैं। प्रजनन संस्था और पाचन प्रणाली को फायदा होता हैं। 
  8. पर्वतासन : अब फिर से सिर और पीठ को सीधा कर पर्वतासन (point 5) क्रिया को दोहराना है। 
  9. अश्वसंचालानासन : अब बाए पैर को दोनों हाथो के बिच रखकर अश्वसंचालनासन (point 4) करना हैं। 
  10. पादहस्तासन : अब दोनों हाथो को पैर के बाजु में रखकर पादहस्तासन (point 3) करना हैं। 
  11. हस्तउत्तानासन : अब दोनों हाथो, सिर और शरीर को पीछे की ओर मोडकर हस्तउत्तानासन (point 2) को दोहराना हैं। 
  12. प्रणामासन : दोनों हाथो के तलवो को वक्ष पर रखकर प्रणामासन (point 1) करना हैं। 
इस तरह सूर्यनमस्कार का अर्ध चक्र पूर्ण होता हैं। पूर्ण चक्र के अभ्यास में आसन क्र 4 तथा 9 में दाहिने पैर की जगह बाए पैर को पीछे ले जाना है और दाहिने पैर को जगह पर स्थिर रखना हैं। हम सपने क्षमतानुसार सूर्यनमस्कार का अभ्यास कर सकते हैं।


सूर्यनमस्कार के क्या लाभ हैं ?

सूर्यनमस्कार एक सरल और बहुउपयोगी योगासन हैं। सूर्यनमस्कार से होनेवाले विविध लाभ की जानकारी निचे दी गयी हैं :
  • सिर्फ एक सूर्यनमस्कार करने से ही 12 आसन करने का लाभ मिलता हैं। 
  • सुबह सूर्योदय के समय खाली पेट सूर्यनमस्कार करने से हड्डियों को सूर्य की किरणों से Vitamin D भी मिलता है जिससे हड्डिया मजबूत बनती हैं। 
  • शरीर शिथिलीकरण, अंतर्गत मालिश तथा जोड़ और स्नायु को सुगठित करने के लिए सूर्यनमस्कार उत्तम योग हैं। 
  • सूर्यनमस्कार करने से शरीर को उर्जा देनेवाली पिंगला नाडी सुप्रवाहित होती हैं। 
  • सूर्यनमस्कार करने से आँखों की रोशनी ठीक रहती हैं। 
  • संपूर्ण शरीर लचीला बनता हैं। 
  • वजन कम करने में सहायक हैं। 
  • बालो का झड़ना और सफ़ेद होना कम होता हैं। 
  • शरीर की सभी प्रणालिया जैसे की - पाचन, श्वसन, प्रजनन, तंत्रिका और अन्तःस्त्रावी ग्रंथि को संतुलित किया जाता हैं। 
  • मस्तिष्क को प्राणयुक्त रक्त का प्रवाह प्रदान करता हैं। 
  • प्रसूति के 40 दिन बाद पेट को कम करने के लिए सूर्यनमस्कार उपयोगी हैं।
  • मानसिक शांति और धैर्य प्रदान करता हैं। 

सूर्यनमस्कार में क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?

सूर्यनमस्कार में निम्लिखित सावधानी बरतनी चाहिए :
  • बुखार, जोड़ो में सुजन होने पर सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
  • अनियंत्रित उच्च रक्तचाप, हर्निया, गंभीर ह्रदय रोग, चक्कर आना तथा मेरुदंड के गंभीर रोगी को सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
  • मासिक धर्म के समय तथा गर्भावस्था के 4 महीने के बाद सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिए। 
आज कई नामी हस्तिया भी खुद को फिट रखने हेतु सूर्यनमस्कार का नियमित अभ्यास करते हैं। सूर्यनमस्कार से सभी अंगो को लाभ मिलता है इसलिए इसे 'सर्वांग व्यायाम' भी कहते हैं। शारीरिक और मानसिक लाभ के लिए इसका अभ्यास नियमित करना चाहिए।

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